पंडित श्री सुनील भराला जी
सादर नमस्कार
मुझे परशुरामपरिषद् में सम्मिलित होने का आमंत्रण मिला किंतु उसमें
सम्मिलित होने के लिए समय निकाल पाना मेरे लिए किसी भी परिस्थिति में संभव
नहीं है और आगे भी दिल्ली के बाहर के किसी कार्यक्रम में एवं दिल्ली में
किसी पदाधिकारी के आश्रम या घर में रखे गए किसी भी कार्यक्रम में मेरा
सम्मिलित हो पाना कभी संभव नहीं होगा | आपने परशुरामपरिषद् बताकर मुझे जिस
संकल्प में जोड़ा था मैं भी अत्यंत पवित्र उद्देश्य के साथ जुड़ा था किंतु
भगवान् परशुराम जी के नाम पर किसी गिरोह की तरह की कार्यपद्धति में मुझे
तनाव होता रहा जिससे मेरे व्यक्तिगत कार्य एवं अनुसंधान कार्य भी प्रभावित
होता रहा है !न जाने क्यों अक्सर बड़े लोग भूल जाते हैं कि छोटे लोगों में
भी आत्मा होती होगी उनका भी कुछ स्वाभिमान होता होगा |किसी भी संगठन को
चलने के लिए धन बहुत आवश्यक है किंतु मेरे हिसाब से केवल धन को ही इतनी
अधिक प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए कि परशुरामपरिषद् जैसा पवित्र
उद्देश्यों के लिए गठित किसी संगठन को किसी गिरोह की तरह कुछ धनवान लोगों
के पीछे अपने उद्देश्य से भ्रष्ट होकर भटकना पड़े |
सन 1994
इसलिए
कुछ धनवान लोगों के चरणों में सौंप दिए गए किसी भी संगठन में कार्यकरने
का अपना अभ्यास नहीं है | काम किया संचालन में नीति परिषद्
हमारे द्वारा चलाए जा रहे वैदिक वैज्ञानिक अनुसंधान में राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ के सहयोग से जो कार्य संचालित किया जा रहा है उसमें दीनदयाल शोध
संस्थान एवं संबंधित मंत्रालय सम्मिलित है उसमें मुख्यभूमिका मेरी ही है
|अतएव वहाँ के अत्यंत व्यस्त कार्यक्रम से मेरा समय निकाल पाना संभव नहीं
होगा |
परशुरामपरिषद् में
मेरी ऐसी कोई उपयोगिता भी नहीं है जिसके लिए मुझे अपना मुख्य उद्देश्य
छोड़ने के लिए विवश होना पड़े !वहाँ भी जाकर मैं केवल शुभ कामनाएँ ही दे सकता
हूँ वो मैं यहीं से दे
अपने जीवन भूमिका मात्र भीड़ बढ़ाने की है जिसके लिए एवं के द्वारा संचालित
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