भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Friday, February 1, 2013
प्रेम और प्रेम विवाहों में न विवाह का सुख न बच्चों का भविष्य
देखिए, सभीप्रकार की अनहोनी सभी के साथ कभी भी हो सकती है वह ईश्वर की ईच्छा के आधीन है किन्तु प्रेम विवाह जैसी सामाजिक बुराई एवं बीमारी से समाज को स्वयं बचना एवं बचाना चाहिए।इसके तमाम सामाजिक दुष्परिणाम प्रकारान्तर से सामने आने लगे हैं।आज
समाचारों के नाम पर ज्यादातर समाचार छेड़छाड़, बलात्कार, प्रेमविवाह और इस
प्रकार कई केशों में हत्या या आत्म हत्या जैसी बातों के ही तो सुनने को मिल
रहे हैं यह गंभीर चिंता की बात है तथा प्रबुद्ध समाज सुधारकों के लिए इस
समय चिंतन की आवश्यकता है ।ज्योतिष की दृष्टि से हम अपना मत प्रस्तुत करते हैं इसके अलावा और भी कारण हो सकते हैं जिनसे हम इन्कार नहीं कर रहे हैं। किसी
के जीवन में हमेंशा एक जैसी परिस्थिति नहीं रहती है एक जैसा स्वभाव नहीं
रहता है।यह परिस्थिति और स्वभाव जन्य नरम और गरम बदलाव हर किसी के जीवन
में हमेंशा हुआ करते हैं, किंतु प्रत्येक स्त्री-पुरुष के जीवन में कुछ कुछ वर्ष ही ये बदलाव रहते हैं।जिनका पता ज्योतिष शास्त्र के कुशल विद्वान आसानी पूर्वक लगा लिया करते हैं। यदि उतने दिन शांति और सहनशीलता के साथ बिता लिए जाएँ तो फिर जीवन आनंदमय बीतने लगता है।
इसप्रकार वैवाहिक दृष्टि से जिसका समय जब खराब होता है वह जहॉं हाथ डालता है वहॉं घाटा ही होता है क्योंकि उस समय ऐसे लोगों की अपनी सोच बिगड़ जाती है अच्छे निर्णय लेने की क्षमता नष्ट हो जाती है।बुरे निर्णय अच्छे लगने लगते हैं बुरे सलाहकार अच्छे लगने लगते हैं यह देखकर अच्छे लोग दूरियॉं बनाने लग जाते हैं। निजी संबंधों के बाजारीकरण के कारण उसके अपने पति या पत्नी भी उससे दूरी बनाकर रहने लग जाते हैं।इस प्रकार ये दोनों एक दूसरे से अलग होकर भटकने लगते हैं।कई बार ये दोनों संयम से भी समय बिताते देखे जाते हैं जो बुरे समय में बड़ा कठिन होता है, अन्यथा एक दूसरे को सबक सिखाने के तेवर में अधिकतर स्त्री-पुरुष किसी तीसरे से जुड़कर उससे संबंध बनाने का प्रयास करते हैं जबर्दस्ती किया तो बलात्कारऔर फिर जेल,सामाजिक अपमान,अपयश आदि सारी दुर्दशा होती है,और यदि जबर्दस्ती न किया सलाह में संसर्ग सुख लिया तो अपना ही शारीरिक भावनात्मक शोषण होगा।दूसरा तो मौज मस्ती के लिए जुड़ेगा फिर छोड़ देगा। उससे तो विवाह ही नहीं हुआ तो तलाक कैसे होगा इस प्रकार पशुओं की तरह लोग पकड़ते छोड़ते रहेंगे।कुल मिलाकर इनका ज्योतिष की दृष्टि आया हुआ बुरा समय तो तनाव में ही बीत रहा होता है। इस प्रकार यह दुखद पीड़ा जब तक शरीर में रौनक रहती है तब तक भोगनी ही पड़ती है।निरंतर तनाव के कारण शरीर में रौनक भी अधिक दिन नहीं रहती है शरीर बहुत जल्दी टूट जाता है इसके बाद कोई पूछने ही नहीं लगता है।असंयमित जीवन एवं संतानों की परवरिश में हुई लापरवाही के कारण संतानें सेवा नहीं करना चाहती हैं।इस प्रकार की परिस्थिति में कानून या सरकार बेशक कुछ संसाधन जुटाने में सहयोग दे या दिला दे किंतु भोगना तो स्वयं ही पड़ता है ऐसे लोगों का बुढ़ापा बड़ा गंदा बीतता है। सच यह है कि माता पिता की सेवा जैसे धर्म वाक्य धर्मवान लोगों के लिए ही बने हैं किंतु जिसने अपनी जिंदगी ही जवानी मौज मस्ती एवं रॅंग रेलियॉं मनाकर बिताई हो!उसके लिए क्या? किस मजबूरी में बिताई है यह एक अलग बात है किंतु संताने ऐसे माता पिता की सेवा को धर्म क्यों मॉंनेंगी?वो भी अपना जीवन मौज मस्ती में ही बिताना चाहेंगी ।
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