काश मैं भी नेता बन पाता !
हर पार्टी के लोगों को मैंने यह कहते सुना है कि वो राजनैतिक शुद्धि के
लिएपढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।जिससे देश में
ईमानदार राजनीति का वातावरण बनाया जा सके। यह सुनकर मैंने सोचा कि मैंने भी
दो विषय से आचार्य (एम.ए.) दो विषय से अलग से एम.ए. एवं बी.एच.यू. से
पीएच.डी की है।करीब150 किताबें लिखी हैं यद्यपि सारी प्रकाशित नहीं हैं,कई
काव्य ग्रंथ भी हैं।प्रवचन भाषण आदि करने ही होते हैं।आरक्षण आंदोलन से आहत
होकर मैंने आजीवन सरकार से नौकरी न मॉंगने का व्रत लिया हुआ है। वैसे भी
ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता रहा हूँ। फिलहाल अभी तक निष्कलंक जीवन है यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं हैं।
इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में
सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने
के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे
फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के
लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो
दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र
लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है।
हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा
चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन
करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी कोई पत्र
नहीं मिला।
इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से हैं शायद वहीं हमारा जनहित में शैक्षणिक सदुपयोग हो सके तो अच्छा होगा तो वहॉं के बड़े बड़े लोगों
ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा उनसे छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई
प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में रहने
को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप
से कैस किया जा सके।यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने
पैसे के कारण रुचि नहीं ली।
इसके बाद
निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का नारा देने वाले एक सामाजिक संगठन से जुड़ने
के लिए वहॉं के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के
माध्यम से समय मॉंगा किंतु वहॉं भी मुझे घास नहीं डाली गई।इसके बाद ब्लाग
पर बैठ कर चुपचाप मैं अपने बिचार लिखने लगा।
यहॉं यह अपनी निजी कहानी लिखने का अभिप्राय केवल यह है कि इन राजनेताओं को
अपने दलों में अपने साथ जोड़ने में न जाने किस शैक्षणिक या और प्रकार की
योग्यता की आवश्यकता होती है जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं के नाम पर वे जिनकी
तलाश किया करते हैं न जाने वे कौन से भाग्यशाली लोग हैं,और वे अपनी किस योग्यता से अपनी ओर राजनैतिक समाज को प्रभावित किया करते हैं?मुझे
तो केवल इतना पता है कि हमारे जैसा शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इन
राजनैतिक लोगों के किसी काम का नहीं है तो आम ग्रामीण या सामान्य आदमी इन
राजनैतिक या सामाजिक संगठनों से क्या आशा रखे?अगर उसे अपनी कोई समस्या
कहनी ही हो तो किससे कहे ?और यदि राजनैतिक क्षेत्र में जुड़कर कोई काम करना
ही हो तो कैसे करे ?
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापकःराजेश्वरी प्राच्यविद्याशोधसंस्थान
एवं
दुर्गापूजाप्रचारपरिवार
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)द्वारा संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालयवाराणसी ज्योतिषाचार्य(एम.ए.ज्योतिष)
द्वारासंपूर्णानंदसंस्कृतविश्व विद्यालयवाराणसी
एम.ए. हिन्दी द्वारा कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता द्वारा उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष) द्वारा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी.एच. यू. वाराणसी
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)द्वारा संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालयवाराणसी ज्योतिषाचार्य(एम.ए.ज्योतिष)
द्वारासंपूर्णानंदसंस्कृतविश्व विद्यालयवाराणसी
एम.ए. हिन्दी द्वारा कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता द्वारा उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष) द्वारा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी.एच. यू. वाराणसी
विशेषयोग्यताः-वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीनवाङ्मयएवं राष्ट्र भावना सेजुड़ेसाहित्य में लेखन और स्वाध्याय
प्रकाशितः-पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
कारगिल विजय (काव्य ) श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद ) श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य ) श्री परशुराम(एक झलक श्री राम एवं रामसेतु (21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन)
कुछ मैग्जीनों में संपादन, सह संपादन स्तंभ लेखन आदि।
अप्रकाशितसाहित्यः-श्रीशिवसुंदरकांड,श्रीहनुमतसुंदरकांड,संक्षिप्तनिर्णयसिंधु, कारगिल विजय (काव्य ) श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद ) श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य ) श्री परशुराम(एक झलक श्री राम एवं रामसेतु (21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन)
कुछ मैग्जीनों में संपादन, सह संपादन स्तंभ लेखन आदि।
ज्योतिषायुर्वेद,श्रीरुद्राष्टाध्यायी,वीरांगनाद्रोपदी,दुलारीराधिका,ऊधौगोपीसंवाद, श्रीमद्भगवद्गीता‘काव्यानुवाद’
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