राबड़ी की तलाशी पर कितना भड़के थे लालू, अधिकारियों तक को दी थी चप्पल मारने की धमकी -(zee news)
लालू ने राजनैतिक अंध विश्वास के चलते किया है अधिकारियों का अपमान ! अधिकारियों के संवैधानिक अधिकारों का मजाक उड़ाया गया है ! नेता लोग अपने को संविधान से ऊपर आखिर क्यों समझते हैं ! राजनीति से जुड़े लोग जब तक अधिकारियों का सम्मान नहीं करेंगें तब तक आम जनता क्यों मानेगी अधिकारियों को ?और क्यों कोई अपराधी डरेगा अधिकारियों से !यदि नेता लोग ऐसी ही हरकतें करते रहे तो कैसे घटेगा समाज से अपराध और भ्रष्टाचार ! ये केवल अधिकारियों का ही नहीं अपितु संपूर्ण शिक्षा जगत का अपमान है!
पढ़ने के लिए लाखों छात्रों छात्राओं को न केवल घर द्वार छोड़ कर दूर जाना
पड़ता है अपितु घर द्वार भूलना पड़ता है!सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन
करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है केवल इतना ही नहीं कहाँ
तक कहें कुछ बनने के लिए एक विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से बार बार मरना
पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया जन्म होता
है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है कि उसे अपना मन मारकर
आजीवन जीवन ढोना पड़ता है !
ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को खाने का स्वाद, स्वजनों से संवाद एवं
हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता
है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी
बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे
विद्यार्थी के जीवन में इस लौकिक सूर्य के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता
उनका सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान
होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!
जब मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो गंगा जी के किनारे अस्सी
घाट पर मिले एक साधक ने शिक्षा साधना के विषय में समझाते हुए हमसे कहा
था कि जैसे किसी व्यक्ति के हाथ पैर बाँधकर पानी में डाल दिया जाए उस पानी
में डूबे हुए व्यक्ति के मनमें जितनी छटपटाहट होती है जब तक बाहर नहीं
निकल आता है तब तक साँस नहीं लेता है ठीक इसीप्रकार की छटपटाहट शिक्षा साधक
में होनी चाहिए ।स विद्यामधिगच्छति!अर्थात वह विद्या की ओर जा पाता है अन्यथा थोड़े भी भटकाव वाले लोग फिसल जाते हैं यह सूत्र ही हमारे भी जीवन का मूल मंत्र बना !
आज
द्वारा ऐसे सरस्वती पुत्रों का अपमान किया गया है जिन्होंने जीवन में शिक्षा के लिए कभी भी कठोर साधना की होगी !उनके प्रतिष्ठा पूर्ण
जीवन से ऐसे तुच्छ लोग खिलवाड़ कर रहे हैं जिनमें जन सेवा की भावना ही नहीं है इनमें कहाँ है देश प्रेम ? ऐसे लोग कानून को तो अपने हाथ का खिलौना मानते हैं कितने निर्मम हैं ये नेता !अपने राजनैतिक छिछलेपन
के कारण अधिकारियों की प्रतिष्ठा से कैसे खिलवाड़ कर रहे हैं
ये लोग !इन्हें धिक्कार है!!!
नेताओं की ऐसी ही हरकतों से बढ़ता है अपराधियों का मनोबल! वो किसी न किसी नेता के संरक्षण में रहकर अपराध इसीलिए करते हैं कि कोई आवश्यकता पड़ी तो नेता जी अधिकारियों को धमका देंगे और एक बार धमकाए जाने के बाद बड़े बड़े अधिकारी डर जाते हैं !
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गाली खाएँ !आखिर कितनी दहशत में जीते होंगे वो लोग!वारे लोकतंत्र !!!जो बाप
के पैर नहीं छूते हैं वो आपके छूते हैं वारे नेता जी!!!
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