क्या आप भी लेना पसंद करेंगे अशिक्षा मिटाने का महान व्रत ?
हमारा विनम्र निवेदन आपसे भी -
अधिकांश एम.सी.डी. व सरकारी प्राथमिक स्कूलों में प्रातः आठ से साढ़े आठ बजे के बीच शिक्षक लोग स्कूल पहुँचते हैं, नौ से सवा नौ बजे तक वो एक दूसरे के हाल चाल लेते हैं इसके बाद लंच हो जाता है जो साढ़े दस बजे तक चलता है, इसके बाद सप्ताह में कम से कम एक एक दिन एक एक शिक्षक बीमार होता ही रहता है, एक शिक्षक को जरूरी काम लगा करता है ,किसी किसी को दवा लेने जरूरी जाना होता है। एक शिक्षक के विशाल सर्कल में किसी न किसी के साथ कोई न कोई दुर्घटना घटती रहती है, इसलिए उसे स्कूल समय में ही वहाँ देखने जाना जरूरी होता है, एक शिक्षक को स्कूली काम से जरूरी कहीं जाना पड़ा करता है, एक शिक्षक को आवश्यक मीटिंग में जाना ही होता है । किसी किसी को अपने बच्चे के बर्थ डे की तैयारी करनी होती है, किसी के यहाँ गेस्ट आ रहे होते हैं ऐसी सभी समस्याओं के बीच अभिभावकों को पहले से ही कहा गया होता है कि छुट्टी के पाँच मिनट बाद भी आपके बच्चे की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी इस वाक्य से भयभीत बिचारे अभिभावक अपने बच्चे को लेने के लिए छुट्टी से आधा एक घंटा पहले ही स्कूल आने लगते हैं और ले जाने लगते हैं अपने अपने बच्चे! इस प्रकार से एम.सी.डी. व सरकारी स्कूलों में छुट्टी होने से पहले ही हो जाती है छुट्टी !
एम.सी.डी. वा सरकारी स्कूलों में जिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर चालीस पचास हजार सैलरी लेने वाले एम.सी.डी. व सरकारी स्कूलों के शिक्षकों से लेकर मोटी मोटी सैलरी लेने वाले अधिकारी तक अपने बच्चों को उन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने में गर्व करते हैं जहाँ दस पाँच हजार रूपए महीने की सैलरी लेने वाले प्राइवेट स्कूलों वाले शिक्षक पढ़ा रहे होते हैं कितना आश्चर्य है !
पढ़ाई के नाम पर बहुत सारी योजनाएँ बनती बिलीन होती रहती हैं विज्ञापनों पर खूब खर्च किया जाता है, शिक्षा के लिए बड़े बड़े उत्सव धूम धाम से मनाए जाते हैं, शिक्षा की तरक्की के नाम पर झूठ बोलवाने वा झूठे झूठे सपने दिखाने के लिए अच्छे अच्छे कपड़े पहना पहना कर अच्छे अच्छे लोग बोलाए जाते हैं, उनके साथ चिपक चिपक कर चित्र खिंचा खिंचा कर आफिस में लगाए लटकाए जाते हैं ! स्कूल की दीवारों पर स्वास्थ्य रक्षक प्रेरणा देने वाले वाक्य लिखे या लिखवाए गए होते हैं किन्तु जिन बच्चों के भविष्य सुधारने के लिए ये सब किया जा रहा होता है बेचारे उन बच्चों को पता तक नहीं होता है कि उनके भविष्य को सुधारने के लिए ये सब किया जा रहा है उन्हें आभाष ही नहीं कराया जाता है कि उनकी चिंता भी किसी को है ! एम.सी.डी. व सरकारी स्कूलों का सम्मान समाज में आज इतना अधिक गिर चुका है कि जो माता पिता अपने बच्चों को यहाँ पढ़ाते हैं वे इतनी हीन भावना से ग्रस्त होते हैं कि उनमें इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बच्चे के शिक्षक से बात कर सकें ?वो और दस बातें सुना देंगे ! जब ये स्थिति राष्ट्रीय राजधानी की है तो सारे देश के दूर दराज क्षेत्रों का हाल क्या होगा!
यदि ऐसी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में आप भी कोई जिम्मेदारी निभा सकते हैं तो अवश्य निभाइए यह सबसे पवित्र कार्य होगा क्योंकि बच्चे देश का भविष्य होते हैं देश का भविष्य बिगड़ने मत दीजिए। गरीब लोग एक बार भोजन कर के रह लेंगे पुराने धुराने आधे अधूरे कपड़े पहन कर रह लेंगे अपने बच्चे रख लेंगे और समाज की उपेक्षा अपमान सह लेंगे किन्तु एक आशा पर कि उनके बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा कभी तो हो पाएँगे इस समाज में सम्मान पूर्वक सर उठाकर चलने लायक !
अरे! सम्माननीय शिक्षकों ,अधिकारियों, काँग्रेसियों,भाजपाइयों सहित सभी पार्टियों के नेताओं,सभी अखवारों टी. वी.चैनलों के सम्माननीय पत्रकार बंधुओं समेत इस विश्व गुरु भारत के सभी प्रबुद्ध नागरिकों आप सबसे प्रार्थना है याचना है कि बचा लीजिए गरीबों के बच्चों का भविष्य ! ये वर्त्तमान समाज पर आपका बहुत बड़ा उपकार होगा!
बलात्कार भ्रष्टाचार आदि अपराधों पर नियंत्रण करने के लिए बहुत आवश्यक है कि सुधरें शिक्षा और संस्कार !सरकार के साथ साथ शिक्षा सुधार हम सबका भी कर्तव्य है ।अतः आप सबसे भी प्रार्थना है कि अपने अत्यंत व्यस्त समय में से थोड़ा सा समय निकालकर एक बार जरूर देख लिया कीजिए कि आपके पड़ोस के स्कूल पढ़ाई में लापरवाही तो नहीं हो रही है इतनी जिम्मेदारी आप भी निभाइए !अन्यथा -
"जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास"
निवेदक -
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
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