Tuesday, March 1, 2016

dalit kaanuun ....

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दलित दुकानदारी बंद हो !
सवर्णों को गालियाँ देकर कुछ लोग बहुत बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा पा गए कुछ ने दलितों के नाम से भारी भरकम चंदा लिया और खुद खा गए सरकारों से अनुदान लिया अपने पास रख लिया आज ऐसे नेताओं से उनकी अचानक इकठ्ठा की गई अकूत सम्पत्तियों के स्रोत पूछे जा सकते हैं क्या और यदि नहीं तो क्यों ?ऐसे ही दमनकारी लोगों ने उस युग में गरीबों का शोषण किया था वही इस युग में कर रहे हैं इनकी कोई जाति धर्म नहीं होता जैसे ये इस युग में नहीं रोके जा पा रहे हैं ऐसे ही ये पहले भी नहीं रोके जा सके थे इसके लिए सारा समाज जिम्मेदार है न कि केवल सवर्ण !फिर गालियाँ सवर्णों को क्यों ?


जातिगत आरक्षण सवर्णों के लिए एक बड़ी सजा है !
ये सवर्णों के उन पूर्वजों पर आरोप लगाकर दी जा रही है जो आज इस दुनियाँ में नहीं हैं लोकतांत्रिक देश में न्याय की व्यवस्था यदि सबके लिए है तो आरक्षण जैसी कठोर सजा देने से पहले सवर्णों का पक्ष भी तो सुना जाए !सवर्णों ने दलितों का शोषण किया कब क्यों और कैसे ?बहुसंख्यक दलितपूर्वजों ने उस युग में इसका विरोध क्यों नहीं किया ? 


मनुस्मृति की निंदा क्यों ?
जिन्होंने जब लिखी थी तभी नियम बना दिया गया था कि मनुस्मृति केवल सतयुग में मानी जाएगी कह दिया गया था कि 


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