Friday, January 9, 2015

चुनावों के बाद भी दिल्ली बिना सरकार की ही रह जाएगी क्या !

दिल्ली के चुनावी समर में रथी और सारथी से शून्य क्यों है भाजपा ? क्या महारथी मोदी के 'मन की बात' लुभा पाएगी  दिल्ली को !      अबकी बार दिल्ली के चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल  पाना कठिन होगा उसका प्रमुख कारण यह है  कि काँग्रेस के प्रति जनता का क्रोध अब कम हुआ है और आम आदमी पार्टी के प्रति इसलिए बढ़ा है कि उसने स्वयं सरकार बनाई और स्वयं ही गिरा दी !बिना किसी काम काज के केवल शोर मचाती रही ! रही बात भाजपा की तो पिछ्ले कई महीने से भाजपा अप्रत्यक्ष रूप से दिल्ली की सत्ता सँभाले हुए है किंतु जनता का दैनिक जीवन पहले की तरह ही चल रहा है पहले भी सरकारी आफिसों में चक्कर लगाने पड़ते थे और आज भी लगाने पड़ते हैं ,भ्रष्टाचार पहले भी था आज भी है ,बलात्कार जैसे और भी सभी प्रकार के अपराध पहले भी होते थे आज भी होते हैं !रही बात सरकारी स्कूलों की पढ़ाई या सरकारी अस्पतालों की दवाई की वहाँ अभी तक कोई विशेष बदलाव नहीं दिख रहा है ! दिल्ली का नगरनिगम कामचोरी और घूसखोरी के आरोपों से मुक्त नहीं हो पा  रहा है अपने बनाए हुए नियमों के पालन करने या करवाने में सुस्ती निगम की पहचान बनती जा रही है ! सफाई कर्मचारियों  पर अनुशासन न बन पाने की बात तो स्वच्छता अभियान से बनते  दिख रही है अब सफाई जनता स्वयं करेगी ,इसी प्रकार से हो सकता है कि पढ़ाई करने की जिम्मेदारी भी जनता पर ही छोड़ दी जाए अर्थात  पढ़ाना पड़े  और भी कार्यों को जनता कुछ कह लेगी कुछ सह लेगी किन्तु सरकार चलती रहेगी !

       विदेशी मुद्दों पर जनता को अभी तक तो इतना समझ में आ रहा है कि भारत सरकार कुछ देशों में जा रही है और कुछ देश भारत आ रहे हैं सभी देशों से अपने पुराने संबंध खोजे जा रहे हैं सबको समझाया जा रहा है कि आपके साथ हमारे कितने पुराने सम्बन्ध हैं इसलिए हम लोग एक जैसे हैं पडोसी देशों ने सरकार के इस आत्मीय हाथ को उतने उत्साह से नहीं पकड़ रखा है कोई घुस पैठ कर रहा है तो कोई फायरिंग कर रहा है । समाज के सामने अब सबसे  बड़ा प्रश्न यह है कि वो विश्वास किसका करे !और चुने किस सरकार को !