Friday, November 15, 2013

      

चुनावों के समय किसी ऐतिहासिक, धार्मिक  या   

 

क्या  भारतीय राजनीति में बलिप्रथा अभी भी है 


      हमारे यहाँ भ्रष्टाचार न रुकने का का मुख्य कारण मुद्दों पर चुनावों का न होना है भावना प्रधान ऐतिहासिक धार्मिक आदि मुद्दे उठा कर जीत लिए जाते हैं पता नहीं राजनेताओं को क्यों लगता है कि 
        सतर्क रहो, होशियार रहो, जागते रहो!राजनेता बस्तियों में घुस आए हैं !!!
     जो नेता तुम्हें केवल रोटियों की गारंटी दे रहा है वह अपने लिए खीर पूड़ी की गारंटी आपसे ले रहा है !इनसे बच के सावधान होकर चलने की जरूरत है अन्यथा तुम्हें रोटियों के कुछ टुकड़े पकड़ाकर खुद  खीर पूड़ी लेकर भाग जाएँगे!वर्त्तमान राजनेता  बड़े ही शातिर लोग हैं इन्हें कुछ देना ही होता तो दस साल से सत्ता में थे तब क्यों नहीं दे दिया! तब क्यों नहीं लेकर आए भोजन गारंटी बिल ?झुट्ठे कहीं के !!! 
                                     डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
         संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
    
    घूस देकर सत्ता में  आने वाले नेताओं से न्याय की आशा ही नहीं करनी चाहिए !
      यदि हम अपना लालच नहीं रोक सकते तो नेताओं से ऐसी उम्मींद ही क्यों करते हैं कि वो अपना लालच रोक लेंगे !जो हमें जितने प्रतिशत आरक्षण या भोजन आदि जो कुछ भी देगा वह उससे दस गुना अधिक देश को नोचेगा यही अभी तक हो रहा है!इस नोचने को ही  भ्रष्टाचार कहते हैं इसकी जड़ में स्वयं हम लोग और हमारा लोभ ही है। जिसे हम नहीं रोक पा रहे हैं और देश को भ्रष्टाचार और अपराध के गर्त में धकेलते जा रहे हैं! आरक्षण पाने वालों के चेहरे आज भी मुरझाए हुए हैं किन्तु आरक्षण देने वाली बहन जी लोग तीन  तीन करोड़ के घाँघरे पहन कर ठेंगा दिखाती  घूम रही हैं कर ले कोई क्या करेगा ?
                                    डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
         संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

       देश के सारे लोग भिखारी हैं क्या ?
कोई भोजन की गारंटी दे रहा है कोई आरक्षण दे रहा है कोई और कुछ दे रहा है बेचारे राजनेता केवल कुछ न कुछ देने के लिए परेशान  हैं जनता को कुछ देने के लिए तो कई नेता लोग देने वाली लाइसेंसी टिकट न मिलने पर अपनी पैतृक पार्टियाँ छोड़ छोड़ कर  देने की टिकट देने वाली पार्टियों की पोशाकें पहन पहन कर उन्हीं की हाँ में हाँ मिलाते घूमने लगे हैं !
   देश की जनता चुनावों में देने की बात सुनते ही पागल हो उठती है उसी को सत्ता सौंप देती है जो कुछ देने की चिकनी चुपड़ी बातें कर लेता है ! यह सब देख सुन कर मैं तो यही कहूँगा कि देने वाले हों या लेने वाले ईश्वर दोनों की आत्मा को शान्ति दे!
   अब भी राष्ट्रवादी लोग फ्री में न किसी से कुछ लेना चाहते हैं न कुछ देना!वे लोग तो केवल अपने परिश्रम  का भरोसा करते हैं और ईश्वर की कृपा से स्वस्थ एवं सानंद रहते हैं माँगने वाले मँगता भी बन जाते हैं मिलता भी कुछ नहीं है लोग समझने भी भिखारी लगते हैं इसलिए इन नेताओं से कुछ भी माँगना बंद किया जाना चाहिए और इनसे कहा जाना चाहिए कि आप केवल राष्ट्र हित में काम कीजिए उसी में हम सभी प्रसन्न रहेंगे !
                            डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
         संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान


       चुनावों के समय कुछ राजनैतिक दल या लोग आरक्षण देने लगते हैं कुछ माँगने लगते हैं जब तक ये माँगने और देने कि लत नहीं छूटेगी तब तक राजनैतिक शुद्धिकरण होने की सम्भावना ही नहीं दिखती है और न मिटते दिखता है भ्रष्टाचार न ही घटते दिखते हैं अपराध ! 
            डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
         संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

  जबकि पिछले चुनावों में जिन  नेता जी के एकाउंट में दो करोड़ रुपए थे वो इस चुनावों में दो सौ करोड़ हो जाते हैं लेकिन सेवा बेचारे जनता की करते हैं !धन्य हो -
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
         संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
                                    क्या राजनीति में बलिप्रथा अभी भी चल रही है ?

    अक्सर आप देखते होंगे कि कोई पार्टी चुनावों में किसी धार्मिक महापुरुष के व्यक्तित्व की बलि देकर चुनाव जीत लेती है तो दूसरी पार्टी किसी व्यक्ति की बलिदेकर जीत लेती है चुनाव !कोई पार्टी अपने दल के किसी सुपूजित परिवार के बहु पूजित किसी सदस्य को ही धार पर लगा देती है!   इस प्रकार से हर चुनाव  में कोई न कोई बलि पशु किसी न किसी बाबा,नेता या नेता पुत्र के रूप में इन लोगों को मिल ही जाता है!जिसे चुनावों तक बहुत पूजते हैं उसकी हर बात सुनते मानते एवं समर्थन करते हैं बात बात में हाँ जी हाँ जी करते हैं चुनावों में उसके व्यक्तित्व की बलि दे दी जाती है इसके बाद दोनों हमेंशा हमेंशा के लिए शांत  हो जाते  हैं !
    ऐसे ही और भी भिन्न भिन्न सिद्धांतों की पार्टियाँ हैं जिनके बड़े बूढ़े कार्यकर्ता लोग भी अपना ज्ञान,गरिमा,शिक्षा ,उम्र,अनुभव आदि सारी मर्यादाएँ  भूल कर जिसकी ओर दंडवत लेटने,प्रणाम करने या जिसे देवी देवताओं की  तरह पूजने लगते हैं चुनावों में जीत दिलाने एवं सत्ता में बना रखने के लिए वह उनका अपना बलिपशु होता है जब तक उसका व्यक्तित्व या उसे मिटा नहीं देते हैं तब तक उसे बात बात में झाड़ पर चढ़ाए ही रहते हैं इस प्रकार से जब पार्टी की छबि घोटालों के कारण बहुत खराब हो जाती है तब इसी  बलि के बल पर चुनाव जीतने  में उन्हें  कोई खास दिक्कत नहीं उठानी पड़ती है। 
    इस प्रकार से ऐसी  पार्टियों  के कार्य कर्ता बेझिझक होकर  सत्ता  सुख भोगते रहते हैं । उन्होंने अपनी विजय का यही मूलमंत्र मान रखा  है।      

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