हर हर मोदी की इतनी चर्चा क्यों? किसी खिलाड़ी को भगवान् कहा जाना बुरा क्यों नहीं लगा ?
अब मेरा विनम्र प्रश्न जगदगुरू जी से है कि यदि हर हर मोदी आपको बुरा लग सकता है तो लगना ही चाहिए किन्तु जब किसी खिलाड़ी को क्रिकेट का भगवान् कहा गया जब
किसी अभिनेता का मंदिर बनाया गया या जब किसी नेता की चालीसा लिखी गई या जब
किसी बाबा की आरती गाई गई या जब किसी धार्मिक संत के मंदिर बनाए जाने लगे तब आपको बुरा क्यों नहीं लगा !
आज सारे देश में मानव मंदिर बनाए जा रहे हैं । मैं बात श्रद्धेय साईं बाबा जी के विषय में कह रहा हूँ आज उनकी आरतियों में पूजा में उनकी तुलना श्री राम और
कृष्ण से की जाती है ये सब शास्त्रीय है क्या !हो सकता है कि यदि वो आज
होते तो उन्हें भी बुरा लग रहा होता किन्तु उनके अनुयायी मानने को तैयार
नहीं होंगे!आखिर उन्हें यह समझाने का प्रयास कभी क्यों नहीं किया गया कि
मंदिर केवल देवताओं के बन सकते हैं वैसे भी मूर्तियाँ भी केवल देवताओं की ही पूजनीय हो सकती हैं क्योंकि मूर्ति में जब तक प्राण प्रतिष्ठा न की जाए तब तक वो पत्थर ही मानी जाती है और प्राण प्रतिष्ठा वेदमंत्रों के द्वारा की जाती है जब वेद लिखे गए थे तब जो लोग थे ही नहीं तब उनके मन्त्र कैसे लिखे जा सकते थे और जिसके मन्त्र नहीं हैं उसकी प्रतिष्ठा कैसी ?फिर ऐसे संतों महापुरुषों की मूर्तियों को पूजने का औचित्य ही क्या है ?
जहाँ तक बात हर हर मोदी कहने की है यह तो गलत है ही इसका मंडन नहीं किया जा सकता है क्योंकि हर हर महादेव भगवान शिव के नाम का अमर उद्घोष है जिसे काशीबासी बड़ी श्रद्धा और विश्वास से बोलते हैं यही धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज का प्रिय उद्घोष था !काशी नरेश डॉ.विभूति नारायण सिंह जी का भी ये इतना प्रिय उद्घोष था कि कोई उनको एक बार नमस्ते करे उसका जवाब वो दें न दें किन्तु हर हर महादेव कहने वाले को कभी निराश नहीं करते थे और उसके लिए हाथ उठाकर प्रत्युत्तर अवश्य करते थे ।
चूँकि ये शब्द आस्था से जुड़े हैं इसलिए किसी भी मनुष्य के नाम के साथ उस ढंग से हर हर का प्रयोग करना उचित नहीं है। जैसे कई शब्द वैसे भी बोले जाते हैं किन्तु यदि उनके ध्वन्यार्थ से किसी को ठेस लगती हो तो उसे न्याय संगत नहीं कहा जा सकता है जैसे हर हर मोदी कहने से ठेस लगती है वैसे भी हर हर.… के बाद किसी व्यक्ति का नाम लेने से भक्तों को ठेस लगना स्वाभाविक है और इसका ध्यान दिया भी जाना चाहिए इस पर जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद जी के वक्तव्य को श्रद्धा पूर्वक स्वीकारते हुए इसपर नियंत्रण यथा सम्भव किया ही जाना चाहिए यही उचित है और राजनैतिक भलाई भी इसी में है ।
इस विषय में टी.वी.चैनलों पर बैठ कर परिचर्चा में कुछ नेता एवं चैनलों के द्वारा बाबा बना कर अकसर बैठा लिए जाने वाले बिना पढ़े लिखे अशास्त्रीय कुछ लोग किन्तु परन्तु लगाकर 'हर हर मोदी' में कुछ खास गलत नहीं देख रहे थे, रहा होगा उन बाबाओं का अपने पापों का कुछ भय जो वो किसी राजनेता के संरक्षण में रहकर जारी रखना चाहते होंगे इसीलिए लिए वो मोदी जी को खुश करने के लिए ऐसा कह रहे थे किन्तु उन टी.वी.चैनलीय बाबाओं के मुख से न कोई शास्त्रीय प्रमाण निकल रहा था और न कोई शास्त्रीय उदहारण अपितु कुछ शेरो शायरी बोलकर वो जनता को भटका रहे थे हाँ यदि वो लोग संत होते न होते हिन्दू ही होते तो भी उदहारण तो शास्त्रीय देते ही माना कि वे बाबा नाम केवलम रहे होंगे पढ़े लिखे होते तो शेरो शायरी की जगह रामचरित मानस की चौपाइयाँ तो बोल ही सकते थे किन्तु हो सकता है 'बन्दे मातरम'की तरह ही उनके धर्म में धार्मिक श्लोक सूक्तियाँ आदि भी बोलने में मनाही हो किन्तु वो महिला पत्रकार उन्हें हिन्दू संत ही कहकर संबोधित कर रही थीं फिर भी हिंदू संतों जैसी वेष भूषा के अलावा उनकी बाणी में हिन्दू धर्म की सुगंध बिलकुल नहीं थी। ऐसे लोग यदि हिन्दू धर्म की ठेकेदारी कर के हर हर मोदी का समर्थन करते हैं तो ऐसे छद्म संतों पर भरोसा करना घातक होगा !क्योंकि संत वही जो शास्त्रीय सच बोले उसे भय किस बात का !
दूसरी बात यहीं पर एक राजनेता ने जगद्गुरु शंकराचार्य जी के लिए काँग्रेसी होने का आरोप लगाया जो सर्वाधिक दुखद था जगद्गुरु जी के शास्त्रीय विचारों की आलोचना करना उस नेता की अभद्रता है अशिष्टता है असहनशीलता है या चाटुकारिता की चरमसीमा है !
खैर , उस विषय में हमें कुछ नहीं कहना है किन्तु बिचार इस बात का करना बहुत आवश्यक है कि क्या मोदी जी को यह सब अच्छा लग रहा होगा आखिर वो भी हमारी आपकी तरह के ही धर्मवान प्राणी हैं वो भी बाबा विश्वनाथ पर उतनी ही आस्था रखते हैं जितनी कोई और रखता है फिर वो इसबात का समर्थन कैसे कर सकते हैं कि उन्हें कोई हर हर मोदी कहे वैसे भी उन्हें यदि ऐसी ही शौक रही होती तो इसके पहले भी कहीं तो दिखाई पड़ी ही होती किन्तु ऐसा कभी नहीं हुआ और जब से मोदी जी के बनारस से चुनाव लड़ने का निश्चय हुआ तभी से हर हर महादेव कहने के आदी काशी वासी वही तुकबंदी लगाते हुए हर हर मोदी कहने लगे!वैसे भी नारे बनाए भी ऐसे ही जाते हैं किन्तु यहाँ तो बाबा विश्वनाथ जी का प्रश्न है इसलिए ठीक नहीं लगा जिसमें मोदी जी भी हम्हीं लोगों के साथ हैं अर्थात उन्हें भी अच्छा नहीं ही लगा होगा इस बात में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं किया जाना चाहिए ।
काशी के धर्मवान एवं ज्ञानवान प्राणियों को जितना ये सब बुरा लग रहा है वो तो ठीक है किन्तु जो ज्ञानवान नहीं हैं उन्हें नहीं पता हैं ऐसी बातों के अर्थ उन्होंने तुकबंदी लगाई और बोलने लगे। हर हर मोदी देखा देखी और लोग भी बोलने लगे वैसे भी गाने बजाने वाले लोग इतने अर्थ प्रेमी कहाँ होते हैं !एक दिन कोई आरती गाई जा रही थी उसमें एक जगह शब्द आता है कि 'तुम रक्षक मेरे'किन्तु बोलने वाले ने 'रक्षक' की जगह 'राक्षस' बोलना प्रारम्भ कर दिया तो सब उसी के पीछे हो लिए इसीलिए मैंने निवेदन किया कि गाने बजाने वाले लोग इतने अर्थ प्रेमी नहीं होते हैं जिस पर लय बनने लगे वही ठीक है!शास्त्रों में कहा भी गया है -
" अपि मास मसं कुर्यात छन्दो भङ्गं न कारयेत् "
जहाँ तक "हर हर "शब्द की बात है तो 'हर' शब्द का अर्थ 'महादेव' ऐसा किया गया है यही शब्द व्याकरण के अनुशार देखने पर लोट लाकर के मध्यम पुरुष का एक बचन है जिसका अर्थ होगा हरण करो किन्तु क्या हरण करो इसका कोई संकेत नहीं है किन्तु दुःख दर्द संकट आदि के हरण करने का भाव प्रकट होता है या उसका अद्याहार कर लिया जाता है ।
वैसे भी टी.वी.चैनलों पर बैठ कर ऐसे वाक्यों की व्याख्या किसी की राजनैतिक चाटुकारिता की दृष्टि से नहीं की जा सकती ऐसे लोग बाबा ही क्यों न हों उन्हें भी उन्मत्त होकर नहीं बोलना चाहिए संयम से काम लेना चाहिए ये धार्मिक आस्था का प्रश्न है।बाबा लोग भी सर्व तंत्र स्वतन्त्र नहीं हैं!
इसी प्रकार किसी खिलाड़ी को भगवान् कहना कितना उचित है !भगवान किसे कहते हैं क्या कभी जाना समझा है हम लोगों ने! इस विषय में क्या कहते हैं हमारे शास्त्र ?
देश वासियों की सुरक्षा के
लिए शिर कटाने वाले सैनिक यदि हमारे भगवान् नहीं हो सकते तो कोई खिलाड़ी
भगवान् कैसे हो सकता !सम्मानीय हो जाए ये बात और है ।
कुछ मीडिया के
महापुरुषों ने एक बाबा जी से जब तक विज्ञापन मिलते रहे तब तक उन्हें बे
मतलब में सर्व शक्तिमान मलमल बाबा की तरह उनसे उनकी शक्तियों की कृपा
लोगों पर लुटवाते रहे उन्हें अपने मन से धर्म गुरु और जाने क्या क्या
बताते रहे और भी जितना चढ़ा सकते थे उतना चढ़ाया किन्तु जब वो अपने पत्र
पत्रिकाएँ टी. वी.चैनल आदि खुद चलाने लगे तो इसी मीडिया ने न केवल उनके लिए
अपितु समस्त धर्म एवं धर्माचार्यों के लिए क्या कुछ नहीं कहा !महीनों तक
अपने अपने चैनलों पर बैठकर पानी पी पी कर खूब कोसते रहे बाक़ी सच्चाई तो
ईश्वर ही जाने !मेरा उद्देश्य किसी का पक्ष लेना नहीं है ,किन्तु विज्ञापन
का ये ढंग ठीक नहीं है गम्भीरता तो रखनी ही चाहिए ।
हमारे कहने का अभिप्राय
मात्र इतना है कि वह मीडिया यदि किसी मनुष्य को भगवान जैसे शब्दों से
सम्बोधित करने भी लगे तो गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि अब मीडिया भी
निष्पक्ष नहीं रहा है !
जहाँ तक किसी को भगवान् कहने की बात है ये धर्म का विषय है इसे धर्माचार्यों पर छोड़ा जाना चाहिए साथ ही हमें
एक बात और ठीक तरह से समझ लेनी चाहिए कि खेल या किसी कला में कोई कितना
भी निपुण क्यों न हो जाए किन्तु उसे भगवान् नहीं कहा जा सकता ! भगवान् न तो
कोई बन सकता है और न ही बनाया जा सकता है ये बनने
बनाने का खेल ही नहीं है वह परं प्रभु तो ("चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्" "स्वे
महीम्नि महीयते" आदि आदि )अपनी महिमा में महिमान्वित् एवं स्वयं सिद्ध
स्वामी हैं उनकी तुलना किसी मनुष्य से करनी ही क्यों ?
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः ।
ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ॥
समग्र ऐश्वर्य, शौर्य, यश, श्री, ज्ञान, और वैराग्य आदि । ये जिनमें एक साथ हों वो भगवान होता है यथा -
1. समग्र ऐश्वर्य- शक्ति संपन्न ,योग्य ,समर्थ,धनाढ्य, स्वामी आदि अर्थ होते हैं।
2.शौर्य-बहादुर, वीर, पराक्रमी आदि ।
3.यश-प्रसिद्धि ,ख्याति,कीर्ति, विश्रुति आदि ।
4.श्री-असीम धन,समृद्धि,सौभाग्य ,गौरव ,महिमा ,प्रतिष्ठा ,सुंदरता श्रेष्ठता समझ अति मानवीय शक्ति सम्पन्नता आदि ।
5.ज्ञान-विद्या प्रवीणता ,समझ,परिचय,चेतना आदि।
6.वैराग्य-सभी प्रकार के सांसारिक सुख की इच्छाओं का अभाव।
ये छहो गुण एक साथ जिसमें होते हैं वो भगवान् होता है !
जो ईश्वर के बिना किसी और में सम्भव ही नहीं हैं फिर बात बात में जिस पर
जिसकी आस्था श्रद्धा विश्वास हो जाए वह उसका आस्था पुरुष हो सकता है
किन्तु भगवान् नहीं !
सभी सनातन धर्मावलम्बियों से प्रार्थना है कि अपने भगवान् और सभी देवी-
देवताओं, वेदों ,शास्त्रों, पुराणों ,तथा समस्त पवित्र ग्रंथों ,तीर्थों,
नदियों ऋषियों ,विद्वानों ,वीरों समेत सभी सदाचारी स्त्री पुरुषों का गौरव
घटने नहीं देना चाहिए क्योंकि इनका गौरव बचने से समाज और देश बच पाएगा
अपने धार्मिक प्रतीकों ,शब्दों कथानकों का प्रयोग हर किसी को हर जगह प्रयोग
करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए । ऐसे तो कोई क्रिकेट का भगवान् होगा
तो कोई कुस्ती का तो कोई किसी और कला का भगवान हो जाएगा !आखिर हमारी
आत्माओं, हृदयों, प्राणों को आनंदित कर देनेवाले ईश्वर की तुलना किसी
मनुष्य से कैसे की जा सकती है ?
वैसे भी सरकारें पुरस्कारों की स्वामिनी होती हैं वो इनका प्रयोग अपनी
अपनी सुविधानुसार किया करती हैं अगर ईमानदारी,गुणगौरव,लोकप्रियता के आधार
पर ये सम्मान दिए जाते होते तो अटल जी जैसे महापुरुष को क्यों नहीं दिए जा
सकते थे? जिनके प्रशंसक हर दल ,वर्ग,समुदाय ,संप्रदाय ,क्षेत्रों में हैं
जिनकी स्वच्छ छवि स्वदेश ही नहीं अपितु विदेशों तक विस्तारित है।यह समझ से
बाहर की बात है कि सरकार आदरणीय अटल जी को इस सम्मान के योग्य क्यों नहीं
मानती है?इस विषय पर यदि पूरे देश की राय शुमारी करा ली जाए तो पता चल
जाएगा कि सरकार कितने गहरे पानी में है !
अब मैं खेल प्रिय समाज से क्षमा माँगते हुए खिलाड़ियों और देश के लिए समर्पित सैनिकों की तुलना करना चाहता हूँ ! देश के लोगों का जो समर्पण
खेल ,खेलों और खिलाडियों के एवं फ़िल्म से जुड़े लोगों के प्रति होता है काश!
कम से कम उतना ही समर्पण राष्ट्र के प्रति समर्पित वीर सैनिकों के प्रति
भी होता तो क्यों झेलना पड़ता देश को आतंक वाद का कठिन दंश !
विदेशों से जब खिलाड़ी
खेलों में जीत कर आए होते हैं तो प्रधान मंत्री जी,मुख्यमंत्री जी
फिल्मोद्योग से जुड़े लोग एवं बड़े बड़े उद्योग पति सब लोग कुछ न कुछ देने
घोषणा कर रहे होते हैं !
किन्तु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा में शहीद हुए वीर सैनिकों के लिए यह जोश क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ?जब उन सैनिकों के दुध मुए बच्चों के दूध की व्यवस्था एवं भविष्य सुधारने की व्यवस्था करने के लिए सरकारी आफिसों के चक्कर काटती फिरती हैं सैनिकों की विधवाएँ! उन्हें देखकर इन जोशीले नेताओं एवं धनियों की आत्माएँ इनको क्यों नहीं धिक्कारती हैं इनकी कुंद जबान से क्यों नहीं निकलता कि देवी ! तुम घर बैठो तुम्हारे बच्चों समेत तुम्हारे परिवार की चिंता हम उद्योग पतियों और सरकारों पर छोड़ दो !
उनमें से जिन सैनिकों के
परिजनों के लिए पेट्रोल पम्प देने की घोषणा सरकारों के द्वारा की भी जाती
है उन्हें वे मिलते भी हैं कि नहीं है कोई देखने या पूछने वाला? उनकी
विधवाओं को कागजों फाइलों अफ्सरों के नाम पर कितने चक्कर कटवाए जाते हैं वे
छोटे छोटे बच्चे लेकर भटका करती हैं एक आफिस से दूसरी आफिस दूसरी से तीसरी
आदि आदि !कितनी निर्दयता का व्यवहार होता है उनके साथ ?
जब किसी खिलाड़ी भगवान की खेल जगत से बड़े धूम धाम पूर्वक विदाई देखता हूँ जिसमें बड़ी बड़ी स्वर कोकिलाओं के द्वारा प्रशंसा की गई होती है फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े बड़े महापुरुष वहाँ पहुँच जाते हैं बड़े बड़े तथाकथित युवराज ,मुख्य मंत्रियों समेत राजनैतिक जगत के बड़े बड़े भाग्य विधाता पहुँचकर उस अवसर पर शोभा बढ़ा रहे होते हैं बहुत अच्छा लगता है यह सब देखकर !
दूसरी ओर राष्ट्र की
सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान वीर सपूतों के शिर काट लिए जाते
हैं बिना शिरों के शव पहुँचते हैं परिजनों के पास उस दुःख की घड़ी में कोई
नहीं पहुँचता है उन प्रणम्य शहीद वीर सैनिकों के परिजनों को ढाढस बँधाने
!यदि आत्मा का विज्ञान सच है तो यह सब देखकर उन शहीद सैनिकों की आत्माओं
को कितना बड़ा आघात लगता होगा ?
क्या तुलना नहीं की जानी
चाहिए एक खिलाडी की खेल जगत से की गई धूम धाम से विदाई, दूसरी ओर राष्ट्र
की सीमाओं की सुरक्षा में लगे देश के महान वीर सपूतों की इस संसार से
विदाई में बेरुखाई ही बेरुखाई!क्या किसी को नहीं लगना चाहिए कि सैनिकों के
परिजनों को न कुछ और तो सांत्वना ही दे आएँ !
याद रखिए कि खेल कूद और
नाच गाना आदि सारा मनोरंजन तभी तक अच्छा लगता है जब तक असंख्य सैनिक देश
की सीमाओं की सुरक्षा के लिए सीना लगाए खड़े हैं ,उन्हें भी बूढ़े माता पिता ,जवान पत्नी एवं छोटे छोटे बच्चों की याद आती होगी!
प्रिय परिजन, पुरबासी, खेत -खलिहान समेत सभी स्मृतियाँ उन्हें भी सोने
नहीं देती होंगी किन्तु राष्ट्र रक्षा की प्रबल भावना ने उन्हें बाँध रखा
होता है देश की सीमा पर और यों ही बीत जाते हैं उनके सारे तिथि त्यौहार,सारे गाँव , घर खानदान के उत्सव !
अपने प्रिय देश वासियों से मेरी प्रार्थना यही है कि सैनिकों के महान त्याग और बलिदान का सम्मान भी देश में कम से कम उतना तो हो ही जितना किसी और का होता है !!!
(इस कारगिल विजय नामक काव्यात्मक पुस्तक की प्राप्ति के लिए हमारा वर्तमान पता है-)
( K -71, Chhachhi Building Chauk, Krishna Nagar Delhi -51. Mo.9811226973)
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