Tuesday, January 25, 2022

समाज के अनुत्तरित प्रश्न(इसका उपयोग हो चुका )

   महामारी के इतने डरावने स्वरूप से अपरिचित समाज ने कभी नहीं सोचा था कि हमारे जीवन में कभी ऐसे भयावह दिन भी आएँगे | वर्तमान समय की परिस्थिति यह है कि महामारी के जाने के बाद भी दशकों तक महामारी के विषय में सोचकर समाज सहम उठेगा | जिस पीढ़ी ने महामारी के दारुणदिनों को अपनी आँखों से देखा है ऐसी परेशानियों का स्वयं अनुभव किया है वह तो ऐसे दुर्दिनों को कभी नहीं भूल सकेगी |मानव मन तरह तरह की आशंकाओं से आक्रांत है यह सोचकर बहुत अधिक डरा हुआ है कि न जाने फिर से महामारी कब प्रारंभ हो जाएगी और फिर से लॉकडाउन लगा दिया जाएगा | मुझे दोबारा अपना सारा काम काज बंद करना पड़ेगा |कर्जा लेकर किए गए व्यवसाय का कर्जा कैसे उतारा जाएगा आदि |चिंताएँ मानव मन को व्यथित कर रही हैं |पहले की तरह दोबारा व्यवस्थित होने में समय लगेगा |परिस्थितियाँ सामान्य होने के बाद भी महामारीजनित समस्याओं से आशंकित लोगों का चिंतन सहज होने में लंबा समय लगेगा | इस डर को भूलने में वर्षों का समय लग सकता है | महामारी का प्रभाव केवल उनकी दिनचर्या तक ही सीमित नहीं रहेगा अपितु वर्षों तक दूसरे को छूने में ,किसी का छुआ खाने में ,किसी का दिया हुआ उपहार लेने देने में ,किसी सर्दी जुकाम खाँसी से ग्रस्तव्यक्ति से मिलने में उसके साथ काम करने में,भीड़ भाड़ में आने जाने में डर लगता रहेगा |
     महामारी का प्रभाव शिक्षा से लेकर सामाजिक संबंधों कार्यक्रमों व्यवहारों व्यापारों एवं सरकारी कामकाज आदि सभी स्थलों पर लंबे समय तक पड़ता रहेगा | लोग उधार व्यवहार लेकर व्यापार करने में दशकों तक हिचकते रहेंगे | महामारी से उत्पन्न अवरोध के कारण ऋणाश्रित छोटे मोटे व्यापार तो लगभग समाप्त हो ही चुके हैं | ऐसे व्यापारों से लंबे समय तक जुड़कर आजीविका अर्जित करने वाले कर्मचारियों ने उस विषम परिस्थिति से निपटने में अपनी अपनी तत्कालीन आजीविका अर्जित करने के लिए यथा संभव विकल्प चुन लिए हैं | कुलमिलाकर उन छोटे मोटे व्यापारों का ताना बाना पूरी तरह बिखर चुका है | जो किसी तरह व्यापार खड़ा भी करेंगे उन्हें उस काम के लिए उतने कुशल कारीगर मिलने में समय लगेगा | जो मिलेंगे उन्हें काम सीखने में समय लगेगा |

     इसलिए महामारी के भय को मिटाने के लिए शासन प्रशासन को कुछ अलग से ऐसे विश्वसनीय विकल्प चुनने पड़ेंगे | जिनके द्वारा जनता के मन में बैठे इस प्रकार के महामारी जनित भय दूर किया जा सके | चिंता की बात यह है कि इस कार्य में चिकित्सा वैज्ञानिक चिकित्सक आदि बड़ी भूमिका निभा सकते थे कि अब निकट समय में महामारी नहीं आएगी और आएगी भी तो उसके चिकित्सकीय विकल्प खोजे जा चुके हैं इसलिए उससे अब परेशान  नहीं होना पड़ेगा | जनता चिकित्सकों को भगवान का दूसरा स्वरूप मानती है उनकी प्रत्येक बात को मंत्र की तरह सही मानकर उस पर न केवल विश्वास कर लिया करती है अपितु उसका अनुपालन भी किया करती है किंतु महामारी काल में अपने आदरणीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुमानों पूर्वानुमानों से संबंधित प्रत्येक बयान को बार बार झूठ निकलते देखा गया  है |अपने चिकित्सा संबंधी उन्नत अनुसंधानों पर गर्व करने वाले समाज ने अपनी चिकित्सा सेवाओं को इतना विवश होते पहले कभी नहीं देखा था | इसका कुछ प्रभाव तो उनके भी मन पर पड़ा ही होगा | वैक्सीन के दो दो डोज लगाकर भी समाज को यह विश्वास नहीं दिलाया जा सका कि तुम्हें अब कोरोना से खतरा नहीं है अब तुम सुरक्षित हो | जितने भी कोरोना नियम बनाए गए उनका पूरी तरह से पालन करने वालों को भी विश्वास पूर्वक यह आश्वासन नहीं दिया जा सका कि तुम्हें महामारी से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हैं |

इसलिए समाज के उस टूटे हुए विश्वास को जोड़ने में समय लगेगा तब तक के लिए कोई ऐसा विकल्प चुनना आवश्यक हो गया है जो महामारी से डरे सहमे समाज के मन में यह भरोसा पैदा करने में सक्षम हो सके कि भविष्य में पैदा होने वाली महामारियों का पूर्वानुमान लगा लिया जाया करेगा | इसके साथ ही अब महामारी से मुक्ति के लिए विश्वसनीय प्रभावी प्रयत्न किए जा सकेंगे | 
     वैसे भी महामारी अभी आई है कुछ समय में चली ही जाएगी | उससे जनता को जितना जूझना था जूझ लिया है किंतु उसके पीछे कुछ ऐसे अनुत्तरित प्रश्न अवश्य छूटे जा रहे हैं जिनका उत्तर शायद कभी न मिल पाए |जनता  जिन अपनों पर सबसे अधिक विश्वास किया करती थी आखिर उनकी क्या मजबूरी रही कि वे जो दावे किया करते थे उन पर खरे क्यों नहीं उतर सके ?
 
    1. वैज्ञानिकों के पास महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक पद्धति है या नहीं जिसके द्वारा महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके ? यदि है तो महामारी के आने से पहले वे महामारी के आने के विषय में कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं लगा सके ? यदि नहीं है तो समय समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के  विषय में पूर्वानुमान किस आधार पर बताए जाते रहे ?

  2. यदि कोविड नियम वास्तव में प्रभावी थे और उनके द्वारा महामारी संबंधी संक्रमण पर अंकुश लगाना संभव था तो महामारी का जन्म पड़ोसी देश में हो चुका है ऐसा जानकर भी कोविड नियमों का पालन करके अपनेदेश को कोरोना मुक्त बनाए रखने में कठिनाई क्या थी ?

 3. महामारी काल में कोरोना महामारी से लोग अधिक पीड़ित हुए या महामारी में बचाव करने लायक तैयारियों के अभाव में लोग अधिक पीड़ित हुए ? हमेंशा चलने वाले चिकित्सकीय अनुसंधानों के द्वारा महामारी से बचाव के लिए पहले से ऐसी क्या  तैयारी करके रखी गई थी जिससे महामारी से जूझती जनता को थोड़ी भी मदद मिल सकी हो ?

 4. महामारी और सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के विषय में यदि पहले से पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है बाद में तो महामारी और प्राकृतिक आपदाएँ ही जो कुछ करती हैं वही होता है |ऐसी घटनाओं के घटित हो जाने के बाद जनता की मदद करने में वे वैज्ञानिक अनुसंधान किस प्रकार की आशा रखी जानी चाहिए !

5 . आयुर्वेद के चरकसंहिता आदि ग्रंथों में महामारी का पूर्वानुमान लगाने की जो विधियाँ बताई गई हैं उनके आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका और महामारी से मुक्ति दिलाने वाले प्रभावी उपाय क्यों नहीं किए जा सके ?

6 . योग में स्वस्थ रहने एवं दूसरों को स्वस्थ रखने की असीम शक्ति बताई जाती है | योग की ही एक विधा स्वरोदय है जिसके द्वारा महामारी के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया जाता है अपितु महामारी पर अंकुश लगाना भी संभव बताया जाता है | यदि आधुनिक युग के योगियों में भी योग की थोड़ी बहुत भी समझ थी तो उनके द्वारा योग के माध्यम से महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज को महामारी मुक्त क्यों नहीं रखा जा सका ? 

 7. ज्योतिषविद्वानों के द्वारा सभी घटनाओं की तरह ही महामारियों के विषय में भी पूर्वानुमान लगा लेने के दावे किए जाते रहे हैं ऐसी परिस्थिति में सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों में नियुक्त रीडर प्रोफेसरों आदि ने इतनी बड़ी आपदा से जूझती जनता को मदद पहुँचाने के लिए महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर सरकार को उससे अवगत क्यों नहीं करवाया | आखिर उनकी क्या मजबूरी थी ?

8.वेद वेदांगों में यज्ञादि अनेकों ऐसे  उपायों का वर्णन मिलता हैजिनके द्वारा महामारी जैसे संकटों से मुक्ति पाई  जा सकती है | ऐसी परिस्थिति में सरकार के द्वारा संचालित संस्कृत विश्व विद्यालयों के वेद विज्ञान विभागों में नियुक्त  विद्वान शिक्षकों ने ऐसे कोई यज्ञादि प्रभावी उपाय करके महामारी से मुक्ति दिलाने में सरकार का सहयोग क्यों नहीं किया ? 

9. महामारी और सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाव कर लेने की जो विशेषता  वेद वेदांगों में बताई गई है जो विश्व गुरु भारत की मुख्य पहचान है | महामारी काल में विद्वानों के द्वारा उसका कुछ ऐसा परिचय क्यों नहीं दिया जा सका जिससे विश्व मंच पर भारत की कुछ ऐसी विशेषता  प्रकट होती जो अन्य देशों को भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान की ओर आकृष्ट करती | 

Wednesday, January 19, 2022

परोक्ष विज्ञान

तर्कशास्त्र, अनुमान के वैध नियमों का व्यवस्थित अध्ययन है | युक्ति का विश्लेषण और मूल्यांकन तर्कशास्त्र है।
तर्कशास्त्र का विषय परोक्ष ज्ञान अथवा अनुमान है। तर्कशास्त्र का सम्बन्ध वास्तव में शुद्ध अनुमान के नियमों और सिद्धान्तों से है जिनका पालन कर हम सत्य परोक्ष ज्ञान की प्राप्ति कर सकें। तर्कशास्त्र शुद्ध तथा अशुद्ध अनुमान में भेद करने के तरीकों को हमारे सामने रखते हुए सही ढंग से अनुमान और तर्क करने के नियमों का निरूपण करता है। इस प्रकार तर्कशास्त्र का सम्बन्ध हमारे परोक्ष ज्ञान से है, जिसका विकसित ज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ा अंश है। वैज्ञानिक ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित अवश्य होता है, परन्तु उसका ज्यों-ज्यों विकास होता है, परोक्ष ज्ञान का अंश उसमें बढ़ता जाता है। दूसरे शब्दों में वैज्ञानिक ज्ञान के विकास में अनुमान एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सहायक क्रिया है। परन्तु यदि यह अनुमान सही रास्ते पर न हो, तो फिर ज्ञान का विकास होने के बजाय ह्रास होगा तथा वह जीवन के लिए घातक सिद्ध होगा। और सही अनुमान के तरीकों को हमारे सामने रखना ही तर्कशास्त्र का मुख्य काम है।

मनुष्य जितने प्रकार के ज्ञान अनेकों साधनों से प्राप्त करता है उन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है-(१) प्रत्यक्ष ज्ञान तथा (२) परोक्ष ज्ञान । प्रत्यक्ष ज्ञान से तात्पर्य वैसे ज्ञान से है जो मनुष्य अपने आन्तरिक अथवा बाह्य ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा साक्षात् रूप से प्राप्त करता है। जैसे, संसार की अनेकों वस्तुओं को देखकर या उनकी आवाज सुनकर या उनका गन्ध अथवा स्वाद लेकर हम इस बात का ज्ञान प्राप्त करते हैं कि कोई वस्तु नारंगी है, कोई गुलाब है, कोई घड़ा है आदि । परन्तु हमारा समस्त ज्ञान प्रत्यक्ष ही नहीं होता। यदि ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान तक ही सीमित रखा जाए तो मनुष्य के ज्ञान की परिधि बहुत ही छोटी हो जाएगी। 
    हमारे ज्ञान का एक बहुत बड़ा भाग परोक्ष ज्ञान का होता है। परोक्ष ज्ञान, प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त ज्ञान तो नहीं है, परन्तु प्रत्यक्ष ज्ञान के ही आधार पर बुद्धि की कुछ खास क्रिया की सहायता से यह ज्ञान प्राप्त किया जाता है। कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष के आधार पर बुद्धि की क्रिया की सहायता से अप्रत्यक्ष के सम्बन्ध में जो ज्ञान हम प्राप्त करते हैं वह परोक्ष ज्ञान है |
 
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“चन्द्रमा मनसो जाताश्चक्षो सूर्यो अजायत। श्रोत्रांवायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत।”
  एक प्राणी के दो रूप होते हैं- एक सूक्ष्म तथा दूसरा स्थूल। स्थूल शरीर में दो भुजाएं, दो आँख, नाक, पैर, सिर एवं पेट-पीठ आदि होते है। जिससे प्राणी अपनी भौतिक क्रियाओं को करता है। सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, विवेक, चेतना, भावना, संवेदना आदि होते है। जिससे वह अपना काम करता है। स्थूल शरीर के समस्त अवयव प्रत्यक्षतः भौतिक आघात-प्रत्याघात के संपर्क में होते हैं। किन्तु सूक्ष्म शरीर के अवयव विविध ग्रंथिगत तरलादि द्रव्यों (Glandular Matters) से घिरे एवं इस प्रकार अत्यंत सुरक्षित एवं संरक्षित (Safe & Preserved) रहते है।

    चेतना+दिमाग=विचार,यादें,तर्क,विवेक(मानसिक). चेतना+दिमाग=शारीरिक संगठन, शरीर-रचना (मनो-शारीरिक).
    चेतना+हृदय=भावनाएँ,एहसास. चेतना+हृदय=प्राण(जिवन).
    चेतना+शरीर=भुख. चेतना+शरीर=ताकत.
    चेतना=मन(ध्यान). चेतना+समय=किस्मत(2) 1.स्वाभाविक 2. कर्म-प्रधान.
    अपनी इंद्रियों की सीमाओं को इस तरह बढ़ाना कि अगर आप यहां बैठे हैं, तो पूरा का पूरा जगत आपको अपना हिस्सा महसूस हो, यही योग है। यही चेतना का विकास है।  

चेतना शब्द का अर्थ बताना चाहूंगा। आखिर चेतना है क्या?
आप बहुत सारी चीजों से मिलकर बने हैं। जब आप एक जीवन के रूप में यहां बैठते हैं तो इसका मतलब है कि इस धरती की एक निश्चित मात्रा यहां मौजूद है, सत्तर फीसदी से ज्यादा पानी की मौजूदगी है, हवा भी है, अग्नि भी है और आकाश भी। इसके अलावा एक मौलिक प्रज्ञा होती है, जो इन सभी चीजों को एक खास तरीके से एक साथ जोड़ती है और इनसे एक जीवन का निर्माण करती है। एक तरह की प्रज्ञा ही है जो मिट्टी को पेड़ बना रही है, पक्षी बना रही है, कीड़ा बना रही है, इंसान बना रही है, हाथी बना रही है। एक ही पदार्थ से एक के बाद एक न जाने कितनी चीजें बनती जा रही हैं।
 
 
        ‘चेतना’ या ‘चेतनता’ एक ऐसा शब्द है जिसका बहुत ही गलत अर्थों में प्रयोग किया जाता है। लोगों ने इसे न जाने किन-किन अर्थों में प्रयोग कर डाला है। तो सबसे पहले तो मैं चेतना शब्द का अर्थ बताना चाहूंगा। आखिर चेतना है क्या?
आप बहुत सारी चीजों से मिलकर बने हैं। जब आप एक जीवन के रूप में यहां बैठते हैं तो इसका मतलब है कि इस धरती की एक निश्चित मात्रा यहां मौजूद है, सत्तर फीसदी से ज्यादा पानी की मौजूदगी है, हवा भी है, अग्नि भी है और आकाश भी। इसके अलावा एक मौलिक प्रज्ञा होती है, जो इन सभी चीजों को एक खास तरीके से एक साथ जोड़ती है और इनसे एक जीवन का निर्माण करती है। एक तरह की प्रज्ञा ही है जो मिट्टी को पेड़ बना रही है, पक्षी बना रही है, कीड़ा बना रही है, इंसान बना रही है, हाथी बना रही है। एक ही पदार्थ से एक के बाद एक न जाने कितनी चीजें बनती जा रही हैं।

जिस वजह से यह सब संभव हो रहा है, उसे हम आमतौर पर चेतना कह देते हैं। हम इस शब्द का प्रयोग क्यों कर रहे हैं? क्योंकि केवल सचेतन व जागरूक रहकर ही आप यह जान सकते हैं कि आप जिंदा हैं या नहीं।
अपनी इंद्रियों की सीमाओं को इस तरह बढ़ाना कि अगर आप यहां बैठे हैं, तो पूरा का पूरा जगत आपको अपना हिस्सा महसूस हो, यही योग है। यही चेतना का विकास है।
 

हम यहां बैठे हैं। हम एक ही हवा में सांस ले रहे हैं। इस हवा में बहुत सारा पानी भी है, नमी है। हम हवा और पानी हमेशा एक-दूसरे से अदल-बदल रहे हैं, आपस में एक दूसरे को साझा कर रहे हैं। हमें इसमें कोई समस्या नहीं है, क्योंकि हमारी पहचान इनसे नहीं है। हमने तो अपनी पहचान अपने इस शरीर के साथ स्थापित की है, इसलिए हमें इसी से समस्याएं हैं। यह मैं हूं, किसी को इस सीमा के अतिक्रमण की इजाजत नहीं है।
तो जिसे हम चेतना कह रहे हैं, वह दरअसल आपके अस्तित्व का बहुत ही सूक्ष्म पहलू है और इसे हर कोई साझा करता है। एक ही प्रज्ञा है जो मेरे भीतर, आपके भीतर या किसी और के भीतर भोजन को मांस में बदल रही है। एक ही प्रज्ञा है। वह अलग-अलग लोगों में अलग-अलग नहीं है। तो अगर लोग अपने शरीर से पहचान स्थापित करने के बजाय अपने भीतरी आयाम से अपनी पहचान स्थापित करें तो ‘मैं’ और ‘तुम’ का उनका भाव हल्का होता जाता है और उन्हें ‘मैं’ और ‘तुम’ एक ही नजर आने लगते हैं। इसका अर्थ है कि सामाजिक संदर्भ में चेतना का विकास हुआ है।
  योग शब्द के अर्थ है मिलन। अगर इसकी अभिव्यक्ति बहुत ही साधारण तरीके से, शारीरिक स्तर पर हो, तो उसे हम कामुकता यानी सेक्सुअलिटी कहते हैं। अगर इसकी अभिव्यक्ति भावनात्मक रूप से हो जाए तो उसे हम प्रेम कह देते हैं। अगर इसे एक चेतन अभिव्यक्ति मिल जाए तो इसे योग कह दिया जाता है।
   दरअसल तकनीक का यह गुण होता है कि उसे जो कोई भी सीखने की कोशिश करता है, यह उसी के लिए काम करना शुरू कर देती है। बस आपको इसे सीखने की जरूरत है। आपको इसमें आंखें बंद करके भरोसा नहीं करना है, न ही इसकी पूजा करनी है, आपको इसे दिमाग में लेकर भी नहीं चलना है, आपको बस इसे प्रयोग करने का तरीका सीखना है और यह आपके लिए कम करने लगेगी। जो कोई भी इसे प्रयोग करना सीख लेता है, यह उसी के लिए काम करना शुरू कर देती है, चाहे वह कोई भी हो। इसीलिए कहा जाता है कि योग एक तकनीक है। आपको बस इसे इस्तेमाल करने का तरीका सीखना है।
चेतना की परिभाषा

अगर आप बेसुध हैं, तो आपको पता नहीं होता कि आप जीवित हैं या नहीं। अगर आप गहरी नींद की अवस्था में हैं तो भी आप यह नहीं जानते कि आप जीवित हैं या नहीं। अगर आप जीवन को महसूस करते हैं, उसकी जीवंतता का अनुभव करते हैं, तो इसकी वजह सिर्फ  यही है कि आप सचेतन हैं।

 

तो इसे हम चेतना कह रहे हैं। अब हम इस चेतना को विकसित करना चाहते हैं। आप इसे उठा नहीं सकते, आप इसे नीचे भी नहीं ला सकते, लेकिन चेतना विकसित करने को हम दूसरे अर्थ में प्रयोग करते हैं। अगर आप यहां अपने शरीर के साथ जबर्दस्त पहचान स्थापित करके बैठे हुए हैं, तो आपकी सीमाएं बिल्कुल साफ  हैं। यह मैं हूँ, यह मैं नहीं हूं। इस स्थिति में आप एक बिल्कुल अलग अस्तित्व हैं। इंसान के भीतर या किसी और प्राणी के भीतर भी यह एक तरह का बस जीवित रहने का तरीका है। इसमें आप कौन हैं, उसकी सीमाएं पूरी तरह से तय हैं। यह मेरा शरीर है, यह तुम्हारा शरीर है। यह मैं हूँ और यह तुम हो। दोनों के एक होने का कोई तरीका नहीं है।
       
 
  विज्ञान के दो पक्ष !
  विज्ञान भौतिक पदार्थो का अध्ययन करता तो वहीं परोक्ष विज्ञान चेतना का अध्ययन करता है। पदार्थ विज्ञान का, साइंस का अपना महत्त्व है। उसी के आधार पर मानवी प्रगति की सुविधा साधनों की अगणित उपलब्धियां हस्तगत हो सकती हैं। उन्हीं के सहारे मनुष्य भौतिक प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा है और अन्य जीवधारियों की तुलना में अधिक साधना संपन्न बना है। अध्यात्म चेतना का विज्ञान है। मनुष्य के दो भाग हैं एक जड़ और दूसरा चेतन। जड़ पंचतत्त्वों से बना शरीर है और चेतन आत्मा। जड़ शरीर के लिए जड़ जगत से साधन उपक्रम प्राप्त होते हैं और उन्हें जुटाने के लिए भौतिक विज्ञान की विद्या अपनानी पड़ती है। ठीक इसी प्रकार आत्मा को चेतना की प्रगति और समृद्धि के लिए चेतना विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। ैं। जिस प्रकार इंद्रियजन्य वासनाओं की, तृष्णाओं की पूर्ति भौतिक साधन सामग्री के आधार पर होती है, इसी प्रकार आंतरिक समाधान, संतोष, आनंद उल्लास की असीम शांति भरी स्थिति अध्यात्म विज्ञान के आधार पर उपार्जित संपदाओं से होती है।
       1.  भौतिक पदार्थो का अध्ययन   
       2. चेतना का अध्ययन :- कुछ जीवधारियों में स्वयं के और अपने आसपास के वातावरण के तत्वों का बोध होने, उन्हें समझने तथा उनकी बातों का मूल्यांकन करने की शक्ति का नाम है। विज्ञान के अनुसार चेतना वह अनुभूति है जो मस्तिष्क में पहुँचनेवाले अभिगामी आवेगों से उत्पन्न होती है। इन आवेगों का अर्थ तुरंत अथवा बाद में लगाया जाता है।चेतना मनुष्य की वह विशेषता है जो उसे जीवित रखती है और जो उसे व्यक्तिगत विषय में तथा अपने वातावरण के विषय में ज्ञान कराती है। इसी ज्ञान को विचारशक्ति (बुद्धि) कहा जाता है। यही विशेषता मनुष्य में ऐसे काम करती है जिसके कारण वह जीवित प्राणी समझा जाता है।
उदाहरणार्थ, हम एक ऐसे मनुष्य के बारे में सोच सकते हैं जो नदी की ओर जा रहा है। यदि वह चलते-चलते नदी तक पहुँच जाता है और नदी में घुस जाता है तो वह डूबकर मर जाएगा। वह अपना चलना तब तक नहीं रोक सकता और नदी में घुसने से अपने को तब तक नहीं बचा सकता जब तक कि उसकी चेतना में यह ज्ञान उत्पन्न नहीं होता कि उसके समने नदी है और वह जमीन पर तो चल सकता है, परंतु पानी पर नहीं चल सकता। मनुष्य की सभी क्रियाओं पर उपर्युक्त नियम लागू होता है चाहे, ये क्रियाएँ पहले कभी हुई हों अथवा भविष्य में कभी हों। मनुष्य केवल चेतना से उत्पन्न प्रेरणा के कारण कोई काम कर सकता है।
     चेतना मानव में उपस्थित वह तत्व है जिसके कारण उसे सभी प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं। चेतना के कारण ही हम देखते, सुनते, समझते और अनेक विषय पर चिंतन करते हैं। इसी के कारण हमें सुख-दु:ख की अनुभूति भी होती है और हम इसी के कारण अनेक प्रकार के निश्चय करते तथा अनेक पदार्थों की प्राप्ति के लिए चेष्टा करते हैं।
      मानव चेतना की तीन विशेषताएँ हैं। वह ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक होती है। भारतीय दार्शनिकों ने इसे सच्चिदानंद रूप कहा है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के विचारों से उक्त निरोपज्ञा की पुष्टि होती है। चेतना वह तत्व है जिसमें ज्ञान की, भाव की और व्यक्ति, अर्थात् क्रियाशीलता की अनुभूति है। जब हम किसी पदार्थ को जानते हैं, तो उसके स्वरूप का ज्ञान हमें होता है, उसके प्रति प्रिय अथवा अप्रिय भाव पैदा होता है और उसके प्रति इच्छा पैदा होती है, जिसके कारण या तो हम उसे अपने समीप लाते अथवा उसे अपने से दूर हटाते हैं।
    मनोविज्ञान अभी तक चेतना के स्वरूप में आगे नहीं बढ़ सका है। चेतना ही सभी पदार्थो को, जड़ चेतन, शरीर मन, निर्जीव जीवित, मस्तिष्क स्नायु आदि को बनाती है, उनका स्वरूप निरूपित करती है। फिर चेतना को इनके द्वारा समझाने की चेष्टा करना अविचार है। मेगडूगल महाशय के कथनानुसार जिस प्रकार भौतिक विज्ञान की अपनी ही सोचने की विधियाँ और विशेष प्रकार के प्रदत्त हैं उसी प्रकार चेतना के विषय में चिंतन करने की अपनी ही विधियाँ और प्रदत्त हैं। अतएव चेतना के विषय में भौतिक विज्ञान की विधियों से न तो सोचा जा सकता है और न उसके प्रदत्त इसके काम में आ सकते हैं।
     भौतिक विज्ञान स्वयं अपनी उन अंतिम इकाइयों के स्वरूप के विषय में निश्चित मत प्रकाशित नहीं कर पाया है जो उस विज्ञान के आधार हैं। पदार्थ, शक्ति, गति आदि के विषय में अभी तक कामचलाऊ जानकारी हो सकी है। अभी तक उनके स्वरूप के विषय में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। अतएव चेतना के विषय में अंतिम निर्णय की आशा कर लेना युक्तिसंगत नहीं है। चेतना को अचेतन तत्व के द्वारा समझाना, अर्थात् उसमें कार्य-कारण संबंध जोड़ना सर्वथा अविवेकपूर्ण है। चेतना को जिन मनोवैज्ञानिकों ने जड़ पदार्थ की क्रियाओं के परिणाम के रूप में समझाने की चेष्टा की है अर्थात् जिन्होंने इसे शारीरिक क्रियाओं, स्नायुओं के स्पंदन आदि का परिणाम माना है, उन्होंने चेतना की उपस्थिति को ही समाप्त कर दिया है।मनोविज्ञान का विषय मनुष्य का दृश्यमान व्यवहार ही नहीं होना चाहिए।
     चेतना स्वयं तत्व है और उसका शरीर से आपसी संबंध है, अर्थात् चेतना में होनेवाली क्रियाएँ शरीर को प्रभावित करती हैं। कभी-कभी चेतना की क्रियाओं से शरीर प्रभावित नहीं होता और कभी शरीर की क्रियाओं से चेतना प्रभावित नहीं होती। एक मत के अनुसार शरीर चेतना के कार्य करने का यंत्र मात्र हैं, जिसे वह कभी उपयोग में लाती है और कभी नहीं लाती। परंतु यदि यंत्र बिगड़ जाए, अथवा टूट जाए, तो चेतना अपने कामों के लिए अपंग हो जाती है। कुछ गंभीर मनोवैज्ञानिक विचारकों द्वारा विज्ञान की वर्तमान प्रगति की अवस्था में उपर्युक्त मत ही सर्वोत्तम माना गया है।
    मनोविज्ञान ने सर्वप्रथम अपनी आत्मा का त्याग किया ,फिर मन का त्याग किया ,फिर चेतना का त्याग किया और आज मनोविज्ञान व्यवहार के विधि के स्वरूप को स्वीकार करता हैं ”


Sunday, January 9, 2022

Book mark

 कोरोना 
 
31-12- 2021देश में तेजी से बढ़ेंगे ओमिक्रॉन केस, फिर से भर जाएंगे अस्पताल: WHO चीफ साइंटिस्ट की वॉर्निंगsee .... https://hindi.news18.com/news/nation/omicron-less-severe-disease-but-destroy-health-systems-warn-by-who-chief-scientist-soumya-swaminathan-3929611.html

4 Jan 2022 आईआईटी के प्रो. मणींद्र का दावा: ओमिक्रॉन को रोकने में वैक्सीन से बनी इम्युनिटी कारगर नहीं, तेजी से बढ़ेगा संक्रमण !see .... https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/kanpur/iit-prof-manindra-claims-vaccine-immunity-is-not-effective-in-stopping-omicron

31 दिसंबर 2021 कानपुर IIT के प्रोफेसर का दावा- फरवरी में पीक पर रहेगा कोरोना का नया वैरिएंट see ....https://www.aajtak.in/coronavirus/story/kanpur-omicron-corona-virus-kanpur-iit-professor-election-up-manidra-agrawal-ntc-1384418-2021-12-31

 


Jan 04, 2022ओमिक्रॉन आपका दुश्‍मन नहीं! कोरोना को खत्‍म करने की कही जा रही नैचुरल वैक्‍सीनsee ... https://zeenews.india.com/hindi/lifestyle/omicron-is-a-natural-vaccine-will-end-coronavirus-crisis-by-end-of-2022-us-study-reveals/1062314

 04 जनवरी 2022,कोरोना महामारी के अंत का संकेत, एक-दो महीने बाद लौट आएंगे फिर पुराने दिन'see .... https://www.aajtak.in/health/story/omicron-cases-increasing-but-it-will-bring-the-end-of-the-corona-virus-pandemic-says-denmark-health-chief-new-study-on-omicron-variant-tlif-1386138-2022-01-04
 
 
 भूकंप 
     29 नवंबर 2021 साल 2500 में कैसी दिखेगी दुनिया, जलवायु परिवर्तन से भारत में क्या बदलेगा? देखिएhttps://www.aajtak.in/science/photo/how-climate-change-shape-the-world-india-see-the-pictures-tstr-1365035-2021-11-29-1.
 
30-11-2021 हिली धरती: लद्दाख में आया भूकंप, 3.7 दर्ज की गई तीव्रता, नुकसान की कोई सूचना नहींhttps://www.amarujala.com/jammu/low-intensity-earthquake-hit-leh-ladakh

 

22  Dec 2021बेंगलुरु में 5 मिनट के भीतर आए भूकंप के दो झटके, घरों से बाहर निकले लोगsee ... https://www.indiatv.in/india/national/earthquakes-of-up-to-3-3-magnitude-hit-about-70-kms-north-northeast-of-bengaluru-828190

22  Dec 2021  हिमाचल में फिर हिली धरती, सुबह-सुबह आया भूकंप, सहमे लोगsee .... https://hindi.news18.com/news/himachal-pradesh/shimla-breaking-news-earthquake-in-himachal-tremor-felt-in-mandi-on-22-december-morning-hpvk-3912686.html


25 Dec 2021खतरे के दौर से गुजरती दुनिया, भारत को लेकर सामने आई एक रिपोर्ट को लेकर परेशानी में आए विशेषज्ञsee .... https://www.jagran.com/news/national-climate-threats-in-india-as-well-as-world-22324108.html

26 Dec 2021महाराष्ट्र के नासिक में भूकंप के झटके, 3.9 रिक्टर स्केल पर हिली धरतीsee https://navbharattimes.indiatimes.com/state/maharashtra/other-cities/earthquake-of-4-magnitude-hits-maharashtra-nashik/articleshow/88500229.cms

  27-12-2021जम्मू-कश्मीर में एक के बाद एक 2 बार आया भूकंप, रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.3 मापी गईsee ... https://www.indiatv.in/india/national/jammu-and-kashmir-earthquake-of-magnitude-5-3-hits-828923

 
28 Dec 2021भूकंप: हिमाचल के कुल्लू में डोली धरती, रिक्टर पैमाने पर 2.3 रही तीव्रताsee more... https://www.amarujala.com/shimla/earthquake-tremors-felt-in-kullu-himachal-pradesh-today

1Jan 2022जम्मू-कश्मीर: घाटी में भूकंप से सहम उठे लोग, प्रदेश के कई हिस्सों महसूस किए गए झटके see ... https://www.amarujala.com/jammu/earthquake-across-kashmir-valley

 
Jan 4th, 2022लाहुल-किन्नौर में भूकंप के हल्के झटकेsee .... https://www.divyahimachal.com/2022/01/mild-tremors-of-earthquake-in-lahaul-kinnaur/
 
05 Jan 2022 भूकंप: सिक्किम में महसूस किए गए झटके, रिक्टर स्केल पर 3.7 रही तीव्रताsee ....https://www.amarujala.com/india-news/national-center-for-seismology-said-earthquake-of-magnitude-3-7-in-12km-n-of-ravangla-sikkim