Friday, May 30, 2014

मोदी जी की जीवनी पढ़ाने की इतनी जल्दी भी क्या है उन्हें कुछ करने भी तो दीजिए !

जनता ने मोदी जी को प्रचंड बहुमत देकर  अभी तक तो अपना काम पूरा किया है मोदी जी की तो अब बारी है !  और अभी से जीवनी !आखिर क्यों पढ़ाई जाए मोदी जी ही नहीं किसी भी नेता की जीवनी !किया तो सारा कुछ जनता ने है और जीवनी पढ़ाई जाए मोदी जी की आखिर क्यों ? देश में प्रेरक महापुरुषों के चरित्रों का टोटा है क्या !अथवा उनके चरित्रों में कुछ कमी लगती है जो मोदी जी की जीवनी पढ़ाकर पूरा करने की तैयारी है ?

"पाठ्यक्रम में अपनी जीवनी से PM मोदी को ऐतराज" 

     आदरणीय मोदी जी !आपके द्वारा यह चाटुकारिता निरोधक आदर्श  उदाहरण  प्रस्तुत किया गया है !इसके लिए बहुत बहुत आभार !

     वैसे भी पाठ्यक्रमों में पढ़ाए जाने लायक अपने देश में प्रेरक महापुरुषों के चरित्रों की कोई कमी है क्या ! जो मोदी जी के चरित्रों को पढ़ाया जाने लगे और यदि ऐसा समय आएगा तो मोदी जी भी पढ़ाए जाएँगे ! किन्तु तब जब समय अपनी कसौटी पर मोदी जी को भी कस चुका होगा, अभी मोदी जी ने ऐसा किया ही क्या है जिसे पढ़ाया जाएगा अभी तो जनता ने मोदी जी को स्नेेह पूर्ण प्रचंड बहुमत दिया है, बाबा विश्वनाथ जी ने सेवा दी है, माँ गंगा ने कृपा की है अब बारी मोदी जी के कुछ करने की है।अभी तक तो मोदी जी पर जनता ने विश्वास किया है अब बारी मोदी जी की है जनता के विश्वास पर खरा  उतरने की है ! अभी तो  केवल जनता का पार्ट पूरा हुआ है मोदी जी का पार्ट तो अभी सँभलकर शुरू भी नहीं हो पाया है पूरी होने की तो बात ही कौन करे अभी से जीवनी पढ़ाने की जल्दी ! आखिर इतनी जल्द बाजी क्यों?भाजपा को ऐसी कांग्रेसी प्रवृत्ति  से बचना होगा ! अभी मोदी जी के हिस्से का सम्पूर्ण कार्य पूरा करने  की बात तो छोड़िए ठीक ढंग से शुरू भी नहीं हुआ है फिर भी जीवनी पढ़ाने की इतनी जल्दी क्यों !          

     जहाँ तक बात काँग्रेस की है तो काँग्रेस ने इतिहास पुराणों के महापुरुषों के चरित्रों को कपोल कल्पित सिद्ध करने करवाने में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी है केवल अपने और अपनों को स्थापित करती चली गई उन्हीं की मूर्तियाँ लगाई जाती रहीं उन्हीं के नाम पर गाँव नगर शहर रोड बिहार मोहल्ले आदि बनाए और बसाए जाते रहे ! उन सरकारों में जनता के जीवन का कितना महत्त्व था इसका अंदाजा हमारी इसी कविता से लगाया जा सकता है-

  नेहरू इंदिरा जी राजीव सोनियाँ के नाम 

                        देश का प्रत्येक गाँव शहर अलाट है । 

किसी ऋषि मुनी महापुरुष का नाम नहीं,

                        देश के शहीदों का तो चरित उचाट है॥

 नेहरू गाँधी खानदान दान की ही है शान यहाँ

                     बाक़ी  बेजान  देश  उनके  ठाट बाट  हैं।

   देश के ग़रीबों को झुग्गियाँ नसीब नहीं 

                         वहाँ उन्हें  मरने पे मिले राजघाट है ॥

                                      - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

  

     आदरणीय  मोदी जी ! अपनी पार्टी के कुछ लोगों  द्वारा लिए जाने वाले जीवनी पढ़ाने जैसे काँग्रेसी फैसलों से बचना ही सर्वोत्तम है !अन्यथा काँग्रेस के आदर्शों का अंधानुकरण करने में देश की सर्वोत्तम दलित कन्या ने देशवासियों की गाढ़ी कमाई के बहुत बड़े हिस्से को अपनी और अपनों की मूर्तियाँ बनवाने में बर्बाद कर दिया था आखिर ग़रीबों के किस काम आएंगी वो मूर्तियाँ ! इसीलिए अबकी बार चुनावों में जनता ने ऐसे मूर्ति प्रिय सभी लोगों को दुदकार कर भगा दिया है। इसलिए आत्मश्लाघा सम्बन्धी सभी कार्यों से  बचा जाना चाहिए । 

       दूसरी एक और बड़ी बात यह है कि इस हिसाब से तो सारे नेता अपनी अपनी जीवनियाँ पढ़वाने लगेंगे चुनावों में जो जीतेगा वही अपनी जीवनी पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर देगा ! आखिर कैसे क्यों और किस नियम से रोका जा सकेगा उन्हें!फिर तो बच्चे बस जीवनियाँ ही पढ़ पाएँगे !   

      जबतक चुनावों में काँग्रेस की विजय होती रही तब तक तो लोग राहुल जी! राहुल जी! कहकर पीछे पीछे घूमते रहे और पार्टी की पराजय होते ही आज वही चाटुकार लोग उन्हें 'जोकर' तक कहने लगे तो क्या गारंटी कि कल मोदी जी के साथ ऐसा नहीं किया जाएगा !अभी तो जीत के चोचले चल रहे हैं !काम किया जाना तो सारा अभी बाकी ही है !

    इसलिए उचित यही होगा कि आदर्श भाजपा के विचार ही आगे बढ़ाए जाएँ उसी में जिसका जैसा योगदान उसका वैसा सम्मान होता जाएगा ! वैसे तो अपनी श्री राम वादी पार्टी है इसलिए रामादल  की तरह ही चलें  तो और अधिक  अच्छा होता क्योंकि वहाँ केवल कार्यकर्ताओं का ही मनोबल बढ़ाया जाता था ! इसलिए इसका ध्यान सदैव रखा जाना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी में चाटुकारिता का जन्म ही न होने पाए । यहाँ व्यक्ति की अपेक्षा आदर्श कार्य व्यवहार से ही किसी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाए !बहुत  उचित होगा कि मोदी वाद की जगह आदर्श वाद की स्थापना हो और सम्पूर्ण सरकार आदर्श प्रशासन के पथ पर अग्रसर हो !

    आखिर इतना तो सोचा ही गया होता कि जीवनी पढ़ाने का जनता पर असर क्या पड़ेगा ! वो भी तब जब अभी अभी जीवनी वालों को जनता ने जमीन पर उतारा है और फिर चर्चा जीवनी की !मोदी जी ने जीवनी पढ़ाने को रोक दिया वो तो बहुत अच्छा किया किन्तु मोदी जी से  रोकवाने के लिए ही तो जीवनी पढ़ाने का राग नहीं छेड़ा गया था इसे जनता को कौन समझाए ! जैसे राहुल जी से रूकवाने के लिए बिल पास किया गया था एवं राहुल जी से गैस सिलेंडर बढ़वाने के लिए सिलेंडरों की संख्या में कटौती की गई थी खैर! जो भी हो हमें तो इसी से मतलब है कि मोदी जी ने अपनी जीवनी पढ़ाने नहीं  दी !

       सरकार में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति को याद रखना चाहिए कि सत्ता में हमें जनता ने अपने एवं अपनों को आगे बढ़ाने के लिए नहीं भेजा है, अपितु देश एवं देश के महापुरुषों संस्कृतियों तीर्थस्थलों नदियों पहाड़ों समेत प्रत्येक जाति क्षेत्र वर्ग समुदाय संप्रदाय के प्रत्येक सदस्य के हित में न केवल काम करने के लिए भेजा गया है अपितु उन  सबको  अपनापन  देने के लिए भेजा गया है!इसलिए उन्हें ठेस न लगे !

     भाजपा के लोगों को याद रखना होगा कि अभी तक आप काँग्रेस की जिस क्रूरता की निंदा करते रहे आज अपनी  गलतियों को छिपाने के लिए उसी काँग्रेस के क्रूर कारनामों के पीछे मुख छिपाने की आदत छोड़ देनी चाहिए !   

     कल स्मृति ईरानी जी की योग्यता एवं उनके प्रमाण पत्रों पर शंका की गई उचित था कि इसका समाधान करने के लिए जनता से सीधा संवाद किया गया होता किन्तु इस प्रकरण में सोनियाँ गांधीं की योग्यता पर प्रश्न खड़ा किया जाना बिलकुल अप्रासंगिक था ! आपको सत्ता जनता ने दी है सोनियाँ ने नहीं तो सफाई भी जनता को ही दी  जानी चाहिए सोनियाँ को नहीं ! ये चूक हुई है सुधार की अपेक्षा है इस समय विपक्षी पार्टी का अधिकार जनता ने किसी को नहीं दिया है सीधे अपने पास रखा है इसलिए विपक्षी पार्टी की भूमिका में जनता स्वयं है अन्यथा सत्ता पक्ष और विपक्ष मिलजुल कर निर्णय ले लिया करते थे और जनता देख कर रह जाती थी अब जवाब जनता को देना होगा !

  

Sunday, May 25, 2014

नरेंद्र मोदी जी की 'न' अक्षर वाले नितीश से पटरी नहीं खाई तो नवाज से कैसे खाएगी ?

   रेंद्र मोदी जी और वाजशरीफ के बीच सकारात्मक परिणाम निकलने की सम्भावनाएँ बहुत कम हैं यदि प्रारम्भ में कुछ बातचीत बनते भी दिखाई दे तो भी प्रक्रिया पर बहुत अधिक भरोसा नहीं किया जाना चाहिए !

राजग टूटने का कारण-

नितीशकुमार-नितिनगडकरी-रेंद्रमोदी 

   इन तीनों में किसी एक की प्रमुखता दूसरे को बर्दाश्त नहीं हो पाती इसलिए राजग टूटना ही था ! 

  एक अक्षर से प्रारंभ होने वाले किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि-पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी ही रहती है, अर्थात जिस पद-प्रतिष्ठा-प्रसिद्धि आदि को इनमें से कोई एक प्राप्त करना चाहेगा उसी को पाने की ईच्छा दूसरा भी रखता है,उसी तरह की भी नहीं बल्कि वही चीज चाहिए होती है ऐसे लोगों को जो किसी दूसरे के पास होती है।चूँकि एक ही चीज एक समय पर किन्हीं दो या दो से अधिक के पास कैसे  रह सकती है! यही कारण है कि उसे पाने के लिए उस तरह के लोग एक दूसरे का नुकसान किसी भी स्तर तक गिरकर कर सकते हैं और उस पद-प्रतिष्ठा-और प्रसिद्धि को भी नष्ट कर देते हैं, अर्थात जो मुझे नहीं मिली वो किसी और को नहीं मिलने देंगे।

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंआदि इसीप्रकार 

अब राजनाथ सिंह जी को ही लें -        'रा'

राजनाथ सिंह जी -रामदेव

राजनाथ सिंह जी-रामविलासपासवान

राजनाथ सिंह जी-  रामकृपाल यादव

राजनाथ सिंह जी-  राज ठाकरे

 इसीप्रकार से -

राम देव का अपना आन्दोलन बिगड़ने का कारण भी यही  'रा' अक्षर ही था

  रामदेव के साथ हवाई अड्डे पर पहले तो मंत्रियों का ब्यवहार ठीक था किन्तु रामलीला मैदान पहुँचकर बात बिगड़ी ऊपर से राहुल गाँधी का हस्त क्षेप !

      रामदेव -रामलीला मैदान -राहुल गाँधी 

     होने के कारण पिटना पड़ा दूसरी बार काफिला लेकर ये राजीव गाँधी स्टेडियम कि ओर जा रहे थे वहाँ भी यही हो सकता था किन्तु सौभाग्य से म्बेडकर स्टेडियम बीच में पड़  गया 'अ'अक्षर बीच में आ जाने से बचाव हो गया!

       रामदेव -राजीव गाँधी स्टेडियम-राहुल गाँधी

       रामदेव -म्बेडकर स्टेडियम -राहुल गाँधी 

     जहाँ तक भाजपा के रामदेव जी के सम्बन्धों की बात है सब कुछ सामान्य नहीं कहा जा सकता है -              इस लिंक को जरूर  देखें -"रविवार, 5 जनवरी 2014 बाबा के बहाव में बहते बहते बच गई भाजपा !एजेंडे के खींच तान में उलझा भाजपा हाईकमान !http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/01/blog-post_5.html"
     इसलिए भाजपा को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा कि जिन दो लोगों के  नाम का पहला अक्षर एक ही है इनसे न तो भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह जी को यश मिलना है और न ही सम्मान !और कब कितना बड़ा आरोप लगाकर छोड़ दें इनका साथ यह भी कह पाना बहुत कठिन होगा !राजनाथ सिंह जी से छूटेंगे ये सभी लोग अंतर तो बस इस बात में हो सकता है कि कौन कितना बड़ा दुःख देकर छूटेगा !

     कुल मिलाकर ऐसे गठबंधनों से केवल इतनी उम्मींद रखनी चाहिए कि जितना नुक्सान नहीं होगा उसी को फायदा गिना जाएगा !यदि इतना धैर्य हो तभी केवल नुक्सान पाने के लिए ऐसे गठबंधन बनाए और चलाए जा सकते हैं इससे न केवल दोनों पक्ष असंतुष्ट रहते हैं अपितु दोनों ही प्रभावित भी होते हैं दोनों को लगा करता है कि मैं ठगा गया हूँ !इसलिए फिरहाल  भाजपा को अब तो सतर्क रहना ही चाहिए !अन्यथा एक ज्योतिषी होने के नाते अभी ही हमें बहुत कुछ हासिल होते नहीं दिखता है !ज्योतिष  के इस दोष के कारण और भी कई सामाजिक एवं राजनैतिक बड़े संगठन,परिवारों के आपसी सम्बन्ध टूट गए हैं एवं व्यक्तियों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ गए हैं!भाजपा का भी समय समय पर इस दोष ने बड़ा नुक्सान किया है कई बड़े बड़े प्रतिष्ठित राजनेताओं के व्यक्तित्व का बलिदान इसी कारण से ब्यर्थ चला गया है-

        जैसे  आखिर क्या कारण है कि अटल जी जैसे विराट व्यक्तित्व के रहते हुए भी भारतवर्ष  में भाजपा  अपने बल और अपने नाम पर भारत के सत्ता शीर्ष पर नहीं पहुँच पाई इसीलिए उसे राजग का गठन करना पड़ा जबकि भाजपा से कम सदस्य संख्या वाले अन्यलोग  पहले भी प्रधानमंत्री बन चुके हैं यही नहीं कई प्रान्तों में भाजपा की सरकारें सफलता पूर्वक चल रही हैं किंतु क्या कारण है कि केंद्र में ऐसा संयोग नहीं बन पाता है!

     दिल्ली प्रदेश के पिछले चुनावों में इसी दोष के कारण भाजपा हार गई अन्यथा काँग्रेस बहुत अच्छा काम नहीं  करती  रही है भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे महँगाई भी बढ़ती रही फिर भी लंबे समय तक दिल्ली की सत्ता में काँग्रेस बनी रही अबकी बार भी दिल्ली में काँग्रेस यदि भाजपा के कारण हारी होती तो भाजपा को मिलती सत्ता अन्यथा जिसके कारण हारी उसे सत्ता सुख मिला वो भले कम दिनों का रहा हो !    

भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण

दिल्ली भाजपा  का    राजनैतिक भविष्य ? 

 दिल्ली में भाजपा के चार विजयों  का एक  समूह एवं  पाँचवाँ नाम विजय शर्मा जी का है- 

                                     विजय शर्मा जी 

                        विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

     विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी

 ये पाँच वि एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम नहीं कर सकते या एक साथ रह नहीं सकते!जब से ये एक साथ एक जगह भाजपा में एकत्रित हुए तब से भाजपा का विकास रुक गया!

इसी प्रकार -

उत्तर प्रदेश में भाजपा

लराजमिश्र-कल्याण सिंह 

इसी प्रकार अबकी बार के चुनावों में त्तर प्रदेश से 

उमाभारती  को खाली हाथ लौटना पड़ा-

माभारती -   त्तर प्रदेश

     जिन प्रदेशों में ऐसा नहीं है वहाँ भाजपा का जनता में  ठीक ठीक विश्वास जमा हुआ है !

      राजग टूटने का मुख्य कारण भी यही है जिसके लिए एक वर्ष पहले के इसी ब्लॉग पर प्रकाशित कई लेख हैं  ये लिंक जरूर पढ़ें -

Thursday, 18 October 2012  Delhi V.J.P. ke 4 Vijay ' V'http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/delhi-vjp-ke-4-vijay.html

 Monday, 22 October 2012भारतवर्ष में भाजपा के भविष्य पर ज्योतिषीय शंका ?http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/bhajapa-bharat.html

Monday, 22 October 2012   राजग कब तक? नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी की निभी तब तक http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/rajag-kab-tak.html

-अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारण भी यही है ?ये लिंक अवश्य पढ़ें -

Thursday, 18 October 2012 अन्ना और अरविन्द में आपसी दूरी क्यों ?क्यों बिगड़े अन्ना और अरविन्द के आपसी सम्बन्ध ?http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/anna-arvind-ki-aapasi-duri-kyon.html

  अमर सिंह और मुलायम सिंह में क्यों हुआ मतभेद ?  आदि आदि !पढ़ें ध्यान से -

   ज्योतिष के अनुशार एक अक्षर से प्रारंभ होने वाले किन्हीं दो या दो से अधिक नाम वाले लोगों का एक साथ काम कर पाना कठिन ही नहीं असंभव भी होता है उसी का दंड भोग रही है भाजपा और राजग!   

    यही वो मजबूत कारण है जिसका दंड दिल्ली भाजपा को सत्ता से दूर रह कर पिछले दसों वर्षों से झेलना पड़ रहा है।चूँकि साहब सिंह वर्मा जी के बाद दूसरा  जनाधार वाला जो भी नेता दिल्ली भाजपा के शीर्ष पदों पर आया उसका नाम वि से प्रारंभ हुआ जो आपसी खींच तान में उलझ कर रह गया!इस अक्षर के अलावा आने वाला कोई और नाम यदि आया तो आम जनता में उसकी वैसी पकड़ नहीं बन सकी जैसी  राजनैतिक सफलता के लिए आवश्यक होती है,इस लिए उसे वैसी सफलता भी नहीं मिल सकी जैसी उसके लिए जरूरी थी।परिणाम स्वरूप दिल्ली की सत्ता के शीर्ष पर काँग्रेस  के सदस्य के रूप में शीला दीक्षित जी ही  सुशोभित होती  रहीं! बात और है कि काँग्रेस इसे अपनी उत्तम प्राशासनिक क्षमता का परिणाम मानती हो किंतु ज्योतिषी सच्चाई यही है कि विपक्षी पार्टी भाजपा जनाधार संपन्न, लोकप्रिय, एवं स्वदल में अधिकाधिक स्वीकार्य नेता  दिल्ली  की  जनता के सामने उपस्थित कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो सकी है ।पहले वाले दिल्ली के चुनावों में पराजित हो चुकी भाजपा अभी भी उसी काम चलातू तैयारी के सहारे ही आगे बढ़ रही है!जो दिल्ली भाजपा के आगामी चुनावी  भविष्य के लिए चिंताप्रद है,साथ ही उसका यह तर्क कि इतने दिन तक लगातार काँग्रेस दिल्ली की सत्ता में रहने के कारण अलोकप्रिय हो चुकी है इसलिए जनता अबकी बार भाजपा को मौका देगी ही !मेरा विनम्र निवेदन है कि भाजपा के इस दावे या सोच में कोई दम नहीं है।इसलिए भाजपा को दिल्ली की चुनावी विजय के लिए चाहिए कि इन पाँचों विजयों की कार्य कुशलताओं का अन्य दूसरी तीसरी जगहों पर उपयोग करना चाहिए किन्तु दिल्ली के चुनावी मैदान में कोई एक विजय या किसी और नाम वाले व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए !अन्यथा आने वाले चुनावों में शीला दीक्षित जी की संभावित विजय को रोका नहीं जा सकेगा क्योंकि -

       अरविन्द केजरीवाल का म आदमी पार्टी

 में कोई भविष्य नहीं है जब से यह पार्टी बनी है तब सेरविन्द जी की लोकप्रियता घटी ही है बढ़ी तो है ही नहीं !म आदमी पार्टीवातावरण बिगड़ता ही जा रहा है।स्थिति कुछ दिनों में और साफ हो जाएगी। इसी नाम समस्या के कुछ और ज्वलंत उदाहरण हैं-

         अन्ना हजारे का आन्दोलन पिटने का कारण 

  न्नाहजारे-रविंदकेजरीवाल-सीमत्रिवेदी-   अग्निवेष- रूण जेटली - भिषेकमनुसिंघवी

                    सपा में फूट का कारण

  अमरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

  मरसिंह-निलअंबानी-मिताभबच्चन

      इसीप्रकार  और भी उदाहरण हैं ----

लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद

रूण जेटली- भिषेकमनुसिंघवी 

  बामा-सामा 

  मायावती-मनुवाद

रसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी

 रवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 

  नमोहन-मता-मायावती    

मरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

  मरसिंह-निलअंबानी-मिताभबच्चन

प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन

 जैसे - अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे , अरविंदकेजरीवाल एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।
    अन्नाहजारे की तरह ही अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिलेश के साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
       चूँकि अमरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। 

जैसेः- आजमखान अमिताभबच्चन  अनिलअंबानी  अभिषेक बच्चन आदि।

Saturday, May 24, 2014

महीने के अंदर हो जाएगा हिंदुओं का मोदी से मोहभंग: मुलायम - पंजाब केशरी



      मुलायम सिंह जी यह भंग होने वाला मोह नहीं अपितु पवित्र भावना से किया गया प्रेम है जो जनता और मोदी जी दोनों ओर से ही उमड़ रहा है जनता ने मोदी जी को पूर्ण और प्रचंड बहुमत दिया है वो मोदी जी के प्रति उमड़े प्रेम का ही प्रमाण है ये तो रहा जनता का पक्ष अब जानिए मोदी जी का पक्ष ! मोदी जी जैसे हमेंशा  गरजते रहने वाले शेर दिल  आदमी को पहले भी कभी रोते देखा गया था क्या ! आखिर क्यों बात बात में रोने लगते हैं मोदी जी !ये जनता के द्वारा दिए गए प्रचंड प्रेम के एहसास का शूल है जो चुभा है मोदी जी के हृदय में कि मुझ जैसे गरीब आदमी को अपने शिर पर बैठाने में जनता जनार्दन ने कोई कसर नहीं छोड़ी है तो इस स्नेह को सँभाल कर रखने में हमसे कहीं कोई कमी न छूट जाए ! ये इस प्रेमोत्कर्ष में कृतज्ञ भाव  के आँसू होते  हैं मुलायम सिंह जी !
            इसी  प्रकार से साहित्य में प्रेम के विषय में कहा गया है  प्रेम वही है जो दोनों ओर से उमड़े और एक ओर से उमड़े दूसरी ओर से न उमड़े  इसे मोह कहते हैं जैसा आपके यहाँ होता है जनता की ओर से उमड़ता है वह बहुमत दे  देती है किन्तु आपका  प्रेम सैफई महोत्सव में नाच के लिए उमड़ता है जनता के लिए नहीं उमड़ता है । इसीप्रकार से जैसा मायावती जी का अपनी मूर्तियों एवं हाथियों की मूर्तियों के लिए उमड़ता है जनता के लिए नहीं उमड़ता है ।। मुलायम सिंह जी ! ऐसे प्रेम को मोह कहते हैं जो भंग हो जाता है ! किन्तु मोदी जी  और जनता के बीच अभी बना प्रेम सम्बन्ध जो दिनोदिन बढ़ेगा घटने की आशा ही आप मत रखिए !इसके लिए मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास भी है कि मोदी जी खरे उतरेंगे !
 
          ! प्रेम नहीं है किन्तु नेता  जी !'प्रेम' ,'मोह' ,और 'लोभ'  ये तीन शब्द हैं तीनों के अंतर को समझिए जब कोई निर्जीव वस्तु को चाहने  लगे  किन्तु वह वस्तु तो उसे चाह नहीं सकती  इसलिए इसे उस व्यक्ति का लोभ कहा जाएगा !
      जब कोई व्यक्ति किसी स्त्री पुरुष आदि अपने निजी लोगों को चाहे किन्तु वो लोग उसे महत्त्व  न दें या मतलब न रखें इसे मोह कहते हैं इसमें हमेंशा ठेस लगा करती है इसलिए यह भंग अर्थात टूट जाता है !
     तीसरा प्रेम होता है जब दोनों लोग आपस में एक दूसरे से प्रेम करें तो इसे प्रेम कहते हैं जो कभी घटता नहीं है अपितु बढ़ा ही करता है यहाँ तो जनता ने मोदी से प्रेम किया है और मोदी ने जनता से प्रेम किया है  तो इसमें घटने और भंग होने का सवाल ही नहीं है


















 मोदी जी जैसे हमेंशा  गरजते रहने वाले शेर दिल  आदमी को पहले भी कभी रोते देखा गया था क्या !
         जनता का अपार स्नेह  सँभालकर रखने की जिम्मेदारी अकेले मोदी जी की ये बहुत बड़ा काम है इसलिए संसद की सीढ़ियों पर लोग पैर रखते हैं मोदी जी ने शिर रखकर शुरुआत की थी संसद की अधिष्ठात्री वास्तु देवता से यही प्रार्थना की थी कि माते ! इस जनस्नेह को सँभाल कर रख  सकने की सामर्थ्य दो !
      इसके पहले जिस प्रधान मंत्री को ऐसा प्रचंड बहुमत मिला था क्या उसे भी ऐसा करते देखा गया था !
     जिनके लिए वो अक्सर कहा करते हैं कि मैंने अटल जी , आडवाणी जी की अँगुली पकड़ कर राजनीति में चलना  सीखा  है ऐसे अपनी पार्टी के सबसे अधिक बयोवृद्ध सक्रिय राजनेता श्री अडवानी जी के पैर छू कर उन्होंने आशीर्वाद  लिया था ये व्यक्ति के नाते तो आडवाणी जी अभिवादन तो था ही साथ ही साथ एक राज नेता के नाते भी था जिन्होंने अपने परिश्रम एवं सबके सहयोग से पार्टी को विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने का गौरव दिलाया है इसप्रकार से पार्टी के स्वभाव स्वीकृत शीर्ष नेता के प्रति नमन करके आशीर्वाद लेने का अभिप्राय भी तो यही था कि हम जनता के स्नेह को  सँभाल कर रख सकेँ !

ने शिर  सौंपते  देखता था आपने रहे हैं यही इस बात का प्रमाण है        दूसरी ओर मोदी जी की आँखों में बार बार प्रेमाश्रु (प्रेम के आँसू ) आ रहे हैं ये जनता के इस समर्पण के एहसास के वहाँ

Tuesday, May 20, 2014

मोदी जी ! अपराधियों पर अंकुश लगना बहुत जरूरी है !


मोदी जी  ! शास्त्र कहता है कि संन्यासियों को स्वर्ण दान देने वालों को ,और ब्रह्मचारियों को तांबूल दान देने वालों को और अपराधियों को अभय दान देने वालों को नर्क अवश्य होता है !इसलिए  हे भारत के प्राणवान प्रधानमंत्री !अटल जी का आदर्श याद रखना -  न भीतो मरणादस्मि केवलं दूशितो यशः!  किंतु हे शासक आज यश पर बन आई है समाज में गलत सन्देश जा रहा है इसे समय रहते यदि रोका  न जा पाया तो आगे इसकी भरपाई होनी कठिन हो जाएगी !

      मोदी जी आप ने पहली बार संसद भवन की सीढ़ियों पर माथा टेका था यह देखकर संसद की आत्मा भी इस बार प्रसन्न हुई होगी कि अभी तक लोग संसद को मंदिर केवल कहा करते थे बाक़ी बेसहूरों की तरह रौंदते चले जाते थे कम से कम बहुत वर्षों के बाद आज एक ऐसा सेवक मिला है जो हमें भी जीवित समझता है! चलो गाली गलौच करने वाले उद्दंडता प्रिय लोगों से मुक्ति मिली व्यक्ति के रूप में बहुत लोग आए और चले गए किन्तु कई वर्षों बाद प्राणवान प्रधानमंत्री  के स्वरूप में भारतवर्ष ने  एक सेवक का वरण  किया है !
       देशवासियों ! आपके  सेवक ने आपकी संसद की चौखट पर शिर झुका दिया था इसलिए आलोचना में संयम बरतना चाहिए और प्रतीक्षा की जानी चाहिए प्रतिक्रिया की । अब आप जाति  क्षेत्र संप्रदाय वाद से ऊपर उठकर ऐसा आशीर्वाद दें कि आपके इस सेवक पर ईश्वर ऐसी कृपा करे कि इसका बाल भी बाँका न हो! यह सेवक दीर्घायु  हो !स्वस्थ हो ! सेवा व्रती हो और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरे ! देशवासियों का अमित स्नेह भाजन हो !



Monday, May 19, 2014

भाजपा को मिली प्रचंड विजय में किसका कितना योगदान ?और किसकी कितनी कृपा ?

   भाजपा विजय की श्रेय समस्या का समाधान आखिर क्या है किसके परिश्रम या प्रयास से मिला भाजपा को प्रचंड बहुमत ?

     बंधुओं ! हारी हुई पार्टियों को यदि आत्म मंथन करते हुए सुना और देखा जाता है तो जीती हुई पार्टियों को क्यों नहीं करना चाहिए आत्म मंथन? आखिर जीते हुए दल को पता कैसे लगे कि उसका कौन सा प्रयास फलीभूत हुआ या उससे कहाँ क्या लापरवाही हुई है ,ताकि उसे ही केंद्र में रखकर आगे का नीति निर्धारण किया जा सके ! बिडम्बना यह है कि कई बार निर्णय जनता ले रही होती है और राजनैतिक दल पीठ अपनी या अपने नेतृत्व की और नीतियों की थपथपा रहे होते हैं इसी भ्रम में वो जनता की अपेक्षाओं की परवाह ही न करके पार्कों में अपनी और अपने हाथियों की मूर्तियाँ लगाने में पैसा पानी की तरह बहा रहे होते हैं कोई कोई तो सैफई महोत्सव मना रहे होते हैं । चूँकि उन्हें लगा करता है कि जनता तो हम पर फिदा है ही हम जो भी करें जनता तो हमारे समर्थन में ही मोहर मारेगी किन्तु अपनी योजनाओं से विमुख राजनैतिक दलों या सरकारों के स्वेच्छाचार को जनता सहन नहीं करती है देखिए अबकी बार बड़ी बड़ी घमंडी पार्टियों का घमंड चूर किया है जनता ने !जिन्हें अपनी कलाकारी पर भरोसा था उनकी कलाकारी रखी की रखी रह गई और अबकी चुनावों में जनता ने उनका खाता तक  नहीं खुलने दिया सारी  चतुराई चित्त हो गई !इसलिए हमारे विचार से हारने की तरह ही जीतने का भी कारण जरूर पता किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में जनता का और अधिक से अधिक हित  साधन किया जा सके ! जिससे पार्टी का प्रभाव दिनोंदिन और अधिक बढ़ाया जा सके या यूँ कह लें कि पक्ष या विपक्ष में रहते हुए जो अबकी बार कमियाँ छूट गई हैं उन्हें भविष्य में सुधारा  जा सके यह लेख भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर लिखा जा रहा है फिर भी किसी को कुछ बुरा लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ !मैं भी भाजपाई सिद्धांतों के लिए समर्पित हूँ किंतु इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि मुझे आत्म मंथन नहीं करना चाहिए !

  भाजपा की विजय का श्रेय आखिर किसे मिलना चाहिए ? मोदी जी को , राजनाथ सिंह जी को ,अमित शाह जी को ,या सम्पूर्ण भाजपा को या कल्पित जेपीगाँधी बाबा जी को , या स्वयं आम जनता जनार्दन को ?

       आडवाणी जी ने कृपा शब्द  का प्रयोग जिस सन्दर्भ में किया भले  ही मोदी जी ने उस प्रकट सभा में इस शब्द के प्रयोग से असहमति व्यक्त की हो किन्तु अधिकांश लोगों के द्वारा माना जाने वाला सच यही है कि भारत के लोग भाजपा की इस प्रचंड विजय का सर्वाधिक श्रेय मोदी जी को ही देते हैं । 

    कुछ लोग राजनाथ सिंह जी के कुशल प्रबंधन को इसका श्रेय देते हैं !कुछ लोग अमित शाह जी की कुशल कार्यक्षमता को उत्तर प्रदेश में पार्टी की बड़ी विजय के लिए श्रेय देते हैं । कुछ लोग भाजपा के सिद्धांतों मूल्यों आदि को इसका श्रेय देते हैं, कुछ लोग भाजपा के अनुसांगिक संगठनों  के प्रयास को इसका श्रेय देते हैं । कुछ लोग एक बाबा जी को इसका श्रेय देते हुए उनकी  तुलना जेपी और गाँधी जी तक से कर बैठे !यद्यपि बाबा जी ने भी आशाराम जी की दुर्दशा देखकर सुना है कि अपने आश्रम में कुछ महीनों से जाना छोड़ दिया था वो भी अब सारे भय बिसराकर भाजपा को जिताने का श्रेय लेने के लिए न केवल हवन पूजन में लगे हुए हैं अपितु बड़े नेताओं को भी बुलाकर बुलाकर अपनी तुलना जेपी और गाँधी जी तक से करवाने का आनंद ले रहे हैं । 

     आप  आप  के चक्कर में अलग अलग लोगों को विजय वर माला पहनाए जाने की वास्तविकता आखिर क्या हो सकती है या यूँ कह लें कि भाजपा की इस प्रचंड विजय का श्रेय वस्तुतः मिलना किसे चाहिए ?सब के द्वारा  इतना प्रचारित आखिर इस कृपा कारोबार की सच्चाई क्या है किसकी कृपा से हुई भाजपा की इतनी प्रचंड विजय ?इस विषय में मैं निषपक्ष भावना से अपने निजी विचार रखना चाहता हूँ हो सकता है कि हमारे बहुत सारे मित्र हमसे सहमत न हों यह भी संभव है कि किसी को मेरे विचार हलके लगें किन्तु जो हमारा  अपना अनुभव है उसे आपके सामने रखना चाहता हूँ यदि किसी को बुरा लगे तो अग्रिम क्षमा प्रार्थी हूँ -

      इस देश की चुनावी प्रणाली के हिसाब से सबको पता है कि सामान्य परिस्थितियों में सरकार पाँच वर्षों में बदल ही जाती है विशेष परिस्थितियों  में अर्थात या तो सरकार बहुत अच्छा काम कर रही हो या फिर विपक्ष की अत्यंत दुर्बलता हो कि उसमें जनविरोधी अकर्मण्य सरकार से भी सत्ता छीनने की क्षमता ही न हो !ऐसी परिस्थिति में सरकार दस वर्ष या उससे अधिक भी चलते देखी जाती रही  है।

      इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनमोहन सरकार कभी लोक प्रिय नहीं हो सकी किन्तु N.D.A.जैसा दुर्बल विपक्ष U.P.A. जैसे अकर्मण्य एवं महँगाई भ्रष्टाचार आदि आरोपों से घिरी सरकार से सत्ता छीनने की क्षमता ही नहीं रखता था ,N.D.A.वालों को आपसी मतभेदों से ही समय कहाँ था चुनाव आते थे चले जाते थे, पार्टी में किसी को पता चलता था किसी को नहीं भी चलता था इसलिए मनमोहन सरकार बिना कुछ करके भी दस वर्ष तक चलती चली गई ये सबसे बड़ा आश्चर्य है!वो N.D.A. आज अचानक कहाँ से बहादुर हो गया जिसके बल पर मिला भाजपा को प्रचंड बहुमत ?

      U.P.A. के समय में बड़े बड़े घोटाले हुए ,भ्रष्टाचार हुआ ,बलात्कार आदि  के केस भी सुनाई पड़ते रहे ,उधर सरकार के नगीने ए राजा ,कलमाड़ी ,टू जी, थ्री जी,कॉमन बेल्थ, कोयला घोटाला,दामाद घोटाला आदि आदि इनकी निरंकुश उपलब्धियाँ जनता ने देखीं,  महँगाई ,भ्रष्टाचार,बलात्कार जैसे और भी बहुत सारे जनता से सीधे जुड़े मुद्दे जिनकी पीड़ा से जनता को प्रतिदिन जूझना पड़ता था यहाँ तक कि जनता के हिस्से के गैस सिलेंडर तक काटे गए, इस प्रकार से समाज U.P.A. से बहुत तंग हो गया था किन्तु सरकार  चलती रही और विपक्ष किसी खास प्रतीकार की स्थिति में दिखा ही नहीं, यहाँ तक  कि जनता सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के लापरवाह रवैये से इतना अधिक तंग हो चुकी थी कि सरकार के विरोध में खड़े होने का निश्चय जनता ने स्वयं कर लिया था किन्तु उसका नेतृत्व करने वाला कोई प्रभावी  नेता तक जनता को विपक्ष ने उपलब्ध नहीं कराया ! मजबूर होकर जनता ने स्वयं विगुल फूंका और निर्भया काण्ड  में जनता स्वयं उतरी रोडों पर और करने लगी अत्याचार का प्रतीकार ! तब सवाल उठने लगे कि जनता तो है किन्तु उसका कोई नेता नहीं है बात किससे की जाए ! उस समय N.D.A.जैसी विचित्र भूमिका में था ।ऐसी परिस्थिति में आखिर कैसे विश्वास किया जाए कि चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में N.D.A. की कार्यशैली का कोई विशेष योगदान रहा होगा !

     इसी बीच भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना के आहवान के समर्थन में उनके साथ पूरा देश खड़ा हुआ हर शहर में अनशन हो रहे थे भीड़ बढ़ती चली जा रही थी तो जनता के सरकार विरोधी रुख से घबराकर सरकार ने अन्ना जी की शर्तों के सामने आत्म समर्पण कर दिया  !

    उधर सरकार के रुख से निराश जनता फिलहाल U.P.A. की सरकार को बदलने का निश्चय कर चुकी थी अब इस सरकार को दस वर्ष हो भी चुके थे !आम जनता केंद्र की U.P.A.सरकार को अब और अधिक दिन  ढोना  नहीं चाहती  थी । 

      इसलिए U.P.A. की केंद्र सरकार से नाराज जनता ने स्वयं सत्ता परिवर्तन करने का मन बना लिया था चूँकि देश में दो ही मुख्य राजनैतिक गठबंधन हैं U.P.A. और N.D.A. एक जाएगा तो दूसरा आएगा इन दोनों को अलग करके अपने देश में कोई सरकार आज की परिस्थिति में नहीं बनाई जा सकती है, इसलिए  U.P.A. को हटाने का सीधा सा मतलब था कि N.D.A. को सत्ता में लाना और N.D.A.में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को ही लाया जाना था और भाजपा के द्वारा P.M. प्रत्याशी के रूप में आगे किए गए प्रत्याशी को ही चुनना था भाजपा ने चूँकि नरेंद्र मोदी जी को आगे किया तो जनता ने नरेंद्र मोदी जी पर ही मोहर लगा दी यह जनता ने स्वाभाविक सत्ता परिवर्तन किया है। U.P.A.,काँग्रेस और मनमोहन सिंह को हटाकर और N.D.A.,भाजपा और मोदी जी को जनता ने स्वाभाविक रूप से सत्ता सौंपी है अब इसमें कोई अपनी पीठ थपथपाए तो थपथपाता  रहे ! इसके अलावा जनता के पास और कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था जिसे  चुनने के लिए जनता स्वतन्त्र होती । अजीब बात है कि जनता जनार्दन  के निर्णय एवं संकेत को नजरअंदाज करके विजयी दल अपनी एवं अपनों की पीठ ठोंकता घूम रहा है आखिर बताए तो सही कि उसने एवं उसके अपनों ने जन हित में ऐसा कार्य कौन सा कर दिया है कि जिसके फल स्वरूप यह प्रचंड बहुमत पाने का दावा किया जा रहा है । 

     U.P.A., काँग्रेस और मनमोहन सिंह को हटाने के लिए जननिश्चय था ही फिर भी काँग्रेस ने कल्पित पी.एम.प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी को प्रचारित किया था ! किन्तु जनता का सोचना यह था कि यदि राहुल कुछ करने लायक ही होते तो अभी तक U.P.A. के कार्यकाल में वो बहुत कुछ करके दिखा सकते थे और जब वो कुछ कर ही नहीं सकते थे तो उन्हें पी.एम.प्रत्याशी बनाकर जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया ही क्यों गया ?इसका औचित्य ही क्या था ! जो कभी मंत्री न रहा हो मुख्यमंत्री  भी न रहा हो  ऐसे अनुभव विहीन बिलकुल कोरे नौसिखिया व्यक्ति को U.P.A.डायरेक्ट प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार कैसे हो गया इसका मतलब इनके हिसाब से जनता पागल है जो  ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकती है !इसी जिद्द में जनता ने बहुत बुरी तरह से हराया U.P.A.को और उसी अनुपात में N.D.A. को जीतना ही था इसलिए मिला प्रचंड बहुमत भाजपा और N.D.A. को !

       आखिर उत्तर प्रदेश में भाजपा  का कम्पटीशन था ही किससे ? विपक्षी दल सपा ,बसपा ,काँग्रेस तीनों तो U.P.A.सरकार के अंग हैं और जनता का गुस्सा U.P.A.सरकार के विरुद्ध था, यदि U.P.A.सरकार में सम्मिलित दलों के विरुद्ध जनता वोट देना  चाहती तो N.D.A.के नाम पर वहाँ थी ही केवल भाजपा ! इसलिए जनता ने भाजपा को वोट दे दिया !इसमें आश्चर्य किस बात का ?और किसी की पहलवानी किस बात की ? भाजपा के अलावा उत्तर प्रदेश में जनता के पास और कोई  विकल्प ही नहीं था ? फिर भी भाजपा या N.D.A. की इस प्रचंड विजय का श्रेय यदि भाजपा या उसका कोई भी योद्धा लेना चाहे तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि उसने U.P.A.सरकार के कुशासन से दुखी जनता के हित  में कौन सा प्रभावी , आंदोलन या प्रभावी कार्य किया है या जनहित के किस कार्य में जनता के साथ कभी मजबूती से खडी हुई है ऐसा है तो बताए नहीं तो किसी को श्रेय किस बात का ?   यहाँ सीधी सी बात है कि जनता ने U.P.A. को हराया है उसी से N.D.A. जीत गया है इसमें विजय में N.D.A. या भाजपा के अपने किसी प्रयास का कोई विशेष परिणाम नहीं दिखाई पड़ता ! थोड़ी बहुत  भागदौड़ तो चुनाव जीतने के लिए हर राजनैतिक पार्टी करती ही है इससे इतना प्रचंड जन समर्थन नहीं मिला करता !इसलिए इस सत्ता परिवर्तन को जनता के द्वारा किया गया निर्णय मानकर स्वीकार करने में ही भलाई है अन्यथा  जनता जब विरुद्ध निर्णय लेगी तब सारी  चतुराई चित्त हो जाएगी।

     इसीप्रकार U.P.A. के विरुद्ध जनाक्रोश का शिकार राजद हुआ उसे भी सरकार के विरोध का जनाक्रोश  सहना पड़ा और इन बड़े प्रदेशों की अधिकाँश सीटें भाजपा को मिलीं !रही बात जद यू की  इनके मोदी विरोध का साफ अर्थ था कि ये N.D.A. का समर्थन करेंगें नहीं और दूसरे किसी की सरकार बनेगी नहीं और यदि बनी तो जोड़ तोड़ से बनेगी जिसका कोई स्थायित्व नहीं होगा वो सीटों का दुरुपयोग न करें इसलिए जनता ने उन्हें सीटें ही नहीं  दीं !और भाजपा को जिता दिया । इसमें जनता के अलावा किसी और की कोई विशेष भूमिका दिखती ही नहीं है ?

       इसलिए कहा जा सकता है कि भाजपा के अलावा देश की वर्तमान परिस्थिति में जनता के सामने और दूसरा कोई विकल्प था ही नहीं । यदि केजरीवाल की ओर जनता देखना भी चाहती तो न उनकी इतनी विश्वसनीयता ही थी और न ही वो दिल्ली में सरकार चलाकर ही दिखा पाए तो जनता उन पर विश्वास कर ही कैसे लेती ? 

      सन 2014 के चुनावी अखाड़े में प्रधान मंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रचार पाने वाले जो तीन प्रमुख लोग थे उनमें केजरी वाल ,राहुलगाँधी और मोदी जी ही तो थे। मोदी जी के सामने केजरी वाल और राहुलगाँधी दोनों की ही उम्र बहुत कम है अनुभव बिल्कुल नगण्य है लड़कपन इतना अधिक है कि एक ने बिल फाड़ने की बात की तो दूसरा अनशन के नाम पर अपनी सरकार रजाई में लिपेटे रात भर रोड पर पड़ा रहा ! ये भी कोई सरकार चलाने का ढंग है क्या ? जनता ऐसे लोगों को कैसे चुन लेती अपना प्रधान मंत्री?इसलिए प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में मोदी जी ही एक मात्र व्यक्ति थे उनका किसी से कोई रंचमात्र भी कम्पटीशन ही नहीं था राहुल या केजरीवाल जैसे हलके कैंडीडेट मोदी जी के सामने  देखकर लगता है कि एक प्रकार से इन चुनावों में मोदी जी लगभग निर्विरोध रूप से प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए हैं जब विरोध में कोई था ही नहीं तो लड़ाई या कम्पटीशन किससे और किस बात का था ?ये सब देखकर कहा जा सकता है कि U.P.A. और AAP जैसी पार्टियों के कमजोर कंडिडेट होने से इसका लाभ भी मोदी जी को मिला है । 

      वैसे भी मोदी जी  से इनकी तुलना ही क्या थी ! मोदी जी सफलता पूर्वक इतने वर्षों से न केवल सरकार चला रहे हैं अपितु उन्होंने गुजरात का विकास भी किया है । यहाँ मैदान में जो दो और प्रत्याशी थे भी वो बिलकुल नौसिखिया थे इसलिए जनता ने अनुभवी और बयोवृद्ध मोदी जी को चुना तो इसमें भाजपा की अपनी पहलवानी किस बात की है ये स्वयं जनता का विवेक है जिसका उसने प्रयोग किया !

     वैसे भी किसी संसदीय क्षेत्र में यदि यही कम्बिनेशन बन जाए अर्थात दो नौसिखिया और एक अनुभवी, बयोवृद्ध प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा गया हो तो स्वाभाविक है कि नौसिखिया प्रत्याशी ही  चुनाव हारेंगे और अनुभवी प्रत्याशी ही चुनाव जीतेगा !ये सहज बात है !इसलिए मोदी जी को चुनाव जीतना ही था ये परिस्थिति ही ऐसी बन गई थी !इसमें किसी की बीरता किस बात की ?   

     U.P.A.,की प्रमुख पार्टी के आकाओं को देश और देशवासियों के दुःख दर्द के विषय में कुछ पता ही नहीं था उन्हें तो किसी के द्वारा लिखा हुआ भाषण पढ़ना होता है पिछले दो बार से एक ही भाषण जनता को सुनाए जा रहे थे अबकी बार भी वही फोटो कापी ले लेकर माँ बेटे निकल पड़े ,जनता ने अबकी बार  चोरी पकड़ ली और अबकी बार चुनावों में वोट न देकर अपितु U.P.A.की जमकर की धुनाई ! जनता ने अब काँग्रेस को सत्ता से तो बाहर कर ही दिया बेचारी को विपक्ष के लायक भी नहीं रखा विपक्ष का पद भी अपने बल पर नहीं मिल सकता ऐसा धक्का देकर बाहर कर दिया है ! ये काम जनता ने किया है इसमें और किसी का क्या योग दान है ?

      वैसे भी माननीय अटल जी की सरकार भी पाँच वर्षों में ही सत्ता से बाहर कर दी गई थी । ये सरकार तो फिर भी दस वर्ष चल गई अब इसे तो हटना ही था !  इसे हटाने में किसी का क्या योगदान?ये तो जनता की सूझ बूझ है किन्तु लोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं आखिर क्यों !       

         यदि भाजपा की विजय का श्रेय भाजपा को ही देने की कोशिश की भी जाए तो बलात्कार,महँगाई ,भ्रष्टाचार या गैस सिलेंडरों की कटौती से जनता चाहे जितनी परेशान रही हो किन्तु भाजपा ने कभी कोई प्रभावी जनांदोलन केंद्र सरकार के विरुद्ध चलाया हो ऐसा कभी कुछ दिखाई सुनाई नहीं पड़ा !अगर काँग्रेसी केंद्र सरकार देश वासियों को सताती रही तो उसमें भाजपा कभी हाथ लगाने नहीं आई !इसलिए भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में भाजपा का भी कहीं कोई विशेष योगदान नहीं दिखता है।  

     भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी की कार्यकुशलता को ही भाजपा की महान विजय का श्रेय दिया जाए तो वो अपने गृह प्रदेश जहाँ के वो मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं हमारे अनुमान के अनुशार वहाँ भी वे अपने बल  पर पार्टी का वजूद प्रभावी रूप से उतना बना और बढ़ा नहीं पाए जो वो अपने बल पर आत्म विश्वास के साथ उत्तर प्रदेश के विषय में किसी को कोई बचन दे सकें दूसरी बात केंद्र में इसके पहले भी वे अध्यक्ष रह चुके हैं तब कुछ ऐसा चमत्कार नहीं हुआ तो ये कैसे मान लिया जाए कि आज अचानक उन्होंने चमत्कार कर दिया ! और उनकी अध्यक्षता में U.P.A. सरकार की अलोक प्रिय नीतियों के विरुद्ध कोई जनांदोलन या योजना बद्ध ढंग से जनहित का कोई काम ही करते या करवाते दिखाई दिए हों संघ और भाजपा नेताओं से कानाफूसी मात्र से जनता इतनी खुश तो नहीं हो जाती कि इतना प्रचंड बहुमत दे दे !इसलिए मानना पड़ेगा कि U.P.A. सरकार को हटाने का जनता ने स्वयं निर्णय लिया था उसी के फलस्वरूप हुई है यह प्रचंड विजय !

         जहाँ तक बात मोदी जी की है तो ये सच है कि पिछले दस वर्षों में U.P.A. सरकार के शासन से त्रस्त जनता की समस्याएँ तो दिनोंदिन बढ़ती जा रहीं थीं ये बात मोदी जी अपने भाषणों में बोलते भी रहे इसका मतलब वो उस समय भी देश की जन समस्याओं से सुपरिचित थे किन्तु उन समस्याओं को कम करने का राष्ट्रीय स्तर पर कोई कार्य या आंदोलन मोदी जी ने स्वयं तो किया ही नहीं और प्रभाव पूर्वक  सम्पूर्ण देश का दौरा  करके जनता को कभी कोई धीरज भी नहीं बँधाया ! ऐसा भी नहीं हुआ कि उन्हें अपनी पार्टी को ही जनता के साथ प्रभावी रूप से खड़े होने के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करते सुना गया हो ! कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर न तो मोदी जी ही दिखाई पड़े और न ही मोदी जी का कोई विश्वास पात्र  पार्टी योद्धा ही उत्तर प्रदेश या सम्पूर्ण देश में दौरा करके जनता का हौसला बढ़ाने  के लिए ही भेजा गया ! इसप्रकार से U.P.A. सरकार के कुशासन से त्रस्त जनता  NDA  के सहयोग के बिना अकेले जूझते रही !       

      माना जा सकता है कि मोदी जी ने इन  चुनावों में परिश्रम बहुत किया है किन्तु किसके लिए ?अपनी पार्टी के प्रचार के लिए न कि जनहित के किसी आंदोलन के लिए !ऐसा हर राजनैतिक पार्टी या राजनेता अपना जनाधार बढ़ाने के लिए करता है वही मोदी जी ने भी किया है !चूँकि गुजरात की जनता के विकास के अलावा पूरे देश की जनता के हित में उन्होंने ऐसा कभी कुछ खास किया भी नहीं था जिसकी वो जनता को याद दिला पाते इसलिए अपने भाषणों में अधिकाँश समय में वो U.P.A. सरकार एवं उनके परिवार की आलोचना ही करते रहे जिससे जनता बीते दस वर्षों से भोगने के कारण सुपरिचित थी इसलिए  जनता  इन बातों से प्रभावित होकर उन्हें इतना प्रचंड बहुमत क्यों दे देती? 

       जब मोदी जी को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत करने की भाजपा ने घोषणा की  तब मोदी जी ने सारे देश में विशेष भागदौड़ की किन्तु गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के साथ साथ ! अर्थात देश की जनता ने यदि प्रधानमंत्री बनाने का बहुमत दिया तब तो देश के साथ अन्यथा हम गुजरात के गुजरात हमारा ,क्या जनता तक यह भावना जाने  से रोकी जा सकी है ? अर्थात बीते दस वर्षों में जनता को इस बात का खुला एहसास खूब कराया गया कि यदि वोट नहीं तो सेवा नहीं ! इसप्रकार से U.P.A. सरकार के कुशासन से त्रस्त जनता बेचारी  अकेले जूझते रही !और जनता ने ही अपनी रूचि से किया है सत्ता परिवर्तन ! इसमें किसी और को कोई विशेष श्रेय कैसे दिया जा सकता है!

इसलिए भाजपा की इस प्रचंड विजय का श्रेय मोदी जी को भी पूर्णरूप से नहीं दिया जा सकता है !

        इन सब बातों को यदि ध्यान में रखकर सोचा जाए तो इन चुनावों को जीतने में भाजपा की ओर से उतना प्रयास नहीं किया गया है जितनी बड़ी बिजय हुई है वैसे भी दिल्ली प्रदेश के चुनाव रहे हों या देश के, भाजपा में चुनावों के समय तक तो कलह चलती है ! इसलिए भाजपा का अपना कितना योगदान कहा जाए !

     अब बात एक बाबा जी की जिन्होंने इस विजय का श्रेय अपने शिर समेट रखा है अपना संकल्प पूरा होने पर खूब हवन पूजन किया एवं अपनी प्रशंसा में लोगों को बुला बुलाकर खूब भाषण करवा रहे हैं उन्हें भी इस बात की गलत फहमी है कि शोर तो मैंने भी खूब मचाया है हनीमून वाली बात भी मैंने ही बोली थी हो सकता है लोगों को ये बात अधिक अच्छी लग गई हो यदि ऐसा न होता तो भाजपा की इतनी प्रचंड विजय भी नहीं होती !हनीमून की तो कुछ बात ही और है वाह !

       मैंने भाजपायी मनीषियों के मुख से उनकी तुलना जेपी और गाँधी जी से करते सुना किन्तु यह तुलना स्वस्थ भाव से न करके स्वार्थ भाव से की गई लगती थी और स्वार्थ भाव से की गई ऐसी तुलनाओं को चाटुकारिता के अलावा कुछ भी  नहीं माना जाता है । चाटुकारिता में ही कई बार लोगों को कहते सुना जाता है कि  आप तो हमारे लिए भगवान की तरह हो !आदि आदि । 

       जहाँ तक बाबा जी के योगदान के मूल्यांकन की बात है तो ये बहुत स्पष्ट है कि बाबालोगों  के साथ जुड़ी भीड़ें कभी भी राजनैतिक आन्दोलनों में सहभागिता नहीं निभा पाती हैं ये भजन, योग, कथा और कीर्तन आदि के नाम पर इकट्ठी जरूर हो जाती हैं किन्तु ये भंडारा और भोजन या प्रसाद तक ही सीमित रहती हैं यदि ऐसा न होता तो जब बाबा जी पिछली बार औरतों के कपड़े पहनकर राम लीला मैदान से भागे थे तब उन्हें वहाँ रुकना चाहिए था और वीरता पूर्वक सरकार के विरुद्ध एक कड़ा सन्देश दिया जाना चाहिए था किन्तु समर्थकों के साथ इस बहादुरी से बाबा जी चूक गए ! दूसरी बात बाबा जी के अनुयायिओं की है कि वो यदि वास्तव में कोई संकल्प लेकर अपने घर से निकले थे तो उन्हें चाहिए था कि पुलिस वालों का विरोध करते !यदि अधिक और कुछ उनके बश का नहीं था तो कहीं दूर हटकर धरना प्रदर्शन तो कर ही सकते थे किंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि पता ही नहीं चला कि वो सब चेला चेली कहाँ भाग गए ! इसलिए बाबा जी के आंदोलनों का समाज पर कोई प्रभाव पड़ा होगा और उससे भाजपा की इतनी प्रभावी विजय हुई है ऐसा मानना उचित ही नहीं है!यह जनता का अपना संकल्प फलीभूत हुआ है । 

      वैसे भी बाबाओं का समाज पर कितना असर होता है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आशाराम जी जैसे लोगों के अनुयायी पता लगता है कि चार करोड़ हैं किन्तु जब आशाराम जी पकड़ कर जेल में डाल दिए गए और अभी तक जमानत नहीं मिल पाई है किन्तु उन चार करोड़ में से यदि एक करोड़ भी रोडों पर उतरकर आंदोलन करते तो परिणाम कुछ और ही होता किन्तु बाबाओं की भीड़ आंदोलन के लिए होती  ही नहीं है । 

      इसलिए भाजपा की इतनी बड़ी जीत का श्रेय  अकेले किसी भी बाबा बैरागी को नहीं दिया जा सकता ! हाँ ये आम जनता का रुख है जिसमें बाबा लोग भी शामिल हैं

       इसमें सत्ता परिवर्तन का सारा श्रेय देश की जनता को जाता है जिसने जाति संप्रदायवाद से ऊपर उठकर एक निश्चित दिशा में मतदान किया है दूसरा सबसे बड़ा श्रेय भारतीय जनता पार्टी के उन दायित्ववान या बिना दायित्ववान लाखों कार्यकर्ताओं को जाता है जिन्होंने दिन रात परिश्रम पूर्वक समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज की है और समाज को अपने विश्वास  में लिया है !यह तो मानना ही पड़ेगा कि देश की जनता के सामने इस समय N.D.A. और भाजपा  के अलावा कोई दूसरा विकल्प था ही नहीं फिर भी मोदी जी की विनम्रता ,निरंतर कार्य करने की क्षमता और विश्वसनीय व्यक्तित्व एवं उनके नेतृत्व में गुजरात के विकास की बात ध्यान में रखकर जनता ने न केवल मतदान में अधिक रूचि ली अपितु उनके पक्ष में अधिक मतदान भी किया है इसलिए श्रेय मोदी जी को भी जाता  है मोदी जी के अलावा भी भाजपा का नया पुराना समस्त नेतृत्व समान रूप से श्रेय भाजन है!आखिर पुराने नेतृत्व ने ही भाजपा के कलेवर को इतना अधिक विस्तारित किया है उनकी सैद्धांतिकता एवं विश्वसनीयता का भी अत्यंत विशाल योगदान है !भाजपा के पुराने नेतृत्व पर भी किसी प्रकार के किसी कालुष्य की कोई खरोंच तक नहीं मार सकता है उस परंपरा का भी कम योगदान नहीं है !

        इसलिए 'सबका साथ और सबका विकास' यही सही है इसके अलावा यदि भाजपा ने कल्पित जेपी और गाँधी गढ़ने की कोशिश की तो निस्वार्थ भावना से बिना कोई पद लिए बिना किसी लोभ लालच के दिन दिन भर भाजपा के पक्ष में हवा बनाने में दिन रात लगा रहा एक विराट वर्ग निराश आहत 'एवं ठगा सा जरूर महसूस करेगा !

     मुझे भय है कि श्रेयापहरण के चक्कर में कहीं जनता के संकल्प एवं निर्णय को भुला न दिया जाए ! दूसरी बात जिस जनता की जगह अभी तक भाजपा और मोदी जी को श्रेय दिया जा रहा है किन्तु मुझे ध्यान रखना होगा कि सत्ता परिवर्तन का यह निर्णय जनता का है और जनता के आवश्यक संकल्प को पूरा करने की उसकी अपनी सहनशीलता एवं समय सीमा है इसलिए उसे भी ध्यान में रखकर चला जाना चाहिए ,क्योंकि जनता कभी किसी को अधिक दिनों तक अनावश्यक रूप से क्षमा नहीं कर पाती है। 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



 


      

     


Friday, May 16, 2014

श्री राममंदिर के निर्माण के लिए ही भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला है इसलिए भाजपा शीघ्र ही तारीख की घोषणा करे -

    इसी ब्लॉग पर   Saturday, 24 August 2013 को प्रकाशित हमारी ज्योतिषीय भविष्यवाणी -(अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण का उपयुक्त समय और ज्योतिष -(19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)श्री राम की जन्म कुंडली  और श्री राम मंदिर        (19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)हो सकता है अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण !!!)see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/08/blog-post_24.html
श्री राम की जन्म कुंडली  और श्री राम मंदिर 

       (19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)

हो सकता है अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण !!! 

 वैसे तो धरती पर करोड़ों श्री राम मंदिर होंगे किन्तु जो अयोध्या में जो भगवान श्री राम का वास्तविक भवन है जिसे हम सभी लोग श्रृद्धा से श्री राम मंदिर कहते हैं उसके बनने में रुकावट के सामाजिक राजनैतिक सांप्रदायिक आदि बहुत सारे कारण हैं उनमें से एक कारण  ज्योतिष भी हो सकता है।ज्योतिष के कुछ योगों पर भी यहाँ ध्यान देना आवश्यक है।ज्योतिषीय दृष्टि कोण से कहा जा सकता है कि यदि राजनेताओं और धर्माचार्यों के द्वारा ईमानदारी पूर्वक अयोध्या में श्री राम  मंदिर बनाने के लिए प्रयास किया जाए तो जैसे बिना विवाद के सम्मान पूर्वक  श्री राम का राज्याभिषेक उस युग में अयोध्या में हुआ था उसी प्रकार बिना विवाद के सम्मान पूर्वक इस समय भी(19.6.2014 से प्रारम्भ होकर 14.7.2015 तक)श्री राम का भव्य मंदिर निर्माण सभी की सहमति से होने के प्रबल योग हैं। 

    यदि थोड़ी सी ज्योतिषीय सावधानी राम भक्तों के द्वारा बरती गई तो मंदिर बनने को रोका नहीं जा सकता बनेगा जरूर! और भव्य श्री राम मंदिर बनेगा यह भी निश्चित है।सर्व सम्मति से बनने के योग हैं। इसलिए रामभक्तों को निराश या हताश नहीं होना चाहिए और प्रयास करके तनाव नहीं बढ़ने देना चाहिएइसे भी पढ़ें -19.6.2014 से 14.7.2015 इस समय सांप्रदायिक उन्माद से माहौल बिगड़ भी सकता है - ज्योतिष http://snvajpayee.blogspot.in/2014/03/1962014-1472015.html 

 ज्योतिषीय सावधानी कहने से हमारा अभिप्राय यह है कि जैसे उत्तर प्रदेश में खिलेश की सरकार है और इसके मंत्री जम खान हैं उधर दूसरी ओर विश्व हिन्दू परिषद के शोक सिंघल जी हैं और चौथा नाम योध्या का है जहाँ श्री राम मंदिर बनना है इन चारों के नाम का पहला अक्षर है इसलिए यदि ये लोग आमने सामने आकर कोई रास्ता निकालना चाहेंगे तो कोई शांति पूर्ण समझौता  हो ही नहीं सकता अपितु समझौते के सारे प्रयास संघर्ष के रूप में भी  बदल सकते हैं ! 

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            (श्रीराममंदिर बनेगा कैसे?ज्योतिष! Dr.Vajpayee?)


 

    काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में श्री रामचरित मानस और ज्योतिष पर ही हमारी पी.एच.डी.की थीसिस थी।जिसे पूरा करने के बाद इन विषयों पर खोज पूर्ण कई ग्रन्थ लिखे हैं।जिसका कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत करता हूँ। 

  श्री राम की जन्म कुंडली में भवन सुख भाव में शनि होने से भवन होने के बाद भी भवनसुख का योग मध्यम एवं संघर्ष पूर्ण है।इसीलिए बचपन में पहले पिता के साथ रहते रहे। 15 वर्ष की उम्र में  विश्वामित्र जी ले गए फिर विवाह के बाद राज्य मिलना था तो बनवास हो गया । वहाँ जाकर जंगल में जब कुटी बनाई तो सीता हरण हो गया।जब बन से वापस आए तो सीता जी को बनवास हो गया।इसप्रकार जब गृहणी ही चली गई तो गृह सुख की आशा ही क्या बची ?  
     ज्योतिष की दृष्टि से यहाँ एक बात अवश्य है कि भवन भाव में  शनि उच्च राशि का है एवं भवनेश शुक्र भाग्य स्थान में उच्च राशि का है इसलिए राम जी कहाँ कितने दिन रह पाए या उन्हें गृहसुख कितना मिला या नहीं मिला  ये अलग बात है किन्तु उन्हें रहने के लिए जो  भवन या राज्य मिले वो एक  से एक भव्य अर्थात सुन्दर थे।अयोध्या का राज्य तो अपना था ही लंका और किष्किन्धा भी लोग देने को तैयार थे किन्तु श्री राम ने जीते हुए देश भी लिए ही नहीं।

     यहाँ ज्योतिष की एक बात विशेष ध्यान देने लायक यह है कि जैसे अयोध्या का राज्य मिलने से पहले भी गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ श्री राम को  खुले आसमान में ही बितानी पड़ी थीं अब फिर से अस्थाई श्री राम मंदिर में गर्मी शर्दी बरसात आदि सभी ऋतुएँ खुले आसमान में ही प्रभु श्री राम  को बितानी पड़ रही हैं।

    इसी प्रकार उस समय भी श्री राम को चौदह वर्षों तक तपस्या करनी पड़ी थी अब भी सन दो हजार चौदह तक फिर से प्रभु श्री राम को खुले आसमान में ही  अस्थाई श्री राम मंदिर में तपस्या करते रहना होगा।       

     जैसे उस समय चौदह वर्ष पूर्ण होने से चौदह महीने बारह दिन  पूर्व सीता हरण हुआ था उसके बाद से ही असुरों के संहार की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी। असुर आतंकियों को कठोर सजा देने का काम अब भी लगभग चौदह महीने पहले ही शुरू हो सका है।           

    आतंकियों को कठोर सजा देने का चिर प्रतीक्षित काम भी सन दो हजार बारह के नवंबर मास के अंत से ही करना प्रारंभ किया जा सका  है। यहाँ से लेकर सन दो हजार चौदह प्रारंभ तक भी वही लंका वाले लगभग चौदह महीने ही हो पाएँगे।

    यही चौदह महीने पहले सीता हरण से ही  नारियों की सुरक्षा के लिए जन जागरण वहाँ प्रारंभ हुआ था। अब भी 16 दिसंबर 2012 से अर्थात चौदह महीने पहले से ही यहाँ भी नारियों की सुरक्षा के लिए उसी तरह का  जन जागरण  प्रारंभ हुआ है। 

     इसी समय में  यदि इसीप्रकार से सज्जन समाज को पीड़ा पहुँचाकर समाज को पीड़ित करने वाले किसी भी जाति, समुदाय, संप्रदाय आदि के जो भी लोग हैं ऐसे असुर आतंकियों के साथ निपटने में यदि सरकार सफल हुई तो निराश हताश समाज के मन में फिर से प्रशासकों के प्रति विश्वास बढ़ेगा।सभी प्रकार के कठोर कानूनों के सफल क्रियान्वयन से  भ्रष्टाचार आदि आपदाओं से देश मुक्त होगा। भ्रष्टाचार मिटते ही न केवल आपराधिक वारदातों में कमी  आएगी अपितु महँगाई में भी लगाम लगेगी ।सभी देश वासियों की सुरक्षा का वातावरण बनेगा।

      दूसरी बात यह है कि जब बाबरी मस्जिद तोड़ी गई थी उस समय क्षिप्र संज्ञक अश्वनी था।इसमें अस्थाई काम तो किए जा सकते थे जैसे दुकान करना या कोई भी कला संबंधी कार्य कर पाना संभव था।इसी प्रकार मस्जिद का भी भविष्य कुछ भी नहीं था इसलिए वह भी टूट गईयहाँ विशेष बात यह है कि उसी समय मंदिर निर्माण के लिए चबूतरा या अस्थाई मंदिर  बना दिया गया था किन्तु जो  महूर्त तोड़ने का था उसी मुहूर्त में शिलान्यास कैसे किया जा सकता था? तोड़ने के मुहूर्त में किसी चीज का जोड़ना कैसे संभव हो सकता है। मत्स्य वेध करके अर्जुन ने द्रोपदी के साथ विवाह किया था।इसीप्रकार धनुष तोड़कर श्री राम ने सीता जी से विवाह किया था। इसलिए अर्जुन और द्रोपदी एवं श्री राम और सीता जी का सम्पूर्ण जीवन भटकते हुए संघर्ष पूर्वक बीता।

   जैसे धनुष तोड़ने का काम वर्षों से चल रहा था किन्तु कोई तोड़ नहीं पा रहा था उसीप्रकार बाबरी मस्जिद भी विवादित चल रही थी। धनुष तोड़ने का काम भी अश्वनी नक्षत्र में हुआ था और बाबरी मस्जिद भी अश्वनी नक्षत्र में ही तोड़ी जा सकी थी ।अंतर इतना रहा कि वशिष्ठ आदि ऋषियों ने धनुष टूटने के बाद उसके बारहवें दिन शुभ मुहूर्त विवाह नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी  में श्री राम और सीता का विवाह करवाया गया था। इस कारण दोष कुछ टल गया था फिर भी बहुत कुछ सहना पड़ा था।उसका कारण था कि धनुष टूटने के साथ ही विवाह मान लिया गया था

 टूटतही धनुभयउविवाहू ।सुरनरनाग विदित सब काहू

चूँकि            रहेउ विवाह चाप आधीना   

     इसीलिए 

गुरु वशिष्ठ से पंडित ग्यानी शोधि केलगन धरी ।

                             फिर भी 

सीता हरण मरण दशरथ को बन में बिपति परी ।।

 चूँकि धनुष टूटते हीश्री राम और सीता का विवाह हो गया था इसलिए वशिष्ठ जी का प्रयास विशेष कारगर सिद्ध नहीं हो सका, किन्तु बाबरी मस्जिद टूटने के साथ ऐसी कोई प्रतिज्ञा नहीं जुड़ी थी ।यहाँ तुरन्त शिलान्यास न करके यदि शुभ मुहूर्त में किया जाता तो संभव है कि मंदिर बनने का अबतक कोई समाधान निकल ही जाता।चूँकि इस्वी सन 1527 में सनातन हिंदुओं ने विजय दशमी,दीपावली और रामनवमी  पर्व बहुत बड़े जन समूह के साथ उमड़ घुमड़ कर अत्यंत धूम धाम से मनाए थे।श्रीराम प्रभु के प्रति हिन्दुओं की इतनी श्रृद्धा देखकर ये विधर्मी सह नहीं सके थे इसलिए श्रीराम  मंदिर तोड़कर उसी पर बाबरी मस्जिद बना डाली ।चूँकि उन्होंने भी मंदिर तोड़ने के साथ ही उसी पर मस्जिद का निर्माण किया था तोड़ने के साथ ही जोड़ने का अर्थ होता है कि इसका कोई स्थायित्व नहीं होगा ये कभी भी तोड़ी जा सकती है इस कारण बाबरी मस्जिद बनने के साथ ही उसका विध्वंस जुड़ा था।उसीप्रकार यदि इसी अस्थाई श्री राम चबूतरे पर ही यदि मंदिर बना दिया गया तो

बाबरी मस्जिद विध्वंस का कुयोग श्री मंदिर के साथ भी आरम्भ से ही जुड़ जाएगा।इसलिए इससे बचा जाना चाहिए । 

      चूँकि उस मस्जिद तोड़ी जा सकी थी इससे यह प्रमाणित भी होता है कि वह मुहूर्त मकान  टूटने का ही था तो ऐसे समय में मकान बनाना कैसे प्रारम्भ किया जा सकता था?
      इसलिए  श्री राम मंदिर निर्माण के लिए  कोई और मुहूर्त देख कर उसमें शिलान्यास करने से मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार किया जा  सकता है

  यहाँ एक विशेष बात का ध्यान और रखा जाना चाहिए कि इस देश की दो सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियों के प्रमुखों के नाम रा अक्षर से प्रारंभ होते हैं राजनाथ और राहुल ये दोनों से  ही रा मंदिर में ईमानदारी पूर्वक   समर्पणात्मक सहयोग की आशा नहीं की जानी चाहिए।

        यहाँ ज्योतिष एक बहुत बड़ा कारण है। किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा -पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है। 

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।

  रामलीला मैदान में पहुँचने से पहले तो रामदेव को मंत्री गण  मनाने पहुँचे फिर रामलीला मैदान में पहुँचने के बाद राहुल को ये पसंद नहीं आया तो रामदेव वहाँ से भगाए गए।

   दूसरी बार फिर रामदेव रामलीला मैदान पहुँचे इसके बाद राजीवगाँधी स्टेडियम जा रहे थे फिर राहुल को पसंद न आता और  लाठी डंडे चल सकते थे किन्तु अम्बेडकर स्टेडियम ने बचा लिया। 

     इसप्रकार से जब रा अक्षर वालों ने रा अक्षर वालों का साथ नहीं दिया तो राहुल और राजनाथ राम मंदिर का समर्थन कितना या कितने मन से करेंगे कैसे कहा जा सकता है? राम मंदिर प्रमुख रामचन्द्र दास परमहंसजी महाराज एवं उस समय के डी.एम. रामशरण श्रीवास्तव के और राम मंदिर इन तीनों का आपसी तालमेल सन 1990 में अच्छा नहीं रहा परिणामतः संघर्ष चाहें जितना रहा हो किन्तु मंदिर निर्माण की दिशा में कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

 दिल्ली भाजपा के चार विजयों  के  समूह का एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना   आगामी चुनावों में राजनैतिक भविष्य  के लिए चिंता प्रद हैंइसी कारण से पहले भी कांग्रेस विजय पाती रही है।                         

                         विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

     विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी

     इसी प्रकार भारत वर्ष में  भाजपा राजग बनाकर ही सत्ता में आ पाने में सफल हो सकी।जबकि इससे कम सदस्य संख्या वाले एवं अटलजी से  कमजोर व्यक्तित्व वाले लोग भी यहाँ प्रधानमंत्री बने हैं।कई प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भी अच्छी तरह से चल भी रही हैं ।       


   कलराजमिश्र-कल्याण सिंह  

  ओबामा-ओसामा   

  अरूण जेटली- अभिषेकमनुसिंघवी

  मायावती-मनुवाद

नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी 

लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद 

 परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 

 भाजपा-भारतवर्ष  

 मनमोहन-ममता-मायावती    

   उमाभारती -   उत्तर प्रदेश 
अमरसिंह - आजमखान - अखिलेशयादव 

 अमर सिंह - अनिलअंबानी - अमिताभबच्चन 

नितीशकुमार-नितिनगडकरी-नरेंद्रमोदी    प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन अन्नाहजारे-अरविंदकेजरीवाल-असीम त्रिवेदी-अग्निवेष- अरूण जेटली - अभिषेकमनुसिंघवी   

  न्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे न्ना हजारे, रविंदकेजरीवाल,सीमत्रिवेदी एवं ग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें ग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से भिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता रूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए भिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर रूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।

       अन्नाहजारे की तरह ही मर सिंह जी भी अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल जमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु खिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही मरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब खिलेश के साथ जमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
     चूँकि मरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। जैसेः- जमखान मिताभबच्चन  निलअंबानी  भिषेक बच्चन आदि।

  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।