Thursday, July 29, 2021

आदरणीय एसडीएम साहब                                                                                                                                                सादर  नमस्कार

विषय : बिल्डर राजीवजोशी के द्वारा धोखाधड़ी पूर्वक हमारे घर के मुख्यगेट से सीढ़ियों तक के बीच के रास्ते को पार्किंग बताकर बेचने से रोकने हेतु !

    महोदय,

      विदित हो कि मैं A-7\41 ,सेकेंडफ्लोर ,लालक्वार्टर, कृष्णानगर , दिल्ली -51 में 2017 के नवंबर से रह रहा हूँ | यह फ्लोर मुझे जिसने बेचा है उसने ही यह फ्लोर बिल्डर से ख़रीदा था | हमसे ऊपर वाला फ्लोर किसी और ने खरीदा है जबकि हमसे नीचे वाला फ्लोर बिल्डर ने अपने पास  रखा हुआ है |

     बिल्डिंग के मुख्यगेट से लिफ्ट और सीढ़ियों तक पहुँचने के लिए लगभग तीस फिट लंबा का रास्ता है इस रास्ते में लगभग बीस फिट जगह ऐसी है जिसकी चौड़ाई साढ़े आठ फिट है | ये जगह हम तीनों फ्लैट वालों के लिए कॉमन स्पेस है जिसमें हम तीनों के स्कूटर आदि खड़ा लेने के बाद भी कोई छोटा बड़ा सामान लेकर आने जाने के लिए स्वतंत्र रास्ता बना रह जाता है | 

     बिल्डर राजीव इस कॉमन स्पेस को पार्किंग बताकर

 

पश्चिम दिशा में है यही बिल्डिंग के अंदर आने जाने का मुख्य रास्ता है | तीनों फ्लोरों  में जाने आने के लिए सीढ़ियाँ बिल्कुल आखिर में हैं इसलिए मुख्यगेट से सीढ़ियों तक जाने के लिए चौड़ा रास्ता छोड़ा गया है | रास्ते की जगह कुछ चौड़ी होने के नाते आपसी सहमति से तीनों फ्लोरों के लोग अपने अपने स्कूटर आदि उस जगह में खड़े कर सकते हैं |उसके बाद भी आने जाने का रास्ता इतना बच जाता है कि स्कूटर आदि खड़े करने के बाद भी कोई छोटा बड़ा समान लेकर किसी को आने जाने में भी कोई परेशानी नहीं होगी! यह सुविधा देखकर ही मैंने फ्लैट ख़रीदा था | 

     बिल्डिंग में तीन फ्लैट और पाँच दुकानें घोषित तौर पर बनी हैं इसके अतिरिक्त और कुछ बना नहीं है पाँचों दुकानें एवं थर्ड एवं सेकेंड दो फ्लैट बिल्डर ने बेच दिए हैं फ़स्ट फ्लोर के साथ आने जाने के रास्ते को ही कारपार्किंग बताकर धोखाधड़ी पूर्वक बेचने के प्रयास में बिल्डर लगा हुआ है | उसके इस फ्रॉड को तुरंत रोके जाने की आवश्यकता है अन्यथा बिल्डर के द्वारा किया गया यह फ्रॉड हम तीनों फ्लैटों में रहने वाले लोगों के लिए बड़े झगड़े का कारण बना रहेगा |

       इतना चौड़ा रास्ता दिखाकर दो फ्लैट बेच देने के बाद अब तीसरे फ्लैट के साथ रास्ते वाली जगह को बेचना अपराध है फिर भी रास्ते को पार्किंग के रूप में दिखाने के लिए बिल्डर गुंडागर्दी पूर्वक जिस दिन अपनी कार घुसाकर खड़ी कर देता है तो हम लोगों के आने जाने के लिए मात्र डेढ़ दो फिट जगह ही बचती है | किसी दिन यदि शराब के नशे में कार टेढ़ी खड़ी कर देता है तो वो भी जगह नहीं बचती है | यह घर का मुख्य रास्ता है इसलिए जब कभी कोई छोटा बड़ा सामान लेकर आना जाना पड़ता है तो बिल्डर के साथ झगड़ा करना पड़ता है |अब वह रास्ते को पार्किंग बताते हुए कहता है कि कार खड़ी करने के बाद जगह बचे तो निकलो अन्यथा मत निकलो !निकलने के लिए रास्ता देने के लिए मैंने कोई ठेका नहीं लिया है |        

     हमारे बच्चे उसी रास्ते से स्कूल जाते आते हैं उसी रास्ते की जगह में खड़ी इनकी कार यदि पंचर हो जाती है या  खरोंच गंदगी आदि लग जाती है तो बिल्डर के लोग बच्चों से बदतमीजी करने लग जाते हैं |ऐसी परिस्थिति में बिल्डर की धोखाधड़ी के कारण झगड़े की संभावना आते जाते समय रोज बनी रहती है |

     मान्यवर !आपसे विनम्र निवेदन है कि बिल्डर धोखाधड़ी पूर्वक रास्ते की जगह को कार पार्किंग बताकर न बेच सके | ऐसा समाधान निकालकर इस झगड़े को स्थायी रूप से समाप्त करने में हमारी मदद की जाए | इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि बिल्डिंग के अंदर जाने आने वाले मुख्य रास्ते में भविष्य में भी किसी को जबर्दश्ती अपनी कार खड़ी करने की अनुमति नहीं दी जाएगी | 

             निवेदक :

 डॉ. शेष नारायण वाजपेयी

Friday, July 16, 2021

संस्कृत विश्व विद्यालय ही संस्कृत के सबसे बड़े शत्रु हैं !

       भ्रष्टाचार के कारण कोरोना जैसी महामारियाँ पैदा होती हैं  और भयानक स्वरूप धारण कर पाती हैं |सतर्क सरकारें ऐसी महामारियों को आने से पहले ही रोक सकती हैं पुराने राजा लोग ऐसा किया भी करते थे |

    जिस आधुनिक विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिक लोग कोरोना महामारी के विषय में जो जो अनुमान लगाते रहे वे गलत निकलते रहे | महामारी का स्थाई स्वभाव लक्षण आदि नहीं निश्चित किए जा सके !विस्तार क्षेत्र प्रसार माध्यम आदि नहीं खोजा जा सका |इसपर मौसम तापमान वायु प्रदूषण आदि के प्रभाव को नहीं खोजा  जा सका इसकी अंतरगम्यता नहीं पता लगाई जा सकी | महामारी के शुरू होने से पहले उसके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगा सके !इसके पैदा होने का कारण नहीं खोज सके !कोरोना संक्रमितों की संख्या अपने आप कभी बढ़ जाती है और कभी कम हो जाती है किंतु कब कम होगी कब बढ़ेगी और कब समाप्त होगी !इसका न तो कारण बता सके न ही पूर्वानुमान | तीसरी चौथी आदि लहरें आने की जहाँ तक बात  रही है इसका वैज्ञानिक आधार तो कुछ  है नहीं !अगर तीसरी लहर आ जाएगी तो तीसरी लहर वाली भविष्यवाणी सच मान ली जाएगी  और यदि तीसरी लहर नहीं आएगी तो हमने कंट्रोल कर लिया है इसलिए नहीं आई है |किसी रोग या महारोग की औषधि बना पाना तो तब संभव है जब उस रोग महारोग आदि को ठीक ठीक समझा जा सका हो !रोग को अच्छी तरह से समझे बिना उसकी चिकित्सा कैसे संभव है | 

       ,महामारी का सामना करने के लिए अनुसंधानों के नाम पर हम बिल्कुल खाली हाथ खड़े थे महामारी को लेकर क्या हमारी  कोई तैयारी नहीं थी !ऐसी महामारी कभी आ सकती है मैंने इस विषय में पहले से कुछ क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए था जबकि वैज्ञानिक अनुसंधान आखिर क्या खोजने के लिए हमेंशा चलाए जाते हैं |आत्ममंथन किए जाने की आवश्यकता है | 

   महामारी से निपटने की जिम्मेदारी केवल आधुनिकविज्ञान से जुड़े अनुसंधान कर्ताओं की ही तो नहीं है !क्योंकि किसी भी प्राकृतिक घटना का पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी के लिए अनादि काल से ज्योतिषशास्त्र की पहचान बनी हुई है |ज्योतिष शास्त्र में मौसम एवं महामारियों से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की विधियाँ बताई गई हैं |उसी ज्योतिषशास्त्र  के विद्वान् मानकर जिन्हें सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में रीडर प्रोफेसर जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है | ये उनका दायित्व बनता है कि मौसम और महामारी से संबंधित पूर्वानुमान वे भारत सरकार को आगे से आगे उपलब्ध करवाकर सरकार एवं समाज की मदद करते ! किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यों ?

     इसीप्रकार से वेदवर्णित यज्ञादि विधानों में अनेकों ऐसे यज्ञों का वर्णन मिलता है जिनके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज को मुक्ति दिलाई जा सकती है |वेद विद्वानों के द्वारा समय समय पर ऐसे दावे भी किये जाते रहे हैं | उन्हीं वेदों शास्त्रों आदि के विद्वान् मानकर जिन्हें सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में रीडर प्रोफेसर जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है | महामारी से जब जनता अकेली जूझ रही थी तब ये जिम्मेदारी उनकी भी बनती थी कि ऐसे कठिन समय में यज्ञ यागादिक अनुष्ठानों के द्वारा महामारी पर अंकुश लगाकर इस महा मुसीबत में जनता की मदद करते !उन्होंने ऐसा आखिर क्योंनहीं किया ?

      संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति जैसे पदों पर प्रतिष्ठित किए जाने वाले लोगों में इस जिम्मेदारी को निर्वाह करने का एहसास क्यों नहीं था कि जनता पर आए इतने बड़े संकट के समय उनके विश्व विद्यालयों की भी कोई जिम्मेदारी बनती है | संस्कृतविज्ञान की क्षमता को समझने की उनमें योग्यता नहीं थी या वे इतने लापरवाह एवं अदूरदर्शी हैं या उन्हें ये पता था कि जिन रीडरों प्रोफेसरों की नियुक्तियाँ उनके कार्यकाल में की गई हैं उनमें उन विषयों की योग्यता नहीं हैं जिन पदों पर उन्हें प्रतिष्ठित किया गया हैं इसलिए जनता की ऐसी महामुसीबत में उन्होंने मौन  रहना ही बेहतर समझा है | 

            ऐसे कुलपतियों को नियुक्त करने वाले लोगों की क्या मजबूरी है कि वे अपने अपने कर्तव्यों का पालन करने की क्षमता से विहीन अयोग्य एवं गैर जिम्मेदार लोगों को संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति जैसे बड़े पदों पर प्रतिष्ठित कर देते हैं | उनकी आखिर कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं होनी चाहिए | इतना बड़ा पद उसके अनुसार सैलरी और जिम्मेदारी शून्य !उसका परिणाम जनता को भोगना पड़ता है | ऐसे कुलपतियों के कार्यकाल में विभिन्न पदों पर हुई नियुक्तियों का आधार उनकी योग्यता थी या कुछ और इसकी जाँच क्यों नहीं करवाई जानी  चाहिए !महामारी के समय जनता की मदद करने में जो पूरी तरह असफल हुए हैं इस बात को यूँ ही भुला दिया जाना जनता के पक्ष में कतई ठीक नहीं है | यदि संस्कृत का उत्थान लक्ष्य है तो ऐसे प्रकरणों की न केवल निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए अपितु संस्कृत के उत्थान की राह में रोड़ा बने दोषियों के विरुद्ध पारदर्शिता पूर्वक कार्यवाही भी की जानी चाहिए  |

            आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ चरक संहिता में महामारी प्रारंभ होने से पहले महामारी आने का पूर्वानुमान लगाने की न केवल विधि बताई गई है अपितु महामारी आने से पहले ही महामारी से मुक्ति दिलाने वाले औषधीय द्रव्यों के भी संग्रह का निर्देश दिया गया है | आयुर्वेद के बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों में नियुक्त रीडर प्रोफेसर आदि सरकारी आयुर्वेदज्ञ लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे महामारी जनित रोगों से मुक्ति दिलाते किंतु उनकी तरफ से भी ऐसी कोई भूमिका अदा नहीं की गई |   इसके कारण  तो सभी से पूछे जाने चाहिए   | 

             भारत में जब राजतंत्र था उस समय  ऐसे विषयों के विद्वानों की इस प्रकार की धाँधली नहीं चला करती थी | प्रत्येक विषय के विद्वानों की योग्यता का परीक्षण उस समय डिग्रियों के आधार पर न होकर अपितु खुली समाज में शास्त्रार्थ के द्वारा हुआ करता था | ज्योतिषियों  को मौसम या महामारी जैसी घटनाओं का आगे से आगे सही सही पूर्वानुमान उपलब्ध  करवाना ही होता था |उनके असफल  होने का कारण उनकी अयोग्यता मानी जाती थी | 

               ज्योतिषियों से पूर्वानुमान मिल जाने पर महामारी जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाने की व्यवस्था आगे से आगे की जाती थी  वेदों के विद्वान लोग ऐसे यज्ञ अनुष्ठान आदि आयोजित किया करते थे | जिनसे प्राकृतिक आपदाओं  के प्रारंभ होने से  पूर्व ही उन पर अंकुश लगाने की व्यवस्था की जाती थी | यदि थोड़ा बहुत झटका   महामारियों का  लग  भी जाता था  तो उसके लिए आयुर्वेद के विद्वानों ने आगे से आगे औषधियाँ तैयार करके रखी होती थीं उनसे समय रहते   महामारियों को नियंत्रित कर लिया जाता था   | 

               उस युग में यदि इतनी सतर्कता न बरती जाती   तब तो सृष्टि आगे ही नहीं बढ़  पाती  ! उस समय न तो इतनी अत्याधुनिक मशीने थीं  | जाँच के लिए इतने उत्तम  संसाधन  नहीं थे | वैक्सीन  जैसी व्यवस्था  की   परिकल्पना ही नहीं थी !ऐसी परिस्थिति में सृष्टि का आगे बढ़ पाना कैसे संभव था |

 सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष विभागों में ज्योतिष शास्त्र को पढ़ाने की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों में ऐसे अनुसंधान करने की योग्यता नहीं है क्या ? क्या सोर्स सिफारिश और घूसखोरी के आधार पर अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर कुछ छात्रों का भविष्य बर्बाद करने के उद्देश्य से प्रतिष्ठित कर दिया गया है ? इतनी इतनी भरी भरकम सैलरी उठाने वाले  संस्कृत विश्वविद्यालयों के कुलपतियों  ज्योतिषविभागाध्यक्षों प्रोफेसरों रीडरों की इतनी बड़ी लापरवाही पर सरकारों का मौन संशय पैदा करता है | 

 

इतनी बड़ी चूक होने के 

   




            संस्कृत विश्व विद्यालयों  में कुलपति  रीडर   प्रोफेसर आदि पदों पर भ्रष्टाचारपूर्वक जिनकी नियुक्तियाँ की जाती हैं  उन अयोग्य  लोगों में महामारी  का पूर्वानुमान लगाने एवं यज्ञादि प्रयासों से उस पर अंकुश लगाने की योग्यता ही नहीं होती है | कुलपति  पदों पर विराजमान अयोग्य एवं कर्तव्यभ्रष्ट लोग संस्कृत को इतना दुर्बल सिद्ध कर देते हैं  कि महामारी में भारत के प्राचीन विज्ञान की कोई भूमिका  दिखाई ही नहीं पड़ती है | 

             ज्योतिषविभाग हैं उनके रीडर प्रोफेसर हैं जिन्हें सरकारी कोष से भारी भरकम धनराशि सैलरी के रूप में दी जाती है | ऐसे विश्व विद्यालयोंके कुलपतियों से लेकर शिक्षकों तक की नियुक्तियों में इतना अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त है कि  अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा  दिया जाता है जो कुछ करने लायक नहीं होते हैं |भ्रष्टाचार का यह ज्वलंत प्रमाण है कि भारी भरकम सैलरी लेने वाले संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष  विभागों के रीडर प्रोफेसरों के द्वारा कोरोना महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा  सका है |विज्ञान के नाम पर बातें  हों किंतु  महामारी के शुरू और समाप्त होने का कारण  खोजै नहीं जा सका है    का पूर्वानुमान लगाना ही इससे बचाव का एक मात्र विकल्प है | पूर्वानुमान लगाना आधुनिक विज्ञान के बश का होता तो वो अबकी बार ही लगा लेते | 

    

      संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति पद पर नियुक्त लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने विश्व विद्यालयों में वे ऐसे विषयों पर अनुसंधान करवावें आवश्यकता पड़ने पर देश और समाज के काम आवें | भारत वर्ष में प्राचीन काल में भी तो प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ आदि घटित होती रही हैं तब तो आधुनिक विज्ञान नहीं था | उस समय तो ऐसी संकटकालीन परिस्थितियों से मुक्ति दिलाने की संपूर्ण जिम्मेदारी प्राचीन विज्ञान पर होती थी और वे ऐसे संकटों से जनता को बचाने का रास्ता भी निकाल लिया करते थे | उसी प्राचीन विज्ञान पर इसी उद्देश्य से अनुसंधान करवाना संस्कृत विश्व विद्यालयों का कर्तव्य होता  है | ऐसे संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति पद नियुक्त किए गए लोगों से ये अपेक्षा होती है कि वे इसके लिए  करेंगे किंतु प्राकृतिक आपदाओं  और महामारियों के समय ऐसे पदों पर प्रतिष्ठित लोगों का मौन एवं निष्क्रिय  बने रहना  दुखद है | 

            सभी धर्मों संप्रदायों ने के शीर्ष आचार्य अपने अपने आराध्य  को सर्व सक्षम बताते थकते नहीं हैं और अपने को सिद्ध साधक संत आदि पदों पर प्रतिष्ठित कर लेते हैं | उनमें से कुछ आचार्य लोग ऐसे भी होते हैं जो जनता के बड़े बड़े दुखों रोगों संकटों आदि को दूर करने में अपने को इतना अधिक सक्षम मानते हैं कि बड़े बड़े जनता दरवार लगवाकर उनके दुखों रोगों संकटों आदि से मुक्ति दिलाने का दंभ भर रहे होते हैं | महामारी से जूझती जनता को इस आपदा से मुक्ति दिलाने का उनका भी दायित्व बनता है किंतु उनकी ओर से भी ऐसे कोई प्रभावी प्रयास होते नहीं दिखे जिनके कुछ जनता को लाभ भी हुआ हो जबकि उनके जीवनयापन समेत संपूर्ण सुख सुविधाओं की व्यवस्था का भी संपूर्ण खर्च जो उनके अनुयायी वहाँ करते हैं वे भी इसी समाज के अंग हैं वे भी महामारी से पीड़ित हुए हैं | उन्हें भी इस महामारी ने बहुत दुःख दिए हैं ऐसी महामुसीबत में जनता की मदद करने का कुछ दायित्व  तो उनका भी बनता ही है | भविष्य में संभावित महामारी में जनता की मदद करने के लिए कुछ संकल्प तो उन्हें भी लेने ही चाहिए  |

      सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति हमेंशा से रही है इस प्रवृत्ति के कारण योग्य पदों पर अयोग्य लोगों के बैठने का रास्ता आसान बना रहता है |ऐसान्यूनाधिक हर युग में होता रहा है फिर ये तो कलियुग है | महामारी के समय ये बात खुलकर सामने दिखाई पड़ी है |सरकार के जो विभाग जिन कार्यों के उद्देश्य से जिन विषयों का अनुसंधान करने के लिए बनाए गए हैं |यदि उन्हीं विभागों से संबंधित कार्यों की आवश्यकता पड़ने पर अपनी भूमिका का निर्वाह करने में वे असफल  हुए हैं और कोरोना महामारी के समय उन विभागों से आशानुरूप उस प्रकार की मदद नहीं मिल पाई  है तो कहीं न कहीं कोई बड़ी चूक हो रही है जिसका दंड निरपराध जनता को प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के रूप में भुगतना पड़ता है | भविष्य में ऐसी परिस्थिति न पैदा हो इसके लिए सरकारों को अभी से गंभीरता पूर्वक सभी सक्षम विधाओं को सम्मिलित करके कोई ऐसी वैज्ञानिक विधा विकसित करनी अवश्य चाहिए ताकि भविष्य में जब कभी दूसरी महामारी आवे तब सरकार एवं समाज के पास अपने पास बचाव के लिए कुछ तो हो अबकी तरह बिल्कुल खाली हाथ न हो | 

      आधुनिक विज्ञान हो या प्राचीन विज्ञान सरकार अनुसंधानों के नाम पर सभी पर खर्च करती है | निरपराध जनता टैक्स रूप में अपने खून पसीने की कमाई से जो धन सरकारों को देती है जनता का वो धन सरकारें जिन जिन विभागों पर व्यय करती हैं वे विभाग जनता की मदद करने में कितने सफल हो पाते हैं |इस बात का परीक्षण पारदर्शिता पूर्वक करना सरकारों की अपनी जिम्मेदारी है | जनता के प्रति यह जवाबदेही  सरकारों  की बनती है | 

    बिना हथियारों के महामारी से लड़ने या उस पर विजय प्राप्त करने का दावा कितना भी कर लिया जाए किंतु सच्चाई यही है कि पिछले डेढ़ वर्ष में कोरोना महामारी के विषय में हमारे वैज्ञानिकों के द्वारा जितने भी अनुमान लगाए जाते रहे वे सभी गलत निकलते रहे | महामारी के स्वभाव के विषय में जो भी बोला जाता रहा वो सच न होने के कारण ही बाद में महामारी के  स्वरूप बदलने की बात बोली  जाती रही जबकि महामारी के  वास्तविक स्वरूप के विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था | 

    
कोरोना महामारी हो या वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ एक बार प्रारंभ होने के बाद अपनी मर्जी से ही जाती  हैं और ये पहले धक्के में ही जितना नुक्सान करना  होता  है वो कर देती हैं बाद में तो भूकंपों की तरह कुछ समय तक हल्के झटके लगते रहते हैं | महामारी भी अपने समय से ही जाएगी ! इसके समाप्त होने का संभावित समय क्या होगा !इसे खोजे जाने की आवश्यकता है |

       महामारी के विषय  वास्तविक अनुसंधानों से यूं ही बचा जाता रहेगा और संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण कोरोना नियमों का पालन न करने को मान लिया जाएगा और संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण कोविड नियमों का पालन आदि उपायों को माना जाता रहेगा और तीसरी चौथी आदि लहरों की निराधार अफवाहें इसी प्रकार से उड़ाई  जाती रहेंगी | उन अफवाहों के अनुशार महामारी संक्रमितों की संख्या यदि बढ़ने लगी तो  भविष्यवाणी को सच मान लिया जाएगा और तीसरी लहर न आई तो वैक्सीन आदि प्रयासों से उसे कंट्रोल कर लिया माना जाएगा | समय प्रभाव से महामारी जिस दिन अपने  आप से ही समाप्त होगी उस दिन चिकित्सकीय प्रयासों को इसका श्रेय देकर इस प्रकरण को हमेंशा हमेंशा के लिए बंद कर दिया जाएगा !इस लापरवाही की कीमत भविष्य में कोई दूसरी महामारी आने पर जनता को ही चुकानी पड़ती है कोरोना महामारी के समय भी ऐसा ही हो रहा है और हमेंशा से ऐसा ही होता चला आ रहा है |                

           भारत के प्राचीन वेद विज्ञान की दृष्टि से ज्योतिष के द्वारा महामारी समेत समस्तप्राकृतिक आपदाओं का अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है  | इसी प्रकार से वेद में वर्णित यज्ञ विधियों से ऐसी समस्त प्राकृतिक आपदाओं  पर न केवल अंकुश लगाया जा सकता है अपितु पूर्वानुमान समय से पता लग जाएँ तो इन्हें रोका भी जा सकता है | वर्तमान समय में भारत सरकार के द्वारा वेद वैज्ञानिक अनुसंधानों को बहुत प्रोत्साहित किया जा रहा है बहुत धनराशि खर्च की जा रही है  | इसके बाद भी सभी संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों  के रीडर प्रोफ़ेसर  आदि लोग महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सके और वेदविभागों  के रीडर प्रोफ़ेसर  आदि लोग महामारी पर अंकुंश लगाने के लिए कोई प्रभावी यज्ञ आदि उपाय नहीं कर सके | यहाँ तक कि संस्कृत विश्व विद्यालयों के कुलपति  पदों पर विराजमान लोगों के द्वारा भी महामारी  का पूर्वानुमान लगाने या इस पर अंकुश लगाने के लिए  कोई  प्रयास नहीं किए गए | ये दुखद है |


Saturday, July 10, 2021

k-71

माननीय थानाध्यक्ष महोदय जी (कृष्णानगर)                                                                                          
                                                                    सादर नमस्कार !
 
विषय : बिल्डरराजीव जोशी एवं उसके परिवार द्वारा हमारे ऊपर किए गए हमले के बिषय में सुरक्षा हेतु !
 
       महोदय
 
   मैं A-7\41 में कृष्णा नगर दिल्ली के सेकेंड फ्लोर में अपने बच्चों के साथ रहता हूँ! परिवार में हमारी पत्नी एवं तीन बेटियाँ और एक बेटा है |इसी बिल्डिंग के फस्ट फ्लोर में बिल्डर राजीव जोशी का फ्लैट है ! उसमें उनका परिवार रहता है |
    बिल्डर राजीव जोशी इसी बिल्डिंग के अंदर मुख्यगेट से सीढ़ियों के रास्ते को धोखाधड़ी पूर्वक कार पार्किंग बताकर बेच रहा है | इससे मुझे आने जाने में समस्या होगी इसलिए इसके विरुद्ध मैंने ऑनलाइन कंप्लेन पहले से दे रखी है |हमारे कंप्लेन करने से चिढ़े बिल्डर राजीव जोशी के लोग पिछले कई दिन से हमारे साथ मारपीट करना चाह रहे थे किंतु हमने झगड़ा करने का मौका ही नहीं दिया | 
     अपनी उसी कंप्लेन के संदर्भ में कल अर्थात 26-7-2021की शाम मैं कृष्णानगर थाने गया था बच्चे घर पर ही थे ! इसीबीच शाम4बजकर23मिनट पर कुछ लोगों के साथ राजीव जोशी की पत्नी और उनके दामाद भूपेंदर ने आकर हमारा दरवाजा खटकाकर गाली गलौच करते हुए दरवाजा खोलवाने की कोशिश करने लगे तो हमारे बच्चे डर गए और वे लोग हमें मार देने की धमकी देकर चले गए | बच्चों ने घबड़ाकर हमें फोन किया मैंने कहा तुम परेशान हो मैं किसी काम से कहीं आया हूँ |इसके कुछ देर बाद हमारे पडोसी का फोन आयाकि वो लोग कह रहे हैं कि तुम्हें घर घुसने नहीं देंगे | मैं अपने एक मित्र के साथ 6 \ 24 बजे घर घुसा और सीढ़ियों से अपने फ्लोर पर जा रहा था उधर फस्ट फ्लोर पर घात लगाए जोशी के लोग बैठे थे इन्होंने हमें मारने की नियत से गाली गलौच करते हुए घसीट कर हमें अंदर ले जाने के लिए दौड़े तो मैं दौड़कर अपने फ्लोर पर पहुँच गया वहाँ कैमरा लगा हुआ था ये लोग गाली गलौच करके हमें अपने दरवाजे पर बुलाते रहे मैं अंदर चला आया ! 6 \20 पर ये हमें बुलाने आये तो मैं नहीं गया | 
    6\ 38बजे दो तीन लोगों के साथ खुद राजीव जोशी हमारे घर आया साथ में उसका दामाद भूपेंदर और जोशी की पत्नी भी थी और हमारे बच्चों एवं हमारे मित्र के सामने हमें गंदी गंदी गालियाँ देते हुए हमें जान से मारने की धमकी देने लगा लगा | जोशी की पत्नी यह कहकर गई है कि मैं अपने कपड़े अपने हाथों से फाड़कर रेप का केस लगवा दूँगी | उधर जोशी गाली देता रहा और हमें मरवा देने की धमकी देकर 6.55 पर हमारे घर से निकले हैं |     हमारे दरवाजे पर घटी सारी घटना के वीडियो साक्ष्य रूप में हमारे पास हैं | 
     थाने से बीटअफसर जगन्नाथ जी हमारे बोलाने पर आए चौकी पर हमें दोनों को ले गए वहाँ भी जोशी हमें गाली दे रहा था जिसपर जगन्नाथ जी ने उसे डाँटा तब शांत हुआ और कहा कि अब गाली दी या झगड़ा किया तो मैं बंद कर दूँगा यह कह कर जोशी और हमें भेज दिया | 
      लाल क्वाटर वाले रोड पर मैं चला आ रहा था वहाँ एक आदमी मिला उसने कहा कि जोशी से पंगा लेना तुम्हें बहुत महँगा पड़ेगा तू बहुत जल्दी मार दिया जाएगा |तेरे दरवाजे पर कैमरे न लगे होते तो आज ही तेरा काम तमाम कर दिया जाता | 
    श्रीमान जी !राजीव जोशी के द्वारा दी या दिलाई जा रही धमकियों के अनुशार मेरे या मेरे बच्चों के साथ कभी भी कोई हादसा किया या करवाया जा सकता है जिससे हम और हम  और  हमारे बच्चे भयभीत हैं | अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि राजीवजोशी एवं उसके परिवार के लोगों के द्वारा हमारे साथ की जा रही गुंडागर्दी से हमारी एवं हमारे सुरक्षा की जाए | 
 
                                                                                                       निवेदक 
    
                         
      
 


  

   
 
 4\23 पर वो आईं  
 
जोशी 6.38 पर आए और 6.55 पर गए हैं  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 










माननीय थानाध्यक्ष महोदय जी (कृष्णानगर)                                                                                          
                                                                    सादर नमस्कार !
 
विषय :बिल्डिंग की छत पर रखी हमारी सामूहिक पानी की टंकियों को टॉप फ्लोर वालों के द्वारा काटकर बेचदिए जाने के विषय में दोषियों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही करवाने हेतु  !
 
   महोदय,

      k-71,दुग्गलबिल्डिंग, छाछी बिल्डिंगचौक,कृष्णानगर दिल्ली 51 में 16 फ्लैट और 4 दुकानें हैं इसी में हम लोगों के भी फ्लैट्स हैं |इसी बिल्डिंग की टॉप फ्लोर का फ्लैट नं 15 सोनू गुप्ता का है | फ्लैट नं 13 और फ्लैट नं 16 राजेंदर शर्मा के हैं | इसकी छत पर सभी फ्लैटों के हिसाब से पानी की 16 टंकियाँ सन 1998 में जबसे बिल्डिंग बनी है तभी से सामूहिक रूप से रखी हुई थीं | इसके अतिरिक्त कुछ लोगों ने अपनी पर्सनल टंकी भी रख ली थी |

      राजेंदर शर्मा और सोनू गुप्ता कुछ वर्ष पहले कहने लगे कि हमने छत खरीद ली है इसलिए छत पर रखी टंकियाँ  हटा लो अन्यथा हमें टंकी रखने का किराया दीजिए | हम लोगों ने छत की रिपेरिंग तो करवा दी टंकियाँ रखने का किराया नहीं दिया | पैसे न मिलने पर राजेंदर शर्मा पहले डराता धमकाता रहा बाद में टंकियों में गंदी चीजें डालने लगा और टंकियाँ फाड़ देने एवं पाइप काट देने की धमकी देता रहा | गुंडागर्दी पूर्वक हमेंशा मारपीट पर उतारू रहता है | छत पर जाने के दरवाजे पर सामूहिक ताला लगा हुआ था जिसकी ताली सबके पास थी उस ताले को बदलकर उसने अपना ताला लगा दिया और टॉप फ्लोर वालों के अतिरिक्त सबका छत पर जाना बंद करवा दिया | इससे तंग होकर हम लोगों ने टंकियों से आ रहे गंदे पानी का उपयोग करना बंद कर दिया !टंकियाँ और पाइप वैसे ही लगे रहे छत पर हम लोगों का आना जाना संभव था ही नहीं |

      राजेंदर शर्मा अपने को कभी सीबीआई अधिकारी तो कभी एसएचओ बताकर धमकाता है !राजेंदर शर्मा ने कुछ अफसरों के जाली आईडीकार्ड बनवा रखे हैं | कंप्लेन करने पर जो लोग आतें हैं ये अपना वही कोई न कोई कार्ड दिखाकर डरा धमका कर लौटा देता है | आस पास भी इसने पुलिस आफीसर की ही पहचान बना रखी है हर किसी को उठाकर बंद कर देने की धमकी देता है लोग इससे डरते हैं | इसीलिए  फ्लैटों  में रहने वाले लोगों में लगभग 10 घरों का पानी पिछले कई वर्षों से इसने बंद कर रखा है | भयवश कोई कंप्लेन नहीं करता है यदि कोई कंप्लेन करता भी है तो कोई कार्यवाही नहीं होती है | इसलिए कुछ लोग अपने फ्लैट बेचकर चले गए हैं  कुछ ने किराए पर उठा दिए हैं कुछ  लोग जो बचे हैं उनमें से कुछ राजेंदर शर्मा की गुंडागर्दी को डरते हैं इसलिए कंप्लेन नहीं करते हैं और न ही गवाही देते हैं |कई लोग नए आए हैं उन्हें ये बातें पता भी नहीं हैं| पानी उनके यहाँ भी नहीं आता है |  अभी  पता लगा कि लॉकडाउन के समय राजेंदर शर्मा और  सोनूगुप्ता ने हम लोगों की टंकियाँ और पाइप कबाड़ी को बेच दिए हैं |

      श्रीमान जी ! हम लोग तब से  छत पर गए ही नहीं हैं  जबकि राजेंदर शर्मा और  सोनूगुप्ता आदि की छत पर जाने आने से लेकर न केवल सभी गतिविधियाँ चालू हैं अपितु वे सारे अपने  काम कर ही रहे हैंउनकी पानी की टंकियाँ भी चालू हैं  | वही ऊपर रहते हैं उनके अतिरिक्त जब हम लोगों का आना जाना नहीं है तो किसी और दूसरे का आना जाना कैसे संभव हो सकता है | पानीटंकियों के पाइप कटे होने के कारण हम दस लोगों के फ्लैटों में अभी तक टंकियों का पानी नहीं आ रहा है न्याय की आशा में कार्पोरेशन के पानी से किसी तरह काम चलाया जा रहा है |

        अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि दोषियों के विरुद्ध कठोर दण्डात्मिका कार्यवाही की जाए | इसके साथ ही राजेंदर शर्मा एवं सोनूगुप्ता के खर्चे से ही हम सभी लोगों की टंकियाँ रखवाई जाएँ एवं पानी का सारा सिस्टम ठीक करने का खर्चा भी इन्हीं से वसूला जाए |                                                          निवेदक :

Wednesday, July 7, 2021

संस्कृत विश्व विद्यालयों में

                                                    महामारीविज्ञान  एक खोज  ! 

      कोई भी महामारी कभी प्रत्यक्ष तो दिखाई पड़ती नहीं है उसे लक्षणों के द्वारा ही पहचाना जाता है महामारी का प्रभाव जब जीवन पर पड़ने लगता है तब बहुत सारे लोग किसी एक प्रकार के रोग से रोगी होने लगते हैं उनमें से कुछ की मृत्यु होने लगती है | ऐसी घटनाओं पर तब रिसर्च शुरू किया जाता है जब दिन प्रतिदिन बहुत लोग संक्रमित होते जा रहे होते है और उनमें से कुछ प्रतिशत लोग मरना भी शुरू हो चुके होते हैं | रिसर्चों में तो महीनों वर्षों लग जाते हैं उसके बाद भी कभी कभी कोई निष्कर्ष निकलता है और कई बार नहीं भी निकलता है | उस समय किया गया संपूर्ण प्रयोग असफल हो जाता है | ऐसे समय तत्काल प्रारंभ किया गया रिसर्च उस समय के लिए कितना काम आ सकता है ये सोचने का विषय है |

     ऐसे संकट काल में चुप तो बैठा भी नहीं जा सकता है इसलिए स्वास्थ्य वैज्ञानिकों को कुछ न कुछ तो रिसर्च के नाम पर करना और बताना ही पड़ता है | उस कच्चे पक्के रिसर्च से जनता  को मदद तो  कुछ  मिलती नहीं है कई बार अफवाहें जरूर फैलाई जाने लगती हैं जो जनता की मानसिक समस्याएँ बढ़ने वाली सिद्ध होते देखी जाती हैं जबकि रिसर्च के नाम पर वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई वे बातें जिन्हें सोच सोच कर जनता परेशान  होती रही थी वे बाद में गलत निकल जाती हैं |  

       रिसर्च के नाम पर कुछ आँकड़े अनुमान अंदाजे तीर तुक्के आदि भिड़ाए जाते हैं जो सही और गलत दोनों निकलने की संभावना अंत तक बनी रहती है इसलिए ऐसी आधी अधूरी बातों का तब तक प्रचार प्रसार नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि उनकी सच्चाई का निश्चय न हो जाए |निश्चय होने पर भी वैज्ञानिकों को अपनी बातें गुप्त रूप से सरकारों  को देनी चाहिए !सरकारों को चाहिए  कि महामारी के विषय में विभिन्न चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसंधानों से प्राप्त मत मतांतरों को विशेषज्ञों के साथ चर्चा पूर्वक निर्णय लिया जाना चाहिए कि इनमें से कौन सी बात जनता को बतानी उचित है कौन सी नहीं है | उचित अनुचित का विचार करके ही ऐसी जनता के लिए जरूरी बातों को को ही सोच समझकर जनता को बताया जाना चाहिए | 

    महामारी जैसे बड़े संकट काल में जिसे जो मन आवे रिसर्च के नाम पर वही बोलना शुरू कर दे और मीडिया उसे प्रसारित कर दे |  अगले दिन कोई दूसरा कुछ और दूसरा बोलना शुरू कर दे मीडिया उसे भी प्रसारित कर दे ऐसे और भी कुछ वैज्ञानिक अपनी अपनी बातें बोल सकते हैं उनका भी भी प्रसारण होता जाएगा | वैज्ञानिकों के ऐसे बिचार कई बार एक दूसरे से न केवल भिन्न होते हैं अपितु विरोधी भी भी होते हैं उन परस्थितियों में जनता किसकी बात को सही और किसकी बात को गाल मन कर किसका अनुशरण करे और किसका न करे | ये रिसर्चें जिस जनता को मदद पहुँचाने के लिए की जाती हैं वैज्ञानिकों को भी अपनी बात यह सोचकर बोलनी चाहिए कि उनकी कही हुई बात संकट से जूझती जनता की कठिनाइयाँ कुछ कम करने में सहायक हो | इसलिए महामारी जैसे संकट काल में रिसर्च से प्राप्त उचित एवं आवश्यक अनुभवों को सरकार के द्वारा किसी एक मंच से देने की व्यवस्था करनी चाहिए | 

                             महामारी का अचानक अनुभव होने पर किए जाने वाले उपाय !

     ऐसे समय संक्रमितों को देने के लिए विशेषज्ञों के द्वारा कुछ औषधियाँ  चिन्हित की जाती हैं बचाव के लिए कुछ उपाय खोजे बताए और अपनाए जाते हैं | यह सबकुछ करने के बाद भी  जब संक्रमितों की संख्या और मृतकों की संख्या तेज गति से बढ़ती  जा  रही  होती है  | रोग का स्वभाव  लक्षण आदि  किसी को पता नहीं होते हैं | इसलिए ऐसे रोगों पर अंकुश लगाने लायक उत्तम औषधियों का  निर्माण  होना संभव नहीं हो पाता है | निरंतर अनुमान औषधि प्रयोग आदि कुछ समय तक निष्फल  होते रहने के बाद  पता लग पाता है कि महामारी आ गई है | महामारी विशेषज्ञों के लिए भी अब इतनी जल्दी महामारी पर अंकुश लगाना संभव ही  नहीं होता है | 

            महामारी के आगमन का पता तीन प्रकार से लगता है पहला तो गणितीय पद्धति से समय के संचार का अनुसंधान करके वर्षों पहले पूर्वानुमान  लगाया जा सकता है | दूसरा प्रकृति के प्रत्येक कण में हो रहे महामारी जनित समस्त प्राकृतिक परिवर्तनों का संयुक्तअनुसंधान करके संभावित महामारी का पूर्वानुमान कुछ महीने पहले लगाया जा सकता है | वर्षों नहीं तो महीनों पहले भी  महामारी के विषय में यदि  पूर्वानुमान पता लगा लिया जाए तब तो कुछ सावधानियाँ बरत  कर कुछ आहार विहार रहन सहन साधना संयम आदि के माध्यम से अपने जीवन में कुछ स्वास्थ्य के अनुकूल बदलाव लाकर महामारी से बचाव के उपाय किए जा सकते हैं   | 

      इसके अतिरिक्त तीसरा प्रकार तो तब ही पता लग पाता है जब महामारी से भारी संख्या में लोग संक्रमित होने या मरने लगते हैं | ऐसे समय में न तो महामारी के विषय में किसी को कुछ पता होता है और न ही महामारी की चिकित्सा के विषय में किसी को कुछ पता होता है | बचाव के उपायों के विषय में भी कोई जानकारी होती है | महामारी से बचाव के लिए क्या खाया जाए क्या न खाया जाए !कैसे रहा जाए कैसे न रहा जाए !महामारी के समय किस मौसम में बचाव के लिए क्या उपाय करने आवश्यक हैं | तापमान एवं वायुप्रदूषण यदि बढ़ेगा तो महामारी से बचाव के लिए क्या करना चाहिए और कम होगा तो क्या करना चाहिए   आदि विषयों में किसी को कुछ पता नहीं होता है  | महामारी के लक्षणों स्वभाव आदि के विषय में बिना किसी जानकारी के प्रभावी चिकित्सा करने या औषधि निर्माण करके पहले से रख लेने की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है | ऐसी परिस्थिति में लोकदृष्टि में बने रहने के लिए उपायों या बचाव के नाम पर कुछ भी क्यों न कर लिया जाए किंतु ऐसे उपायों से परिणाम प्रदान करने तर्क संगत एवं वैज्ञानिक नहीं होते हैं | 

        महामारी प्रारंभ होने के समय समाज एवं सरकारों को केवल स्वास्थ्य संकट से ही नहीं जूझना पड़ता है अपितु जीवनयापन के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री  आदि जीवनोपयोगी  वस्तुओं का  संग्रह  करने की बड़ी जिम्मेदारी होती है | बेरोजगारी के कारण अर्थसंकट  से जूझती जनता के बड़े वर्ग को  जीवनोपयोगी  आवश्यक  वस्तुएँ   उपलब्ध   करवाने  की सरकारों को अतिरिक्त  जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है | चिकित्सा  की दृष्टि से आवश्यक  तैयारियाँ  करने  संसाधन उपलब्ध करवाने  की व्यवस्था सरकार को ही करनी  पड़ती है  | 

              महामारी के समय कई आवश्यक  तैयारियों में कमी दिखाई पड़ती है क्योंकि उनकी अतिरिक्त व्यवस्था पहले से करके नहीं रखी गई होती है  | ऐसी परिस्थिति में रखी भी जाए तो कितनी और कब तक के लिए यह भी तो बहुत बड़ा प्रश्न है !क्योंकि खाद्य सामग्री हो या औषधीय द्रव्य या निर्मित औषधियाँ  ये बहुत अधिक समय तक संग्रह करके सुरक्षित नहीं रखी जा सकती हैं  | एक्सपायरी डेट तो इनकी भी होती है | उस समय यदि इनकी आवश्यकता नहीं पड़ी तो बहुत  में ऐसी आवश्यक वस्तुएँ बर्बाद होते देखी जाएँगी | ऐसी परिस्थिति में   जनता से लेकर सरकार तक सभी के लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण होता है कि महामारी में कब तक के लिए व्यवस्था करके रख  लेना  श्रेयस्कर होगा  | इसलिए एक बार महामारी  प्रारंभ होने के बाद  महामारी  जनित संक्रमण कम होने की संभावना कब है और बढ़ने की संभावना कब होगी  और इसके समाप्त होने की संभावना कब होगी   इस प्रकार का पूर्वानुमान जनता से लेकर सरकारों   तक  को  पहले   से  पता   होना चाहिए |  

         किसी घर में दस सदस्य रहते हों  उनके लिए तीन शौचालय बने हों तो सामान्य दिनों में उनका काम उन तीन शौचालयों से आराम से चला करता है  किंतु  संयोगवश कभी यदि ऐसा समय आ जाए  कि उस घर के दसों सदस्यों को एक साथ दस्त आने लगें  तो उनके  लिए वे तीन शौचालय  बहुत कम पड़ जाएँगे | इसका यह मतलब नहीं कि  शौचालय कम बनें हैं   अपितु    इस समय सबको एक साथ    दस्त  होने  लगेंगे  इस बात का  पूर्वानुमान पता न होने से   ऐसी समस्या पैदा  होती है यदि  समय रहते इस प्रकार का पूर्वानुमान पता होता   तो कुछ वैकल्पिक व्यवस्था सोचने  का समय मिल सकता था | 

      महामारी के समय की तैयारियों की भी यही    स्थिति है | इसके लिए जनता से लेकर सरकारों तक को बहुत अधिक  दोषी नहीं  कहा जा सकता  है दोष तो तब होता जब महामारी के आगमन के विषय में पूर्वानुमान पता होने पर भी जनता स्वयं में सतर्क न होती   और सरकारों ने आगे से आगे व्यवस्था न जुटाई होती |

                             महामारी का अचानक सामना होने पर कैसे हो सकता है बचाव  !

         जिस प्रकार से अचानक कोई बड़ा भूकंप आ जाए या किसी क्षेत्र में अचानक भीषण बाढ़ आ जाए अथवा किसी देश प्रदेश में भयंकर हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि आ जाए तो उससे प्रभावित लोग अपने बचाव के लिए जो जो कुछ कर पाते हैं वह केवल प्रयास ही होता है उससे बचाव हो पाना बहुत कठिन होता है  क्योंकि नुक्सान तो पहले झटके में ही हो चुका होता है |मूल घटनाओं के बाद में तो कुछ समय तक ऑफ्टरशॉक्   आते रहते हैं | कोरोना महामारी के समय यही तो हुआ है | एक ओर बचाव के नाम पर कुछ कुछ उपाय किए जाते रहे तो दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होते और मरते रहे | महामारी से संबंधित आवश्यक जानकारी एवं तैयारियों के अभाव में किसी युद्ध क्षेत्र में कोई निरस्त्रयोद्धा  जिस प्रकार से अपने प्राणों की बाजी लगाकर युद्ध क्षेत्र में उतरता है | वही स्थिति कोरोना महामारी से जूझते हमारे कोरोना योद्धाओं की  हो रही थी |इसीलिए तो उनमें से कई के बहुमूल्य जीवन  समाज सेवा में खोने पड़े हैं |

       संपूर्ण प्रकृति पर उसका प्रभाव पड़ता तो है ही किंतु पहचान पता न होने के कारण न उसका पूर्वानुमान पता लगाया जा पाता है और न ही प्राकृतिक वातावरण में महामारी की उपस्थिति को पहचाना जा पाता है जबकि महामारी सारे वातावरण को अपने प्रभाव में ले चुकी होती है और संसार की प्रत्येक वस्तु संक्रमित  हो चुकी होती है हम जो कुछ खाते पीते आदि हैं वह सब कुछ संक्रमित ही होता है | यहाँ तक कि हवा पानी भी महामारी काल में संक्रमित हुए बिना रह नहीं पाता है  | 

      महामारी का प्रभाव सब पर एक समान पड़ते देखा जाता है |कोई  महामारी एक एक व्यक्ति को खोजकर उसे संक्रमित करती हो ऐसा नहीं होता है  |  प्राकृतिक परिवर्तनों से परिचित न होने के कारण महामारी से संक्रमित पेड़ों पौधों पहाड़ों नदियों तालाबों आदि की महामारीजनित पीड़ा को हम पहचान नहीं पाते हैं यहाँ तक कि संक्रमित जीव जंतुओं की महामारी जनित पीड़ा से हम बहुत कम परिचित हो पाते हैं | हमें तो ये तभी पता लग पाता  है  जब मनुष्य वर्ग महामारी से  संक्रमित होता  है |

       ऐसी परिस्थिति में प्रकृति और जीवन संपूर्ण रूप से समय पर आश्रित होता है इसलिए प्रकृति और जीवन को ठीक ठीक समझने के लिए समय के प्रभाव एवं समय के संचार की अच्छी समझ होना बहुत आवश्यक है |महामारी की संक्रामक क्षमता का प्रभाव समयशास्त्र के द्वारा  ठीक ठीक समझे बिना किसी महामारी से निपटने की तैयारी कर पाना कैसे संभव है |   इसके बिना महामारी के विषय में किए जाने वाले किसी भी प्रकार के अनुसंधान सार्थक कैसे हो सकते हैं | 

             जिस प्रकार से सभी व्यक्तियों वस्तुओं स्थानों परिस्थितियों कार्यों संबंधों पद एवं प्रतिष्ठा आदि पदों  के पैदा होने और समाप्त होने का कारण समय होता है  उसी प्रकार से महामारियों के  भी शुरू और समाप्त होने का कारण समय ही है |   कुल मिलाकर समय जनित  घटनाओं का वेग  समय के साथ ही बढ़ता और कम होता है |

     ऐसी परिस्थिति में  समय की गति को समझने का विज्ञान  न होने  के कारण  महामारी के विषय में अभी तक कुछ भी  पता नहीं लगाया जा सका है |  महामारी शुरू क्यों हुई कब हुई समाप्त कब होगी महामारी संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने घटने का कारण क्या है ये किसी को न पता है  और न ही भविष्य में कभी पता लगाया जा सकेगा | वर्तमान समय  में प्रचलित वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति से ऐसा कर पाना कभी संभव भी नहीं है | 

       समयविज्ञान की जानकारी न होने के कारण कोरोना के शुरू और शांत होने के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | बिना किसी प्रयास के संक्रमितों की संख्या बढ़ने और घटने का कारण नहीं खोजा जा सका है | महामारी के वास्तविक स्वभाव को न समझपाने के कारण ही महामारी के स्वरूप बदलने का भ्रम होते देखा जा रहा है | महामारी का विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है अंतरगम्यता कितनी है इसपर तापमान,वायु प्रदूषण के बढ़ने घटने का असर कैसा है इस पर मौसम का प्रभाव कैसा है आदि बातों का किसी के पास कोई तर्क संगत वैज्ञानिक उत्तर नहीं है | 

     महामारी , भूकंप,बाढ़ आँधीतूफ़ान जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं  का पहला  झटका ही सबसे अधिक खतरनाक होता है उससे ही  सबसे अधिक नुक्सान होता है  बाकी तो भूकंप की तरह बाद में आने वाले कम प्रभाव वाले झटके होते हैं  इसलिए पहले झटके से बचाव का उपाय खोजना ही वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य है ऐसा करके ही जनता को मदद पहुँचाई जा सकती है| इसके लिए महामारी,भूकंप ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं  के विषय में सटीक  पूर्वानुमान  की आवश्यकता होती है | 

                                                   समय विज्ञान  और  ज्योतिष !

     पूर्वानुमान अर्थात भविष्यवाणी करने की चर्चा चलते  ही सबसे पहले ज्योतिषशास्त्र की ओर सबका ध्यान चला ही जाता है यह बात और है कि कुछ लोग ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास नहीं करते हैं कुछ इसे अंध विश्वास बताते हैं कुछ लोग इस शास्त्र की निंदा करते देखे जाते हैं | यह उनका अपना व्यक्तिगत अनुभव जिनके व्यवहार से हुआ होता है वे ज्योतिषशास्त्र  को कितना  जानते  होते हैं  यह और बात है | 

       ज्योतिषशास्त्र की मदद के बिना भी बिना  कुछ साधक संत योगी ऋषि मुनि महर्षि आदि भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं किंतु वे स्वतंत्र साधक होते हैं |इसलिए सभी घटनाओं के बिषय में वे पूर्वानुमान लगाकर सरकार या समाज को बतावें ही इसके लिए उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता है |  

     आधुनिक विज्ञान में महामारी का पूर्वानुमान लगाने की कोई प्रक्रिया है या नहीं वह मेरा विषय नहीं है इसलिए मुझे पता भी नहीं है |अभी तक के अनुभव में भूकंप मानसून वर्षा बाढ़ सूखा सर्दी गर्मी वायु प्रदूषण आदि के विषय में अभी तक जो पूर्वानुमान बताए जाते रहे हैं उनमें से बहुत कम ही सही निकलते  देखे जाते रहे हैं | वर्षा और चक्रवातों से संबंधित कुछ अंदाजे इसलिए सही निकलते देखे जाते हैं क्योंकि किसी एक जगह पर घटित हो रही ऐसी घटनाओं के कुछ दृश्य आकाशस्थ उपग्रहों रडारों के माध्यम से मिल जाते हैं उन घटनाओं में गति कितनी है और किस दिशा की ओर वे बढ़ रही हैं उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये घटनाएँ कब कहाँ पहुँच सकती हैं | इस प्रक्रिया से आँधी तूफानों और बादलों  की  जासूसी भले कर ली जाए किंतु इसमें विज्ञान का न तो कहीं कोई उपयोग है और न इसका कोई वैज्ञानिक आधार ही है | विशेष कर महामारियों का पूर्वानुमान लगाने में तो हमारी समझ में इस जासूसीविज्ञान का दूर दूर तक कोई उपयोग ही नहीं है | 

     ऐसी परिस्थिति में  ज्योतिष ही एक मात्र ऐसा विकल्प दिखाई पड़ता है जिसके आधार पर समय का अध्ययन अनुसंधान आदि किया जा सकता है | इसके द्वारा अनुसंधान पूर्वक प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | ऐसे पूर्वानुमानों का पता लगाने के लिए मैं पिछले तीस वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ महामारी के विषय में भी मैंने अभी तक जो जो पूर्वानुमान भारत के प्रधानमंत्री जी की मेल पर भेजे हैं वे सही निकलते रहे हैं अभी भी प्रमाण रूप में हमारे पास हैं | उनके आधार पर मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ भविष्य में भी समय विज्ञानसंबंधी ये अनुसंधान समाज के लिए सहायक सिद्ध हो सकते हैं | इसके अतिरिक्त भी ऐसे अनुसंधानों के द्वारा सरकार के द्वारा बनायी जाने वाली कई नीतियों के निर्माण में भी समय विज्ञान से भरपूर सहयोग मिल सकता है |

      भारत सरकार द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों में भी व्यवस्था सँभालने के लिए कुलपति आदि नियुक्त किए जाते हैं | संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष और वेद के विभाग हैं | ज्योतिष विभाग में ज्योतिषशास्त्र और वेदविभाग में वेद पढ़ाने के लिए सामान्य महा विद्यालयों की तरह रीडर प्रोफेसर आदि अध्यापक भी पठन पाठन के लिए रखे गए हैं |इन विषयों का भी पाठ्यक्रम है कक्षाएँ चलती हैं परीक्षाएँ  होती हैं | रिजल्ट निकलते हैं | इन्हीं विषयों में तरह तरह के अनुसंधान किए जाते हैं और पीएचडी भी करवाई जाती है डिग्री मिलती है | उसीके आधार पर डिग्री मिलती है जिसके आधार पर लोग संस्कृत विश्व विद्यालयों में रीडर प्रोफेसर आदि पदों पर नियुक्त होते हैं | 

     आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ चरक संहिता में महामारी प्रारंभ होने से पहले महामारी आने का पूर्वानुमान लगाने की न केवल विधि बताई गई है अपितु महामारी आने से पहले ही महामारी से मुक्ति दिलाने वाले औषधीय द्रव्यों के भी संग्रह का निर्देश दिया गया है | आयुर्वेद के बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों में नियुक्त रीडर प्रोफेसर आदि सरकारी आयुर्वेदज्ञ लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे महामारी जनित रोगों से मुक्ति दिलाते किंतु उनकी तरफ से भी ऐसी कोई भूमिका अदा नहीं की गई |      

      संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति पद पर नियुक्त लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने विश्व विद्यालयों में वे ऐसे विषयों पर अनुसंधान करवावें आवश्यकता पड़ने पर देश और समाज के काम आवें | भारत वर्ष में प्राचीन काल में भी तो प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ आदि घटित होती रही हैं तब तो आधुनिक विज्ञान नहीं था | उस समय तो ऐसी संकटकालीन परिस्थितियों से मुक्ति दिलाने की संपूर्ण जिम्मेदारी प्राचीन विज्ञान पर होती थी और वे ऐसे संकटों से जनता को बचाने का रास्ता भी निकाल लिया करते थे | उसी प्राचीन विज्ञान पर इसी उद्देश्य से अनुसंधान करवाना संस्कृत विश्व विद्यालयों का कर्तव्य होता  है | ऐसे संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति पद नियुक्त किए गए लोगों से ये अपेक्षा होती है कि वे इसके लिए  करेंगे किंतु प्राकृतिक आपदाओं  और महामारियों के समय ऐसे पदों पर प्रतिष्ठित लोगों का मौन एवं निष्क्रिय  बने रहना  दुखद है | 

       जिस ज्योतिष शास्त्र में मौसम एवं महामारियों से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की विधियाँ बताई गई हैं |उसी ज्योतिषशास्त्र  के विद्वान् मानकर जिन्हें रीडर प्रोफेसर जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है | ये उनका दायित्व बनता है कि मौसम और महामारी से संबंधित पूर्वानुमान वे भारत सरकार को आगे से आगे उपलब्ध करवाकर सरकार एवं समाज की मदद करें | 

     इसीप्रकार से वेदवर्णित यज्ञादि विधानों में अनेकों ऐसे यज्ञों का वर्णन मिलता है जिनके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज को मुक्ति दिलाई जा सकती है |  संस्कृत विश्व विद्यालयों के ऐसे विभागों में जिन्हें विद्वान् मानकर रीडर प्रोफेसर जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है उनका कर्तव्य है कि वे ऐसे अनुसंधानों को आगे बढ़ाकर देश और समाज के हित में प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मुक्ति दिलाने वाले यज्ञों का अनुष्ठान करके समाज को इतनी बड़ी महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयास करते |

      भारत में जब राजतंत्र था उस समय  ऐसे विषयों के विद्वानों की इस प्रकार की धाँधली नहीं चला करती थी | प्रत्येक विषय के विद्वानों की योग्यता का परीक्षण उस समय डिग्रियों के आधार पर न होकर अपितु खुली समाज में शास्त्रार्थ के द्वारा हुआ करता था | ज्योतिषियों  को मौसम या महामारी जैसी घटनाओं का आगे से आगे सही सही पूर्वानुमान उपलब्ध  करवाना ही होता था |उनके असफल  होने का कारण उनकी अयोग्यता मानी जाती थी | 

     सभी धर्मों संप्रदायों ने के शीर्ष आचार्य अपने अपने आराध्य  को सर्व सक्षम बताते थकते नहीं हैं और अपने को सिद्ध साधक संत आदि पदों पर प्रतिष्ठित कर लेते हैं | उनमें से कुछ आचार्य लोग ऐसे भी होते हैं जो जनता के बड़े बड़े दुखों रोगों संकटों आदि को दूर करने में अपने को इतना अधिक सक्षम मानते हैं कि बड़े बड़े जनता दरवार लगवाकर उनके दुखों रोगों संकटों आदि से मुक्ति दिलाने का दंभ भर रहे होते हैं | महामारी से जूझती जनता को इस आपदा से मुक्ति दिलाने का उनका भी दायित्व बनता है किंतु उनकी ओर से भी ऐसे कोई प्रभावी प्रयास होते नहीं दिखे जिनके कुछ जनता को लाभ भी हुआ हो जबकि उनके जीवनयापन समेत संपूर्ण सुख सुविधाओं की व्यवस्था का भी संपूर्ण खर्च जो उनके अनुयायी वहाँ करते हैं वे भी इसी समाज के अंग हैं वे भी महामारी से पीड़ित हुए हैं | उन्हें भी इस महामारी ने बहुत दुःख दिए हैं ऐसी महामुसीबत में जनता की मदद करने का कुछ दायित्व  तो उनका भी बनता ही है | भविष्य में संभावित महामारी में जनता की मदद करने के लिए कुछ संकल्प तो उन्हें भी लेने ही चाहिए |

      सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति हमेंशा से रही है इस प्रवृत्ति के कारण योग्य पदों पर अयोग्य लोगों के बैठने का रास्ता आसान बना रहता है |ऐसान्यूनाधिक हर युग में होता रहा है फिर ये तो कलियुग है | महामारी के समय ये बात खुलकर सामने दिखाई पड़ी है |सरकार के जो विभाग जिन कार्यों के उद्देश्य से जिन विषयों का अनुसंधान करने के लिए बनाए गए हैं |यदि उन्हीं विभागों से संबंधित कार्यों की आवश्यकता पड़ने पर अपनी भूमिका का निर्वाह करने में वे असफल  हुए हैं और कोरोना महामारी के समय उन विभागों से आशानुरूप उस प्रकार की मदद नहीं मिल पाई  है तो कहीं न कहीं कोई बड़ी चूक हो रही है जिसका दंड निरपराध जनता को प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के रूप में भुगतना पड़ता है | भविष्य में ऐसी परिस्थिति न पैदा हो इसके लिए सरकारों को अभी से गंभीरता पूर्वक सभी सक्षम विधाओं को सम्मिलित करके कोई ऐसी वैज्ञानिक विधा विकसित करनी अवश्य चाहिए ताकि भविष्य में जब कभी दूसरी महामारी आवे तब सरकार एवं समाज के पास अपने पास बचाव के लिए कुछ तो हो अबकी तरह बिल्कुल खाली हाथ न हो | 

      आधुनिक विज्ञान हो या प्राचीन विज्ञान सरकार अनुसंधानों के नाम पर सभी पर खर्च करती है | निरपराध जनता टैक्स रूप में अपने खून पसीने की कमाई से जो धन सरकारों को देती है जनता का वो धन सरकारें जिन जिन विभागों पर व्यय करती हैं वे विभाग जनता की मदद करने में कितने सफल हो पाते हैं |इस बात का परीक्षण पारदर्शिता पूर्वक करना सरकारों की अपनी जिम्मेदारी है | जनता के प्रति यह जवाबदेही  सरकारों  की बनती है | 

    बिना हथियारों के महामारी से लड़ने या उस पर विजय प्राप्त करने का दावा कितना भी कर लिया जाए किंतु सच्चाई यही है कि पिछले डेढ़ वर्ष में कोरोना महामारी के विषय में हमारे वैज्ञानिकों के द्वारा जितने भी अनुमान लगाए जाते रहे वे सभी गलत निकलते रहे | महामारी के स्वभाव के विषय में जो भी बोला जाता रहा वो सच न होने के कारण ही बाद में महामारी के  स्वरूप बदलने की बात बोली  जाती रही जबकि महामारी के  वास्तविक स्वरूप के विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था | 
   कोरोना महामारी हो या वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ एक बार प्रारंभ होने के बाद अपनी मर्जी से ही जाती  हैं और ये पहले धक्के में ही जितना नुक्सान करना  होता  है वो कर देती हैं बाद में तो भूकंपों की तरह कुछ समय तक हल्के झटके लगते रहते हैं | महामारी भी अपने समय से ही जाएगी ! इसके समाप्त होने का संभावित समय क्या होगा !इसे खोजे जाने की आवश्यकता है |

       महामारी के विषय  वास्तविक अनुसंधानों से यूं ही बचा जाता रहेगा और संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण कोरोना नियमों का पालन न करने को मान लिया जाएगा और संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण कोविड नियमों का पालन आदि उपायों को माना जाता रहेगा और तीसरी चौथी आदि लहरों की निराधार अफवाहें इसी प्रकार से उड़ाई  जाती रहेंगी | उन अफवाहों के अनुशार महामारी संक्रमितों की संख्या यदि बढ़ने लगी तो  भविष्यवाणी को सच मान लिया जाएगा और तीसरी लहर न आई तो वैक्सीन आदि प्रयासों से उसे कंट्रोल कर लिया माना जाएगा | समय प्रभाव से महामारी जिस दिन अपने  आप से ही समाप्त होगी उस दिन चिकित्सकीय प्रयासों को इसका श्रेय देकर इस प्रकरण को हमेंशा हमेंशा के लिए बंद कर दिया जाएगा !इस लापरवाही की कीमत भविष्य में कोई दूसरी महामारी आने पर जनता को ही चुकानी पड़ती है कोरोना महामारी के समय भी ऐसा ही हो रहा है और हमेंशा से ऐसा ही होता चला आ रहा है |                

         महामारी जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के  विषय में पूर्वानुमान लगा पाना विज्ञान के बश की बात होती तब तो लगा लिया गया होता  किंतु महामारी विशेषज्ञों के द्वारा महामारी के विषय में जितने भी अनुमान या पूर्वानुमान लगाए गए वे सब के सब गलत  निकलते चले गए | उसके साथ ही महामारी के विषय में  वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका  समाप्त होती चली गई   |

          भारत के प्राचीन वेद विज्ञान की दृष्टि से ज्योतिष के द्वारा महामारी समेत समस्तप्राकृतिक आपदाओं का अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है  | इसी प्रकार से वेद में वर्णित यज्ञ विधियों से ऐसी समस्त प्राकृतिक आपदाओं  पर न केवल अंकुश लगाया जा सकता है अपितु पूर्वानुमान समय से पता लग जाएँ तो इन्हें रोका भी जा सकता है | वर्तमान समय में भारत सरकार के द्वारा वेद वैज्ञानिक अनुसंधानों को बहुत प्रोत्साहित किया जा रहा है बहुत धनराशि खर्च की जा रही है  | इसके बाद भी सभी संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों  के रीडर प्रोफ़ेसर  आदि लोग महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सके और वेदविभागों  के रीडर प्रोफ़ेसर  आदि लोग महामारी पर अंकुंश लगाने के लिए कोई प्रभावी यज्ञ आदि उपाय नहीं कर सके | यहाँ तक कि संस्कृत विश्व विद्यालयों के कुलपति  पदों पर विराजमान लोगों के द्वारा भी महामारी  का पूर्वानुमान लगाने या इस पर अंकुश लगाने के लिए  कोई  प्रयास नहीं किए गए | ये दुखद है |

      

                                                      महामारी विज्ञान अधूरा है !

     महामारी ,भूकंप ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ  होती हैं उन्हें मनुष्यकृत  वैज्ञानिक प्रयासों से न तो तैयार किया जा सकता है और न ही समाप्त किया जा सकता है  और न ही इनके वेग को कम या अधिक किया जा सकता है  |

          महामारियों की शुरुआत एवं समाप्ति अच्छे और बुरे समय का खेल है | जब तक समय अच्छा चल रहा  होता है तब तक प्रकृति से समाज तक सबकुछ अच्छा चला करता है और जैसे ही समय बिगड़ने लगता है वैसे ही वैसे ही प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ आदि पैदा होने लगती हैं | महामारी काल में भी संक्रमितों की संख्या घटने और बढ़ने का कारण भी अच्छा और बुरा समय ही होता है | 

           इसी प्रकार से महामारी के समय कौन संक्रमित होगा कौन नहीं होगा कौन कम होगा और कौन अधिक संक्रमित होगा कौन संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होगा !यह सबकुछ सबके अपने अपने व्यक्तिगत अच्छे बुरे समय के अनुशार घटित होता है | इसीलिए महामारी के समय एक ही स्थान पर एक जैसे वातावरण में रहने वाले  सभी लोग  एक जैसे संक्रमित नहीं होते  !कुछ लोग  तो संक्रमित ही नहीं होते हैं और कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं  इतना बड़ा अंतर होने का कारण उन सबका अपना अपना समय ही होता है | 

         जिस औषधि के प्रयोग से कुछ रोगी स्वस्थ होते देखे जाते हैं उसी औषधि का सेवन करते हुए कुछ रोगियों की दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु भी हो जाती है | कुल मिलाकर जिसका जैसा समय उस पर औषधियों का प्रभाव भी वैसा ही पड़ता है | बुरे समय से पीड़ित होने के कारण पहले रोगी हो चुके या चोट खा चुके किसी व्यक्ति का अपना समय यदि अचानक बहुत अच्छा आ गया हो तो बिना चिकित्सा के भी ऐसे लोगों को  स्वस्थ होते देखा जाता है | यही कारण है कि अच्छे समय से प्रभावित लोग सुदूर गाँवों ,जंगलों  में रहते हुए यदि रोगी हो भी जाते हैं तो बिना किसी औषधि के स्वस्थ होते वे भी देखे जाते हैं  उनके भी घाव भर जाते हैं | दूसरी ओर बुरे समय से पीड़ित चिकित्सकीय  संसाधनों से युक्त महानगरों में रहने  वाले लोग भी मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं | इसका कारण सबका अपना अपना अच्छा बुरा समय ही तो है | 

            इसलिए चिकित्सा सुविधा देकर केवल उन्हीं को बचाया जा सकता है जिनका समय अच्छा एवं आयु अवशेष बची होती है आयु ही न बची हो और समय ही बुरा चल रहा हो तो केवल चिकित्सा के बलपर किसी को जीवित नहीं बचाया जा सकता है | 

            इसलिए प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों को ठीक ठीक समझने  के लिए समय की समझ होना बहुत आवश्यक है समय शास्त्र को समझे बिना कोई दूसरा ऐसा विकल्प है ही नहीं जिसके द्वारा महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं को  समझा जा सके उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके !उनके वेग विस्तार प्रसार माध्यम एवं संक्रामकता  आदि के विषय में अनुमान लगाया जा सके | यही कारण है कोरोना महामारी के विषय में चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा जितने भी अनुमान या पूर्वानुमान लगाए जाते रहे वे सब के सब गलत निकलते रहे  | 

               समय शास्त्र की जानकारी के बिना महामारियों से बचाव के नाम पर जो लोगों के द्वारा या स्थापित सरकारों के द्वारा जो तैयारियाँ  की जाती हैं वो उस प्रकार की होती हैं जैसे भीषण बारिश एवं बाढ़ से बचाव के लिए कुछ नावें या छाते आदि खरीद लिए जाएँ |  भीषण आँधी तूफानों आदि के समय कुछ लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा दिया जाए !प्राकृतिक घटनाओं का वेग इतना अधिक होता है कि मनुष्यकृत प्रयास  उस वेग में तिनके की तरह या तो उड़  जाते हैं या फिर बाह जाते हैं | 

                ऐसे उपायों या मनुष्यकृत तैयारियों  के द्वारा  सीमित मात्रा में कुछ लोगों की मदद करके  उन्हें  बचा  लेने में भले सफल हो जाय जाए किंतु  यह संख्या बहुत कम होती है बहुत अधिक संख्या ऐसी  घटनाओं में प्राण गँवाने वालों की होती है जिन्हें गिनना आसान नहीं होता है | 

            कुल मिलाकर प्रकृति से जूझकर  प्राकृतिक घटनाओं को मोड़ पाना मनुष्यकृत प्रयासों से संभव नहीं है इसीलिए  भीषण वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को रोकना या उनके वेग को घटा पाना  मनुष्यकृत प्रयासों से संभव ही नहीं है | 

         महामारी भी तो इसी प्रकार की ही समयकृत प्राकृतिक आपदा है उससे बचाव के लिए प्रयास करना तो आवश्यक था किंतु उससे यह भ्रम पाल लेना  कि मनुष्यकृत प्रयासों से हम महामारी पर अंकुश लगा लेंगे या विजय प्राप्त कर लेंगे ये मानव मन का केवल अहंकार है | इसीलिए मनुष्यकृत प्रयासों पर भरोसा कर लेने वाले लोग कुछ दवाओं टीकों वैक्सीनों आदि पर विश्वास करके इतना निश्चिंत हो जाते हैं कि सावधानियाँ बरतनी छोड़ देते हैं और महामारी से संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने लग जाती है | 

         प्राकृतिक घटनाओं  का वेग इतना अधिक होता है कि उसके आगे मनुष्यकृत प्रयास अत्यंत बौने सिद्ध हो जाते हैं इसीलिए महामारी जबसे प्रारंभ हुई तब से  महामारी विशेषज्ञ वैज्ञानिक बचाव के उपाय खोजने में प्राण प्राण से लगे रहे !सरकारें संपूर्ण सामर्थ्य से बचाव के प्रयासों में लगी रहीं | जनता भी अपनी अपनी क्षमता के अनुशार अत्यंत त्याग संयम धैर्य पूर्वक लॉकडाउन  मास्क धारण दो गज दूरी पृथकबास जैसे बचाव उपायों का संपूर्ण मनोयोग से पालन करती रही सारे व्यापार स्कूल बाजार दूकान आदि महामारी से बचाव के लिए ही तो बंद कर दिए गए | 

        ऐसे संपूर्ण मनुष्यकृत प्रयासों के बाद भी बहुत बड़ी संख्या में लोग महामारी से संक्रमित हुए !बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु भी हुई  !कुल मिलाकर संपूर्ण उपायों को करने के बाद भी जिन्हें संक्रमित होना था वे हुए ही और जिनकी मृत्यु होनी थी उसे टाला नहीं जा सका | सिद्धांततः ये उपाय यदि वास्तव में महामारी पर नियंत्रण के थे और इनका कुछ प्रभाव भी था तो ऐसे उपायों पर अमल करने के बाद  महामारी के संक्रमण पर अंकुश लग जाना चाहिए था किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ !अधिक नहीं तो संक्रमण बढ़ने की गति में विराम अवश्य लग जाना चाहिए था  !किंतु सारे उपायों को करने के बाद भी संक्रमितों की संख्या न केवल निरंतर बढ़ती चली गई अपितु भा री संख्या में  मृत्यु भी होते देखी गई थी |

       ऐसी परिस्थिति में आत्मसंतोष के लिए यह सोच लेना उचित ही है कि यदि सरकारों के द्वारा बचाव के लिए प्रयास न किए जाते तो अतिविशाल संख्या में लोग संक्रमित होते और मारे जाते |ऐसी काल्पनिक बातों को मानलेने का यदि कोई वैज्ञानिक  अनुसंधान जनित तर्क पूर्ण आधार नहीं है तो खंडन करने का भी नहीं है | महामारी के विषय में समय समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा लाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि इसीलिए गलत निकलते रहे क्योंकि उन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था | समय शास्त्र  को ठीक ठीक समझे बिना महामारी के विषय में लगाए गए सारे अनुमान पूर्वानुमान आदि  सही निकल पाना संभव ही नहीं था 

                                         महामारी और समयशास्त्र

         महामारी भी वर्षा आँधी तूफान आदि की तरह ही एक प्रकार की प्राकृतिक घटना है जिससे किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले सभी लोग एक जैसे प्रभावित होते हैं |बुरा समय आने पर ऐसी घटनाएँ घटित हुआ करती हैं | इसलिए महामारी एक एक व्यक्ति को खोजकर उसे संक्रमित करती होगी ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती है | जिनका अपना व्यक्तिगत समय अच्छा चल रहा होता है उन्हें महामारी के समय भी कोई विशेष भय नहीं होता है जिनका अपना समय मध्यम चल रहा होता है वे संक्रमित होकर स्वस्थ हो जाते हैं जबकि जिनका अपना बुरा समय चल रहा होता है वे संक्रमित होते हैं तो स्वस्थ हो पाना बहुत कठिन होता है | कई बार तो मृत्यु भी होते देखी जाती है |    

       कुलमिलाकर संपूर्ण प्रकृति और जीवन पर महामारी का प्रभाव एक समान पड़ता है किंतु पहचान पता न होने के कारण न उसका पूर्वानुमान पता लगाया जा पाता है और न ही प्राकृतिक वातावरण में महामारी की उपस्थिति को पहचाना जा पाता है | यहाँ तक कि पर्यावरण में महामारी के व्याप्त हो जाने के बाद भी उसे पहचानना संभव नहीं हो पाता  है जबकि महामारी सारे वातावरण को अपने प्रभाव में ले चुकी होती है और संसार की प्रत्येक वस्तु संक्रमित  हो चुकी होती है यहाँ तक कि हवा पानी भी महामारी काल में संक्रमित हुए बिना रह नहीं पाता है कुल मिलाकर हम जो कुछ खाते पीते आदि हैं सब कुछ संक्रमित ही होता है |इसलिए महामारी के संक्रमण से मनुष्य का बच पाना संभव नहीं होता है | इतना अवश्य है कि स्वास्थ्य के अनुकूल उचित आहार व्यवहार रहन सहन साधना संयम आदि का परिपालन करते हुए अपने को बचा लेने के लिए यथा संभव प्रयास किया जा सकता है |          

         इसलिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसी घटनाओं की तह तक जाने के लिए समयशास्त्र को समझना बहुत आवश्यक होता है !इसके बिना महामारियों को समझपाना न अतीत में कभी संभव हो पाया है और न ही भविष्य में कभी हो पाएगा | अच्छे बुरे समयसंचार के कारण घटित होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान समय शास्त्र की उपेक्षा करके कैसे किया जा सकता है | 

                                                                                                                                                                 चिकित्सा  और समय 

         महामारी कब आएगी कब नहीं उससे कौन पीड़ित होगा कौन नहीं होगा या किसकी मृत्यु  होने  की संभावना है किसकी नहीं है | इसका कारण सबका अपना अपना अच्छा बुरा समय होता है | किस रोगी को चिकित्सा से लाभ होगा और किसको नहीं होगा इसका कारण उसका अपना अच्छा और बुरा समय ही होता है | किस चिकित्सक के चिकित्सकीय प्रयत्नों का परिणाम अच्छा निकलेगा किस का नहीं ये उस चिकित्सक के अपने अच्छे और बुरे समय पर निर्भर करता है | किस रोगी पर कौन सी औषधि कैसा प्रभाव करेगी ये उस रोगी के अपने अच्छे बुरे समय पर निर्भर करता है | किस रोगी पर किस चिकित्सक के द्वारा दी हुई किस समय में निर्मित हुई औषधि का कैसा प्रभाव पड़ेगा यह उस रोगी चिकित्सक   और औषधि निर्माण के समय पर आधारित होता है | 

        जिन चिकित्सकों का जब जो अच्छा समय चल रहा होता है उस समय उन्हें यश लाभ मिलना ही होता है ऐसे समय उन्हें जो प्रसिद्धि मिल जाती है वो आजीवन चलती है | अच्छे समय को भोग रहे चिकित्सकों के पास हमेंशा वही रोगी पहुँचते हैं उस समय जिनका अपना समय  अच्छा चल रहा होता है और जिन्हें स्वस्थ होना ही होता है | उन्हें स्वस्थ होना ही होता है |अच्छे समय को भोग रहे चिकित्सक को उस रोगी के स्वस्थ करने का यश मिल जाता है | 

    इसीप्रकार से बुरे समय से प्रभावित चिकित्सकों के पास वही रोगी पहुँचते हैं जिनका अपना खुद का समय बुरा चल रहा होता है |समयप्रभाव से उन्हें स्वस्थ होना नहीं होता है | इसलिए ऐसे रोगियों के स्वस्थ न होने का अपयश बुरे समय से प्रभावित चिकित्सकों को मिल जाता है | 

      कईबार बुरे समय से पीड़ित रोगी किसी अच्छे समय वाले चिकित्सक से मिलने का प्रयास भी करता है तो समय प्रभाव से उस रोगी को अच्छे  चिकित्सक से मिलने का समय ही नहीं मिल पाता है | इसलिए अच्छे समय वाले चिकित्सक से उसका मिलना हो ही नहीं पाता है | 

      ऐसी परिस्थिति में कई बार रोगी के परिचारकों का बहुत अच्छा समय चल रहा होता है इसलिए वे अपनी रूचि से अच्छे समय वाले चिकित्सकों के पास रोगी को ले जाने में सफल हो जाते हैं| अच्छे चिकित्सक अच्छी अच्छी औषधियाँ लिख देते हैं किंतु वे या तो वैसी अच्छी नहीं होती हैं जैसी कि लिखी गई होती हैं और यदि वे वैसी होती भी हैं तो समय से मिल नहीं पाती हैं और यदि मिल भी जाती हैं तो उनके सेवन करने में कोई न कोई ऐसी चूक हो जाती है वही बहाना बन जाता है | रोगी को ठीक होना नहीं होता है इसलिए इतना सबकुछ करने के बाद बी ही रोगी तो स्वस्थ नहीं ही होता है और इसका अपयश अच्छे समय वाले चिकित्सकों को भी मिल जाता है | 

          कई बार बुरे समय से पीड़ित रोगियों के शरीरों में पहुँचकर अच्छी औषधियाँ भी अपने स्वभाव के विरुद्ध विपरीत प्रभाव करते देखी जाती  हैं | यही वह परिस्थिति होती है जब कुछ एक  जैसे रोगों से पीड़ित रोगियों पर किसी औषधि विशेष का प्रयोग करने पर कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं जबकि कुछ स्वस्थ बने रहते हैं या वह औषधि लेने के बाद दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं  |