क्या शिक्षा की दुर्दशा के लिए ही हैं सरकारी स्कूल ?
क्या प्राइवेट विद्यालयों में पढ़ाई अच्छी होती है या वहाँ सुविधाएँ अधिक हैं यद्यपि ऐसा कुछ न होने के बाद भी आम लोग आज भी उन पर विश्वास करते हैं जिस विश्वास को सरकारी विद्यालय उस रूप में बचा कर नहीं रख सके!
शिक्षा की नीतियाँ बनती बिगड़ती रहती हैं कोई पढ़ावे न पढ़ावे
इसकी जिम्मेदारी किसी की नहीं है किन्तु शिक्षकों एवं शिक्षा से संबंधित
अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी समय से न केवल मिलती है अपितु महँगाई के
साथ साथ समय से बढ़ा भी दी जाती है।इससे अधिकारी कर्मचारी सब प्रसन्न रहते
हैं।
बच्चों को भोजन वस्त्र ,पुस्तकें,छात्रवृत्तिआदि जो कुछ भी मिलता है।इस प्रकार शिक्षा से संबंधित अधिकारियों,कर्मचारियों,अध्यापकों एवं अभिभावकों
को प्रसन्न करने का इंतजाम पूरा है किंतु पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
सरकार ने रसोइए का काम सम्हाल रखा है उसके शिक्षक भोजन बाँटने की पचासों हजार सैलरी उठा रहे हैं सरकार को लगता है कि बच्चों की शिक्षा हो न हो भोजन बहुत जरूरी है।शिक्षा व्यवस्था प्राइवेट विद्यालय वाले देख ही रहे हैं।प्राइवेट विद्यालय जितनी महँगी शिक्षा बेच लेते हैं सरकार के बश का नहीं है इसलिए कहा जा सकता है कि सही मायने में शिक्षा का मूल्य प्राइवेट विद्यालय ही समझते हैं तभी तो वो अभिभावकों से भी शिक्षा की कीमत वसूल करने में सफल हो पा रहे हैं।
आज जिसके बच्चे का एडमिशन कहीं नहीं होता है वो सरकारी विद्यालयों की
शरण लेता है। वहाँ कितनी दुर्दशा सरकारी विद्यालयों के अध्यापक हमेशा आभाव का ही रोना रोते
रहते हैं कभी अपनी कमियाँ स्वीकार ही नहीं करते हैं।भारतीय गुरुकुलों में
पहले बिना संसाधनों के ही उत्तम पढ़ाई होती थी चूँकि तब पढ़ाने
वाले चरित्रवान, ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ
गुरुजन होते थे जिसका आज दिनों दिन अभाव होता जा रहा है। उस युग में
बोरों फट्टों पर बैठाकर शिक्षा देने वाले लोगों ने भी इतिहास रचा है और आज
...!
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