जो जिसे चाहता है वो यदि उसे पाने में सफल हो जाए तो विवाह और यदि ऐसा न हो तो रेप, गैंग रेप, हत्या या आत्महत्या आदि कुछ भी … ! इसलिए प्यार की सार्वजनिक प्रक्रिया पर ही क्यों न लगाया जाए प्रतिबन्ध !
आधुनिक प्यार में प्यार जैसा कुछ होता नहीं है ये तो मूत्रता के लिए बनाई गई छद्म मित्रता होती है जहाँ सबकुछ झूठ पर आधारित होता है इसलिए आधुनिक प्यार और बलात्कार दोनों एक सिक्के के ही दो पहलू हैं इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि प्यार चलता रहे और बलात्कार बंद हो जाए !बंद होंगे तो दोनों और चलेंगें तो दोनों !अभी सरकार एवं आधुनिक समाज प्यार के समर्थन में है किन्तु बलात्कार रोकना चाहता है
"आधुनिक प्यार नामक गुलाब के फूल में ही बलात्कार नाम का काँटा होता है "
एक संग नहीं होंहिं भुआलू ।हँसब ठठाइ फुलाउब गालू ॥
जैसे खूब जोर से ठहाका मारकर हँसना और गाल फुलाना दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते ।
इसी प्रकार से बलात्कार को रोकने के लिए आधुनिक प्यार की गतिविधियों को रोकना ही चाहिए ! कोई भी बलात्कारी पहले किसी न
किसी से प्यार जरूर कर चुका होता है चूँकि प्यार करने की शुरुआत में रूठने
मनाने के झटके झेल चुका होता है काफी संघर्ष के बाद धीरे धीरे सौदा पट ही
जाता है!इसी आशा में कि बाद में तो मामला पट ही जाएगा कोई भी कामी
(प्रेमी) पटने पटाने में देरी या मना होने पर कर बैठता है बलात्कार हत्या या कुछ और !
जैसे लाल और मीठे तरबूज की चाहत में कई तरबूज काटने और छोड़ने पड़ते हैं तब जाकर कहीं कोई एक तरबूज अपने मन का अर्थात मीठा और लाल मिल पाता है उसी प्रकार से अपने लिए अच्छा प्रेमी या प्रेमिका की खोज करने में भी कई कई लड़के लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करनी पड़ती है तब जाकर कहीं हो पाता है किसी का किसी से अपने मन मुताबिक प्यार ! इस पथ पर धोखा खाए हुए लोग घायल सिंह की तरह इतने अधिक हिंसक हो जाते हैं कि वो रेप करें या गैंगरेप तथा हत्या करें या आत्महत्या कहाँ होता है उनका उनके मन पर इतना नियंत्रण!वो तो यही सोचते हैं कि जब मेरे साथ बुरा हुआ है तो मैं बुरा करने से क्यों डरूँ !
इसलिए इस प्रकार के लगभग सभी अपराधों में सम्मिलित लोग प्यार नाम का खेल खेलते खेलते किसी न किसी की जिंदगी से खुला खिलवाड़ कर चुके होते हैं इसमें सम्मिलित भी दोनों पक्ष होते हैं इसके लाभ हानि भी दोनों को होते हैं और दोषी भी दोनों पक्ष होते हैं इसलिए सजा भी दोनों को समान रूप से होनी चाहिए !
यहाँ दोनों का कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि जिसके साथ रेप या गैंग रेप हो वह दोषी है अपितु हमारा अभिप्राय उन लड़के लड़कियों से है जो इस प्रकार के खुला खिलवाड़ में अपनी इच्छा से सम्मिलित होते हैं !
अन्यथा जिसने इस पंथ में कभी कदम ही न रखा हो उसमें प्यार और बलात्कार
करने की हिम्मत ही कहाँ होती है !इसलिए बलात्कार रोकने के लिए प्यार की
गतिविधियों में सम्मिलित जोड़ों की हरकतें रोकने के लिए शक्त कानून न केवल
बनना चाहिए अपितु कड़ाई से उसका पालन भी होना चाहिए !बलात्कार होने के और भी
कई कारण हो सकते हैं जिनमें प्यार करने वालों की सार्वजनिक गतिविधियाँ भी प्रमुख कारण हैं !
अन्यकारणों में छोटी
छोटी बच्चियों के साथ होने वाला अत्याचार या कई बार प्यार व्यार सम्बन्धी
बातों से बिलकुल अनजान युवती लड़कियों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार एवं
अपने को बिलकुल सुरक्षित समझते हुए अभिभावकों के साथ कहीं जाने आने वाली
लड़कियों के साथ भी बलात्कार जन्य दुर्व्यवहार होता है इसी प्रकार से
सामूहिक बलात्कारों में ऐसी सभी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित
लोग विशुद्ध रूप से अपराधी होते हैं ये लोग जिस प्रकार से अन्य अपराध करते
हैं उसी प्रकार से बलात्कार करते हैं क्योंकि इनके मन में नैतिकता या दया
धर्म आदि नहीं होते हैं !ऐसे लोगों को रोकने का उपाय सभी प्रकार के
अपराधों को रोकने के लिए कठोर बनाया जाना और फिर उसका कड़ाई से पालन हो
जिससे अपराधियों के हौसले पस्त हों !
रेप पर राजनीति क्यों ?मिलजुल कर प्यार का खेल खेलने
वाले जोड़ों को क्यों नहीं मिलना चाहिए समान दंड !स्त्री पुरुष का भेदभाव क्यों?
जिन केसों में प्रेमी प्रेमिकाओं ने प्यार किया और दोनों व्यभिचार के लिए
समान रूप से दोषी हों यदि इनमें आपसी बात बिगड़ जाए तो भी केवल प्रेमी ही
दोषी क्यों?ये कैसा न्याय है ?
बलात्कार, गैंग रेप या किसी भी प्रकार से
होने वाला महिलाओं का शील शोषण एवं सेक्स जैसी बातों से अनजान अबोध
अविकसितांगी छोटी छोटी बच्चियों के साथ होने वाले असह्य अत्याचारों से आहत
होकर विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित लोगों से सम्पर्क करके मैंने इन विषयों
पर अध्ययन करने का प्रयास किया है कि इसमें कौन कितना दोषी होता है
इसमें लड़की और उसके घर वाले इसी प्रकार से लड़का और उसके घर वाले समाज
प्रशासन फैशन के नाम पर हमारा खुला रहन सहन या सरकारी ढिलाई इन सबमें से
कमजोरी किसकी है क्यों घटित होते हैं ये बलात्कार जैसे जघन्य अपराध !और
इन्हें रोकने के लिए कितनी उचित है फाँसी जैसी सजा? ऐसे कठोर कानूनों के
प्रभावों से कितनी सफलता मिलने की उम्मीद है ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने में !
मैंने अपनी विद्या बुद्धि के अनुशार प्रयास किया है इसे समझने का !जिसमें
जो कुछ सामने आया उसका निवेदन इस प्रकार है !
ऐसे केसों में यदि महिला
सुरक्षा के नाम पर किसी पुरुष को फाँसी
की सजा दे भी दी जाए तो क्या इससे हो पाएगी महिला सुरक्षा ?फाँसी की सजा
पाने वाले की बूढी माँ,जवान पत्नी,बहनें,पुत्रियाँ आदि क्या महिलाएँ नहीं
हैं
!क्या उनके लिए भी कुछ बिचार नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा बलात्कारी को तो
एक बार फाँसी लगती है और उसका जीवन समाप्त हो जाता है किन्तु उसके परिजनों
को भोगनी पड़ती हैं कठोर सामाजिक और आर्थिक
यातनाएँ !नाते रिश्तेदारी में उनका बहिष्कार कर दिया जाता है बहन बेटियों
के
काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं क्या इन सब परिस्थितियों पर बिचार करने
की
हमारी कोई जिम्मेदारी होनी चाहिए ? आखिर उसके परिजनों का दोष क्या होता
है जिसकी सजा भोगनी पड़ती है उन्हें ?
अब बलात्कार पीड़िता की असह्य
पीड़ा को भी समझना बहुत आवश्यक है इसमें तीन प्रकार के केस होते हैं एक वो
जिसमें लड़कियों या महिलाओं की किसी प्रकार से कोई गलती ही नहीं होती है
दूसरी छोटी छोटी बच्चियाँ जिनकी गलती होने की कोई संभावना ही नहीं होती है
ऐसी प्रकरणों में बलात्कारी सम्पूर्ण रूप से दोषी होता है उसमें उसके
पारिवारिक संस्कार,उसकी शिक्षा ,एवं आध्यात्मिक वातावरण की कमजोरी फैशन के
नाम पर परोसी जाने वाली अश्लीलता,तामसी खान पान का प्रभाव एवं कैरियर बनाने
के चक्कर में विवाह जैसे अति आवश्यक विषय को अकारण टालते जाना है!जब
आयुर्वेद मानता है कि भोजन निद्रा और मैथुन अर्थात सेक्स ये तीनो मनुष्य
शरीर के उपस्तम्भ हैं इनके कम और अधिक होने से शरीर रोगी होता है तो ऐसी
परिस्थिति में उनका यथा संभव शीघ्र विवाह किया जाना चाहिए अन्यथा बेचैनी
बढ़ती ही है जिसकी शांति के लिए साहित्य में कहा गया है कि कुँए का
पानी,बरगद की छाया,युवा स्त्री पुरुषों के शरीर एक दूसरे के लिए,और ईंटों
का घर ये शर्दी में गर्म और गरमी में ठंढे रहते हैं । इसलिए इनका सेवन करने
से बेचैनी घटती और सुख मिलता है । ये रही बात चिकित्सा और साहित्य शास्त्र
की अब बात करते हैं कोक शास्त्र की जहाँ भड़काऊ रहन सहन वेश भूषा आदि देखते
स्पर्श होते ही अनियंत्रित हो उठता है मन ।जैसे किसी भी सार्वजनिक जगह पर
एक दूसरे को चूमते चाटते या ऐसा ही और कुछ करते देखकर देखने वाले पागल हो
उठते हैं और वो करने लगते हैं बलात्कार जैसे अक्षम्य अपराध !ऐसे काण्ड
बेशर्म जोड़ों के द्वारा पार्कों में ,मेट्रो स्टेशनों या रेस्टोरेंटों,
पार्किंगों ,या बस आदि सवारियों ,आटो रिक्सों आदि पर अक्सर देखे जा सकते
हैं यहाँ तक की मोटर साइकिलों पर बैठे जोड़ों की अश्लील हरकतें विशेष कर
लालबत्तियों पर खड़ी गाड़ियों पर साफ साफ देखी जा सकती हैं । जिन्हें देखकर
दर्शकों के मन पर जो दुष्प्रभाव पड़ता है उसके लिए देखने वाले कितने
जिम्मेदार हैं क्या उन्हें ऐसी सार्वजनिक जगहों पर नहीं जाना चाहिए या
आँखें बंद करके जाना चाहिए या नपुसंक होने की दवा खाकर ही घर से निकलना
चाहिए क्योंकि इसके अलावा वर्तमान परिस्थिति में उनसे बहुत बड़े ब्रह्मचर्य
की आशा कैसे की जा सकती है !
वैसे भी ब्वायफ्रेंड
और गर्लफ्रेंडों के आपसी संबंधों में अक्सर विश्वास घात होते देखा जा
रहा है कई बार वह उनके द्वारा किया जाता है कई बार उनके कारण होता है जैसे
मेट्रो में खड़ा एक जोड़ा सबके सामने बड़ी बेशर्मी से आपस में अश्लील हरकतें
करता और सहता रहा दोनों के दोनों पूरे के पूरे रंग में थे ! इन्हें देखने
वाले देखते रहे वो नपुंसक रहे होंगे ऐसा सोचना ही क्यों !बाक़ी के लोग तो
जहाँ के तहाँ चले गए किन्तु चार लड़के एक ही झुण्ड के थे वे भी ये हरकतें
देखते रहे वो नहीं रोक सके अपना मन और उन लोगों ने प्रेमी जोड़े का पीछा
किया जहाँ वे स्टेशन से उतरे वो भी उतर गए उनके पीछे लग लिए जहाँ कुछ एकांत
मिला झपट पड़े और उस प्रेमी नाम के लड़के को पकड़ लिया वो अकेला था ये चार थे
इसके बाद उन्होंने वो सब कुछ किया जो उन्हें ठीक लगा और वो दोनों सहते रहे
करते भी क्या !इसके बाद वो पुलिस को कम्प्लेन करके प्रशासन को दोष दें यह
कितना उचित है!आखिर ऐसे जोड़े किस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था चाहते हैं वो
इनसे भी पूछा जाना चाहिए और यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या उनकी भी कुछ
जिम्मेदारी है या कि सारी प्रशासन की ही है?
प्रेमी नाम के लड़कों के द्वारा की गई सार्वजानिक जगहों पर अश्लील
हरकतें सहमति पूर्वक क्यों सही जाती हैं ?आपने भी देखे होंगे ऐसे दृश्य !सहमति
से सेक्स या अश्लील हरकतें करने वाले जोड़े
खोजकर ऐसी जगह में ही बैठते हैं जो बिलकुल सुनसान हो,या कार पर सूने घरों
में बंद मकानों फैक्ट्रियों झाड़ियों भीड़भाड़ बिहीन बसों में बैठना उठना
चलना फिरना पसंद करते हैं ऐसे लोग जहाँ उनकी आपस में अश्लील हरकतें भी चला
करती हैं!आप स्वयं सोचिए कि जब वो चुन कर स्वयं एकांत स्थान में ही जाते
हैं क्योंकि उनकी आपसी हरकतें असामाजिक होती ही हैं इसलिए वहाँ पुलिस आदि
का तो छोड़िए आम आदमी का जाना आना ही नहीं होता होगा ऐसी जगहों पर वो लड़का
प्यार करे या बलात्कार या हत्या ही कर दे तो कौन है उसे देखने या रोकने
वाला ?तो ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियाँ उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?कई
बार ऐसे एकांतिक स्थलों पर अक्सर ऐसी घटनाएँ होने के कारण ये जगहें ऐसे
कामों के लिए वेलनोन हो जाती हैं तो यहाँ इस तरह की हरकतें देखने के शौक़ीन
या अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी नशे आदि के बहाने से बैठने उठने लगते हैं
उनसे वो प्रेमी नाम का अकेला जंतु भी चाहकर कैसे बचा लेगा उस लड़की को !
ऐसी हर जगह पर पुलिस का होना संभव ही नहीं होता है और यदि पुलिस हो तो ये जोड़े वहाँ जाएँगे ही क्यों ?ऐसी संदिग्ध जगहों पर लड़कियाँ उनके साथ जाती ही क्यों हैं ?फिर भी यदि किसी प्रकार से पुलिस इन्हें रोकने की कोशिश भी करे तो क्या करे सहमति से सेक्स को पुलिस रोके तो 'प्यार पर
पहरा' और यदि न रोके और कोई दुर्घटना घट जाए तो 'बलात्कार या गैंगरेप'
पुलिस आखिर करे तो क्या करे ?
ये तथाकथित प्यार के सम्बन्ध दोनों तरफ से झूठ
बोलकर ही बनाए गए होते हैं इसलिए दो में से किसी का झूठ जब खुलने लगता है
तो वो कुछ और दबाते दबाते कब गला ही दबा दे किसी का क्या भरोस ?अन्यथा यदि
सच बोलते तब तो प्यार नहीं होता या फिर सीधे विवाह ही होता तब तक वो
अपनी बहती सेक्स भावना को रोक कर रखते किन्तु सेक्स के लिए बिल बिलाते
घूमते जवान जोड़े आम समाज की परवाह किए बगैर ही राहों चौराहों गली मोहल्लों
पार्कों ,मेट्रोस्टेशनों आदि सार्वजनिक जगहों पर भी कुत्ते बिल्लियों की
तरह बेशर्मी पूर्वक वो सब किया करते हैं जो देखने वालों की दृष्टि से सभ्य
समाज को शोभा नहीं देता है किन्तु इन्हें समझावे या रोके कौन ?
इसी प्रकार से कुछ लड़कियाँ धन लेकर शारीरिक संबंधों
में सम्मिलित होती हैं उसमें कुछ निश्चित समय रखा जाता है ऐसी जगहों पर
घंटों के हिसाब से पेमेंट करना होता है । यहाँ भी लड़कियों के साथ एक धोखा
होता है जैसे दो घंटे के किसी ने पैसे जमा किए तो वो दो घंटे के लिए लड़की
को अपनी इच्छानुशार जगह और कमरे में ले जाता है ऐसी हरकतें कोई अपने घर ले
जाकर नहीं करेगा दूसरा पुलिस का भी भय होता है तीसरी बात इनके लिए कमरा
कोई भला आदमी क्यों देगा ?वैसे भी एक सिद्धांत है कि जब हम कोई गलत काम
करने लगें तो हमें सामने वाले से भी ईमानदारी की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।
इसलिए ऐसी लड़कियों को पेमेंट देकर लाने वाले लड़के लती होने के कारण रोज
रोज इस आदत के आदी हो जाते हैं जबकि उतना खर्च कर पाना उनके बस का नहीं
होता है तो वो आपसी कंट्रीब्यूशन में चार पाँच लड़के मिलकर करते हैं ऐसे काम
जो पहले से ही उस कमरे में बैठे होते हैं जिसकी जानकारी पहले से उस लड़की
को नहीं होती है और वो वहाँ से भाग भी नहीं सकती है वहाँ होता है उसका
भीषण शारीरिक मानसिक शोषण और बाद में वो लड़की रोड पर छोड़ दी जाती है! अब
वो केस करे तो कैसे अपने घर वालों को भी नहीं बताना चाहती है क्योंकि
उन्हें तो बता रखा है की हम सर्विस करते हैं वो बात खुल जाएगी और यदि
उन्हें बता भी दे केस भी कर दे तो पुलिस को सच्चाई नहीं बताएगी कि हम वहाँ
तय शुदा पेमेंट पर अपनी इच्छा से गए थे यदि वह कानून की शरण में जाती है
तो सारी कार्यवाही
गैंग रेप की तरह ही की जाती है यहाँ तक कि चिकित्सकीय रिपोर्ट भी उसी
तरह की बनती है मीडिया में भी इसी प्रकार का प्रचार होता है इससे ऐसे
प्रकरणों में लगभग निर्दोष प्रशासन को अकारण दोषी माना जाता है जबकि वो करे
भी तो क्या ?उपाय भी तो बताना चाहिए !एक बड़ी बात ये भी कि उस कमरे में
पहुँच पाना उस लड़की के लिए बिलकुल असंभव सा होता है पहुँच भी जाए तो वो
कमरा उन लड़कों का तो होता नहीं है ऐसी परिस्थिति में पुलिस और कठोर कानून
भी क्या करे ?
जब जब समाज में इस तरह की बहस चलती है तब तब
सहमति से सेक्स करने वाले लोग फैशन के नाम पर इसके समर्थन में उतर जाते हैं
कुछ लोग राजनैतिक लोभ से महिलाओं को नाराज नहीं करना चाहते हैं इसलिए
कानून चुस्त दुरुस्त करने की बात करने लगते हैं दूसरे लोग इसकी बुराई करने
लगते हैं इनका काम तो केवल चर्चा करना होता है
टी. वी.चैनलों का काम एक प्रोग्राम बनाना होता है बनाया दिखाया छुट्टी !
इसलिए चर्चा की और शांत हो गए किन्तु पुलिस क्या करे उसे तो प्रत्यक्ष रूप
से कुछ करके दिखाना होगा वो क्या करे इन्हें रोके या न रोके !
गैंग रेप की घटनाएँ भी
आजकल अधिक रूप में घटने लगीं हैं जो घोर निंदनीय हैं और रोकी जानी चाहिए ।
इसमें कुछ और भी कारण सामने आए हैं जो विशेष चिंतनीय हैं एक तो वो जो
लड़कियाँ सामूहिक जगहों पर अपनी सहमति से अपने साथ किसी प्रेमी नाम के लड़के
को अश्लील
हरकतें करने देती हैं या हँसते हँसते सहा करती हैं उन्हें देखने वाले सब
नपुंसक नहीं होते ,सब संयमी नहीं होते ,सब डरपोक नहीं होते कई बार देखने
वाले कई लोग एक जैसी मानसिकता के भी मिल जाते हैं वो यह सब देखकर कुछ करने
के
इरादे से उनका पीछा करते हैं सामूहिक जगहों से हटते ही वो कई लड़के
मिलकर उन्हें दबोच लेते हैं वो अकेला प्रेमी नाम का जंतु क्या कर लेगा फिर
उस लड़की से उसका कोई विवाह आदि सामाजिक सम्बंध तो होता नहीं है जिसके लिए
वो अपनी कुर्बानी दे वो तो थोड़ी देर आँख मीच कर या तो निकल जाता है या समय
पास कर लेता है।अगले दिन सौ पचास रुपए किसी डाक्टर को देकर ऐसी ऐसी जगहों
पर पट्टियाँ करा लेता है ताकि लड़की को दिखा सके कि उसके लिए वो कितना लड़ा
है ऐसी दुर्घटनाएँ घटने के बाद यदि अधिक तकलीफ नहीं हुई तो
ऐसे प्रेम पाखंडी बच्चे डर की वजह से घरों में बताते भी नहीं हैं और जो
बताते भी हैं तो कुछ
अन्य कारण बता देते हैं!
ऐसी घटनाएँ कई बार देर
सबेर कारों में लिफ्ट
लेने,या ऑटो पर बैठकर,या सूनी बसों में बैठकर,या अन्य सामूहिक जगहों पर की
गई प्रेमी प्रेमिकाओं की आपसी अश्लील हरकतें देखकर घटती हैं यह नोच खोंच
देखते ही जो लोग संयम खो बैठते
हैं उनके द्वारा घटती हैं ये भीषण दुर्घटनाएँ !इनमें सम्मिलित लोग अक्सर
पेशेवर अपराधी नहीं होते हैं।ये सब देख सुनकर ही इनका दिमाग ख़राब होता है
।
इसीप्रकार आजकल कुछ छोटी
छोटी बच्चियों के साथ
किए जाने वाले बलात्कार नाम के जघन्यतम अत्याचार देखने सुनने को मिल रहे
हैं जिनका प्रमुख कारण अश्लील फिल्में तथा इंटर नेट आदि के द्वारा उपलब्ध
कराई जा रही अश्लील सामग्री आदि है आज जो बिलकुल अशिक्षित मजदूर आदि
लड़के भी बड़ी स्क्रीन वाला मोबाईल रखते हैं भले ही वह सेकेण्ड हैण्ड ही
क्यों न
हो ?होता होगा उनके पास उसका कोई और भी उपयोग !क्या कहा जाए!
इसीप्रकार के कुछ मटुक नाथ टाइप के ब्यभिचारी शिक्षकों ने प्यार की पवित्रता समझा समझाकर बर्बाद कर डाला है बहुतों का जीवन !
बड़े बड़े विश्व विद्यालयों
में पी.एच.डी. जैसी डिग्री हासिल करने के लिए लड़कियों को कई प्रकार के
समझौते करने पड़ते हैं यदि गाईड संयम विहीन और पुरुष होता है तो !क्योंकि
शोध प्रबंध उसके ही आधीन होता है वो जब तक चाहे उसे गलत करता रहे !वह थीसिस
उसी की कृपा पर आश्रित होती है ।
ज्योतिष के काम से जुड़े लोग या असंयमी बाबा लोग परेशान लड़कियों
महिलाओं को पहले मन मिलाकर सामने वाले के मन की बात जान लेते हैं फिर उसे
उसका मन चाहा काम या बशीकरण अादि करने के लिए मोटा खर्च बताते हैं जो न दे
पाने की स्थिति में वो लड़की या महिला उस पाखंडी को अपना शरीर सौंप देती है
यह खेल चलता रहता है कई बार वर्षों बीत जाते हैं वो उसके शरीर का मिस यूज
करते रहते हैं किन्तु जब काम नहीं होता है तब कुछ तो निराश होकर घर बैठ
जाती हैं कुछ ऐसे लोगों पर वर्षों बाद बलात्कार का केस करती हैं और कह देती
हैं की मैंने इनके भय के कारण नहीं बताया था किन्तु यह कहाँ तक विश्वास
करने योग्य है!
चिकित्सक लोग बीमारी
ढूँढने के बहाने सब सच सच उगलवा लेते हैं फिर ब्लेकमेल करते रहते हैं ।इसी
प्रकार से कार्यक्षेत्र में कुछ लोग अपनी
जूनियर्स को डायरेक्ट सीनियर बनाने के लिए कुछ हवाई सपने दिखा चुके होते
हैं उन सपनों को पकड़कर शारीरिक सेवाएँ लेते रहते हैं उनकी !किन्तु जब
महीनों वर्षों तक चलता रहता है ऐसा घिनौना खेल, किन्तु दिए गए आश्वासन झूठे
सिद्ध
होने लगते हैं तब झुँझलाहट बश जो सच सामने निकल कर आता है उनमें आरोप
बलात्कार का लगाया जाता है किन्तु किसी भी रूप में आपसी सहमति से महीनों
वर्षों तक चलने वाले शारीरिक सम्बन्धों को बलात्कार कहना कहाँ तक उचित होगा
?ऐसे स्वार्थ बश शरीर सौंपने के मामले राजनैतिकादि अन्य क्षेत्रों में
भी घटित होते देखे जाते हैं वहाँ भी वही प्रश्न उठता है कि ऐसी
परिस्थितियों में कैसे रुकें बलात्कार ?
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