अविवाहित युवाओं की समस्याओं का समाधान आखिर कैसे हो ?
फिल्में बोल्ड सीनों से ही चलती हैं इसका अभिप्राय है नंगापन जो जितना नंगा हो सके वो उतना बोल्ड भारतीय भाषाओँ में इसे बेशर्मी की चर्म सीमा भी कहा जा सकता है।शिक्षा के लिए सेक्स जरूरी है इसलिए सेक्स एजूकेशन की जरूरत हुई किन्तु बोल्ड सीन देखने से जो उत्तेजना पैदा होती है उसे शांत करने के लिए अविवाहित युवा आखिर किसकी शरण में जाएँ किससे कहें त्राहि माम् !अर्थात मेरी रक्षा करो !मेरी रक्षा करो !इसी प्रकार सेक्स एजूकेशन का अभ्यास कहाँ और कैसे करें ?क्या इन विन्दुओं पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिए ?
भ्रष्टाचार के इस युग में सरकार पर भी एक सीमा तक ही भरोसा किया जा सकता है बाकी आत्मरक्षा में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं बरती जानी चाहिए । यदि कानून चुस्त हो तो भी कोई घटना घटने के बाद अपराधी को कितना भी बड़ा दंड मिल जाए उससे क्षतिपूर्ति तो हो पाना संभव नहीं होता है।और अपराध करने से पूर्व कोई अपराधी नहीं होता है।वैसे भी जब राम राज्य में अपराध पूरी तरह नहीं रोका जा सका तो इस भ्रष्टाचार के युग में ऐसी काल्पनिक ईच्छा ही क्यों पालना ?यह राम राज्य तो है भी नहीं !
जवान लड़के लड़कियों की सेक्स भूख आज किसी से छिपी नहीं है। सामूहिक या सार्वजानिक स्थलों पर चल रही रास लीला देखकर हर कोई समझ रहा है कि सेक्स के लिए ये जवान लड़के लड़कियाँ कितने परेशान हैं? ये जोड़े कोई मौका मिलते ही एक दूसरे को चूमने चाटने में लग जाते हैं।लिफ्ट में चढ़ने के चन्द्र मिनट भी चिपकने चाटने में निकलते हैं।सभी लोगों के देखते देखते एक दूसरे के शरीरों में कहाँ कब हाथ लगा देंगे कोई भरोस नहीं होता है ।जवान लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के गले में हाथ डालकर चलने लगते हैं।आप ईमानदारी से सोचिए कि इतने प्रेमपूर्वक सार्व जनिक रूप से दो सगे जवान भाई भी इस युग में रहते या चलते देखे जाते हैं क्या ? ये या इस तरह के और भी सारे शिथिल आचरण मन की जिस बेचैनी का बयान करते हैं वो सेक्स और केवल सेक्स है इसके अलावा कुछ भी नहीं है ।इस प्रकार से लुकते छिपते हुए छीन झपट कर आधा अधूरा सेक्स सुख पाकर बेचैन युवक युवतियाँ अपने को नियंत्रित रख पाएँगे इसकी संभावना बहुत कम होती है अर्थात वो कभी भी कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं।सम्पूर्ण सेक्स की अपेक्षा ये आधा अधूरा सेक्स सुख सबसे अधिक घातक होता है।ऐसे लोग अधिकतर चलने के लिए कम भीड़ भाड़ वाला रास्ता चुनते हैं जिस सवारी पर बैठेंगे वहाँ भी यह देखकर बैठते हैं जहाँ भीड़ भाड़ न हो जिससे मौज मस्ती का समय अधिक मिल जाता है। आटो पर चलते हैं वहाँ भी चलते समय सारी हरकतें जारी रहती हैं।यही अपराध को जन्म देता है।इसी कारण हत्या, बलात्कार आदि सब कुछ होता है। क्योंकि इसमें सम्बंधित जोड़ा तो आधा अधूरा सेक्स सुख पाकर बेचैन होता है किन्तु जिसका कोई सम्बन्ध ही नहीं है ऐसा दर्शक उनसे अधिक बेचैन होता है आखिर वो भी तो स्त्रीत्व या पुंसत्व से संपन्न होगा।ये बात हमें भूलनी नहीं चाहिए । यदि किसी के पास सोने की असर्फियाँ हैं उन्हें देख कर किसी देखने वाले को पाने का लालच हो सकता है।इसी प्रकार अच्छा पकवान देखकर देखने वाले के मुख में यदि पानी आ जाता है।यदि इनको नहीं रोका जा सकता है तो सबसे अधिक बलवान सेक्स सुख के लालची को कैसे रोका जा सकता है ? विश्वामित्र, पराशर, नारद, सौभरि जैसे ऋषि एवं चौदह हजार स्त्रियों का पति रावण भी सीता को एकांत में अकेली देखकर अपने को रोक नहीं पाया तो आज ऐसे संयम एवं सदाचरण की परिकल्पना ही क्यों करनी?
काम शास्त्र एवं साहित्य शास्त्र में इस प्रकार का वर्णन भी मिलता है -
ज्ञातः स्वादुः विवृत जघना कः बिहातुं समर्थः?
अर्थात एक बार आधा अधूरा बासनात्मक सुख का स्वाद पता लग जाने पर फिर उस तरह की परिस्थिति देखकर भी कौन बासनात्मक सुख की ईच्छा छोड़ पाने में समर्थ हो सकेगा ?अर्थात कोई नहीं !
इसी प्रकार आयुर्वेद में शरीर के तीन मुख्य उपस्तंभ बताए गए हैं भोजन, निद्रा और मैथुन अर्थात सेक्स । इनके कम और अधिक होते ही शरीर रोगी होने लगता है।इसलिए भोजन, नींद और बासनात्मक आवश्यकता न बढाई जा सकती है और घटाई ही जा सकती है।इसे रोक पाना अत्यंत कठिन होता है उसमें भी आज कल विवाह बिलंब से होने लगे हैं जिससे यह और कठिन लगने लगा है।पुराने समय लोग व्रत उपवास करके संयम करते थे ।कुछ लोग योग क्रियाओं के द्वारा उर्ध्वरेता आदि बन जाते थे जो इस कलियुग में काफी असंभव सा लगता है।
इस विषय में देवल ऋषि ने कहा है कि
दीर्घकालं ब्रह्मचर्यं नरमेधाश्वमेधकौ ।
इमान् धर्मान् कलियुगे बर्ज्यान् आहुर्मनीषिभिः||
अर्थ - लंबे समय तक ब्रह्मचर्य पालन करना ,नरमेध और अश्वमेध ये बातें कलियुग में ऋषियों के द्वारा रोकी गई हैं । हो सकता है कि पुराने ऋषियों को कलियुग के ब्रह्मचारियों का भरोसा ही न रहा हो ।
विश्वामित्र पराशर प्रभृतयो वाताम्बु पर्णाशनाः |
तेपि स्त्री मुख पङ्कजं सुललितं दृष्टैव मोहं गताः||
अर्थ -विश्वामित्र पराशर आदि ऋषि पत्ते खाते एवं जल पीकर रहते थे जब उन्होंने स्त्रियों का मुख कमल देखा तो अपने को सँभाल नहीं सके और मोहित हो गए और किसी को क्या कहा जाए ?
वैदिक काल से हमारे ऋषि-मुनि सदियों से ब्रह्मचर्य जीवन बिताते आयें हैं।आज भी बहुतसारे चरित्र वान उर्ध्वरेता ऋषि-मुनि सांसारिक भोग बासनाओं धन दौलत से दूर संयमित जीवन जी रहे होंगे ।
इस प्रकार से जब तक ऐसे प्रेम के पाखंडी लोग झूठ बोलकर लुकछिप कर सेक्स सुख लेते रहते हैं तब तक प्रेम इसे कहते हैं और जब झूठ का पोल खुल जाए और आपस में न पटने लगे और एक पक्ष जबर्दस्ती प्रेम करने का पाखंड करने लग पड़े तो बलात्कार,धन आदि का लोभ देकर प्रेम करें तो व्यभिचार,और उससे सुंदर कोई दूसरी लड़की या लड़का मिल जाए तो पहली वाली को दिखा दिखाकर उसके साथ सब सुख भोग करें तो उसे अत्याचार कहते हैं। इसी विधा में आगे चलकर भगने- भगाने, प्रेम और प्रेमविवाह, आदि की दुखद दुर्घटनाएँ देखने सुनने को मिलती हैं ।जिनका अपने माता पिता भाई बहन आदि समस्त स्वजनों से प्रेम न रहा हो उनसे छिपते छिपाते किसी अन्य लड़के या लड़की के साथ भगते भगाते सेक्स सुख की तलाश में व्याकुल भटकते अपवित्र प्रेमी जब अपनों को भूल गए तब परायों का कब तक साथ दे पाएँगे कहा नहीं जा सकता है।जहॉं पहले वाले से अधिक सुंदर कोई नया पार्टनर मिला तो उसी के चिपक गए ये पहले वाले को भूल गए,ये कैसा प्रेम ? पवित्र प्रेम तो जन्म जन्मांतर तक चलता है।वो कभी घटता नहीं है दिनों दिन बढ़ा ही करता है।
पवित्र प्रेम और अपवित्र प्रेम
पवित्र प्रेम परमात्मा अर्थात सर्वश्रेष्ठ आत्मा का स्वरूप होता है। पवित्र प्रेम में केवल अपने प्रेमास्पद अर्थात आप जिससे प्रेम करते हो उसको सुखपहुँचाने की भावना होती है इसमें अपने सुख पाने की कहीं इच्छा ही नहीं होती है।
इसी प्रकार अपवित्र प्रेम दुरात्मा अर्थात सबसे गंदी आत्मा का स्वरूप होता है।अपवित्र प्रेम में सब कुछ पा लेने की ही इच्छा रहती है।अपना प्रेमास्पद अर्थात जिससे आप प्रेम करते हो वो मरे तो मरे, दुखी हो तो हो केवल अपने को सुख मिलना चाहिए।इस विधा के लोग प्रायः भयंकर कामी अर्थात बासना प्रिय होते हैं। ये केवल अपनी सेक्स सुख की भूख मिटाने के लिए ही प्रेम करते हैं।जब तक ये लुकछिप कर सेक्स सुख लेते रहते हैं तब तक तो प्रेम,और जब न पटने लगे और जबर्दस्ती करना पड़े तो बलात्कार,धन आदि का लोभ देकर करें तो व्यभिचार,और उससे सुंदर कोई दूसरी मिल जाए तो पहली वाली को दिखा दिखाकर उसके साथ सब सुख भोग करें तो उसे अत्याचार कहते हैं।
पवित्र प्रेम तो कभी भी किसी के साथ भी हो सकता है, इसमें जाति, क्षेत्र, समुदाय, संप्रदाय आदि की कोई सीमा नहीं होती है यहॉं तक कि किसी भी योनि के जीव किसी दूसरी योनि के जीव से पवित्रप्रेम कर सकते थे।श्रीराम की बानरों से मित्रता हुई,दशरथ और गृद्ध की मित्रता, श्रीकृष्ण का गायों और गोपिकाओं से प्रेम था।जो लोग श्रीकृष्ण और गोपिकाओं के प्रेम को बासना की दृष्टि से देखते हैं वे न जानें श्रीकृष्ण और गायों के प्रेम को किस दृष्टि से देखते होंगे।वे चातक और स्वाती बूँद का प्रेम,मछली और जल का प्रेम , दीपक और पतिंगे का प्रेम,कमल और सूर्य का प्रेम ,भौंरा और पुष्प का प्रेम , चंद्र और चकोर आदि के प्रेम को न जाने किस दृष्टि से लेंगे? प्रेम शब्द के स्नेह,अनुग्रह,कृपापूर्ण मधुर व्यवहार आदि अनेक अर्थ होते हैं। कृपापूर्ण मधुर व्यवहार जिसके साथ भी किया जाएगा उस पर कभी क्रोध आता ही नहीं है क्योंकि कृपापूर्ण मधुर व्यवहार करने वाले के मन में अपने प्रेमी के प्रति इतनी उदारता होती है कि उसके दोष दिखाई ही नहीं पड़ते।उससे कुछ पाने की लालषा ही नहीं होती है।वहॉं तो सब कुछ सौंप देने की ईच्छा ही उठती है।
यहॉं विशेष बात यह है कि जो लोग प्रेम को बासना अर्थात सेक्स मानते हैं उन्हें राधा और कृष्ण एवं मीरा और कृष्ण का प्रेम तो समझ में आता है क्योंकि मूर्खता वश वहॉं उन्हें बासना अर्थात सेक्स की संभावना दिखती है।चूँकि उन्होंने सेक्स को ही प्रेम माना है।श्रीराधा और कृष्ण के प्रेम को परिभाषित करते समय यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि राधा का कृष्ण से वह प्रेम था जो गोपी,ग्वालों,गायों,समेत सभी प्रकार के जीव- जंतुओं,पेड़-पौधों ने जो प्रेम श्री कृष्ण से बना रखा था वही प्रेम भगवती राधा ने भी श्री कृष्ण से किया था।इतना अवश्य था कि श्री कृष्ण के प्रति भगवती राधा का समर्पण औरों की अपेक्षा बहुत अधिक था। एक और विशेष बात यह है कि श्रीराधा जी को स्त्री माना भी नहीं गया है अन्यथा श्रीराधा की जगह श्रीमती राधा लिखा जाता।राधा जी के कोई संतान भी नहीं थी।वे तो दिव्य शक्ति थीं ।
इन सब ज्ञानबर्द्धक बातों का विस्मरण करते हुए न्याय करने के लिए जिम्मेदार पदों पर बैठे कई आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों से भी प्रेम को परिभाषित करने में अनेकों बार चूक हुई है,और आम आदमी के प्रेम को श्री राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम की बराबरी में लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे पढ़े लिखे लोगों से भी इस विषय में न्याय की आशा ही क्यों करनी? क्योंकि हो सकता है कि यह उनका विषय ही न रहा हो? वैसे भी राधा और कृष्ण के प्रेम की व्याख्या किसी को भी यदि इतने ही अयोग्यता पूर्ण ढंग से करनी थी तो इसमें पढ़ाई लिखाई की जरूरत ही क्या थी ?ऐसी चर्चाएँ तो बिना पढ़े लिखे लोग भी आपस में किया ही करते हैं?उन्हें समझाने के प्रयास तो होने ही चाहिए किंतु तथाकथित पढ़े लिखों का तो भगवान ही मालिक है।जो सब जगह और सबमें केवल सेक्स ही ढूँढते हैं।
प्यार का वास्तविक अर्थ जो हो सो हो किंतु अब धीरे धीरे प्यार का अर्थ बासना अर्थात सेक्स ही बनता जा रहा है।अनियमितअनिश्चित अनधिकारिक अमर्यादित और बेशर्म होकर लड़के लड़कियों का एक दूसरे से अंग्रेजी में बासना सुख की भीख मॉंगना ही प्यार का अर्थ है क्या?इससे ज्यादा कुछ हमसे तो समझा नहीं जा सका हो सकता है कि विशेष बुद्धिमान लोग इसका कुछ विशेष अर्थ समझावें किंतु मेरी शंका निराधार नहीं है।
पवित्र प्रेम परमात्मा अर्थात सर्वश्रेष्ठ आत्मा का स्वरूप होता है। पवित्र प्रेम में केवल अपने प्रेमास्पद अर्थात आप जिससे प्रेम करते हो उसको सुखपहुँचाने की भावना होती है इसमें अपने सुख पाने की कहीं इच्छा ही नहीं होती है।
इसी प्रकार अपवित्र प्रेम दुरात्मा अर्थात सबसे गंदी आत्मा का स्वरूप होता है।अपवित्र प्रेम में सब कुछ पा लेने की ही इच्छा रहती है।अपना प्रेमास्पद अर्थात जिससे आप प्रेम करते हो वो मरे तो मरे, दुखी हो तो हो केवल अपने को सुख मिलना चाहिए।इस विधा के लोग प्रायः भयंकर कामी अर्थात बासना प्रिय होते हैं। ये केवल अपनी सेक्स सुख की भूख मिटाने के लिए ही प्रेम करते हैं।जब तक ये लुकछिप कर सेक्स सुख लेते रहते हैं तब तक तो प्रेम,और जब न पटने लगे और जबर्दस्ती करना पड़े तो बलात्कार,धन आदि का लोभ देकर करें तो व्यभिचार,और उससे सुंदर कोई दूसरी मिल जाए तो पहली वाली को दिखा दिखाकर उसके साथ सब सुख भोग करें तो उसे अत्याचार कहते हैं।
पवित्र प्रेम तो कभी भी किसी के साथ भी हो सकता है, इसमें जाति, क्षेत्र, समुदाय, संप्रदाय आदि की कोई सीमा नहीं होती है यहॉं तक कि किसी भी योनि के जीव किसी दूसरी योनि के जीव से पवित्रप्रेम कर सकते थे।श्रीराम की बानरों से मित्रता हुई,दशरथ और गृद्ध की मित्रता, श्रीकृष्ण का गायों और गोपिकाओं से प्रेम था।जो लोग श्रीकृष्ण और गोपिकाओं के प्रेम को बासना की दृष्टि से देखते हैं वे न जानें श्रीकृष्ण और गायों के प्रेम को किस दृष्टि से देखते होंगे।वे चातक और स्वाती बूँद का प्रेम,मछली और जल का प्रेम , दीपक और पतिंगे का प्रेम,कमल और सूर्य का प्रेम ,भौंरा और पुष्प का प्रेम , चंद्र और चकोर आदि के प्रेम को न जाने किस दृष्टि से लेंगे? प्रेम शब्द के स्नेह,अनुग्रह,कृपापूर्ण मधुर व्यवहार आदि अनेक अर्थ होते हैं। कृपापूर्ण मधुर व्यवहार जिसके साथ भी किया जाएगा उस पर कभी क्रोध आता ही नहीं है क्योंकि कृपापूर्ण मधुर व्यवहार करने वाले के मन में अपने प्रेमी के प्रति इतनी उदारता होती है कि उसके दोष दिखाई ही नहीं पड़ते।उससे कुछ पाने की लालषा ही नहीं होती है।वहॉं तो सब कुछ सौंप देने की ईच्छा ही उठती है।
यहॉं विशेष बात यह है कि जो लोग प्रेम को बासना अर्थात सेक्स मानते हैं उन्हें राधा और कृष्ण एवं मीरा और कृष्ण का प्रेम तो समझ में आता है क्योंकि मूर्खता वश वहॉं उन्हें बासना अर्थात सेक्स की संभावना दिखती है।चूँकि उन्होंने सेक्स को ही प्रेम माना है।श्रीराधा और कृष्ण के प्रेम को परिभाषित करते समय यह ध्यान रखना बहुत आवश्यक है कि राधा का कृष्ण से वह प्रेम था जो गोपी,ग्वालों,गायों,समेत सभी प्रकार के जीव- जंतुओं,पेड़-पौधों ने जो प्रेम श्री कृष्ण से बना रखा था वही प्रेम भगवती राधा ने भी श्री कृष्ण से किया था।इतना अवश्य था कि श्री कृष्ण के प्रति भगवती राधा का समर्पण औरों की अपेक्षा बहुत अधिक था। एक और विशेष बात यह है कि श्रीराधा जी को स्त्री माना भी नहीं गया है अन्यथा श्रीराधा की जगह श्रीमती राधा लिखा जाता।राधा जी के कोई संतान भी नहीं थी।वे तो दिव्य शक्ति थीं ।
इन सब ज्ञानबर्द्धक बातों का विस्मरण करते हुए न्याय करने के लिए जिम्मेदार पदों पर बैठे कई आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों से भी प्रेम को परिभाषित करने में अनेकों बार चूक हुई है,और आम आदमी के प्रेम को श्री राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम की बराबरी में लाकर खड़ा कर दिया। ऐसे पढ़े लिखे लोगों से भी इस विषय में न्याय की आशा ही क्यों करनी? क्योंकि हो सकता है कि यह उनका विषय ही न रहा हो? वैसे भी राधा और कृष्ण के प्रेम की व्याख्या किसी को भी यदि इतने ही अयोग्यता पूर्ण ढंग से करनी थी तो इसमें पढ़ाई लिखाई की जरूरत ही क्या थी ?ऐसी चर्चाएँ तो बिना पढ़े लिखे लोग भी आपस में किया ही करते हैं?उन्हें समझाने के प्रयास तो होने ही चाहिए किंतु तथाकथित पढ़े लिखों का तो भगवान ही मालिक है।जो सब जगह और सबमें केवल सेक्स ही ढूँढते हैं।
प्यार का वास्तविक अर्थ जो हो सो हो किंतु अब धीरे धीरे प्यार का अर्थ बासना अर्थात सेक्स ही बनता जा रहा है।अनियमितअनिश्चित अनधिकारिक अमर्यादित और बेशर्म होकर लड़के लड़कियों का एक दूसरे से अंग्रेजी में बासना सुख की भीख मॉंगना ही प्यार का अर्थ है क्या?इससे ज्यादा कुछ हमसे तो समझा नहीं जा सका हो सकता है कि विशेष बुद्धिमान लोग इसका कुछ विशेष अर्थ समझावें किंतु मेरी शंका निराधार नहीं है।
बासना सुख के बिना ब्याकुल तड़पती तरुणाई बागों, पार्कों,स्कूलों, गाड़ी पार्किंगों, कूड़ेदानों, झाड़ियों, मैट्रो स्टेशनों आदि ऐसी अनंत ऐकांतिक जगहों पर एक दूसरे को चूमने, चाटने, चिपकने में व्यस्त प्रायः दिखते हैं। वर्त्तमान
समय में दो बिपरीत लिंगी युवा वर्ग में जो कुछ प्यार के नाम पर चल रहा
होता है उसे प्यार नहीं कहा जा सकता है। यदि है भी तो वह अपवित्र प्रेम हो सकता है,वह दुरात्मा अर्थात सबसे गंदी आत्मा का स्वरूप होता है।वह परमात्मा का स्वरूप कतई नहीं होसकता है।
आजकल कामेडी शो से लेकर अन्य फिल्म, सीरियल आदि जगहों के हास्य ब्यंग एवं तथाकथित कवि सम्मेलनों में केवल लड़की,और लड़की पट गई या लड़की नहीं पटी,या सुहागरात,या बेलेंटाइन डे यही तो चर्चाएँ होती हैं टॉफी गोली की तरह लड़कियॉं एवं उनकी शिथिल चर्चाएँ परोसी जा रही होती हैं।हर प्रकार के विज्ञापनों का यही हाल है।हर ज्योतिषी ने एक सुंदर सी लड़की झूठी तारीफ करने के लिए अपने साथ बैठाई होती है क्योंकि उसे भी पता होता है कि हमारी बातों में विद्या में तो दम है नहीं शायद इस लड़की के बहाने ही कुछ लोग हमें देख लें मजे की बात यह है कि वो सब अर्थ प्रायोजित है।
इस प्रकार सबकुछ बिक रहा या बेचा जा रहा है।शरीरों पर ही हास्य ब्यंग हो रहे हैं सुंदर युवा शरीर पहले अर्द्धनग्न वेष भूषात्मक अवस्था में खड़े किए जाते हैं फिर उनकी भाषात्मक छीछालेदर की जाती है।जिसे सुनकर तथाकथित राजा महराजा रूपी दर्शक यह सोचकर खुश हो रहे होते हैं कि हमारी बेटी के बिषय में तो कहा नहीं जा रहा है,इसलिए हॅंसो और हॅंसो, खूब हॅंसो, हॅंसने में क्या जाता है अपना?
आजकल कामेडी शो से लेकर अन्य फिल्म, सीरियल आदि जगहों के हास्य ब्यंग एवं तथाकथित कवि सम्मेलनों में केवल लड़की,और लड़की पट गई या लड़की नहीं पटी,या सुहागरात,या बेलेंटाइन डे यही तो चर्चाएँ होती हैं टॉफी गोली की तरह लड़कियॉं एवं उनकी शिथिल चर्चाएँ परोसी जा रही होती हैं।हर प्रकार के विज्ञापनों का यही हाल है।हर ज्योतिषी ने एक सुंदर सी लड़की झूठी तारीफ करने के लिए अपने साथ बैठाई होती है क्योंकि उसे भी पता होता है कि हमारी बातों में विद्या में तो दम है नहीं शायद इस लड़की के बहाने ही कुछ लोग हमें देख लें मजे की बात यह है कि वो सब अर्थ प्रायोजित है।
इस प्रकार सबकुछ बिक रहा या बेचा जा रहा है।शरीरों पर ही हास्य ब्यंग हो रहे हैं सुंदर युवा शरीर पहले अर्द्धनग्न वेष भूषात्मक अवस्था में खड़े किए जाते हैं फिर उनकी भाषात्मक छीछालेदर की जाती है।जिसे सुनकर तथाकथित राजा महराजा रूपी दर्शक यह सोचकर खुश हो रहे होते हैं कि हमारी बेटी के बिषय में तो कहा नहीं जा रहा है,इसलिए हॅंसो और हॅंसो, खूब हॅंसो, हॅंसने में क्या जाता है अपना?
जिस दिन अपने और पराए की यह कलुषित भावना छूट जाएगी उस दिन महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से समाज को मुक्ति मिलेगी।
आज कथाबाचक,महात्मा एवं मीडिया लगभग सभी वर्गों में धार्मिक स्वाध्याय को लेकर न जाने क्यों निराशा सी दिख रही है।
फिल्मी गानों में धार्मिक चरित्र राधा का नाम आने पर उसके विरोध में भाजपा की वरिष्ठ नेत्री एवं हिंदू संगठनों ने गंभीर गर्जन किया या कहें कि बॅंदर घुड़की दी फिर मामला शांत हो गया।इन फिल्मी लोगों को पहले से ही पता होगा कि ये लोग ऐसा ही करेंगे फिर शांत हो जाएँगे । मीडिया ने भी इस मुद्दे में दम नहीं देखा तो शांत हो गया।ऐसे में सनातन धर्म के सशक्त प्रहरियों को अपने धार्मिक प्रतीकों की गौरव रक्षा के लिए विरोध का स्वर और अधिक ज्वलंत करना चाहिए।
आज कथाबाचक,महात्मा एवं मीडिया लगभग सभी वर्गों में धार्मिक स्वाध्याय को लेकर न जाने क्यों निराशा सी दिख रही है।
फिल्मी गानों में धार्मिक चरित्र राधा का नाम आने पर उसके विरोध में भाजपा की वरिष्ठ नेत्री एवं हिंदू संगठनों ने गंभीर गर्जन किया या कहें कि बॅंदर घुड़की दी फिर मामला शांत हो गया।इन फिल्मी लोगों को पहले से ही पता होगा कि ये लोग ऐसा ही करेंगे फिर शांत हो जाएँगे । मीडिया ने भी इस मुद्दे में दम नहीं देखा तो शांत हो गया।ऐसे में सनातन धर्म के सशक्त प्रहरियों को अपने धार्मिक प्रतीकों की गौरव रक्षा के लिए विरोध का स्वर और अधिक ज्वलंत करना चाहिए।
अति सुंदर भैया
ReplyDelete