Wednesday, August 19, 2020

पूर्वानुमान

         केरल की बाढ़ !
अगस्त 2018 का मौसम संबंधी पूर्वानुमान 29 जुलाई को मौसम विभाग के डायरेक्टर डॉ.के जे रमेश के मेल पर भेजा था जिसमें 1 से 11 अगस्त में दक्षिण पूर्वी भारत में अधिक बारिश होने का पूर्वानुमान मैंने भेजा था !
 वो मेल ये है।.>>>>>>>>>>>>>> 

   3 अगस्त 2018 को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग नेअपनी प्रेस विज्ञप्ति में अगस्त सितंबर के महीने में दक्षिण भारत में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की थी जिसमें इतनी अधिक बारिश का कोई संकेत नहीं  मिलता है -->>>>>>>>>>>>>>>>>>

             
  इसके बाद 5 से 14 अगस्त तक केरल में अत्यधिक बारिश  और बाढ़ घटित हुई जिससे जनधन की काफी अधिक हानि हुई !इस पर केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे इतनी अधिक बारिश होने का पहले से कोई पूर्वानुमान मौसम विभाग के द्वारा नहीं बताया गया था-




Published: September 1, 2018 10:26 PM ISTनई दिल्ली: 
   मौसम विभाग ने केरल के सीएम के बयान को गलत बताया, कहा कई बार दी गई थी ज्यादा बारिश की चेतावनी !मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने राज्य में बाढ़ की आपदा के बारे में मौसम विभाग द्वारा पहले से सटीक जानकारी नहीं देने का केरल विधानसभा में आरोप लगाया था. 
   मौसम विभाग ने केरल में सामान्य से अत्यधिक बारिश होने के बारे में पहले से आगाह नहीं करने के राज्य सरकार के आरोप को खारिज करते हुये कहा है कि इस बारे में अगस्त के पहले सप्ताह से ही पूर्व चेतावनी जारी कर दी गयी थी. विभाग ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन सहित राज्य सरकार के आला अधिकारियों के साथ समय-समय पर हुई बैठकों में लगातार स्थिति से अवगत कराया जाता रहा है. उल्लेखनीय है कि हाल ही में विजयन ने राज्य में बाढ़ की आपादा के बारे में मौसम विभाग द्वारा पहले से सटीक जानकारी नहीं देने का केरल विधानसभा में आरोप लगाया था.see more.....https://www.india.com/hindi-news/india-hindi/metereology-department-condradicts-kerala-cm-p-vijayan-claims-told-about-heavy-rains-on-many-occasions-3269030/



एनडीटीवी के इंटरव्यू में मौसम विभाग के डारेक्टर ने माना की केरल की बारिश अप्रत्याशित थी !अर्थात पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं था !
khabar.ndtv.com
केरल में आई बाढ़ की बड़ी वजह था जलवायु परिवर्तन : मौसम विभाग
Reported by हिमांशु शेखर मिश्र, Updated: 23 नवम्बर, 2018 11:19 PMहिमांशु शेखर मिश्र

केरल में आई बाढ़ की बड़ी वजह था जलवायु परिवर्तन : मौसम विभाग के डीजी ने NDTV से कहा
NDTV से बात करते मौसम विभाग के डीजी केजे रमेश
नई दिल्‍ली:
केरल में बाढ़ ने जो कहर बरपाया उसके पीछे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन थी. एनडीटीवी से खास बातचीत में मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल के जे रमेश ने कहा है कि केरल में बाढ़ आपदा के पीछे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली अप्रत्याशित बारिश थी. केरल में इस साल जून और जुलाई में भारी बारिश हुई जिसकी वजह से केरल के 35 बड़े जलाशय काफी भर गये थे. पिछले कुछ साल से राज्य में काफी सूखा पड़ा था इसलिए डैम्स में पानी ज़्यादा रखा गया. इसलिए 8 अगस्त से 10 अगस्त और फिर 14 अगस्त से 17 अगस्त के बीच जब दो बार भारी बारिश हुई तो जलाशयों में पानी रखने की जगह नहीं थी और डैम्स से पानी छोड़ना पड़ा. इसकी वजह से ही निचले इलाकों में फ्लैश फल्ड की स्थिति पैदा हो गयी और पूरे राज्य में आपदा के हालात पैदा हो गये.see more...            https://khabar.ndtv.com/news/india/met-dg-interview-on-kerala-floods-1952552?fbclid=IwAR1Gp7YWHasjUAHIC7nHtsFULc0rNsMnfHWo_n4podYQGZs3tku5N9boS7I

     इस पर मैंने मौसम विभाग के डायरेक्टर डॉ. के जे रमेश से बात की और कहा कि दक्षिण भारत में 5 से 14 अगस्त तक हुई बारिश अप्रत्याशित नहीं थी और न ही इसका कारण जलवायु परिवर्तन ही था यदि ऐसा होता तो 29 जुलाई को जो मैंने अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान आपके मेल पर भेजा है वह भी गलत होता किंतु वो सही हुआ है आप अपने मेल पर दोबारा देखिए हमारा भेजा हुआ पूर्वानुमान !इसके बाद 28 अगस्त 2018 को मेरे पास उन्होंने मेरे मेल पर ये लेटर भेज कर मेरा फ़ोन उठाना बंद कर दिया था। >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
 
 
               बिहार की बाढ़ 
   
    इसके बाद सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार जी ने कहा था -"किसी को कुछ नहीं पता कि ये अधिक वर्षा कब तक होती रहेगी !मौसम विभाग वाले सुबह कुछ बताते हैं दोपहर में कुछ दूसरा बताते हैं और शाम को कुछ अलग बता देते हैं !>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
      
बिहार ‘डूबा’ तो नीतीश कुमार बोले- मौसम विभाग सुबह कुछ और दोपहर को कुछ बताता है
बिहार में मूसलाधार बारिश से हाहाकार मचा हुआ है. इसमें अब तक 23 लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार में बारिश से बिगड़े हालात पर सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने बिहार के बदतर हालात का ठीकरा कुदरत और मौसम विभाग पर फोड़ा है.
रविवार को आपात बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है. कभी पानी की कमी हो जाती है, सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और कभी बाढ़ के हालात बन जाते हैं. उन्होंने कहा कि गंगा और पुनपुन नदी का जलस्तर बढ़ रहा है. लगातार बारिश हो रही है, जिसके चलते दिक्कत हो रही है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मौसम वैज्ञानिक भी सुबह में कुछ पूर्वानुमान बताते हैं और शाम को कुछ और बताते हैं. अभी हथिया नक्षत्र चल रहा है. मुझे तो लग रहा है कि बारिश तीन दिन तक और होगी.see more.... https://aajtak.intoday.in/story/weather-update-heavy-rain-bihar-patna-chief-minister-nitish-kumar-emergency-meeting-1-1124301.html
    

29 सितंबर को नीतीश कुमार ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा था, ‘अभी हथिया नक्षत्र चढ़ा है. बारिश कब खत्म होगी कोई नहीं जानता है. मौसम विज्ञान वाले भी सुबह कुछ बताते हैं और दोपहर के बाद उन्हें अपना ओपिनियन बदल कर जारी करना पड़ रहा है.’    
पटना के बाशिंदों का कहना है कि उन्हें भी किसी तरह का अलर्ट नहीं मिला कि पटना में इतनी बारिश होगी, वरना वे लोग पहले से ही सुरक्षा के उपाय कर लेते.
     मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जारी पूर्वानुमान में बिहार में भारी बारिश की चेतावनी दी गई थी.see more.... http://thewirehindi.com/96672/bihar-flood-in-patna-nitish-kumar-sushil-kumar-modi/
 
 

16-17 जून, 2013को केदार नाथ जी में जो तवाही हुई हो या फिर नवंबर 2015 की विनाशकारी चेन्नई बाढ़ हो !ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं का भी पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था उसके बाद मौसम वैज्ञानिकों ने कहना शुरू किया कि ---

 
 
5 जनवरी 2020 को नवभारत की खबर है !जिसमें कहा गया है कि मौसम का सटीक पूर्वानुमान संभव नहीं है !

 कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा, जिसका सटीक पूर्वानुमान संभव नहीं : डॉ. श्रीवास्तव

डिसक्लेमर:यह आर्टिकल एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड हुआ है। इसे नवभारतटाइम्स.कॉम की टीम ने एडिट नहीं किया है।
Updated: 05 Jan 2020, 11:35:00 AM नयी दिल्ली, पांच जनवरी (भाषा) बीते साल मानसून से लेकर हाल ही में कड़ाके की ठंड तक, बारंबार पूर्वानुमान गलत साबित होने पर सवालों में घिरे मौसम विभाग की दलील है कि भारत जैसे, ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में मौसम की चरम गतिविधियों का सटीक अनुमान संभव नहीं है।
    नयी दिल्ली, पांच जनवरी (भाषा) बीते साल मानसून से लेकर हाल ही में कड़ाके की ठंड तक, बारंबार पूर्वानुमान गलत साबित होने पर सवालों में घिरे मौसम विभाग की दलील है कि भारत जैसे, ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में मौसम की चरम गतिविधियों का सटीक अनुमान संभव नहीं है।
    सवाल : सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी। लेकिन पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ। क्या इसे तकनीकी खामी मा ना जाये?
    जवाब : यह सही है कि मौसम के दीर्घकालिक पूर्वानुमान की घोषणा में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था, लेकिन सर्दी ने सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। मौसम विज्ञान की भाषा में इसे मौसम की चरम गतिविधि माना जाता है। भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है। पल भर में हवा का रुख बदलने वाले ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है। इसलिये इसे तकनीकी खामी मानना उचित नहीं है।
सवाल : अभी 20 दिसंबर के बाद बारिश होने और सर्दी कम होने के पूर्वानुमान अगले दिन ही गलत साबित हुये। क्या यह भी तकनीकी खामी नहीं है?
जवाब : मौसम विभाग देश भर में 200 पर्यवेक्षण केन्द्रों से सतह पर हर तीन घंटे में मौसम का मिजाज लेता है। साथ ही, देश में 35 स्थानों से सेंसर युक्त गुब्बारों की मदद से प्रतिदिन वायुमंडल में हवा के रुख को भांप कर मौसम के रुझान का आंकलन किया जाता है। इसरो के वैश्विक और स्थानीय उपग्रह तथा रडार से हर दस मिनट में हवा की गति, तापमान और नमी का आंकलन कर मौसम का अनुमान लगाया जाता है। भारत को इतने व्यापक इंतजाम सिर्फ ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु की विशिष्ट परिस्थिति के कारण करने पड़ते हैं क्योंकि, ऐसी जलवायु में हवा की गति और उसका रुख, मिनट मिनट पर बदलने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। यूरोप या अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों को परिवर्तनशील जलवायु नहीं होने के कारण न तो मौसम के पूर्वानुमान के इतने व्यापक इंतजाम करने पड़ते हैं ना ही वहां अनुमान गलत साबित होने की आशंका होती है। मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है क्योंकि, ऐसे में रात और दिन का तापमान तेजी से बदलता है।
   सवाल : अत्यधिक गर्मी, उम्मीद से ज्यादा बारिश और अब अप्रत्याशित सर्दी। क्या इसे जलवायु परिवर्तन का ही असर माना जाये?
 जवाब : मौसम संबंधी हमारे अपने अध्ययनों में भी मौसम की चरम गतिविधियों (एक्सट्रीम एक्टिविटी) की बात सामने आ रही है। यह बात वैश्विक स्तर पर स्थापित हो रही है कि जलवायु परिवर्तन में मौसम की चरम गतिविधियों का दौर विभिन्न रूपों में बार बार देखने को मिल रहा है। भारत में भी पिछले एक साल में गर्मी, बारिश और अब सर्दी में मौसम की चरम स्थितियां पैदा हुयीं। पिछले साल दिल्ली एनसीआर में सात फरवरी को ओलावृष्टि हुई, जून में तापमान 48 डिग्री पर पहुंचा और अभी 12 और 13 दिसंबर को 33 मिमी बारिश हुई...., मौसम की ये अप्रत्याशित और असामान्य गतिविधियां भी देखने को मिलीं। सौ साल के रिकार्ड तोड़ती मौसम की चरम गतिविधियों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर देखना ही पड़ेगा।
 सवाल : मौसम की चरम गतिविधियों का भविष्य में कैसा मिजाज रहने का अनुमान है ?
 जवाब : मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी।see more.... https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/other-news/the-result-of-extreme-cold-weather-activity-whose-precise-forecast-is-not-possible-dr-srivastava/articleshow/73105950.cms

6 जनवरी 2020 को हिंदुस्तान में प्रकाशित हुआ

 
see more ....https://epaper.livehindustan.com/imageview_484316_46643970_4_1_06-01-2020_8_i_1_sf.html
 
                                                          मानसून   


 चक्रवात

26 नवंबर 2018नवभारत की एक खबर के अनुशार -मौसम विभाग के डायरेक्टर डॉ.के जे रमेश ने माना कि जलवायु परिवर्तन के कारण कई ऐसे चक्रवात हैं जिनके आने का अंदेशा ही नहीं हो पा रहा है।  

चुपके से आकर नींद उड़ा रहे बड़े चक्रवात
Updated: 26 Nov 2018, 03:39:00 AM
​आने वाले दिनों में मौसम दुनिया के लिए एक बढ़ा खतरा बनने वाला है। इसका संकेत हाल में बढ़ते चक्रवात हैं। मौसम विभाग के महानिदेशक केजे रमेश  के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण कई ऐसे चक्रवात हैं जिनके आने का अंदेशा ही नहीं हो पा रहा है। 
लखनऊ



आने वाले दिनों में मौसम दुनिया के लिए एक बढ़ा खतरा बनने वाला है। इसका संकेत हाल में बढ़ते चक्रवात हैं। मौसम विभाग के महानिदेशक केजे रमेश के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण कई ऐसे चक्रवात हैं जिनके आने का अंदेशा ही नहीं हो पा रहा है। जब तक इनकी जानकारी हो पाती है तब तक ये भारी तबाही मचा चुके होते हैं। इसका हाल का उदाहरण गज चक्रवाती तूफान है। वह कहते हैं कि समुद्री सतह में उठने वाली गर्म हवाओं से गज तूफान की गति इतनी तेज हो गई कि जब तक अलर्ट जारी होता तब तक नुकसान हो गया। ऐसा पहली बार हुआ है लेकिन जो हालात बने हैं वह निश्चित तौर पर अलर्ट करने वाले हैं। see more...https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/other-news/the-big-cyclone-that-is-sleeping-quietly/articleshow/66797704.cms


 
 आजतक की एक खबर के अनुशार -विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हषर्वर्धन ने कहा कि दुनिया में अभी कहीं पर भी भूचाल, भूकंप का पूर्वानुमान करने की प्रणाली नहीं है.
aajtak.intoday.in 

भूकंप का पूर्वानुमान लगाने की प्रणाली पर काम कर रहा है भारत

नई दिल्ली, 24 मई 2017, अपडेटेड 25 मई 2017 07:43 IST

देश के विभिन्न इलाकों के भूकंप संवेदी होने की वजह भारत एक ऐसी प्रणाली पर काम कर रहा है, जिससे भूकंम्प का पूर्वानुमान लगाया जा सके. ताकि भूकंप के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हषर्वर्धन ने कहा कि दुनिया में अभी कहीं पर भी भूचाल, भूकंप का पूर्वानुमान करने की प्रणाली नहीं है. इस दिशा में कार्य चल रहे हैं और भारत में भी प्रयास हो रहा है. मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत में आईआईटी रूड़की और ताइवान मिलकर अध्ययन कर रहे हैं.
नेशनल सेंटर फार सिस्मोलॉजी के देशभर में 84 स्टेशन हैं और 150 वेधशालाएं हैं. सभी केंद्र इस विषय पर अध्ययन कर रहे हैं. मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, विगत 30 वर्षो के भूंकप के डाटा के विश्लेषण से पता चलता है कि भूंकप की दर में कोई वृद्धि अथवा कमी नहीं आई है. भूकंप का अध्ययन करना एक विस्तृत विषय है और इस बारे में कोई समिति गठिन नहीं की गई है हालांकि कई संस्थान इस विषय पर अध्ययन कर रहे हैं | see more... https://aajtak.intoday.in/story/india-is-working-on-the-system-of-forecasting-earthquake-1-931180.html
 
       
      
वायु प्रदूषण के विषय में इंडिया टीवी की एक खबर में कहा गया कि -दिल्ली में प्रदूषण की असली वजह क्‍या? किसी को नहीं पता!

indiatv.inUpdated on: December 25, 2015 9:24 IST

World’s Most Polluted City: दिल्ली में प्रदूषण की असली वजह क्‍या? किसी को नहीं पता!
नई दिल्ली। दिल्ली में प्रदूषण रोकन के लिए राज्य सरकार 1 जनवरी से ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू करने जा रही है। गुरुवार को मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसका ब्लूप्रिंट भी पेश कर दिया है। ये पूरी कवायद दिल्ली में प्रदूषण को रोकने के लिए की जा रही है। लेकिन, दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर इतना प्रदूषित क्‍यों है, इसका वास्‍तविक कारण किसी को पता नहीं है। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि देश के सबसे बड़े संस्थान और सरकारी रिपोर्ट पर नजर डालेंगे तो दिल्ली को प्रदूषित होने की वजह अलग-अलग बताई जा रही हैं। ऐसे में बड़ा सावल यह है कि दिल्ली की हवा को दूषित करने के लिए आखिर असली जिम्‍मेदार गाड़ियां हैं?
जुलाई में जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए सरकार को फटकार लगाई, उस वक्‍त केंद्र सरकार ने जवाब दिया था कि उसे प्रदूषण बढ़ने की मुख्य वजह का पता नहीं है। जबकि, उससे कुछ महीने पहले ही सरकार ने पुराने डीजल वाहनों पर रोक न लगाने में मदद के लिए एक एफिडेविट दायर कर कहा था कि दिल्ली में प्रदूषण की मुख्य वजह गाड़ियां नहीं हैं।
प्रदूषण का जिम्मेदार कौन? कार या इंडस्ट्री
आम आदमी पार्टी की सरकार अल्ट्रा-फाइन पार्टिकुलेट मैटर या पीएम 2.5 एमिशन को कम करने के लिए ऑड-ईवन का फॉर्मूला लागू कर रही है। इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) कानपुर ने दो साल पहले एक रिपोर्ट जारी कर कहा था कि पीएम 2.5 का लेवल ज्यादा होने से उच्च स्तर पर एम्फीसेमा और कैंसर जैसी बिमारी हो सकती है। उसी समय रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कार, जीप और ट्रक 10 फीसदी से कम अल्ट्रा-फाइन प्रदूषण फैलाते हैं। दूसरी ओर, रिपोर्ट में कहा गया था कि बड़ा प्रदूषक सड़कों पर उड़ने वाली धूल है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण फैलाने में धूल की हिस्सेदारी 35 फीसदी तक है, जबकि घरेलू रसोई, पावर प्लांट और इंडस्ट्रियल उज्‍सर्जन से 25 से 35 फीसदी तक प्रदूषण फैलता है।
 जितनी रिपोर्ट, उतनी बातें
आईआईटी दिल्ली ने पिछले साल निष्कर्ष निकाला कि दिल्ली को गाड़ियां सबसे ज्यादा प्रदूषित करती हैं। इसके बाद इंडस्ट्री, पावर प्लांट और घरेलू स्रोत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा किए गए एक अध्ययन (2007-10) के मुताबिक गाड़ियों के उत्‍सजर्न से नाइट्रोजन ऑक्साइड बढ़ता है, जबकि पीएम 2.5 का कारण सड़क पर उड़ने वाली धूल है। इसके विपरीत दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने सीपीसीबी की रिपोर्ट को यह कहकर नकार दिया था कि उनकी कार्यप्रणाली दोषपूर्ण है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के रिसर्च फेलो भार्गव कृष्णा ने कहा कि चीजे काफी बदल चुकी हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली का चरित्र बदल चुका है और शहर में गाड़ियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। इसलिए सीपीसीबी के निष्कर्ष में खामिया हो सकती हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या के लिए आम तौर पर सीपीसीबी का अध्ययन इस्तेमाल किया जाता है।
राजनीति का खेल हो खत्‍म
विशेषज्ञ कहते हैं कि केंद्र और राज्‍य सरकार की अपनी-अपनी एजेंसियां हैं, जो प्रदूषण को जांचने का काम करती हैं। इन एजेंसियों का इस्‍तेमाल राजनीतिक खेल खेलने में किया जा रहा है और यह संस्‍थाएं एक-दूसरे की रिपोर्ट को ही गलत साबित करती नजर आती हैं। जबकि इसका समाधान यह होना चाहिए कि केंद्र और दिल्‍ली सरकार मिलकर इस समस्‍या से लड़े। इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण हांगकांग है, जहां सिस्‍टम काफी सक्षम है क्‍योंकि वहां विभिन्‍न संगठनों के बीच स्‍पष्‍ट पदानुक्रम है। यहां कोई भी एक-दूसरे के काम में दखल नहीं दे सकता और न ही गलत जानकारी दे सकता है। पॉलिसी का निर्माण गंभीर विचार-विमर्श के बाद होता है। भारत को भी एक सेंट्रल अथॉरिटी की जरूरत है, जो स्‍वतंत्र रूप से काम करे और पर्यवरण आंकड़ों को एकत्रित कर उनका आकलन कर सही नीति बनाने में सरकार की मदद करे।see more.... https://www.indiatv.in/paisa/business-nobody-knows-the-real-reason-of-pollution-in-delhi-551339
 
                        मौसम और ज्योतिष


बिहार बारिश: मंत्री अश्विनी चौबे बोले- हथिया नक्षत्र की बारिश बड़ी गंभीर हो जाती है
Updated: 30 Sep 2019, 03:21:00 PM
बिहार राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी के मुताबिक बारिश से जुड़े हादसों में अब तक 29 लोगों की जान जा चुकी है। राजधानी पटना में 4 दिन से हो रही भारी बारिश के बाद हजारों लोग फंसे हुए हैं। इन सबके बीच डेप्युटी सीएम सुशील मोदी को रेस्क्यू कराने की भी तस्वीर सामने आई है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे


पटना
बिहार में भारी बारिश के बाद राजधानी पटना के गली-मुहल्लों में कई फीट पानी जमा है। लोग छतों पर ठिकाना बनाए हुए हैं। आपदा प्रबंधन में कथित नाकामी को लेकर नीतीश कुमार की सरकार सवालों के घेरे में है, यहां तक कि कई दिन से घर में फंसे डेप्युटी सीएम सुशील मोदी को मदद की गुहार लगानी पड़ी। लेकिन नेता हैं कि मानते ही नहीं। वह इसके पीछे ग्रह-नक्षत्रों को वजह बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता अश्विनी चौबे ने बिहार में हुई भारी बारिश के लिए हथिया नक्षत्र को जिम्मेदार ठहराया है। see more... https://navbharattimes.indiatimes.com/state/bihar/patna/bihar-rains-union-minister-ashwini-choubey-says-hathiya-nakshatra-responsible-for-heavy-rains/articleshow/71373497.cms
 
 
                  तूफान मई सन -2018 
 
  
दिल्ली से मेरठ तक स्कूल बंद, राजस्थान-हरियाणा में अलर्ट जारी

उत्तर प्रदेश और राजस्थान में तबाही मचाने के बाद फिर से उत्तर भारत के कई राज्यों में तूफान को लेकर अलर्ट जारी किया गया है. अगले 48 घंटे यानी मंगलवार और बुधवार को इन राज्यों में लोगों को सतर्क रहने की चेतावनी दी गई है. 
मौसम विभाग का कई राज्यों में अलर्ट (फोटो फाइल
नई दिल्ली/जयपुर, 07 मई 2018, अपडेटेड 08 मई 2018 00:26 IST
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में तबाही मचाने के बाद तूफान ने फिर से उत्तर भारत के कई राज्यों में दस्तक दी है. भारतीय मौसम विभाग ने एनसीआर के अलावा जींद, रोहतक, भिवानी और नारनौल में बारिश की संभावना जताई है. दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में 50-70 किमी प्रति घंटे की गति से तूफानी हवाएं चल सकती हैं. दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ में स्कूल बंद रखे गए हैं.
अगले 48 घंटे यानी मंगलवार और बुधवार को उत्तर भारत के कई राज्यों में लोगों को सतर्क रहने की चेतावनी दी गई है. हरियाणा में दो दिनों के लिए स्कूल बंद किए गए हैं तो राजस्थान में भी दो दिनों के लिए अलर्ट जारी किया गया है. अब दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार ने भी अडवाइजरी और अलर्ट जारी किया हैsee more... https://aajtak.intoday.in/story/imd-answer-pmo-never-advised-haryana-govt-for-closure-of-schools-on-weather-issue-1-1001317.html  

तूफान के अलर्ट पर पीएमओ ने मांगा जवाब

aajtak.in [Edited BY: अमित रायकवार]

नई दिल्ली, 07 मई 2018, अपडेटेड 15:32 IST
मौसम विभाग ने हरियाणा में आंधी-तूफान आने की झूठी भविष्यवाणी की तो पीएमओ ने उससे जवाब पूछ लिया..मौसम विभाग से पूछा गया है जब भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं था तो आफत मचाने की क्या जरूरत थी |see more... https://aajtak.intoday.in/video/weather-department-stormy-weather-thunderstorms-north-india-1-1001373.html
    
 बिशेष बात -  मौसम विभाग का झूठ !
 1. केरल सरकार को मैंने पहले ही बता दिया था जबकि प्रेसरिलीज में सामान्य बारिश का पूर्वानुमान जताया गया था !यही बिहार में हुआ और दिल्ली तूफ़ान के बारे में पीएमओ से कहा कि हरियाणा सरकार को मैंने ऐसी कोई एडवाइजरी जारी नहीं की थी !
   मद्रास बाढ़ 

केदारनाथ जी की घटना 

2016 के अग्नि कांड 

वायु प्रदूषण 

  भूकंप

Monday, August 17, 2020

परशुरामपरिषद्

पंडित श्री सुनील भराला जी 
                            सादर नमस्कार 

      मुझे परशुरामपरिषद् में सम्मिलित होने का आमंत्रण मिला किंतु उसमें सम्मिलित होने के लिए समय निकाल पाना मेरे लिए किसी भी परिस्थिति में संभव नहीं है और आगे भी दिल्ली के बाहर के किसी कार्यक्रम में एवं दिल्ली में किसी पदाधिकारी के आश्रम या घर में रखे गए किसी भी कार्यक्रम में मेरा सम्मिलित हो पाना कभी संभव नहीं होगा | आपने परशुरामपरिषद् बताकर मुझे जिस संकल्प में जोड़ा था मैं भी अत्यंत पवित्र उद्देश्य के साथ जुड़ा था किंतु भगवान् परशुराम जी के नाम पर किसी गिरोह की तरह की कार्यपद्धति में मुझे तनाव होता रहा जिससे मेरे व्यक्तिगत कार्य एवं अनुसंधान कार्य भी प्रभावित होता रहा है !न जाने क्यों अक्सर बड़े लोग भूल जाते हैं कि छोटे लोगों में भी आत्मा होती होगी उनका भी कुछ स्वाभिमान होता होगा |किसी भी संगठन को चलने के लिए धन बहुत आवश्यक है किंतु मेरे हिसाब से केवल धन को ही इतनी अधिक प्राथमिकता नहीं दी जानी  चाहिए कि परशुरामपरिषद् जैसा पवित्र उद्देश्यों के लिए गठित किसी संगठन को किसी गिरोह की तरह कुछ धनवान लोगों के पीछे अपने उद्देश्य से भ्रष्ट होकर भटकना पड़े |
      सन 1994

इसलिए कुछ धनवान लोगों के चरणों में सौंप दिए गए किसी भी संगठन में कार्यकरने का अपना अभ्यास नहीं है | काम किया संचालन में नीति परिषद्
     हमारे द्वारा चलाए जा रहे वैदिक वैज्ञानिक अनुसंधान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहयोग से जो कार्य संचालित किया जा रहा है उसमें दीनदयाल शोध संस्थान एवं संबंधित मंत्रालय सम्मिलित है उसमें मुख्यभूमिका मेरी ही है |अतएव वहाँ के अत्यंत व्यस्त कार्यक्रम से मेरा समय निकाल पाना संभव नहीं होगा |
     परशुरामपरिषद् में मेरी ऐसी कोई उपयोगिता भी नहीं है जिसके लिए मुझे अपना मुख्य उद्देश्य छोड़ने के लिए विवश होना पड़े !वहाँ भी जाकर मैं केवल शुभ कामनाएँ ही दे सकता हूँ वो मैं यहीं से दे 

अपने जीवन भूमिका मात्र भीड़ बढ़ाने की है जिसके लिए एवं  के द्वारा संचालित 

 के साथ मेरा कोई का एक आयाम के साथ

Tuesday, August 4, 2020

vinaY

Last updated: Tue, 04 Aug 2020 06:04 AMकोरोना की सटीक दवा कभी संभव नहीं, हालात सामान्य होने में लगेगा अभी लंबा वक्त: WHOsee more....https://www.livehindustan.com/international/story-who-warns-there-may-never-be-a-coronavirus-silver-bullet-3395710.html

News18Hindi Last Updated: April 23, 2020, 12:28 AM IST
 कोरोना पर WHO की नई चेतावनी-'गलती मत करना, लंबे समय तक साथ रहेगा वायरस'
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने ये नई चेतावनी कोरोना वायरस (Coronavirus) के लगातार बदलते ट्रेंड को लेकर की है !दुनियाभर में जारी कोरोनावायरस (Coronavirus) के कहर के बीच WHO ने नई चेतावनी (Warning) जारी see more...https://hindi.news18.com/news/world/rest-of-world-who-warns-corona-virus-will-be-with-us-for-long-time-3042733.html

Publish Date:Tue, 28 Apr 2020 01:27 AM (IST)
हवा में पाया गया कोरोना का जेनेटिक मटेरियल, कैसे कम होगा जोखिम, वैज्ञानिकों ने दी यह सलाह
बीजिंग, पीटीआइ। वैज्ञानिकों ने हवा में कोरोना वायरस की आनुवंशिक सामग्री की उपस्थिति पता लगाया है। लेकिन, वे कहते हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि इन वायरल कणों से बीमारी हो सकती है या नहीं। वुहान, चीन में दो see more...https://www.jagran.com/world/china-coronavirus-genetic-material-detected-in-air-unclear-about-it-causes-disease-20226577.html

Edited By Shailesh Shukla | नवभारत टाइम्स | Updated: 05 May 2020, 09:28:00 AM IST 
तंजानिया में बकरी और फल भी कोरोना पॉजिटिव, राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहींsee more...https://navbharattimes.indiatimes.com/world/other-countries/goat-and-fruit-are-also-coronavirus-positive-in-tanzania-president-john-magufuli-said-test-kit-not-correct/articleshow/75546399.cms


 नदी के पानी में कोरोना के लक्षण !
20-4-2020
पेरिस की सीन नदी और अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है !seemore..... https://www.patrika.com/miscellenous-world/coronavirus-found-in-water-in-paris-6019070/

17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश ! 
उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है.see more....https://www.bbc.com/hindi/international-53441767
 


 

Saturday, August 1, 2020

आदरणीय गोपाल आर्य जी !



आदरणीय गोपाल आर्य जी !
                                           सादर प्रणाम 

विषय : मौसमपूर्वानुमान एवं महामारी से संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिषय में विनम्र निवेदन !

   महोदय !
     आपकी अत्यंत व्यस्तता में मैं आपको बार बार फोन करता हूँ तो मुझे संकोच होता है कि आपको व्यवधान होता होगा !मेरी विवशता यह है कि समय दिनोंदिन बीतता जा रहा है आज जो काम जितनी क्षमता से मैं करने की स्थिति में हूँ वह दिनोंदिन कमजोर होनी स्वाभाविक ही है यह काम इतना बड़ा है जिसे करने के लिए पर्याप्त साधन विद्वत्ता और अनुसंधान भावना से भावित परिश्रमी लोगों की बड़ी मात्रा में आवश्यकता है |यह काम करने के लिए भी समय चाहिए !ऐसा सोचकर जब परेशान  होता हूँ तब आपसे ही निवेदन करता हूँ !
   बिडंबना यह है कि वेद विज्ञान के क्षेत्र में भाषण एवं प्रमाण देने वाले तो बहुत लोग मिल जाते हैं | किंतु इस बिषय में अनुसंधान भी किया हो और उसे तर्कों के साथ प्रमाणित भी करने की क्षमता रखने वाले विद्वानों की संख्या इतनी कम है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है | वेद विज्ञान पर अनुसंधान के लिए बड़े बड़े प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं किंतु वहाँ भी अनुसंधान करने वालों की कमी के कारण आज तक वेद विज्ञान विषय को विश्वमंच पर विश्वसनीयता से प्रमाणित नहीं किया जा सका है |
     आधुनिक विज्ञान  के पास भी ऐसा कोई साधन नहीं है जिसके द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सके !मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि प्राकृतिक अनुसंधानों के क्षेत्र में वेद विज्ञान के बिना असंख्य अनुसंधान अधूरे पड़े हैं या फिर उन्हें न समझने के कारण उन प्राकृतिक घटनाओं के साथ जिन तथ्यों को जोड़ा जा रहा है वे केवल काल्पनिक हैं उनका सच्चाई से कपि संबंध नहीं है | यही कारण है कि मौसम से लेकर महामारियों तक के स्वभाव को समझना उनका पूर्वानुमान लगाना उनके वेग की अधिकता या न्यूनता को समझ पाना अभी तक विज्ञान के लिए असंभव सा बना हुआ है |
   श्रीमान जी !वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को बहुत बड़ी आशा रहती है कि इनसे हमारे जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं को आसान बनाया जा सकेगा !हमारे संकटों को कम किया जा सकेगा !कई क्षेत्रों में विज्ञान ने ऐसा करके दिखाया भी है इसीलिए उसके प्रति विश्वास बढ़ना स्वाभाविक भी है |
      चिंता की बात यह है कि प्राकृतिक बिषयों में अनुसंधान करने के लिए अभी तक ऐसा कोई प्रमाणित विज्ञान खोजा नहीं  जा सका है जिसके द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सके और प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना उपग्रहों रडारों की मदद से  बादलों और आँधी तूफानों की एक जगह उपस्थिति देखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा और गति के हिसाब से यह अंदाजा लगा लेना कि ये कब किस देश या प्रदेश में पहुँचेंगे उसे बता देना ये कोई पूर्वानुमान नहीं है और न ही इसमें विज्ञान जैसा कुछ भी है |
    कृषिकार्यों , प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई प्रमाणित वैज्ञानिक प्रक्रिया प्रचलन में नहीं है जो ऐसे बिषयों से संबंधित समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके !यही कारण है कि मानसून आने या जाने की तिथियों का पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |
      कभी कहीं बहुत अधिक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं तो किसी किसी वर्ष ऐसा होते बिलकुल नहीं देखा जाता है | ऐसा होने के पीछे का वास्तविक वैज्ञानक कारण खोजने के लिए अभी तक कोई तर्कपूर्ण  वैज्ञानिक पद्धति नहीं है |
      देशों प्रदेशों में प्रकृति या मानवकृत जिन परिस्थितियों में कुछ महीनों के कुछ दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है उन्हीं परिस्थितियों में अपने आप से ही अचानक कभी वायु प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है इसका वास्तविक कारण अभी तक केवल इसलिए नहीं खोजा सका है क्योंकि इसका कोई प्रमाणित विज्ञान नहीं है जिसके द्वारा इसके बिषय में कोई तर्कपूर्ण उत्तर दिया जा सके |
       भूकंपों या कोरोना जैसी महमारियों के घटित होने के लिए जिम्मेदार कारणों को अभी तक खोजा  नहीं जा सका है ऐसी घटनाओं के लिए मानवीय गतिविधियाँ भी जिम्मेदार हैं या नहीं !यदि हैं तो कितनी और यदि नहीं हैं तो और दूसरे कारण क्या हो सकते हैं इनके विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ?आदि प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विज्ञान या तो मौन है या फिर विज्ञान के पास कुछ ऐसे काल्पनिक किस्से कहानियाँ हैं जिनका तर्कपूर्ण  वैज्ञानिक तर्कों की कसौटी पर खरा उतर पाना संभव ही नहीं है |
       महामारियों के समय अत्यंत सतर्क सावधान रहने बाद भी कुछ लोग संक्रमित हो जाते हैं जबकि कुछ लोग पथ्य परहेज का पालन बिलकुल नहीं करते इसके बाद भी उन्हें महामारी के समय भी कोई दिक्कत नहीं होती है | ऐसा होने का कारण जानने का  विज्ञान न होने के कारण इसका वास्तविक वैज्ञानिक कारण अभी तक खोजा नहीं जा सका है क्या है ?
      कोरोना जैसी महामारियों के प्रारंभ होने या न होने पर या संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या में अचानक बढ़ोत्तरी या कमी होने लगती है !इसके लिए मनुष्यकृत कार्य कितने जिम्मेदार हैं और कितना प्रकृति जिम्मेदार है | ऐसा होने के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिक कारणों को अभीतक खोजा  नहीं जा सका है !
      बैज्ञानिक तर्कों के साथ महामारियों के बिषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कह पाना वैज्ञानिकों के बश की बात नहीं है | मौसमविज्ञान के क्षेत्र में या भूकंपविज्ञान के क्षेत्र में या वायुप्रदूषण घटने बढ़ने के कारणों की खोज में विज्ञान अभी तक असफल रहा है ऐसा उन लोगों के द्वारा भी स्वीकार किया जा चुका है जो इसकी जिम्मेदारी संभाले हुए हैं |
     ऐसी परिस्थिति में यदि समाज के हित में  ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर वेदविज्ञान के द्वारा खोजे जा सकते हैं तो उन्हें स्वीकार करने में संकोच क्यों किया जा रहा है !विशेष कर वेद वेदांगवादी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रेरित इस सरकार में भी ऐसे अनुसंधानों को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा तो  सरकार से आशा की जा सकती है | इसलिए वर्तमान सर्कार से अधिक आशा और अपेक्षा है |
     श्रीमान जी !इस बिषय में हमारी सरकार से अपेक्षा मात्र इतनी है कि मैं पिछले 25 वर्षों से वेद विज्ञान के आधार पर इन बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिनमें बहुत सारे ऐसे वैज्ञानिक अनुभव मिले हैं जिनके द्वारा ऐसे प्रश्नों के न केवल वैज्ञानिक उत्तर पाए जा सकते है अपितु ऐसी घटनाओं के घटित होने के पीछे के निश्चित कारणों की खोज करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं !सरकार इस गणितीय वेद विज्ञान का भी परीक्षण करवाए। उचित लगे तो इसका भी जनहित में उपयोग किया जाए !
       मेरा बिनम्र निवेदन है कि ऐसे अनुसंधानों को आगे बढ़ाने में हमारी मदद की जाए !
                                                     निवेदक -
                                     डॉ. शेष नारायण  वाजपेयी
                                   A -7\41,कृष्णा नगर,दिल्ली -51  

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आदरणीय गोपाल आर्य जी !
                                           सादर प्रणाम
बिषय : वेद विज्ञान के द्वारा मौसम एवं महामारी के पूर्वानुमान के बिषय में -

    महोदय, 

 अगस्त के संपूर्ण महीने में भारत समेत विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों में अत्यंत अधिक बारिश और बाढ़ जैसी घटनाएँ घटित होने  का अनुमान है संभव है कि उन क्षेत्रों में इतनी अधिक बारिश पिछले कुछ दशकों में न हुई हो !
       दूसरी बात :कोरोना महामारी के समाप्त होने का समय 6 मई से 5 अगस्त 2020 तक का था | इसी समय के प्रभाव से 6 मई के बाद बिना किसी दवा या वैक्सीन के भी कोरोना से संक्रमित रोगियों के स्वस्थ होने की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है किंतु पहले ही संक्रमण इतना अधिक बढ़ चुका था कि अभी तक सभी संक्रमित लोग स्वस्थ नहीं हो सके हैं|
      समय के कारण इतना बड़ा सुधार होता देखकर कुछ लोगों को लगने लगा है कि यह सुधार उनकी औषधियों या चिकित्सा के प्रभाव से हुआ है यहाँ तक कि इसके लिए बनाई जा रही वैक्सीन के ट्रायल में सम्मिलित रोगियों में दिख रहा सुधार भी स्थाई और विश्वसनीय नहीं है |समय के प्रभाव से हो रहे सुधार को भ्रमवश वैक्सीन का प्रभाव माना जाने लगा है जो देश और समाज के लिए हितकर नहीं है |
      श्रीमान जी !इस बिषय में इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं है |क्योंकि वैक्सीन का ट्रायल जिन लोगों पर हुआ है यदि वे स्वस्थ हुए हैं तो वे संक्रमित लोग भी उसी अनुपात में स्वस्थ होते देखे जा रहे हैं जो ऐसे किसी ट्रायल में  सम्मिलित नहीं हुए हैं, जिन्होंने कोई वैक्सीन या दवा नहीं ली है |
      ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन या औषधियों के भरोसे थोड़ी भी लापरवाही ठीक नहीं होगी !इसलिए सतर्कता अधिक से अधिक बढ़ाई जानी चाहिए !वैदिक विज्ञान के पूर्वानुमान पर  यदि विश्वास किया जाए तो 8 अगस्त के बाद कोरोना का संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा जो एक बार फिर बहुत बड़े वर्ग को संक्रमित कर सकता है !यह संक्रमण अगले 50 दिनों में इतना अधिक बढ़ जाने की संभावना है कि एक बार फिर अपने पुराने रूप में पहुँच सकता है | रिकवरी रेट अत्यंत कम होने लग सकता है |24 सितम्बर तक यह संक्रमण तेजी से बढ़ने का समय है |इसलिए सावधानी बरतना बहुत आवश्यक है |      
          इसलिए अभी लगभग 50 दिनों तक और समय बीतने की प्रतीक्षा की जानी चाहिए उसके बाद यह स्थाई तौर पर समाप्त होने लग जाएगा |

                                                      निवेदक -
                                     डॉ. शेष नारायण  वाजपेयी
                                   A -7\41,कृष्णा नगर,दिल्ली -51  



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लगा पाना को समझना अभी तक संभव नहीं हो पाया है क्योंकि आँधी तूफानों और बादलों की तरह भूकंप या कोरोना जैसी महमारियाँ उपग्रहों रडारों से देखी नहीं जा सकती हैं इसलिए इनका पूर्वानुमान लगाने में असमर्थता प्रकट कर दी जाती है|प्रकृति के स्वभाव को न समझ पाने के कारण प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं या महामारियों का पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |
       मानसून आने जाने की तारीखें बार बार गलत होने के कारण ही तो उन्हें बदलने के बिषय में सोचना पड़ा है | सरकार के मौसम वैज्ञानिकों स्वयं स्वीकार किया है कि प्रकृति को समझपाने में वे असफल रहे हैं इसीलिए भूकंप चक्रवात,दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान हो या भीषण बाढ़ हो उसका न तो पूर्वानुमान लगाने में सफलता पाई जा सकी है और न ही इनके वास्तविक कारण खोजे जा सके हैं कि ऐसा होता क्यों है |
       प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना मौसम को समझ पाना असंभव है और मौसम को समझे बिना महामारियों को नहीं समझा जा सकता है | इसीलिए कोरोना जैसी महामारी के बिषय में सात महीने बाद भी समझा नहीं जा सका है कि इसका प्रारंभ कैसे हुआ इसका विस्तार कैसे होता है इससे होने वाले रोगों के निश्चित लक्षण क्या क्या हैं इससे बचने के लिए सावधानियाँ क्या क्या बरती जानी चाहिए इसकी औषधि या वैक्सीन कैसे बनाई जाए !बिना किसी औषधि या वैक्सीन के भी इतनी बड़ी संख्या में संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने का कारण क्या है ?ये समाप्त कब होगा ?इसका पीक निकल चुका या अभी आगे आना बाक़ी है ! आदि ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं |
      जिस प्रकार से बिना किसी औषधि या वैक्सीन के भी आज तक 64 प्रतिशत रोगी स्वस्थ हो चुके हैं उसी प्रकार से एक दिन ऐसा भी आएगा जब बिना किसी औषधि या वैक्सीन आदि के शतप्रतिशत रोगी संक्रमण मुक्त हो जाएँगे !उस समय जो वैक्सीन या औषधियों का ट्रायल चल रहा होगा उनके प्रभाव से कोरोना को पराजित किया गया है ऐसा मानलिया जाएगा जो सच नहीं होगा !इसलिए अनुसंधान इस बात का किया जाना आवश्यक है कि महामारियों में होने वाले रोगों पर चिकित्सा का असर होता भी है या नहीं ?
      इस समय बार बार भूकंप आ रहे हैं बज्रपात हो रहे हैं कहीं बहुत अधिक वर्षा हो रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है सर्दी गर्मी वर्षा तीनों अपनी सीमाएँ लांघते देखे जा रहे हैं इसका कोरोना जैसी महामारी से कोई संबंध है या नहीं !इसका उत्तर खोजा  जाना आवश्यक है |
        भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने का निश्चित का कारण अभी तक खोजा नहीं जा सका है इसके लिए जिम्मेदार जितने अधिक कारण गिनाए जा रहे हैं उन्हें वैज्ञानिक तर्कों प्रमाणों के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सका है | इनका निश्चय हुए बिना कारणों का निवारण कर पाना संभव नहीं है | 
    ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए मैं भारतवर्ष की प्राचीन वेदवैज्ञानिक पद्धति से पिछले 25 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ उससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के बिषय में न केवल महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं अपितु इनके घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों को खोजने में भी मदद मिल सकती है |इससे संबंधित कुछ प्रपत्र इसी पत्र के साथ संलग्न हैं !
      अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि इस प्राचीन वेदवैज्ञानिक पद्धति से संबंधित अनुसंधानों को भी प्रोत्साहित करने के लिए हमारी भी इस शोधकार्य के लिए मदद की जाए |
















      

और क्षण प्रतिक्षण हो रहे प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रकृति और जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्वानुमान लगाया जा सके |
      इसीलिए भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में या कोरोना जैसी भयंकर महामारियों के बिषय में अभी तक न तो पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही इनके घटित होने का वास्तविक कारण ही खोजा  जा सका है |प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना ऐसा कर पाना संभव भी नहीं है |
     उदाहरण के तौर पर यदि पिछले दस वर्षों को लिया जाए तो जितनी भी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से एक दो को छोड़कर अधिकाँश घटनाएँ ऐसी हैं जिनके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | मानसून आने जाने की तारीखें आज सही घटित ही नहीं हुई हैं |ऐसी परिस्थिति में वर्तमान वैज्ञानिक पद्धति से कोरोना जैसी किसी महामारी के आने और जाने की तारीखों के बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ?
      यह सभी को पता है कि बीमारियों या महामारियों का मौसम से सीधा संबंध होता है इसीलिए ऋतुसंधियों में जब मौसम बदलने लगता है तब रोग बढ़ने लगते हैं | जब सर्दी में गर्मी और गर्मी में वर्षा एवं वर्षा ऋतु के समय में कहीं सूखा और कहीं अतिवर्षा जैसी ऋतुओं के स्वभाव के विपरीत प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब संक्रमण बढ़ना प्रारंभ हो जाता है| यदि ऐसी घटनाएँ अधिक मात्रा में बार बार प्रतिवर्ष घटित होने लगती हैं तब संक्रमण जनित महामारी फैलने की संभावना बनती चली जाती है |
      ऐसे प्राकृतिक उपद्रव पिछले कई वर्षों से घटित होते देखे भी जा रहे थे |  आखिर भारत में इतने अधिक भूकंप हमेंशा तो नहीं आते रहे हैं जितने इस वर्ष आ रहे हैं ऐसी अन्य भी कई प्राकृतिक घटनाएँ इतनी बड़ी महामारी की सूचना देती चली आ रही थीं | दिनोंदिन पर्यावरण बिगड़ता जा रहा था किंतु इसके अनुसंधान के लिए कोई प्रामाणित वैज्ञानिक प्रक्रिया न होने के कारण न इस महामारी का पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही इतनी बड़ी महामारी के बिषय में अभी तक किसी प्रकार की कोई स्वभावगत जानकारी ही जुटाई जा सकी है इसीलिए यह बताना संभव नहीं हो पा रहा है कि यह कोरोना महामारी आखिर कितने दिनों महीनों वर्षों  तक अभी और सहनी पड़ेगी| चिकित्सा वैज्ञानिकों के भी इस विषय में अलग अलग काल्पनिक मत हैं जिन्हें  विज्ञानसम्मत नहीं माना जा सकता है क्योंकि वैज्ञानिक पद्धति में इतना बड़ा भ्रम नहीं होता है जितना कि कोरोना के बिषय में चिकित्सा वैज्ञानिकों के परस्पर विरोधी बिचारों के द्वारा फैल चुका है |  
      


                      सत्यसाक्ष्य के लिए हमारे द्वारा लगाए गए वेद वैज्ञानिक पूर्वानुमान 
  




 कई प्रदेशों में       


सा पिछले कई वर्षों से होता चला भी आ रहा था

इनके विस्तार और इनके स्वभाव को जिसके आधार पर ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान
       संक्रमण संबंधी रोगों से तथा भूकंप ,आँधीतूफ़ान एवं वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं से हरवर्ष लाखों लोग पीड़ित होते हैं उनमें से कुछ लोग मारे भी जाते हैं कोविड-19 जैसी महामारियों में तो बहुत लोग मारे जाते हैं किंतु संक्रमण के कारण होने वाले रोगों को एवं प्राकृतिक दुर्घटनाओं के बिषय में ठीक ठीक समझने के लिए अभी तक कोई विज्ञान विकसित नहीं किया जा सका है |इसीलिए इनका पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो सका है | 
      वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलता ही है कि इतनी बड़ी बड़ी महामारियाँ प्रारंभ होने से पहले इनके विषय में किसी को कुछ पता नहीं होता है इसलिए इनके बिषय में कोई तैयारियॉँ भी नहीं की गई होती हैं और ये धीरे धीरे सारे विश्व में फैल जाती हैं यदि इनके बिषय में समय रहते पूर्वानुमान लगाया जा सका होता तो ऐसे रोगों से निपटने की तैयारियाँ आगे से आगे की जा सकती थीं  |
      इन्हीं वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलता के कारण भूकंप,आँधीतूफ़ान,वर्षा, बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं के घटित होने के 

ती हैं
     
     

इसकी शुरुआत मनुष्य के किसी प्रयास से नहीं होती इसलिए इसकी समाप्ति भी मनुष्य के किसी प्रयास से नहीं होगी !इसकी समाप्ति का समय आना अभी बाकी है !मैंने समय विज्ञान की दृष्टि से इस बिषय में अनुसंधान किया है !




 मौसम और महामारियाँ दोनों ही साथ साथ चलती हैं जब जैसा मौसम होता है तब तैसे रोग फैलते हैं मौसम में  यदि अधिक बदलाव आता है तो महामारी जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं | मौसम समय के अनुशार चलता है दूसरी बात ऐसे बड़े रोग अपने समय से शुरू होकर और समय से ही समाप्त होते हैं |इसलिए ऐसी महामारियों के प्रारंभ होने और इनके समाप्त होने के समय का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए | 
    इसके लिए आवश्यक है कि भूकंप ,तूफ़ान एवं वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण एवं उसका पूर्वानुमान लगाने वाले विज्ञान को विकसित किया जाए जो अभी तक नहीं किया जा सका है 

 जिनका कारण वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी अधिकाँश प्राकृतिक हिंसक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान न लगा पाना होता है |ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए विश्ववैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक कोई ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं विकसित की जा सकी है जिससे प्रकृति में घटित होने वाली घटनाओं के स्वभाव को समझा जा सके और वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके | 
      उपग्रहों रडारों की मदद से समुद्री आकाश में बादल और आँधी तूफ़ान दिखाई पड़ जाते हैं वे जितनी गति से जिस दिशा की ओर जा रहे होते हैं उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये किस दिन किस देश या प्रदेश में पहुँचेगे !चूँकि आँधी तूफानों की तरह उपग्रहों रडारों की मदद से भूकंपों को नहीं देखा जा सकता है इसलिए भूकंपों के बिषय में ऐसा कोई अंदाजा लगाना भी संभव नहीं हो पाया है | 
    कोविड -19 जैसी महामारी से बहुत लोग पीड़ित हुए एवं काफी लोग मारे भी गए हैं किंतु अभी तक इस महामारी में होने वाले निश्चित लक्षण नहीं खोजे जा सके हैं इसका पूर्वानुमान लगाया जा सका है कि ये महामारी कब तक रहेगी |बिना किसी दवा वैक्सीन आदि के महामारी के संक्रमण से मुक्त होने वाले रोगियों की बढ़ती संख्या देखकर बहुत लोग इसकी दवा या वैक्सीन बनाने का दावा करते देखे जा रहे हैं जो इस महामारी के संक्रमण को और अधिक बढ़ाने में मददगार सिद्ध हो सकता है | 
      इस बिषय में मैंने एक ऐसी तकनीक बिकसित की है जिसके आधार पर महीनों वर्षों पहले घटित होने वाली वर्षा आँधी तूफ़ान एवं महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |उसी के आधारपर मेरा आपसे निवेदन है कि अभी 8 अगस्त 2020 से कोविड -19 का संक्रमण एक बार फिर बहुत अधिक बढ़ने लगेगा और 24 सितंबर तक दिनों दिन बढ़ता चला जाएगा इससे संपूर्ण विश्व प्रभावित होगा | 25 सितंबर 2020 से यह समाप्त होना प्रारंभ होगा जो दिनोंदिन कम होता चला जाएगा और 13 नवंबर को इसके बिलकुल समाप्त होने का समय होगा |
     इस तकनीक से इस बात का भी पता लगाया जा सकता है कि कोविड -19 प्राकृतिक है या नहीं,तथा यह किसी एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है या हवा में ही विद्यमान है !इसके लक्षण क्या हैं ?यह महामारी भविष्य में दोबारा कब आएगी और कितने महीने रहेगी !आदि बातों का एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
        

इनमें किसी दवा वैक्सीन आदि से कोई लाभ नहीं होता है | ऐसी महामारियाँ जब स्वतः समाप्त होने लगती हैं उस समय प्रयोग की जाने वाली औषधियों को क्रेडिट दे दिया जाता है जबकि 

महामारियों की दवा बन ही नहीं सकती है इनका केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि ये शुरू कब होगी और समाप्त कब होगी | महामारियों का पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की व्यवस्था कारण होगी | क्योंकि महामारी के समय में बार बार भूकंप आ रहे हैं आँधी तूफान आ रहे हैं मई जून तक अधिक वर्षा होते देखी गई है इन सबका कोविड-19 के संक्रमण से सीधा संबंध है इस प्रकार की आशंकाएँ और भी बहुत लोगों को हैं किंतु महामारी एवं प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई ऐसा विज्ञान नहीं खोजा  जा सका है जिसके आधार पर भूकंप,वर्षा,आँधी तूफान आदि के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके एवं इनके और महामारी के आपसी संबंध को समझा जा सके |