आधुनिक बाबाओं एवं आधुनिक नेताओं पर जरुरी है कठोर नियंत्रण !
ऐसी फिल्मों का निर्माण उसी परिस्थिति में हितकर हो सकता है जब कि केवल आशाराम को ही केन्द्रित न किया जाए अपितु इस तरह की सम्पूर्ण विचारधारा को कटघरे में खड़ा करना चाहिए क्योंकि संतों की वेष भूषा धारण करना,संतों की तरह बातें करने लगना,बिना पढ़े लिखे ज्योतिषी बनने का नाटक करने लगना,वास्तु की जानकारी लिए बिना अपने को वास्तु शास्त्री सिद्ध कर देना, इसीप्रकार हाथ पैर मोड़ने लगने से अपने को योगी सिद्ध कर देना,ताली बजा बजा कर मुख मटकाने वाले नचैया गवैयों का अपने को भागवत वक्ता कहना प्रारंभ कर देना इस प्रकार के सभी पाखंडों का पर्दाफास किया जाए तब तो धार्मिक जगत का भला होगा अन्यथा फ़िल्म के नाम पर धर्म एवं धार्मिक विषयों का उपयोग हँसने हँसाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए|एक और विशेष बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि पाखंडी बाबाओं के राजनैतिक लोगों से संबंधों को उजागर किया जाना चाहिए साथ ही स्पष्ट किया जाना चाहिए कि बाबाओं के पास इतना धन कहाँ से आता है जो लोग देते हैं उनका क्या स्वार्थ क्या होता है? कहीं ये बाबाओं नेताओं एवं धनी लोगों का यह आपसी गठजोड़ बासनात्मक ही तो नहीं है !इसीप्रकार जब यह बात सबको पता है कि जो वास्तविक चरित्रवान संतों के लिए महिलाओं से दूरी बनाकर रहने के लिए ही कहा गया है और वे इसीप्रकार से रहते भी हैं किन्तु जो भ्रष्ट बाबा हैं वो कथा कीर्तन आदि सारे ड्रामे ऐसे ही करेंगे जिससे महिलाओं के बीच अधिक से अधिक घुसने चिपकने आदि को मिले !ये महिलाओं को अपने जाल में फँसा लेते हैं या महिलाएँ इन्हें फँसा लेती हैं या इनके चंगुल में स्वयं फँस जाती हैं यह शंका मुझे इस लिए हो रही है कि जब चरित्रवान संत महिलाओं से मध्यम दूरी बनाकर रहते हैं तो जो ऐसा नहीं करते उन बाबाओं को सच्चरित्र कैसे माना जा सकता है फिर भी चरित्रवती महिलाएँ ऎसे भ्रष्ट बाबाओं पर भरोसा क्यों करती हैं ?
दूसरी ओर वर्षों तक उनसे जुड़े रहने के बाद भी जो महिलाएँ उन्हें अपना गुरु बताती हैं तो वहां पवित्रता की परिकल्पना कैसे और क्यों की जा सकती है?इसलिए इन सभी बिन्दुओं पर प्रकाश डालती हुई फ़िल्म बनें जो सबको सबकी गलतियों का एहसास कराने में सहायक हो सके और उन्हें सुधरने का रास्ता सुझावे तो यह वर्तमान परिस्थियों की न केवल सर्वोत्तम लोकप्रिय फ़िल्म होगी अपितु लोक हितकारी भी होगी| भाग्य वश यदि ऐसा हो पाता है तो हमारे राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संसथान की ओर से अग्रिम बधाई! धन्यवाद !!!
आधुनिक बाबाओं एवं आधुनिक नेताओं की भ्रामक गतिविधियों पर सरकारी स्तर पर निगरानी रखी जानी चाहिए|
इन्हें धन की आवश्यकता क्यों है ?और यदि इनके जीवन का वास्तविक लक्ष्य धन कमाना ही था तो आम आदमी की तरह परिश्रम पूर्वक भी कमा सकते थे योग का ढोंग या जनसेवा का ढोंग करने की क्या जरुरत थी? इसके लिए इन्हें नेता और बाबा बनने की आवश्यकता ही क्या थी? हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि जो लोग धर्म एवं राजनीति से अपराध पूर्वक धन इकठ्ठा कर हैं और इसके बाद ये लोग शुरू करते हैं ऐय्यासी!
इस प्रकार से नेताओं एवं बाबाओं की बासना का शिकार महिलाएँ या लड़कियाँ शुरू में इनके दिए हुए लालच में फँस जाती हैं किन्तु नेता और बाबा लोग सच तो बोलते नहीं हैं इसलिए शिकार हुई महिलाओं को देर सबेर पता लग ही जाता है कि उनके साथ धोखा हुआ है तब तक देर हो चुकी होती है!
आजकल देश के प्रसिद्ध एक बाबा के ऊपर ऐसे ही आरोप लग रहे हैं जिसमें एक लड़की ने आरोप लगाया है कि उसके साथ बाबा जी ने सन २००१ से सन २००७ तक अपने अलग अलग आश्रमों में अलग अलग समयों पर कई बार बलात्कार किए हैं !अरे! जहाँ संदेह हो गया था वहाँ इतने दिन तक रुकना ही नहीं चाहिए था !किन्तु रही होंगी कुछ मजबूरियाँ!
खैर आवश्यक है कि कलियुगी बाबाओं एवं कलियुगी नेताओं दोनों पर ही कठोर नियंत्रण किया जाए दोनों ही समुदाय देश की मर्यादाओं को तार तार करने में लगे हुए हैं बिगत कुछ वर्षों से दोनों ने समाज को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हुई है! नेताओं ने देश को और बाबाओं ने धर्म को लाकर चौराहे पर खडा कर दिया है जब तक इनकी गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं किया जाता तब तक कितना भी कठोर कानून क्यों न बना लिया जाए अपराध घट नहीं सकते क्योंकि सारा अपराधी इन्हीं दोनों से संरक्षित है नेताओं को कोठी और काम के लिए एवं बाबाओं को आश्रमों के लिए दूसरों की जमीनों पर बलपूर्वक कब्जे करने होते हैं इस काम में दोनों को ही अपराधियों की मदद की शक्त जरुरत होती है|अपराधी इनका साथ इसलिए देते हैं कि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा एक नेता है इसलिए! दूसरा बाबा है इसलिए बड़े बड़े मंत्रियों से सम्बन्ध हैं! पैसे नेताओं एवं बाबाओं दोनों के पास होते ही हैं इस प्रकार से नेताओं एवं बाबाओं के सान्निध्य में रहने के कारण इन्हीं दोनों से अपराधियों की सारी आवश्यकाएँ पूरी होती रहती हैं ये करते रहते हैं अपराध! ऐसे में क्या कर लेगी कानून की कठोरता ?
इन दोनों समुदायों से जुड़े दुष्कर्मियों के कारण ही समाज का भरोसा आज दोनों से ही बुरी तरह टूटा है दोनों ने समाज के साथ गद्दारी की है दोनों ने समाज को धोखा दिया है! शारीरिक सुरक्षा एवं सुविधाओं के लिए समाज राजनेताओं की ओर देखता है इसीप्रकार मानसिक सुख सुविधाओं सात्विकता आदि के लिए बाबाओं की ओर देखता है दोनों से दोनों प्रकार का सहयोग लेने के लिए दोनों को टैक्स देता है समाज! बात और है कि नेताओं का टैक्स घोषित होता है तो बाबाओं का अघोषित!अन्यथा नेताओं या बाबाओं के पास बिना कमाए इतना अधिक पैसा आता कहाँ से है ?
आधुनिक बाबाओं और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं स्वयं देखिए -बिना किसी परिश्रम के सुख सुविधा पूर्ण जीवन जीने के लिए बड़ी बड़ी रैलियाँ करके धन कमाना दोनों को बहुत पसंद है रैलियों में केवल भाव विहीन भाषण होते हैं इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है |जैसे -
यदि आप धार्मिक भाषण दे कर लूटते हैं तो महात्मा !
यदिआप राजनैतिक भाषण दे कर लूटते हैं तो नेता !!
यदि आप मंच पर प्रेम पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो महात्मा !
यदि आप मंच पर क्रोध पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो नेता !
जो वेद शास्त्रों की दुहाई देकर जनता को झकझोरते हैं वे महात्मा!
जो संबिधान की दुहाई देकर जनता को झकझोरते हैं वे नेता !
जो ईश्वर भक्ति की दुहाई दें वे महात्मा!
जो देश भक्ति की दुहाई दें वे नेता !!
जो परलोक का भय देकर लूटें वे महात्मा!
जो इस लोक का भय देकर लूटें वे नेता !
जो शिष्य बनाकर जनता को जोड़ें वो महात्मा !
जो सदस्य बनाकर जनता को जोड़ें वो नेता !
जो लाल वर्दी पहन लेते हैं तो महात्मा !
जो सफेद वर्दी पहनते हैं तो नेता!
जो ईश्वर भक्ति की बात करते हैं तो महात्मा!
जो देश भक्ति की बात करते हैं तो नेता !
सबसे पहली बड़ी समानता यह कि दोनों के हाथ पैर दुरुस्त शरीर स्वस्थ होने पर भी दोनों बिना मेहनत के पराई कमाई खाने, सेहत बनाने एवं दूसरे के धन के बल पर ही अपनी शौक शान पूरी करने वाले होते हैं। जैसे रैलियों के शौक़ीन दोनों होते हैं।
आधुनिक नेता हों या महात्मा दोनों को मीडिया बनाता है और मीडिया ही नष्ट कर देता है।
अक्सर जब महात्मा फँसता है तो नेता उसकी वकालत करने लगते हैं इसीप्रकार से नेता फँसता है तो महात्मा लोग उसकी वकालत करने लगते हैं क्योंकि दोनों की पोल दोनों के पास दबी होती है इसीप्रकार दोनों अपने अपने अनुयायी एक दूसरे के पीछे लगाए रहते हैं।दोनों के खाने से शौच जाने तक का खर्च आम जनता बहन करती है नेता इतिहास की कहानियाँ सुनाकर जनता का यह लोक ठीक करने की बात करते हैं इसीप्रकार से महात्मा लोग पुराणों की कथाएँ सुनाकर जनता का पर लोक ठीक करने का सपना दिखाते हैं। नेता जब खूब धन कमा लेता है फिर एकांत में शांति में कुटिया बना लेता है ताकि इसका भी आनंद लेता रहे इसीप्रकार पापी महात्मा अपना पाप एवं अपनी पाप की कमाई छिपाने के लिए राजनैतिक दखल बनाने लगते हैं।महात्मा जब अपने किसी गुप्त पाप से भयभीत होता है तो राजनैतिक ताकत तैयार करता है।इसीप्रकार नेता बदनाम होता है तो संन्यास लेने की बात करता है अभी भी एक बन्दर बाबा हैं जो अभी तक पेट दिखाकर पैसे माँगता था अब भय है कि पाप की कमाई कहीं कोई छीन न ले जाए इस लिए अब लोक सभा की तीन सौ सीटें जेब में लिए घूम रहा है एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी को प्रधान मंत्री बनाने के लिए !आखिर ये सब क्या है ?
दोनों ही अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेते हैं ।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है।
इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।
जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं
की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट
बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा
पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से
और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर
लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून
नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर
अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
इनकी दृष्टि में क्या
सारे पापों का कारण पत्नी ही होती है?केवल विवाहिता पत्नी का परित्याग करके
या अविवाहित रह कर हर कुछ कर सकने का परमिट मिल जाता है इन्हें ?वो कितना भी बड़ा पाप ही क्यों न हो? मन
पर नियंत्रण न करने पर कैसे विरक्तता संभव है? साधुत्व के अपने अत्यंत
कठोर नियम होते हैं उन्हें हर परिस्थिति में नहीं निभाया जा सकता है जबकि
राजनीति हर परिस्थिति में निभानी पड़ती है। अपने सदाचारी तपस्वी संयमी जीवन
से सारी समाज को ठीक रखने की जिम्मेदारी संतों की ही है।ऐसे में
शास्त्रों एवं संतों की गरिमा रक्षा के लिए शास्त्रीय विरक्त संतों को ही
आगे आकर यह शुद्धीकरण करना होगा। साथ ही तथाकथित बाबाओं पर लगाम कैसे लगे?यह
संतों को ही सोचना होगा।जो धार्मिक
व्यवसायी लोग कहते हैं कि हमारा गुरुमंत्र जपो सारे पाप नष्ट हो जाएँगे
इसका मतलब क्या यह नहीं निकाला जा सकता है कि ये पाप करने का परमिट बाँट
रहे हैं ?कितना अभद्र है यह बयान ?
यदिआप राजनैतिक भाषण दे कर लूटते हैं तो नेता !!
यदि आप मंच पर प्रेम पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो महात्मा !
यदि आप मंच पर क्रोध पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो नेता !
जो वेद शास्त्रों की दुहाई देकर जनता को झकझोरते हैं वे महात्मा!
जो संबिधान की दुहाई देकर जनता को झकझोरते हैं वे नेता !
जो ईश्वर भक्ति की दुहाई दें वे महात्मा!
जो देश भक्ति की दुहाई दें वे नेता !!
जो परलोक का भय देकर लूटें वे महात्मा!
जो इस लोक का भय देकर लूटें वे नेता !
जो शिष्य बनाकर जनता को जोड़ें वो महात्मा !
जो सदस्य बनाकर जनता को जोड़ें वो नेता !
जो लाल वर्दी पहन लेते हैं तो महात्मा !
जो सफेद वर्दी पहनते हैं तो नेता!
जो ईश्वर भक्ति की बात करते हैं तो महात्मा!
जो देश भक्ति की बात करते हैं तो नेता !
सबसे पहली बड़ी समानता यह कि दोनों के हाथ पैर दुरुस्त शरीर स्वस्थ होने पर भी दोनों बिना मेहनत के पराई कमाई खाने, सेहत बनाने एवं दूसरे के धन के बल पर ही अपनी शौक शान पूरी करने वाले होते हैं। जैसे रैलियों के शौक़ीन दोनों होते हैं।
आधुनिक नेता हों या महात्मा दोनों को मीडिया बनाता है और मीडिया ही नष्ट कर देता है।
अक्सर जब महात्मा फँसता है तो नेता उसकी वकालत करने लगते हैं इसीप्रकार से नेता फँसता है तो महात्मा लोग उसकी वकालत करने लगते हैं क्योंकि दोनों की पोल दोनों के पास दबी होती है इसीप्रकार दोनों अपने अपने अनुयायी एक दूसरे के पीछे लगाए रहते हैं।दोनों के खाने से शौच जाने तक का खर्च आम जनता बहन करती है नेता इतिहास की कहानियाँ सुनाकर जनता का यह लोक ठीक करने की बात करते हैं इसीप्रकार से महात्मा लोग पुराणों की कथाएँ सुनाकर जनता का पर लोक ठीक करने का सपना दिखाते हैं। नेता जब खूब धन कमा लेता है फिर एकांत में शांति में कुटिया बना लेता है ताकि इसका भी आनंद लेता रहे इसीप्रकार पापी महात्मा अपना पाप एवं अपनी पाप की कमाई छिपाने के लिए राजनैतिक दखल बनाने लगते हैं।महात्मा जब अपने किसी गुप्त पाप से भयभीत होता है तो राजनैतिक ताकत तैयार करता है।इसीप्रकार नेता बदनाम होता है तो संन्यास लेने की बात करता है अभी भी एक बन्दर बाबा हैं जो अभी तक पेट दिखाकर पैसे माँगता था अब भय है कि पाप की कमाई कहीं कोई छीन न ले जाए इस लिए अब लोक सभा की तीन सौ सीटें जेब में लिए घूम रहा है एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी को प्रधान मंत्री बनाने के लिए !आखिर ये सब क्या है ?
दोनों ही अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेते हैं ।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है।
इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।
जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
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