Saturday, August 1, 2020

आदरणीय गोपाल आर्य जी !



आदरणीय गोपाल आर्य जी !
                                           सादर प्रणाम 

विषय : मौसमपूर्वानुमान एवं महामारी से संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिषय में विनम्र निवेदन !

   महोदय !
     आपकी अत्यंत व्यस्तता में मैं आपको बार बार फोन करता हूँ तो मुझे संकोच होता है कि आपको व्यवधान होता होगा !मेरी विवशता यह है कि समय दिनोंदिन बीतता जा रहा है आज जो काम जितनी क्षमता से मैं करने की स्थिति में हूँ वह दिनोंदिन कमजोर होनी स्वाभाविक ही है यह काम इतना बड़ा है जिसे करने के लिए पर्याप्त साधन विद्वत्ता और अनुसंधान भावना से भावित परिश्रमी लोगों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता है |यह काम करने के लिए भी समय चाहिए !ऐसा सोचकर जब परेशान  होता हूँ तब आपसे ही निवेदन करता हूँ !
   बिडंबना यह है कि वेद विज्ञान के क्षेत्र में भाषण एवं प्रमाण देने वाले तो बहुत लोग मिल जाते हैं | किंतु इस बिषय में अनुसंधान भी किया हो और उसे तर्कों के साथ प्रमाणित भी करने की क्षमता रखने वाले विद्वानों की संख्या इतनी कम है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है | वेद विज्ञान पर अनुसंधान के लिए बड़े बड़े प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं किंतु वहाँ भी अनुसंधान करने वालों की कमी के कारण आज तक वेद विज्ञान विषय को विश्वमंच पर विश्वसनीयता से प्रमाणित नहीं किया जा सका है |
     आधुनिक विज्ञान  के पास भी ऐसा कोई साधन नहीं है जिसके द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सके !मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि प्राकृतिक अनुसंधानों के क्षेत्र में वेद विज्ञान के बिना असंख्य अनुसंधान अधूरे पड़े हैं या फिर उन्हें न समझने के कारण उन प्राकृतिक घटनाओं के साथ जिन तथ्यों को जोड़ा जा रहा है वे केवल काल्पनिक हैं उनका सच्चाई से कपि संबंध नहीं है | यही कारण है कि मौसम से लेकर महामारियों तक के स्वभाव को समझना उनका पूर्वानुमान लगाना उनके वेग की अधिकता या न्यूनता को समझ पाना अभी तक विज्ञान के लिए असंभव सा बना हुआ है |
   श्रीमान जी !वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को बहुत बड़ी आशा रहती है कि इनसे हमारे जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं को आसान बनाया जा सकेगा !हमारे संकटों को कम किया जा सकेगा !कई क्षेत्रों में विज्ञान ने ऐसा करके दिखाया भी है इसीलिए उसके प्रति विश्वास बढ़ना स्वाभाविक भी है |
      चिंता की बात यह है कि प्राकृतिक बिषयों में अनुसंधान करने के लिए अभी तक ऐसा कोई प्रमाणित विज्ञान खोजा नहीं  जा सका है जिसके द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सके और प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना उपग्रहों रडारों की मदद से  बादलों और आँधी तूफानों की एक जगह उपस्थिति देखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और गति के हिसाब से यह अंदाजा लगा लेना कि ये कब किस देश या प्रदेश में पहुँचेंगे उसे बता देना ये कोई पूर्वानुमान नहीं है और न ही इसमें विज्ञान जैसा कुछ भी है |
    कृषिकार्यों , प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई प्रमाणित वैज्ञानिक प्रक्रिया प्रचलन में नहीं है जो ऐसे बिषयों से संबंधित समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके !यही कारण है कि मानसून आने या जाने की तिथियों का पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |
      कभी कहीं बहुत अधिक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं तो किसी किसी वर्ष ऐसा होते बिलकुल नहीं देखा जाता है | ऐसा होने के पीछे का वास्तविक वैज्ञानक कारण खोजने के लिए अभी तक कोई तर्कपूर्ण  वैज्ञानिक पद्धति नहीं है |
      देशों प्रदेशों में प्रकृति या मानवकृत जिन परिस्थितियों में कुछ महीनों के कुछ दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है उन्हीं परिस्थितियों में अपने आप से ही अचानक कभी वायु प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है इसका वास्तविक कारण अभी तक केवल इसलिए नहीं खोजा सका है क्योंकि इसका कोई प्रमाणित विज्ञान नहीं है जिसके द्वारा इसके बिषय में कोई तर्कपूर्ण उत्तर दिया जा सके |
       भूकंपों या कोरोना जैसी महमारियों के घटित होने के लिए जिम्मेदार कारणों को अभी तक खोजा  नहीं जा सका है ऐसी घटनाओं के लिए मानवीय गतिविधियाँ भी जिम्मेदार हैं या नहीं !यदि हैं तो कितनी और यदि नहीं हैं तो और दूसरे कारण क्या हो सकते हैं इनके विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ?आदि प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विज्ञान या तो मौन है या फिर विज्ञान के पास कुछ ऐसे काल्पनिक किस्से कहानियाँ हैं जिनका तर्कपूर्ण  वैज्ञानिक तर्कों की कसौटी पर खरा उतर पाना संभव ही नहीं है |
       महामारियों के समय अत्यंत सतर्क सावधान रहने बाद भी कुछ लोग संक्रमित हो जाते हैं जबकि कुछ लोग पथ्य परहेज का पालन बिलकुल नहीं करते इसके बाद भी उन्हें महामारी के समय भी कोई दिक्कत नहीं होती है | ऐसा होने का कारण जानने का  विज्ञान न होने के कारण इसका वास्तविक वैज्ञानिक कारण अभी तक खोजा नहीं जा सका है क्या है ?
      कोरोना जैसी महामारियों के प्रारंभ होने या न होने पर या संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या में अचानक बढ़ोत्तरी या कमी होने लगती है !इसके लिए मनुष्यकृत कार्य कितने जिम्मेदार हैं और कितना प्रकृति जिम्मेदार है | ऐसा होने के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिक कारणों को अभीतक खोजा  नहीं जा सका है !
      बैज्ञानिक तर्कों के साथ महामारियों के बिषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कह पाना वैज्ञानिकों के बश की बात नहीं है | मौसमविज्ञान के क्षेत्र में या भूकंपविज्ञान के क्षेत्र में या वायुप्रदूषण घटने बढ़ने के कारणों की खोज में विज्ञान अभी तक असफल रहा है ऐसा उन लोगों के द्वारा भी स्वीकार किया जा चुका है जो इसकी जिम्मेदारी संभाले हुए हैं |
     ऐसी परिस्थिति में यदि समाज के हित में  ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर वेदविज्ञान के द्वारा खोजे जा सकते हैं तो उन्हें स्वीकार करने में संकोच क्यों किया जा रहा है !विशेष कर वेद वेदांगवादी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रेरित इस सरकार में भी ऐसे अनुसंधानों को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा तो  सरकार से आशा की जा सकती है | इसलिए वर्तमान सर्कार से अधिक आशा और अपेक्षा है |
     श्रीमान जी !इस बिषय में हमारी सरकार से अपेक्षा मात्र इतनी है कि मैं पिछले 25 वर्षों से वेद विज्ञान के आधार पर इन बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिनमें बहुत सारे ऐसे वैज्ञानिक अनुभव मिले हैं जिनके द्वारा ऐसे प्रश्नों के न केवल वैज्ञानिक उत्तर पाए जा सकते है अपितु ऐसी घटनाओं के घटित होने के पीछे के निश्चित कारणों की खोज करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं !सरकार इस गणितीय वेद विज्ञान का भी परीक्षण करवाए। उचित लगे तो इसका भी जनहित में उपयोग किया जाए !
       मेरा बिनम्र निवेदन है कि ऐसे अनुसंधानों को आगे बढ़ाने में हमारी मदद की जाए !
                                                     निवेदक -
                                     डॉ. शेष नारायण  वाजपेयी
                                   A -7\41,कृष्णा नगर,दिल्ली -51  

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आदरणीय गोपाल आर्य जी !
                                           सादर प्रणाम
बिषय : वेद विज्ञान के द्वारा मौसम एवं महामारी के पूर्वानुमान के बिषय में -

    महोदय, 

 अगस्त के संपूर्ण महीने में भारत समेत विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों में अत्यंत अधिक बारिश और बाढ़ जैसी घटनाएँ घटित होने  का अनुमान है संभव है कि उन क्षेत्रों में इतनी अधिक बारिश पिछले कुछ दशकों में न हुई हो !
       दूसरी बात :कोरोना महामारी के समाप्त होने का समय 6 मई से 5 अगस्त 2020 तक का था | इसी समय के प्रभाव से 6 मई के बाद बिना किसी दवा या वैक्सीन के भी कोरोना से संक्रमित रोगियों के स्वस्थ होने की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है किंतु पहले ही संक्रमण इतना अधिक बढ़ चुका था कि अभी तक सभी संक्रमित लोग स्वस्थ नहीं हो सके हैं|
      समय के कारण इतना बड़ा सुधार होता देखकर कुछ लोगों को लगने लगा है कि यह सुधार उनकी औषधियों या चिकित्सा के प्रभाव से हुआ है यहाँ तक कि इसके लिए बनाई जा रही वैक्सीन के ट्रायल में सम्मिलित रोगियों में दिख रहा सुधार भी स्थाई और विश्वसनीय नहीं है |समय के प्रभाव से हो रहे सुधार को भ्रमवश वैक्सीन का प्रभाव माना जाने लगा है जो देश और समाज के लिए हितकर नहीं है |
      श्रीमान जी !इस बिषय में इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं है |क्योंकि वैक्सीन का ट्रायल जिन लोगों पर हुआ है यदि वे स्वस्थ हुए हैं तो वे संक्रमित लोग भी उसी अनुपात में स्वस्थ होते देखे जा रहे हैं जो ऐसे किसी ट्रायल में  सम्मिलित नहीं हुए हैं, जिन्होंने कोई वैक्सीन या दवा नहीं ली है |
      ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन या औषधियों के भरोसे थोड़ी भी लापरवाही ठीक नहीं होगी !इसलिए सतर्कता अधिक से अधिक बढ़ाई जानी चाहिए !वैदिक विज्ञान के पूर्वानुमान पर  यदि विश्वास किया जाए तो 8 अगस्त के बाद कोरोना का संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा जो एक बार फिर बहुत बड़े वर्ग को संक्रमित कर सकता है !यह संक्रमण अगले 50 दिनों में इतना अधिक बढ़ जाने की संभावना है कि एक बार फिर अपने पुराने रूप में पहुँच सकता है | रिकवरी रेट अत्यंत कम होने लग सकता है |24 सितम्बर तक यह संक्रमण तेजी से बढ़ने का समय है |इसलिए सावधानी बरतना बहुत आवश्यक है |      
          इसलिए अभी लगभग 50 दिनों तक और समय बीतने की प्रतीक्षा की जानी चाहिए उसके बाद यह स्थाई तौर पर समाप्त होने लग जाएगा |

                                                      निवेदक -
                                     डॉ. शेष नारायण  वाजपेयी
                                   A -7\41,कृष्णा नगर,दिल्ली -51  



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लगा पाना को समझना अभी तक संभव नहीं हो पाया है क्योंकि आँधी तूफानों और बादलों की तरह भूकंप या कोरोना जैसी महमारियाँ उपग्रहों रडारों से देखी नहीं जा सकती हैं इसलिए इनका पूर्वानुमान लगाने में असमर्थता प्रकट कर दी जाती है|प्रकृति के स्वभाव को न समझ पाने के कारण प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं या महामारियों का पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |
       मानसून आने जाने की तारीखें बार बार गलत होने के कारण ही तो उन्हें बदलने के बिषय में सोचना पड़ा है | सरकार के मौसम वैज्ञानिकों स्वयं स्वीकार किया है कि प्रकृति को समझपाने में वे असफल रहे हैं इसीलिए भूकंप चक्रवात,दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान हो या भीषण बाढ़ हो उसका न तो पूर्वानुमान लगाने में सफलता पाई जा सकी है और न ही इनके वास्तविक कारण खोजे जा सके हैं कि ऐसा होता क्यों है |
       प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना मौसम को समझ पाना असंभव है और मौसम को समझे बिना महामारियों को नहीं समझा जा सकता है | इसीलिए कोरोना जैसी महामारी के बिषय में सात महीने बाद भी समझा नहीं जा सका है कि इसका प्रारंभ कैसे हुआ इसका विस्तार कैसे होता है इससे होने वाले रोगों के निश्चित लक्षण क्या क्या हैं इससे बचने के लिए सावधानियाँ क्या क्या बरती जानी चाहिए इसकी औषधि या वैक्सीन कैसे बनाई जाए !बिना किसी औषधि या वैक्सीन के भी इतनी बड़ी संख्या में संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने का कारण क्या है ?ये समाप्त कब होगा ?इसका पीक निकल चुका या अभी आगे आना बाक़ी है ! आदि ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं |
      जिस प्रकार से बिना किसी औषधि या वैक्सीन के भी आज तक 64 प्रतिशत रोगी स्वस्थ हो चुके हैं उसी प्रकार से एक दिन ऐसा भी आएगा जब बिना किसी औषधि या वैक्सीन आदि के शतप्रतिशत रोगी संक्रमण मुक्त हो जाएँगे !उस समय जो वैक्सीन या औषधियों का ट्रायल चल रहा होगा उनके प्रभाव से कोरोना को पराजित किया गया है ऐसा मानलिया जाएगा जो सच नहीं होगा !इसलिए अनुसंधान इस बात का किया जाना आवश्यक है कि महामारियों में होने वाले रोगों पर चिकित्सा का असर होता भी है या नहीं ?
      इस समय बार बार भूकंप आ रहे हैं बज्रपात हो रहे हैं कहीं बहुत अधिक वर्षा हो रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है सर्दी गर्मी वर्षा तीनों अपनी सीमाएँ लांघते देखे जा रहे हैं इसका कोरोना जैसी महामारी से कोई संबंध है या नहीं !इसका उत्तर खोजा  जाना आवश्यक है |
        भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने का निश्चित का कारण अभी तक खोजा नहीं जा सका है इसके लिए जिम्मेदार जितने अधिक कारण गिनाए जा रहे हैं उन्हें वैज्ञानिक तर्कों प्रमाणों के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सका है | इनका निश्चय हुए बिना कारणों का निवारण कर पाना संभव नहीं है | 
    ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए मैं भारतवर्ष की प्राचीन वेदवैज्ञानिक पद्धति से पिछले 25 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ उससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के बिषय में न केवल महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं अपितु इनके घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों को खोजने में भी मदद मिल सकती है |इससे संबंधित कुछ प्रपत्र इसी पत्र के साथ संलग्न हैं !
      अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि इस प्राचीन वेदवैज्ञानिक पद्धति से संबंधित अनुसंधानों को भी प्रोत्साहित करने के लिए हमारी भी इस शोधकार्य के लिए मदद की जाए |
















      

और क्षण प्रतिक्षण हो रहे प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रकृति और जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्वानुमान लगाया जा सके |
      इसीलिए भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में या कोरोना जैसी भयंकर महामारियों के बिषय में अभी तक न तो पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही इनके घटित होने का वास्तविक कारण ही खोजा  जा सका है |प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना ऐसा कर पाना संभव भी नहीं है |
     उदाहरण के तौर पर यदि पिछले दस वर्षों को लिया जाए तो जितनी भी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से एक दो को छोड़कर अधिकाँश घटनाएँ ऐसी हैं जिनके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | मानसून आने जाने की तारीखें आज सही घटित ही नहीं हुई हैं |ऐसी परिस्थिति में वर्तमान वैज्ञानिक पद्धति से कोरोना जैसी किसी महामारी के आने और जाने की तारीखों के बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ?
      यह सभी को पता है कि बीमारियों या महामारियों का मौसम से सीधा संबंध होता है इसीलिए ऋतुसंधियों में जब मौसम बदलने लगता है तब रोग बढ़ने लगते हैं | जब सर्दी में गर्मी और गर्मी में वर्षा एवं वर्षा ऋतु के समय में कहीं सूखा और कहीं अतिवर्षा जैसी ऋतुओं के स्वभाव के विपरीत प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब संक्रमण बढ़ना प्रारंभ हो जाता है| यदि ऐसी घटनाएँ अधिक मात्रा में बार बार प्रतिवर्ष घटित होने लगती हैं तब संक्रमण जनित महामारी फैलने की संभावना बनती चली जाती है |
      ऐसे प्राकृतिक उपद्रव पिछले कई वर्षों से घटित होते देखे भी जा रहे थे |  आखिर भारत में इतने अधिक भूकंप हमेंशा तो नहीं आते रहे हैं जितने इस वर्ष आ रहे हैं ऐसी अन्य भी कई प्राकृतिक घटनाएँ इतनी बड़ी महामारी की सूचना देती चली आ रही थीं | दिनोंदिन पर्यावरण बिगड़ता जा रहा था किंतु इसके अनुसंधान के लिए कोई प्रामाणित वैज्ञानिक प्रक्रिया न होने के कारण न इस महामारी का पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही इतनी बड़ी महामारी के बिषय में अभी तक किसी प्रकार की कोई स्वभावगत जानकारी ही जुटाई जा सकी है इसीलिए यह बताना संभव नहीं हो पा रहा है कि यह कोरोना महामारी आखिर कितने दिनों महीनों वर्षों  तक अभी और सहनी पड़ेगी| चिकित्सा वैज्ञानिकों के भी इस विषय में अलग अलग काल्पनिक मत हैं जिन्हें  विज्ञानसम्मत नहीं माना जा सकता है क्योंकि वैज्ञानिक पद्धति में इतना बड़ा भ्रम नहीं होता है जितना कि कोरोना के बिषय में चिकित्सा वैज्ञानिकों के परस्पर विरोधी बिचारों के द्वारा फैल चुका है |  
      


                      सत्यसाक्ष्य के लिए हमारे द्वारा लगाए गए वेद वैज्ञानिक पूर्वानुमान 
  

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