जिनके चरित्र की चर्चा सुनकर बिगड़ रहे हैं देश के बच्चे !उन्हें नेता साधू संत शिक्षक या अधिकारी मानने का मन ही नहीं करता !इन पर विश्वास करना दिनों दिन कठिन होता जा रहा है !
देश का बचपन बचाने की सशक्त पहल की जरूरत है अन्यथा "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"कहने से कुछ नहीं होगा ! बेटियों को बचाना और पढ़ाना तो दूर उनकी जीवन रक्षा भी होती अब तो कठिन दिख रही है सरकारी सुरक्षा उनकी रक्षा करने में सफल नहीं है और सरकारी शिक्षक इतने पढ़े लिखे कहाँ होते हैं कि बेटियों को पढ़ा लें वो बुद्धू शिक्षक अपने बच्चे खुद प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं !
बड़े से बड़ा अपराधी या तो किसी नेता का ख़ास होगा या किसी बाबा का इनकी मदद के बिना अपराध कर पाना आसान है क्या !
आप थोड़ा सा कोई गलत काम करके देखिए अगले दिन ही कोई सरकारी बाबू आपके दरवाजे आकर खड़ा हो जाएगा आपको रोकने के लिए नहीं किंतु आपसे हफ्ता महीना आदि माँगने इसका मतलब है कि लगभग सभी प्रकार के अपराधों की जानकारी सरकारियों की जेब में हो होती है किंतु जब तक वो पैसे देते हैं तब तक वो निर्भय विचरण करते हैं किंतु जिस दिन वे बेचारे घूस न दे पाए उसी दिन सरकारी कमाऊपूत उसे पकड़ कर ऐसे खड़े होते हैं जैसे कोई कायर किसी सिंह को पकड़ने में सफल हो गया हो !उसकी ऐसे जाँच करने का नाटक किया जाता है जैसे मंगल ग्रह पर पानी खोज रहे हों !कुल मिलाकर कार्यवाही केवल भोले भाले और भले लोगों पर होती है बाकी जितने असली अपराधी हैं उनकी ओर देखता कौन है !यही कारण है कि कोई भी आम आदमी व्यापार शुरू तो कर लेता है किंतु चला कम ही लोग पाते हैं वहीँ नेताओं और बाबाओं के बड़े बड़े संस्थान स्कूल कालेज फैक्ट्रियाँ आदि केवल चल ही नहीं रही हैं अपितु दौड़ रही हैं आखिर कैसे !
जितने बाबा अपराधों में पकड़े गए सब करोडों अरबोंपति निकले आखिर कैसे !जिनकी जाँच ही नहीं हुई वे पकड़े कैसे जाते जो नहीं पकड़े गए वो निकलते कैसे !जिन बाबाओं के बस का कमाना नहीं था किंतु खाने के शौकीन थे वे बाबा बने थे खाने के लिए किंतु वे अकर्मण्य लोग अचानक व्यापारी बन जाएँ ये बात समझ के बाहर की है !दूसरी बात यदि वे इतने ही काबिल थे तो जब उन्हें करना ही व्यापार था तो उन्होंने संन्यास को बदनाम क्यों किया पहले से ही व्यापार करने लगते किसने रोका था उन्हें !किंतु व्यापार करने के लिए जो पाप करना जरूरी था वो करने की अघोषित छूट या तो नेताओं को होती है या फिर बाबाओं को !व्यापार के लिए जुटाई जाने वाली जरूरी फंडिंग दूसरी बात व्यापार में घाटा हो जाने पर उसकी भरपाई की धनराशि बाबा धर्म के नाम पर समाज से माँग लेते हैं और नेता पार्टी फंड के नाम पर इकठ्ठा कर लेते हैं और फिर शुरू कर देते हैं व्यापार !कुल मिलाकर सारा फायदा उनका और घाटा समाज का !
कई महाभ्रष्ट बाबाओं को तो यहाँ तक कहते सुना जाता है कि मैं एक ग्लास गाय का दूध पीकर रहता हूँ केवल !अरे !यदि वे इतने ही विरक्त होते तो इतने सारे प्रपंचों में फँसते क्यों ? वे कहते हैं हम ब्रह्मचारी हैं जबकि उनके आश्रमों में सैकड़ों महिलाएँ भी रहती हैं जिनमें कुछ के बच्चे बाबा जी के अपने होते हैं और कोई समझ भी नहीं पाता है कि बाबा जी गृहस्थ हैं जो महिला घरेलू कलह से तंग आकर शांति की तलाश में किसी आश्रम पहुँची तो बाबा जी को केवल एक बात ही कहनी होती है कि आपके पति के संबंध किसी और से हैं तो तू क्यों उसके चक्कर में पड़ी है ऐसा समझा कर रख लेते हैं रखैल बनाकर !उन्हीं के बच्चों के लिए भूत बनकर कमाते रहते हैं बाबा जी !
ये बेईमान झुट्ठे कहते हैं कि हम चैरिटी करते हैं और अरबों रूपए कमा रहे होते हैं !चैरिटी में कहीं कमाई होती है क्या !यही हाल नेताओं का है !ये दोनों भरोसा करने लायक ही अब नहीं रहे हैं !चरित्रवान ईश्वर भक्त साधूसंत और देश भक्त नेता मुश्किल से ही ढूँढे मिलते हैं आज कल !
आपको जो व्यक्ति चरित्रवान कर्मठ ईमानदार परिश्रमी देशभक्त आदि लगे उसे किसी राजनैतिक पार्टी में सम्मिलित कराने के लिए ले जाओ या तो उसे पार्टी से जोडेंगे नहीं विशेष दबाव में यदि जोड़ना पड़ा भी तो अंदर ही अंदर उसे इतना अधिक सताएँगे कि थोड़े दिनों में वो स्वयं भाग खड़ा होगा अन्यथा राजनैतिक नपुंसकता का शिकार होकर वहीँ पड़े पड़े दफन हो जाएगा !
बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
देश का बचपन बचाने की सशक्त पहल की जरूरत है अन्यथा "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ"कहने से कुछ नहीं होगा ! बेटियों को बचाना और पढ़ाना तो दूर उनकी जीवन रक्षा भी होती अब तो कठिन दिख रही है सरकारी सुरक्षा उनकी रक्षा करने में सफल नहीं है और सरकारी शिक्षक इतने पढ़े लिखे कहाँ होते हैं कि बेटियों को पढ़ा लें वो बुद्धू शिक्षक अपने बच्चे खुद प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं !
बड़े से बड़ा अपराधी या तो किसी नेता का ख़ास होगा या किसी बाबा का इनकी मदद के बिना अपराध कर पाना आसान है क्या !
आप थोड़ा सा कोई गलत काम करके देखिए अगले दिन ही कोई सरकारी बाबू आपके दरवाजे आकर खड़ा हो जाएगा आपको रोकने के लिए नहीं किंतु आपसे हफ्ता महीना आदि माँगने इसका मतलब है कि लगभग सभी प्रकार के अपराधों की जानकारी सरकारियों की जेब में हो होती है किंतु जब तक वो पैसे देते हैं तब तक वो निर्भय विचरण करते हैं किंतु जिस दिन वे बेचारे घूस न दे पाए उसी दिन सरकारी कमाऊपूत उसे पकड़ कर ऐसे खड़े होते हैं जैसे कोई कायर किसी सिंह को पकड़ने में सफल हो गया हो !उसकी ऐसे जाँच करने का नाटक किया जाता है जैसे मंगल ग्रह पर पानी खोज रहे हों !कुल मिलाकर कार्यवाही केवल भोले भाले और भले लोगों पर होती है बाकी जितने असली अपराधी हैं उनकी ओर देखता कौन है !यही कारण है कि कोई भी आम आदमी व्यापार शुरू तो कर लेता है किंतु चला कम ही लोग पाते हैं वहीँ नेताओं और बाबाओं के बड़े बड़े संस्थान स्कूल कालेज फैक्ट्रियाँ आदि केवल चल ही नहीं रही हैं अपितु दौड़ रही हैं आखिर कैसे !
जितने बाबा अपराधों में पकड़े गए सब करोडों अरबोंपति निकले आखिर कैसे !जिनकी जाँच ही नहीं हुई वे पकड़े कैसे जाते जो नहीं पकड़े गए वो निकलते कैसे !जिन बाबाओं के बस का कमाना नहीं था किंतु खाने के शौकीन थे वे बाबा बने थे खाने के लिए किंतु वे अकर्मण्य लोग अचानक व्यापारी बन जाएँ ये बात समझ के बाहर की है !दूसरी बात यदि वे इतने ही काबिल थे तो जब उन्हें करना ही व्यापार था तो उन्होंने संन्यास को बदनाम क्यों किया पहले से ही व्यापार करने लगते किसने रोका था उन्हें !किंतु व्यापार करने के लिए जो पाप करना जरूरी था वो करने की अघोषित छूट या तो नेताओं को होती है या फिर बाबाओं को !व्यापार के लिए जुटाई जाने वाली जरूरी फंडिंग दूसरी बात व्यापार में घाटा हो जाने पर उसकी भरपाई की धनराशि बाबा धर्म के नाम पर समाज से माँग लेते हैं और नेता पार्टी फंड के नाम पर इकठ्ठा कर लेते हैं और फिर शुरू कर देते हैं व्यापार !कुल मिलाकर सारा फायदा उनका और घाटा समाज का !
कई महाभ्रष्ट बाबाओं को तो यहाँ तक कहते सुना जाता है कि मैं एक ग्लास गाय का दूध पीकर रहता हूँ केवल !अरे !यदि वे इतने ही विरक्त होते तो इतने सारे प्रपंचों में फँसते क्यों ? वे कहते हैं हम ब्रह्मचारी हैं जबकि उनके आश्रमों में सैकड़ों महिलाएँ भी रहती हैं जिनमें कुछ के बच्चे बाबा जी के अपने होते हैं और कोई समझ भी नहीं पाता है कि बाबा जी गृहस्थ हैं जो महिला घरेलू कलह से तंग आकर शांति की तलाश में किसी आश्रम पहुँची तो बाबा जी को केवल एक बात ही कहनी होती है कि आपके पति के संबंध किसी और से हैं तो तू क्यों उसके चक्कर में पड़ी है ऐसा समझा कर रख लेते हैं रखैल बनाकर !उन्हीं के बच्चों के लिए भूत बनकर कमाते रहते हैं बाबा जी !
ये बेईमान झुट्ठे कहते हैं कि हम चैरिटी करते हैं और अरबों रूपए कमा रहे होते हैं !चैरिटी में कहीं कमाई होती है क्या !यही हाल नेताओं का है !ये दोनों भरोसा करने लायक ही अब नहीं रहे हैं !चरित्रवान ईश्वर भक्त साधूसंत और देश भक्त नेता मुश्किल से ही ढूँढे मिलते हैं आज कल !
आपको जो व्यक्ति चरित्रवान कर्मठ ईमानदार परिश्रमी देशभक्त आदि लगे उसे किसी राजनैतिक पार्टी में सम्मिलित कराने के लिए ले जाओ या तो उसे पार्टी से जोडेंगे नहीं विशेष दबाव में यदि जोड़ना पड़ा भी तो अंदर ही अंदर उसे इतना अधिक सताएँगे कि थोड़े दिनों में वो स्वयं भाग खड़ा होगा अन्यथा राजनैतिक नपुंसकता का शिकार होकर वहीँ पड़े पड़े दफन हो जाएगा !
बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
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