Tuesday, August 15, 2017

अपराधियों की अपराध की कमाई जाती कहाँ है ?लाखों रूपए की लूट ! लूटे हुए सोने चाँदी आभूषण !

अपराधियों की अपराध की कमाई जाती कहाँ है ?
    लाखों रूपए की लूट के आरोप जिन पर लगाए जाते हैं वे तो भूखे नंगे ही दिखाई पड़ते हैं उनके घरों एवं घर वालों की हालत खस्ता होती है आखिर कहाँ जाते हैं वे लूटे हुए सोने चाँदी आभूषण !दूसरी ओर बड़े बड़े नेताओं अधिकारियों के पास आय से अधिक होने वाली सम्पत्तियों के स्रोत पता नहीं चलते कहीं उनकी संपत्ति इकट्ठी करने के भूख ही तो इन बेचारे गरीबों को अपराधी तो नहीं बना देती है नेताओं और अफसरों की सम्पत्तियों की इस दृष्टि से भी जाँच की जानी चाहिए ताकि बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाई जा सके !
     बड़े बड़े नेताओं या बड़े बड़े अधिकारियों के यहाँ से चोरी गई चीजें मिल भी जाती हैं भैंसें तक मिल जाती हैं जिनमें कोई खास पहचान नहीं होती है उनके अपराधी भी पकड़ जाते हैं क्यों ? अपराधियों और सरकारी मशीनरी में कोई साँठ गाँठ होती है क्या ?जिसे वे पकड़ना चाहते हैं वो मिल जाता है अन्यथा .... !
   अपराधी जो धन कमाते हैं वो जाता  कहाँ है उनके घर में दिखता नहीं शरीर पर कुछ होता नहीं बच्चे फटीचर बने रहते हैं फिर वो धन उनके आका लोग ही तो नहीं खा जाते हैं बड़े बड़े नेताओं और अधिकारियों की अकूत सम्पत्तियों के संग्रह में अपराधियों का कितना योगदान है इस पर भी सघन जाँच की जानी चाहिए !
    अपराधी लोग आपराधिक कमाई करने के बाद भी प्रायः गरीब ही बने रहते हैं किंतु अपराधियों को पकड़ने के लिए जिम्मेदार अधिकारी मालामाल हो जाते हैं क्यों ?कहाँ से आती हैं उनके पास इतनी संपत्तियाँ !इसमें सरकार सम्मिलित नहीं है तो जाँच कराए निकलेंगे अपराधों के बड़े बड़े मगरमच्छ !यदि सरकार भी हिस्सा लेती है तो चुप बैठे भ्रष्टाचार के विरुद्ध शोर क्यों मचाती है सरकार ?
     जिसकी जब नौकरी लगी थी तब कितनी संपत्ति थी उसके पास और आज कितनी है ?सैलरी कितनी मिलती है ?बाकी संपत्ति  आई कहाँ से ?उसकी जाँच हो और दोषियों पर कार्यवाही की जाए !निर्दोष कर्मचारियों को प्रोत्साहित किया जाए !
   अवैध संपत्ति प्रकरण में जनता मुख्य दोषी है ही नहीं फिर क्यों धमकाया जा रहा है जनता को !
    अवैध संपत्तियों से या अवैध काम काज से सबसे अधिक पैसा कमाया है उसे रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों ने उन्होंने अकूत संपत्तियाँ कमाई हैं इस अवैध कारोबार से !सरकार जाँच करवाकर ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों  की   संम्पत्तियाँ जप्त क्यों नहीं करती है साथ ही आज तक दी गई सैलरी उनसे वसूले सरकार !उसके बाद अवैध सम्पत्तियों के लिए जनता को दोषी माना जाए तब हो जनता पर कार्यवाही !ऐसे प्रकरणों में जनता मुख्य दोषी है ही नहीं फिर क्यों धमकाया जा रहा है जनता को !
   सरकार चाह ले तो अपराध रोके भी जा सकते हैं किंतु अपराध रुकने से जिनका घाटा होने लगता हैं वे रुकने ही नहीं देते !अपराधी बेचारे क्या करें !एकबार संग साथ में पढ़ कर धोखे से अपराधियों की श्रेणी में नाम चढ़ गया तो अब तो करने ही पड़ेंगे अपराध ,अपने लिए न सही तो भाड़े के अपराध तो करने ही पड़ेंगे उन्हें अन्यथा भोगेंगे !गरीबों का साथ कब देता है कानून !चाकू खरभुजे पर गिरे या खरभूजा चाकू पर कटेगा खरभूजा ही ऐसे ही सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों  से कानूनी मदद की आशा ले कर जाने वाले गरीब लोग या तो निराश होकर लौटते हैं या फिर अपराधी बनने का संकल्प लेकर !
       अब तो देश का बच्चा मानता है कि जिस काम के लिए जो अधिकारी रखे गए हैं वो काम इसलिए नहीं होता है कि काम के स्थानों पर आराम के इंतजाम सरकार ने इतने अधिक करवा रखे हैं कि आफिस पहुँचते ही नींद आने लग जाती है|संतरी कह देता है कि साहब मीटिंग में हैं !जनता उनसे कुछ पूछने की हैसियत नहीं रखती और सरकार के पास इतना पता करने का न समय है न जरूरत !इसलिए सरकारी कार्यालय आजादी से आजतक सोते चले आ रहे हैं !कर्मचारियों की सैलरी पेंसन  सरकार खाते में पहुँचाती जा रही है |सरकार का निगरानी तंत्र इतना नाकाम है कि जो बिल्कुल काम न करे उसकी भी शिकायत सरकार तक कैसे पहुँच पाएगी और कौन पहुँचा पाएगा !   
     जिस कम्प्लेन  की जाँच करने कर्मचारी जाते हैं वहाँ जो जो घूस देता है वो निर्दोष होता है और जो नहीं देता है सारा दोष उसी के मत्थे मढ़कर उसी के विरुद्ध भेज देते हैं रिपोर्ट !
      रही बात सरकारों में उच्च पदों पर बैठे नेता लोग उन्हें केवल दो जिम्मेदारी सँभालनी होती हैं पहली मीडिया में कुछ अच्छा बोलने के लिए जिससे जनता का ध्यान भटकाया जा सके तो दूसरा गरीबों की भलाई करने के लिए हो हल्ला मचाया जा सके क्योंकि वोट काम करके नहीं अपितु दूसरों को बदनाम करके आसानी से लिया जा सकता है | जनता की आँखों में धूल झोंककर ही लेना होता है वोट !उसके प्रयास में संपूर्ण समय लगे रहते हैं नेता लोग !
   आजादी के बाद आजतक सरकार के नाम पर ऐसे ही खेल खेले जा रहे हैं !काम के लिए जनता पार्षद के पास जाती है विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री तक सबके पास जाती है जो मिलता है उससे मिल लेती है जो नहीं मिलता है वहाँ से लौट आती है !जनता के काम करने के लिए अधिकारी कर्मचारी स्वतंत्र होते हैं वो काम करें न करें !जनता का दबाव वो क्यों मानेंगे आखिर अधिकारी हैं जनता की क्या औकात जो उन पर दबाव डाले और सरकार दबाव डालेगी क्यों ?उसका अपना तो कोई काम रुकता नहीं है | वैसे भी सरकार की नैया डुबाने तारने वाले वही होते हैं | 
    आजादी के बाद आजतक इसी गैरजिम्मेदारी के साथ घसीटा जा रहा है लोकतंत्र किसी विभाग में कोई जिम्मेदारी समझता ही नहीं है | सरकार तो सरकार है सरकार जनता के कामों से सरोकार रखे तो सरकार किस बात की !प्रधानमंत्री जी तरह तरह की घोषणाएँ तो किया करते हैं योजनाएँ बना बना कर परोसा करते हैं किंतु उनकी बात उनके अधिकारी कर्मचारी मानते कितनी हैं इस सच को तो केवल जनता ही  समझती है जिसे हमेंशा फेस करना पड़ता है ! वो यदि अपनी पीड़ा बताना भी चाहे तो बोलने बताने के लिए माध्यम बहुत हैं  किंतु शिकायत कहीं भी भेजो तो न कार्यवाही होती है और न ही जवाब आता है | न जाने सरकार कहाँ रहती है और कितनी जागरूकता से काम कर रही है जो जिनके लिए काम कर रही है उन्हें ही बताना पड़ रहा है कि हम काम कर रहे हैं |
     सुना है कि सोशल साइटों में तो केवल सरकार एवं सरकार में बैठे लोगों की निंदा करने संबंधी बातों पर ही ध्यान दिया जाता है उन्हीं का संग्रह किया जाता है और उन्हीं पर कार्यवाही की जाती है बाकि अपनी जरूरत की बातें कोई कितनी भी लिखता रहे ध्यान ही नहीं दिया जाता है न कोई जवाब आता है |  तब से मैंने भी लेटर लिखने बंद कर दिए पहले तो मैं भी लिखा करता था किंतु सच्चाई समझने के बाद मन ही नहीं हुआ लिखने का | रही बात जनता की तो जनता बेचारी तो बनी ही भटकने के लिए है भटका करती है सरकार के इस द्वार से उस द्वार तक शायद कहीं उसकी भी आवाज सुन ली जाए किंतु जनता को जीवित मानने वाले हैं कितने नेता अधिकारी कर्मचारी लोग !!   



Monday, August 14, 2017

श्री कृष्ण जन्माष्मी आज है सरकार मना रही है कल !वैसे भी जहाँ नदी न हो वहीँ पुल बनाती हैं सरकारें !

    जब अष्टमी नहीं होगी तब होगी सरकारी जन्माष्मी  !मतलब साफ है जहाँ नदी न हो वहीँ पुल बनाने वाली संस्कृति !
  सोमवार को सायं 5.40पर अष्टमी लगेगी और मंगलवार को दिन में 3.26 बजे समाप्त हो जाएगी उसके बाद नवमी लग  जाएगी !मंगलवार की रात्रि में नवमी लगी होगी जब जन्माष्टमी मना रहे होंगे सनातन संस्कृति को न जानने  वाले लोग ! उदया  तिथि के नाम पर ऐसा पाखंड करने वालों को सोचना चाहिए कि जन्म और मृत्यु में तात्कालिक तिथि ही मानी जाती है जिस हिसाब  जन्माष्टमी आज ही है कल नहीं !
  

Saturday, August 12, 2017

चिकित्सा (कॉपी)

              चिकित्साशास्त्र के लिए प्रबल सहायक है 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) !
       
 शरीर और संसार विज्ञान -
     यह शरीर और संसार दोनों ही पंचतत्वों से निर्मित हैं पृथ्वी वायु अग्नि जल और आकाश !इसमें पृथ्वी और आकाश को स्थिर होने के कारण इन्हें अलग रख कर वायु अग्नि जल अथवा  वायु सूर्य और चंद्र ये तीन ही हैं जिनसे प्रकृति समेत सारे ब्रह्मांड का निर्माण होता है तथा मनुष्य समेत सभी जीवों का निर्माण होता है इन्हीं तीनों को आयुर्वेद की भाषा में वात पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है |इन तीनों के उचित अनुपात में बने रहने से संसार से लेकर शरीरों तक वायु सूर्य और चंद्र का समुचित संतुलन बना रहता है जिससे कि अधिक आँधी वर्षा बाढ़ भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भय नहीं रहेगा तथा ये संतुलन यदि शरीरों में बनाए रखा जाए तो संभावित रोगों  की संभावनाएँ नहीं रहती हैं !
    विशेष बात ये है कि वात  पित्त और कफ आदि ये तीनों सूर्यचंद्रादि ग्रहों के स्वरूप ही हैं  सूर्यचंद्रादि ग्रहों की गति युति आदि से संबंधित पूर्वानुमान महीनों वर्षों पहले गणित के द्वारा लगाए जा सकते हैं इस सिद्धांत के अनुशार तो वात  पित्त और कफ आदि से संबंधित प्राकृतिक या शारीरिक असंतुलन का पूर्वानुमान भी इसी गणित के द्वारा ही महीनों वर्षों पहले लगाया जा सकता है इस सिद्धांत के द्वारा ही सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं ,सामूहिक रोगों, शारीरिक रोगों एवं मनोरोगों का पूर्वानुमान महीनों वर्षों पहले लगाया जा सकता है !
      इसके अलावा भी समय का संचालन सूर्य और चंद्र के द्वारा ही होता है इसलिए इन्हीं के आधार पर समय के अनुशार घटित होने वाले सभी कार्यों का पूर्वानुमान इन्हीं के द्वारा किया जा सकता है !वैसे भी संसार में अच्छे बुरे सभी प्रकार के सभी  कार्यों का संबंध समय के साथ जुड़ा होता है !प्रकृति से लेकर निजी जीवन तक के सुख दुःख हानि लाभ स्वस्थ अस्वस्थ आदि सभी का संबंध समय के साथ सीधा जुड़ा होता है !समय के अनुशार ही संसार में सब कुछ घटित होता चला जा रहा है | यह समझ कर इस विधा से समय का अध्ययन करने से प्रकृति और जीवन से जुड़े अनेकों विषयों के गूढ़ रहस्य खोले जा सकते हैं मैं पिछले लगभग 20 वर्षों से इसी समय शास्त्र पर ही काम कर रहा हूँ भूकंप जैसे अत्यंत गंभीर एवं विश्व को उलझाए रखने वाली गंभीर ग्रंथि का भेदन करने में बड़ी सफलता के समीप पहुँचा जा चुका है इसके द्वारा भूकम्पों के विषय में आज इतना कुछ कहकर प्रमाणित किया जा सकता है जो भूकम्पों के विषय में विश्व के लिए नया होगा !इसी विधा से भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान के विषय में भी संभव है निकट भविष्य में कोई बड़ी सफलता हाथ लगे !इस विषय पर हमारा ग्रंथ भी है जिसके प्रकाशन हेतु उचित समय सहयोग एवं साधन की प्रतीक्षा है !
    समय दो प्रकार से जीवन को प्रभावित करता है एक सामूहिक और दूसरा व्यक्तिगत रूप से !
      समय का सामूहिक प्रभाव -
     सामूहिक समय प्रकृति में परिवर्तन करता है जिससे प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं अति वर्षा भीषण बाढ़ , सूखा, आँधी ,चक्रवात एवं भूकंप आदि ऐसी सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सीधा संबंध समय के साथ होता है ऐसे सभी प्रकार के प्राकृतिक विकार सामूहिक रूप से फैलने वाले रोगों को पैदा करने वाले होते हैं !जैसे मौसम बदलते समय या अन्य प्रकार से जलवायु परिवर्तन होने पर रोग पैदा होने लगते हैं उसी प्रकार से प्रकृति में विकार होने पर भीषण बाढ़ , सूखा, आँधी ,चक्रवात एवं भूकंप आदि घटनाएँ घटने लगती हैं ऐसे ही प्राकृतिक विकारों के कारण अनेकों प्रकार की बीमारियाँ जन्म लेने लगती हैं जो सामूहिक रूप से कुछ जिलों प्रदेशों आदि को अपनी चपेट में ले लेती हैं जिन्हें महामारी आदि के रूप में भी जाना जाता रहा है | ऐसी बीमारियों को ही आयुर्वेद के चरक संहिता आदि में जनपदोध्वंस के नाम से जाना जाता रहा है | ऐसी सामूहिक बीमारियाँ पैदा होने का कारण महर्षि चरक ने समय को माना है | ऐसी सामूहिक बीमारियाँ भविष्य में कब कहाँ फैलने लगेंगी इसका पूर्वानुमान लगाना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि इसमें बहुत बड़ी चिंता की बात यह होती है कि ऐसी सामूहिक बीमारियाँ एक बार जब प्रारम्भ हो जाती हैं उस समयसंग्रह की गई बनौषधियाँ या ऐसे समय में बनाई गई औषधियाँ अपने गुणों से विहीन हो जाती हैं !ऐसी औषधियाँ जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में विश्वसनीय मानी जाती रही हैं अपनेगुणों से हीन होने के कारण वही औषधियाँ वैसी ही बीमारियों से मुक्ति दिलाने में असमर्थ हो जाती हैं | ऐसे समय चिकित्सकों को इस बात का भ्रम होना स्वाभाविक होता है कि लक्षणों से युक्त बीमारियों में  जो दवाएँ लाभ करती थीं वो अब असर क्यों नहीं कर रही हैं इसका मतलब ये कोई नए प्रकार की बीमारी है ! ऐसा मानकर उस विषय में नए शोध कार्य प्रारंभ कर दिए जाते हैं तब तक उस प्रकार  का समय निकल जाता है और समाज को रोगों से स्वतः मुक्ति मिलने लग जाती है !चिकित्सा की दृष्टि से लोगों को भले ही लगता हो कि तीर तुक्के काम आ गए किंतु जिस रोग को पहचाना न जा सका हो !जिस पर दवाओं का कोई असर ही नहीं हो उस पर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है |
   ऐसे रोगों के पैदा होने का कारण समय होता है  और उस तरह का समय समाप्त होते ही ऐसे रोग भी स्वतः समाप्त हो जाते हैं | इतना अवश्य है कि ऐसा समय प्रारंभ होने से पूर्व जो औषधियाँ बनाई जा चुकी होती हैं उनका असर होता है है और वे रोग मुक्ति दिलाने में सहायक होती हैं | 'चरकसंहिता' में इसी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा गया है  कि जब अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकारों से समय दूषित हो जाता है तो उससे  ऋतुओं में विकार आने लगते हैं और समय में विकार आते ही देश और समाज पर उसका दुष्प्रभाव दिखने लगता है इससे वायु प्रदूषित होने लगती है और वायु प्रदूषित  होते ही जल दूषित होने लगता है जलवायु में प्रदूषण बढ़ते ही विभिन्न प्रकृति वाले स्त्री पुरुषों को एक समय में एक जैसा  रोग हो जाता है
          यथा -"वायुरुदकं देशः  काल इति "-चरक संहिता
         वायु से जल और जल से देश और देश से काल अर्थात समय सबसे अधिक बलवान होता है !
      " वाताज्जलं जलाद्देशं देषात्कालं स्वभावतः "-चरक संहिता
     महामारियाँ फैलते समय बनौषधियाँ भी गुणहीन हो जाती हैं !
   इसलिए इस विषय में मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि चरक संहिता के कथनानुसार अश्विनी आदि नक्षत्र और चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकारों से समय के दूषित होने के कारण महामारियाँ फैलने लगती हैंतो ग्रहों और नक्षत्रों के ऐसे संयोगों का पूर्वानुमान लगाकर ऐसे रोगों से मुक्ति के लिए पहले से प्रिवेंटिव प्रयास किए जा सकते हैं दवाओं आदि का संग्रह भी पहले से किया जा सकता है |इस प्रकार की सतर्कता बरते जाने से संभव है कि ऐसे रोग महामारियों का रूप न भी लें !    

      समय का व्यक्तिगत प्रभाव -
        कोई भी जीव जिस दिन गर्भ में आता है और जिस दिन जिस क्षण प्रसव होता है उसी क्षण के द्वारा समय शास्त्र के माध्यम से इस बात का पूर्वानुमान किया जा सकता है कि इस शिशु को सम्पूर्ण जीवन में किस किस प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है | इसे जीवन के किस किस वर्ष में कितने दिनों महीनों वर्षों आदि के लिए किस किस प्रकार से सावधानियाँ बरतनी चाहिए अन्यथा उसे किस समय कैसे रोगों से स्वास्थ्य संकट का सामना करना पड़ सकता है उसमें से कौन रोग कितने साध्य होंगे और कौन कितने असाध्य ! किन किन समयों में स्वास्थ्य पक्ष से संबंधित किस प्रकार के बड़े संकटों का सामना करना पड़ा सकता है उससे बचाव के लिए कैसा आहार आचार विचार आदि अपना कर चलना श्रेयस्कर रहेगा | इस प्रकार से रोगों का पूर्वानुमान लगाकर भावी रोगों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जा सकता है | 

मनोरोग - समयशास्त्र के द्वारा ही पूर्वानुमान लगाकर यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति को जीवन के किस भाग में कितने  लिए कैसा और कितना तनाव होगा !उससे बचने बचाने के लिए ऐसे संभावित तनावग्रस्त लोगों को तनाव की भँवर में पड़ने से पहले ही बचाया जा सकता है इससे तनाव होगा तो किन्तु उतना अधिक होने से बच जाएगा किंतु यदि तनाव प्रारम्भ हो गया होगा तो उसे कुछ घटाया जा सकता है किंतु समाप्त तो उस तरह का समय बीतने के बाद ही होगा !ऐसे लोगों का तनावी समय प्रारम्भ होने से  पूर्व ही इन्हें एकांत स्थान या प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाया जाना चाहिए उनके साथ सहयोगात्मक वर्ताव करके उनके उस तनावी समय को पार करने में मदद की जानी चाहिए !
       इस विधा के द्वारा वैवाहिक जोड़ों को टूटने से बचाया जा सकता है परिवारों का तनाव घटाया जा सकता है समाज का विखराव रोका जा सकता है !विशेष कर सैनिकों के विषय में ऐसे पूर्वानुमानों की सहायता से उनके तनाव को  घटाने में मदद मिल सकती है ऐसे सैनिकों की तैनाती विशेष संवेदनशील जगहों में नहीं की जानी चाहिए जब मन और तन स्वस्थ नहीं होगा तो उस सैनिक के साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी घटित हो सकती है जो सैनिक के बहुमूल्य जीवन के लिए तो चिंतनीय होगी ही साथ ही उसका अपना अच्छा समय न होने के कारण उसकी कीमत देश को भी चुकानी पड़ती है |इसलिए जिन सैनिकों के स्वास्थ्य के लिए जितना समय प्रतिकूल हो उन्हें उतने समय के लिए संदिग्ध जगहों पर तैनात किए जाने से बचा जाना चाहिए !
          सेना से संबंधित लोगों की भर्ती के समय स्वास्थ्य जाँच प्रक्रिया के साथ साथ इस विषय को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य की जाँच वर्तमान शारीरिक स्थिति के आधार होती है उसी के आधार पर फिटनेस सर्टिफिकेट आदि बनता है !किंतु  शरीर की प्रकृति ,रहने के स्थान, ऋतु (मौसम),भोजन की सामग्री,और अपना दशाकाल हमेंशा बदलता रहता है उसके आधार पर स्वास्थ्य के भी बनने  बिगड़ने की संभावनाएँ बनी रहती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाकर सैनिकों की भर्ती प्रक्रिया के साथ ही यह निश्चय किया जा सकता है कि किस समय किस प्रकार के लिए कौन कितना अनुकूल रहेगा !इसी प्रकार से आधारकार्ड आदि की तरह हर किसी के जीवन के प्रत्येक वर्ष के हिसाब से जीवन संबंधी पूर्वानुमान लिखा जाना चाहिए ताकि लोग खुद तो अपना अपना बचाव करने का प्रयास करें ही साथ ही दूसरों की भी मदद कर सकें !
           किसी के शरीर की कफ प्रकृति हो और उसका दशा काल भी कफ प्रकृति का हो और मौसम भी कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी का हो तो ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित रोगों की संभावना उतने समय तक अधिक रहेगी !ऐसा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसलिए उतने समय तक के लिए ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित मौसम में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए एवं कफ को बढ़ाने वाले भोजन से बचना चाहिए !कफ प्रवृत्ति से संबंधित जलीय या बर्फीले आदि शीतल प्रकृति के स्थानों पर रहने जाने आदि से बचना चाहिए !सेना आदि से संबंधित लोगों की तैनाती करने के लिए स्थान चुनते समय इन बातों के आधार पर स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाकर ही निश्चय किया जाना चाहिए !इसी प्रकार सर्दी के अलावा अन्य दोषों के विषय में भी सैनिकों से लेकर सभी के विषय में पूर्वानुमान किया जा सकता है |
           माता पिता भाई बहनों संतान आदि से संबंधित सुख दुःख जीवन के किस भाग में कितने दिनों के लिए रहेगा !वैवाहिक जीवन के विषय में किस स्त्री पुरुष का किस स्त्री पुरुष के साथ किस प्रकार से निर्वाह हो पाएगा किसको किसके साथ कितने दिन क्या क्या सहकर वैवाहिक जीवन की रक्षा करने का प्रयत्न करना होगा !अपने या जीवन साथी के निजी जीवन में घटित होने वाले सुखों  दुःखों का एक दूसरे के जीवन से सीधा संबंध भले न होता हो किंतु जीवन साथी की अपने घर की समस्याओ या अन्य निजी समस्याओं एवं रोगों मनोरोगों आदि के कारण एक दूसरे के प्रति उत्पन्न होने वाले भ्रम भी वैवाहिक जीवन में बाधक होते हैं नो किसके जीवन में किस उम्र में कितने समय के लिए होंगे इसका पूर्वानुमान भी जन्म के साथ या विवाह का निश्चय  होने के साथ ही लगा लेने की प्रक्रिया इस शास्त्र में है !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान लगाकर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है |
       चिकित्सा के क्षेत्र में भी ऐसे पूर्वानुमानों की बहुत बड़ी भूमिका है कोई व्यक्ति जब किसी बीमारी या दुर्घटना से चोट चपेट खाकर  किसी चिकित्सक के पास पहुँचता है तो उस समय वो बीमारी बहुत साधारण सी लग रही होती है इसलिए चिकित्सक गण भी ऐसे लोगों के इलाज के लिए साधारण प्रक्रिया का ही प्रयोग करते हैं किंतु ऐसे लोगों का अपना समय यदि खराब चल रहा हो तो छोटी छोटी बीमारियाँ अचानक बढ़कर बहुत बड़ा स्वरूप ले लेती हैं उन पर दवाओं का भी अधिक असर नहीं होने पाता है इसलिए ऐसे समयों में पूर्वानुमान पूर्वक चिकित्सा करने से महत्वपूर्ण लाभ होते देखा जाता है |
       अपराधियों के  विषय में ऐसे लोगों को पहचानने में बड़ी मदद मिल सकती है किस प्रकार के अपराध में किसकी कितनी भूमिका हो सकती है कितने समय तक कौन किस प्रकार का अपराध कर सकता है आदि !कई अपराधियों के जीवन में साल दो साल कोई विपरीत समय आया और उस समय के प्रभाव से वो आपराधिक  षड्यंत्र में वो फँस गया या किसी और ने फँसा दिया तो कानूनी पचड़ों में पड़कर उसका काफी लंबा समय बेकार हो जाता है जबकि उसके आपराधिक जीवन का था ही केवल एकवर्ष !ऐसे लोग अपना उस तरह का समय निकलने के बाद भी उस तरह के लोगों के बीच में रहते रहते उसी मानसिकता से ग्रसित हो जाते हैं जिन्हें उस तरह की संगति  से बचाया जा सकता था ! 
     ऐसे ही कई लोगों के  वैवाहिक जीवन से संबंधित तनाव के लिए केवल एक ही वर्ष होता है किंतु घबड़ाकर वो तलाक ले ले लेते हैं तलाक से दूसरे विवाह तक तनाव का एक वर्ष पार हो जाता है इसके बाद दूसरी जगह सुख पूर्वक रहने लगते हैं समय के रहस्य को न समझने के कारण वे दोनों एक दूसरे को दोषी मानते रहते हैं !ऐसे लोगों को वैवाहिक जीवन को  तलाक से बचाया जा सकता है !
       कुल मिलाकर जीवन में समय का बहुत बड़ा महत्त्व है समय को समझे बिना पूर्वानुमान लगाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है वर्षा विज्ञान से लेकर सारा प्रकृति विज्ञान ही पूर्वानुमान पर आधारित है चिकित्सा विज्ञान ,रोग विज्ञान ,मनोरोगविज्ञान, रोजगार विज्ञान ,परिवार विज्ञान,व्यवहार विज्ञान, विवाह विज्ञान, नाम विज्ञान आदि सभी विषयों में पूर्वानुमान की सुविधा विकसित की जाए तो मानवता की बहुत बड़ी मदद हो सकती है !
       जिस स्त्री पुरुष की वात  पित्त और कफ के क्रमानुशार जिस दोष से संबंधित जितने समय के लिए दशा चल रही होती है उसे उतने वर्षों या महीनों तक उस प्रकार के मौसम में उस दोष से संबंधित स्थानों में रहने से बचना चाहिए उस प्रकार के खान पान से बचना चाहिए !
        किसी के शरीर की कफ प्रकृति हो और उसका दशा काल भी कफ प्रकृति का हो और मौसम भी कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी का हो तो ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित रोगों की संभावना उतने समय तक अधिक रहेगी !ऐसा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसलिए उतने समय तक के लिए ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित मौसम में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए एवं कफ को बढ़ाने वाले भोजन से बचना चाहिए !कफ प्रवृत्ति से संबंधित जलीय या बर्फीले आदि शीतल प्रकृति के स्थानों पर रहने जाने आदि से बचना चाहिए !सेना आदि से संबंधित लोगों की तैनाती करने के लिए स्थान चुनते समय इन बातों के आधार पर स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाकर ही निश्चय किया जाना चाहिए !इसी प्रकार सर्दी के अलावा अन्य दोषों के विषय में भी सैनिकों से लेकर सभी के विषय में पूर्वानुमान किया जा सकता है |
       सेना से संबंधित लोगों की भर्ती के समय स्वास्थ्य जाँच प्रक्रिया के साथ साथ इस विषय को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य की जाँच वर्तमान शारीरिक स्थिति के आधार होती है उसी के आधार पर फिटनेस सर्टिफिकेट आदि बनता है !किंतु  शरीर की प्रकृति ,रहने के स्थान, ऋतु (मौसम),भोजन की सामग्री,और अपना दशाकाल हमेंशा बदलता रहता है उसके आधार पर स्वास्थ्य के भी बनने  बिगड़ने की संभावनाएँ बनी रहती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाकर सैनिकों की भर्ती प्रक्रिया के साथ ही यह निश्चय किया जा सकता है कि किस समय किस प्रकार के लिए कौन कितना अनुकूल रहेगा !
         रोग मनोरोग हानि लाभ आदि किसके जीवन में किसके द्वारा किस उम्र में कितने समय के लिए घटित होगा !किसी से मित्रता शत्रुता आदि संबंध  कब तक चलेंगे !किस नाम वाले  पुरुष को किस नाम वाले स्त्री पुरुष के साथ निर्वाह करने के लिए कैसे चलना होगा और उसके लिए क्या क्या और किस प्रकार के समझौते करने होंगे ! माता पिता भाई बहनों संतान आदि से संबंधित सुख दुःख जीवन के किस भाग में कितने दिनों के लिए रहेगा !वैवाहिक जीवन के विषय में किस स्त्री पुरुष का किस स्त्री पुरुष के साथ किस प्रकार से निर्वाह हो पाएगा किसको किसके साथ कितने दिन क्या क्या सहकर वैवाहिक जीवन की रक्षा करने का प्रयत्न करना होगा !अपने या जीवन साथी के निजी जीवन में घटित होने वाले सुखों  दुःखों का एक दूसरे के जीवन से सीधा संबंध भले न होता हो किंतु जीवन साथी की अपने घर की समस्याओ या अन्य निजी समस्याओं एवं रोगों मनोरोगों आदि के कारण एक दूसरे के प्रति उत्पन्न होने वाले भ्रम भी वैवाहिक जीवन में बाधक होते हैं नो किसके जीवन में किस उम्र में कितने समय के लिए होंगे इसका पूर्वानुमान भी जन्म के साथ या विवाह का निश्चय  होने के साथ ही लगा लेने की प्रक्रिया इस शास्त्र में है !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान लगाकर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है |
       







 किसी स्त्री पुरुष के जन्म लेते ही उसके जीवन से संबंधित सुख और दुःख का सहज पूर्वानुमान लगाया जा सकता है साथ ही  जाना जा सकता है 


लाभ कोई को दूर  जब ऐसी  ऐसी बीमारियाँ पैदा होते समय इसलिए अच्छे और बुरे समय का समय का अध्ययन के लिए 
        सुश्रुत संहिता में भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि आयुर्वेद का उद्देश्य है रोगियों की रोग से मुक्ति और स्वस्थ पुरुषों के स्वास्थ्य की रक्षा !अर्थात रोगों के पूर्वानुमान के आधार पर द्वारा भविष्य में होने वाले रोगों की रोक थाम ! 'स्वस्थस्यरक्षणंच'आदि आदि ! किंतु भविष्य में होने वाले रोगों का पूर्वानुमान लगाकर रोग होने से पूर्व सतर्कता कैसे वरती जाए !अर्थात 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना ऐसे पूर्वानुमानों की कल्पना कैसे की जा सकती है ! इसके लिए भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि इस आयुर्वेद में ज्योतिष आदि शास्त्रों से संबंधित विषयों का वर्णन जगह जगह जो आवश्यकतानुसार आया हैउसे ज्योतिष आदि शास्त्रों  से  ही पढ़ना  और समझना चाहिए !क्योंकि एक शास्त्र में ही सभी शास्त्रों का समावेश करना असंभव है 'अन्य शस्त्रोपपन्नानां चार्थानां' आदि ! दूसरी बात उन्होंने कही है कि किसी भी विषय में किसी एक शास्त्र को पढ़कर शास्त्र के निश्चय को नहीं जाना जा सकता इसके लिए जिस चिकित्सक ने बहुत से शास्त्र पढ़े हों वही  चिकित्सक शास्त्र के निश्चय को समझ सकता है

                     "
तस्मात् बहुश्रुतः शास्त्रं विजानीयात्चिकित्सकः ||"

                                                                                        -
सुश्रुत संहिता


अवसाद का पूर्वानुमान -
         जीवन में पूर्वानुमान की बहुत बड़ी भूमिका है किसी भी विषय में पूर्वानुमान लगाकर उन अनुमानों के आधार पर अपना आचार व्यवहार निश्चित किया जा सकता है  संभावित कठिनाइयों से सावधान होकर चला जा सकता है और संभावित अच्छाइयों को और अधिक से अधिक कैस किया जा सकता है !जीवन के प्रति सतर्क लोग निरंतर ऐसा अभ्यास करते आए हैं |
       पूर्वानुमान लगाने के लिए भी यदि कोई आधार लेकर चला जाए तब तो पूर्वानुमान प्रभावी होते हैं अन्यथा तीर तुक्का ही बनकर रह जाते हैं | पूर्वानुमानों का आधार न होने पर केवल तुक्का ही लगाए जाते हैं जहाँ लग गया वहाँ तो ठीक है और जहाँ नहीं लगा वहाँ खाली चला जाता है !किसी नदी को पार करने के लिए कोई घुसा हो और नदी की चौड़ाई 100 फिट हो तो अगर पचास फिट चलने पर नदी की गहराई 20 फिट प्रतीत हो तो इससे ये अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता है कि 50 फिट और चलने से नदी की गहराई चालीस फिट हो जाएगी !इसलिए जिसका हम पूर्वानुमान लगते हिन् उसके सिद्धांतों को भी ध्यान रखा जाना चाहिए !   
      पूर्वानुमान की परंपरा का भारत में बहुत पुराना इतिहास है यह प्राचीन भारत की सनातनी संस्कृति का अभिन्न अंश रहा है इसके लिए लोग तरह तरह के संकेतों का सहारा हमेंशा से ही लेते रहे हैं पशु पक्षियों आदि अनेकों प्रकार के जीव जंतुओं के आचार व्यवहार बोलियों स्वभाव परिवर्तनों आदि को देख सुन कर जीवन या प्रकृति से जुड़े अनेकों प्रकार के पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !इसी प्रकार से वृक्षों ,बनस्पतियों सहित समस्त प्राकृतिक बदलावों के आधार पर पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे !स्त्री पुरुषों के शारीरिक अंगों के आधार पर उनके जीवन से सम्बंधित विकास और ह्रास का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे किस क्षेत्र में किसका कितना हानि लाभ संभव है जान लिया करते थे !यहाँ तक कि शारीरिक लक्षणों के आधार पर निकट भविष्य में संभावित बीमारियों  या जीवन मृत्यु से सम्बंधित पूर्वानुमान लगा लिया करते थे ! स्वर शास्त्र के आधार पर नासिका में चलने वाली इड़ा पिंगला आदि नाड़ियों के द्वारा अपने विषय में औरों के विषय में एवं प्रकृति से सम्बन्धित अनेकों विषयों का अत्यंत सटीक  पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |स्वप्न में देखे जाने वाले प्रसंगों का अध्ययन करके अनेकों प्रकार के पूर्वानुमान लगाए जाते रहे रहे हैं !शरीर के अंगों के फड़कने के आधार पर या छींकने के आधार पर लगाए जाने वाले पूर्वानुमान भी अत्यंत प्रभावी होते देखे जाते रहे हैं |घरों की बनावट के आधार पर घरों से सम्बंधित पूर्वानुमान वास्तुशास्त्र के रूप में हमेंशा से विश्वसनीय माने जाते रहे हैं |इसी प्रकार से पूर्वानुमानों के विषय में देश के विभिन्न  भागों एवं परम्पराओं में जीवन एवं प्रकृति से सम्बंधित अनेकों प्रकार की पद्धतियाँ विभिन्न देशों एवं संस्कृतियों में देखने सुनने को मिलती रही हैं |इनमें यदि सच्चाई न होती तो ये इतने लंबे समय तक कैसे टिक पातीं !इसलिए इनकी सच्चाई विश्वसनीय है !
        पूर्वानुमानों के इसी क्रम में भारतीय वैदिक विज्ञान का प्रमुख ज्योतिषशास्त्र तो पूर्वानुमानों का अथाह समुद्र है जीवन एवं प्रकृति के प्रत्येक पक्ष से सम्बंधित पूर्वानुमानों की विस्तृत पद्धति है ज्योतिषशास्त्र !इसके आधार पर न केवल मनुष्य जीवन से जुड़े अपितु प्रकृति की सामान्य जानकारी से लेकर विस्तृत खगोल विज्ञान तक से संबंधित एक एक मिनट का पूर्वानुमान सटीक घटित होता है| ग्रहण से संबंधित पूर्वानुमान तो सारे संसार के सामने प्रत्यक्ष  ही हैं !
        ज्योतिषशास्त्र के आधार पर पूर्वानुमानों से संबंधित ज्योतिषशास्त्र का फलित नामक एक महान उपयोगी सिद्धांत है जिसके द्वारा आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की गति युति आदि के आधार पर सुनिश्चित सटीक सिद्धांत हैं जिनके आधार पर अनुसंधान करके पृथ्वी पर चराचर जगत में घटित हो रही घटनाओं का महीनों पहले और कुछ मामलों में तो वर्षों पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
       किसी स्त्री पुरुष के जन्म लेते ही उसके जीवन से संबंधित सुख और दुःख का सहज पूर्वानुमान लगाया जा सकता है साथ ही  जाना जा सकता है रोग मनोरोग हानि लाभ आदि किसके जीवन में किसके द्वारा किस उम्र में कितने समय के लिए घटित होगा !किसी से मित्रता शत्रुता आदि संबंध  कब तक चलेंगे !किस नाम वाले  पुरुष को किस नाम वाले स्त्री पुरुष के साथ निर्वाह करने के लिए कैसे चलना होगा और उसके लिए क्या क्या और किस प्रकार के समझौते करने होंगे ! माता पिता भाई बहनों संतान आदि से संबंधित सुख दुःख जीवन के किस भाग में कितने दिनों के लिए रहेगा !वैवाहिक जीवन के विषय में किस स्त्री पुरुष का किस स्त्री पुरुष के साथ किस प्रकार से निर्वाह हो पाएगा किसको किसके साथ कितने दिन क्या क्या सहकर वैवाहिक जीवन की रक्षा करने का प्रयत्न करना होगा !अपने या जीवन साथी के निजी जीवन में घटित होने वाले सुखों  दुःखों का एक दूसरे के जीवन से सीधा संबंध भले न होता हो किंतु जीवन साथी की अपने घर की समस्याओ या अन्य निजी समस्याओं एवं रोगों मनोरोगों आदि के कारण एक दूसरे के प्रति उत्पन्न होने वाले भ्रम भी वैवाहिक जीवन में बाधक होते हैं नो किसके जीवन में किस उम्र में कितने समय के लिए होंगे इसका पूर्वानुमान भी जन्म के साथ या विवाह का निश्चय  होने के साथ ही लगा लेने की प्रक्रिया इस शास्त्र में है !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान लगाकर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है |
     वर्ष में वैसे तो ऋतुएँ 6 होती हैं किंतु वर्षा गर्मी और सर्दी आदि तीन प्रकार के मौसम देखने सुनने सहने को मिलते हैं ये क्रमशः वात  पित्त और कफ से संबंधित माने जाते हैं !पुरुषों की भी यही तीन प्रकृति होती हैं भोजन सामग्री की भी यही तीन प्रकृति होती हैं !स्थानों की भी यही तीन प्रकृति होती हैं और समय की भी यही तीन प्रकृति होती हैं और किसी  पुरुष के निजी जीवन में घटित होने वाले समय की भी यही तीन प्रकृति होती हैं इसका निर्णय उसके जीवन में चलने वाली दशाओं के आधार पर लिया जाता है!
     ऐसी परिस्थिति में जिस स्त्री पुरुष की वात  पित्त और कफ के क्रमानुशार जिस दोष से संबंधित जितने समय के लिए दशा चल रही होती है उसे उतने वर्षों या महीनों तक उस प्रकार के मौसम में उस दोष से संबंधित स्थानों में रहने से बचना चाहिए उस प्रकार के खान पान से बचना चाहिए !
        किसी के शरीर की कफ प्रकृति हो और उसका दशा काल भी कफ प्रकृति का हो और मौसम भी कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी का हो तो ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित रोगों की संभावना उतने समय तक अधिक रहेगी !ऐसा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसलिए उतने समय तक के लिए ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित मौसम में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए एवं कफ को बढ़ाने वाले भोजन से बचना चाहिए !कफ प्रवृत्ति से संबंधित जलीय या बर्फीले आदि शीतल प्रकृति के स्थानों पर रहने जाने आदि से बचना चाहिए !सेना आदि से संबंधित लोगों की तैनाती करने के लिए स्थान चुनते समय इन बातों के आधार पर स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाकर ही निश्चय किया जाना चाहिए !इसी प्रकार सर्दी के अलावा अन्य दोषों के विषय में भी सैनिकों से लेकर सभी के विषय में पूर्वानुमान किया जा सकता है |
       सेना से संबंधित लोगों की भर्ती के समय स्वास्थ्य जाँच प्रक्रिया के साथ साथ इस विषय को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य की जाँच वर्तमान शारीरिक स्थिति के आधार होती है उसी के आधार पर फिटनेस सर्टिफिकेट आदि बनता है !किंतु  शरीर की प्रकृति ,रहने के स्थान, ऋतु (मौसम),भोजन की सामग्री,और अपना दशाकाल हमेंशा बदलता रहता है उसके आधार पर स्वास्थ्य के भी बनने  बिगड़ने की संभावनाएँ बनी रहती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाकर सैनिकों की भर्ती प्रक्रिया के साथ ही यह निश्चय किया जा सकता है कि किस समय किस प्रकार के लिए कौन कितना अनुकूल रहेगा !
       समय के अनुशार ही पूर्वानुमान लगाकर यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति को जीवन के किस भाग में कितने समय के लिए कैसा तनाव होगा !ऐसे संभावित तनावग्रस्त लोगों को एकांत स्थान या प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाया जाना चाहिए उनके साथ सहयोगात्मक वर्ताव करके उनके उस तनावी समय को पार करने में मदद की जानी चाहिए !विशेष कर सैनिकों के विषय में ऐसे पूर्वानुमानों की सहायता से उनके तनाव को  घटाने में मदद मिल सकती है ऐसे सैनिकों की तैनाती विशेष संवेदनशील जगहों में नहीं की जानी चाहिए जब मन और तन स्वस्थ नहीं होगा तो उस सैनिक के साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी घटित हो सकती है जो सैनिक के बहुमूल्य जीवन के लिए तो चिंतनीय होगी ही साथ ही उसका अपना अच्छा समय न होने के कारण उसे कोई विजय मिलेगी या सम्मान मिलेगा या प्रसन्नता मिलेगी इसकी कल्पना नहीं की जानी चाहिए !वैसे भी जिन सैनिकों के स्वास्थ्य के लिए जितना समय प्रतिकूल हो उन्हें उतने समय के लिए संदिग्ध जगहों पर तैनात किए जाने से बचा जाना चाहिए !
        चिकित्सा के क्षेत्र में भी ऐसे पूर्वानुमानों की बहुत बड़ी भूमिका है कोई व्यक्ति जब किसी बीमारी या दुर्घटना से चोट चपेट खाकर  किसी चिकित्सक के पास पहुँचता है तो उस समय वो बीमारी बहुत साधारण सी लग रही होती है इसलिए चिकित्सक गण भी ऐसे लोगों के इलाज के लिए साधारण प्रक्रिया का ही प्रयोग करते हैं किंतु ऐसे लोगों का अपना समय यदि खराब चल रहा हो तो छोटी छोटी बीमारियाँ अचानक बढ़कर बहुत बड़ा स्वरूप ले लेती हैं उन पर दवाओं का भी अधिक असर नहीं होने पाता है इसलिए ऐसे समयों में पूर्वानुमान पूर्वक चिकित्सा करने से महत्वपूर्ण लाभ होते देखा जाता है |
       अपराधियों के  विषय में ऐसे लोगों को पहचानने में किस प्रकार के अपराध में किसकी कितनी भूमिका हो सकती है कितने समय तक कौन किस प्रकार का अपराध कर
तक उसे उस प्रकार का जीवन भोगना ही पड़ता है 
       

पर इस बात के विषय में है 


 समय का बहुत बड़ा महत्त्व है समय को समझे बिना पूर्वानुमान लगाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है वर्षा विज्ञान से लेकर सारा प्रकृति विज्ञान ही पूर्वानुमान पर आधारित है चिकित्सा विज्ञान ,रोग विज्ञान ,मनोरोगविज्ञान, रोजगार विज्ञान ,परिवार विज्ञान,व्यवहार विज्ञान, विवाह विज्ञान, नाम विज्ञान आदि सभी विषयों में पूर्वानुमान की सुविधा होती तो कितना अच्छा होता !

वर्षा बाढ़ आँधी चक्रवात आदि के पूर्वानुमान की सटीक प्रक्रिया है !

    



समय ही धरती पर ही हमारे सभी प्रकार के प्रयासों से संबंधित सुनियोजित राजपथ हैं जैसे किसी भी गाड़ी को चलाने या उत्तम गति देने के लिए उस गाड़ी का स्वस्थ होकर दौड़ने लायक होना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है उस राजपथ का उत्तम होना |


        वर्तमान जीवन शैली में प्रयास और परिणाम तो हैं किंतु पथ का चिंतन गायब है जबकि पथ ही सबकुछ है





राजपथ का अध्याय बिल्कुल  गायब है तो है



      वर्तमान समय में हमारे 



हमारे प्रयासों  के राज पथ की परवाह किए बिना जिस पर हमारे प्रयासों  आवश्यक होना  ना और परिणामों 




     चिकित्सा के लिए औषधीय पद्धति से कम आवश्यक नहीं है समय के महत्त्व की समझ विकसित करना !  समय के संचरण को पहचानने वाले प्राचीन काल के वैद्य लोग किसी रोगी की चिकित्सा प्रारंभ करने से पहले ही उस रोगी के समय का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे यदि रोगी ठीक होने लायक होता था तभी उसकी औषधि करते अन्यथा टाल दिया करते थे !क्योंकि औषधि कितनी भी अच्छी क्यों न हो किंतु लाभ तब तक नहीं करती है जब तक कि रोगी का अपना समय साथ नहीं देता है !जिस रोगी का अपना समय ही बुरा होता है उसके लिए अच्छी से अच्छी औषधि एवं अच्छे से अच्छे चिकित्सक और अत्यंत सघन चिकित्सा प्रक्रिया भी निष्प्रभावी सिद्ध हो जाती है तभी तो बड़े बड़े धनवान एवं सुविधा संपन्न लोगों को भी कई बार अल्प आयु में भी मरते  देखा जाता है !दूसरी बात कई रोगी ऐसे होते हैं कि जिनका अपना समय अच्छा होता है वे गरीब होते हैं गाँवों या जंगलों में रहने वाले होते हैं उनके पास चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं होती है न धन होता है न अच्छे चिकित्सक और न ही अच्छी औषधि फिर भी वे बड़े बड़े रोगों को पराजित करके स्वस्थ होते देखे जाते हैं केवल उनका समय ठीक होता है इसीलिए तो !जंगलों में पशु या मनुष्य एक दूसरे से झगड़ कर एक दूसरे को घायल कर देते हैं किंतु ऐसे घायलों या बीमारों में से अनेकों को बिना किसी औषधि के भी स्वस्थ होते देखा जाता है !यहाँ तक कि उनके घावों को  भी  भरते देखा  जाता  है |


         कई बार बड़े बड़े विद्वान चिकित्सक लोग भी किसी रोगी को स्वस्थ करनेके लिए अपनी पूर्ण ताकत झोंक देते हैं किंतु उनका अपना समय अच्छा नहीं होता है इसलिए उस रोगी के स्वस्थ होने का श्रेय उनको नहीं मिल पाता है उसी रोगी को उनसे बहुत कम योग्यता रखने वाला कोई दूसरा चिकित्सक साधारण सी दवा दे देता है तो वो उसी से स्वस्थ हो जाता है और उस चिकित्सक को रोगी के रोग मुक्त करने का श्रेय मिल जाता है क्योंकि उस चिकित्सक का वो समय उसके अपने लिए अच्छा होता है |


      जिन चिकित्सकों का अपना समय अच्छा चल रहा होता है उनके पास रोगी भी वही पहुँचते हैं जिनका स्वयं का समय भी अच्छा होता है इसलिए उन्हें हर हाल में स्वस्थ होना ही होता है किन्तु उन्हें रोगमुक्त करवाने का श्रेय उन चिकित्सकों को मिल जाता है | जिन रोगियों का समय अच्छा नहीं होता है वो ऐसे चिकित्सकों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं कभी उनका समय नहीं मिलता कभी रोगी ऐसे चिकित्सकों के पास खुद समय से नहीं पहुँच पाते हैं और कभी चिकित्सक को अचानक कहीं जाना पड़ा जाता है कई बार चिकित्सक स्वयं किसी समस्या का शिकार हो जाते हैं किंतु ऐसे रोगियों को देखने का संयोग उन्हें नहीं मिल पाता है रोगी का समय तो खराब था ही उसकी आयु भी पूरी हो ही चुकी थी उसे मरना ही था इसलिए जब ऐसे रोगियों की मृत्यु हो जाती है तो उसके अपयश से वो चिकित्सक बच जाता है और रोगी के परिजन फिर भी यह सोचा करते हैं कि वो एक बार देख लेते तो शायद सुधार हो सकता था !इस प्रकार से ऐसे चिकित्सकों को अपनी भूमिका न निभा पाने के बाद भी उसका यश मिल जाया करता है क्योंकि उनका अपना समय अच्छा होता है |


        बहुत अच्छे चिकित्सक भी किसी को बहुत अच्छी दवा दे सकते हैं किंतु किस रोगी पर किस दवा का कैसा परिणाम होगा इसके विषय में कोई गारंटी नहीं दे सकते !क्योंकि दवा आदि चिकित्सा प्रक्रिया तो चिकित्सक के हाथ में होती है इसलिए किसी रोगी को रोगमुक्त करने हेतु उसमें वो अच्छे से अच्छे प्रयास कर सकता है किंतु रोगी का स्वस्थ होना न होना ये रोगी के अपने समय के अनुशार निश्चित होता है इसलिए उस चिकित्सा का किस रोगी पर कैसा परिणाम होगा ये उस रोगी के अपने अच्छे बुरे समय के अनुशार फलित होता है !


      एक जैसे कुछ रोगियों के शरीरों में एक जैसा रोग होने पर एक जैसे चिकित्सक उन सबकी चिकित्सा एक जैसी चिकित्सापद्धति  से करते हैं और सभी रोगियों पर एक जैसी औषधियों का प्रयोग करते हैं किंतु उस एक जैसी चिकित्सा पद्धति का अलग अलग रोगियों पर अलग अलग असर होते  देखा जाता है जिसके परिणाम स्वरूप कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं ! जब रोगी एक जैसे चिकित्सा एक जैसी तो परिणाम अलग अलग होने का कारण उन सभी रोगियों का अपना अपना समय ही तो होता है !


     रोगियों की अच्छी से अच्छी  चिकित्सा चलते रहने पर भी कुछ  रोगी स्वस्थ हो जाते हैं और कुछ मर जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में स्वस्थ होने वाले रोगियों का श्रेय (क्रेडिट)यदि चिकित्सापद्धति चिकित्सकों औषधियों आदि को दे भी दिया जाए तो जो रोगी चिकित्सा के बाद भी अस्वस्थ बने रहते हैं या मर जाते हैं तो उनकी जिम्मेदारी भी किसी को तो लेनी ही पड़ेगी !मर जाने वाले रोगियों के लिए कुदरत समय या भाग्य को यदि जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है तो जो स्वस्थ हो जाते हैं उसका भी श्रेय तो कुदरत समय और भाग्य को ही मिलना चाहिए ? दोनों प्रकार की परिस्थितियों के लिए या तो कुदरत जिम्मेदार या फिर चिकित्सा पद्धति !अच्छे परिणामों का श्रेय स्वयं लेना और बुरे परिणामों के लिए कुदरत को कोसने की नीति ठीक नहीं है | ऐसी ढुलमुल बातें विज्ञान की श्रेणी में  कैसे रखी जा सकती हैं | 


      ऐसी परिस्थितियों में सबसे बड़ा प्रश्न ये पैदा होता है कि यदि एक जैसे चिकित्सक एक जैसी चिकित्सा प्रक्रिया का पालन करते हुए एक जैसे रोगियों पर किसी एक औषधि का प्रयोग  करते हैं तो उनमें से कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं !ऐसे तीन प्रकार के परिणाम मिलने पर जो स्वस्थ हुए उन्हें ही चिकित्सा का फल क्यों मान लिया जाए !चिकित्सा काल में भी जो अस्वस्थ बने रहे या जो मर गए उन पर चिकित्सा का प्रभाव कुछ हुआ ही नहीं या हुआ तो किस प्रकार का हुआ !इस बात का निश्चय कैसे किया जाए      ऐसे अलग अलग परिणामों को यदि रोगियों और चिकित्सकों के अपने अपने समय के अनुशार न देखा जाए तो किसी अन्य प्रकार के वर्गीकरण के माध्यम से इस अंतर को कैसे समझा जा सकता है |


     इसका सीधा सा मतलब है कि जिनके ग्रह उनके अनुकूल थे उनका समय ठीक था इसलिए उन्हें तो स्वस्थ होना ही था जिनका न समय ठीक था और न ग्रह अनुकूल थे उन्हें अस्वस्थ रहना या मरना ही था यदि जैसा होना था वैसा ही हो गया तो चिकित्सा पद्धति की अपनी भूमिका किस प्रकार की रही और यदि चिकित्सा पद्धति ने भी समय के सामने ही आत्म समर्पण कर ही दिया तो फिर चिकित्सा प्रक्रिया का अपना प्रभाव  कैसे कहाँ और कितना सिद्ध हुआ !


         सामूहिक बीमारियाँ या महामारियाँ फैलने के प्रकरण में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है जब समय खराब होता है तब सामूहिक महामारियाँ फैलती हैं समय ख़राब कब होता है इसका ज्ञान ज्योतिष शास्त्र  से होता है !ग्रहस्थिति खराब होने के कारण जो सामूहिक रोग फैलते हैं उन रोगों को समाप्त कर देने वाली एक से एक प्रभावी औषधियों का निर्माण यदि ऐसे समय किया जाए तो  उस समय ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण  वे ही औषधियाँ उतने समय के लिए  वीर्यविहीन हो जाती हैं !इसलिए ऐसे समयों में उन औषधियों से रोग मुक्ति की आशा नहीं की जानी चाहिए !इसलिए चरकसंहिता में स्पष्ट कहा गया है कि ग्रहों के अनिष्टकारक योग को आता देख कर रोगों का पूर्वानुमान पूर्वक औषधियों का संग्रह पहले ही कर लेना चाहिए जिससे महामारियों पर नियंत्रण पाया जा सके ! इसलिए भावी रोगों का पूर्वानुमान लगाने के लिए अच्छे बुरे समय को समझना होगा जिसके लिए आवश्यक है ज्योतिष विज्ञान !


    किसी रोगी के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा होती है या उसका अपना समय ?साधन विहीन गरीब या जंगलों में रहने वाले रोगी या घायल लोग या पशु पक्षियों को देखा जाता है कि वे तो बिना चिकित्सा के भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं | बाक़ी सभी साधनों से सम्पन्न बड़े लोगों की सघन चिकित्सा व्यवस्था होने पर भी मृत्यु होते देखी जाती है ऐसी परिस्थितियाँ समय के महत्त्व को सिद्ध करती हैं |


        कई कम उम्र के बच्चों को भी बड़े बड़े रोग होते देखे जाते हैं और कई बूढ़े लोगों को भी स्वस्थ देखा जाता है कई बहुत सात्विकता और संयम पूर्वक जीवन जीने वाले लोगों के भी शरीरों में बहुत बड़े बड़े रोग होते देखा जाता है तो कई अत्यंत असंयमित जीवन जीने वाले लोग भी आजीवन स्वस्थ रहते देखे जाते हैं  ऐसी दोनों ही परिस्थितियाँ पैदा होने  का कारण उन दोनों का अपना अपना  समय ही तो है |


     किसी व्यक्ति को कोई रोग होगा या नहीं होगा और होगा तो किस उम्र में होगा कितना बड़ा रोग होगा और कितने समय के लिए होगा ! रोग के बढ़ने की सीमा कहाँ तक होगी !ऐसी बातों का पूर्वानुमान लगाकर संभावित समय में छोटी छोटी बीमारियों को भी बहुत बड़े बड़े रोगों की तरह गंभीरता से लेकर चिकित्सा संबंधी प्रयासों में अत्यंत सतर्कता बरती जा सकती है !


     रोगों के  पूर्वानुमान की पद्धति यदि चिकित्सा के क्षेत्र में भी होती तो कई रोगों को पैदा होने से पहले ही रोका जा सकता था !पैदा हो चुके कुछ रोगों को अधिक बढ़ने से रोका जा सकता था !समय के अनुशार सतर्क चिकित्सा एवं पथ्य परहेज की गंभीरता से संभावित कई बड़े रोग भी  नियंत्रित रखे जा सकते थे |


        सामूहिक रूप से पैदा होने वाले रोगों के विरुद्ध समय रहते जन जागरूकता अभियान चलाए जा सकते थे और चिकित्सकीय व्यवस्थाओं को विस्तारित किया जा सकता था एवं उपयोगी औषधियों का संग्रह किया जा सकता था ! चरक संहिता में इस विधा के स्पष्ट संकेत मिलते हैं !


       मनोरोग होने या बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लग जाने से समय से पूर्व अपने को उस तरह की परिस्थितियों  के सहने योग्य बनाया जा सकता है विवादों से बचाया अथवा उन्हें टाला जा सकता है दुविधा या रिस्क पूर्ण कार्यों व्यवसायों संपर्कों से अपने को अलग रखा जा सकता है |


  आयुर्वेद के शीर्ष ग्रन्थ चरकसंहिता में महर्षि कहते हैं


      समय और चिकित्सा रोगी के लिए दोनों आवश्यक है किंतु इन दोनों में रोगी के लिए वास्तव में अधिक महत्त्व  समय का या चिकित्सा का यह अंतर खोजने के लिए मैंने अपना शोधकार्य प्रारम्भ किया तो देखा कि जब तक जिसका समय अच्छा होता है तब तक उसे कोई बड़ी बीमारी नहीं होती और यदि किसी कारण से  हो भी जाए तो उसे अच्छे डॉक्टर आसानी से मिल जाते हैं अच्छी दवाएँ मिल जाती हैं चिकित्सा के लिए  धन का इंतजाम भी आसानी से हो जाता है और दवा का असर भी आशा से अधिक होने लगता है इसी विचार से मैंने महत्वपूर्ण है क्या किसी रोगी के लिए समय अधिक महत्वपूर्ण है या चिकित्सा ?


    पिछले 20 वर्षों से चिकित्सा के क्षेत्र में वैदिक विज्ञान ज्योतिष एवं आयुर्वेद के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के अध्ययन एवं अनुभवों से पता लगा कि रोगों के निदान तथा रोगों के पूर्वानुमान  के साथ साथ प्रिवेंटिव चिकित्सा एवं मनोरोगों के विषय में लोगों के स्वभावों को समझने में ज्योतिष की बड़ी भूमिका सिद्ध हो सकती है ।कई बार किसी को कोई छोटी बीमारी चोट या फुंसी प्रारंभ होती है और बाद में वो भयंकर रूप ले लेती है।इसी प्रकार कई अन्य बीमारियाँ होती हैं जो प्रारंभ में छोटी बीमारी दिखने के कारण चिकित्सा में लापरवाही कर दी जाती है और बाद में नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं ऐसी परिस्थिति में किसी भी छोटी बड़ी बीमारी का पूर्वानुमान ज्योतिष के द्वारा प्रारम्भ में ही लगा लिया जा सकता है और उसी समय चिकित्सा में सतर्कता बरत लेने से बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है ।


      आयुर्वेद के बड़े ग्रंथों में  भी समय का महत्त्व समझने के लिए ज्योतिष का उपयोग किया गया है ।     आयुर्वेद का उद्देश्य शरीर को निरोग बनाना एवं आयु की रक्षा करना है जीवनके लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । ' चिकित्सा शास्त्र में समय  का विशेष महत्त्व  है ।


    आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का अपना समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता है और कुछ को नहीं भी होता है उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम अलग अलग होते देखा जाता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी किन्हीं एक जैसे दो रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !


          जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सब बिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !


     जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है । इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं ये समय का ही प्रभाव है ।