Saturday, June 29, 2013

विद्वान् ज्योतिषियों की भी भविष्य वाणियाँ गलत क्यों होती हैं?

       ज्योतिष वैज्ञानिकों को पहचाना कैसे जाए !

     कुछ उच्च कोटि के विद्वान ज्योतिषियों के विचारों एवं अनुभवों पर आधारित निम्न लिखित प्रश्नोत्तर हैं उनकी पीड़ा ही समाज के सामने रखने का प्रयास किया जा रहा है उनके प्रति लोगों के उदासीनता एवं दरिद्रता पूर्ण व्यवहार ने गंभीर ज्योतिष वैज्ञानिकों को अपने विषय में भी सोचने पर मजबूर कर दिया है जिसके  दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं आज परिवार बिखर रहे हैं संस्कार नष्ट हो रहे हैं वैवाहिक सम्बन्ध टूट रहे हैं।प्राकृतिक आपदाओं की सूचना समय से पहले नहीं मिल पा रही है उत्तराखंड जैसी आपदाएँ इसका ही परिणाम हैं आदि आदि! 

प्रश्न -क्या ज्योतिष एक विज्ञान है ? 

उत्तर-जिस  ज्ञान से मुहूर्त, वास्तु ,वर्षा,बाढ़ ,सूखा, बीमारी, महामारी, आकाश, पाताल, आदि से सम्बंधित भूत,  भविष्य एवं वर्त्तमान काल के विषयों की जानकारी मिलती हो वह शास्त्र विज्ञान ही  हो सकता है। इसके अलावा भविष्य सम्बन्धी  जानकारी देने   वाला कोई दूसरा शास्त्र या आधुनिक विज्ञान में कुछ और हो भी नहीं सकता है और न है ही विज्ञान ने भविष्य जानने के लिए अभी तक किसी नई विधा का अन्वेषण ही किया है! 

प्रश्न-क्या ज्योतिषी को वैज्ञानिक मानाजानाचाहिए ?

उत्तर-अवश्य,जो विद्वान् आकाश,पाताल, आदि से सम्बंधित भूत, भविष्य एवं वर्त्तमान काल के विषयों की खोज  बिना किसी लौकिक पदार्थ के कर लेता हो वो वैज्ञानिक ही हो सकता है उसे सामान्य पंडित पुजारी समझने की भूल करने वाले लोग उसकी विद्या का लाभ कभी नहीं ले पाते हैं। 

प्रश्न-सामान्य पंडित पुजारियों और ज्योतिष वैज्ञानिकों में अंतर क्या होता है?

उत्तर- जिसने कुछ पढ़ा लिखा ही न हो अपितु केवल पंडितों जैसी वेष भूषा बनाकर अपने बच्चों का भरण पोषण करता हो ऐसे स्वरूपतः ब्राह्मण जो  न कुछ पढ़ते हैं और न ही पढ़ना चाहते हैं या क्या कुछ पढ़े लिखे हैं भी या नहीं उनसे ज्योतिष जैसे विज्ञान की आशा ही क्यों रखनी?कुछ और लोग भी हैं जो यद्यपि पंडित नहीं होते हैं किन्तु लंगड़े, लूले,काने ,कैंचे,टेढ़े ,मेढ़े अर्थात बिकलांग या धनहीनशराबी कबाबी या किसी और प्रकार के नशा या लत के शिकार जब रोजी रोटी कमाने लायक नहीं रह जाते हैं तब पंडिताई बेचने लगते हैं।ऐसे किसी भी व्यक्ति से ज्योतिष या किसी भी प्रकार के ज्ञान विज्ञान की आशा ही क्यों करनी?

पंडित-जो अपने विद्या बल से एवं परिश्रम पूर्वक परिवार पालना चाहते हैं।यह वर्ग पंडितों का होने के कारण कुछ पढ़ा लिखा भी होता है। इनकी पढ़ाई की कोई सीमा रेखा यद्यपि नहीं होती है फिर भी ये कम ज्यादा कुछ भी पढ़े हो सकते हैं।विद्वान होना इनके लिए अनिवार्य नहीं होता है,किन्तु ये लोग सदाचरण का ध्यान रखते हैं।

    ये लोग स्वाभिमान पूर्वक परिश्रम करके अपने बच्चे पाल लेते  हैं इनके बीबी बच्चे इनके ही आधीन रहते हैं।यद्यपि कई जगह इस वर्ग के लोग भी स्वाभिमान पूर्वक परिश्रम करके पुजारियों का काम भी करते हैं किन्तु पुजारी रहते हुए भी  इनका सम्मान सुरक्षित बना रहता है। इनमें पवित्रता के संस्कार बने रहते हैं । 

 प्रश्न- भ्रष्टाचार   के कारण क्या ज्योतिष का भी नुकसान हुआ है?

उत्तर -सामान्य अपराधियों की तरह ज्योतिष के क्षेत्र में भी अपराधियों का बोलबाला है।जहाँ एक दिन बीस मिनट एक टी.वी. चैनल पर झूठी ज्योतिषीय बकवास करने के लिए किसी एक को दस से बीस हजार के बीच देने होते हैं। जो लोग एक साथ ही कई कई टेलीविजन चैनलों पर वर्षों से यह सब कर रहे हैं उनका महीने का बिल हो सकता है कि करोड़ों में हो!आखिर यह पैसा कहाँ से आता होगा?उस पर भी जिसके पास ज्योतिष की शिक्षा बिलकुल हो ही न और ज्योतिष शिक्षा की डिग्री भी न हो!फिर भी यदि ये कहते हैं कि मैं ज्योतिष जानता हूँ तो अपने को विश्व का नंबर वन ज्योतिषी कहने वाले शास्त्रीय लुटेरे उत्तराखंड के इतने बड़े जन संहार से अनजान कैसे बने रहे!और नहीं तो इस घटना को पहले पता लगा लेने  का प्रमाण क्या है और सबूत क्या है ?इसके बिषय में पहले कहा क्या और किया क्या है ?इन सब बातों को सामने रखकर समाज में व्याप्त ज्योतिषीय  भ्रष्टाचार का अनुमान सहज ही लगाया जा  सकता है। यह सबको पता है फिर भी सबकुछ चल रहा है।ऐसे किसी भी व्यक्ति से ज्योतिष या अन्य किसी  प्रकार के ज्ञान विज्ञान की आशा ही क्यों करनी?

ज्योतिष वैज्ञानिक- इन सबसे ऊपर शास्त्रीय एवं संवैधानिक सीमाओं से बँधा हुआ यह वह वर्ग है जो ज्योतिष विद्या के विषय में समाज के प्रति जवाब देय होता है यह वर्ग ज्योतिष विद्या का न केवल सम्पूर्ण रूप से अध्ययन करता है अपितु ज्योतिषीय भ्रष्टाचारियों के कारण पवित्र ज्योतिष विद्या पर होने वाले हमलों को झेलता भी है।इनके लिए ज्योतिष विद्या की सर्वोच्च शिक्षा न केवल अनिवार्य है,अपितु किसी प्रमाणित संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिष विषय में एम.ए.पी.एच.डी. जैसी उच्च डिग्रियाँ भी ये लोग हासिल करते हैं।इनके सामने कम पढ़ाई करने  का कोई विकल्प ही नहीं होता है इन्हें न केवल अपने विषय(Subject) की सम्पूर्ण जानकारी रखनी होती है अपितु इसके लिए उसके ही सिद्धांतों के अनुशार चलना भी होता  है। जिस बात का प्रमाण शास्त्र से नहीं दिया जा सकता ऐसी झूठ बात ज्योतिष वैज्ञानिक लोग बोलते  ही नहीं हैं। 

     आजकल कहीं भी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि की पढ़ाई एवं परीक्षाएँ होती हैं।जिनकी सर्वोच्च पढ़ाई करके उच्च डिग्री हासिल करने वाले ऐसे विद्वान् लोग ही  ज्योतिष वैज्ञानिक कहलाने के  अधिकारी होते हैं जो डाक्टर इंजीनियरों की तरह ही किसी की श्रृद्धा के गुलाम नहीं होते,दरिद्रों को मुख लगाना इनका स्वभाव ही नहीं होता है क्योंकि दरिद्रता करने वाले लोग ज्योतिष वैज्ञानिकों का पारिश्रमिक या तो देना नहीं चाहते हैं या फिर कम देना चाहते हैं या गिफ्ट आदि देकर स्वार्थ साधना चाहते हैं जिसके बदले में ज्योतिष वैज्ञानिकों को उनके प्रश्नों पर बिना परिश्रम किए ही जान बचाने के लिए यथा संभव कुछ  बोलना पड़ता है  जो सच्चाई से लगभग दूर होता है ये उनकी मज़बूरी है। इसप्रकार उनकी आदत झूठ बोलने की पड़ती  जाती है जिस कारण उनकी विद्या ,कीर्ति ,आदि धूमिल पड़ने लगती है।

     जिन लोगों के अपने लड़के उस ज्योतिष वैज्ञानिक की अपेक्षा कम पढ़े लिखे या अयोग्य होते हैं फिर भी उनकी कुंडली इसलिए दिखाने लाते हैं कि ये लाखों करोडों  रुपए महीने कैसे कमाएँ !जिससे पूछने गए ज्योतिष वैज्ञानिक को मात्र सौ दो सौ रुपए देकर बेवकूप बना देना चाहते हैं।कई बार तो कोई परिचय निकालकर,या घर पर पड़ी हुई या बाजार से कोई यूजलेस चीज लेकर हँसते मुस्कुराते हुए ज्योतिषी के पास चले जाएँगे केवल इसलिए कि जिस लाभ के लिए ज्योतिष वैज्ञानिक के पास जा रहे हैं उस लाभ में बनने वाला उसका हिस्सा न देना पड़े ! कई लोग  तो इतने ड्रामेबाज होते हैं कि साल में एक आध तिथि त्योहारों पर गिफ्ट नाम की कोई चीज  ज्योतिषी को केवल इसलिए दे आते हैं कि आने वाले साल भर उस विद्वान् से फ्री में गुलामत कराई जा सके !सोचने लायक है कि उच्च कोटि की शिक्षा लेकर कोई विद्वान् किसी की ऐसी ओछी हरकतें क्यों सहेगा?क्यों करेगा उसके लिए परिश्रम?

      जिसके लाभ होने से ज्योतिष वैज्ञानिक को  लाभ न हो उसे कोई हानि हो जाए तो हो जाए!इसकी चिंता  ज्योतिष वैज्ञानिक क्यों करे? 

         इसप्रकार से अपमानित एवं उपेक्षित ज्योतिष वैज्ञानिक उसके लिए जो कुछ कर पाएगा वो सच न होगा और न ही ऐसी आशा ही करनी चाहिए !

 प्रश्न- पहले तो संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि शिक्षा एवं डिग्रियों की व्यवस्था नहीं थी ?

 उत्तर-उस समय राजा लोग समय समय पर विद्वानों की परीक्षा स्वयं लिया करते थे।जैसे -वर्षा आदि के विषय में बहुत पहले से भविष्यवाणियाँ करा लेते थे इसके लिए समय समय पर विषय बदलते भी रहते थे। ऐसी ही परीक्षाओं में सफल होने पर विद्वानों का राजा लोग सम्मान किया करते थे साथ ही उन्हें राज ज्योतिषी आदि की उपाधियाँ दी जाती थीं तब उस तरह की राजकीय व्यवस्था थी तो विद्वान् उसका सम्मान करते थे आज संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि शिक्षा एवं डिग्रियों की सरकारी  व्यवस्था है तो विद्वान् लोग इनका सम्मान करते हैं। बाकी बिना पढ़े लिखे झुट्ठे लोगों को तो नेकर पहनना नाक पोछना भी आ जाता है तो उन्हें लगने लगता है कि यह मेरी  रिसर्च है यदि वास्तव में इन्होंने पढ़ा है तो ज्योतिष के किसी विश्व विद्यालयी कोर्स का सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं पड़ती है ?

प्रश्न-पहले ज्योतिष विद्वानों के द्वारा की गई भविष्य वाणियाँ जितनी सच हुआ करती थीं अब क्यों नहीं होती हैं ?

 उत्तर-पहले के ज्योतिषियों के भरण पोषण की अत्यंत उत्तम व्यवस्था राजा लोग स्वयं करते थे जिससे उनका परिवार संतुष्ट रहता था तो विद्वान् लोग भी ज्योतिषीय भविष्यवाणियों के लिए जितने परिश्रम की आवश्यकता होती थी वो सम्पूर्ण परिश्रम बेहिचक करते थे जिससे उनकी भविष्यवाणियाँ भी सच हुआ करती थीं ।उस ज़माने में लोगों के मन में ज्योतिषियों  का वैज्ञानिकों की तरह का सम्मान हुआ करता था।अपने से अधिक विद्वानों की सुख सुविधाओं का ध्यान रखा जाता था  तब विद्वानों में भी दूसरे का काम करने का उत्साह होता था । 

   आज लोग अपनी कोठी बंगला बनाने के लिए ज्योतिष   वैज्ञानिकों से अपेक्षा रखते हैं कि वो उनके लिए  जी जान लगा दें जिससे उनकी कोठी बंगला बन जाए या व्यापार चल जाए !शादी हो जाए या संतान हो जाए आदि आदि और वो राजा महाराजाओं के लिए उस सुख सुविधा का भोग करें! किन्तु कोई ज्योतिष वैज्ञानिक उसके इस स्वप्न को पूरा करने में साथ क्यों दे ?आखिर ज्योतिषी ऐसा क्यों करे ?किसी के राजा महाराजा बन जाने से उस ज्योतिषी का आखिर क्या भला होगा ?

       जिसको ज्योतिष विद्वानों की सुख सुविधाओं तथा साधन सम्पन्नता से लेना देना न हो उसके सत्यानाश  को  सौभाग्य में बदलने के सूत्र कोई ज्योतिषी क्यों खोजे ?क्यों ढोता फिरे ऐसे समाज का कोढ़?रही बात सौ दो सौ पाँच सौ रुपए देने की आज की महँगाई के युग में उसकी कोई कीमत नहीं है वो तो लेबर मिस्त्री मजदूर भी कमाकर खर्च कर देते हैं।ऐसी दरिद्रता करने वाले लोगों के लिए अच्छे अच्छे विद्वान् ज्योतिषियों को उसके लिए परिश्रम करने में भी दरिद्रता करते देखा है।वो भी सोच लेते हैं कि यदि हमारी ज्योतिष संबंधी बात गलत भी होगी तो जो सौ दो सौ पाँच सौ रुपए ये हमें दे  देते हैं वो नहीं देंगे और हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? सच भी यही है कि किसी विद्वान् के विषय में जो जितनी गिरी हुई सोच लेकर उसके पास जाता है उस विद्वान् को भी उसके साथ उतना ही गिरा वर्ताव करने का अधिकार है!शास्त्र सम्मान के लिए यह आवश्यक भी है।इसलिए जिसकी ज्योतिष शास्त्र एवं ज्योतिष वैज्ञानिक के प्रति आस्था न हो तो उसे ज्योतिष विद्वान् के पास जाना ही नहीं चाहिए। यदि जाए तो पूरी आस्था लेकर जाए! 

    यदि आपने अपने सारे जीवन में  परिश्रम पूर्वक धन कमाया है तो ज्योतिषी ने अपने सारे जीवन में  परिश्रम पूर्वक विद्या कमाई है जितना लगाव आपका अपने कमाए हुए धन से है उतना ही लगाव ज्योतिषी का उसकी विद्या से होता है।

 जितनीजिसकीहिस्सेदारी।उतनी उसकी भागीदारी।। आप अपनी कमाई हुई संपत्ति में जितनी भागीदारी ज्योतिषी को देंगे ज्योतिषी भी अपनी कमाई हुई विद्या में उतनी ही भागीदारी आपको देगा!

      जिस तरह अपनी संपत्ति में भागीदारी देते समय आपकी सोच केवल कुछ देने की होती है आपका दिया हुआ ज्योतिषी के काम आवे न आवे कितना आवे इससे उसका कुछ काम बने या न भी  बने! ज्योतिषी के पास हमें खाली हाथ  नहीं जाना  चाहिए केवल इसलिए जो कुछ दे दिया सो ठीक है।बंधुओ,यही भाव ज्योतिषी का सामने वाले के प्रति भी होता है कि जो कर दिया सो ठीक है!खाली हाथ लौटाना नहीं चाहिए इसलिए कुछ समझा कर भेजो वह झूठ ही क्यों न हो ! किसी के स्वास्थ्य, जीवन, परिवार, व्यापार आदि के विषय में ज्योतिषी का यही रुख होता है!इस प्रकार किसी व्यक्ति के विषय में ज्योतिषी के द्वारा बताया गया आधा अधूरा सच कितना घातक होता होगा ?इन विषयों में ज्योतिषी  की थोड़ी सी चूक या लापरवाही या आधे अधूरे सच से कितनी भारी हानि हो सकती है!

प्रश्न- सबका भला करने वाले ज्योतिषी अपना भला क्यों नहीं कर लेते ? 

उत्तर-ईश्वर किसी को विद्या देता है किसी को धन देता है सबको सब कुछ एक साथ नहीं देता है इसीलिए इस दुनियाँ में सबका काम सबके सहारे चला करता है।   

आप स्वयं कल्पना कीजिए -

यदि आप अपनी  लंबी आयु या

                   स्वास्थ्य के  बिषय में जानना चाहते हैं

यदि आप उत्तम  पति या  पत्नी चाहते हैं

                          अच्छी   बहू   या   दामाद  चाहते हैं

यदि आप उत्तम व्यापार एवं सुख शान्ति

                      पूर्ण  अपना  परिवार  देखना चाहते हैं

यदि आप माता-पिता तथा भूमि, भवन,

                   वाहन सुख के बिषय में जानना चाहते हैं 

     लोगों के ऐसे गंभीर प्रश्नों  का शास्त्रीय उत्तर खोजने  के लिए जितने परिश्रम की आवश्यकता होती है कुशल ज्योतिष   वैज्ञानिक चाहते हुए भी उस प्रक्रिया को केवल इसलिए पूरा नहीं कर पाते और जो मुख में आता है सो बक देते हैं लोग उसे भविष्य वाणी समझ लेते हैं! क्योंकि ज्योतिषी उसकी श्रृद्धा से संतुष्ट नहीं होता है-

      वैसे भी किसी का काम उसके लिए कितना महत्व रखता है ये उसकी  श्रृद्धा से पता लगता है ज्योतिषी  के प्रति श्रृद्धा कितनी है ये उसे किसी के द्वारा दिए  गए धन से पता लगती है जिसके प्रभाव से वह काम करता है।

     ज्योतिष शास्त्र  गहराई  में  समुद्र  के  समान  होता हैअपना बर्तन जितना बड़ा होता है समुद्र उतना ही जल देता है अधिक नहीं !

     ज्योतिष शास्त्र तेज में बिजली के समान है किंतु जितने बॉड का बल्व होता है प्रकाश उतना ही होता है।अधिक नहीं !

    ज्योतिष शास्त्र  वेदों   का  नेत्र  माना  गया   है जैसा चश्मा  होता है वैसा दिखाई देता है अधिक नहीं !ज्योतिषं नयनं प्रोक्तम् ।

        ज्योतिष शास्त्र देवता के  समान  है  जितना श्रृद्धा विश्वास   और   समर्पण  होगा  उतना  ही  लाभ होगा।अधिक नहीं !

  विद्याध्ययन एवं त्याग तपस्या पूर्ण,अत्यंत अनुशासित जीवन से थके हुए ज्योतिष विद्वानों से अब और अधिक त्याग, बलिदान की आशा नहीं रखनी चाहिए !  

जो लोग  केवल  अपने  को  ही  परेशान समझते हैं जो  लोग   केवल  अपने  को  ही  परिचित समझते हैं जो लोग  केवल  अपने  को  ही  चालाक समझते हैं  जो केवल अपने गुणों,शिक्षा,समय की ही कीमत   
                                                                  समझते हैं

 ऐसे लोग शास्त्रीय विद्वानों के पास पहुँच कर भी अपनी चतुराई,कंजूसी,दरिद्रता की  कृपा  से  खाली हाथ लौट आते हैं ! 

    किसी परेशान के लिए, किसी परिचित के लिए एवं किसी विद्वान के लिए जो जितना बड़ा बलिदान दे सकता है उसे उतना ही सहयोग पाने की आशा  रखनी चाहिए और यदि उतना मिल जाता है तो समझना चाहिए कि उसने सहयोग किया है !उससे अधिक आशा क्यों?

    जितने  परिश्रम  से  कोई धन कमाता है विद्वान उससे अधिक परिश्रम से विद्या पढ़ते हैं।जो सोचता है कि अपना कुछ धन देकर ज्योतिषी  की संपूर्ण विद्या का लाभ लिया जा सकता है ये भ्रम है।

 जिसकी जितनी साझेदारी उसकी उतनी जिम्मेदारी!!! उपेक्षा का शिकार  कोई भी ज्योतिषी  किसी की जिम्मेदारी क्यों लेगा ?       

     शास्त्रीय विद्वानों के पास पहुँच कर भी अपनी श्रृद्धा और विश्वास  से अधिक लाभ किसी को  नहीं होता है अपना अपना भाग्य !

 प्रश्न - किसी के विषय में भविष्य वाणी करते समय विद्वान् ज्योतिषी को किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? 

  उत्तर - अपने या किसी के भविष्य से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर ज्योतिष से जानने के लिए ज्योतिषी को चाहिए कि वह पहले तो कुंडली को जॉंचे परखे कि यह गलत तो नहीं है।इसकी जॉच दस प्रकार से करे।इसके बाद बाइसों प्रकार से उस कुंडली का अध्ययन करना चाहिए।इसी प्रकार से संबंधित प्रश्न की प्रश्न कुंडली बनावे।ऐसी शुद्ध की हुई कुंडली एवं प्रश्न कुंडली का अध्ययन करके उस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए प्रयास करना चाहिए।तब फलादेश सत्तर प्रतिशत तक सच होना संभव है।तीस प्रतिशत  कर्म का प्रभाव रहता है  

          पहले राजा महाराजा लोग विद्वान ज्योतिषियों का सम्मान करते हुए उनके भरण पोषण का संपूर्ण भार स्वयं उठाते थे तो विद्वान ज्योतिषी चिन्ता रहित होकर  उनके प्रश्नों के सच सच उत्तर शास्त्रीय परिश्रम पूर्वक निकालकर देते थे।जिसमें झूठ होने की गुंजाईस बहुत कम बचती थी अर्थात वो भविष्यवाणियॉं लगभग सच होती थीं।आज गलती होने के चांस बहुत अधिक होते हैं।

    इसलिए ज्योतिषी को चाहिए कि दरिद्र, कंजूस, स्वार्थी, चालाक टाइप के लोगों से संपर्क ही छोड़ दे। साथ ही ज्योतिष के प्रति आस्था एवं ज्योतिषी के प्रति सम्मान रखने वाले,अपनी संपत्ति से ज्योतिषी का हिस्सा ईमानदारी पूर्वक ईश्वर को साक्ष्य करके देने वाले समझदार उदार लोगों से ही ज्योतिषी अपना कार्य सम्बन्ध बनाए रखे !

प्रश्न-किसी की संपत्ति में ज्योतिषी के हिस्से से तात्पर्य क्या है? 

उत्तर- जो जिस काम के लिए पूछने आता है या उससे जो संभावित लाभ की सम्भावना होती है या उससे जो लाभ होता है या सम्बंधित काम उसके लिए जितना महत्त्व रखता है इन सभी प्रकारों से अनुमानित लाभ का दशांश ज्योतिषी का भाग होता है जो ज्योतिषी को देना ही चाहिए। यदि लोभ बश ऐसा न कर सके तो दूसरी बार उस ज्योतिषी के पास उसे नहीं जाना चाहिए  और न ही उस की बात पर भरोष ही करना चाहिए क्योंकि पहली बार अपमानित एवं धोखा खाया हुआ ज्योतिषी हिंसक हो चुका होता है!दूसरी बार उसके लिए ईमानदारी पूर्वक परिश्रम करने का ज्योतिषी के पास साहस ही नहीं बच पाता है।

    सन्देश-यद्यपि ज्योतिषी को प्रयास पूर्वक ईमानदारी बरतनी चाहिए ताकि किसी भी परेशान व्यक्ति के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो। साथ ही मांस - मदिरा का सेवन न करने वाले,ईमानदार सदाचारी,चरित्रवान ईश्वर पर आस्था रखने वाले धनहीन लोगों के साथ भी ज्योतिषी को प्रयास पूर्वक ईमानदारी बरतनी चाहिए ताकि उस गरीब व्यक्ति को भी आपकी विद्या में सम्मिलित उसका अधिकार मिल सके । 

     हर किसी के गुण, ज्ञान, गौरव, पद , प्रतिष्ठा, साधन, संपत्ति एवं सम्पन्नता पर हर किसी का अधिकार होना चाहिए। यही सनातन धर्म है । 

     राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान का निवेदन-

       यदि ज्योतिष, वास्तु ,नग नगीना यन्त्र तंत्र ताबीज ,धर्म शास्त्र ,रामायण,भागवत,गीता  या और भी धर्म एवं शास्त्र के किसी भी विषय  में आप भी कुछ जानना चाहते हैं या किसी ने कोई बहम डाल रखा है और आप परेशान हैं तो आप भी हमारे यहाँ फोन करके जान सकते हैं अपने प्रश्न का उत्तर पा सकते हैं अपनी भी शंका का समाधान ! विशेष बात यह है कि हमारे यहाँ  दिए गए उत्तरों एवं उपायों में आपको किसी प्रकार का कोई बहम नहीं होगा दूसरा वैदिक या लौकिक मंत्र जपने के उपाय बताए जाते हैं। नग नगीना यन्त्र तंत्र ताबीजों से सम्बंधित कोई उपाय नहीं बताए जाते हैं हाँ इनसे जुड़ी शंकाओं एवं बहमों का निवारण अवश्य किया जाता है।  

      इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए हमारे यहाँ संस्थान संचालन के लिए सहयोग राशि के रूप में अलग अलग प्रकार के प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए अलग अलग प्रकार की सहयोग राशि जमा करने का प्रावधान किया गया है!जो शुल्क केवल पारिश्रमिक रूप में ही लिया जाता है जो आगे सम्बंधित विद्वानों को देना होता है।जिनके बदले उनसे सम्बंधित विषयों के लिये  जाते हैं प्रमाणित उत्तर और यह बहम रहित सच्चाई सहित शास्त्रीय सेवा आपको कभी भी कहीं भी 24 घंटे के अंतराल में फोन पर भी उपलब्ध कराई जाती है ।

 संपर्क सूत्र -Dr. S.N.Vajpayee ,M.9811226973   संस्थापक-राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

        निवेदकः-ज्योतिष जनजागरण मंच


 

            



      


 


Friday, June 28, 2013

लाल किताब आडम्बरों का पिटारा !

   लाल रंग खतरे का प्रतीक होता है लाल किताब भी !

   ज्योतिष के जिन फलादेशों,उपायों,वास्तु के नियमों एवं उपायों का वर्णन लाल किताब के नाम पर बोला,बताया,समझाया या बका जाता है उनका हिन्दू  ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथों से कोई लेना देना नहीं होता है। कई बार तो लाल किताबी माताएँ,पिता लोग ,गुरु घंटाल नाम के स्वयंभू भाग्य विधाता टाइप के निचले तबके से लेकर गुरु जगत गुरु तक बने फिरते लोग एवं लोगिनियों ने वह सब कुछ कहना शुरू कर दिया है जिसका हिन्दू ज्योतिष शास्त्रों से कोई लेना देना नहीं है इसीलिए लाल किताब नाम का अमृत मेरी जानकारी के अनुशार देश के किसी भी प्रमाणित या सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय के ज्योतिष पाठ्यक्रम में तो लाल किताब टाइप की किसी चीज का तो कोई जिक्र ही नहीं है। शायद यही कारण है कि प्रमाणित या सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों से पढ़े लिखे लोग ऐसी किसी भी किताब नाम ही केवल इसीलिए नहीं लेते हैं कि लोग उनके साथ भी बिना पढ़े लिखे लोगों जैसा व्यवहार करने लग जाएँगे।  

  ज्योतिष की जिन किताबों का ज्योतिष के विश्व विद्यालयीय स्लेबस में या प्राचीन ज्योतिष में कहीं  कोई उल्लेख ही नहीं है ऐसी कोई किताब है भी या नहीं, किन्तु कुछ लोगों ने कलरों पर किताबें लिखी या लिखाई हैं अथवा अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई  हैं  जैसे लाल किताब ऐसे  ही लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब बनाकर रख ली है । इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बको जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो  जाएगा। केवल उन  नामों के पीछे अमृत या मणि या यन्त्र लिखना बहुत जरूरी होता है। ये अमृत आदि शब्द इतने अधिक आकर्षक होते हैं कि किसी परेशान व्यक्ति को फाँसने में बड़ा सहयोग मिलता है क्योंकि इन नामों के प्रति भारतीय समाज में असीम आस्था होती है। संसार में लोगों को जितने प्रकार की आवश्यकता होती है उन सारी बातों के आगे अमृत या मणि या यन्त्र लिखना बहुत होता है।      जैसे -कब्ज दूर करने करने के लिए  कब्ज निरोधक मणि अथवा कब्ज हर यन्त्र  या  कब्ज हर अमृत ।इसी प्रकार  यदि आप कुंडलियों के धंधे में कूदना चाहते हैं तो कंप्यूटर से कुंडली बनाकर  उसके आगे भी  अमृत  मणि या यन्त्र लिख सकते हैं ।

    जैसे -गुलाबी  किताब अमृत ,हरी  किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र आदि नामों से वही पचास रूपए वाली कंप्यूटर कुंडली पाँच हजार रूपए में आराम से बिक जाती है।

        हमें तो अब लगने लगा है  कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास  मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे!क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब  ज्योतिषशास्त्र  को गाली  देते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है वो जिस के चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी जिसे वे गाली दे रहे हैं।जिस चक्कर में विश्वामित्र पराशर आदि बड़े बड़े ऋषि फँस  गए वहाँ हम जैसे लोग क्या हैं ?वैसे भी ज्योतिषी के पास उस तरह की लड़की का काम ही क्या है?

   इसी प्रकार उपायों के नाम पर आधारहीन मनगढ़न्त बातों की बकवास होती है। कुत्ते, चींटी, चमगादड़, उल्लू,तीतर,बटेर, मुर्गी, मछली, हल्दी, सिन्दूर, नींबू, मिर्ची, काले उड़द, तिल, कोयला, घास गोबर,नग,नगीने,यन्त्रतन्त्रताबीजों,तथालकड़ियों,जड़ों आदि के नए नए नाम लेकर इन्हीं चीजों को ऐसे तथाकथित कुशल कारीगर लोग खाना, पहनना, ओढ़ना, बिछाना, जेब में रखने आदि बातों के लिए प्रेरित किया करते हैं। ऐसी थोथी बातों का शास्त्र में न तो कहीं आधार है और न ही प्रमाण?वहाँ तो ग्रह शान्ति नाम की वैदिक मन्त्रों की प्रमाणित पुस्तक है, किन्तु  ये सब मानने वाले सोचते हैं कि आखिर इन बातों को बताने वाले का स्वार्थ क्या है और कर लेने में हमारा नुकसान ही क्या है?
    क्या आपने कभी विचार किया कि आपके पूर्व जन्म के कर्म ही भाग्य का रूप लेते हैं। वही कर्म अच्छे होते हैं तो सौभाग्य और बुरे होते हैं तो दुर्भाग्य के रूप में इस जन्म में भोगने पड़ते हैं। पूर्व जन्म के अच्छे बुरे कर्मों की सूचना देने का आधार ग्रह और ज्योतिष  है। जिस ग्रह से सम्बन्धित अपराध हम पिछले जन्म करते हैं इस जन्म में वही ग्रह प्रतिकूल हो जाता है। इसी प्रकार अच्छा करने से ग्रह अनुकूल होते हैं। बुरे फल की सूचना देने वाले ग्रहों को शान्त  करने के लिए वेदों में मन्त्र लिखे होते हैं जिन्हें जपने से संकट का वेग कम हो जाता है किन्तु नष्ट नहीं होता अपितु लम्बे समय तक चलता है। क्योंकि गीता में लिखा है ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’’ अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य  भोगने पड़ते हैं।
अब आप स्वयं सोचिए कौवे-कुत्ते, चींटी-चमगादड़  गोबर कोयला, आदि आपका भाग्य कैसे सँभाल सकते हैं?  

    जहाँ तक दान की बात है दान तो शास्त्र सम्मत है। दान पाने वाले का लाभ होता है जिसको लाभ होता है वह आशीर्वाद देता है। उससे पुण्य का निर्माण होता है। जो आड़े-तिरछे समय में रक्षा कर लेता है। कई बार एक गाड़ी का एक्सीडेंट होता है। कुछ लोग बच जाते हैं कुछ मर जाते हैं। यह पुण्यों का ही खेल है । क्योंकि जहाँ आपका वश  नहीं चलता वहाँ भी पुण्यों की पहुँच होती है।कई बार लोग कोढियों या विकलांगों को जो धन देते हैं वह दान न होकर सहयोग होता है।दान हमेशा अपने से श्रेष्ठ एवं सुखी को दिया जाता है।

    जहाँ तक बात नग-नगीनों की है। यद्यपि ज्योतिष  के ग्रन्थों में ग्रहों की मणियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इन्हें धारण करने से भाग्य लाभ में क्या सहयोग मिलता है?यह स्पष्ट नहीं है। वेद में इस विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आयुर्वेद स्वीकार करता है कि जिस रोग के लिए जो औषधि आयुर्वेद में कही गई है उसे पहनने से, उसे दवा के रूप में खाने से एवं उसकी भस्मादि का हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। कम से कम भाग्य की दृष्टि से तो इतना उतना स्पष्ट प्रभाव नहीं दीख पड़ता जितना मन्त्रों का है। मन्त्र जप तथा देवता की आराधना का अत्यन्त फल होता है। यह सर्व विदित एवं स्पष्ट है। वैदिक विधा में तो ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनका वेदमंत्र जपना ही एकमात्र विकल्प है।
     उपर्युक्त ऐसे लोगों में भ्रम का कारण समाज में एक बड़ा वर्ग है जिसका कोई सदाचरण नहीं मिलता, यह वर्ग अध्ययन, साधना आदि योग्यता से विहीन है। इनमें केवल नकल करने की कला होती है। ऐसे कलाकार ज्योतिष वेत्ताओं की तरह अपना रंग रूप सजा कर उन्हीं की देखी सुनी कही भाषा तथा वेष भूषा की नकल करने लगे हैं। ऐसे लोगों ने न कुछ पढ़ा है न किसी के शिष्य हैं न ज्योतिष की कोई किताब देखी है। उसका भी कारण है कि ज्योतिष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं वो इन्हें आती नहीं है।इसी लिए ये बेचारे दो चार शब्द इंग्लिश के तो अपनी बातों में बोल जाएँगे संस्कृत बोलने में जबान नहीं लौटती है बात-बात में कहते हैं कि मैंने ज्योतिष में के तो  रिसर्च की है। जो संस्कृत पढ़ा ही नहीं वो ज्योतिष में रिसर्च क्या करेगा खाक?संस्कृत न जानने के कारण ही इनके बताए हुए मंत्र भी आधार हीन, प्रमाण विहीन अत्यंत ऊटपटांग बकवास होते हैं। शब्द को शबद  कहते हैं मंत्रों की इनसे आशा ही क्यों?कुंडली बनाना नहीं सीखा इसलिए कम्प्यूटर रख लिया। वेद मन्त्र पढ़ना नहीं आता इसलिए कुत्ते पूजना अर्थात इनके उपाय सिखाते हैं। क्या यही  रिसर्च कही जाती है?

      बड़े भाग्य से मिले सुर दुर्लभ मानव जीवन का भाग्य कौआ, कुत्ता, चीटी-चमगादड़ों में  ढूँढ़ना सिखा रहे हैं। ये कागजी शेर धन बल से विज्ञापनों में छाए हुए हैं।ढोंगी जोगी की तरह ये तब तक फूलते फलते रहेंगे जब तक सरकार से पंगा नहीं लेते। समाज इनसे छला जा रहा है पवित्र ज्योतिष शास्त्र को अंध विश्वास कहा जा रहा है।आखिर ये अन्याय क्यों ? ऐसे कलाकारों और ज्योतिष के विद्वानों में उतना ही अन्तर है जितना चमड़ा सिलने वाले मोची और हार्ट सर्जन में है। काटना सिलना तो दोनों जानते हैं किन्तु प्राण रक्षा तो कुशल सर्जन की हर सकता है मोची नहीं। सर्जन और मोची का अन्तर तो समाज को स्वयं ही करना होगा।

     ऐसे वायरस डेंगू मच्छर की तरह हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। डेंगू मच्छर मैंने इसलिए कहा जैसे ये मच्छर साफ पानी में ही पाए जाते हैं। उसी प्रकार ऐसे पाखण्डी लोग धार्मिक गतिविधियों के आस-पास ही पाए जाते हैं। जैसे गंदगी के मच्छरों की अपेक्षा डेंगू मच्छर अधिक घातक होते हैं। उसी प्रकार आतंकवाद आदि अपराधों से जुड़े लोगों की अपेक्षा धार्मिक मिस गाइड करने वाले लोग अधिक घातक होते हैं।
    जैसे नकली घी में असली घी से अधिक सुगंध होती है उसी प्रकार ये लोग विद्वानों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा वेष धारण करते हैं। भड़काऊ वेष-भूषा, गाना बजाना, महँगे विज्ञापनों के माध्यम से बड़े-बड़े दावे करना आदि इन डेंगुओं के लक्षण हैं। इनके चेहरे से, गाने-बजाने, बोली भाषा से कहीं ज्ञान वैराग्य नहीं झलकते लेकिन ये लोग कहीं तो भागवत बाँच रहे हैं, कहीं ज्योतिष और उपाय बता रहे हैं, कहीं मन्त्रदीक्षा दे रहे हैं। कहीं अपने को ब्रह्म ज्ञानी सिद्ध करने में लगे हैं। कोई कोई अपने को योगी या सिद्ध कह रहा है। जो योग क्रियाएँ एकान्त में जंगल में एवं ब्रह्मचारियों के द्वारा ही करने योग्य कही गई हैं वे ही चैनलों पर देखने को मिलेंगी ये कल्पना ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इस युग में पैसे देकर मीडिया में कुछ भी बोला जा सकता है। मीडिया से अपने विषय में कुछ भी बुलवाया जा सकता है। ये कलियुग है सब कुछ चलता है।
    सत्संगों के नाम पर जितनी बड़ी-बड़ी रैलियाँ आज हो रही हैं। उनका यदि थोड़ा भी असर होता तो कन्या भ्रूण-हत्या, देहज के लिए हत्या, धन के लिए हत्या, जहरीले कैमिकल मिलाकर दूषित किए जा रहे फल आदि अन्य भोज्य पदार्थ, अपहरण, बलात्कार, आदि की दुर्घटनाओं में कुछ तो कमी आती, किन्तु ये  कलाकार बोलकर अपना समय पास करते हैं तो समाज सुनकर। लेकिन धर्म-कर्म को न तो ये लोग मानते हैं और ही सुनने वाले मानते हैं। दोनों ही दोनों को समझ रहे हैं। लेकिन दोनों के दोनों ने किसी जन्म के पापों के कारण एक दूसरे के साथ समझौता किया   हुआ है।
       ऐसी विषम परिस्थितियों  में धर्म का ही एकमात्र सहारा बचता है वो भी आज दूषित किया जा रहा है अब समाज किसकी ओर देखे ?

     ऐसे विषम  समय में  भी  राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान  व्यवसायिक भावना से ऊपर उठकर समाज के साथ खड़े होने को तैयार है जिसका विस्तार एवं प्रचार प्रसार तथा सफल संचालन के लिए आपके भी सभीप्रकार से  सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है। इसमें सभी प्रकार की पारदर्शिता बरती जाएगी साथ ही आपके सहयोग एवं सुझाव  आदि सादर आमंत्रित हैं ।

        राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।  


भगवान शिव वहाँ पड़ी लाशों से अशुद्ध हो ही नहीं सकते !

      शमशान में शिव का बास माना जाता है तो   

                      उनमें  अशुद्धि  कैसी ? 

          हाँ,साफ सफाई तो होनी ही चाहिए,बहुत कुछ हुआ उत्तराखंड में भगवान शिव शवों के साथ खुल कर खेले, हम सांसारिक लोग तो सहम गए संसार के सारे संबंधों को तिनके की तरह टूटते देखा गया है!हाहाकार मचा हुआ है तभी भारती सपूत वीर सैनिकों की शहादत की असह्य वेदना सहनी पड़ी देश को !भगवान शिव आपसे प्रार्थना है कि भारती दुलारे हमारे वीर सैनिकों को अपने चरणों में चिर निवास प्रदान करने की कृपा करें। एक और प्रार्थना है कि  प्रभो हमारे वीर सैनिकों को देश का पुण्य लग जाए लेकिन उनका बाल भी बाँका न हो!प्रभो,  ऐसी कृपा कीजिए !

   साथ ही सनातन धर्मावलम्बियों के जिस विशाल शिव भक्त समूह ने चाहे अनचाहे अपने पवित्र शरीर भगवान शिव के चरणों में सौंपे हैं उन समस्त शिव भक्तों को भगवान शिव के दिव्य लोकों की प्राप्ति हो ऐसी प्रभू से प्रार्थना है ।

    यहाँ वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए सबसे जरूरी कुछ और भी विशेष बातें  हैं वो ये कि सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था के साथ खिलवाड़ किसी के भी द्वारा नहीं किया जाना चाहिए!जबसे केदार नाथ धाम में यह घटना घटी है तब से कई लोगों के द्वारा  कई जरूरी या गैर जरूरी विवाद उठाए गए हैं अभी उनसे बचा जाना चाहिए क्योंकि अपनों को खोजने,पाने की लालषा में अभी पूरा देश तन्मय है, सहमा हुआ है, अपनों से बिछुड़ने की पीड़ा सह नहीं पा रहा है,इसलिए सब के मन में प्रश्न तो बहुत हैं उठेंगे भी और उठने भी चाहिए इस पक्ष में मैं भी हूँ इतनी बड़ी घटना को यों ही नहीं जाने दिया जाएगा इसमें किससे क्या चूक हुई है उसे चिन्हित जरूर किया जाना चाहिए किसकी क्या गलती है वह जिम्मेदारी जरूर तय हो मुख छिपाने से तो बात नहीं ही बनेगी!कुछ प्रश्न हमारे भी हैं-

प्रश्न- केदार नाथ धाम में भगवान शिव की पूजा कब कहाँ और कैसे हो ?

उत्तर-इस विषय में सनातन धर्म के सर्व स्वीकृत शंकराचार्य श्रद्धेय स्वामी जी महाराज इसका निर्णय लेने में सक्षम हैं उनके साथ सनातन धर्म से सम्बंधित शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान में सक्षम विद्वत सभाएँ एवं उच्चकोटि के विद्वान् भी हैं सारा सनातन जगत उनके साथ खड़ा हुआ है तभी वो हमारे जगद्गुरु हैं फिर उनके लिए गए निर्णय में किन्तु परन्तु करना ही क्यों ?फिर भी यदि किसी के मन में कोई बात है तो उसका निवेदन उनसे ही किया जा सकता है वो विचार करेंगे वो सबकी सहमति एवं शास्त्र की आज्ञा से काम करने वाले हैं। उन्हीं का निर्णय सर्व मान्य माना जाना चाहिए !

प्रश्न -वह क्या वजह थी कि अचानक एक ग्लेशियर फटा और उसी दौरान गौरीकुंड और रामबाड़ा के बीच एक बादल भी फट गया। वह क्या वजह थी कि केदारनाथ के आसपास का सबकुछ तबाह हो गया सिर्फ केदारनाथ के मंदिर को छोड़कर? 16 जून को शाम छह बजेमाता  धारी देवी को हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक आए सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था?

उत्तर -जलप्रलय हुआ जो निश्चित रुप से धारी देवी का ही प्रकोप है। भक्तों का मानना है कि अगर माता धारी देवी को नहीं हटाया गया होता तो यह हादसा नहीं होता।पिछले 800 साल से धारी देवी अलकनंदा नदी के बीच बैठकर नदी की धार को काबू में रखती थीं। 16 जून को स्थानीय लोगों के विरोध और हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ धारी देवी का मंदिर नदी के बीच से हटाया गया। 16 जून की शाम यानि तकरीबन उसी वक्त जब केदारनाथ में बादल फटा।इसलिए विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि जल प्रलय के पीछे माता धारी देवी  को हटाया जाना ही है। इस विनाशलीला के पीछे माता धारी देवी का ही प्रकोप है इसमें और किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं पाला जाना चाहिए। सरकार अपनी तथा कथित धर्मनिरपेक्षता की साख  बनाने और बचाने या दैवी आस्था को अंध विश्वास मानने वाले लोग कभी भी कहीं भी किसी भी देवी देवता के साथ खिलवाड़ करने को तैयार हो जाते हैं।  उधर राम सेतु तोड़ने से रोका जा रहा था वो नहीं तो ये सही !आखिर इस विषय में देश के धर्माचार्यों से सलाह मशविरा किए बिना सरकार को ऐसा कोई कदम उठाना ही नहीं चाहिए था न ही किसी धार्मिक व्यक्ति को इस कृत्य का समर्थन करने का शास्त्रीय अधिकार ही है!न जाने किस लिए इतना बड़ा अपराध कर बैठी सरकार जिसका दंड पूरे देश को भोगना पड़ा! यह भी सच है कि यदि माता धारी देवी ने इतना तांडव न किया होता तो उनके भक्त समस्त सनातन हिन्दू समुदाय को पता कैसे लग पाता कि उनके देवी देवताओं के साथ क्या कुछ हो रहा है!

 विशेष-माता धारी देवी की मूर्ति को नहीं हटाया गया है अपितु माता धारी देवी को  हटाया गया है किसी भी देवी देवता की मूर्ति तब तक कही जाती है जब तक प्राण प्रतिष्ठा न हो या फिर पूजी न गई हो पूजे जाने के बाद तो उसमें उसी देवी देवता का प्राण होने के कारण वह प्रतिमा साक्षात उस देवी देवता का स्वरूप ही हो जाती है जिसे स्थापित स्थान से हटाया नहीं जा सकता है!चल प्रतिष्ठा में या अचल प्रतिष्ठा में भी किसी मूर्ति को स्थापित स्थान से हटाने का अलग से शास्त्रीय विधान है किन्तु  मूर्ति स्वरूप में स्वयंभू प्रकट हुए देवी देवता को हटाया नहीं जा सकता इसी प्रकार अधिक वर्षों से पूजे जा रहे किसी भी देवी देवता को नहीं हटाया जाना चाहिए !

प्रश्न-मौसम विभाग ने अधिक वर्षा की जो भी चेतावनी दी थी उस पर अमल क्यों नहीं किया गया?  

उत्तर-मौसम विभाग को यह बात सरकार के कान में कहने की जरूरत क्या थी कि अधिक वर्षा की  संभावना है इतनी महत्वपूर्ण बात को जिसमें लाखों लोगों के जीवन का सवाल हो मीडिया के भी माध्यम से इस बात को उठाया जाना चाहिए था तब तो बहुत लोग अपने आप से भी समय रहते वहाँ निकल भी सकते थे और निकाले भी जा सकते थे। 

  प्रश्न - ज्योतिष शास्त्र से जुड़े लोगों को इस विषय में पहले से वर्षा की भविष्यवाणी क्यों नहीं करनी चाहिए थी?सरकारी मौसम विभाग के पीछे छिप कर मुख छिपाकर जीना कहाँ तक न्यायोचित है? वैसे तो ज्योतिष की भविष्य वाणी के नामपर टेलीविजन में बैठ बैठ कर झुट्ठे लोग दिन दिन भर ज्योतिषीय बकवास किया करते हैं ? 

उत्तर -चलो यह भी ठीक हुआ इसी बहाने ज्योतिष को दूषित करने वाले झुट्ठे लोगों की पहचान तो हो गई सारे समाज को अब तो समझ ही लेना चाहिए कि पवित्र ज्योतिष शास्त्र  को कैसे जमूरों ने पकड़ रखा है यदि ये इतने ही काबिल थे तो टेलीविजन पर बेकार की बकवास करने के बजाए केदार नाथ में हुई दुर्घटना की क्यों नहीं कर सके भविष्य वाणी ?

     कहाँ गए ब्रह्म ज्ञानी तमाशा राम?कहाँ हैं लुटे पिटे फिल्मी अभिनेताओं को समेटे फिरने वाले स्वामी कुमार के मंतर बीज ? कहाँ गई खटमल बाबा की पूड़ी पकौड़ी वाली कृपा? किसी को नहीं पता लगा कि क्या होने जा रहा है उत्तरा खंड में ? आखिर कहाँ गए समाज को बरगलाकर रखने वाले ये कलियुगी सिद्ध होने का पाखंड करने वाले लोग ? कहाँ गई योगगुरु कामदेव की योगशक्ति? जिस योगशक्ति के बल पर योगी लोग भूत भविष्य वर्तमान में घटने वाली घटनाओं का पहले ही पता लगा लेते हैं किन्तु जो योगी  नहीं  अपितु ढोंगी थे तो उनसे भूत भविष्य वर्तमान  जानने की आशा भी नहीं की जानी चाहिए हमें तो पहले भी नहीं थी ये बात अब समाज को भी पता चल जानी चाहिए कि आपसे धन लेने के लिए लोग साधू के पवित्र वेष में कैसे कैसे नाटक करते घूमते हैं?ऐसे लोगों से क्यों नहीं पूछा जाता कि आप यदि साधू हो तो राहत सामग्री आपके पास कहाँ से आई वैसे भी यह काम तो कोई  धनी व्यक्ति कर सकता है किन्तु जो आप को करना चाहिए था वो तो आप कर नहीं सके !राहत सामग्री बाँटने के बहाने  क्यों मुख छिपाते घूम रहे हो ?बाबाजी !!!


             

लाल किताब खतरे की निशानी! दूध कहाँ इसमें है पानी ही पानी !

   लाल रंग खतरे का प्रतीक होता है लाल किताब भी !

       ज्योतिष के जिन फलादेशों,उपायों,वास्तु के नियमों एवं उपायों का वर्णन लाल किताब के नाम पर बोला,बताया,समझाया या बका जाता है उनका हिन्दू  ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथों से कोई लेना देना नहीं होता है। कई बार तो लाल किताबी माताएँ,पिता लोग ,गुरु घंटाल नाम के स्वयंभू भाग्य विधाता टाइप के निचले तबके से लेकर गुरु जगत गुरु तक बने फिरते लोग एवं लोगिनियों ने वह सब कुछ कहना शुरू कर दिया है जिसका हिन्दू ज्योतिष शास्त्रों से कोई लेना देना नहीं है इसीलिए लाल किताब नाम का अमृत मेरी जानकारी के अनुशार देश के किसी भी प्रमाणित या सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालय के ज्योतिष पाठ्यक्रम में तो लाल किताब टाइप की किसी चीज का तो कोई जिक्र ही नहीं है। शायद यही कारण है कि प्रमाणित या सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों से पढ़े लिखे लोग ऐसी किसी भी किताब नाम ही केवल इसीलिए नहीं लेते हैं कि लोग उनके साथ भी बिना पढ़े लिखे लोगों जैसा व्यवहार करने लग जाएँगे।  

  ज्योतिष की जिन किताबों का ज्योतिष के विश्व विद्यालयीय स्लेबस में या प्राचीन ज्योतिष में कहीं  कोई उल्लेख ही नहीं है ऐसी कोई किताब है भी या नहीं, किन्तु कुछ लोगों ने कलरों पर किताबें लिखी या लिखाई हैं अथवा अपनी सुविधानुसार बनाई या बनवाई  हैं  जैसे लाल किताब ऐसे  ही लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक एक किताब बनाकर रख ली है । इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बको जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो  जाएगा। केवल उन  नामों के पीछे अमृत या मणि या यन्त्र लिखना बहुत जरूरी होता है। ये अमृत आदि शब्द इतने अधिक आकर्षक होते हैं कि किसी परेशान व्यक्ति को फाँसने में बड़ा सहयोग मिलता है क्योंकि इन नामों के प्रति भारतीय समाज में असीम आस्था होती है। संसार में लोगों को जितने प्रकार की आवश्यकता होती है उन सारी बातों के आगे अमृत या मणि या यन्त्र लिखना बहुत होता है।      जैसे -कब्ज दूर करने करने के लिए  कब्ज निरोधक मणि अथवा कब्ज हर यन्त्र  या  कब्ज हर अमृत ।इसी प्रकार  यदि आप कुंडलियों के धंधे में कूदना चाहते हैं तो कंप्यूटर से कुंडली बनाकर  उसके आगे भी  अमृत  मणि या यन्त्र लिख सकते हैं ।

    जैसे -गुलाबी  किताब अमृत ,हरी  किताब मणि ,या पीली किताब यन्त्र आदि नामों से वही पचास रूपए वाली कंप्यूटर कुंडली पाँच हजार रूपए में आराम से बिक जाती है।

        हमें तो अब लगने लगा है  कि पढ़े लिखे शास्त्रीय ज्योतिषियों के पास  मटक मटक कर झूठी तारीफों के पुल बाँधने वाली एक सुन्दर सी लड़की नहीं होती थी उसी झुट्ठी के बिना पिट गए बेचारे!क्योंकि उसे देखने के चक्कर में बड़े बड़े फँसने के बाद होश में आते हैं तब  ज्योतिषशास्त्र  को गाली  देते हैं उन्हें यह होश ही नहीं होता है वो जिस के चक्कर में पड़े थे वो वह ज्योतिष नहीं थी जिसे वे गाली दे रहे हैं।जिस चक्कर में विश्वामित्र पराशर आदि बड़े बड़े ऋषि फँस  गए वहाँ हम जैसे लोग क्या हैं ?वैसे भी ज्योतिषी के पास उस तरह की लड़की का काम ही क्या है?

   इसी प्रकार उपायों के नाम पर आधारहीन मनगढ़न्त बातों की बकवास होती है। कुत्ते, चींटी, चमगादड़, उल्लू,तीतर,बटेर, मुर्गी, मछली, हल्दी, सिन्दूर, नींबू, मिर्ची, काले उड़द, तिल, कोयला, घास गोबर,नग,नगीने,यन्त्रतन्त्रताबीजों,तथालकड़ियों,जड़ों आदि के नए नए नाम लेकर इन्हीं चीजों को ऐसे तथाकथित कुशल कारीगर लोग खाना, पहनना, ओढ़ना, बिछाना, जेब में रखने आदि बातों के लिए प्रेरित किया करते हैं। ऐसी थोथी बातों का शास्त्र में न तो कहीं आधार है और न ही प्रमाण?वहाँ तो ग्रह शान्ति नाम की वैदिक मन्त्रों की प्रमाणित पुस्तक है, किन्तु  ये सब मानने वाले सोचते हैं कि आखिर इन बातों को बताने वाले का स्वार्थ क्या है और कर लेने में हमारा नुकसान ही क्या है?
    क्या आपने कभी विचार किया है कि आपके पूर्व जन्म के कर्म ही भाग्य का रूप लेते हैं। वही कर्म अच्छे होते हैं तो सौभाग्य और बुरे होते हैं तो दुर्भाग्य के रूप में इस जन्म में भोगने पड़ते हैं। पूर्व जन्म के अच्छे बुरे कर्मों की सूचना देने का आधार ग्रह और ज्योतिष  है। जिस ग्रह से सम्बन्धित अपराध हम पिछले जन्म करते हैं इस जन्म में वही ग्रह प्रतिकूल हो जाता है। इसी प्रकार अच्छा करने से ग्रह अनुकूल होते हैं। बुरे फल की सूचना देने वाले ग्रहों को शान्त  करने के लिए वेदों में मन्त्र लिखे होते हैं जिन्हें जपने से संकट का वेग कम हो जाता है किन्तु नष्ट नहीं होता अपितु लम्बे समय तक चलता है। क्योंकि गीता में लिखा है ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’’ अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य  भोगने पड़ते हैं।
अब आप स्वयं सोचिए कौवे-कुत्ते, चींटी-चमगादड़  गोबर कोयला, आदि आपका भाग्य कैसे सँभाल सकते हैं?  

    जहाँ तक दान की बात है दान तो शास्त्र सम्मत है। दान पाने वाले का लाभ होता है जिसको लाभ होता है वह आशीर्वाद देता है। उससे पुण्य का निर्माण होता है। जो आड़े-तिरछे समय में रक्षा कर लेता है। कई बार एक गाड़ी का एक्सीडेंट होता है। कुछ लोग बच जाते हैं कुछ मर जाते हैं। यह पुण्यों का ही खेल है । क्योंकि जहाँ आपका वश  नहीं चलता वहाँ भी पुण्यों की पहुँच होती है।कई बार लोग कोढियों या विकलांगों को जो धन देते हैं वह दान न होकर सहयोग होता है।दान हमेशा अपने से श्रेष्ठ एवं सुखी को दिया जाता है।

    जहाँ तक बात नग-नगीनों की है। यद्यपि ज्योतिष  के ग्रन्थों में ग्रहों की मणियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इन्हें धारण करने से भाग्य लाभ में क्या सहयोग मिलता है?यह स्पष्ट नहीं है। वेद में इस विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आयुर्वेद स्वीकार करता है कि जिस रोग के लिए जो औषधि आयुर्वेद में कही गई है उसे पहनने से, उसे दवा के रूप में खाने से एवं उसकी भस्मादि का हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। कम से कम भाग्य की दृष्टि से तो इतना उतना स्पष्ट प्रभाव नहीं दीख पड़ता जितना मन्त्रों का है। मन्त्र जप तथा देवता की आराधना का अत्यन्त फल होता है। यह सर्व विदित एवं स्पष्ट है। वैदिक विधा में तो ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनका वेदमंत्र जपना ही एकमात्र विकल्प है।
     उपर्युक्त ऐसे लोगों में भ्रम का कारण समाज में एक बड़ा वर्ग है जिसका कोई सदाचरण नहीं मिलता, यह वर्ग अध्ययन, साधना आदि योग्यता से विहीन है। इनमें केवल नकल करने की कला होती है। ऐसे कलाकार ज्योतिष वेत्ताओं की तरह अपना रंग रूप सजा कर उन्हीं की देखी सुनी कही भाषा तथा वेष भूषा की नकल करने लगे हैं। ऐसे लोगों ने न कुछ पढ़ा है न किसी के शिष्य हैं न ज्योतिष की कोई किताब देखी है। उसका भी कारण है कि ज्योतिष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं वो इन्हें आती नहीं है।इसी लिए ये बेचारे दो चार शब्द इंग्लिश के तो अपनी बातों में बोल जाएँगे संस्कृत बोलने में जबान नहीं लौटती है बात-बात में कहते हैं कि मैंने ज्योतिष में के तो  रिसर्च की है। जो संस्कृत पढ़ा ही नहीं वो ज्योतिष में रिसर्च क्या करेगा खाक?संस्कृत न जानने के कारण ही इनके बताए हुए मंत्र भी आधार हीन, प्रमाण विहीन अत्यंत ऊटपटांग बकवास होते हैं। शब्द को शबद  कहते हैं मंत्रों की इनसे आशा ही क्यों?कुंडली बनाना नहीं सीखा इसलिए कम्प्यूटर रख लिया। वेद मन्त्र पढ़ना नहीं आता इसलिए कुत्ते पूजना अर्थात इनके उपाय सिखाते हैं। क्या यही  रिसर्च कही जाती है?

      बड़े भाग्य से मिले सुर दुर्लभ मानव जीवन का भाग्य कौआ, कुत्ता, चीटी-चमगादड़ों में  ढूँढ़ना सिखा रहे हैं। ये कागजी शेर धन बल से विज्ञापनों में छाए हुए हैं।ढोंगी जोगी की तरह ये तब तक फूलते फलते रहेंगे जब तक सरकार से पंगा नहीं लेते। समाज इनसे छला जा रहा है पवित्र ज्योतिष शास्त्र को अंध विश्वास कहा जा रहा है।आखिर ये अन्याय क्यों ? ऐसे कलाकारों और ज्योतिष के विद्वानों में उतना ही अन्तर है जितना चमड़ा सिलने वाले मोची और हार्ट सर्जन में है। काटना सिलना तो दोनों जानते हैं किन्तु प्राण रक्षा तो कुशल सर्जन की हर सकता है मोची नहीं। सर्जन और मोची का अन्तर तो समाज को स्वयं ही करना होगा।

     ऐसे वायरस डेंगू मच्छर की तरह हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। डेंगू मच्छर मैंने इसलिए कहा जैसे ये मच्छर साफ पानी में ही पाए जाते हैं। उसी प्रकार ऐसे पाखण्डी लोग धार्मिक गतिविधियों के आस-पास ही पाए जाते हैं। जैसे गंदगी के मच्छरों की अपेक्षा डेंगू मच्छर अधिक घातक होते हैं। उसी प्रकार आतंकवाद आदि अपराधों से जुड़े लोगों की अपेक्षा धार्मिक मिस गाइड करने वाले लोग अधिक घातक होते हैं।
    जैसे नकली घी में असली घी से अधिक सुगंध होती है उसी प्रकार ये लोग विद्वानों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा वेष धारण करते हैं। भड़काऊ वेष-भूषा, गाना बजाना, महँगे विज्ञापनों के माध्यम से बड़े-बड़े दावे करना आदि इन डेंगुओं के लक्षण हैं। इनके चेहरे से, गाने-बजाने, बोली भाषा से कहीं ज्ञान वैराग्य नहीं झलकते लेकिन ये लोग कहीं तो भागवत बाँच रहे हैं, कहीं ज्योतिष और उपाय बता रहे हैं, कहीं मन्त्रदीक्षा दे रहे हैं। कहीं अपने को ब्रह्म ज्ञानी सिद्ध करने में लगे हैं। कोई कोई अपने को योगी या सिद्ध कह रहा है। जो योग क्रियाएँ एकान्त में जंगल में एवं ब्रह्मचारियों के द्वारा ही करने योग्य कही गई हैं वे ही चैनलों पर देखने को मिलेंगी ये कल्पना ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इस युग में पैसे देकर मीडिया में कुछ भी बोला जा सकता है। मीडिया से अपने विषय में कुछ भी बुलवाया जा सकता है। ये कलियुग है सब कुछ चलता है।
    सत्संगों के नाम पर जितनी बड़ी-बड़ी रैलियाँ आज हो रही हैं। उनका यदि थोड़ा भी असर होता तो कन्या भ्रूण-हत्या, देहज के लिए हत्या, धन के लिए हत्या, जहरीले कैमिकल मिलाकर दूषित किए जा रहे फल आदि अन्य भोज्य पदार्थ, अपहरण, बलात्कार, आदि की दुर्घटनाओं में कुछ तो कमी आती, किन्तु ये  कलाकार बोलकर अपना समय पास करते हैं तो समाज सुनकर। लेकिन धर्म-कर्म को न तो ये लोग मानते हैं और ही सुनने वाले मानते हैं। दोनों ही दोनों को समझ रहे हैं। लेकिन दोनों के दोनों ने किसी जन्म के पापों के कारण एक दूसरे के साथ समझौता किया   हुआ है।
       ऐसी विषम परिस्थितियों  में धर्म का ही एकमात्र सहारा बचता है वो भी आज दूषित किया जा रहा है अब समाज किसकी ओर देखे ?

     ऐसे विषम  समय में  भी  राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान  व्यवसायिक भावना से ऊपर उठकर समाज के साथ खड़े होने को तैयार है जिसका विस्तार एवं प्रचार प्रसार तथा सफल संचालन के लिए आपके भी सभीप्रकार से  सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है। इसमें सभी प्रकार की पारदर्शिता बरती जाएगी साथ ही आपके सहयोग एवं सुझाव  आदि सादर आमंत्रित हैं ।

        राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।  


Tuesday, June 25, 2013

कामचोरी और घूसखोरी ने बढ़ाया अपराधियों का हौसला !

सरकारी  विभागों  में कामचोरी और घूस खोरी से     

                    परेशान है आम समाज !!!


     बंधुओं,आज भारतीय समाज में  सभी प्रकार के अपराधों की बाढ़ सी आ गई जिसमें सभी वर्ग के एक से एक दिखने में ईमानदार लगने वाले बेईमान लोग भारतीय समाज को शर्मशार कर देने वाली हरकतें बड़ी निर्भीकता पूर्वक करते जा रहे हैं। ऐसे लोग आतंकवादी और नक्सली ज़रूर नहीं हैं किन्तु  अपराधियों का निर्माण करने में उनकी बड़ी भूमिका है। एक आम आदमी को अपराधी बनने की परिस्थिति में पहुँचने के लिए ऐसे लोग जिम्मेदार जरूर हैं!इन लोगों की आत्मा इतनी मर चुकी है कि बारीकी से जाँच होने पर बड़े से बड़े अपराधों  में इनकी भूमिकाएँ मिलेंगी । अब तो लगने लगा है कि कठोर से कठोर कानून भी इनका क्या बिगाड़ सकते हैं ?अपराधियों के लिए लोग फाँसी की माँग करने  लगते  हैं  ऐसे लोगों के गंदे इरादों के सामने क्या मायने रखती है फाँसी?  

    बलात्कार,भ्रष्टाचार,हत्या,अपहरण,लूट से लेकर सरकारी कर्मचारियों में बढ़ते  घूस के प्रचलन ने सरकारी हर विभाग में कामचोरी और घूस खोरी जैसा भयंकर हाहाकार मचा रखा है।गरीब आदमी का सारा हक़ एवं अनुदान का सर्वाधिक हिस्सा सरकारी कर्मचारी और नेता या दलाल खाए जा रहे हैं सरकारी कर्मचारी दलालों के काम सुनते हैं आम आदमी कुत्ते बिल्ली की तरह दुत्कार कर भगा दिए  जाते  हैं,  उसे घंटों प्रतीक्षा में बैठाया जाता है, उसके कागजों में कमी बताकर उसे तब तक लौटाया जाता है जब तक वो घूँस का इंतजाम करके नहीं दे देता है।गरीबों के बच्चे रोते  बिलबिलाते घूमा  करते  हैं उनके हिस्से का अनुदान मक्कार लोग खा रहे होते हैं?लोन लेने तक में उन गरीबों से घूस माँगी जाती है।यह बात सबको पता है फिर भी सब कुछ चल रहा है।इनमें भी कई बार कोई ईमानदार अधिकारी-कर्मचारी मिल जाते हैं वो जब अपने विभागों की सच्चाई बताते हैं तो रोंगटे खड़े होते हैं कि क्या चल रहा है सरकारी विभागों में !इन विभागों में भी कुछ लोग अभी भी हैं जिनकी आत्मा अभी भी जीवित है वो भी अपने विभागों के कामचोर और घूस खोर लोगों से तंग हैं घुट रहे हैं किन्तु उनकी शिकायत किससे करें बहुमत उनका है ऐसे ही एक अफसर ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा -

  अधिकारी इतने मक्कार हैं कि वे बाहर निकल कर देखना नहीं चाहते हैं कि बाहर क्या हो रहा है। उनके आधीन कर्मचारी बड़ी निर्भीकता पूर्वक कहते हैं कि कहीं जा कर शिकायत कर दो कोई नहीं सुनेगा सबका हिस्सा बँधा है वो समय से पहुँच जाता है तो कोई पागल थोड़ा जो गर्मी में बाहर निकलेगा ! 

      अपराधियों के लिए लोग फाँसी की माँग करने  लगते  हैं किन्तु अपराधियों को तैयार करने वालों के लिए है कोई सजा है क्या! यदि नहीं तो कितने भी शक्त कानून बना लो क्या होगा?कितने लोगों को लटका दोगे फाँसी पर?फिर तैयार कर दिए जाएँगे अपराधी! जब तक अपराधी तैयार करने वाली फैक्ट्रियाँ बंद नहीं की जातीं! यदि ऐसा न होता तो इतने कठोर कानून और बड़े बड़े आंदोलनों के बाद भी महिलाओं के विरुद्ध अपराध रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं आखिर क्या कारण है। ऐसे लोगों के गंदे इरादों के सामने क्या मायने रखती है फाँसी?

       जो सरकारी कर्मचारी या अधिकारी समय से और ईमानदारी पूर्वक अपनी ड्यूटी नहीं निभाते हैं या घूस लेकर काम करने के आदी हो गए हैं सारी समस्याओं की जड़ ऐसे लोग हैं।सारा समाज इन्हें देख देख कर मक्कारता की ओर बढ़ने लगा है।

   इनकी ऐश आराम,कामचोरी,घूसखोरी से जुटाई गई सुख सुविधाओं को देखकर पढ़ने लिखने वाला नौजवान तो सोचता है कि मेहनत से पढ़ाई करके मैं भी ऐसा ही बनूँगा  जहाँ बिना कुछ काम के दबाव के ही सैलरी की सुविधा होगी ऐश आराम की जिंदगी होगी।इस प्रवृत्ति पर नकेल कसे बिना अपराधों पर कंट्रोल कर पाना असंभव ही नहीं सौ बार असंभव है।क्योंकि कामचोरी घूसखोरी की इनकी आदत ने ही बिना पढ़े लिखे बिना परिश्रम किए ऊँचे ऊँचे  सपने पालने वाले नौ जवानों को अपराध की ओर मोड़ ने का काम किया है उन्हें पता होता है किस प्रकार के अपराध से बचने के लिए कितने पैसे किसको देने होंगे उतने पैसों का इंतजाम करने के बाद वह किसी भी प्रकार का अपराध करने के लिए स्वतंत्र होता है! बस पर करे या ट्रेन पर या जहाज पर ही क्यों न करे अधिक से अधिक कुछ पैसे और लग जाएँगे!यही वह भावना है जिससे अपराधी पकड़े जाने के बाद भी भयमुक्त होते हैं!                       

        गरीब आदमी कैसे पाले अपने बच्चे और कैसे अपने माता पिता होने का गौरव सुरक्षित रखे ?

          कैसे पालें बच्चे ?
    बिना धन के इस दुनियाँ में कुछ भी संभव नहीं है धन जिसके पास  है ही नहीं उसे तो हर क्षण घुट घुट कर जीना होता है 
कैसे दें बच्चों को शिक्षा?
    सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने के लिए धन नहीं होता है। 
       एक मोची के लड़के को पूर्वी दिल्ली के नगर निगम के एक सरकारी प्राथमिक स्कूल के अध्यापक के बच्चे ने मोची के लड़के से कहा कि तू तो मोची का लड़का है इसलिए अछूत है।यह सुनकर उस बच्चे ने तपाक से कहा कि  मेरे  पिता जी तो काम के पैसे लेते  हैं  मेहनत से काम करते  हैं मैं अपनी आँखों से देखता हूँ। वो अपने परिश्रम से पवित्र हैं वो अछूत हो ही नहीं सकते  । मैं उन पर और उनकी कमाई पर गर्व करता हूँ । 
        हाँ,मेरी माँ मुझे तेरे साथ रहने को  जरूर रोकती है कि कहीं हमारे संस्कार न बिगड़ जाएँ! क्योंकि  तेरे पिता जी सरकारी स्कूल में मास्टर हैं।तेरे यहाँ बिना मेहनत की सैलरी आती है तुम लोग खूब खर्च करते हो।अच्छी अच्छी  चीजें खाते पहनते हो तुम्हारे पास साईकिल भी है।यदि तुम्हें देखकर ये सब खाने पहनने का शौक हमें भी लगा तो हम भी चोरी चकारी करते घूमेंगे! 
      अछूत तो  तू  है । यही कारण है कि हमारे मोची गिरी के काम से समाज इतना अधिक संतुष्ट है कि मोचियों की नियुक्ति के लिए न कभी कोई आन्दोलन होता है और न ही नियुक्ति। ऐसे ही तेरा बाप भी यदि बच्चों को पढ़ाता ही होता तो प्राइवेट विद्यालय खुलते ही क्यों?तेरा  बाप जिन पैसों से तुझे रोटी खिलाता है उनके बदले बच्चों को पढ़ाता कुछ भी नहीं इस लिए वो अछूत है किन्तु हमारा बाप हमें अपनी मेहनत की कमाई खिलाता है इसलिए वो अछूत हो ही नहीं सकता!जिस दिन प्राइवेट स्कूलों को छोड़कर बच्चे सरकारी स्कूलों में एडमीशन लेने लगें उस दिन समझ लेना कि अब तेरे बाप ने भी पढ़ाना शुरू कर दिया है और अब वह अछूत नहीं रहा !
          जो अपने कर्तव्य का पालन करते हैं वो अछूत हो ही नहीं सकते !
  कैसे दें बच्चों को धार्मिक संस्कार  ?
      आज बाबा बैरागी लोग तक धन इकठ्ठा करने के लिए पागल हुए मारे मारे फिर रहे हैं भागवत कहने वाले मुख मटकाते कमर हिलाते तबले ठोंकते फिर रहे हैं यदि केवल पैसे की भूख न होती तो बन्दर बनने की जरूरत क्या थी?जिसके पास पैसे ही न हों उसे या उसके बच्चों को कौन दे धार्मिक संस्कार ?

      कैसे करें देख भाल बच्चों के स्वास्थ्य की ?

     सरकारी चिकित्सा तो केवल कागजों पर चलती है दवाएँ बेचने के लिए ही भेजी जाती हैं यदि सरकारी चिकित्सा में दम ही होती तो क्यों बढ़ते जाते प्राइवेट अस्पताल ?

    सरकार के सारे विभागों का यही हाल है!


 

 




          

कामचोरी घूसखोरी एवं बेईमानी कई पीढ़ी नष्ट कर देती है !


 सभी प्रकार के सदाचारी अधिकारियों से निवेदन,
सभी प्रकार के शिक्षित सदाचारी लोगों से निवेदन, 
अपने देश, समाज के लिए समर्पित लोगों से प्रार्थना , आखिरअपनेदेशवासियोंकोहीअपनाक्योंनहीं                            मानने   लगे हैं अपने ही लोग ? 
     हम सभी  विद्या की देवी सरस्वती की  वरद   संतान हैं एवं भारत माता के प्राण पुत्र  पुत्री आदि हैं ।जन्म जन्मान्तर के पुण्यों  एवं इस जन्म के शिक्षा सम्बन्धी कठोर परिश्रम के परिणाम स्वरूप आपको सर्व सम्मान्य पदों तक पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।स्वस्थ शरीर है।घर परिवार कुशल है प्रतिष्ठा भी है ।माता पिता का पुण्य प्रसाद, गुरुजनों  का विद्या प्रसाद एवं पूर्वजों का आशीर्वाद ही  हम सब की सफलता  के रूप में फलित   हुआ है । मैं आप सबके के अत्यंत उन्नत  भाग्य   को  नमन करता हूँ ।
     चूँकि मैंने  भी   कुछ विषयों  से  एम.ए. एवं  बी.एच.यू. से  पी.एच. डी. की है कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं जिनमें कुछ पाठ्य क्रम में पढ़ाई भी जा रही हैं। हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि  मैं भी शिक्षा के परिश्रम से सुपरिचित हूँ। आरक्षण आन्दोलन में कुछ राजनेताओं के  द्वारा जातिगत  गालियों एवं आधारहीन आरोपों  से आहत होकर सरकार से आजीवन नौकरी न माँगने का मैंने व्रत ले रखा है।इसलिए नैतिक सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज शोधन के प्रयास में लगा हूँ।मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूँ कि हमें अपने अपने स्तर से देश के सैनिकों की तरह उत्साह पूर्वक समाज को अपनापन देने  का प्रयास करना चाहिए। 
      श्रीमान जी,देश की स्थिति पर आप सभी की तरह ही मैं भी चिंतित हूँ,किन्तु परिस्थियाँ दिनों दिन अनियंत्रित होती जा रही हैं।राजनैतिक बात ब्यवहारों ने देश, समाज एवं परिवारों  की समरसता को छिन्न भिन्न सा कर दिया है। घर घर एवं जन जन के मन में ऐसी राजनीति समाई हुई है कि लोग अपनों से परायों जैसा कूट नैतिक वर्ताव करने लगे हैं। हर किसी के पास प्रकट बोलने के लिए कुछ नहीं है लोग सब कुछ छिपाना चाहते हैं,न जाने कितना और किस बात का भय समाया हुआ है लोगों में !इसीप्रकार मोबाईल पास में है किन्तु बात किससे करें?उन्हें भय है कि कहीं कुछ छिपा हुआ खुल न जाए !इस डर से मन की बात किसी से कहना नहीं चाहते! परेशान होकर भड़भड़ाते हैं तो किसी किसी को फोन मिला लिया करते  हैं किन्तु इधर उधर की बातें करके रख देते हैं फोन!इसीप्रकार कई कई गाड़ियाँ दरवाजे पर खड़ी हैं किन्तु जाएँ किसके घर !कहीं शांति नहीं है।
     पार्कों, राहों, चौराहों, बाजारों में  अपरिचित या अल्प परिचित लोगों से कभी कभी हो जाती हैं कुछ बातें!उसमें भी कुशल डिप्लोमेटिक लोगों की तरह एक सीमा रेखा खींच कर बात करनी होती है।उनके एजेंडे के हिसाब से कुछ विषय निश्चित होते हैं,जैसे- राजनैतिक या हवा पानी के प्रदूषण की बातें,महँगाई एवं सामाजिक क्राइम सम्बन्धी चर्चाएँ,स्वास्थ्य तथा खाने पीने की बातें करते कराते बीत रही हैं जिंदगी की बहुमूल्य स्वाँसें,किन्तु मन किसी से नहीं खोला जा रहा है। समाज के मन में यह अघोषित सा भय व्याप्त  है कैसे निकाला जाए इसे ! इसी अर्द्ध चेतनता के घुटन भरे वातावरण में हो रहे हैं सब प्रकार के अपराध ! अनिच्छा से ही सही जबर्दश्ती घुट घुट कर जीते जा रहे हैं लोग!हँसने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ रही है।आज अपनों के बीच बैठकर हँसने मुस्कुराने की हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।लोग अपनों से मिलते ही कहना शुरू कर देते हैं आओ कभी घर खाना खूना खाओ,चाय पानी सानी पियो!इसी प्रकार कभी कोई घर आ जाए तो आते ही और गरम लोगे या ठंडा ?इसप्रकार खिला पिलाकर बिना कुछ बात चीत किए ही उसे यह कहकर बिदा कर देते हैं कि अच्छा ठीक है फिर कभी आना,बस इतना कहकर जोड़ देते हैं दोनों हाथ ! इस प्रकार भगा दिया जाता है आगंतुक अतिथि नातेरिश्तेदार !अतिथि पूजन वाले देश में क्या यही अतिथि सत्कार है!ऐसा क्यों समझा गया कि वह केवल खाने पीने के लिए ही यहाँ आया था।हो सकता है कि वह भी अपने मन की कोई बात ही आप से कहकर अपना मन ही हल्का करने आया हो !
    इसी प्रकार तिथि त्योहारों में भी यही मनहूसियत छाई हुई है ।शादी विवाहों के कार्यक्रम आयोजित करने वाले लोग पैसा तो अपनी औकात से अधिक लगा रहे होते हैं शादी में ! लेकिन जरा जरा सी बात पर ऐसे  चिड़ चिड़ाने लगते हैं।मानों खिलापिलाकर समाज का ऋण उतार रहे हों !
      जिसके भरोसे  अपना काम आगे भी चलना होता है या जिसके पास अधिक पैसा होता है या नेता ख़ूँटा, अथवा अधिकारी टाइप का कोई भारी भरकम आदमी, जिसे शादी पर बुलाने के लिए बाप बेटों ने औकात लगा रखी होती है बस उसकी प्रतीक्षा हो रही होती है उसी को फोन पर फोन हो रहे होते हैं उसी के विषय में चर्चा हो रही होती है उसी के साथ केवल मोबाईल पर बात हो रही होती है,पिता पुत्र मिला रहे होते हैं बस उसी को फोन!!!उसे ही रास्ता बताया जा रहा होता है कि आपको कहाँ से कैसे कैसे आना है!उसके आने पर ही सारा प्रोग्राम प्रारंभ होता है बस उसी के साथ फोटो खिंचवाई जाती हैं।उसके अतिथि सत्कार को देखकर वर बिचारा मन ही मन परेशान होता है वह मन ही मन सोच रहा होता है कि शादी हमारी और स्वागत इनका !!!खैर, उसी  बलिपशु से वर बधू को आशीर्वाद दिलवाया जाता है, जब किसी शादी समारोह में ऐसे किसी बलिपशु के पीछे पीछे घर के सारे सदस्यों को घूमते देखा जाता है तो लोग समझ ही लेते  हैं कि ये तो कँगले हैं इसी बलिपशु की कमाई के सहारे जीते हैं ये लोग! शादी के बाद भी इन्हीं के गले पड़ेंगे ये सारे पिता पुत्र आदि सारा परिवार !!!इसलिए इधर उस बलिपशु के तलवे चाटने में पूरा कुनवा लगा है उधर आए हुए बाकी व्यवहारियों  से मिलने वाला घर का वहाँ कोई होता नहीं है तो व्यवहारी लोग आपस में ही मिल जुल कर लिफाफा पकड़ाते और चले जाते हैं खाएँ न खाएँ कहाँ कोई है कोई पूछने वाला?आज हम लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं। 

    बच्चे के जन्म से लेकर अब तक आशा लगाकर बैठे  दादा दादी का आशीर्वाद मारा मारा फिर रहा होता है!दादा दादी की तबियत खराब बताकर उन्हें नींद की गोली देकर सुला दिया जाता है उन्हें क्या पता कि आखिर उन्हें चक्कर क्यों आ रहे थे?नींद की गोली कोई बता कर थोड़े ही दी जाती है। 

     बुआ बहन बेटी टाइप की घर की बेटियों से  कौन मिलना चाहता है ? उल्टा वही मिलकर साथ लाई अपने अपने पतियों को समझा देती हैं कि सारा काम यही सँभाल रहे हैं इसलिए बहुत ब्यस्त हैं।खैर,क्या कहें! पहले तो लोग खाना पीना स्वयं बनाते थे फिर भी पूछ लेते थे एक दूसरे के सुख दुःख हाल समाचार,एवं  खाने पीने के लिए आदि आदि। आधुनिकता के चक्कर में कहाँ पहुँच रहे हैं हम लोग ?          क्या  पहले लोग कमाते खाते नहीं थे आज अपहरण करके फिरौती वसूलने या घूस लेने की जरूरत क्यों पड़ती है क्या आज अधिक खाया जाने लगा है ? सच्चाई तो यह है कि आज आधुनिकताके नाम पर गंध खाया जाने लगा है!

      क्या पहले शादियाँ नहीं होती थीं ?आज बस इतने लिए मित्रता के नाम पर मूत्रता के लिए पागल हो रहा है समाज!इसे प्यार कहा जा रहा है ये दुर्भाग्य है कि मनुष्य योनि प्राप्त करके भी चिंतन केवल सेक्स का !यह तो पशु योनि में भी संभव था।ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया है इसमें ईश्वर हमसे कुछ और कराना चाह रहा होगा जो पशु योनि में संभव न हो सकता था ।आधुनिकता के नाम पर छोटी छोटी पर अत्याचार !ये अपने देश की संस्कृति तो न थी इस देश की तो पहचान ही संयम से थी!क्या हो गया है अपने दुलारे भारत वर्ष को!फैशन ने बरबाद कर दी अपनी संस्कृति! पहले हम ऐसे तो न थे !

  पहले लोग  सेक्स और निजी सुख सुविधाओं से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए भी कुछ करते  थे  अब सारी जिंदगी ही मुखता(खाना)  से मूत्रता(सेक्स) के बीच समिट कर रह गई है इसके अलावा किसी के लिए कोई दायित्व महत्वपूर्ण बचा ही नहीं है क्या हो गया है अपने इस भारतीय समाज को ?

        आखिर  आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बढ़ते हुए अपराधों को कैसे रोका जाए कैसे निपटा जाए अपराधियों से ? बच्चियों के साथ बलात्कार जैसे जघन्यतम अत्याचारों से कैसे निपटा जाए ?क्या इनका समाधान फाँसी जैसे कठोर कानूनों से हो सकता है?यदि नहीं तो और दूसरा रास्ता क्या है ?
       दूसरा रास्ता हो सकता है धर्म एवं चरित्रवान धार्मिक  लोगों का सहारा किन्तु बचे ही कहाँ हैं आज चरित्रवान धार्मिक लोग !जो हैं भी उनकी संख्या अत्यंत कम है उनके पास साधन भी सीमित होते हैं। बिना पाप के पैसा और बिना पैसे के प्रचार प्रसार कैसे हो।इसलिए बचे खुचे चरित्रवान धार्मिक लोगों के साथ साथ हमारी प्रार्थना सभी शिक्षित एवं चरित्रवान लोगों से है कि हमारे तुम्हारे पूर्वजों का यह देश है इसकी संस्कृति हमारे तुम्हारे सहारे छोड़कर गए हैं वे महापुरुष !क्या हम तुम मिलजुलकर नहीं बचा सकते इसकी पावन परम्पराएँ !!! 
    धार्मिक  लोगों  की आधुनिक फसल में त्याग तपस्या, चरित्र, संयम, साधना, विद्या  आदि हो न हो किन्तु किसी स्त्री को लड़का कैसे होगा इसकी दवा से लेकर सारा कर्मकांड जितना बाबाओं को पता होता है उतना बेचारे गृहस्थों को कहाँ पता होता है उन्हें एक गृहस्थी में ही रहना होता है उनके साधन एवं अनुभव सीमित होते हैं।बाबाओं के अन्दर तो लड़का पैदा करने का अथाह ज्ञान विज्ञान भरा है कई बाबा तो इसी गलत फहमी  में अरबों खरबों पति व्यापारी हो गए आज केवल राजनैतिक दखल बनाने के लिए काले धन  के मुद्दे की टोकरी सिर पर लिए घूम रहे हैं ताकि कोई उन्हें चोर न समझ ले !किन्तु समझने वाले समझ चुके हैं कि बाबाओं के पास धन कैसा,बाबाओं का व्यापार कैसा ? और यदि बाबाओं के पास धन भी है व्यापार भी है और राजनैतिक दखल भी है तो साधू किस बात के ?किन्तु कलियुग है इसमें तो सबकुछ चलता है!अक्सर गधे सिंह की खाल ओढ़े घूम रहे हैं !
      अब तो अधिकांश गुरु, जगदगुरु ,महंत ,श्री महंत ,मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, साधु , संत ,कथा बाचक ,पंडित , पंडे ,पुजारी टाइप  के आम लोग अब आस्‍था को ताक पर रखकर  सिर्फ कमाई करने में जुट गये हैं,इसके लिए उन्हें कितना भी बड़ा पाप क्यों न करना पड़े किन्तु पैसे तो चाहिए ही !
      इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुक पाने  में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

     अध्यापक वर्ग की स्थिति यह है सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती इस विषय में कोई अधिकारी कर्मचारी नियंत्रण करने को तैयार ही नहीं है क्या उसका यह दायित्व नहीं बनता कि वो अपने तथा कथित शिक्षक शेरों से पूछे कि तुम्हारे स्कूलों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों के बच्चों से पीछे क्यों रहते हैं तुम चालीस से पचास हजार की सैलरी किस बात की लेते हो?यदि तुम पढ़े भी नहीं हो पढ़ा भी नहीं सकते हो और स्कूल में ड्यूटी भी नहीं दे सकते हो!रोज तुम्हारा जरूरी काम लगता है।किसी सरकारी स्कूल में एक अध्यापक के हिस्से में यदि पचास बच्चे आते हैं उनकी शिक्षा के प्रारम्भिक काल में जिस अध्यापक की लापरवाही करने के कारण वे पढ़ नहीं पाए और अपराधों की ओर मुड़ गए उनके समस्त आपराधिक जीवन के लिए उस प्राथमिक अध्यापक को जिम्मेदार मानकर उसे ही दण्डित किया जाए !तो अभी अपराधियों की संख्या में कमी आने लगेगी ! सरकारी शिक्षकों से पूछा जाना चाहिए कि यदि   तुम्हारे यहाँ भोजन भी बँटता है पैसे भी दिए जाते हैं।फीस या एडमीशन फीस भी नहीं ली जाती है और जनता की गाढ़ी कमाई में से टैक्स रूप में प्राप्त की गई धनराशि से पचासों हजार महीने की सैलरी तुम्हें दी जाती है !उन शिक्षकों से  यह क्यों  नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर आम जनता का विश्वास आप  क्यों नहीं जीत पा रहे हैं ?असक्षम अभिभावक आर्थिक मज़बूरी   में अपने बच्चे को आपके यहाँ क्यों पढ़ाता है प्रसन्नता से क्यों नहीं?आपकी शिक्षा अधिक है आप ट्रेंड भी हैं फिर भी प्राइवेट स्कूलों से आप क्यों पिटते जा रहे हैं! आपकी उच्च शिक्षा एवं ट्रेंड होने का क्या लाभ हुआ समाज को? सरकारी शिक्षकों से क्या यह भी नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर आप लोगों के अपने बच्चे क्यों नहीं पढ़ते हैं सरकारी स्कूलों में ?यदि वो न मानें तो एक बार इस बात की ईमानदारी पूर्वक जाँच करा ली जाए! तो  पता  चल जाएगा कि शिक्षकों की ऐसी लापरवाही से बिगड़ने वाले बच्चे आगे क्या क्या अपराध  कर सकते हैं! आखिर पढ़ें न पढ़ें भूख तो उन्हें भी समय से लगेगी ही और भी सारी जरूरतें उनकी भी सबकी तरह ही होंगी।जैसे स्कूल में बच्चों को बिना पढ़ाए यदि शिक्षक ख़ुशी ख़ुशी सैलरी लेकर दिन बिता सकते हैं।

    इसीप्रकार सरकारी अस्पतालों के डाक्टर प्राइवेट नर्सिंग होमों से अपने अस्पताल को पिटते देखकर भी ख़ुशी ख़ुशी सैलरी उठा सकते हैं।समाज की निगाहों में प्राइवेट कोरियर सुविधा से पिट चुका डाक विभाग,इसीप्रकार  प्राइवेट मोबाइलों से कम लोकप्रिय सरकारी दूरभाष सेवाएँ हैं किन्तु इन सभी विभागों के सरकारी कर्मचारियों की सैलरी प्राइवेट कर्मचारियों की सैलरी के मुकाबले बहुत अधिक होती है क्या इन्हें काम न करने का इनाम दिया जाता है ?आखिर प्राइवेट  की अपेक्षा अधिक सैलरी लेकर भी समाज का विश्वास क्यों नहीं जीत पा रहे हैं हर विभाग के सरकारी कर्मचारी ?

       ये प्रमाण है इस बात का कि वो अपने काम के प्रति उतनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं जितनी निभानी चाहिए। ऐसे लोगों से ही प्रेरित होकर शरारती तत्व सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि जब भगवान या कानून ऐसे सरकारी कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता है तो हमारा भी कुछ नहीं बिगड़ेगा और करते हैं ठोंक कर अपराध !आखिर वो अपना आदर्श शिक्षकों को न मानें तो किसे मानें!जब शिक्षक ही काम चोर होंगे तो बच्चे कैसे होंगे? प्राइवेट स्कूलों में हर कोई अपने बच्चे को पढ़ा नहीं सकता सरकारी स्कूलों में यदि पढ़ाई नहीं होगी तो खाली दिमाग कुछ भी कर सकता है!वह सहने के लिए समाज को हमेशा तैयार रहना होगा!इन बच्चों का भविष्य बिगाड़ने वाले शिक्षकों के साथ साथ समाज के वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो ऐसा देखते हुए भी सह रहे हैं ।किसी कवि ने लिखा है कि 
    जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।।
         शिष्याओं के शीलहरण जैसी मटुकनाथों की  निंदनीय निरंकुश नियति  को देखकर लगता है कि आखिर कौन सत्प्रेरणा देगा  समाज को जब शिक्षकों के द्वारा संस्कृति पर ऐसे हमले किए जाएँगे !!!ऐसे शिक्षकों की चारित्र्यिक बदमाशी को देखकर इनसे प्रभावित हुआ युवा वर्ग इसी रास्ते पर अग्रसर होता जा रहा है और तबसे प्रेम प्यार नाम के चारित्र्यिक पतन की घटनाएँ अक्सर सुनाई पड़ती हैं। यदि शुरू में ही मटुक नाथों पर लगाम लगाई गई होती तो बलात्कार की घटनाएँ इतनी बढ़ी नहीं होतीं। शिक्षकों के प्रति समाज के मन में सम्मान का भाव होता है यदि शिक्षक ही ऐसा निंदनीय आचरण करेंगे तो समाज के मनमें  विकार होना स्वाभाविक ही है। 
   इसी प्रकार प्यार के खेल में भी जब कोई लड़की किसी लड़के को अपना शरीर सौंपती है तो इतनी आसानी से नहीं बन जाते हैं ये रिश्ते! वहाँ भी सौ प्रतिशत अपराध की सम्भावना रहती है इसके पहले दोनों ही अपने अपने स्तर से इस दिशा में कई कई जगह कई कई बार सफल या असफल प्रयास करके देख चुके होते हैं तब कहीं जाकर एक जगह सेटिंग बन पाती है।पहला पहला तरबूज काटा जाए और वो लाल निकले इसकी गारंटी कहाँ होती है वैसे भी ऐसा भाग्य कहाँ देखा जाता है? यदि भाग्य इतना ही प्रबल होता तो लव के नाम पर सेक्स के लिए पशुओं की तरह घर के अपनों से बगावत करके किसी के पीछे पीछे झाड़ी, जंगलों, पार्कों,पर्किंगों,कूड़ादानों के पास लुक छिप कर क्यों मिलना पड़ता?उन्हें भी इंसानों की तरह ससम्मान विवाह का आनंद मिला होता!
       इस प्रेम की कठिन प्रक्रिया से गुजरते गुजरते पटते पटाते हुए झूठ साँच बोलते बोलते अक्सर प्रेमी प्रेमिका पीछे कई कई लोगों को घायल कर चुके होते हैं!किसको कितने घाव मिले हैं वो उन्हें ही पता होगा जिन्होंने भोगी होगी वह पीड़ा! उनमें से कई तो ऐसे भी होंगे जो न किसी से कह सकते होंगे और न ही सह सकते होंगे वो अपनी परेशानी को कहाँ कैसे रियक्ट कर रहे होंगे किसी को क्या पता ?इसकी भी क्या गारंटी कि वो कोई अपराध नहीं करेंगे!इस प्रतिशोध की ज्वाला को कोई कैसे कहाँ तक आगे बढ़ा ले जाएगा  पता नहीं ?
      इतिहास में भी ऐसे प्रकरणों में बड़े बड़े खून खराबा हुए हैं बड़े बड़े राजबंश उजड़ गए!एक दो चार नहीं हजारों लाखों सैनिक अपने आका राजाओं की प्रेम नाम की ऐय्यासी पर शहीद होते देखे गए हैं। इसलिए यह प्रेम नाम की ऐय्यासी का खेल ख़त्म होने से पहले फिलहाल हमें तो सभी प्रकार के अपराध ,अपहरण, हत्याएँ,नशे का कारोबार रुकते नहीं दिखता!सरकार के बश का होता तो अब तक रोक लेती !हाँ,यदि प्रेम नाम के खिलवाड़ पर प्रतिबन्ध लगे तो सभी प्रकार के अपराधों में कमी आएगी यह बात मैं पूर्ण विश्वास से कह सकता हूँ।यद्यपि विवाह पूर्व जिसका  जिससे सेक्स होगा उसे पति पत्नी माना जाएगा इस बात में भी दम है इससे भी अपराध घटेंगे किन्तु यहाँ दो जगह दिक्कत आएगी एक तो जो छोटी छोटी बच्चियों के साथ अत्याचार हो रहे हैं उनके विषय में अलग से कुछ सोचना होगा दूसरी बात जो अपने जीवन साथी को जब पसंद नहीं करेगा तब वह उसे अपने जीवन से अलग करने के लिए  सबकुछ कर सकता है  जिसे अपराध कहते हैं इस विषय में भी अलग से कुछ सोचना होगा!
      प्रारंभ में तो यह संबंध समझौता पूर्वक चलता है।चूँकि इस तरह के संबंधों की नींव ही सम्पूर्ण रूप से झूठ पर आधारित होती है दोनों ने एक दूसरे से खूब झूठ बोला होता है जैसे जैसे सम्बन्ध आगे बढ़ते हैं एक दूसरे की सच्चाई भी एक दूसरे के सामने आने लगती है।इसलिए जब स्वार्थ बाधित होने लगता है तो लड़के लड़कियाँ किनारा करने लगते  हैं,ऐसे समय लड़कियाँ बलात्कार का केस लगाने की धमकी देती हैं जबकि लड़कों ने उनके साथ अश्लील सीडी बना रखी होती है इसप्रकार जब दोनों ही दोनों को धमकी देने लगते हैं तब तक दोनों के घर वालों को दोनों के विषय में कुछ पता नहीं होता है अक्सर इस मोड़ पर पहुँचे जोड़े का बिना अपराध के सकुशल वापस पीछे लौट पाना बहुत कठिन होता जाता है।
     इसी प्रकार किसी ऐसे ही जोड़े के बीच जब कोई तीसरा या तीसरी आ जाए तब जोड़े के दोनों  सदस्यों को एक दूसरे के साथ एकांत में घूमना, फिरना, बैठना, उठना बिलकुल बंद कर देना चाहिए न जाने कौन किसका कब कहाँ गला दबा दे! ऐसी परिस्थिति में एक दूसरे पर विश्वास करना अत्यंत कठिन एवं दुखद होता है। महाभारत में कहा गया है कि

      परभावानुरक्ता  हि नारी ब्यालीमिवस्थितम्||
                                                              -महाभारत
    अर्थात किसी  जोड़े का कोई सदस्य जब किसी और पर आशक्त या फिदा हो जाता या जाती है ऐसे पराशक्त लड़के या लड़कियों को सर्प एवं सर्पिणी मानकर इन पर भरोसा कभी नहीं करना चाहिए।

   ऐसे समय शिक्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है।  हर किसी को चारित्रिक संयम सदाचार आदि गुणों का संग्रहअपने जीवन में स्वयं करना चाहिए।शिक्षा ली ही इसीलिए  जाती  है यही शिक्षा का फल भी है जो लोग पढ़ लिख कर भी बलात्कार करते हैं, बेलेन्टाइन डे मनाते या तथाकथित प्यार का खेल खेलते घूमते हैं। ये उनके शिक्षित होने का फल नहीं है, क्योंकि यदि आप किसी की बहन बेटी के साथ प्यार का खेल खेलेंगे तो कोई आपकी बहन बेटी को भी अपनी हबस का शिकार बनाएगा।यदि उसको अपने  गुणों से नहीं प्रभावित कर पायेगा तो दुर्गुणों से करेगा,बलात्कार करेगा।आखिर उसे भी अपनी बहन बेटी के साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला जो लेना है।बहन बेटी की इज्जत को वो अपने स्वाभिमान या आत्म सम्मान से जोड़कर देखता है।ये भारत वर्ष है यहाँ अभी भी लोग इतने बेशर्म नहीं हुए हैं कि बलात्कार और बेलेन्टाइन डे के नाम पर अपनी  बहन बेटी की इज्जत के साथ खिलवाड़ होने दें । ये भारत वर्ष का इतिहास रहा है इसी भावना पर हजारों राजा महाराजा शहीद होते  चले गए।हजारों रियासतें तवाह हो गईं।

    यह हर किसी को  अपनी  बहन बेटी के साथ होता देखकर बहुत  बुरा लगता है।ऐसी स्थिति में लोग मार पीट से लेकर हत्या तक सब कुछ कर देना चाहते हैं।ऐसी परिस्थिति में एक व्यक्ति की चारित्रिक  गड़बड़ी  के कारण  बलात्कार से लेकर  हत्या तक सब कुछ तो हो गया।ऐसी बदले की भावना के विरुद्ध फाँसी जैसी सजा का भी कोई भय नहीं होगा।इसलिए यह मानना चाहिए कि  विद्या का फल इतना डरावना कभी हो ही नहीं सकता है। विद्या तो सुख शांति संयम सदाचार आदि गुणों से संपन्न करती है।विद्या तो सेक्स अर्थात बासना पर आत्म नियंत्रण  की क्षमता प्रदान करती है।

       अतएव सबसे प्रार्थना है कि हमें अपराधियों से अधिक उनके आका  भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करके हमें मिलजुल कर उन पर लगाम लगानी होगी उन भटके हुए लोगों को प्रेम पूर्वक समझाना होगा कि यह देश और ये देश वासी उनके अपने ही हैं उनसे भी अपने पन का ही व्यवहार करें ।