भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Saturday, August 31, 2013
फर्जी साधुओं से धर्म रक्षा के लिए शास्त्रीय साधू संत सामने आएँ !
फर्जी बाबाओंसे बचो
फर्जी बाबाओं के पास ही प्रभुता है पैसा है,मीडिया है प्रशासन में पकड़ है जन समर्थन है समाज में नाम है चेहरे पर चमक है आश्रम नाम के फार्म हॉउस हैं घर भी हैं घरैतिनें भी हैं लड़के बच्चों से भरे पुरे परिवार भी उसी आश्रम नुमा घरों में रहते हैं ऐसे बाबाओं के मरने के बाद नंबर एक के दुर्गुणी उनके बच्चे सम्हालते हैं उनकी मल्कियत ! इतना सब होने के बाद भी वे विरक्त भी हैं संत भी हैं और मीडिया के पिट्ठू भी हैं !
इस वर्ष नकली शंकराचार्यों ने असली शंकराचार्य को कुम्भ से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया और नकली शंकराचार्यों का प्रशासन पर दबदबा भी दिखाई दे रहा है ।आज संन्यासी भी दो प्रकार के होने लगे हैं एक असली और दूसरे नकली ।नकली संन्यासी असली वालों से ज्यादा बन ठन कर रहते हैं इनमें साधुत्व तो होता ही नहीं है प्रत्युत संन्यास का गौरव भी गिरा रहे होते हैं।इनके सारे आचार व्यवहार गृहस्थों के सामान होते हैं इनमें और गृहस्थों केवल इतना अंतर होता है कि गृहस्थ कमा कर खाता है खाते बाबा लोग भी हैं और अच्छा खाते हैं किन्तु कमाने नहीं जाते जो भी बिना कमाए अच्छा खाने पहनने आदि का शौक शान रखते हों वो इस देश में बड़ी आसानी से संत बन जाते हैं!
गृहस्थी में रहकर किसी से माँगने में अच्छा नहीं लगता था घर वाले बेइज्जती महसूस करते होंगे इसलिए साधू बनकर माँगने में वह शर्म भी छूट जाती है अब कहीं भी कुछ भी किसी से भी बेहिचक माँगा जा सकता है उससे धर्म और समाज सेवा के नाम सारे सुख सुविधा के साधन जोड़ लिए जाते हैं ।योग पीठ, आश्रमी होटल कथा कीर्तन के नाम पर नाच गाना विद्यालय गोशाला भोग भंडारा किसी संगठन के अध्यक्ष, महामंत्री आदि कुछ भी बन जाते हैं कुछ लोग तो सांसद मंत्री सब कुछ बन जाते हैं अपनी हर भोग भावना भक्तों के ईच्छा पर डाल कर सुख सुविधा युक्त जीवन जीते हैं ।
फर्जी बाबाओं के पास ही प्रभुता है पैसा है,मीडिया है प्रशासन में पकड़ है जन समर्थन है समाज में नाम है चेहरे पर चमक है आश्रम नाम के फार्म हॉउस हैं घर भी हैं घरैतिनें भी हैं लड़के बच्चों से भरे पुरे परिवार भी उसी आश्रम नुमा घरों में रहते हैं ऐसे बाबाओं के मरने के बाद नंबर एक के दुर्गुणी उनके बच्चे सम्हालते हैं उनकी मल्कियत ! इतना सब होने के बाद भी वे विरक्त भी हैं संत भी हैं और मीडिया के पिट्ठू भी हैं !
इस वर्ष नकली शंकराचार्यों ने असली शंकराचार्य को कुम्भ से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया और नकली शंकराचार्यों का प्रशासन पर दबदबा भी दिखाई दे रहा है ।आज संन्यासी भी दो प्रकार के होने लगे हैं एक असली और दूसरे नकली ।नकली संन्यासी असली वालों से ज्यादा बन ठन कर रहते हैं इनमें साधुत्व तो होता ही नहीं है प्रत्युत संन्यास का गौरव भी गिरा रहे होते हैं।इनके सारे आचार व्यवहार गृहस्थों के सामान होते हैं इनमें और गृहस्थों केवल इतना अंतर होता है कि गृहस्थ कमा कर खाता है खाते बाबा लोग भी हैं और अच्छा खाते हैं किन्तु कमाने नहीं जाते जो भी बिना कमाए अच्छा खाने पहनने आदि का शौक शान रखते हों वो इस देश में बड़ी आसानी से संत बन जाते हैं!
गृहस्थी में रहकर किसी से माँगने में अच्छा नहीं लगता था घर वाले बेइज्जती महसूस करते होंगे इसलिए साधू बनकर माँगने में वह शर्म भी छूट जाती है अब कहीं भी कुछ भी किसी से भी बेहिचक माँगा जा सकता है उससे धर्म और समाज सेवा के नाम सारे सुख सुविधा के साधन जोड़ लिए जाते हैं ।योग पीठ, आश्रमी होटल कथा कीर्तन के नाम पर नाच गाना विद्यालय गोशाला भोग भंडारा किसी संगठन के अध्यक्ष, महामंत्री आदि कुछ भी बन जाते हैं कुछ लोग तो सांसद मंत्री सब कुछ बन जाते हैं अपनी हर भोग भावना भक्तों के ईच्छा पर डाल कर सुख सुविधा युक्त जीवन जीते हैं ।
बात बनारस की है भक्तों की ईच्छा का सम्मान करते हुए एक साधू महराज ने एक सुंदरी को शिष्या बनाया फिर उसे अपना सब कुछ बना लिया जब कोई पूछे तो सहज स्वभाव से अपनी बात बता देते कि क्या करें भक्त नहीं मानें उन्होंने कहा कि महाराज जी आप अकेले रहते हो आपका जीवन हम सबके लिए बहुमूल्य है आपको सेविका तो चाहिए ही इतना तो बनता भी है । भक्त नहीं माने इस लिए मैंने इसे रख लिया क्या करता ?वैसे भी रखते तो लगभग सभी लोग हैं किन्तु हमारा आश्रम छोटा होने के कारण कुछ छिप नहीं पाता है।इस प्रकार भक्तों की ईच्छा का सम्मान करने के नाम पर आधुनिक साधू महाराज सारी सुख सुविधाएँ जोड़ लेते हैं ।इसमें उनकी कोई गलती नहीं है ।बंधुओं !वैराग्य इतना आसान भी नहीं होता है ।सबसे कठिन होता है वैराग्य!तभी तो उस वेष का सम्मान आज है पहले था आगे भी रहेगा।जिनका पूर्व जन्म के पापों के प्रभाव से इस जन्म में भी पूजन भजन में मन ही नहीं लगता है ।ऐसे ही लोग पूर्व में कहे गए सारे प्रपंचों में अपने को फँसा कर अपना समय पास किया करते हैं।
पूर्व जन्म के पाप से हरि चर्चा न सोहात।
नेता और नकली संन्यासी दोनों एक जैसे होते हैं दोनों समाज के लिए बहुत कुछ करने का नाटक करते हैं किन्तु करते सब अपने लिए ही हैं ।
दोनों की अपनी अपनी पोशाक होती है एक की खादी तो दूसरे की भगवा ।इसीप्रकार दोनों दूसरे की कमाई पर जीवित रहकर भी दूसरों के लिए बहुत कुछ करने का दिखावा किया करते हैं।दोनों को भाषण देने की बड़ी लत होती है।दोनों पदवी पाने के लिए प्राण दे रहे होते हैं।नेता चाहे कूड़ा उठाने वालों का ही अध्यक्ष बनें किन्तु बिना अध्यक्ष बने नहीं रह सकता है इसीप्रकार नकली संन्यासी बिना किसी पद के नहीं रह सकता है चाहे मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, महंत श्री महंत या फर्जी शंकराचार्य आदि ही बनने का आडंबर
क्यों न किया हो।
असली शास्त्रीय संन्यासियों के लक्षण
संन्यासियों या किसी भी प्रकार के महात्माओं को काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य आदि विकारों पर नियंत्रण तो रखना ही चाहिए यदि पूर्ण नियंत्रण न रख सके तब भी प्रयास तो पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि लकड़ी की भी बनी हो तो भी वैराग्य व्रती उसका स्पर्श न करे.....!
दारवीमपि मा स्पृशेत्||
माता स्वस्रा दुहित्रा वा .... !
माता, मौसी ,बहन,पुत्री आदि के साथ भी अकेले न बैठे।
शंकराचार्य जी कहा कि विरक्तों के लिए नरक का प्रधान द्वार नारी है-
द्वारं किमेकं नरकस्य नारी
इसी प्रकार
शूरान् महा शूर तमोस्ति को वा
प्राप्तो न मोहं ललना कटाक्षैः|| -शंकराचार्य
का श्रंखला प्राण भृतां हि नारी -शंकराचार्य
मत्स्य पुराण में कहा गया है कि बशीभूत मन वालेसंन्यासियों को साल के आठ महीने तक विचरण करना चाहिए अर्थात पूरे देश में भ्रमण करना चाहिए।वर्षा के चार महीने एक स्थान पर रह कर चातुर्मास व्रत करे ।
अत्रि ऋषि ने कहा है कि ये छै चीजें नृप दंड के समान मानकर संन्यासी अवश्य करे -
1. भिक्षा माँगना
2.जप करना
3.स्नानकरना
4.ध्यानकरना
5.शौच अर्थात पवित्र रहना
6.देवपूजन करना
इसीप्रकार न करने वाली छै बातें बताई गई हैं -
1.शय्या अर्थात बिस्तर पर सोना
2.सफेद वस्त्र पहनना
3.स्त्रियोंसे संबधित चर्चा करना या सुनना एवंस्त्रियोंके पास रहना वा स्त्रियों को अपने पास रखना
4.चंचलता का रहन सहन
5.दिन में सोना
6. यानं अर्थात बाहन
किसी भी प्रकार से ये छै चीजें अपनाने से संन्यासी पतित अर्थात भ्रष्ट हो जाते हैं।यथा -
मञ्चकं शुक्ल वस्त्रं च स्त्रीकथा लौल्य मेव च |
दिवास्वापं च यानं च यतीनां पतनानि षट् ||
-अत्रि ऋषि
इसीप्रकार ब्राह्मण गृहस्थ जीवन की सांसारिक उठापटक से मुक्त निर्विकार निर्लिप्त रहने वाले स्वाभाविकआचरण वाले ब्रह्म-जीवी थे। इन्हें विप्र कहा जाता है। जिनको भी मिलना होता इनके घर आते थे।संन्यास काअधिकार ब्राह्मणों को दिया गया है ।
आत्मन्यग्नीन्समारोप्य ब्राह्मणः प्रव्रजेद् गृहात् |
जाबालश्रुतेः
वैष्णव सम्प्रदाय में नियम था कि जो महंत होगा वह तो अविवाहित होगा ही होगा अन्य लोग चाहें तो अविवाहित भी रह सकते थे और विवाह भी कर सकते थे | शैव सम्प्रदाय की सभी जातियों के लिए नियम थे कि वे गाँव, बस्ती में प्रवेश नहीं करते थे। आचार्य शंकर ने संन्यासी सम्प्रदाय को काल-स्थान-परिस्थिति के अनुरूप एक नई दशनामी व्यवस्था दी और इनको दस वर्गों में विभाजित किया|ये दस नाम इस प्रकार हैं:-
(1) तीर्थ (2) आश्रम (3) सरस्वती (4) भारती (5) वन (6) अरण्य (7) पर्वत (8) सागर (9) गिरि (10) पुरी
इनमें अलखनामी और दण्डी दो विशेष सम्मानित शाखाये थीं। दण्डी वे संन्यासी होते थे जो ब्राह्मण से संन्यासी बनते थे। इनके हाथ में दण्ड[डण्डा] होता था। ये आत्म-अनुशासित थे
हिन्दू धर्म की मान्यताओं, परम्पराओं में आ रही गिरावट को देखते हुए आदि शंकराचार्य ने ज्ञानमार्गी परम्परा को पुनर्जीवित किया और अद्वैत दर्शन की मूल अवधारणा ‘बृह्म सत्यं जगन्मिथ्या’ को स्थापित किया। इसके लिए उन्होने समूचे देश में अद्वैत और वेदांत का प्रसार किया। काशी के महान विद्वान मंडनमिश्र के साथ उनका शास्त्रार्थ, इस सिलसिले की महत्वपूर्ण कड़ी थी, जिसने उन्हें समूचे देश में धर्म दिग्विजयी के रूप में स्थापित कर दिया।
शंकराचार्य ने प्राचीन आश्रम और मठ परम्परा में नए प्राण फूँके। शंकराचार्य ने अपना ध्यान संन्यास आश्रम पर केंद्रित किया और समूचे देश में दशनामी संन्यास परम्परा और अखाड़ों की नींव डाली।
दशनामी परम्परा:
आदि शंकराचार्य ने संन्यासियों की आदि-व्यवस्था, अद्वैतवाद और वेदांत दर्शन के संस्थापक महर्षि वेदव्यास के पुत्र बालयोगी शुकदेव ने की थी। शुकदेव ने पिता से प्रेरित होकर यह कार्य किया था। पौराणिक काल से वह व्यवस्था चली आ रही थी, जिसका पुनरुद्धार आदि शंकराचार्य ने दशनामी सम्प्रदाय बनाकर किया। पहले सभी दशनामी शैव मत में दीक्षित एवं शास्त्र-प्रवीण होते थे ,जिससे धर्म-परम्परा विस्मृत समाज को दिशा मिल पाती थी। यह भी कहा जाता है कि शंकराचार्य के सुधारवाद का तत्कालीन समाज में खूब विरोध भी हुआ था और साधु समाज को उग्र और हिंसक साम्प्रदायिक विरोध से जूझना पड़ता था। काफी सोच-विचार के बाद शंकराचार्य ने वनवासी समाज को दशनामी परम्परा से जोड़ा, ताकि उग्र विरोध का सामना किया जा सके। वनवासी समाज के लोग अपनी रक्षा करने में समर्थ थे, और शस्त्र प्रवीण भी। इन्हीं शस्त्रधारी वनवासियों की जमात नागा साधुओं के रूप में सामने आई।
शंकराचार्य ने दशनामी परम्परा को महाम्नाय के अनुशासन से बाँधा। आम्नाय का अर्थ है रीति, वैदिक ज्ञान, पुण्य-प्रेरित ज्ञान, कुल तथा राष्ट्र की परम्पराएँ।
आदि शंकराचार्यजी ने देश के चार कोनों में जिसमें दक्षिण में श्रंगेरी, पूर्व में पुरी , पश्चिम में द्वारका व उत्तर में बद्रीनाथ में मठ स्थापित किए,चारों दिशाओं में स्थापित मठों को जब महाम्नाय अर्थात सनातन हिन्दुत्व की नवोन्मेषी धारा से बाँधा गया, तो उसे मठाम्नाय कहा गया। इन्हीं मठाम्नायों के साथ दशनामी संन्यासी संयुक्त हुए। वन, अरण्य, नामधारी संन्यासी उड़ीसा के जगन्नाथपुरी स्थित गोवर्धन पीठ से संयुक्त हुए। पश्चिम में द्वारिकापुरी स्थित शारदापीठ के साथ तीर्थ एवं आश्रम नामधारी संन्यासियों को जोड़ा गया। उत्तर स्थित बद्रीनाथ के ज्योतिर्पीठ के साथ गिरी, पर्वत और सागर नामधारी संन्यासी जुड़े, तो सरस्वती, पुरी और भारती नामधारियों को दक्षिण के श्रृंगेरी मठ के साथ जोड़ा गया।
सैनिक संन्यासियों का स्वरूप:
इन मठाम्नायों के साथ अखाड़ों की परम्परा भी लगभग इनकी स्थापना के समय से ही जुड़ गई थी। चारों पीठों की देशभर में उपपीठ स्थापित हुई। कई शाखाएँ-प्रशाखाएँ बनीं, जहाँ धूनि, मढ़ी अथवा अखाड़े जैसी व्यवस्थाएँ बनीं। जिनके जरिए, स्वयं संन्यासी पोथी, चोला का मोह छोड़ कर, थोड़े समय के लिए शस्त्रविद्या सीखते थे, साथ ही आमजन को भी इन अखाड़ों के जरिये आत्मरक्षा के लिए सामरिक कलाएँ सिखाते थे। इस तरह अखाड़ों के जरिए धर्मरक्षक सेना का एक स्वरूप बनता चला गया। अखाड़ों का यह स्वरूप प्रायः हर धर्म-सम्प्रदाय में रहा है। दुनियाँ भर के धार्मिक आंदोलनों के साथ अखाड़ा अर्थात आत्मरक्षा से जुड़ी तकनीक को ध्यान-प्राणायाम से जोड़कर अपनाया गया। हर धार्मिक सम्प्रदाय के साथ शस्त्रधारी रहे हैं और धर्म या पंथ अथवा मठ पर आए खतरों का सामना इन्होंने किया है। जिसे बाद में आत्मरक्षा की कला के तौर पर मान्यता दे दी गई। मध्यकाल में चारों पीठों से जुड़ी दर्जनों पीठिकाएँ सामने आईं, जिन्हें मठिका कहा गया। इसका देशज रूप मढ़ी प्रसिद्ध हुआ। देशभर में दशनामियों की ऐसी कुल 52 मढ़ियाँ हैं, जो चारों पीठों द्वारा नियंत्रित हैं।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय प्राचीन विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
Friday, August 30, 2013
धन धर्म चरित्र एवं राजनैतिक संकट से जूझता भारत !
धर्म और राजनीति सब जगह प्रदूषण है
देश की सुरक्षा के लिए कृत संकल्प राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं!बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
देश की सुरक्षा के लिए कृत संकल्प राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं!बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
नेता और तथाकथित संतों में बहुत सारी समानताएँ होती हैं इन बाबाओं के पास ईश्वरभक्ति नहीं होती है। और नेताओं में देश भक्ति नहीं होती है।जनता को दिखा कर ठगने के लिए एक देश भक्ति की बातें करता है तो दूसरा ईश्वर भक्ति की किंतु दोनों भ्रष्टाचारी हैं दोनों अपनी आमदनी के स्रोत प्रूफ नहीं कर सकते !दोनों को काम करते किसी ने नहीं देखा होगा !एक पाप का भय दिखाकर समाज को लूटता है तो दूसरा कानून का जबकि लुटेरे दोनों है एक स्वर्ग पहुँचाने का सपना दिखाकर यौन शोषण करता है तो दूसरा सत्ता की सुख सुविधाएँ प्रदान करने का सपना दिखाकर यौन शोषण करता है दोनों ही भ्रष्टाचारी बदमाश अपने अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों ही पागल हो जाते हैं चाहें वह किराए की ही हो।अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों की गिद्धदृष्टि पराई संपत्ति सहित पराई सारी चीजों को भोगने की होती है।दोनों वेष भूषा का पूरा ध्यान रखते हैं एक नेताओं की तरह दिखने की दूसरा महात्माओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश करता है। दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर भी दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बोलते हैं।बातों में दम हो न हो पैसे का दम जरूर दिखता है पैसे के ही बल पर बोलते हैं। नेता जब भ्रष्ट होता है तो कहता कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उसे पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।मजे की बात यह है कि संन्यासी चुप करके सुना करते हैं कोई विरोध दिखाई सुनाई नहीं पड़ता।मानो पोलखुलने के भय से संन्यासी भयभीत हों कि कहीं कोई पोल न खुल जाए।इसी प्रकार कोई संन्यासी भ्रष्टहोता है तो नेता बन जाता है।क्योंकि बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है।
इसप्रकार धार्मिक लोगों की गतिविधियों को भी शास्त्रीय संविधान की सीमाओं के दायरे में बॉंधकर रखने की भी कोई तो सीमा रेखा होनी ही चाहिए। स्वामी जी रैलियॉं कर रहे हैं, आज स्वामी जी साड़ी बॉंट रहे हैं।स्वामी जी स्वदेशी के नाम पर सब कुछ बेच रहे हैं , स्वामी जी उद्योगधंधे लगा रहे हैं, स्वामी जी चुनाव लड़ रहे हैं, स्वामी जी मंत्री भी हैं।ऐसे लोगों के पर्दे के पीछे के भी बहुत सारे अच्छे बुरे आचरण देखने सुनने को मिलते हैं।ये सब गंभीर चिंता के बिषय हैं ।
इनकी दृष्टि में क्या
सारे पापों का कारण पत्नी ही होती है?केवल विवाहिता पत्नी का परित्याग करके
या अविवाहित रह कर हर कुछ कर सकने का परमिट मिल जाता है इन्हें ?वो कितना भी बड़ा पाप ही क्यों न हो? मन
पर नियंत्रण न करने पर कैसे विरक्तता संभव है? साधुत्व के अपने अत्यंत
कठोर नियम होते हैं उन्हें हर परिस्थिति में नहीं निभाया जा सकता है जबकि
राजनीति हर परिस्थिति में निभानी पड़ती है। अपने सदाचारी तपस्वी संयमी जीवन
से सारी समाज को ठीक रखने की जिम्मेदारी संतों की ही है।ऐसे में
शास्त्रों एवं संतों की गरिमा रक्षा के लिए शास्त्रीय विरक्त संतों को ही
आगे आकर यह शुद्धीकरण करना होगा। साथ ही तथाकथित बाबाओं पर लगाम कैसे लगे?यह
संतों को ही सोचना होगा।जो धार्मिक
व्यवसायी लोग कहते हैं कि हमारा गुरुमंत्र जपो सारे पाप नष्ट हो जाएँगे
इसका मतलब क्या यह नहीं निकाला जा सकता है कि ये पाप करने का परमिट बाँट
रहे हैं ?कितना अभद्र है यह बयान ?
जैसे स्वामी जी के किसी प्रवचन में एक पति पत्नी सतसंग करने गए थे पैसे
पास नहीं थे काम धाम चलता नहीं था।सोचा चलो सतसंग से ही शांति मिलेगी। वहॉं
जाकर सजे धजे मजनूँ टाइप के बाबा को मुख मटका मटका कर नाचते गाते बजाते या
या तथा कथित प्रवंचन करते देखा, बहुत सारा सोना
पहने बाबाजी और बहुत सारा ताम झाम देखकर उसने सोचा बाबाजी का भी कोई उद्योग
धंधा तो है नहीं ,बाबा जी ने समझादारी से काम लिया है।इस देश की जनता
धर्म केवल सुनना चाहती है सुनाओ दिखाओ अच्छा अच्छा करो चाहे कुछ भी! जो इस
देश की जनता को पहचान सका उसने पेट हिलाकर पैसे बना लिए कौन पूछता है कि
बाबाजी योग के विषय में आप खुद क्या जानते हैं?बाबाजी को धर्म की बात बताना
आता है करते चाहें
जो कुछ भी हों इस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है। जब बाबाजी का भी कोई
उद्योग धंधा तो है नहीं तो बाबा जी ने भी कुछ किया नहीं तो धन आया कहॉं
से?आखिर जनता को भी पता है।वैसे भी जो लोग हमारा पेमेंट नहीं देते वो बाबा
जी को
फ्री में क्यों दे देगें?अब मैं भी वही करूँगा और उसने भी बाबा बनने की
ठानी इसप्रकार वह भी अच्छा खासा अपराधी बन गया।क्योंकि अब उसका लक्ष्य धन
कमाना ही हो
गया था।इसी प्रकार तथाकथित सतसंगों के कई और भी कुसंग होते हैं। इसी जगह
यदि किसी चरित्रवान संत का संग होता है तो कई जन्म के कुसंगों का दोष नष्ट
भी हो जाता है किन्तु ऐसे कुसंगों के कारण ही बसों में बलात्कार हो रहे
हैं।यदि इन्हें सत्संग माना जाए तो बढ़ रही सतसंगों की भीड़ें आखिर सतसंगों से सीख क्या रही हैं ?अपराधों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसका कारण आखिर क्या है ?
इसी प्रकार नेताओं की एक
बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने
लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में
प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन
दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी
राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति
सहित सब सुख सुविधाएँ बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी
साबित हो रही हैं ।
Wednesday, August 28, 2013
क्यों नहीं होती है अब आश्रमों में साधना की सुगंध ?
टेलीवीजनी बाबाओं ने बदनाम किए ज्योतिष ,वास्तु ,सत्संग,साधना, साधू और आश्रम !
गुरु महात्मा साधू संन्यासी बाबा बैरागी जैसे पवित्र लोगों के नाम पर कुछ कामचोर धर्म एवं धर्म शास्त्र व्यापारियों ने धार्मिक परिस्थितियाँ बहुत बिगाड़ दी हैं।इनकी झूठी लप्फाजी बातों पर लोग न केवल भरोसा करने लगे हैं अपितु इनके धंधे से जुड़ने भी लगे हैं!
जब तक ऐसे बाबाओं के पाप का शिकार दूसरे तीसरे लोग बनते रहते हैं तब तक तो ऐसे चेला चेली लोग उनकी रास लीला की वकालत करते रहते हैं जब ब्यभिचार के छींटे उन चेला चेलियों या उनके सगे सम्बन्धियों पर भी पड़ने लगते हैं तब कुछ लोग तो शोर मचाते हैं कुछ स्त्री पुरुष उसी ब्यभिचार में सम्मिलित हो जाते हैं और वे अज्ञानी लोग इसी को बाबा के द्वारा समझाई गई श्री राधाकृष्ण की दिव्य रास लीला समझने की भयंकर भूल कर बैठते हैं !इनसे प्रेरित हो हो कर भीड़ बढ़ने लगती है और बढ़े भी क्यों न! जहाँ रोज बदल बदल कर सभी प्रकार के भोजन भोग मिलते हों और साधुओं जैसा सम्मान भी! ऊपर से भोजन वस्त्र रहन सहन के खर्च की चिंता भी न हो तो किसका मन नहीं मचल उठेगा ऐसी जिंदगी जीने के लिए ?जिस बाबा की छत्र छाया में ऐसे सारे सुख सुलभ हो रहे हों उसे लोग बापू जी क्या बाप जी भी कहने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए!ऐसे बाबाओं के बचाव में इन बाबाओं के गिरोह के सभी लोग इसलिए गला फाड़ फाड़ कर चीखने चिल्लाने लगते हैं,क्योंकि बाबाओं के साथ साथ उनके अपने ब्यभिचार के पोल खुलने का भय भी सता रहा होता है।
एक धार्मिक संस्था का संस्थापक होने के नाते मुझे दुःख इस बात का नहीं है कि आजकल बाबा बलात्कारों में आरोपित क्यों हो रहे हैं वो कितना सच या झूठ है ये तो वो जाने जो शिकार हुए और वो जानें जिन्होंने शिकार किया बाकी काम कानून का है जो गवाहों और साक्ष्यों के आधीन है।
और तो जो होगा सो होगा हमारी चिंता इस बात की है कि ऐसा कब तक चलेगा?ऐसी परिस्थिति में समाज की धार्मिक,नैतिक आदि खुराक पूरी कौन करेगा?यदि यही चलता रहा तो यह धार्मिक ब्यभिचार उस सामान्य ब्यभिचार से अधिक घातक हो जाएगा!फिर कौन मानेगा धर्म कर्म कौन सिखाएगा नैतिकता का पाठ?कैसे बच पाएँगी सुरक्षित बच्चियाँ!आज बात बात में गोली चल जा रही है लोग मार एवं मर रहे हैं!बच्चियों पर तेजाब फ़ेंका जा रहा है!परिवार टूट रहे हैं समाज बिखरता जा रहा है वृद्धों की उपेक्षा हो रही है!धर्म भय नाम की बात ही समाप्त हो चली है जिससे मानव मन का शोधन होता था!आज हर धार्मिक व्यक्ति धनार्जन की ओर भाग रहा है बाबा ब्यूटी पार्लर जा रहे हैं !समाज में बढ़ते अपराध के लिए केवल सरकार या पुलिस ही जिम्मेदार नहीं है अपितु हमारा धार्मिक समाज एवं शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है!
धर्म भय बिहीन कर्मचारी बिना घूस लिए एक कदम नहीं बढ़ाना चाहते !अधिक खर्चा करके भी सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से पराजित हैं,सरकारी डाक कोरियर से,सरकारी फोन प्राइवेट फ़ोन से इसी प्रकार सरकारी अस्पताल प्राइवेट अस्पतालों से पराजित हैं पुलिस में प्राइवेट व्यवस्था नहीं है तो अपराधियों के हौसले बुलंद हैं ।
धार्मिक एवं शिक्षित जगत की लापरवाही के कारण नैतिक एवं धार्मिक भय घट रहा है इसकी पूर्ति कहाँ से हो !
आज हाईटेक आश्रमों का प्रचलन बढ़ रहा है इस प्रकार के आश्रम तपस्या के अनुकूल नहीं अपितु बासना के अनुकूल बनाए जा रहे हैं दूर से ही देखकर पता लग जाता है कि इसमें कैसी कैसी तपस्या होती होगी कौन कौन लोग ठहरते होंगे!एक बड़ा सा आश्रमनुमा फार्म हाउस होता है उसके किसी कोने में दस पाँच कमरे बने होते हैं उसमें भी बिल्कुल एकांत में राजा महराजाओं की तरह के बेडरूम बने होते हैं।वहाँ मुख्य गेट से बेड रूम तक फार्म हाउस के मालिक संत नुमा बाबा की मर्जी के बिना परिंदा पर भी नहीं मार सकता!वहाँ सौ नहीं लाख गलत काम हों उस बाबा के विरुद्ध गवाही कोई क्यों देगा !वो भी वो जो इस प्रकार की बातों को छिपाने की ही सैलरी पाता हो ऐसा चौकीदार! दूसरी बात अपने बीबी बच्चों के लिए बिना परिश्रम किए दो रोटी उसे भी कमानी हैं।
ऐसे आश्रम बाबाओं के नाम पर बनते और चलते जरूर हैं,बाबाओं की फोटो लगती है किन्तु बाबा जी कभी कदा भले आ जाएँ बाकी तो इनमें और और प्रकार की तपस्या और और लोग ही करते हैं वही उठाते हैं यहाँ के भारी भरकम खर्च !वो राजनीति एवं अर्थ नीति के बड़े बड़े खिलाड़ी होते हैं,अन्यथा ऐसे आश्रमों में लगाई जाने वाली भारी भरकम धनराशि आती कहाँ से है?बाबा जी देते हैं तो वो कहाँ से लाते हैं सत्संग करके !सत्संग के हाईटेक कार्यक्रमों के आयोजनों से लेकर प्रचार प्रसार में जो धन खर्च होता है वही उन कार्यक्रमों से निकल पाना मुश्किल होता है फिर फार्म हाउसी आश्रमों का खर्च वहाँ कहाँ से निकलेगा ?रही बात सत्संगों की!जितने ये हाईटेक फार्म हाउसी बाबा हैं कभी जाकर देखो इनके सत्संग नाम के मिलन शिविरों में कोई धर्म कर्म का आचार व्यवहार नहीं होता कुछ रटी रटाई बातें बोलने सुनने की रस्म अदायगी भर होती है बाकी तो जो होता है वही होता है लोग खुशी में झूम रहे होते हैं और लगा रहे होते हैं बाबा जी के जयकारे!इस प्रकार से महीनों वर्षों के बिछुड़े प्रेमी प्रेमिकाओं में छलक रहा होता है आत्मानंद!
बाबा जी के नाम या फोटो का लाकेट पहनने एवं घर में फोटो सजाकर रखने से बाबा जी के गिरोह से सम्बंधित लोगों में आपसी प्रेम बहुत जल्दी हो जाता है, फेस बुक पर परिचय किया और बाबा जी के सत्संग शिविरों में मिलन हुआ घर वालों को पता ही नहीं लग पाता है वहाँ सबकुछ हो जाता है जवान लड़के लड़कियाँ ऐसे बाबाओं को मन से खूब आशीर्वाद देते हैं जिन्होंने सत्संग शिविरों के नाम पर मिलने का अवसर उपलब्ध करवाया!
एक परिवार की लड़की को अचानक एक बाबा जी के सत्संग शिविर में जाने की ईच्छा हुई वो पहले भी एक बार जा चुकी थी इसलिए किसी की बात न माने घर वाले मेरे पास आए कि मैं उसे समझाऊँ।जब मैंने सब से अलग अलग बात की तो घर वालों से उस लड़की के स्वभाव के बारे में पता लगा कि उसमें कोई दुर्गुण नहीं है भगवान की भक्ति में मन लगता है अपने गुरू जी का लाकेट पहनती है पिछले बार भी हरिद्वार में किसी गुरू जी के सत्संग शिविर में पड़ोस की आंटी के साथ गई थी किन्तु अबकी बार वो हैं नहीं अकेले कैसे भेजूँ ?यह सब सुनकर मैंने लड़की से बात की वह सत्संग शिविर में जाने की जिद कर रही थी। मैंने उसे समझाया कि तुझे भजन ही करना है तो घर बैठ कर कर ले ईश्वर तो सब जगह है आदि आदि, तब उसने किसी को न बताने की शर्त पर बताया कि वहाँ उसका प्रेमी आया होगा उससे बात हो चुकी है इसलिए जाना जरूरी है मैं पहले भी उसके साथ सात दिन रह कर आई हूँ। यह सुनकर मैंने पूछा कि पिछली बार तो तुम किसी आंटी के साथ गए थे तो वहाँ प्रेमी के साथ रहना कैसे संभव हुआ ?उसने बताया कि आंटी भी किसी के साथ प्रेम करती हैं जिससे करती हैं वो भी हर शिविर में आता है आंटी का ऐसा बहुत दिन से चल रहा है यह तरकीब भी मुझे आंटी ने ही बताई थी कि इससे कोई शक भी नहीं करता और मिलने का बहाना भी बन जाता है। यह सब सुनकर मैं समझ गया कि ये सत्संग से उपजा कुसंग है और मैंने उन्हें बिना समझाए बुझाए वापस भेज दिया !ज्योतिष का काम होने के नाते लोगों की समस्याओं का अनुभव होता रहना स्वाभाविक ही है।
ऐसे ऐकान्तिक आश्रम नुमा फार्म हाउसों में बाबा सारे साल में दो चार दस बार ही मुश्किल से पहुँच पाते होंगे किन्तु दूर से चमक रहे इन विशाल आश्रमों के रख रखाव पर खर्च होने वाली इतनी मोटी धनराशि देता कौन है यदि बाबा जी को वहाँ रुक कर साधना करने का समय ही नहीं था अथवा यदि बाबा जी को वर्ष में दो एक दिन ही रुकना था तो उसके लिए इतनी बड़ी धन राशि का दुरूपयोग क्यों ?
एक बार किसी ऐसे ही आश्रम के चौकीदार से मैं ऐसा ही प्रश्न कर बैठा तो पता लगा कि ये किसी साहूकार का फार्म हॉउस है यहाँ अक्सर लड़कियाँ लाई जाती थीं मनाई जाती थीं रंग रैलियाँ !एक बार किसी की सूचना पर पुलिस का छापा पड़ गया तो बड़े बड़े लोग एवं कई लड़कियाँ यहाँ से पकड़ी गई थीं काफी रुपए लगे थे तब जान बची थी फिर बाबू जी किसी की सलाह पर एक प्रसिद्ध बाबा के चेला बन गए एक दिन बाबा जी को यहाँ घुमाने भी लाए थे बाबा जी ने ही इसका उद्घाटन किया था तबसे आश्रम के गेट पर बाबा जी की फोटो लगी है उन्हीं के नाम पर आश्रम का नाम भी है। आश्रम के नाम पर एक पंडित जी आकर हवन कर जाते हैं गो शाला में दो तीन गाएँ पली हैं जिनका दूध बाबू जी के यहाँ जाता है वहीं एक टीना में गुड़ रखा है जब कोई श्रृद्धालु आता है तो हमसे कहा गया है कि गायों को गुड़ खिलाने लगना मैं ऐसा ही करता हूँ!
अब तो यहाँ आदमी औरतें कोई भी आवें किसी को कोई शक नहीं होता है!बाकी अब भी यहाँ उसी तरह मौज मस्ती चलती है कई बड़े बड़े अधिकारी नेता लोग आदि भी सम्मिलित होते हैं किन्तु अब न तो कोई शिकायत करता है और न ही पुलिस आती है सारा खर्चा पानी बाबू जी ही करते हैं वैसे तो बाबा जी का यहाँ से कोई लेना देना नहीं है हम लोगों को बेतन भी बाबू जी ही देते हैं।अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पिछले साल बाबा जी के लड़के को किसी ने बताया होगा कि आपका एक आश्रम यहाँ भी है तो वो यहाँ आए थे वो कहने लगे कि आश्रम हमारा है तो बाबू जी ने उन्हें बताया कि मैं तो बाबा जी के रुकने के लिए देता हूँ वैसे तो हमारा ही है यह सुनकर उनमें और बाबू जी में विवाद हो गया था तो बाबा जी के नाम कागज तो थे नहीं फर्जी कब्जे का शोर मचा! तब से तो कोई यहाँ आता नहीं है अब तो सब कुछ बाबू जी ही देखते करते हैं !
वास्तविक संत झूठ फरेब धोखाधड़ी चोरी छिनारा बदमाशी ब्याभिचार आदि सभी प्रकार के प्रपंचों से दूर रहने वाले विरक्त संत न तो किसी नेता की चाटुकारिता करते हैं और न ही किसी धनी सेठ साहूकार की! इसी लिए उन्हें भी न कभी कोई नेता घास डालता है और न ही कोई धनी सेठ साहूकार आदि! किन्तु उन्हें इसकी परवाह भी नहीं होती है वो शास्त्रों के अनुशार जीना चाहते हैं और भगवान के भरोसे रहना चाहते हैं जो मिला जहाँ मिला वहाँ अपने संन्यास धर्म की मर्यादा के अनुशार उसे ईच्छा हुई तो स्वीकार किया अन्यथा बिना परवाह किए छोड़ कर चल दिए !ये संन्यासी हमारे प्रणम्य महापुरुष हैं।
धर्म एवं धार्मिकों को लेकर सुलगते सवाल !
बाबाओं की प्रतिष्ठा बनाना बिगड़ना मीडिया के लिए बहुत आसान है
इधर कुछ समय से केवल नाम के साधु संत कुछ धर्म बिहीन अशास्त्रीय मंत्र व्यापारियों से भारतीय समाज में धर्म एवं
धार्मिकों को लेकर तमाम
प्रश्नोत्तर उठने लगे हैं!पाप इन पाखंडियों का होता है शर्मिंदा चरित्रवान
साधु संतों को होना पड़ता है उन्हें सफाई देनी पड़ती है!जिन आरोपों के लगने
से पहले मरना पसंद करेंगे हमारे चरित्रवान धार्मिक महापुरुष!वैसे आरोप
बाबाओं पर मीडिया में आम रूप से छाए हुए हैं आश्चर्य है!इसके बाद भी इन्हें
संत कहकर संबोधित कर रहा है मीडिया!न जाने मीडिया की समझ कब सुधरेगी !
मेरे विचार से आज बाबाओं के चरित्र पर प्रश्न उठाना मीडिया की गलती कही जा सकती है क्योंकि बाबाओं की प्रशंसा और निंदा करने में केवल धन ही सबसे बड़ा कारण है।आज हर बाबा को संत प्रचारित किया जाने लगा,कथा बाचक तक अपने को संत लिखने या कहलाने लगे!ये मीडिया की ही देन है वो पैसे देकर जो चाहते हैं कहलाते हैं !रही बात शास्त्रीय धार्मिक समाज न इन्हें कभी ब्रह्मचारी मानता था और न ही आज भ्रष्ट मान रहा है।यह मीडिया जाने मीडिया का काम जाने !
पहले मलमल बाबा हर चैनल पर छाए हुए थे फिर न जाने क्या सौदा बिगड़ा कुछ बात अनफिट हुई तो सारे चैनल पानी पी पीकर उन्हें कोसने लगे और मलमल बाबा अचानक सब चैनलों से गायब हो गए !फिर उन्होंने चैनलों से गिला शिकवा दूर किया फिर गोलगप्पे खिलाकर शक्तियाँ लुटा रहे हैं। अब मीडिया के किसी व्यक्ति को ऐसे मलमलों से कोई शिकायत नहीं सुनाई पड़ती है! जबकि शास्त्रीय धार्मिक समाज मलमल बाबा को पहले भी गंभीरता से नहीं ले रहा था न मीडिया के बताने से उन्हें भ्रष्ट ही माना गया और न बाद में ही पवित्र स्वीकार किया गया।अब जो हो रहा है यह सब मीडिया जाने मीडिया का काम जाने !मीडिया प्रभावित होकर धर्म एवं धर्म शास्त्रों को मानने वाले लोग जानें !
ज्योतिष के नाम पर फर्जी झोला छाप बिना किसी विश्वविद्यालयी डिग्री वाले ज्योतिषीय अनपढ़ों को विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्य बताता है मीडिया! संस्कृत विश्वविद्यालयों में ज्योतिषाचार्य एक डिग्री है जो ज्योतिष विषय में एम.ए.करने पर मिलती है किंतु बिना डिग्री वालों को भी टी.वी.चैनलों पर ही तो ज्योतिषाचार्य बोला जा रहा है,क्या कभी मीडिया के किसी व्यक्ति ने जिम्मेदारी समझी कि जिसका परिचय वो ज्योतिषाचार्य के रूप में दे रहे हैं वो ज्योतिषाचार्य है भी कि नहीं !इसीप्रकार जिसे योग का ककहरा नहीं आता उसे योग गुरु कहकर प्रचारित करता रहा मीडिया!कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि टी.वी.चैनलों की कृपा के बिना न कोई मलमल बाबा बन सकता है और न ही भोग गुरु कामदेव और न ही तमाशाराम !
कोई कितना भी बड़ा विद्वान् क्यों न हो समाज और देश हित में कितना भी शोधपूर्ण शास्त्रीय सच क्यों न बोलना चाहता हो किन्तु उसके पास टी.वी.चैनलों को देने के लिए पैसे नहीं होते इसलिए उसकी शास्त्रीय सत्य बात भी मीडिया में नहीं सुनी जाती किन्तु कितना भी पाप करके कोई पैसे लाकर यदि टी.वी.चैनलों को दे तो अनपढ़ों को भी विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्य बना देते हैं टी.वी.चैनल! आज बाबाओं की आलोचना करने से बात नहीं बनेगी अब तो जो होना था हो चुका किन्तु धर्म से जुड़े ऐसे लगभग सभी पाप पुरुषों को पाल पोष कर बड़ा करने वाला तो मीडिया ही है !
दूसरी बात जो महिलाएँ या लड़कियाँ बाबाओं के आस पास या सान्निध्य में विशेष रहती हैं वो यह क्यों नहीं समझती हैं कि ब्रह्मचर्य का पालन करना सबसे कठिन होता है गिने चुने चरित्रवान तपस्वियों की अलग बात है भीख माँग माँग कर आश्रम पर आश्रम बनाने वाले भिखमंगे बाजारू बाबाओं के बश का कहाँ है ब्रह्मचर्य !ये इतने छिछले लोग हैं कि बिना किसी चरित्र और तपस्या के ही अपने को आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी ,सिद्ध साधक आदि सब कुछ कहने लगते हैं-
दो. सकल भोग भोगत फिरहिं प्रवचन में वैराग। जिनके ये चेला गुरू तिनके परम अभाग ॥ - श्री हनुमत सुंदर कांड
ब्रह्मचर्य का पालन जो लोग करना चाहते हैं या करते हैं उनका रहन सहन चाल चलन खान पान आदि बिलकुल अलग होता है वे लोग जंगलों में या एकांत में रहना रूखा सूखा खाना आदि पसंद करते हैं!फिर भी बासनात्मक चित्रों तक से परहेज करते हैं!इनके शरीरों में तपस्या का तेज तो होता है किन्तु शौक शान श्रंगार नहीं होता है। अक्सर इनके शरीर देखने में अत्यंत सामान्य एवं अंदर से मजबूत होते हैं । हमें हर किसी से ब्रह्मचर्य की आशा भी नहीं करनी चाहिए उसका एक और कारण है ,आयुर्वेद में मनुष्य शरीर के तीन उपस्तंभ बताए गए हैं -
१.आहारअर्थात भोजन
२. निद्रा अर्थात सोना
३. मैथुन अर्थात सेक्स
उपस्तंभ अर्थात एक प्रकार के पिलर, बिल्डिंग बनाने में जो महत्त्व पिलर्स का होता है वही महत्त्व शरीर सुरक्षा में इन तीन उपस्तम्भों का होता है । इसलिए आहार,निद्रा और मैथुन तीनों के घटने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है और बढ़ने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है!फिर आश्रम, योगपीठ, प्रवचन दवा ब्यापार आदि दुनियाँ के झूठ साँच झमेले पालने वाले संयम बिहीन लोग मैथुन अर्थात सेक्स के बिना कैसे स्वस्थ और प्रसन्न रह सकते हैं यह बिलकुल असंभव बात है !जो धन कमाने की ईच्छा पर नियंत्रण नहीं रख सका वो धन भोगने की ईच्छा पर नियंत्रण क्यों रखेगा !यदि दवा दारू ही बनाना बेचना या और प्रकार के धंधे ही फैलाने हों तो बाबा बनने की जरूरत ही क्या थी ?
इतना अवश्य है कि जो ऐसे कलियुगी ब्रह्मचारियों का शिकार बनने से बच गया उसके लिए तो कैसे भी बाबा जी हों ब्रह्मचारी ही हैं इसलिए संयम शील स्त्रियों या लड़कियों को इन संदिग्ध गृहस्थी बाबाओं से मध्यम दूरी बनाकर तो चलना ही चाहिए!
अभी देश विदेश की मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध एक बाबा के द्वारा एक सोलह साल की लड़की के साथ बासनात्मक छेड़ छाड़ का मामला है! मीडिया की कृपा से मामला तूल पकड़ गया तो बाबा जी बेचारे बहुत परेशान हैं यद्यपि संगठनों के कुछ लोग यद्यपि बाबा जी को साफ सुथरा बताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं किन्तु मीडिया है कि मानने को तैयार ही नहीं है!
इस पर सोचने लायक यह है कि उस लड़की के माता पिता को अकेले कमरे में अपनी बेटी छोड़नी ही नहीं चाहिए थी यदि कोई बीमारी थी भी तो उसका इलाज कराना चाहिए था ऐसे किसी बाबा के आश्रम में अपनी लड़की को अकेले पहले भी नहीं छोड़ना चाहिए था!खैर जो हुआ सो हुआ आगे उनके यहाँ नहीं छोड़ना चाहिए था और शांत होकर बैठ जाते!रही बात बाबा जी की तो शास्त्रीय धार्मिक लोगों के लिए वे कभी श्रद्धा केंद्र नहीं रहे फिर भी बहुत बड़ी जन संख्या उन पर आस्था रखती है एक लड़की के कह देने मात्र से सारे विश्व में प्रसिद्ध किसी बाबा नुमा व्यक्ति को मीडिया में बार बार दुष्प्रचारित क्यों किया जा रहा है? कोई आरोप लगा है उसकी जाँच चल रही है उसके बाद जो होगा सो होगा किंतु बिना किसी जाँच के ही दुष्प्रचारित क्यों किया जा रहा है? यदि एक प्रतिशत भी असावधानी उस लड़की से ही हो गई हो क्योंकि कोई और साक्ष्य तो था नहीं ऐसी परिस्थिति में बाबा जी की बिगाड़ी जा रही सामाजिक प्रतिष्ठा की भरपाई मीडिया कैसे करेगा?
किसी को महात्मा गुरु आदि आप मानें न मानें स्वतंत्र हैं किन्तु ऐसे बाबा भी हमारे देश के ही नागरिक हैं बयोवृद्ध हैं प्रतिष्ठित हैं और बहुत सारे लोगों के श्रद्धा केंद्र भी हैं ?सारे मामले की जाँच हो दोषी को दंड मिले इसके साथ साथ इतना भी ध्यान रखा जाए कि यदि वे एक प्रतिशत भी निर्दोष सिद्ध हुए तो उसकी भरपाई करना मीडिया के हाथ से कहीं बाहर न हो जाए !
बाबाओं की ब्यभिचार कथा और मीडिया !
बाबाओं की प्रतिष्ठा बनाना बिगड़ना मीडिया के लिए बहुत आसान है
इधर कुछ समय से साधु संत नाम के
कुछ धर्म बिहीन अशास्त्रीय मंत्र व्यापारियों से भारतीय समाज में धर्म एवं
धार्मिकों को लेकर तमाम
प्रश्नोत्तर उठने लगे हैं!पाप इन पाखंडियों का होता है शर्मिंदा चरित्रवान
साधु संतों को होना पड़ता है उन्हें सफाई देनी पड़ती है!जिन आरोपों के लगने
से पहले मरना पसंद करेंगे हमारे चरित्रवान धार्मिक महापुरुष!वैसे आरोप
बाबाओं पर मीडिया में आम रूप से छाए हुए हैं आश्चर्य है!इसके बाद भी इन्हें
संत कहकर संबोधित कर रहा है मीडिया!न जाने मीडिया की समझ कब सुधरेगी !
मेरे विचार से आज बाबाओं के चरित्र पर प्रश्न उठाना मीडिया की गलती कही जा सकती है क्योंकि बाबाओं की प्रशंसा और निंदा करने में केवल धन ही सबसे बड़ा कारण है।आज हर बाबा को संत प्रचारित किया जाने लगा,कथा बाचक तक अपने को संत लिखने या कहलाने लगे!ये मीडिया की ही देन है वो पैसे देकर जो चाहते हैं कहलाते हैं !रही बात शास्त्रीय धार्मिक समाज न इन्हें कभी ब्रह्मचारी मानता था और न ही आज भ्रष्ट मान रहा है।यह मीडिया जाने मीडिया का काम जाने !
पहले मलमल बाबा हर चैनल पर छाए हुए थे फिर न जाने क्या सौदा बिगड़ा कुछ बात अनफिट हुई तो सारे चैनल पानी पी पीकर उन्हें कोसने लगे और मलमल बाबा अचानक सब चैनलों से गायब हो गए !फिर उन्होंने चैनलों से गिला शिकवा दूर किया फिर गोलगप्पे खिलाकर शक्तियाँ लुटा रहे हैं। अब मीडिया के किसी व्यक्ति को ऐसे मलमलों से कोई शिकायत नहीं सुनाई पड़ती है! जबकि शास्त्रीय धार्मिक समाज मलमल बाबा को पहले भी गंभीरता से नहीं ले रहा था न मीडिया के बताने से उन्हें भ्रष्ट ही माना गया और न बाद में ही पवित्र स्वीकार किया गया।अब जो हो रहा है यह सब मीडिया जाने मीडिया का काम जाने !मीडिया प्रभावित होकर धर्म एवं धर्म शास्त्रों को मानने वाले लोग जानें !
ज्योतिष के नाम पर फर्जी झोला छाप बिना किसी विश्वविद्यालयी डिग्री वाले ज्योतिषीय अनपढ़ों को विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्य बताता है मीडिया! संस्कृत विश्वविद्यालयों में ज्योतिषाचार्य एक डिग्री है जो ज्योतिष विषय में एम.ए.करने पर मिलती है किंतु बिना डिग्री वालों को भी टी.वी.चैनलों पर ही तो ज्योतिषाचार्य बोला जा रहा है,क्या कभी मीडिया के किसी व्यक्ति ने जिम्मेदारी समझी कि जिसका परिचय वो ज्योतिषाचार्य के रूप में दे रहे हैं वो ज्योतिषाचार्य है भी कि नहीं !इसीप्रकार जिसे योग का ककहरा नहीं आता उसे योग गुरु कहकर प्रचारित करता रहा मीडिया!कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि टी.वी.चैनलों की कृपा के बिना न कोई मलमल बाबा बन सकता है और न ही भोग गुरु कामदेव और न ही तमाशाराम !
कोई कितना भी बड़ा विद्वान् क्यों न हो समाज और देश हित में कितना भी शोधपूर्ण शास्त्रीय सच क्यों न बोलना चाहता हो किन्तु उसके पास टी.वी.चैनलों को देने के लिए पैसे नहीं होते इसलिए उसकी शास्त्रीय सत्य बात भी मीडिया में नहीं सुनी जाती किन्तु कितना भी पाप करके कोई पैसे लाकर यदि टी.वी.चैनलों को दे तो अनपढ़ों को भी विश्वविख्यात ज्योतिषाचार्य बना देते हैं टी.वी.चैनल! आज बाबाओं की आलोचना करने से बात नहीं बनेगी अब तो जो होना था हो चुका किन्तु धर्म से जुड़े ऐसे लगभग सभी पाप पुरुषों को पाल पोष कर बड़ा करने वाला तो मीडिया ही है !
दूसरी बात जो महिलाएँ या लड़कियाँ बाबाओं के आस पास या सान्निध्य में विशेष रहती हैं वो यह क्यों नहीं समझती हैं कि ब्रह्मचर्य का पालन करना सबसे कठिन होता है गिने चुने चरित्रवान तपस्वियों की अलग बात है भीख माँग माँग कर आश्रम पर आश्रम बनाने वाले भिखमंगे बाजारू बाबाओं के बश का कहाँ है ब्रह्मचर्य !ये इतने छिछले लोग हैं कि बिना किसी चरित्र और तपस्या के ही अपने को आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी ,सिद्ध साधक आदि सब कुछ कहने लगते हैं-
दो. सकल भोग भोगत फिरहिं प्रवचन में वैराग। जिनके ये चेला गुरू तिनके परम अभाग ॥ - श्री हनुमत सुंदर कांड
ब्रह्मचर्य का पालन जो लोग करना चाहते हैं या करते हैं उनका रहन सहन चाल चलन खान पान आदि बिलकुल अलग होता है वे लोग जंगलों में या एकांत में रहना रूखा सूखा खाना आदि पसंद करते हैं!फिर भी बासनात्मक चित्रों तक से परहेज करते हैं!इनके शरीरों में तपस्या का तेज तो होता है किन्तु शौक शान श्रंगार नहीं होता है। अक्सर इनके शरीर देखने में अत्यंत सामान्य एवं अंदर से मजबूत होते हैं । हमें हर किसी से ब्रह्मचर्य की आशा भी नहीं करनी चाहिए उसका एक और कारण है ,आयुर्वेद में मनुष्य शरीर के तीन उपस्तंभ बताए गए हैं -
१.आहारअर्थात भोजन
२. निद्रा अर्थात सोना
३. मैथुन अर्थात सेक्स
उपस्तंभ अर्थात एक प्रकार के पिलर, बिल्डिंग बनाने में जो महत्त्व पिलर्स का होता है वही महत्त्व शरीर सुरक्षा में इन तीन उपस्तम्भों का होता है । इसलिए आहार,निद्रा और मैथुन तीनों के घटने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है और बढ़ने से भी स्वास्थ्य ख़राब होता है!फिर आश्रम, योगपीठ, प्रवचन दवा ब्यापार आदि दुनियाँ के झूठ साँच झमेले पालने वाले संयम बिहीन लोग मैथुन अर्थात सेक्स के बिना कैसे स्वस्थ और प्रसन्न रह सकते हैं यह बिलकुल असंभव बात है !जो धन कमाने की ईच्छा पर नियंत्रण नहीं रख सका वो धन भोगने की ईच्छा पर नियंत्रण क्यों रखेगा !यदि दवा दारू ही बनाना बेचना या और प्रकार के धंधे ही फैलाने हों तो बाबा बनने की जरूरत ही क्या थी ?
इतना अवश्य है कि जो ऐसे कलियुगी ब्रह्मचारियों का शिकार बनने से बच गया उसके लिए तो कैसे भी बाबा जी हों ब्रह्मचारी ही हैं इसलिए संयम शील स्त्रियों या लड़कियों को इन संदिग्ध गृहस्थी बाबाओं से मध्यम दूरी बनाकर तो चलना ही चाहिए!
अभी देश विदेश की मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध एक बाबा के द्वारा एक सोलह साल की लड़की के साथ बासनात्मक छेड़ छाड़ का मामला है! मीडिया की कृपा से मामला तूल पकड़ गया तो बाबा जी बेचारे बहुत परेशान हैं यद्यपि संगठनों के कुछ लोग यद्यपि बाबा जी को साफ सुथरा बताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं किन्तु मीडिया है कि मानने को तैयार ही नहीं है!
इस पर सोचने लायक यह है कि उस लड़की के माता पिता को अकेले कमरे में अपनी बेटी छोड़नी ही नहीं चाहिए थी यदि कोई बीमारी थी भी तो उसका इलाज कराना चाहिए था ऐसे किसी बाबा के आश्रम में अपनी लड़की को अकेले पहले भी नहीं छोड़ना चाहिए था!खैर जो हुआ सो हुआ आगे उनके यहाँ नहीं छोड़ना चाहिए था और शांत होकर बैठ जाते!रही बात बाबा जी की तो शास्त्रीय धार्मिक लोगों के लिए वे कभी श्रद्धा केंद्र नहीं रहे फिर भी बहुत बड़ी जन संख्या उन पर आस्था रखती है एक लड़की के कह देने मात्र से सारे विश्व में प्रसिद्ध किसी बाबा नुमा व्यक्ति को मीडिया में बार बार दुष्प्रचारित क्यों किया जा रहा है? कोई आरोप लगा है उसकी जाँच चल रही है उसके बाद जो होगा सो होगा किंतु बिना किसी जाँच के ही दुष्प्रचारित क्यों किया जा रहा है? यदि एक प्रतिशत भी असावधानी उस लड़की से ही हो गई हो क्योंकि कोई और साक्ष्य तो था नहीं ऐसी परिस्थिति में बाबा जी की बिगाड़ी जा रही सामाजिक प्रतिष्ठा की भरपाई मीडिया कैसे करेगा?
किसी को महात्मा गुरु आदि आप मानें न मानें स्वतंत्र हैं किन्तु ऐसे बाबा भी हमारे देश के ही नागरिक हैं बयोवृद्ध हैं प्रतिष्ठित हैं और बहुत सारे लोगों के श्रद्धा केंद्र भी हैं ?सारे मामले की जाँच हो दोषी को दंड मिले इसके साथ साथ इतना भी ध्यान रखा जाए कि यदि वे एक प्रतिशत भी निर्दोष सिद्ध हुए तो उसकी भरपाई करना मीडिया के हाथ से कहीं बाहर न हो जाए !
फार्म हाउसी आश्रमों सत्संगों में कौन करेगा तपस्या ?
टेलीवीजनी बाबाओं ने बदनाम किए ज्योतिष ,वास्तु ,सत्संग,साधना, साधू और आश्रम !
गुरु महात्मा साधू संन्यासी बाबा बैरागी जैसे पवित्र लोगों के नाम पर कुछ कामचोर धर्म एवं धर्म शास्त्र व्यापारियों ने धार्मिक परिस्थितियाँ बहुत बिगाड़ दी हैं।इनकी झूठी लप्फाजी बातों पर लोग न केवल भरोसा करने लगे हैं अपितु इनके धंधे से जुड़ने भी लगे हैं!
जब तक ऐसे बाबाओं के पाप का शिकार दूसरे तीसरे लोग बनते रहते हैं तब तक तो ऐसे चेला चेली लोग उनकी रास लीला की वकालत करते रहते हैं जब ब्यभिचार के छींटे उन चेला चेलियों या उनके सगे सम्बन्धियों पर भी पड़ने लगते हैं तब कुछ लोग तो शोर मचाते हैं कुछ स्त्री पुरुष उसी ब्यभिचार में सम्मिलित हो जाते हैं और वे अज्ञानी लोग इसी को बाबा के द्वारा समझाई गई श्री राधाकृष्ण की दिव्य रास लीला समझने की भयंकर भूल कर बैठते हैं !इनसे प्रेरित हो हो कर भीड़ बढ़ने लगती है और बढ़े भी क्यों न! जहाँ रोज बदल बदल कर सभी प्रकार के भोजन भोग मिलते हों और साधुओं जैसा सम्मान भी! ऊपर से भोजन वस्त्र रहन सहन के खर्च की चिंता भी न हो तो किसका मन नहीं मचल उठेगा ऐसी जिंदगी जीने के लिए ?जिस बाबा की छत्र छाया में ऐसे सारे सुख सुलभ हो रहे हों उसे लोग बापू जी क्या बाप जी भी कहने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए!ऐसे बाबाओं के बचाव में इन बाबाओं के गिरोह के सभी लोग इसलिए गला फाड़ फाड़ कर चीखने चिल्लाने लगते हैं,क्योंकि बाबाओं के साथ साथ उनके अपने ब्यभिचार के पोल खुलने का भय भी सता रहा होता है।
एक धार्मिक संस्था का संस्थापक होने के नाते मुझे दुःख इस बात का नहीं है कि आजकल बाबा बलात्कारों में आरोपित क्यों हो रहे हैं वो कितना सच या झूठ है ये तो वो जाने जो शिकार हुए और वो जानें जिन्होंने शिकार किया बाकी काम कानून का है जो गवाहों और साक्ष्यों के आधीन है।
और तो जो होगा सो होगा हमारी चिंता इस बात की है कि ऐसा कब तक चलेगा?ऐसी परिस्थिति में समाज की धार्मिक,नैतिक आदि खुराक पूरी कौन करेगा?यदि यही चलता रहा तो यह धार्मिक ब्यभिचार उस सामान्य ब्यभिचार से अधिक घातक हो जाएगा!फिर कौन मानेगा धर्म कर्म कौन सिखाएगा नैतिकता का पाठ?कैसे बच पाएँगी सुरक्षित बच्चियाँ!आज बात बात में गोली चल जा रही है लोग मार एवं मर रहे हैं!बच्चियों पर तेजाब फ़ेंका जा रहा है!परिवार टूट रहे हैं समाज बिखरता जा रहा है वृद्धों की उपेक्षा हो रही है!धर्म भय नाम की बात ही समाप्त हो चली है जिससे मानव मन का शोधन होता था!आज हर धार्मिक व्यक्ति धनार्जन की ओर भाग रहा है बाबा ब्यूटी पार्लर जा रहे हैं !समाज में बढ़ते अपराध के लिए केवल सरकार या पुलिस ही जिम्मेदार नहीं है अपितु हमारा धार्मिक समाज एवं शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है!
धर्म भय बिहीन कर्मचारी बिना घूस लिए एक कदम नहीं बढ़ाना चाहते !अधिक खर्चा करके भी सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से पराजित हैं,सरकारी डाक कोरियर से,सरकारी फोन प्राइवेट फ़ोन से इसी प्रकार सरकारी अस्पताल प्राइवेट अस्पतालों से पराजित हैं पुलिस में प्राइवेट व्यवस्था नहीं है तो अपराधियों के हौसले बुलंद हैं ।
धार्मिक एवं शिक्षित जगत की लापरवाही के कारण नैतिक एवं धार्मिक भय घट रहा है इसकी पूर्ति कहाँ से हो !
आज हाईटेक आश्रमों का प्रचलन बढ़ रहा है इस प्रकार के आश्रम तपस्या के अनुकूल नहीं अपितु बासना के अनुकूल बनाए जा रहे हैं दूर से ही देखकर पता लग जाता है कि इसमें कैसी कैसी तपस्या होती होगी कौन कौन लोग ठहरते होंगे!एक बड़ा सा आश्रमनुमा फार्म हाउस होता है उसके किसी कोने में दस पाँच कमरे बने होते हैं उसमें भी बिल्कुल एकांत में राजा महराजाओं की तरह के बेडरूम बने होते हैं।वहाँ मुख्य गेट से बेड रूम तक फार्म हाउस के मालिक संत नुमा बाबा की मर्जी के बिना परिंदा पर भी नहीं मार सकता!वहाँ सौ नहीं लाख गलत काम हों उस बाबा के विरुद्ध गवाही कोई क्यों देगा !वो भी वो जो इस प्रकार की बातों को छिपाने की ही सैलरी पाता हो ऐसा चौकीदार! दूसरी बात अपने बीबी बच्चों के लिए बिना परिश्रम किए दो रोटी उसे भी कमानी हैं।
ऐसे आश्रम बाबाओं के नाम पर बनते और चलते जरूर हैं,बाबाओं की फोटो लगती है किन्तु बाबा जी कभी कदा भले आ जाएँ बाकी तो इनमें और और प्रकार की तपस्या और और लोग ही करते हैं वही उठाते हैं यहाँ के भारी भरकम खर्च !वो राजनीति एवं अर्थ नीति के बड़े बड़े खिलाड़ी होते हैं,अन्यथा ऐसे आश्रमों में लगाई जाने वाली भारी भरकम धनराशि आती कहाँ से है?बाबा जी देते हैं तो वो कहाँ से लाते हैं सत्संग करके !सत्संग के हाईटेक कार्यक्रमों के आयोजनों से लेकर प्रचार प्रसार में जो धन खर्च होता है वही उन कार्यक्रमों से निकल पाना मुश्किल होता है फिर फार्म हाउसी आश्रमों का खर्च वहाँ कहाँ से निकलेगा ?रही बात सत्संगों की!जितने ये हाईटेक फार्म हाउसी बाबा हैं कभी जाकर देखो इनके सत्संग नाम के मिलन शिविरों में कोई धर्म कर्म का आचार व्यवहार नहीं होता कुछ रटी रटाई बातें बोलने सुनने की रस्म अदायगी भर होती है बाकी तो जो होता है वही होता है लोग खुशी में झूम रहे होते हैं और लगा रहे होते हैं बाबा जी के जयकारे!इस प्रकार से महीनों वर्षों के बिछुड़े प्रेमी प्रेमिकाओं में छलक रहा होता है आत्मानंद!
बाबा जी के नाम या फोटो का लाकेट पहनने एवं घर में फोटो सजाकर रखने से बाबा जी के गिरोह से सम्बंधित लोगों में आपसी प्रेम बहुत जल्दी हो जाता है, फेस बुक पर परिचय किया और बाबा जी के सत्संग शिविरों में मिलन हुआ घर वालों को पता ही नहीं लग पाता है वहाँ सबकुछ हो जाता है जवान लड़के लड़कियाँ ऐसे बाबाओं को मन से खूब आशीर्वाद देते हैं जिन्होंने सत्संग शिविरों के नाम पर मिलने का अवसर उपलब्ध करवाया!
एक परिवार की लड़की को अचानक एक बाबा जी के सत्संग शिविर में जाने की ईच्छा हुई वो पहले भी एक बार जा चुकी थी इसलिए किसी की बात न माने घर वाले मेरे पास आए कि मैं उसे समझाऊँ।जब मैंने सब से अलग अलग बात की तो घर वालों से उस लड़की के स्वभाव के बारे में पता लगा कि उसमें कोई दुर्गुण नहीं है भगवान की भक्ति में मन लगता है अपने गुरू जी का लाकेट पहनती है पिछले बार भी हरिद्वार में किसी गुरू जी के सत्संग शिविर में पड़ोस की आंटी के साथ गई थी किन्तु अबकी बार वो हैं नहीं अकेले कैसे भेजूँ ?यह सब सुनकर मैंने लड़की से बात की वह सत्संग शिविर में जाने की जिद कर रही थी। मैंने उसे समझाया कि तुझे भजन ही करना है तो घर बैठ कर कर ले ईश्वर तो सब जगह है आदि आदि, तब उसने किसी को न बताने की शर्त पर बताया कि वहाँ उसका प्रेमी आया होगा उससे बात हो चुकी है इसलिए जाना जरूरी है मैं पहले भी उसके साथ सात दिन रह कर आई हूँ। यह सुनकर मैंने पूछा कि पिछली बार तो तुम किसी आंटी के साथ गए थे तो वहाँ प्रेमी के साथ रहना कैसे संभव हुआ ?उसने बताया कि आंटी भी किसी के साथ प्रेम करती हैं जिससे करती हैं वो भी हर शिविर में आता है आंटी का ऐसा बहुत दिन से चल रहा है यह तरकीब भी मुझे आंटी ने ही बताई थी कि इससे कोई शक भी नहीं करता और मिलने का बहाना भी बन जाता है। यह सब सुनकर मैं समझ गया कि ये सत्संग से उपजा कुसंग है और मैंने उन्हें बिना समझाए बुझाए वापस भेज दिया !ज्योतिष का काम होने के नाते लोगों की समस्याओं का अनुभव होता रहना स्वाभाविक ही है।
ऐसे ऐकान्तिक आश्रम नुमा फार्म हाउसों में बाबा सारे साल में दो चार दस बार ही मुश्किल से पहुँच पाते होंगे किन्तु दूर से चमक रहे इन विशाल आश्रमों के रख रखाव पर खर्च होने वाली इतनी मोटी धनराशि देता कौन है यदि बाबा जी को वहाँ रुक कर साधना करने का समय ही नहीं था अथवा यदि बाबा जी को वर्ष में दो एक दिन ही रुकना था तो उसके लिए इतनी बड़ी धन राशि का दुरूपयोग क्यों ?
एक बार किसी ऐसे ही आश्रम के चौकीदार से मैं ऐसा ही प्रश्न कर बैठा तो पता लगा कि ये किसी साहूकार का फार्म हॉउस है यहाँ अक्सर लड़कियाँ लाई जाती थीं मनाई जाती थीं रंग रैलियाँ !एक बार किसी की सूचना पर पुलिस का छापा पड़ गया तो बड़े बड़े लोग एवं कई लड़कियाँ यहाँ से पकड़ी गई थीं काफी रुपए लगे थे तब जान बची थी फिर बाबू जी किसी की सलाह पर एक प्रसिद्ध बाबा के चेला बन गए एक दिन बाबा जी को यहाँ घुमाने भी लाए थे बाबा जी ने ही इसका उद्घाटन किया था तबसे आश्रम के गेट पर बाबा जी की फोटो लगी है उन्हीं के नाम पर आश्रम का नाम भी है। आश्रम के नाम पर एक पंडित जी आकर हवन कर जाते हैं गो शाला में दो तीन गाएँ पली हैं जिनका दूध बाबू जी के यहाँ जाता है वहीं एक टीना में गुड़ रखा है जब कोई श्रृद्धालु आता है तो हमसे कहा गया है कि गायों को गुड़ खिलाने लगना मैं ऐसा ही करता हूँ!
अब तो यहाँ आदमी औरतें कोई भी आवें किसी को कोई शक नहीं होता है!बाकी अब भी यहाँ उसी तरह मौज मस्ती चलती है कई बड़े बड़े अधिकारी नेता लोग आदि भी सम्मिलित होते हैं किन्तु अब न तो कोई शिकायत करता है और न ही पुलिस आती है सारा खर्चा पानी बाबू जी ही करते हैं वैसे तो बाबा जी का यहाँ से कोई लेना देना नहीं है हम लोगों को बेतन भी बाबू जी ही देते हैं।अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पिछले साल बाबा जी के लड़के को किसी ने बताया होगा कि आपका एक आश्रम यहाँ भी है तो वो यहाँ आए थे वो कहने लगे कि आश्रम हमारा है तो बाबू जी ने उन्हें बताया कि मैं तो बाबा जी के रुकने के लिए देता हूँ वैसे तो हमारा ही है यह सुनकर उनमें और बाबू जी में विवाद हो गया था तो बाबा जी के नाम कागज तो थे नहीं फर्जी कब्जे का शोर मचा! तब से तो कोई यहाँ आता नहीं है अब तो सब कुछ बाबू जी ही देखते करते हैं !
वास्तविक संत झूठ फरेब धोखाधड़ी चोरी छिनारा बदमाशी ब्याभिचार आदि सभी प्रकार के प्रपंचों से दूर रहने वाले विरक्त संत न तो किसी नेता की चाटुकारिता करते हैं और न ही किसी धनी सेठ साहूकार की! इसी लिए उन्हें भी न कभी कोई नेता घास डालता है और न ही कोई धनी सेठ साहूकार आदि! किन्तु उन्हें इसकी परवाह भी नहीं होती है वो शास्त्रों के अनुशार जीना चाहते हैं और भगवान के भरोसे रहना चाहते हैं जो मिला जहाँ मिला वहाँ अपने संन्यास धर्म की मर्यादा के अनुशार उसे ईच्छा हुई तो स्वीकार किया अन्यथा बिना परवाह किए छोड़ कर चल दिए !ये संन्यासी हमारे प्रणम्य महापुरुष हैं।
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