बलात्कार रोकने के लिए शक्त कानून की आवश्यकता तो है ही किन्तु कितना शक्त कानून हो !उसमें अधिक से अधिक फाँसी की सजा होगी इससे अधिक क्या होगा किन्तु असफल प्रेमी प्रेमिकाएँ इतना निराश हताश होते हैं कि आत्म हत्या तो वे वैसे भी कर लेते हैं फिर इन्हें फाँसी जैसी कठोर सजा से कितना भयभीत किया जा सकता है और यदि यह भी न किया जाए तो इससे बड़ी दूसरी सजा और होती कौन है?बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को रोकने के लिए दण्डित तो किया ही जाना चाहिए !मैं यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि जो लोग बलात्कारी को फाँसी की सजा की माँग इसलिए करते हैं कि ये महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से अच्छा कदम होगा किन्तु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिस बलात्कारी को फाँसी की सजा हुई होती है वह तो मरकर चला जाता है किन्तु वास्तविक सजा उसके परिजनों को आजीवन भोगनी पड़ती है समाज की जलालत ,उपेक्षा,गरीबी और वियोगजन्य पीड़ा तो होती ही है !वास्तव में बलात्कारी के आश्रित लोग ही भोगते हैं वास्तविक दंड !जिनका उस बलात्कार से कोई सम्बन्ध नहीं होता है और वो चाह कर भी इस घटना को रोक नहीं सकते थे ऐसे पीड़ितों में भी कई स्त्री जाति से सम्बंधित भी होती हैं जैसे बलात्कारी के माता -पिता, भाई - बहनें,कई बार तो पत्नी बेटा बेटियाँ आदि भी होते हैं !इसलिए बलात्कारियों को फाँसी देने का मतलब महिला सुरक्षा कैसे हो सकता है !
इसलिए आप सभी सुबुद्ध विद्वान बंधुओं से मेरा निवेदन है कि सबको मिलकर कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए कि किसी बलात्कारी के आश्रितों को उसके किए की सजा भोगनी पड़े !इसके तीन प्रमुख मार्ग हैं उनमें पहला तो यह है कि देश और समाज में सात्विकता का वातावरण बने जिससे आध्यात्मिकता का विकास हो मन सतोगुणी हो जाए और किसी की रूचि ही बलात्कारों की ओर न जाए !किन्तु ऐसा करेगा कौन?क्योंकि आधुनिक कलियुगी संतों का मन साधना और सात्विकता से बहुत दूर होता जा रहा है वो संपत्ति प्रिय होते जा रहे हैं राजनीति प्रिय होते हैं अपने मन के व्यक्तियों को प्रधान मंत्री बनाकर फिर लूटते हैं देश के आस्थावान लोगों को !समाज के दिखावे में तो ये विदेशों से काला पीला धन लाने की बात करते रहेंगे किन्तु निशाना अपनी संपत्ति संग्रह एवं व्यापारिक सुरक्षा आदि आदि होता है!इसलिए ऐसे बाबाओं से समाज को संस्कार देने की उमींद की भी कैसे जाए जिनके अपने संस्कार ही बिगड़े चल रहे हों !इनके अलावा भी जो चरित्रवान विरक्त संत हैं भी वो अपनी साधना में लगे रहते हैं उनके पास समय कहाँ होता है जो समाज सुधार कार्यों में वे रूचि लें !
वस्तुतः काम (सेक्स) पीड़ा से परेशान लोगों को सुधरने के चाहिए भोजन सात्विक करें रहन सहन भी ऐसा ही बनाएँ और धीरे धीरे अपने मन पर नियंत्रण करने की कोशिश करें !पहले के लोग मन को सभी प्रकार से संयम देते थे
उस समय इतना विचार रखने
लायक कहाँ होता है कि कुछ
सोचने समझने की स्थिति में हो!ऐसे लोग मनोरोगी होते हैं इनकी बात मानने
वाले लड़के लड़कियाँ जान बूझ कर कूदते हैं इस आग में!यद्यपि ये लोग भरोसे
लायक होते नहीं हैं।
जब कोई लड़का किसी लड़की से प्रेम करने का नाटक करे इसी प्रकार लड़की भी तो समझ लेना चाहिए कि ये सेक्स पीड़ा से
परेशान है।अभी कुछ दिन पहले ही विदेश में घटी एक घटना अखवार में पढ़ी जब
किसी प्रेमी ने किसी एकांत जगह पर प्रेमिका को बुलाया किन्तु किसी कारण से
वो आ नहीं सकी तो उस प्रेमी ने घोड़ी के साथ सेक्स किया !
यह वो विकृत भावना है जो प्रेमी प्रेमिकाओं के मन में एक दूसरे के प्रति होती है ऊपरी मन से एक दूसरे को चाहने का झूठा नाटक किया से करते हैं। यदि इनमें वास्तव में दूसरे से प्रेम होता तो एक दूसरे से विश्वासघात, हत्या या सम्बन्ध विच्छेद जैसी दुर्घटनाएँ घटती ही नहीं!
मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से ज्योतिष सम्बंधित विषय में पीएच.
डी. की है इसलिए एक और सच्चाई सामने आई है कि पूर्व जन्म के
कर्मानुशार जिसके भाग्य में पत्नी या पति से सेक्स का सुख नहीं बदा होता
है वही सेक्स की तलाश में बचपन से भटकने लगते हैं वो
इस पर उतारू होते हैं कि कहीं मिले किसी से मिले कैसे भी मिले कितना भी
झूठ बोलकर मिले बच्चे से मिले बूढ़े से मिले,सेक्स के लिए ये
बिलकुल पशुओं जैसा व्यवहार करने लगते जैसे कुत्ते बन्दर आदि कहीं किसी
सार्वजनिक स्थान पर टाँग फँसा कर खड़े हो जाते हैं ठीक इसी प्रकार से
ऐसे लड़के लड़की भी सामाजिक शर्म की भावना छोड़ चुके होते हैं ये
अपने घर से पड़ोस से नाते रिश्तेदारी या स्कूल तक में किसी से भी कहीं भी
टाँगें फँसाना शूरू कर देते हैं।पार्कों, मैट्रोस्टेशनों, पर्किंगों,
रेस्टोरेंटों, बसों जैसी
सार्वजनिक जगहों पर ही दोनों एक
दूसरे को चिपटने चाटने लगते हैं।खैर! मरता क्या न करता वाली स्थिति होती
है।ये अर्द्धनग्न कपड़े,माथे पर बाल आदि ऐसी वेष भूषा बना लेते हैं ताकि
समाज के आम लोगों की अपेक्षा ये कुछ अलग और उस तरह के लगें जिन्हें वो लोग
आसानी से पहचान कर कमेंट मार सकें और लीला आगे बढ़ सके! ऐसे
लोग छोटे छोटे बच्चों , पागलों,एवं अपाहिजों को भी अपनी हबस का शिकार बना
लेते हैं।यदि इनके भाग्य में ही सेक्स को लेकर अपमान सहना न लिखा होता तो
सेक्स सुख तो वैसे भी विवाह हो जाने पर भी मिलता किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा
भी बनी रहती जो इनके ग्रहों को मंजूर नहीं था।इसलिए
हित चाहने वालों को चाहिए कि ऐसी ऊटपटांग वेषभूषा बनाकर रहने वालों से
अपने बच्चों को बचाकर रखना चाहिए।
बढ़ते बलात्कारों का एक और बड़ा कारण
यह भी कि जैसी शिक्षा वैसे संस्कार नैतिक शिक्षा से नैतिक लोग होंगे।
सामान्य शिक्षा से सामान्य विचारधारा के लोग होंगे और सेक्स एजुकेशन से
सेक्सुअल लोग होंगे इस प्रकार के सरकारी प्रयासों के परिणाम भी सामने आने
लगे हैं जिनसे सारा विश्व चिंतित दिखने लगा है ।
वैसे तो हर किसी को नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए यदि यह संभव न हो सके तो
शिक्षा सबके लिए अत्यंत आवश्यक है ही किन्तु अब तो शिक्षा का अभाव ही
है !अक्सर देखा गया कि बलात्कार के अनेक केसों में लड़के या लड़कियाँ अशिक्षित होते हैं।इसलिए बढ़ते बलात्कारों का एक बड़ा कारण अशिक्षा भी है।
आम आदमी के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वह अपने बच्चों को प्राइवेट में पढ़ा सकें और सरकारी विद्यालयों में आजकल शिक्षा की जितनी दुर्दशा है वहाँ बच्चों को कुछ पढ़ाया नहीं जाता कभी कभी कोई कोई शिक्षक क्लास ।हमारी सरकार के पास नैतिक शिक्षा का कोई कार्यक्रम ही नहीं है। शिक्षा की दुर्दशा यह है कि उनके प्राथमिक विद्यालयों को प्राइवेट विद्यालय पीटते जा रहे हैं सरकार के अपने कर्मचारी एवं अध्यापक अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़ाते हैं सरकार के लिए इससे अधिक शर्म की बात और क्या होगी ?
जहाँ तक महिला सुरक्षा
के विषय की बात है। मैंने एक कथानक सुना है कि श्री राम के राज्य में
हाथी और सिंह एक घाट पर पानी पीते थे किसी को किसी से कोई भय नहीं होता था फिर भी वो हाथी एक घाट पर पानी
भले पीते थे किन्तु सिंह के स्वभाव में चूँकि हिंसा है इसलिए उसके साथ
निश्चित दूरी बनाकर रहते थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि अहिंसा या हिंसा का
निर्णय तो सिंह के ऊपर है वह हिंसा का पालन करे या अहिंसा
का व्रत ले! अथवा अहिंसा का व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे।ये उसी को पता
है।ऐसी परिस्थिति में व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे तो हाथी की जान पर बन आएगी। इसलिए सिंह जैसे चाहे वैसे रहे किन्तु हाथी को अपनी ओर से सावधानी तो रखनी ही चाहिए। ये उदाहरण अहिंसक समाज का है।
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