19.6.2014 से 14.7.2015 इस समय सांप्रदायिक उन्माद से माहौल बिगड़ भी सकता है - ज्योतिष
इस समय सभी दलों राजनेताओं पत्रकार बंधुओं एवं समाज के सभी वर्गों को शांति सद्भावना बनाए रखने का प्रयास करते रहना चाहिए !सामाजिक उन्माद बढ़ाने वाले किसी भी बात व्यवहार से बचा जाना चाहिए !
इस समय सांप्रदायिक उन्माद से बचा जाना चाहिए अन्यथा ज्योतिषीय दृष्टि से सन 1988 से 1992 जैसा समय
एक बार फिर लौट रहा है उस समय केंद्र में काँग्रेस या काँग्रेस समर्थित
सरकार थी एवं उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी आज भी केंद्र से प्रदेश
तक सब कुछ वैसा ही चल रहा है ठीक उसी तरह तब काँग्रेस की कमान युवा राजीव
गाँधी के हाथ में थी अब युवा राहुल के हाथ में है तब केंद्र सरकार पर
राजीव गाँधी जी का नियंत्रण था अब राहुल गाँधी का है ।तब केंद्र सरकार पर
भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे थे अब भी सब कुछ वैसा ही चल रहा है !
वहीँ
दूसरी तरफ तब उत्तरप्रदेश की कमान युवा मुलायम सिंह जी के हाथों में थी अब
युवा अखिलेश यादव के हाथों में है । जैसे तब देश के आर्थिक हालात गड़बड़ा
रहे थे वैसे ही आज भी रुपए की हालत खस्ता है।उधर तब भाजपा में अटल जी की
छवि को आगे करके चुनावों में जाने की तैयारी की जा रही थी अब नरेन्द्र मोदी
जी की छवि को आगे करके चुनावों में जाने की तैयारी की जा रही है। जैसे तब
अटल जी साथ समूचा संघ परिवार अपने सारे आयामों के साथ खड़ा था वही सौभाग्य
आज मोदी जी को प्राप्त है।जैसे तब हिंदुत्व मुद्दा बना था वैसे अब
हिंदुत्व मुद्दा बनेगा जैसे तब श्री राम मंदिर निर्माण का राग अलापा गया था
वैसे अब श्री राम मंदिर निर्माण के लिए आन्दोलन चलाए जाएँगे। जैसे तब
भाजपा अध्यक्ष की लोकप्रियता अटल जी से कमजोर थी वैसे अब भाजपा अध्यक्ष की
लोकप्रियता मोदी जी से कमजोर है वो अटल जी का गुण गान कर रहे थे ये मोदी
जी का कर रहे हैं जैसे अटल जी को प्रधान मंत्री बनने में लगभग आठ साल लग गए
थे वैसे ही मोदी जी को भी प्रधान मंत्री बनने में लगभग आठ साल लग ही
जाएँगे सन2021 से 2022 के आस पास जो चुनाव होंगे उसमें मोदी जी सर्व
स्वीकार्य होकर प्रधान मंत्री अवश्य बनेंगे।
इस प्रकार से सबकुछ बिलकुल
वैसा ही दिखता है जैसा सन 1988 से 1992 के बीच हुआ था । ईश्वर से
प्रार्थना है कि उस समय जैसा जो कुछ हुआ था सो और सब भले हो किन्तु उस समय कुछ विशेष अप्रिय
घटनाएँ भी घटी थीं उनका पुनरावर्तन न हो ।उसी समय कारसेवकों का दुर्दमन किया गया,विवादित ढाँचा ढहाया गया उसके बाद दंगे हुए और श्री राजीव जी के साथ अत्यंत दुखद घटना घटी ये सब असह्य वेदनाएँ देश को सहनी पड़ी थीं।
इसलिए सभी राजनैतिक दलों एवं राजनेताओं से प्रार्थना है कि जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर पारस्परिक सद्भाव पूर्वक केवल विकास के नाम पर इन चुनावों को लड़ा जाना चाहिए तो अच्छा होगा अन्यथा ज्योतिषीय दृष्टि से (1989-92)की तरह का ही समय होने के कारण ऐसे किसी भी प्रकार के विवाद की छोटी सी चिनगारी भी कोई बड़ा स्वरूप धारण कर सकती है समाज को भी चाहिए कि ऐसे समय में अत्यंत शांति और संयम का परिचय दे!
उसी प्रकार का समय होने के कारण इस बात की भी प्रबल सम्भावना है कि इन चुनावों में भी अचानक कुछ ऐसा घटित हो कि बुद्दि पक्ष की परवाह न करते हुए हृदय पक्ष से ही काम चलाना पड़े और विकास के नाम पर चुनाव लड़े जाने की वर्षों से की जा रही सारी तैयारी समेट कर रख देनी पड़े !इस समय सबसे अधिक ध्यान देने लायक यह है कि किसी अत्यंत विशिष्ट एवं लोकप्रिय नेता की
सुरक्षा में चूक न होने पाए!
साथ ही 19.6.2014 से 14.7.2015 तक का समय श्री राम मंदिर के निर्माण की दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है इस लिए इस बात की भी प्रबल सम्भावना है कि श्री राम मंदिर निर्माण की इच्छा रखने वाला वर्ग भी अभी से सक्रिय हो उठे !
एक और राजनैतिक विशेष बात यह है कि सत्ता विरोधी लहर होने के कारण इन चुनावों में काँग्रेस से क्रुद्ध जनता काँग्रेस के विरोध में तो जाना चाहती है किन्तु विपक्षी पार्टी भाजपा की प्रतिपक्षी निष्क्रियता से भी जनता खुश नहीं है इसलिए ऐसा नहीं है कि काँग्रेस से असंतुष्ट सारा वोट भाजपा को ही मिलेगा दिल्ली चुनावों में भी तो ऐसा ही हुआ है और आम आदमी पार्टी आस्तित्व में आ गई!
देश में कई बड़े घोटाले हुए,महँगाई बढ़ी,गैस सिलेंडरों में कटौती की गई,लोकपाल का मुद्दा महिला सुरक्षा आदि और भी कई बड़े मुद्दे जिन पर जनता काँग्रेस पर क्रोध करके तिलमिला रही थी उसे विरोधी पार्टियों को जो सहयोग मिलना चाहिए था वो नहीं मिल सका अर्थात भाजपा उस घड़ी में जनता की आवाज नहीं बन सकी !भाजपा की तरफ से आज जो प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी हैं तब उन्हें भी अपने ही प्रदेश की जनता से फुरसत नहीं मिली कि वो गुजरात के साथ साथ शेष भारत वासियों की भी कभी तो सुध लेते! उनके मन में देश वासियों पर आज अचानक जो प्यार उमड़ा है जनता उस पर कितना भरोसा करेगी देखना यह भी तो है क्योंकि वो यदि वास्तव में देश वासियों के हमदर्द और देश की जनता की पीड़ा से परेशान थे तो तभी आकर कूदना था राष्ट्रीय राजनीति में और गुजरात की जिम्मेदारी देते किसी और को !किन्तु तब तो ऐसा नहीं ही हो सका और आज भी ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है क्योंकि अभी भी वो गुजरात के ही यशस्वी मुख्यमंत्री हैं अभी भी वो देश की जनता के साथ एक अघोषित डील के साथ जुड़े हैं कि यदि आपने केंद्र की सत्ता दी तो तुम हमारे और हम तुम्हारे और किसी कारण से यदि ऐसा नहीं हो सका तो हम गुजरात के और गुजरात हमारा ऐसी परिस्थिति में ये कैसे भरोसा किया जाए कि एक प्रतिशत भी यदि ऐसी परिस्थिति बन ही जाती है कि भाजपा सरकार नहीं बन पाती है तो आप गुजरात लौट जाएँगे कार्यकर्ता थकावट उतारेंगे रही बात पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उसमें फिर कुछ फेर बदल होगा जिससे फिर कुछ लोग रूठेंगे मनाए जाएँगे देश की जनता फिर अकेले की अकेले जिसकी सरकार बनेगी मिलाएगी उसी की हाँ में हाँ 19.6.2014 से 14.7.2015 से प्रारम्भ हो सकती हैं श्री राम मंदिर निर्माण की तैयारियाँ जनता उसमें व्यस्त हो जाएगी।वैसे इस विषय में हमारा यह लेख भी पढ़ना चाहिए-2014 चुनावों में मोदी जी बन पाएँगे पी.एम. ? http://snvajpayee.blogspot.in/2013/09/2014.html
अब भाजपा को सोचना यह है कि यदि चुनावी परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं भी आते हैं तो भी पार्टी में कोई जनता एवं उसके दुःख दर्द से जुड़ा रह पाएगा क्या !क्योंकि इतनी सहन शीलता और उत्साह कम ही देखा जाता है पार्टी कार्यकर्ताओं में !अभी तो चुनावों का समय है रैलियों में पार्टी कार्यकर्ताओं की ही इतनी बड़ी भीड़ हो जाती है इसी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ता ही इतना शोर मचा लेते हैं कि यह अपनी भीड़ और अपना शोर ही टेलीवीजन पर देखकर फीलगुड होना स्वाभाविक ही है!इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आम जनता नहीं आती है आम जनता की भीड़ भी बहुत आती है और शोर भी बहुत मचाती है किन्तु जनता तो हर दूकान देखती है किन्तु सामान हर जगह नहीं खरीदती है और जिसका जितना विज्ञापन उसकी उतनी भीड़ !इसलिए जनता ऐसी सभी बातों का जब मूल्यांकन करेगी उसमें भाजपा को कितने नंबर मिलेंगे सरकार तो उसके आधार पर बनेगी ! अभी तो वह दशा है कि चुनावों के समय नेता शोर मचाते हैं शेष समय जनता किन्तु न जनता का शोर नेता ध्यान से सुनते हैं और न नेताओं का शोर जनता ध्यान से सुनती है नेता हर किसी को आश्वासन देते हैं जनता भी हर किसी को आश्वासन ही देती है उसी में जिसने जितनी जोड़ तोड़ कर ली उसकी सरकार बन जाती है बाकी लोग देखते रह जाते हैं यदि ऐसा न होता तो जनता किसी को स्पष्ट बहुमत भी तो दे सकती थी ! मेरा यह लेख भी इस विषय में पढ़ना चाहिए -कौन बनेगा प्रधानमंत्री ?ज्योतिषभविष्य वाणियाँ राजनेताओं के विषय में ! http://snvajpayee.blogspot.in/2013/10/sunday-september-17-1950-time-of-birth.html
इस सबसे ऊपर उठाकर भगवान् से इतनी प्रार्थना अवश्य करना चाहता हूँ कि मंदिर निर्माण के लिए न हो श्री राम भक्तों पर अब न हो गोलीबारी बस इतना
अवश्य हो !अब देखना है कि समय पास करने वाले प्रधान मंत्री नरसिंहा राव
द्वितीय का उदय कब कहाँ और कैसे होगा कैसा होगा उनका कार्यकाल !!!
श्री
राम की जन्म कुंडली और श्री राम मंदिर
काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में श्री रामचरित मानस और ज्योतिष पर ही हमारी पी.एच.डी.की थीसिस थी।जिसे पूरा करने के बाद इन विषयों पर खोज पूर्ण कई ग्रन्थ लिखे हैं।जिसका कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत करता हूँ।
श्री राम की जन्म
कुंडली में भवन सुख भाव में शनि होने से भवन होने के बाद भी भवनसुख का योग
मध्यम एवं संघर्ष पूर्ण है।इसीलिए बचपन में पहले पिता के साथ रहते रहे। 15
वर्ष की उम्र में विश्वामित्र जी ले गए फिर विवाह के बाद राज्य मिलना था
तो बनवास हो गया । वहाँ जाकर जंगल में जब कुटी बनाई तो सीता हरण हो गया।जब
बन से वापस आए तो सीता जी को बनवास हो गया।इसप्रकार जब गृहणी ही चली गई तो
गृह सुख की आशा ही क्या बची ?
ज्योतिष की दृष्टि से यहाँ एक
बात अवश्य है कि भवन भाव में शनि उच्च राशि का है एवं भवनेश शुक्र भाग्य
स्थान में उच्च राशि का है इसलिए राम जी कहाँ कितने दिन रह पाए या उन्हें
गृहसुख कितना मिला या नहीं मिला ये अलग बात है किन्तु उन्हें रहने के लिए
जो भवन या राज्य मिले वो एक से एक भव्य अर्थात सुन्दर थे।अयोध्या का
राज्य तो अपना था ही लंका और किष्किन्धा भी लोग देने को तैयार थे किन्तु
श्री राम ने जीते हुए देश भी लिए ही नहीं।
यहाँ ज्योतिष की एक बात विशेष ध्यान देने लायक यह है कि
जैसे अयोध्या का राज्य मिलने से पहले भी गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ श्री राम को खुले आसमान में ही बितानी पड़ी थीं अब फिर से अस्थाई श्री राम मंदिर में गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ खुले आसमान में ही प्रभु श्री राम को बितानी पड़ रही हैं।
इसी
प्रकार उस समय भी श्री राम को चौदह वर्षों तक तपस्या करनी पड़ी थी अब भी सन
दो हजार चौदह तक फिर से प्रभु श्री राम को खुले आसमान में ही अस्थाई श्री राम मंदिर में तपस्या करते रहना होगा।
जैसे उस समय चौदह वर्ष पूर्ण होने से चौदह महीने बारह दिन पूर्व सीता हरण हुआ था उसके बाद से ही असुरों के संहार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी। असुर आतंकियों को कठोर सजा देने का काम अब भी लगभग चौदह महीने पहले ही शुरू हो सका है।
आतंकियों को कठोर सजा देने का चिर प्रतीक्षित काम भी सन दो हजार बारह के
नवंबर मास के अंत से ही करना प्रारंभ किया जा सका है। यहाँ से लेकर सन दो
हजार चौदह प्रारंभ तक भी वही लंका वाले लगभग चौदह महीने ही हो पाएँगे।
यही चौदह महीने पहले सीता हरण से ही नारियों की सुरक्षा के लिए जन जागरण वहाँ प्रारंभ हुआ था। अब भी 16 दिसंबर 2012 से अर्थात चौदह महीने पहले से ही यहाँ भी नारियों की सुरक्षा के लिए उसी तरह का जन जागरण प्रारंभ हुआ है।
इसी समय में यदि इसीप्रकार से सज्जन समाज को पीड़ा पहुँचाकर समाज को पीड़ित करने वाले किसी भी जाति, समुदाय,
संप्रदाय आदि के जो भी लोग हैं ऐसे असुर आतंकियों के साथ निपटने में यदि
सरकार सफल हुई तो निराश हताश समाज के मन में फिर से प्रशासकों के प्रति
विश्वास बढ़ेगा।सभी प्रकार के कठोर कानूनों के सफल क्रियान्वयन से
भ्रष्टाचार आदि आपदाओं से देश मुक्त होगा। भ्रष्टाचार मिटते ही न केवल
आपराधिक वारदातों में कमी आएगी अपितु महँगाई में भी लगाम लगेगी ।सभी देश
वासियों की सुरक्षा का वातावरण बनेगा।
जैसे बिना विवाद के सम्मान पूर्वक श्री राम का राज्याभिषेक वहाँ हुआ था
उसी प्रकार बिना विवाद के सम्मान पूर्वक यहाँ भी श्री राम का भव्य मंदिर
निर्माण सभी की सहमति से होगा । इसलिए
19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक
यदि थोड़ी सी ज्योतिषीय सावधानी राम भक्तों के द्वारा बरती गई तो मंदिर
बनने को रोका नहीं जा सकता बनेगा जरूर! और भव्य श्री राम मंदिर बनेगा यह भी
निश्चित है।सर्व सम्मति से बनने के योग हैं। इसलिए रामभक्तों को निराश या
हताश नहीं होना चाहिए और प्रयास करके तनाव नहीं बढ़ने देना चाहिए ।
ज्योतिष के कुछ अन्य योगों पर भी यहाँ ध्यान देना आवश्यक है। वैसे तो
धरती पर करोड़ों श्री राम मंदिर होंगे किन्तु जो भगवान श्री राम का वास्तविक
भवन है जिसे हम सभी लोग श्री राम मंदिर कहते हैं उसके बनने में रुकावट का
एक कारण ज्योतिष भी हो सकता है।
दूसरी बात यह है कि जब बाबरी मस्जिद तोड़ी
गई थी उस समय क्षिप्र संज्ञक अश्वनी था।इसमें अस्थाई काम तो किए जा सकते थे
जैसे दुकान करना या कोई भी कला संबंधी कार्य कर पाना संभव था।इसी प्रकार
मस्जिद का भी भविष्य कुछ भी नहीं था इसलिए वह भी टूट गई।यहाँ
विशेष बात यह है कि उसी समय मंदिर निर्माण के लिए चबूतरा या अस्थाई मंदिर
बना दिया गया था किन्तु जो महूर्त तोड़ने का था उसी मुहूर्त में शिलान्यास
कैसे किया जा सकता था? तोड़ने के मुहूर्त में किसी चीज का जोड़ना कैसे संभव हो सकता है। मत्स्य वेध करके अर्जुन ने द्रोपदी के साथ विवाह किया था।इसीप्रकार धनुष तोड़कर श्री राम ने सीता जी से विवाह किया था। इसलिए अर्जुन और द्रोपदी एवं श्री राम और सीता जी का सम्पूर्ण जीवन भटकते हुए संघर्ष पूर्वक बीता।
जैसे धनुष तोड़ने का काम वर्षों से चल रहा था किन्तु कोई तोड़ नहीं पा रहा था उसीप्रकार बाबरी मस्जिद भी विवादित चल रही थी। धनुष
तोड़ने का काम भी अश्वनी नक्षत्र में हुआ था और बाबरी मस्जिद भी अश्वनी
नक्षत्र में ही तोड़ी जा सकी थी ।अंतर इतना रहा कि वशिष्ठ आदि ऋषियों ने धनुष टूटने के बाद उसके बारहवें दिन शुभ मुहूर्त विवाह नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी में श्री राम और सीता का विवाह करवाया गया था। इस कारण दोष कुछ टल गया था फिर भी बहुत कुछ सहना पड़ा था।उसका कारण था कि धनुष टूटने के साथ ही विवाह मान लिया गया था टूटतही धनुभयउविवाहू।सुरनरनाग विदित सब काहू
चूँकि रहेउ विवाह चाप आधीना
इसीलिए
गुरु वशिष्ठ से पंडित ग्यानी शोधि केलगन धरी ।
फिर भी
सीता हरण मरण दशरथ को बन में बिपति परी ।।
चूँकि धनुष टूटते हीश्री राम और सीता का विवाह हो गया था इसलिए वशिष्ठ जी का प्रयास विशेष कारगर सिद्ध नहीं हो सका, किन्तु बाबरी मस्जिद टूटने
के साथ ऐसी कोई प्रतिज्ञा नहीं जुड़ी थी ।यहाँ तुरन्त शिलान्यास न करके यदि
शुभ मुहूर्त में किया जाता तो संभव है कि मंदिर बनने का अबतक कोई समाधान
निकल ही जाता।चूँकि इस्वी सन 1527 में सनातन हिंदुओं ने विजय दशमी,दीपावली और रामनवमी पर्व बहुत बड़े जन समूह के साथ उमड़ घुमड़ कर अत्यंत धूम धाम से मनाए थे।श्रीराम प्रभु के प्रति हिन्दुओं की इतनी श्रृद्धा देखकर ये विधर्मी सह नहीं सके थे इसलिए श्रीराम मंदिर तोड़कर उसी पर बाबरी मस्जिद बना डाली ।चूँकि उन्होंने भी मंदिर तोड़ने के साथ ही उसी पर मस्जिद का निर्माण किया था तोड़ने के साथ ही जोड़ने का अर्थ होता है कि इसका कोई स्थायित्व नहीं होगा ये कभी भी तोड़ी जा सकती है इस कारण बाबरी मस्जिद बनने के साथ ही उसका विध्वंस जुड़ा था।उसीप्रकार यदि इसी अस्थाई श्री राम चबूतरे पर ही यदि मंदिर बना दिया गया तो
बाबरी मस्जिद विध्वंस का कुयोग श्री मंदिर के साथ भी आरम्भ से ही जुड़ जाएगा।इसलिए इससे बचा जाना चाहिए ।
चूँकि उस मस्जिद तोड़ी जा सकी थी इससे यह प्रमाणित भी होता
है कि वह मुहूर्त मकान टूटने का ही था तो ऐसे समय में मकान बनाना कैसे
प्रारम्भ किया जा सकता था?
इसलिए श्री राम
मंदिर निर्माण के लिए कोई और मुहूर्त देख कर उसमें शिलान्यास करने से
मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार किया जा सकता है
यहाँ एक विशेष बात का ध्यान और रखा जाना चाहिए कि इस देश की दो सबसे बड़ी
राजनैतिक पार्टियों के प्रमुखों के नाम रा अक्षर से प्रारंभ होते हैं राजनाथ और राहुल ये दोनों से ही राम मंदिर में ईमानदारी पूर्वक समर्पणात्मक सहयोग की आशा नहीं की जानी चाहिए।
यहाँ ज्योतिष एक बहुत बड़ा कारण है। किन्हीं
दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे
सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत
अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा
-पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य
मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या
शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है।
जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।
रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।
दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया।
इसप्रकार से जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है? राम मंदिर प्रमुख रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज एवं उस समय के डी.एम. रामशरण
श्रीवास्तव के और राम मंदिर इन तीनों का आपसी तालमेल सन 1990 में अच्छा
नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा
में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
दिल्ली भाजपा के चार विजयों के समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना आगामी चुनावों में राजनैतिक भविष्य के लिए चिंता प्रद हैं।इसी कारण से पहले भी कांग्रेस विजय पाती रही है।
विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी
विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी
इसी प्रकार भारत वर्ष में भाजपा
राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।जबकि इससे कम सदस्य संख्या
वाले एवं अटलजी से कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बने
हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं
।
कलराजमिश्र-कल्याण सिंह
ओबामा-ओसामा
अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी
मायावती-मनुवाद
नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी
लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद
परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान
भाजपा-भारतवर्ष
मनमोहन-ममता-मायावती
उमाभारती - उत्तर प्रदेश
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव
अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन
नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन अन्नाहजारे-अरविंदकेजरीवाल-असीम त्रिवेदी-अग्निवेष- अरूण जेटली - अभिषेकमनुसिंघवी
अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे,
अरविंदकेजरीवाल,असीमत्रिवेदी एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त
किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के
विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास
हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से
अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी
नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात
पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही
नहीं थी। दूसरी ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना
हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन
है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक
रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे। अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले
लोग ही अन्नाहजारे से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग
ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
अन्नाहजारे की
तरह ही अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं।
अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान
साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश यादव का प्रभाव बढ़ते ही
अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के
साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर
प्रदेश में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
चूँकि
अमरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही
अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। जैसेः- आजमखान
अमिताभबच्चन अनिलअंबानी अभिषेक बच्चन आदि।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि किसी को
केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय प्राचीन विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी लेना चाह रहे हों।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
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