Monday, April 2, 2018

दलितों को क्यों दिया जाए सवर्णों पर अत्याचार करने का क़ानूनी अधिकार ?

     संविधान देश का है केवल दलितों का नहीं है !फिर भी यदि संविधान का हवाला दे देकर केवल दलितों के ही हितों की बातें हमेंशा की जाएँगी तो क्या सवर्णों को अपना संविधान अलग  से लिखना पड़ेगा जिसमें सवर्ण भी अपने शोषण की कल्पित कहानी गढ़ सकें !
     सवर्ण भी इस देश के सम्मानित और स्वाभिमानी नागरिक हैं उन्हें दलितों का शोषण करने वाला लुटेरा क्यों सिद्ध किया जा रहा है !आखिर सवर्णों ने दलितों का शोषण किया इसके प्रमाण क्या हैं ?
     दलित यदि अपना अपेक्षित विकास नहीं कर सके तो इसमें सवर्णों का क्या दोष !किसी के यहाँ बच्चा न हो रहा हो तो उसके लिए पडोसी को जिम्मेदार कैसे ठहरा दिया जाएगा !आखिर कबीलों की तरह तर्कहीन तथ्यहीन असत्य पर आधारित तुष्टिकरण की राजनीति कब तक और क्यों चलाई जा रही है !आखिर क्यों तोडा जा रहा है सवर्णों का मनोबल !सरकार क्या चाहती है कि सवर्ण लोग अपने पूज्य पूर्वजों को दलितों का शोषण करने वाला लुटेरा मान लें !ये सपना कभी साकार नहीं होगा !
   दलितों को क़ानूनी कवच की अलग से जरूरत पड़ी ही क्यों ?आखिर ये इतनी कमजोरी का नाटक का क्यों जा रहे हैं इनके शरीर और मन संबंधी दुर्बलता की जाँच करवावे सरकार कोई कमी निकले तो अपने खर्च से इनकी चिकित्सा करवावे सरकार !इसके बाद प्रजा प्रजा में भेद की भावना भूलकर सबके साथ सामान वर्ताव करे सरकार !अंधेर है !10 वर्ष के लिए घोषित किया गया आरक्षण 70 साल ले लिया इसके बाद भी कमजोर बने हुए हैं क्यों ?इतनी लज्जा तो होनी चाहिए कि विश्व ऐसे समाचार देख सुन रहा होगा तो देश के इतने बड़े वर्ग के विषय में क्या सोचता होगा !
    दलित भी तो इसी समाज के अंग हैं उनको भी इस देश के सभी संसाधनों पर समान अधिकार प्राप्त हैं वे भी सवर्णों की तरह संघर्ष पूर्वक सरकारी संसाधनों का सहयोग लेते हुए अपना उत्तान विकास आदि स्वाभिमान पूर्वक सवर्णों की तरह कर सकते हैं !इसके बाद भी यदि नहीं करते हैं तो उनकी भी वही दुर्दशा होनी तय है जो ऐसा करने वाले सवर्णों की होती है !इसके बाद अलग से दलितों के प्रति हमदर्दी क्यों ?क्या सवर्ण लोग इस देश के नागरिक नहीं हैं !दलितों की मदद के नाम पर संविधान की दुहाई देकर सरकार यदि सवर्णों को कुचलना चाहेगी तो सवर्ण लोग ऐसे  अन्याय को क्यों स्वीकार कर लेंगे ! 

      कितना लज्जा जनक है कि सवर्णों की तरह से ही रहने खाने पीने बोलने बताने उठने बैठने एवं सब सुख भोगने वाले लोग जब कुछ कर के अपनी तरक्की  करने की बारी आती है तब सवर्णों के शोषण का रोना रोने लगते हैं 70 वर्ष हो गए इस प्रकार से देश का समय बर्बाद करते करते !झूठे झांसे दे देकर नेता लोग इन्हें झूठी तरक्की के सपने दिखा दिखाकर जिलाए जा रहे हैं !और ये परिश्रमी सवर्णों की सम्पत्तियों को देख देख कर कुढ़ते जा रहे हैं !यदि कोई सवर्ण कोठी लेता है कार लेता है तो ये समझ जाते हैं कि ये हमारे पूर्वजों की कमाई है जो इन्होने कभी शोषण करके छीनी होगी !किंतु ये नहीं सोचते हैं कि क्या उस युग में उनके पास ऐसी संपत्ति रही होगी !और जो चीज उन्हीं के पास नहीं रही होगी वो कोई छीन कैसे लेगा ! 

  इसलिए किसी के गुण दोषों का मूल्यांकन जाति, क्षेत्र ,समुदाय,संप्रदायवाद आदि के नाम पर करना दंडनीय अपराध मन जाना चाहिए और किसी भी प्रकार के आरक्षण या  सुविधा की पात्रता भी जाति, क्षेत्र ,समुदाय,संप्रदाय आदि के आधार पर नहीं मानी जाए !

     सत्ता के लालची पाप प्रवृत्ति वाले अशिक्षित या अल्पशिक्षित अधर्मी नेता लोग वोट बल से कमजोर सवर्णों का पक्ष नहीं लेते !चाटुकार मीडिया भी सवर्णों के शोषण की बात क्यों नहीं उठाती है ! 

    आखिर देश के लिए समान रूप समर्पित सभी वर्गों के लिए सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की  सुविधा या सहयोग प्रदान करते समय प्रजा प्रजा में भेद भाव नहीं किया जाना चाहिए !आज सवर्ण किसे मानें अपना प्रशासक और किससे कहें अपनी समस्याएँ आखिर उन पर यह आरोप पहले ही मढ़ दिया गया है कि उन्होंने दलितों का शोषण किया था।आखिर इस शोषण के आरोप का सच या आधार  क्या है ?

      मैं निजी तौर पर भारत वर्ष के किसी भी नर नारी को दलित या अछूत मानने को तैयार नहीं हूँ हर देशमें गरीब और अमीर दो प्रकार का वर्गीकरण तो दिखाई पड़ता है और उचित भी यही है। इसमें यह दलित जैसा  नाम करण  कुछ उन लोगों के द्वारा किया गया जिनको बिना कुछ परिश्रम किए धरे इससे कुछ लाभ की लालषा या लालच होगा।जिसे अपनी कमाई एवं परिश्रम का भरोसा होगा वह दलित बनना ही क्यों पसंद करेगा?कोई सम्मान प्रिय व्यक्ति सारी  समाज में अपना गौरव क्यों गिराएगा।अपने हाथ पैर आदि स्वास्थ्य सुरक्षित रहते हुए अपने दुलारे प्यारे बच्चों को कोई दलित अर्थात कुचला-कुचला,खंड-खंड कहलाना कोई क्यों पसंद करेगा?कोई जो देता हो वो रख ले किन्तु ईश्वर न किसी के प्रिय बच्चों को ऐसे अशुभ शब्दों का संबोधन मिले ऐसा कम से कम मैं तो कभी नहीं चाहूँगा और न ही किसी को दलित कहूँगा न दलित मानूँगा ही अपितु वो किस मजबूरी में दलित कहलाते हैं वो मजबूरी दूर करने का प्रयास करूँगा ।ईश्वर कृपा करे तो बहुत जल्दी मैं वह करके दिखा भी दूँगा।कुछ दिन की पवित्र प्रेरणा से न केवल दालित्य समाप्त होगा अपितु मनोबल बढ़ाकर मुख्य धारा में सम्मिलित कर लूँगा मुझे विश्वास है क्योंकि मैं छोटे पैमाने पर यह  कर के देख भी चुका हूँ ।

      अधिक  से अधिक एक पीढ़ी के पंद्रह-बीस वर्षों की शिक्षा एवं सही दिशा के रोजगार में  परिश्रम करने से  हर किसी आने वाली पीढ़ियों के जन्म जन्मान्तर का दालित्य छुटा सकती है।अच्छे अच्छे लोग सम्मानित समझेंगे । इसीप्रकार आने वाली पीढियाँ सुधरती चली जाएँगी ।

    पंद्रह-बीस वर्षों के परिश्रम कहने  आशय शिक्षा काल सुधारने की बात है अगर कोई नेता खूँटा नेक नीयत से इतना प्रेरित करने या इसमें सहयोग करने को तैयार हो जाए तो गरीबत घट या मिट सकती है।यह मेरी  कोई खोज या उपलब्धि नहीं है ये सबको पता है किन्तु ये लोग सोचते हैं कि शिक्षा के लिए प्रेरित करने से ये सब आगे बढ़ जाएँगे अपना लाभ क्या होगा?

      आखिर दलितों के समर्थन के नाम पर ही तो सवर्णों को गाली दे देकर अपनी नेतागिरी चमकाने वाले लोग  आज अरबों रूपए के घोटाले किए घूम रहे हैं जो करोड़ों में बताए जाते हैं।दलितों के नाम पर लिए गए  पैसे पर स्वयं तो ऐय्यासी करते घूमेंगे और दलितों को खुश करने के लिए सवर्णों को गाली देंगे आखिर ऐसे लोगों के अपने आय के श्रोत क्या हैं ?  ये सोचते कि जब दलित ही नहीं रहेंगे सब अच्छे ही हो जाएँगे तो न केवल अपनी नेता गिरी ध्वस्त होगी अपितु रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।परिश्रम इन नेताओं के बश का नहीं है और न ही देश को आगे ले जाने की  ही कोई ठोस योजना है ऐसे नेताओं की ईच्छा केवल इतनी है कि अन्य नेताओं के भ्रष्टाचार में हमें भी बराबर की भागीदारी मिले।आखिर ये भ्रष्टाचार समाप्त करने की नियत क्यों नहीं है? मैं तो कहता हूँ कि सभी जाति,क्षेत्र ,समुदाय ,संप्रदाय के नेताओं  की राजनीति में आने से पहले से अभी तक की संचित संपत्ति के आय श्रोतों की जाँच ईमानदारी पूर्वक गरीब जनता के द्वारा करवाई  जानी चाहिए या  दलित बंधुओं के द्वारा ही करा ली जाए किन्तु वे गरीब हों ताकि गरीबों की पीड़ा समझने वाले हों। जाति, क्षेत्र ,समुदाय ,संप्रदाय  का  भेदभाव  किए  बिना वे लोग चिन्हित किए जाने चाहिए ताकि उनका  सामाजिक बहिष्कार किया जा सके और ईमानदार राजनेताओं के साथ साथ हर जाति, क्षेत्र ,समुदाय ,संप्रदाय के संघर्षप्रिय ईमानदार आम आदमी की भी पहचान हो सके । किसी पद या पैसे के लोलुप औरों का हिस्सा हड़पने वाले कुछ राजनैतिक भेड़ियों  के द्वारा  खुले मंचों से जातिगत शोषण के नामपर किसी जाति विशेष के लोगों को गाली देना कितना न्यायोचित था  ?

    इनसे तत्तद जाति, क्षेत्र ,समुदाय,संप्रदाय के भले और ईमानदार कर्मनिष्ठ लोगों पर क्या बीतती है इसका एहसास मुझे है चूँकि मैंने न केवल इस पीड़ा को भोगा है अपितु चार विषय से एम.ए.एवं पी.एच.डी. करने के बाद जब ऐसी ही गालियों एवं शोषण के आरोपों से आहत होकर सरकार से आजीवन नौकरी न माँगने का व्रत लिया था और आज तक बेशक भटक रहा हूँ किन्तु किसी भी सरकारी या  निजी सेवा के प्रपत्र पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए हैं, मैं संघर्ष पूर्वक उसी व्रत का पालन अभी भी कर रहा हूँ ।मुझे  दुःख है की हमारे जैसे लोगों की पीड़ा पर भी कभी ईमानदार प्रशासक बात बिचार करे !मीडिया हमारे जैसे लोगों के विषय में भी सोचे !    

  आखिर  'दलित' शब्द का अर्थ क्या होता है ? यह भी तो समाज को बताया जाए ! और यह भी सिद्ध किया जाए कि ......?

    दलितों का शोषण कब किसने कहाँ कैसे किया और दलितों ने सहा क्यों होगा उनकी तो संख्या भी अधिक थी !इतने वर्षों के आरक्षण से विकास हुआ क्यों नहीं ?आखिर हमेंशा बोतल से दूध पिलाया जाता रहेगा क्या ?
 जातिगत आरक्षण भारतवर्ष को प्रतिभाविहीन बनाने की साजिश है ! 
     किसी के घर में बच्चा न हो रहा हो तो उसके लिए पड़ोसी को दोषी ठहरा दिया जाएगा क्या ?पड़ोसी का इलाज करा देने से उसके यहाँ बच्चा कैसे हो जाएगा ! इसी प्रकार दलितों का विकास न होने के लिए सवर्ण दोषी क्यों ?इतने वर्षों से आरक्षण मिलने पर भी दलितों का विकास नहीं हुआये इस बात का प्रमाण है कि आरक्षण किसी समस्या का समाधान नहीं है ! सवर्णों की लड़कियों को कोई कैसे बाध्य कर सकता है कि वे दलितों के साथ विवाह करें वो बकड़ियाँ तो नहीं हैं जो किसी के गले से बाँध दी जाएँ !सवर्ण लड़कियों को भी अपना भविष्य चुनने का अधिकार है वे आरक्षण माँगने वालों  से विवाह करना ही नहीं चाहतीं !माँगने मूँगने वाला ब्राह्मण ही क्यों न हो उससे भी लड़कियाँ विवाह नहीं करना चाहती हैं अविकसित ब्राह्मणों के लड़के भी कुँआरे बैठे रहते हैं !ऐसी परिस्थिति में कोई लड़की किसी ऐसे कायर व्यक्ति से विवाह क्यों कर ले जिसे अपने पुरुषार्थ पर भरोसा ही न हो अपने विकास के लिए स्वयं क्यों न प्रयास किया जाए !सवर्ण लोग भी गरीब होते हैं बिना किसी आरक्षण के अपना विकास करके दिखा देते हैं इसी लिए उनका सम्मान बढ़ता है !स्वाभिमानी दलित वर्ग के लोगों में भी बहुत ऐसे कर्मठ परिश्रमी स्वाभिमानी चरित्रवान ईमानदार लोग हैं जिन्होंने अपने परिश्रम के बल पर अपना उच्चतम विकास किया है ऐसे कई लोग ऊँचे ऊँचे पदों तक भी पहुँचे हैं उन्हें तो कोई सवर्ण रोकने नहीं आया !बाकी लोग क्यों सवर्णों को बदनाम करते घूमते हैं ! 

 दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ये जानने के लिए मैंने शब्दकोश देखा जिसमें टुकड़ा,भाग,खंड,आदि अर्थ दलित शब्द के  किए गए हैं।मूल शब्द दल से दलित शब्द बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल, इन दलों में रहने वाले लोग दलित कहे जा सकते हैं।इसी दल शब्द से ही दाल  बना है।चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता हैइस प्रकार दलित शब्द केटुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ  किंतु दलित शब्द का अर्थ दरिद्र या गरीब नहीं हो सकता है।  

     राजनैतिक साजिश के तहत यदि इस शब्द का अर्थ अशिक्षित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि  करके ही कोई राजनैतिक लाभ लेना चाहे तो यह शब्द ही बदलना पड़ेगा,क्योंकि इस शब्द का अर्थ शोषित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करने पर यह ध्यान देना होगा कि इसमें जिन जिन प्रकारों का वर्णन है वो सब कोई अपने आप से भले बना हो किंतु किसी के दलित बनने में किसी और का दोष  कैसे हो सकता है?यदि किसी और ने किसी का शोषण करके उसे दलित बनाया होता तो दलित की जगह दालित होता।जब बनाने वाला कोई और होता है तो आदि अच की वृद्धि होकर जैसे चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है क्योंकि चना आदि यदि चाहें भी कि वे अपने आप से दाल बन जाएँ  तो नहीं बन सकते।जैसेः- तिल से बनने के कारण उसे तैल कहा जाता है।बाकी सारे तैलों का तो नाम रख लिया गया है तैल तो केवल तिल से ही पैदा हो सकता है।ऐसे ही वसुदेव के पुत्र होने के कारण ही तो वासुदेवकहे गए। इसी प्रकार दलित की जगह दालित होता। चूँकि शब्द दलित है इसलिए किसी और का इसमें क्या दोष ?वैसे भी किसी ने क्या सोच कर दलित कहा है यह तो वही जाने किंतु इस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि  में कम से कम हम तो किसी को दलित नहीं कह सकते ऐसा कहना तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान है।हमारा तो भाव है कि

          सीय राम मय सब जग जानी । 

          करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।

     मैं तो ईश्वर का स्वरूप समझकर सबको प्रणाम करता हूँ  और अपने हिस्से का प्रायश्चित्त भी करने को न केवल तैयार हूँ बल्कि दोष का पता लगे बिना ही मैंने इस जीवन को धार पर लगाकर प्रायश्चित्त किया भी है।यदि हमारे पूर्वजों के कारण समाज का कोई वर्ग अपने को बेरोजगार,गरीब या धनहीन समझता है तो मैं अपने हिस्से का जो भी मुनासिब प्रायश्चित्त हो आगे भी करना चाहता हूँ ।मेरी सविनय यह ईच्छा भी है कि मुझे इस आरोप के लिए जो भी उचित दंड हो मिलना चाहिए इसके बाद हम अपने परिजनों को इस आरोप से अलग करना चाहते हैं ।साथ ही हमारा यह भी निवेदन है कि हम अपने विषय में जो जानकारियाँ  दे रहे हैं उनकी सच्चाई के लिए किसी भी एजेंसी से जाँच कराने को तैयार हैं । 

  मैंने चार विषय से एम.ए.किया,बी.एच.यू. से पी.एच.डी. भी की।किसी डिग्री कालेज में नौकरी मिल सकती थी किंतु सन् 1989-90 में चले आरक्षण आंदोलन में पूर्वजों पर लगे शोषण के आरोपों को मैं सह नहीं सका।मैं अक्सर तनाव में रहने लगा और एक ही बिचार मन में चलता रहा कि हमारे पूर्वजों ने आखिर किसी शोषण क्यों किया?

    हमें आज तक इन बातों के जवाब नहीं मिले।मैंने एक व्रत लिया था कि इस निपटारे से पूर्व मैं किसी भी  सरकारी सेवा के लिए कभी कोई आवेदन नहीं करूँगा।मुझे गर्व है कि ईश्वर कृपा से मैं आज तक व्रती हूँ । न ही मुझे जवाब मिले न ही मैंने नौकरी मॉगी।न केवल सरकारी प्राइवेट किसी कंपनी आदि में भी कभी कोई नौकरी के लिए साइन नहीं किए ।संघर्ष बहुत हैं बहुतों ने  शिक्षा सहित मुझे अक्सर अपमानित किया है ।फिरभी सहनशीलता सबसे बड़ी मित्र है।जो  देवताओं की कृपा एवं पूर्वजों के पुण्यों का प्रसाद है ।

     ये  बातें  मैं बड़ी जिम्मेदारी से कह रहा हूँ , आखिर सवर्ण कही जाने वाली जातियों में ही मेरा भी जन्म हुआ है, जिसमें मेरा कोई वश नहीं था।जन्म मृत्यु तो ईश्वर के आधीन हैं।इसमें कोई क्या कर सकता है?अपने जन्म,जीवन,जन्मभूमि पर हर किसी को गर्व करना ही चाहिए मैं करता भी हूँ ।

     ईश्वर ने जो कुछ भी किया है।उसे ईश्वर का उपहार समझकर स्वीकार किया है और उपहार में शिकायत कैसी ?मैं इतने जीवन में जगह जगह धक्के खाकर सारी दुर्दशाएँ  भोगकर यह बात विश्वास से कह सकता हूँ कि जाति का इस जीवन में आर्थिक और व्यवसायिक आदि किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं होता।जो कमाता है उसके पेट में जाता है उसकी जाति वालों को अकारण क्यों परेशान करना? जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदाय की बातें तो कमजोर लोगों में ही कहते सुनते देखी जाती हैं ।बड़े आदमियों की जाति तो उनका अपना आर्थिक बड़ापन होता है, जिसके आगे वे अपने धनहीन घर खानदान के लोगों को पहचानने से मना कर देते हैं। ऐसे में जाति की चर्चा तो मूर्खता ही कही जाएगी जिसका कोई मतलब ही नहीं बचा है।

  जहाँ तक जातिगत आरक्षण की बात है यह भी भारतवर्ष को प्रतिभाविहीन बनाने का प्रयास है।सवर्णवर्ग के लोग यह सोच लेंगे कि क्यों पढ़ना आरक्षण के कारण नौकरी तो मिलनी नहीं है इसी प्रकार असवर्ण लोग भी सोच सकते हैं कि क्यों पढ़ना नौकरी तो मिलनी ही है।अंततः नुकसान तो देश का ही हो रहा है। वैसे भी समृद्ध देश की संकल्पना में सभी भेद भावों से ऊपर उठकर गरीब और पठनशील लोगों को स्वतंत्र शैक्षणिक सहयोग मिलना चाहिए।इससे हर वर्ग के विद्यार्थी अपना जीवन सुधारने का प्रयास तो कम से कम कर ही सकते हैं परिणाम तो ईश्वर के ही हाथ है।समान व्यवस्था प्राप्त करके भी दुर्भाग्य से यदि कोई असफल हुआ ही तो वह इसके लिए किसी और को नहीं कोसेगा।यह उसकी अपनी लापरवाही मानी जाएगी।

      अन्यथा आज असवर्ण कहे जाने वाले लोग सवर्णों को कोस रहे हैं कल सवर्ण कहे जाने वाले लोग अपनी दुर्दशा  के लिए असवर्णों को कोसेंगे।जहॉं तक राजनेताओं की बात है ये कल को सवर्णों को आरक्षण का एलान कर देंगे। इस प्रकार सवर्णों के मसीहा बनकर असवर्णों को गालियॉं देंगे।अपने को गरीबों का बेटा बेटी कह कर तीन तीन करोड़ का घाँघरा पहनकर घूँमेंगे।कितने शर्म की बात है?आज अरबों पति लोग अपने को दलित कहते हैं!क्या उनसे पूछा जा सकता है कि वे आखिर गरीबों का मजाक क्यों उड़ा रहे हैं?कौन सी ऐसी अदालत है जो इस प्रकार से अपमानित लोगों की दशा  पर भी दया पूर्वक बिचार करेगी?

      मैं पॉंच वर्ष का था जब मेरे पिता जी का देहांत हो गया था । मेरे भाई साहब सात वर्ष के थे मेरी माता जी घरेलू परिश्रमशील स्वाभिमानी महिला थीं।किसी संबंधी का कोई सहारा नहीं मिला उस अत्यंत संघर्ष पूर्ण समय में भी माँ के पवित्र आँचल में लिपट कर आनंद पूर्ण बचपन बिताया हम दोनों भाइयों ने।धन के अत्यंत अभाव में जो दुर्दशा होनी थी वह तो सहनशीलता से ही सहना संभव था न किसी से कोई शिकायत न शिकवा हर परिस्थिति में मैं अपने कर्मों और अपने भाग्य का ही दोष  देता हूँ  और किसी पर क्या बश ?कोई चाहे तो दो कदम साथ चल ले न चाहे तो अकेले का अकेला किसी से क्या आशा ?

      हमारे उस छोटे से परिवार ने भयंकर मुशीबत उठा कर मुझे पढ़ने बनारस भेजा।इसमें हमारे लिए अत्यंत आवश्यक संसाधन जुटाने में भाई जी की भी शिक्षा रुक गई थी माता जी के लिए भी बहुत  संघर्ष तो था  ही। 

     भूख पर लगाम लगाकर मैंने चार विषय से एम.ए.किया,बी.एच.यू. से पी.एच.डी. भी की।किसी डिग्री कालेज में नौकरी मिल सकती थी हमारे बहुत हमसे छोटे छात्र मित्र सरकारी नौकरियों में अच्छे अच्छे पदों पर हैं जो अक्सर हमारी परिश्रमशीलता एवं वैदुष्य की प्रशंसा करके हमें सुख पहुँचाते हैं जिनके लिए मैं हमेशा उनका आभारी हूँ ।कई बार अमीरों से अपमानित और आहत होने पर ऐसी प्रशंसाएँ बड़ा संबल बनती हैं बड़ा सहारा देती हैं।लगता है चलो किसी को पता तो है कि मैं भी सम्मान एवं आर्थिक विकास का अधिकारी  था ।

    किंतु सन् 1989-90 में चले आरक्षण आंदोलन में पूर्वजों पर लगे शोषण के आरोपों को मैं सह नहीं सका।मैं अक्सर तनाव में रहने लगा और एक ही बिचार मन में चलता रहा कि हमारे पूर्वजों ने आखिर किसी का शोषण क्यों किया? पचासों विद्वानों शिक्षाविदों से मिला उनसे हमारे बस इतने ही प्रश्न  होते थे।

1.  हमारे पूर्वजों ने किसी का शोषण  क्यों किया?

2.वह शोषण का धन गया कहॉं आखिर हमें इतनासंघर्ष  क्यों करना पड़ा? 

3. संख्या बल में सवर्णों से अधिक होने पर भी असवर्णों  के पूर्वजों ने शोषण सहा क्यों?

4.  सजा अपराधी को दी जाती है उसके परिजनों को नहीं पूर्वजों का यदि कोई अपराध हो ही तो उसका दंड हमें  क्यों?

5. यदि अपराध की आशंका है ही तो अपराध के प्रकार की जॉंच होनी चाहिए और हम लोगों की तलाशी  की जानी चाहिए और जातीय ज्यादती के द्वारा प्राप्त ऐसा कोई धन यदि प्रमाणित हो जाए तो जब्त किया जाना चाहिए। इस प्रकार से सवर्ण वर्ग का  शुद्धिकरण करके ये फाँस हमेंशा के लिए समाप्त कर देनी चाहिए।आखिर कितनी पीढ़ियॉं और शहीद की जाएँगी इस तथाकथित शोषण पर?कब तक ढोया जाएगा इस शोषण कथा को?आखिर शोषण का आरोप सहते सहते और कितने लोगों की बलि ली जाएगी ?  

    हमें आज तक इन बातों के जवाब नहीं मिले।मैंने एक व्रत लिया था कि इस निपटारे से पूर्व मैं किसी सरकारी सेवा के लिए कोई आवेदन नहीं करूँगा मैं आज तक व्रती हूँ।न मुझे जवाब मिले न ही मैंने नौकरी माँगी।

     स्वजनों अर्थात तथा कथित सवर्णों ने हमारा और हमारी शिक्षा का शोषण करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।किसी को किताबें लिखानी थीं किसी को मैग्जीन,किसी ने देश सेवा की दुहाई दी किसी ने हमारे और हमारे परिवार के भविष्य सुधारने का लालच दिया।कुछ लोगों ने बड़े लालच देकर बड़े बड़े काम लिए दस बारह घंटे दैनिक परिश्रम के बाद वर्षोँ तक सौ दो सौ रुपए मजदूरों की भाँति देते रहे एक आध ने तो यह लालच देकर काम लिया कि हम तुम्हें एक स्कूल खोल कर दे देंगे उसको परिश्रम पूर्वक चला लेना जिससे तुम्हारा जीवन यापन हो जाएगा किंतु काम निकलने के बाद में उन्होंने भी मुख फेर लिया यह कैसे और किसको किसको कहें कि वे बेईमान हो गए आखिर शिक्षा से जुड़ा हूँ , मर्यादा तो ढोनी ही है।पेट और परिवार का पालन करना है

      आज क्या मुझे मान लेना चाहिए कि ब्राहमण या सवर्ण था इसलिए ऐसे लोग  हम पर इस प्रकार की कृपा करते रहे।सरकारी नौकरी न माँगने का व्रत है तो जीवन ढोने के लिए किसी पर विश्वास तो करना ही पड़ेगा।अनुभव लेते लेते जीवन गुजरा जा रहा है। 

     किसी और की अपेक्षा अपने जीवन को मैंने इसलिए उद्धृत किया है कि गरीब सवर्णों को भी अमीरों के शोषण का उतना ही शिकार होना पड़ता है जितना किसी और को वह अमीर किसी भी जाति,समुदाय, संप्रदाय आदि का क्यों न हो।अमीर केवल अमीर होता है इसके अलावा कुछ नहीं ।यह हमारे अपने अनुभव का सच है मेरा किसी से ऐसा आग्रह भी नहीं है कि वो मुझसे या मेरी बातों से सहमत ही हो।