Friday, November 28, 2014

          क्या आप भी मिटाना चाहते हैं अंध विश्वास ! यदि हाँ तो कीजिए ज्योतिष जन जागरण का पुनीत कार्य !
  ज्योतिष अत्यंत कठिन विज्ञान है इसीलिए ज्योतिष को सब्जेक्ट रूप में पढ़ाने के लिए बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे बड़े विश्व विद्यालयों ने M.A., Ph.D. आदि ज्योतिष में करने की व्यवस्था की गई है फिर भी जो लोग अध्ययन हेतु  वर्षों तक कठोर परिश्रम  नहीं करना चाहते ऐसे लोग बिना पढ़े लिखे ही ज्योतिष के नाम पर झूठे दावे किया करते हैं ऐसे अंध विश्वास फैलाने वाले लोगों से बचकर ज्योतिष विद्वानों की भी ज्योतिष डिग्रियाँ देखकर तब कीजिए उनपर विश्वास !






 भविष्य विज्ञान - भविष्य में आने वाले  अच्छे बुरे समय को जानने के लिए ज्योतिषशास्त्र  को छोड़कर और कोई विद्या नहीं है !



क्या आप भी मिटाना चाहते हैं अंध विश्वास ! यदि हाँ तो कीजिए ज्योतिष जन जागरण का पुनीत कार्य !
  ज्योतिष अत्यंत कठिन विज्ञान है इसीलिए ज्योतिष को सब्जेक्ट रूप में पढ़ाने के लिए बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे बड़े विश्व विद्यालयों ने M.A., Ph.D. आदि ज्योतिष में करने की व्यवस्था की गई है फिर भी जो लोग अध्ययन हेतु  वर्षों तक कठोर परिश्रम  नहीं करना चाहते ऐसे लोग बिना पढ़े लिखे ही ज्योतिष के नाम पर झूठे दावे किया करते हैं ऐसे अंध विश्वास फैलाने वाले लोगों से बचकर ज्योतिष विद्वानों की भी ज्योतिष डिग्रियाँ देखकर तब कीजिए उनपर विश्वास !और  देखिए यह लिंक - -http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_10.html
  

   पाखंड मुक्त ज्योतिष  जन जागरण हेतु एवं सभीप्रकार के अंध विश्वास को मिटाने में आप भी सहभागी बनें !
    बंधुओ ! बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे बड़े विश्व विद्यालयों में ज्योतिष को सब्जेक्ट रूप में पढ़ा कर M.A., Ph.D. आदि  शिक्षा की व्यवस्था मेडिकल की शिक्षा की तरह ही है !इसलिए डॉक्टरों की तरह ही ज्योतिषियों की योग्यता का  परीक्षण भी ज्योतिष सब्जेक्ट में ली गई उनकी डिग्रियों को चेक करके  करें !ऐसा करते समय डिग्री और डिप्लोमा के अंतर एवं विश्वविद्यालय  की प्रामाणिकता  पर अवश्य ध्यान दें !ऐसा न करने का अर्थ है कि आप अंध विश्वास को बढ़ा रहे हैं इसलिए आप स्वयं जागरूक बनें ताकि आपको कोई मिस गाइड न कर सके see more....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_10.html    
!जिससे बचना चाहिए !

बंधुओ ! ज्योतिष एवं धर्म के क्षेत्र में व्याप्त  अंध विश्वास को मिटाने में यदि आप भी सहयोग करना चाहते हैं तो टेलीवीजनीय या मीडियायी ज्योतिषियों के केवल झूठे दावों पर ही विश्वास न करें  अपितु  उनके द्वारा बताई गई बातों के शास्त्रीय प्रमाण उन्हीं से पूछें और डॉक्टरों की तरह ही कीजिए उनकी योग्यता का भी परीक्षण !यदि आप उनकी शास्त्रीय योग्यता से संतुष्ट हैं तब कीजिए अपने भविष्य जानने की बात !देखिए यह लिंक - -http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_10.html 
 आदि ज्योतिष में करने की व्यवस्था की गई है फिर भी जो लोग अध्ययन हेतु  वर्षों तक कठोर परिश्रम  नहीं करना चाहते ऐसे लोग बिना पढ़े लिखे ही ज्योतिष के नाम पर झूठे दावे किया करते हैं ऐसे अंध विश्वास फैलाने वाले लोगों से बचकर ज्योतिष विद्वानों की भी ज्योतिष डिग्रियाँ देखकर तब कीजिए उनपर विश्वास !और  देखिए यह लिंक - -http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_10.html

                                   भागवत भ्रष्ट लोगों ने बढ़ाया धार्मिक एवं सामाजिक भ्रष्टाचार ! 
          भागवत कथा कहने वाले लोग पहले  भागवत कथाएँ कहकर आत्म रंजन किया करते थे तो फिल्मों से जुड़े लोग नाच गाकर समाज का मनोरंजन कर लिया करते थे तब तक सब कुछ ठीक चल रहा था ,किंतु आध्यात्मिक ज्ञान विज्ञान रूपी भागवत कथा के परं पवित्र क्षेत्र में अचानक कुछ अकर्मण्य एवं आलसी लोगों की दृष्टि पड़ी उन्होंने इस सुशांत क्षेत्र को भी नहीं बक्सा और जगह जगह भागवत कथाओं के बड़े बड़े बैनर लगा लगाकर नाचने कूदने लगे भागवत के सुशांत मंचों पर ये भागवती मल्ल ! इस प्रकार भागवत में ऐसी भगदड़ हुई कि भागवत कथाओं में नचैया गवैया लोगों के समूह तेजी कूदने लगे ! इस प्रकार से कथाओं की कमान किन्नरों के हाथ में पहुँचते ही फिल्मों से जुड़े लोग बेरोजगार होने लगे क्योंकि मनोरंजन वाला उनका काम भागवत वीरों ने छीन लिया था तो उन्होंने एक नया तरीका खोज निकाला  और फिल्मों में बोल्ड सीन, सुपर बोल्ड सीन ,सेक्सी सीन आदि जितने नंगपन के खेल थे जिन्हें गाँव वाले तक फूहड़ मानते थे वे सब फिल्मों के नाम पर  खुले तौर पर खेले जाने लगे !धीरे धीरे फिल्मों का स्वरूप बदलने लगा और फिल्मों से कला गायब होने लगी मांसल सौंदर्य के साथ साथ मल मूत्र मार्गों को छिपा छिपा कर दिखाने का महत्त्व बढ़ने लगा !






















Wednesday, November 5, 2014

राजनैतिक पार्टियाँ हों या सरकारें पार्टटाइम में नहीं चलाई जा सकतीं !

               राजनीति में ठेकेदारी बंद होनी चाहिए !
      सरकारों में सम्मिलित लोग सरकार चलावें और पार्टियों में सम्मिलित लोग चलावें पार्टियाँ और लड़ें  चुनाव!जो लोग मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि बनकर समाज सेवा करने की शपथ ले लेते हैं उन्हें अपनी शपथ के पालन में प्राण प्रण से जुटना चाहिए न कि चुनाव लड़ने लड़ाने में ! ऐसे तो उन लोगों को पाँच वर्ष बीत जाते हैं पार्टी के अंदर ही रुतबा ज़माने में अब समाज और सरकार का काम कौन देखे ! पार्टी के अंदर के अन्य लोगों को भी अवसर मिले और उन्हें भी अपनी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो !
   लोक तांत्रिक की दृष्टि से मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जैसे इन पवित्र पदों की गरिमा पवित्र ही रहने देनी चाहिए क्योंकि कोई भी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि केवल किसी पार्टी का न होकर अपितु सम्पूर्ण प्रदेश या देश का होता है इसलिए  उसके   स्वाभिमान पूरे प्रदेश और सम्पूर्ण देश का स्वाभिमान जुड़ा होता है जिसे सुरक्षित रखना हर किसी का नैतिक कर्तव्य है !अन्यथा चुनावी राजनैतिक रैलियों में प्रधानमंत्री जिस प्रदेश में भाषण करने जाएँगे उस प्रदेश की सरकार यदि विरोधी पार्टी की है तो उन्हें मुख्यमंत्री की आलोचना करनी ही पड़ेगी जिसके जवाब में वहाँ के मुख्यमंत्री को भी अपने प्रधानमंत्री की आलोचना करनी पड़ेगी ऐसी आलोचनाओं का स्तर अपने यहाँ कितना गिर चुका है इसका अंदाजा इसी से लगाया जाना चाहिए कि पिछले चुनावों में एक पार्टी के प्रधानमंत्री प्रत्याशी को कुत्ता और गधा जैसे कुशब्द  सार्वजनिक मंचों से बड़े नेताओं के द्वारा बोले  गए  जो मीडिया में सुर्खियाँ बनता रहा टेलीवीजन की बहसों में सम्मिलित किया गया क्या ये सब बातें विदेशों के लोगों ने सुनी पढ़ी नहीं होंगी इसके बाद भी हमारे प्रधानमंत्री का सम्मान यदि वो लोग करते हैं तो ये उनकी महानता  है दूसरी बात हमारे पुराने नेताओं के द्वारा किए गए मर्यादित आचरणों के प्रति उनका सम्मान है जिसे आज भी बरकरार रखा जाना चाहिए ।आजकल बारहो महीने चुनाव होते हैं बारहो महीने होती है राजनीति और बनती रणनीति !आज चुनावी राजनीति के कारण हर कोई झूठ बोल रहा है आश्वासन दे रहा है सफाई दे रहा है इससे समाज का वातावरण ही बिगड़ता जा रहा है । नेताओं की देखा देखी कोई बात कहकर मुकर जाना अब आम बात होती जा रही है। 
      हर कोई किसी को अपने चक्रव्यूह में फाँसने के लिए झूठ बोलता है बाद में मुकर जाता है अपना स्वार्थ साधने के लिए आश्वासन देता है बाद में मजबूरियाँ गिनाने लगता है कोई किसी को कितनी भी गहरी चोट देता है और बाद में सॉरी बोलकर निकल जाता है !ऐसे  राजनैतिक वातावरण ने समाज को कितना संवेदना शून्य बना दिया है !इसका कुछ उपाय तो  खोजा  जाना चाहिए और देश के सभी चुनाव एक साथ कराने की पद्धति पर विचार किया जाना चाहिए जिससे पाँच वर्षों में एक बार होली दीपावली के त्यौहार की तरह चुनावी त्यौहार भी हो जाए इसके बाद फुरसत में मीडिया से लेकर सभी राजनैतिक दल एवं सत्तासीन दल और लोग देश एवं समाज के लिए भी कुछ सोचें और कुछ करें भी । ऐसे देश देश में हमेंशा चुनावी वातावरण ही बना रहता है अपना अपना काम छोड़ कर हर कोई चुनावी चिंतन चर्चा जोड़ तोड़ आदि में बेमतलब में ब्यस्त रहता है ये चुनाव के लिए अच्छा हो सकता है किन्तु इसका दुष्प्रभाव आम जनता के बात व्यवहार में घुसकर परिवारों एवं समाज के मधुर संबंधों को जहरीला बनाता जा रहा है । 
     

Monday, October 20, 2014

दिवाली मनाने की परंपरा कब से चली आ रही है जानिए आप भी !

 

आप भी जानिए कब से चली आ रही है दिवाली मनाने की परंपरा ! इस त्यौहार को 'कौमुदी महोत्सव' भी कहते हैं !
   बहुत लोगों को आज भी पता है कि दीपावली का पर्व श्रीराम के बन से वापस आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है किंतु यह सच नहीं है। यदि ऐसा होता तो दीपावली में श्रीराम सीता लक्ष्मण आदि का पूजन करके उनकी ही आरती उतारी जाती। श्रीगणेश लक्ष्मी जी का इस पर्व से क्या संबंध? वैसे भी सभी धर्मकार्यों में  गणेश जी के साथ  तो  गौरी जी का पूजन होता है यहाँ  लक्ष्मी पूजन क्यों ? दूसरी बात गणेश जी के पूजन में तो लड्डुओं का भोग लगता है जबकि दीपावली में तो ऐसा नहीं होता है?दीपावली प्रकाश का पर्व है, अर्थात सारी पृथ्वी को प्रकाश से नहला देना जबकि श्री गणेश और लक्ष्मी जी की किसी अन्य पूजा में ऐसा होते नहीं देखा गया है। भारतीय शास्त्रीय संपदा के दर्पण में इस  कौमुदी महोत्सव (प्रकाश पर्व) अर्थात दीपावली पर्व का वर्णन किस प्रकार से है देखते हैं ?
     श्रीरामावतार से बहुत पहले इस पृथ्वी पर  राजाबलि का राज्य था वे बहुत प्रतापी राजा थे। भगवान बावन ने उनसे दान में सारा राज्य पाठ ले लिया था, बाद में उनका शरीर भी नाप लिया था यह कथा लगभग सभी लोग जानते हैं।

     बात यह थी कि दैत्य वंश में उत्पन्न राजा बलि ने संपूर्ण पृथ्वी मंडल को जीत लिया था, स्वर्ग तक उनका शासन चलता था। इंद्र आदि  देवता राज्य विहीन होकर भटक रहे थे। संपूर्ण ऐश्वर्य लक्ष्मी राजाबलि के आधीन थी। सभी देवता स्वर्ग छोड़कर भटक रहे थे। सभी देवताओं की प्रार्थना पर ही भगवान विष्णु ने बावन रूप में प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञ में जाकर सारा राजपाठ एवं स्वयं राजाबलि को भी दान की प्रतिज्ञा में बाँधकर अपने आधीन कर लिया था। बलि को समस्त परिवार के साथ सुतल लोक भेज दिया था। इस प्रकार जाते समय बलि से भगवान बावन ने पूछा आपकी कोई इच्छा हो तो कुछ माँग लो क्योंकि मेरा दर्शन व्यर्थ नहीं जाता। इस पर बलि ने कहा महाराज मैं सुतल लोक को प्रसन्नता पूर्वक प्रस्थान कर रहा हूँ किंतु मेरी इच्छा थी कि एक दिन के लिए हर वर्ष हमारा राज्योत्सव  पृथ्वी पर मनाया जाता रहे और उस दिन सारी पृथ्वी को प्रकाश से पूरित कर दिया जाए। यह दिन बलि राजमहोत्सव के रूप में जाना जाए।
      भगवान बावन ने स्वीकार करते हुए कहा कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को यह पर्व सारे संसार में धूम धाम से मनाया जाएगा। उसी वरदान के प्रभाव से यह परंपरा आज तक प्रचलित है। दीपों के समूह से इस दिन आरती की जाती है इसीलिए इसे दीपावली कहते हैं । 
         दीपैर्नीराजनादत्र सैषा  दीपावली स्मृता। 
                                                           मत्स्य पुराण
   इसीदिन सारे देवताओं सहित लक्ष्मी जी को भी महाराज बलि के कैदखाने से छुड़ाकर भगवान विष्णु वापस क्षीर सागर ले आए थे।
यथा -

   बलिकारागृहाद्देवा      लक्ष्मीश्चापि      विमोचिता।
   लक्ष्म्याः   सार्द्धं  ततो देवा नीता  क्षीरादधौ   पुनः।।

   सभी देवता और लक्ष्मी आदि देवियॉं सभी लोग राजाबलि के कारागार में थे। इसीलिए देवताओं में अग्रगण्य श्री गणेश जी एवं देवियों में अग्रगण्य श्री लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है।

    यथा - 
           तत्र   संपूजयेल्लक्ष्मीं   देवांश्चापि प्रपूजयेत्।
           एवं तु सर्वथा कार्य  बलिराज्य   महोत्सवः ।।

   स्पष्ट लिखा है कि सभी प्रकार से सभी को प्रसन्न कर सभी के साथ मिलजुलकर सभी के लिए खुशी की कामना करते हुए संपूर्ण आनंद के साथ राजाबलि के राजमहोत्सव अर्थात दीपावली को मनावे।

       जो लोग ऐसा मानते हैं कि श्री राम के बन से वापस आने के उपलक्ष्य में दीपावली पर्व प्रारंभ किया गया था। इस विचार में थोड़े सुधार के साथ सोचने की आवश्यकता है। वस्तुतः बात यह थी कि जब श्रीराम बन चले गए थे, तब महाराज दशरथ की मृत्यु हो गयी थी, माताएँ विधवा हुईं भरत जी नंदी ग्राम में विरक्त होकर रहने लगे। सारी अयोध्या के लोग राजपरिवार की इस दुखद स्थिति से अत्यंत व्याकुल थे

            लागति अवध भयावनि भारी।
                     मानहुँ कालरात्रि अँधियारी।।
            घर मशान परिजन जुनुभूता।
                      सुत हित मीत मनहुँ  यमदूता।।
      शमशान की तरह घर तथा प्रजालोग भूत प्रेतों की तरह एवं संतान, हितकारी लोग और मित्र वर्ग यमराज के दूतों की तरह दुखदायी लग रहे थे।

      आप स्वयं सोचिए जिस घर परिवार राज्य आदि पर ऐसी विपत्ति का समय चल रहा हो वहाँ क्या होली क्या दिवाली आदि महोत्सव क्या और कोई हर्ष उल्लास का त्योहार? जब अपने मन में खुशी होती है तभी सब अच्छे लगते हैं। इसलिए संपूर्ण नगरवासियों ने राजपरिवार के दुख में दुखी रहकर चैदह वर्षों तक समस्त उत्सव रोक जैसे रखे थे किंतु प्रभु श्रीराम के बन से वापस आते ही उस वर्ष सभी त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए गये थे मानो खुशियों का पारावार न रहा हो। इसमें भी प्रभु श्रीराम के बन से वापस आने के बाद पहला बड़ा त्योहार दीपावली ही पड़ा था। इसलिए खुशियों का समुद्र उमड़ना स्वाभाविक भी था।
                                        डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
                                                                         संस्थापक  
                                                      राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

Sunday, August 17, 2014

आखिर श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर विवाद क्यों और क्यों मनाया जाए दो दिन यह व्रत !

    जन्माष्टमी व्रत पर आचार्यों की लापरवाही से सनातन धर्मी समाज बहुत भ्रमित है आखिर वो क्या करे इसमें उसका तो कोई वश भी नहीं है निर्णय तो आचार्यों को ही करना है !

    अनेकों मत मतान्तरों को समाहित करते हुए  निर्णय सिंधु, धर्मसिन्धु, व्रतराज एवं षोडश संस्कार विधौ आदि संग्रह ग्रंथों के आधार किसी भी ऐसे प्रश्न का निर्णय निकाल पाना काफी कठिन होता है क्योंकि उनमें प्रायः पारस्परिक अंतर तो होता ही है कई बार एक दूसरे के विरोधी वाक्य भी सामने आते हैं ऐसी स्थिति में अपने देश काल परिस्थिति के अनुशार उनका सार स्वरूप अपनी विद्या बुद्धि  एवं विचारों के आधार पर मैं लिख रहा हूँ ये हमारा हमारे अनुशार निश्चय किया गया शास्त्रीय सच है यदि किसी को हमारे किसी भी बचन पर आशंका हो तो वो निश्चिन्त होकर शंका समाधान कर सकता है और यदि किसी का कोई सुझाव हो तो उस पर भी विचार किया जा सकता है किन्तु इस सच को अब संदिग्ध नहीं रहने देना चाहिए क्योंकि अब तो समाज में भी इस बात के लिए प्रश्न उठने लगे हैं कि आखिर हमारे त्यौहार दो दो दिन क्यों होने लगे हैं ?इसलिए उन्हें उत्तर तो मिलना चाहिए !

     बंधुओ!हमारे यहाँ बहुत पहले से मान्यता है कि किसी का भी जन्म दिन तिथियों के आधार पर ही मनाया जाता है न कि नक्षत्रों और दिनों के आधार पर !तो फिर श्री कृष्ण जी के जन्म दिन में नक्षत्र और दिन को डालकर इसे विवादित क्यों बनाया जा रहा है !

     व्रतराज में स्पष्ट किया गया है कि जो लोग अष्टमी रोहिणी युक्त खोजते हैं उन्हें यह समझना होगा कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी तो अष्टमी तिथि में  ही होगी उसे कोई नवमी में कैसे कर देगा ! हाँ यदि उसमें रोहिणी नक्षत्र भी आ जाए तो उसका फल बढ़ जाएगा इसी प्रकार उसी दिन बुधवार भी आ जाए तो उसका फल तीन गुणा हो जाएगा किन्तु यह याद रहना चाहिए कि तीन गुणा फल के चक्कर में त्यौहार का मूल स्वरूप कहीं बिगड़ तो नहीं रहा है ! इसलिए यह सारा संयोग बनना अष्टमी को ही चाहिए क्योंकि अष्टमी तिथि मुख्य है बाक़ी अष्टमी के साथ जो मिल जाए सो ठीक है किन्तु फल के लिए त्यौहार के मूल स्वरूप को नहीं बिगड़ने देना चाहिए अर्थात अष्टमी का त्यौहार नवमी दशमी में नहीं मनाने लगना चाहिए !यदि नवमी को बुधवार हो और दशमी को रोहिणी नक्षत्र हो तब दिन को महत्त्व देने वाले नवमी को मनाएँगे और नक्षत्र निष्ठा वाले लोग दशमी को मनाएँगे जन्माष्टमी किन्तु उसे बोलेंगे जन्माष्टमी ही अरे !ऐसी क्या मजबूरी है उनकी वो सीधे क्यों नहीं रोहिणी को ही मान लेते हैं और जिस दिन रोहिणी नक्षत्र हो उसी दिन मनावें और वही बतावें ताकि ये अष्टमी भ्रम समाप्त हो अन्यथा बोलेंगे जन्माष्टमी और मनाएंगे दशमी को तो इससे संशय  तैयार होगा ही हर कोई सोचता है कि दशमी या नवमी  तिथि में जन्माष्टमी कैसी !  जैसे अबकी बार हो रहा है काशी के एक प्रमाणित पंचांग में रविवार को दिन में 10.41बजे तक सप्तमी तिथि है जबकि समाज में प्रचलित अन्य कई पंचांगों में सिद्धांत भेद से यह समय और कम अर्थात सूर्योदय के आस पास तक ही सप्तमी तिथि है स्वाभाविक है कि रविवार को यहीं से अष्टमी लगेगी और अगले दिन अर्थात सोमवार को सूर्योदय के आस पास ही अष्टमी तिथि समाप्त भी हो जाएगी !फिर सोमवार की जन्माष्टमी औचित्य आखिर रह क्या जाएगा ?जिस दिन अष्टमी ही नहीं होगी उस दिन जनमाष्टमी कैसी !

     काशी के पंचांग के अनुशार अष्टमी रविवार प्रातः 10.41बजे से सोमवार को प्रातः 10.08 बजे तक अष्टमी तिथि है अब ध्यान इस बात का देना है कि रविवार को प्रातः 10.41बजे से श्री कृष्ण जन्माष्टमी तो लग गई किन्तु आप अज्ञान वश आम दिनों की तरह ही सब कुछ खाते पीते और सारे आचार व्यवहार भी आम दिनों की तरह ही बनाए रहे, रविवार के दिन की सारी अष्टमी तथा रविवार की रात की सारी अष्टमी तो आपने व्रत विहीन होकर सब कुछ खाते पीते बिता दी और सोमवार  को प्रातः 10.08  जब नवमी लग गई तब आप व्रत करने बैठें केवल किसलिए रोहिणीयुक्ता अष्टमी होगी तो फल अधिक मिलेगा इसीलिए न किन्तु जब अष्टमी बीत ही गई तो फिर श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रती होने का फल किस बात का ?अब तो आपने रोहिणी नक्षत्र का व्रत किया है वही आपको सोमवार की अर्द्ध रात्रि में मिलेगा अष्टमी तो न दिन में है न रात्रि में अब तो रोहिणी युक्त नवमी का व्रत होगा यही न !केवल फल अधिक मिलने के चक्कर में !

     दूसरी बात किसी के भी जन्म और मृत्यु के प्रकरण में तात्कालिक तिथि ही ग्रहण की जाती है क्योंकि जन्म दिन मनाते समय तिथि के अधिष्ठाता देवता की पूजा करने का विधान है इसी प्रकार से मृत्यु प्रकरण में `उसी तिथीश के आधार पर श्राद्ध और पिंड दान आदि किया जाता है अतएव जन्म और मृत्यु प्रकरण में तिथि टाली नहीं जा सकती !

       यही कारण है कि हमारे सम्पूर्ण त्यौहार तिथियों से बँधे हैं न कि नक्षत्रों और दिनों से जन्मदिन भी तिथियों  से ही जुड़े हैं श्री राम का प्राकट्य नवमी तिथि को हुआ था तो उसे आज भी श्री राम नवमी के रूप में ही मनाया जाता है जिस दिन दोपहर को नवमी होती है उसी दिन श्री राम नवमीमना  लेते हैं इसी प्रकार से श्री परशुराम जी का वैशाख शुक्ल तृतीया को मना लेते हैं होली रक्षाबंधन पूर्णिमा को और दीपावली अमावस्या  को मना लेते हैं हर श्राद्ध तिथियों के हिसाब से मनाते हैं दक्षिण भारत में श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि के आस पास श्रवण नक्षत्र आता है उसी दिन वो लोग ओणम मनाते हैं क्योंकि उन्होंने तिथि को नहीं अपितु नक्षत्र को पकड़ रखा है इसलिए वो नक्षत्र को ही मानते हैं । 

      बंधुओ ! जब  तिथि  नक्षत्र और वार  अर्थात  दिनों का आपसी ताल मेल निश्चित नहीं होता है तो कब कौन नक्षत्र पड़ेगा और कब कौन दिन होगा इसे प्रमुखता न देते हुए श्री कृष्ण जन्माष्टमी में भी अष्टमी को ही प्रमुखता  दी गई है 

      इसलिए अष्टमी को पकड़कर  चलना ही हमारे लिए उचित होगा अर्थात जब अर्द्धरात्रि में अष्टमी होगी तभी श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी हाँ ,यह सुखद संयोग होगा कि यदि उस अर्द्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र भी हो और उसी दिन बुधवार भी पड़ जाए यह अत्यंत सौभाग्य का विषय होगा किन्तु इसका ये कतई मतलब नहीं है कि बुधवार और रोहिणी नक्षत्र को पकड़ने के लिए हम अष्टमी के आस्तित्व को ही भुला दें अन्यथा यदि हम इतना ही रोहिणी नक्षत्र को महत्व देते हैं तो जब अष्टमी के दो तीन दिन बाद भी रोहिणी नक्षत्र आता है तभी हमें मनानी चाहिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी आखिर एक तो पकड़ कर हमें चलना ही होगा और एक को ही पकड़ कर हम चल भी सकते हैं  सबको पकड़ कर चलने में समाज हमेंशा दिग्भ्रमित ही होता रहेगा |और अन्य धर्मों के लोगों को उपहास का अवसर मिलता रहेगा ।

         जो लोग ऐसा मानते हैं कि उदया तिथि में होगी तो वही सारे दिन और रात्रि में मानी जाएगी किन्तु यह विधा सही नहीं है इसका पहला कारण तो यह है कि जन्म दिन में उदया तिथि न चलकर अपितु तात्कालिकी तिथि मानी जाती है । दूसरी बात ज्योतिष और धर्म शास्त्र के सैद्धांतिक पक्ष से जुडी हुई है इसमें जो व्रत और त्यौहार दिन में मनाए जाते हैं उनमें सूर्योदय कालीन तिथि ग्रहण की जाती है किन्तु जो व्रत और  त्यौहार रात्रि  में मनाए जाते हैं उनमें चंद्रोदय कालीन तिथि ही उदय कालीन होगी इसलिए यही ग्रहण की जानी चाहिए । 

       विशेष परिस्थितियों में जैसे सूर्यास्त तक अष्टमी हो और उसी दिन बुधवार भी पड़ रहा हो और रोहिणी भी हो ऐसी परिस्थिति में तो तीन योग मिल जाने के कारण इस दिन का महत्त्व बन जाएगा क्योंकि रात्रि के प्रारंभिक काल अर्थात सूर्यास्त काल में तो अष्टमी रह ही चुकी होगी शेष दो योग रात्रि में भी होंगें इसलिए इस दिन किया जा सकता है श्री कृष्ण जन्माष्टमीव्रत । 

      इसमें एक और बात है कि अष्टमी में पारण नहीं किया जाना चाहिए तो इसे अपनी अपनी सुविधानुशार बचा जाना चाहिए जैसे अबकी बार तो सोमवार  को प्रातः 10.08  जब नवमी लग रही है तो नवमी में पारण आसानी से किया जा सकता है किन्तु जब ऐसा नहीं होता है तब भी पारण नवमीं में ही करना चाहिए क्योंकि अष्टमी व्रत का अर्थ ही है जन्म तिथि का व्रत फिर उसमें भोजन कैसा ?

         यहाँ एक बात और ध्यान रखी जानी चाहिए कि रात्रि बारह बजे ही कृष्ण जन्म का कोई विधान नहीं है क्योंकि घड़ियों में बजने वाला समय सरकारों के द्वारा स्वीकार किया गया एक मानक समय होता है इसलिए सरकारें चाहें तो इस समय को अपनी सुविधानुशार घटा बढ़ा भी सकती हैं किन्तु श्री कृष्ण का जन्म समय ऐसे किसी मानक समय के आधीन नहीं हो सकता !इसलिए इसकी दो विधाएँ स्वीकार की जा सकती हैं पहली तो रात्रिमान का आधा करके सूर्यास्त में जोड़कर अर्धरात्रि का समय निकाले दूसरा चंद्रोदय के समय को प्रमाण मान लें जो प्रायः पंचांगों में लिखा रहता है । आदि आदि ॥



   



  



Monday, August 4, 2014

जनसंसद से केजरीवाल की ललकार, हिम्मत है तो चुनाव कराए भाजपा-dainik jagaran

  किन्तु केजरीवाल जी चुनाव होना तो रूटीन प्रोसेस है इसमें हिम्मत की क्या बात है और रूटीन प्रोसेस के लिए आप ललकार क्यों रहे हैं ?आप ने दिल्ली के चुनावों ललकारा फिर बहुमत नहीं मिला फिर वाराणसी में मोदी जी को ललकारा किन्तु वहाँ से पराजित होकर  भाग आए अब दिल्ली में चुनाव कराने के लिए ललकार रहे हैं आखिर चुनाव जीतने के लिए क्या तैयारी है आपकी !इतने दिनों में क्या कोई सेवाकार्य किए हैं आपने या केवल कुछ झूठ साँच आरोप लगाए हैं उनका जनता पर असर क्या हुआ ये परखने के लिए चुनाव कराना चाहते हैं आप !अरे !केजरीवाल जी हो सके तो जनता की सेवा कीजिए भावनाओं से खेलना बंद कीजिए !

Thursday, July 31, 2014

शंकराचार्य जी का आह्वान साईं घुसपैठियों से सावधान !

 साईं घुसपैठिए जगद्गुरू शंकराचार्य जी के जन जागरण से भयभीत क्यों हैं ?                  

    शंकराचार्य जी ने साईं घुसपैठियों को धार्मिक तस्करी करने से रोककर गलत क्या किया है ! कोई चोर रँगे हाथों पकड़ा जाए तो उसे बुरा तो लगेगा ही लगे तो लगने दो किसी को बुरा लगने के भय से हम अपनी धार्मिक मान्यताएँ क्या मिट जाने देंगे !

   "साईं संप्रदाय का सबसे बड़ा झूठ  'साईं डे ' अर्थात  साईं बाबा का दिन "

     बृहस्पति वार से साईं का सम्बन्ध क्या है ?इस दिन अनंत काल से बृहस्पति देवता एवं भगवान विष्णु की पूजा होती चली आ रही है सारी  दुनियाँ जानती भी इस दिन को इसी नाम से है ये करोड़ों वर्षों की शास्त्रीय संस्कृति भी है और परंपराओं  में भी यही माना जाता रहा है और अभी तक यही माना जा रहा है इसी बात के प्रमाण भी हैं किन्तु अभी कुछ वर्षों से साईं के घुसपैठियों ने इस बृहस्पति वार में साईं बुड्ढे को जबर्दश्ती घुसाना शुरू कर दिया है इसके पीछे इन लोगों के पास न कोई तर्क है न कोई प्रमाण न और कोई आधार !है तो केवल निर्लज्जता !!

  बृहस्पति वार को साईंवार कहने के नुक्सान !

      ज्योतिषीय दृष्टि से बृहस्पति  देवता के दिन को किसी ऐरे गैरे के नाम ऐसे कैसे कर दिया जाएगा और जो करेगा उससे बृहस्पति  देवता को बुरा तो लगेगा ही इससे बृहस्पति  देवता क्रोधित तो होंगे ही और ऐसे लोगों की जन्म पत्रियों में बृहस्पति देवता अच्छे की जगह अपना बुरा फल देने लगते हैं जिससे लोगों का नुक्सान होता है ! ऐसे लोगों  को बृहस्पतिदेवता से सम्बंधित जो जो लाभ मिलने चाहिए उनसे वे  बंचित रह जाते हैं और बृहस्पति देवता से सम्बंधित जो लाभ होने चाहिए उन्हीं उन्हीं  क्षेत्रों से जुड़े लाभ न होकर नुक्सान होने लगते हैं ! 

  

बृहस्पति के क्रोधित होने से नुक्सान क्या हो सकते हैं ?

बंधुओ! बृहस्पति के क्रोधित होने से हृदय रोग होने लगता है,घर से शिक्षा का वातावरण समाप्त होने लगता है, पढ़ने में मन नहीं लगता, भगवानों की पूजा में मन नहीं लगता,बड़े बूढ़ों का सम्मान समाप्त होने लगता है घर में कलह बढ़ने लगता है, विवाह विच्छेद होते देखे जाते हैं, बच्चे बच्चियों का सुख समाप्त होने लगता है बेटा बेटियाँ माता पिता के पदों को सस्पेंड करके शादी सम्बन्धी ऊँच नीच फैसले स्वयं करने लगते हैं जिससे गृह क्लेश बढ़ता है !संतान होने में बाधा होती है ऐसे लोगों को बृहस्पति सम्बन्धी कार्यों में नुक्सान होने लगता है जैसे सोना पीतल आदि से जुड़े पीले रंग के कार्य धन हानि करते हैं इनसे जुड़ी संपत्ति के खोने का भय बना रहता है और सबसे बड़ी बात कि सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है आदि आदि ! इसलिए बृहस्पतिवार को बृहस्पतिवार ही कहा जाए इसी में भलाई है और समाज के लिए यही शुभ फलदायक है !

 जब साईं  नाम का कोई ग्रह ही नहीं है तो साईंवार कैसे हो सकता है?

   साईं घुसपैठियों का बृहस्पतिवार को साईं वार कहने का ड्रामा !बृहस्पतिवार को साईं वार कहना कितना सही है !आप स्वयं सोचिए कि ग्रहों के दिन वही हो सकते हैं जिनके नाम के आकाश में ग्रह होते हैं वो ग्रह अपने अपने दिनों में शुभ या अशुभ फल दिया करते हैं किन्तु साईं वार का मतलब क्या है क्या इन्होंने साईं नाम का कोई ग्रह बनवाकर साईं पत्थरों को मंदिरों में घुसाने की तरह ही आकाश में भी साईं पत्थर घुसा कर टाँग रखा है क्या ?और यदि नहीं तो फिर ये धोखाधड़ी क्यों !आखिर क्यों मिस गाइड किया जा रहा है समाज को ? जब साईं  नाम का कोई ग्रह ही नहीं है तो साईं वार कैसे हो सकता है !फिर भी साईं घुस पैठियों के द्वारा शास्त्रीय मान्यताओं से समाज को भटकाने का उद्देश्य आखिर क्या है इसकी जाँच होनी चाहिए ! 

   

    साईं पत्थरों को मंदिरों में रखने से हानियाँ !

   मंदिरों में नाक मुख आँखें कान आदि बनाकर रखे गए साईं नाम के पत्थर पूजने से अनेकों प्रकार के नुक्सान हैं !मंदिरों में रखे गए साईं पत्थरों को पूजने से समाज को भारी  भ्रम होगा और कहीं आगामी पीढ़ियाँ भगवानों की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों को भी साईं पत्थरों की तरह ही पत्थर न समझने लगे जिससे अनादि कालीन सनातन संस्कृति से जुड़ी संतानें  भ्रमित होकर भटक न जाएँ इसलिए सनातन धर्मियों को मिलजुलकर अपने मंदिरों से साईं पत्थरों को जल्दी से जल्दी बाहर करना होगा अन्यथा सनातन मंदिरों का आस्तित्व ही समाप्त होता दिख रहा है कई सनातन धर्म के देव मंदिर आज साईं मंदिरों के नाम से प्रसिद्ध होने लगे हैं ये चिंता का विषय है !



Monday, July 28, 2014


'साईं एक समस्या अनेक ' 'ये हैं साईं के साइड इफेक्ट' संस्कारों के संकट से गुजर रहा है समाज !
 "साईं धर्म का सिद्धांत"केवल साईं पूजा कर लेने से मिल जाता है सबका  अपमान करने का लाइसेंस?
    'साईं पूजा के साइड इफेक्ट' हैं -  टूटते परिवार, बिखरता समाज और बर्बाद होते बच्चे !छिन्न भिन्न होतीं शास्त्रीय परम्पराएँ, विभाजित होता धार्मिक see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

     इस समय समाज में दो चीजें ही  हैं बढ़ रही हैं एक तो भ्रष्टाचार और दूसरा साईं की संपत्ति !क्या इन दोनों के बीच कोई सम्बन्ध है ?कहीं ये 'साईं के साइड इफेक्ट' तो नहीं हैं! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html



आज घरों से  फेंकी गई  बच्चियाँ कचरे के डिब्बे में पड़ी मिल रही हैं कहाँ पहुँच रहे हैं हम !
      जब साईं पूजा नहीं थी तब कभी सुने जाते थे इतने बलात्कार !पाँच पाँच वर्ष की कन्याओं के साथ दुराचार! बच्चियों के साथ एक से एक जघन्यतम अत्याचार ,ये साईं बाबाओं को भगवान बनाने का ही दुष्परिणाम है!see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html



संस्कृत विद्यालयों के छात्रों ने पढ़ने में रूचि कम कर दी है वो सोचने लगे हैं कि क्या करना है पढ़ लिख कर जब बिना पढ़े लिखे लोग  भी साईं को दिखाकर खूब   कमाई कर रहे हैं !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html





    सुना है कि साईं के समर्थन में लाबिंग करने करवाने के लिए बाबाओं और पंडितों को खरीदा जाएगा वो लोग साईं का पक्ष ले लेकर लड़ेंगे सनातन धर्मियों से !साईं वाले ये सारा खेल पैसे के बल पर कराएँगे और खुद दूर बैठकर देखेंगे और हँसेंगे !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

अबकी गुरुपूर्णिमा के दिन चढ़ावे के नाम पर चंदा इकठ्ठा करके मोटा फंड जुटाया गया है !सुना जा रहा है कि ये सूचना बाबाओं एवं पंडितों के पास भी भेजी जा रही है कि वो शिर्डी आवें और साईं को सनातन धर्म का अंग बताते हुए साईं को भगवान मान कर पूजा करने की वकालत मीडिया के सामने करें !इसके बाद पेमेंट लें अपने घर जाएँ !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html




साईं के यहाँ विधि निषेध का विधान न होने से समाज में बढ़ रहा है अपराध !
लव के लिए लबाते जवान लड़के लड़कियाँ , खुला नंगपन बेचने  वाले कुछ अभिनेता अभिनेत्रियाँ, मॉडलिंग  की दुनियाँ से जुड़े अधिकाँश लोग,इसी प्रकार से और भी ऐसे वैसे लोग साईं संप्रदाय से ही जुड़ना अधिक पसंद कर रहे हैं !क्योंकि साईं के यहाँ विधि निषेध करने वाला कोई शास्त्र न होने स्वेच्छाचारी लोगों को वहाँ सुविधा रहती है  क्योंकि वहाँ गलत काम करने वालों को रोका नहीं जाता है आखिर किस नियम का हवाला दिया जाएगा किसी को !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

साईं संप्रदाय का उद्देश्य धर्म का व्यापारीकरण-
      साईं का सम्पूर्ण कारोबार धार्मिक लोगों के आधीन न होकर व्यापारियों के आधीन है वहाँ सारी ऊर्जा अधिक से अधिक धन इकठ्ठा करके सनातन धर्म में घुसपैठ करने पर लगाई जाती है। इसलिए वहाँ धर्म का कोई वातावरण ही नहीं है साईं संप्रदाय विशुद्ध रूप से धर्म के व्यापारीकरण पर टिका हुआ हैsee more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html


आखिर साईं संप्रदाय के लोगों ने शंकराचार्य जी को टी.वी. चैनलों पर बैठकर गालियाँ क्यों दी हैं ?उनसे माफी माँगने के लिए क्यों कहा है !वो लोग ये कैसे भूल गए कि शंकराचार्य जी को सनातन धर्म में क्या गौरव हासिल है !see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html

   सनातन धर्म के मंदिरों , मूर्तियों ,पूजा पद्धतियों को करप्ट करने वाले  साईं नाम के वायरस से सनातन धर्मियों को सावधान करना शंकराचार्य जी की शास्त्रीय जिम्मेदारी है वही वो कर रहे हैं ! वो कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html


शंकराचार्य जी ने इस घुसपैठ का विरोध क्या कर दिया साईंयों ने उन्हें गालियाँ देनी शुरू कर दीं , रैलियाँ निकालने लगे,केस करने लगे मीडिया को पैसे देकर साईं समर्थन में धर्म संसदें आयोजित कराने  लगे !कुल मिलाकर ये लोग तो एक दम पागल हो उठे see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/07/blog-post_1841.html













Friday, July 25, 2014

- माता पिता के साथ भी गद्दारी-

                   पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप होता है किन्तु अपवित्र प्रेम क्या होता है ?

      जब तक मित्रता है तब तक ही प्रेम पवित्र रहता है तब तक किसी को किसी से कोई खतरा नहीं होता है किन्तु मित्रता के संबंध जब मूत्रता में बदलने लगें तो पवित्रता नहीं रह जाती इसलिए वहाँ परमात्मा भी नहीं रहता इसलिए वहाँ जितना भी बड़ा धोखा मिले उसे छोटा ही समझना चाहिए अर्थात कुछ भी घटित हो सकता है  तैयार  रहना चाहिए ! या तो सहने के लिए या अलग रहने के लिए !मर्जी अपनी अपनी !!!


                                          - युवाओं की माता पिता के साथ भी गद्दारी-  
        कुछ लोग अपने माता पिता से छिपकर किसी लड़की या लड़के से प्रेम करते हैं ऐसे लोग जब अपने माता पिता के नहीं हुए तो किसी और के क्या होंगे ! सुख दुःख हैरानी परेशानी आदि सभी परिस्थितियों में अपनी संतानों के साथ तन मन धन से साथ खड़े रहने वाले माता पिता के साथ भी गद्दारी करने वाली संताने सुखी कैसे हो सकती हैं !


       जो लोग मनोकामनाओं की पूर्ति के भ्रम में अपने भगवान को बदल कर साईं को भगवान बना बैठे ऐसे लोग अपने जीवन में कब क्या बदल लेंगे विश्वास नहीं किया जा सकता !

                     आज हार्ट अटैक की घटनाएँ बढ़ क्यों रही हैं ?इससे क्या है पुत्रियों का सम्बन्ध ?
     पुत्र तन का पोषण करता है खाना पीना रहन सहन आदि किन्तु पुत्री मन का पोषण करती है जब बुढ़ापे में एकांत में उदास बैठे होगे उस समय आया हुआ पुत्री का एक फोन या पत्र भी सारे दुःख दूर कर देता है वो सुख धरती पर और कहीं नहीं मिल पाएगा जिनके पुत्रियाँ नहीं है पूछो उनसे उनके बुढ़ापे का हाल हृदय में कितने घाव हैं है कोई भाव का लेप लगाने वाला !

Wednesday, July 23, 2014

-आदरणीय चन्द्र शेखर आजाद जी को नमन -





प्यारे चन्द्र शेखर जी प्रार्थना हमारी है ये
                            एक बार भारत में फिर से पधारिए ॥
ऐसी ही स्वतंत्रता की कल्पना थी आपकी क्या,
                           चारों ओर लूट लतखोरी है निहारिए ॥
रेप से रँगे हैं अखवारों के अनंत पृष्ठ
                      छोटी छोटी बेटियों की विपति बिचारिए ।
शासकों से साँठ गाँठ होती अपराधियों की,
                           ऐसे राष्ट्र नायकों की नियत सुधारिए ॥
                                                            - डॉ.एस.एन. वाजपेयी 

'' साईं भगवान हैं या नहीं ' इस विषय पर बहस ही क्यों ?

     आखिर पैदा ही क्यों हुआ धर्म में साईं संकट ?

      साईं को भगवान की तरह ,भगवान के मंदिरों में, भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों की भाँति, भगवान के मन्त्रों एवं पूजा पद्धति से पूजा जाना ही  सनातन धर्म पर विधर्मियों का बहुत बड़ा हमला है !

   इसलिए सनातन धर्मियों का फाइनल फैसला यही है कि साईं बुड्ढे में भगवान की कल्पना  भी नहीं जा सकती !अतः इस विषय पर बहस का औचित्य क्या है !

      अभी तक सनातन  धर्म द्रोहियों के द्वारा किसी के धर्म के विषय में दुष्प्रचार तो किया जाता रहा है किसी के धार्मिक ग्रंथों के विषय में दुष्प्रचार भी किया जाता रहा है,किसी के धार्मिक महापुरुषों के विषय में दुष्प्रचार भी किया जाता रहा है किन्तु अब तो भगवान के आस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया गया है।ऐसे तो कभी भी कोई भी ऐरा गैरा  बन जाएगा हिन्दुओं का भगवान !

     सनातन धर्मियों के भगवान , भगवान की मूर्तियों ,भगवान की पूजा पद्धतियों, भगवान के मंदिरों जैसी अत्यंत पवित्र अवधारणा पर ही अब तो साईं नाम  का हमला हुआ है अब हम लोग पंचायत करते घूम रहे हैं कभी टी. वी. चैनलों पर तो कभी वैसे और वो भी इस विषय पर कि साईं भगवान हैं कि नहीं !ये विषय बिचार करने के लिए लाया जाना भी साईं के आस्तित्व को न्यूनाधिक रूप से स्वीकार करना ही है जबकि उचित तो यह है कि इस विषय को जड़ से ख़ारिज ही किया जाना चाहिए !

     वैसे भी इस विषय में सनातन धर्मशास्त्र के अनुशार शास्त्रीय संतों के धर्मशास्त्रीय विचार ही विश्वनीय माने जा सकते हैं किन्तु साईं किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होंगे ! फिर भी यदि सौभाग्य से सनातन धर्म के शास्त्रीय संतों की सभा होनी ही है तो आत्ममंथन इस विषय पर हो कि साईं नाम की समस्या पैदा ही क्यों हुई ?इससे निपटा कैसे जाए ?दूसरी बात वर्तमान समय के सनातन धर्म के जिम्मेदार महापुरुषों से चूक आखिर कहाँ हुई है ,आखिर क्यों पैदा हुआ है धर्म में साईं संकट ?और दुबारा ऐसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए क्या किया जाएगा !

      साईं पूजा के समर्थन में जिन धर्माचार्यों ने जो बयान  दिए हैं वो कहाँ तक उचित हैं उस पर शास्त्रीय संत समाज का रुख स्पष्ट किया जाए !साईं के संदर्भ में शास्त्रीय सच्चाई समाज के सामने रखने के लिए सनातन धर्म के अधिकृत शास्त्रीय संत क्या कुछ करने का आदेश देंगे वही सनातन धर्मियों को मान्य होगा  !

     साईं शब्द के प्रारम्भ में ॐकार और अंत में राम लगाकर ,झूठ मूठ में साईं गायत्री बना एवं बताकर मंदिरों में साईं की मूर्तियाँ घुसा कर जिन सनातन धर्मियों को भगवान के भ्रम में साईंयों के द्वारा फाँसा गया है उनके सामने शास्त्रीय सच्चाई कौन रखेगा किस प्रकार से रखी जाएगी आदि आदि बातों पर देश काल परिस्थिति के अनुशार शास्त्रीय संत विचार करें !

    अंधेर हो गई साईं भगवान बनेंगे !"जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम"    वर्तमान समय में तो साईंयों ने जो घृणापन  फैला रखा है उसके आधार पर साईं को संत भी नहीं माना जा सकता है क्योंकि "संत वही भगवंत जो मानै"और जो भगवान की जगह अपनी पूजा कराने लगे ये तो सनातन हिन्दुओं की परंपरा ही नहीं है और जो हिन्दुओं की परंपरा का पालन ही न करता हो वो जब हिन्दू ही नहीं हैं तो संत कैसे हो सकते हैं और जहाँ तक बात भगवान की है वो तो कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि भगवान हमारे निश्चित  हैं उनकी संख्या घटाई बढ़ाई कैसे जा  सकती है !

     साईं संकट कोई आम घटना नहीं है ये सब कुछ सुनियोजित सा लगता है । अभी हाल ही में पैदा हुआ एक अदना सा  टी.वी.चैनल धर्म ,धर्मशास्त्रों ,धार्मिक महापुरुषों ,धर्माचार्यों एवं श्रद्धेय साधूसंतों की  छीछालेदर करने के बल पर ही आज राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय आदि जो कुछ कहें सो हो गया है! लाख टके का सवाल यह है कि केवल एक टी.वी. चैनल चलाने के लिए धर्म जैसे संवेदन शील विषय की तथ्यहीन एवं लक्ष्य हीन चीड़फाड़ करना या कराना कहाँ तक उचित एवं नैतिक है ! वह भी तब जब एक धर्म विशेष के आस्था महापुरुषों की पोशाक की नक़ल करने मात्र से बवाल हो चुका हो किन्तु आज सनातन धर्मियों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को कैसे और क्यों दिया जा रहा है कोई झिझक क्यों नहीं होती! ऐसी बातें सनातन हिन्दू धर्म एवं धर्मशास्त्रों के विरुद्ध बोलने पर ? 

      हिन्दुओं का भगवान  कैसे बनाया जा सकता है साईं भगवान हैं या नहीं इस  पर बहस ही क्यों और किस बात के लिए  बहस !और बहस से यदि  ये सिद्ध भी कर दिया जाएगा कि साईं भगवान हैं तो क्या श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा गणेश हनुमान जी जैसे देवी देवताओं के बराबर साईं को बैठाया जाना स्वीकार कर लिया जाएगा !

   हिन्दुओं के धर्म एवं धर्मशास्त्रीय विषयों का निर्णय  कुचक्रपाणियों ,आमोद प्रमोदों ,प्रज्ञाकुंदों से कराया जाना कहाँ तक ठीक है ? जिनका शास्त्र से कोई सम्बन्ध ही नही है ये बिना पेंदी के लोटे जिधर पैसे देखते हैं उधर लुढक जाते हैं ऐसे लोगों से ही टी.वी.चैनलों को भी मजा आ रहा है धर्मसंसद के नाम पर अशास्त्रीयता को स्थापित करने में टी. वी.चैनल भी महती भूमिका अदा कर रहे हैं ।

      पाखंडियों ने धर्म को विकृत करने की कसम सी खा रखी है अग्निवेश कह रहे हैं कि "बाबा अमरनाथ में शिव लिंग केवल बर्फ का पुतला है " 

    आखिर  यह कहकर अग्निवेश जी समझाना क्या चाहते हैं ,कहीं ये तो नहीं कि वो सामान्य बर्फ पिंड मात्र है इसके अलावा कुछ नहीं है यदि उनके कहने का वास्तव में यही मतलब है जो मैं समझ पा रहा हूँ तो मैं अग्निवेश जी से जानना चाहता हूँ कि हमारा और उन जैसों का शरीर भी उस दृष्टि से तो मांस पिंड  ही है अर्थात इसमें शरीर की दृष्टि से केवल मीट ही मीट है इसके अलावा  कुछ भी  नहीं है किन्तु क्या हमारे शरीरों की तुलना कसाई की दूकान पर रखे मीट से की जा सकती है ! यदि हम लोग केवल मांस पिंड  अर्थात मीट के लोथड़े मात्र हैं तो आपका विचार अपनी दृष्टि से सही माना जा सकता है !

     अज्ञानी अग्निवेश जी ! आपकी धर्म एवं धर्म द्रोह करने की आदत ठीक नहीं है आखिर क्यों करते हैं बुढ़ापे में भी गाली खाने का काम ?माना कि आपको धार्मिक होने का सम्मान नहीं मिल पाया इसलिए आपको अपनी इज्जत की परवाह नहीं अपितु धर्म से चिढ है किन्तु कौशेय वस्त्रों की तो मर्यादा बनी रहने दीजिए !संतों की सी वेष  भूषा बनाकर घूमने वाले किसी व्यक्ति के मुख से ये मंदिरों में स्थापित मूर्तियों की आलोचना एवं बाबा अमर नाथ जी के बर्फ लिंग की आलोचना सुन कर न केवल सम्पूर्ण हिन्दू समाज हतप्रभ  है अपितु उसके बाद से लोग आपको कलियुग  का  कालनेमि कहने लगे हैं !

     कुल मिलाकर हमारा तो सभी सनातन धर्मी साधू संतों विचारकों से यही निवेदन है कि चोरों को गाली देने की अपेक्षा अपना घर ही क्यों न सँभाल लिया जाए !

Monday, July 21, 2014

saai 5

 धर्म की ये दुर्दशा -

   बड़े बड़े  मलमलबाबाओं, तमाशारामों, आमोदप्रमोदों तथा कुचक्रपाणियों के मनमाने ऊलजुलूल एवं धर्म के नाम पर धर्म विहीन अधार्मिक अशास्त्रीय निर्णयों वक्तव्यों आचरणों से सनातन धर्मी समाज अब तंग आ चुका है । जब होता है तब सनातन धर्म कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है आखिर क्यों और कोई धर्म क्यों नहीं ? सनातन धर्म शास्त्रों में लिखी बातों का उपहास उड़ाया जाता है सनातन धर्म के बड़े से बड़े साधू संतों को टी.वी.चैनलों पर बैठकर लोग गाली दे देते हैं ,ऐसे लोग जिनकी धार्मिक शिक्षा बिलकुल शून्य है वो भी टी.वी.चैनलों पर बैठकर धार्मिक विन्दुओं पर हमारे साधू संतों से माफी माँगने की माँग करते हैं उनका इतना दुस्साहस !

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 धर्म की ये दशा -

भगवा वस्त्रों में शरीर लिपेट कर रहने वाला कोई सनातन धर्म शास्त्र द्रोही हिन्दुओं के प्राण रूप भगवान श्री राम और श्री कृष्ण को आम इंसान बता देता है भगवान की मूर्तिओं को आम पत्थर बता देता है ऐसे निकृष्ट व्यक्ति का भी सम्मान करने की एवं उसे स्वामी जी कहने की हिन्दू समाज की आखिर क्या मजबूरी है!

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 धर्म की ये दशा -

राजनीति करने के लिए कुछ लोग धर्म से जुड़े हैं धार्मिक वेष भूषा बनाए फिरते हैं अधिकांश ऐसे साधुओं ने ही साईं पूजा का समर्थन किया है उनकी बातों का विश्वास आखिर कैसे किया जाए क्योंकि वो पूर्णतया धार्मिक नहीं होते हैं आधे धार्मिक और आधे नेता होते हैं तो धार्मिक वेष भूषा में रहते हुए भी राजनैतिक दोष दुर्गुण उनमें आ जाना स्वाभविक ही है ,आखिर  चुनाव लड़ने के लिए उन्हें बहुत पैसा चाहिए दुनियां जानती है कि उनका कोई कारोबार नहीं है उन्हें यदि चुनावी चंदा चाहिए तो  माँगना ही पड़ेगा !उस धन के लिए वो साईं की वकालत करें या किसी और प्रकार की दलाली या कमीशन का कुछ और काम धंधा देखें ,कुछ न कुछ ऐसा ही करना पड़ेगा उन्हें अन्यथा आखिर कहाँ से आएगा वो भारी भरकम धन जो चुनाव लड़ने के लिए चाहिए इसलिए धन के लिए कोई भी अशास्त्रीय समझौता करना उनकी मजबूरी हो सकती है किन्तु आम आदमी जो बिलकुल आम बनकर जी लेना चाहता है आखिर वो अपने देवी देवताओं ,धर्म शास्त्रों ,मंदिरों एवं महापुरुषों की प्रतिष्ठा से समझौता क्यों करे !

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 धर्म की ये दशा -

हिन्दुओं के यहाँ भगवानों की कोई वैकेंसी खाली नहीं है !

    जहाँ साईं को भर्ती कर लिया जाए !भगवान बनाकर पूजने की लिस्ट में साईं का कहीं नंबर ही नहीं है !

     सबसे अधिक देवी देवता हिन्दुओं में ही हैं, इसलिए  साईं को कृपा करके उन धर्मों पर थोपा जाए जिनके यहाँ भगवानों की कमी है !हिन्दू अपने धर्मों एवं परंपराओं से बाहर जाकर किसी तथाकथित भगवान को गोद नहीं ले सकता !ये मजबूरी सबको समझनी चाहिए ,वैसे भी हिन्दुओं को यदि किसी को भगवान बनाकर ही पूजना होगा तो उनके स्वयं असंख्य साधू संत महापुरुष आदि दिव्यातिदिव्य हो चुके हैं जिन्होंने देश समाज धर्म एवं धर्म शास्त्रों के लिए बहुत कुछ किया है जिनके योगदान को

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 धर्म की ये दशा -

यदि हमें भगवान बनाकर ही पूजना ही होगा तो हम अपने पूर्वजों को पूजेंगे, उनके मंदिर बनाएँगे उनकी मूर्तियाँ लगाएँगे । जिनके चरित्र  से दुनियाँ सुपरिचित है उनके योगदान के विषय में कोई एक प्रश्न करेगा तो सौ उत्तर देंगे आखिर उनके आचरण ही ऐसे उत्तमश्लोक होंगें कि उनकी पहचान बताने और प्रशंसा करने में हमें शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा बगलें नहीं झाँकनी पड़ेंगी ,टी.वी. पैसा देकर झूठी प्रशंसा नहीं करवानी पड़ेगी !

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 धर्म की ये दशा -

साईं सनातन धर्म के प्रति समर्पित व्यक्ति नहीं थे वो सभी धर्मों को मानने वाले थे इसलिए जिसे हमारे धर्म के प्रति भरोसा नहीं था उस पर हम ही भरोसा क्यों कर लें ? सभी धर्मों के लोग उन्हें जितना मानेंगे हिन्दू  भी उतना मानेंगे वो जिसकी इच्छा होगी ।  

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 धर्म की ये दशा -

साईं बूढ़े थे इस नाते उनका सम्मान उसी तरह किया जा सकता है जितना सभी वृद्धों का होता है आखिर साईं वीआईपी बूढ़े क्यों माने जाएँ !आखिर हमें क्यों लगता है कि हमारे माता पिता दादा दादी आदि पूर्वज भगवान बनने के लायक नहीं थे उनमें ऐसी क्या कमी थी जिसे साईं पूरी करते हैं अगर कोई कहता है कि साईं मनोकामना पूरी कर देते हैं याद रखिए बड़े बूढ़ों की सेवा से जो आशीर्वाद मिलता है वो अमोघ कवच होता है वो अनंत पुण्यफल प्रदान करता है उससे बड़ी बड़ी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं ये स्वाभाविक है हमारे धर्म शास्त्रों का ये उद्घोष है कि वृद्धों की सेवा से ये चार चीजें प्रतिदिन बढ़ती हैं -

      चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्

               आयु, विद्या,यश और बल   

    इसका अनुभव वही बता सकते हैं जिन्होंने अपने घर के वृद्धों का सम्मान किया है पूजन किया है जो अपने घर के वृद्धों का हक़ मार  करके दूसरे के वृद्धों(साईं ) का पूजन करते घूमते हैं उन्हें फल तो भगवान देते हैं किन्तु वो फल नहीं मिलता है जो अपने बृद्धों के पूजन से मिलता है आखिर हम दूसरे के बूढ़ों को पूजते घूमेंगे तो हमारों को कौन पूजेगा इसलिए वो फल नहीं मिलता दूसरा फिर अपने परेशान करते हैं अर्थात पितृदोष होता है !

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 धर्म की ये दशा -

ऐसे कितने लोग हैं जो अपने पितरों का पूजन करते हैं श्राद्ध करते हैं और उन्हें छोड़कर साईं बाबा जैसे दूसरे के बूढ़े को पूजते घूमते हैं !अपने माता पिता सास श्वसुर आदि की पूजा न करके दूसरे बूढ़ों (साईं )को पूजते हैं तो उनका श्राप लगता है बेशक वोमाता पिता आदि जीवित ही क्यों न हों बेशक वो श्राप न दें किन्तु भगवान ही ऐसा न्याय करते हैं यदि ऐसा नहीं होगा तो दुनियाँ साईं को पूजने लगेगी और अपने माता पिता को वृद्धाश्रम भेज आएगी या उनकी उपेक्षा करने लगेगी !

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 धर्म की ये दशा -

यह तो सब लोग मानते हैं कि साईं और कुछ भी हों किन्तु हिन्दुओं के भगवान नहीं हो सकते !यदि यह सच है तो यह भी मानना पड़ेगा कि साईं की मूर्तियाँ मंदिरों में नहीं रखी जा सकतीं क्योंकि मंदिर भगवान के लिए बनाए जाते हैं ! जितना यह सच है उतना ही सच यह भी है कि साईं की मूर्तियाँ प्राण प्रतिष्ठित नहीं हो सकतीं क्योंकि वेदों में मन्त्र तो देव प्रतिष्ठा के लिए होते हैं और बिना प्राण प्रतिष्ठा की हुई मूर्तियों का पूजन करने से हिन्दुओं के देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा के विषय में भी संशय होगा कि शायद ये भी देव मूर्तियाँ न होकर पत्थरों के खंड ही पुरुषाकृति के बनाकर फूल मालाएँ चढ़ाकर कर गाया बजाया  जाने  लगा हो जबकि देवी देवताओं की मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है जो साईं की मूर्ति में संभव ही नहीं है । हो सकता है साईं साधू संत या कोई दूसरे धर्म के फकीर रहे हों किन्तु मंदिरों में साईं की मूर्ति रखकर देव पूजा पद्धति से साईं की पूजा तो नहीं  ही की जा सकत है क्योंकि यह शास्त्र सम्मत नहीं है ।

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 धर्म की ये दशा -

साईं को साधू संत यदि मान भी लिया जाए तो शास्त्र को एक तरफ रखकर आँखें मूँद कर साधुवेष पर भी अंध विश्वास तो नहीं ही किया जा सकता है वैसे भी अंध आस्था के कारण ही माता सीता का हरण हुआ था सनातन हिन्दुओं को उस घटना से बहुत कुछ सीखना होगा !

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 धर्म की ये दशा -

साईं को साधू संत यदि मान भी लिया जाए तो शास्त्र को एक तरफ रखकर आँखें मूँद कर साधुवेष पर भी अंध विश्वास तो नहीं ही किया जा सकता है वैसे भी अंध आस्था के कारण ही माता सीता का हरण हुआ था सनातन हिन्दुओं को उस घटना से बहुत कुछ सीखना होगा !

     इसलिए कुछ धार्मिक लोग भी  यदि साईंपूजा का समर्थन कर देंगे तो भी ऐसे स्वयंभू नीति नियामकों को सनातन धर्मी हिन्दू समाज अपना धार्मिक प्रतिनिधि क्यों मान लेगा यदि वो शास्त्र सम्मत न बोलकर अपितु धर्मशास्त्रों की आवाज दबाकर अपना मनगढंत फतवा जारी करेंगे!सनातन धर्मी हिन्दू किसी का  बँधुआ मजदूर तो नहीं है जो धर्म के नाम पर उसे जैसा समझा दिया जाएगा वैसा मान लेगा !यदि वो शास्त्र पढ़ सकता है तो स्वयं भी पढ़ेगा और समझेगा तब मानेगा !

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 धर्म की ये दशा -

केवल धार्मिक वेष भूषा धारण कर लेने से किसी को संत नहीं माना जा सकता! संत स्वयंभू नहीं हो सकते !साधू संत वेद पुराणों एवं धर्म शास्त्रों को मानते हैं भगवान को भगवान मानते हैं इसलिए हिन्दू समाज उन्हें भगवान की तरह मानता है !किन्तु इसका ये कतई मतलब नहीं है कि धर्मवेष धारण करने वाले ऐसे कुछ लोग किसी अनाम बुड्ढे को भगवान बनाकर पूजने के लिए सनातन हिन्दुओं पर थोप देंगें ! अब सनातन धर्मी हिन्दू समाज किसी के भी ऐसे आदेश को स्वीकार नहीं करेगा जिससे उसके धर्म शास्त्रों की उपेक्षा होती हो देवताओं का गौरव घटता हो जिससे उसके आस्था प्रतीकों मंदिरों की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया जाता हो !

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Sunday, July 13, 2014

साईं संप्रदाय के लोगों को हमारे ज्योतिषी होने पर आपत्ति क्यों ?

   

       मुझे यह समझ में नहीं आता है कि यदि हमने  सरकारी पाठ्यक्रम के हिसाब से भारतीय कानून का अनुपालन करते हुए हिंदी (ज्योतिष)) में डॉक्टरेड किया है फिर भी यदि किसी को ज्योतिष अंधविश्वास लगता है तो उसे शिकायत हमसे नहीं सरकार से होनी चाहिए इसलिए हम फेस बुक के अपने सभी मित्रों से केवल इतना ही निवेदन करते हैं ! 

      यदि कोई ज्योतिष या वास्तु के किसी भी  विषय में कोई भविष्यवाणी करता है और वह गलत हो जाती है अथवा वो किसी के जीवन से जुड़ी कोई समस्या या उसके समाधान बताता है किसी को किसी आधार पर लगता है कि वो गलत हैं या उसे भ्रमित किया जा रहा है या उसके साथ धोखाधड़ी की जा रही है ऐसी परिस्थिति में उसके लिए चिकित्सा पद्धति की तरह ही इसमें भी कानून के दरवाजे खुले हैं कानूनी प्रक्रिया में वो जवाब देय होगा कि किन ग्रंथों प्रमाणों के आधार पर ज्योतिर्विद ने ऐसी बात कही है वो काम उसका है वो अपना पक्ष कोर्ट में रखेगा या सजा भुगतेगा !

      हर भविष्यवाणी  गलत होने पर गलती ज्योतिषी की ही नहीं होती है क्योंकि ज्योतिष जैसे गंभीर विषय को सँवार कर फलित करने की सारी जिम्मेदारी केवल ज्योतिष वैज्ञानिकों की ही नहीं है आम समाज को इसमें सहयोग करने की आवश्यकता है ।कई बार जन्म पत्रियाँ गलत होती हैं या कम्प्यूटर से बनी हुई होती हैं उनमें उतनी शुद्धता न होने के कारण वो पूर्ण विश्वनीय नहीं होती हैं कई बार  जिसकी  जन्मपत्री लोग दिखाते हैं किन्तु दोष उसमें नहीं होता दोष घर  के किसी अन्य सदस्य की कुण्डली या वास्तु आदि का होता है जिसे भुगत वो रहा होता है ऐसी परिस्थिति में उन सारी  चीजों की गहन जाँच  करनी होगी ,उसका खर्च भी अधिक आएगा और समय भी अधिक लगेगा ये स्वाभाविक है किन्तु जो लोग अज्ञान,कंजूसी या चालाकी के कारण उस पर लगने वाला खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम अपनी श्रद्धा से जो चाहें सो दें पंडित जी वो लेंगे और पंडित जी मेहनत पूरी करेंगे !किन्तु ऐसा कभी नहीं होता है ज्योतिषी के साथ जैसा व्यवहार आप करेंगे ज्योतिषी भी वैसा ही व्यवहार आपके साथ करेगा ! ये कभी नहीं सोचना चाहिए कि ज्योतिषी यदि विद्वान है तो वो तो हमारा भाग्य सही सही बताएगा ही उसे परिश्रम चाहें  जितना करना पड़े !ये भ्रम है जैसे बिजली किसी जगह चाहें जितनी हो किन्तु जितने बाड का बल्व लगा होता है प्रकाश उतना ही होता है ।इसी प्रकार से समुद्र में पानी चाहे जितना हो किन्तु पानी उतना ही देता है जितना बड़ा बर्तन होगा ठीक इसी प्रकार से कोई ज्योतिषी विद्वान चाहे जितना हो और किसी से सम्बन्ध चाहे जितने अच्छे हों किन्तु जितना आपका धन लगता है उतना ही ज्योतिषी का मन लगता है यदि धन नहीं तो मन नहीं, हाँ ,जैसे और जितनी चिकनी चुपड़ी बातें आप करके चले आओगे उतनी ही चिकनी चुपड़ी बातें करके ज्योतिषी लोग आपको प्रेम पूर्वक भेज देंगे !यदि आप सोचते हैं कि मैंने चतुराई से काम निकाल लिया तो ज्योतिषी सोचता है कि मैंने परन्तु  पैसे कम देने में आप भले सफल हो गए हों किन्तु जिस काम के लिए आप ज्योतिषी के पास गए थे वो काम आप बिलकुल बिगाड़ कर चले आए हो लेकर कई लोग अपनी समस्याओं से निपटने के लिए ज्योतिष पर उतना विश्वास नहीं कर पाते हैं जितना अन्य माध्यमों पर जैसे कोई बीमार है तो डाक्टर जाँच पर जाँच  बताते जाएँगे इलाज पर इलाज बदलते जाएँगे उसमें धन खर्च करने में उतनी दिक्कत नहीं होती है किन्तु ज्योतिष विद्वान यदि उस हिसाब से समस्या की जड़ तक पहुँचना चाहे तो काम बढ़ जाएगा जिसका खर्च भी बढ़ेगा जिसके लिए लोग तैयार नहीं होते ऐसी परिस्थिति में ज्योतिषी भी उस कठिन परिश्रम से बचते हुए उतने में ही जो कुछ संभव हो पता है वो बता कर अपना पीछा छुड़ा लेता है ऐसे लोग बाद में सोचते हैं कि भविष्यवाणी गलत हो गई जो गलत है। मेरी तो सलाह ऐसे लोगों को है कि आधी अधूरी श्रद्धा लेकर किसी ज्योतिष वैज्ञानिक के पास जाना क्यों आखिर कोई विद्वान किसी के घर बुलाने तो जाता नहीं है कि हमें दिखा लो अपनी कुंडली !               

        इसी प्रकार से विवाह विचार में लड़के लड़की की कुंडली मिले जाती है और सास बहू की लड़ाई होकर तलाक हो जाता है इसमें ज्योतिष का क्या दोष ?या तो पहले ही विचार सारे घर के सदस्यों को लेकर किया गया  हो फिर तो बात है । इसीप्रकार विवाह के दस वर्ष बाद एक बीमार हो जाता है या नहीं रहता है या संतान नहीं होती  है या व्यापार बिगड़ जाता है इसमें ज्योतिष गलत कहाँ है ? इन विषयों में विचार करने के लिए ज्योतिषी को पर्याप्त काम करने की उतनी आर्थिक स्वतन्त्रता ही नहीं मिली !इसमें ज्योतिष का क्या दोष ?

        रही बात वास्तु की इसे  हमेंशा तीन भागों में बाँट कर चलना होता है 33 प्रतिशत उसकी जन्म पत्री में,33 प्रतिशत वास्तु भूमि के अंदर ,और 33 प्रतिशत भवन निर्माण कला में होता है। जन्मपत्री से हमारा अभिप्राय यह है कि जब भाग्य में भवन सुख होगा तभी तो मिलेगा ऐसा प्रत्यक्ष तब देखा जाता है जब कोई किसी  एक कमरे में रहते रहते एक कोठी बना लेता है जबकि उस कमरे में जगह की कमी के कारण वह किन्हीं वास्तु नियमों का पालन नहीं कर पाया फिर भी कोठी बन गई ये भाग्य है इसमें जन्मपत्री का विषय होता है। दूसरा वास्तु भूमि के अंदर से आशय उस विषय से है जब जमीन  के अंदर कुछ ऐसी चीज गाड़ी गई हो या गड़ी हो जो वहाँ किसी को बसने न दे रही हो जैसे जीवित शल्य अर्थ  ऐसे व्यक्ति की हड्डी जो पूर्णायु का भोग किए बिना ही किसी दुर्घटना आदि में शरीर छूट गया हो उसकी हड्डियाँ जीवित शल्य होती हैं जिनका दुरूपयोग तांत्रिक लोग किया करते हैं जो गलत है ऐसी जमीनों को शुद्ध करने के लिए ज्योतिषीय गणित के द्वारा पहले उनका पता लगाया जाता है फिर उन्हें शास्त्रीय शल्यानयन विधि से निकला जाता है । उसके बाद वहाँ रहने लायक भवन बनाया जा सकता है तीसरे नंबर 33 प्रतिशत भूमिका वास्तुकला की होती है जिसमे किस दिशा में क्या बनाना है इसमें आवश्यकतानुशार कुछ समझौते भी किए जा सकते हैं जिनका बहुत बड़ा असर नहीं होता है यदि बाकी  दोनों चीजें सही हुईं तो और यदि वो दो बिगड़ गईं तो सब कुछ बिगाड़ा ही जानना चाहिए ऐसी परिस्थिति में केवल वास्तु कला किसी काम नहीं आएगी इसीलिए केवल वास्तु कला मानकर नहीं चला जा सकता है जैसा आजकल हो रहा है क्योंकि  अधिकाँश  दोष जमीन के अंदर होते हैं और विशेष प्रभाव वास्तु का होता है।

        अब बात मौसम की सरकारी मौसम विभाग आजकल बड़ी चालाकी से काम ले रहा है जैसे अबकी बार ही अभी से बोल दिया कि सूखे की संभावना है इसका प्रमुख कारण है कि यदि पानी बरस जाएगा तो लोग खुश होकर ऐसी भविष्य वाणियाँ भूल जाएँगे और यदि बरसा नहीं हुई तो भविष्य वाणी तो सच हो ही गई !यदि इन्होंने अच्छी वर्षा होने की भविष्यवाणी की होती और फिर सूखा पड़ जाता तो दुःख में भविष्यवाणियाँ बहुत याद आती हैं सुखी लोग कहाँ सोचते हैं भविष्यवाणियों के विषय में !

       सरकारी मौसमविभाग केवल चालाक ही नहीं कृषि आदि के कुछ विषयों में अप्रासंगिक भी है जैसे पशुओं का चारा आनाज आदि खाद्य सामग्री तो फसल पर ही संग्रह करना होता है इसलिए अगले काम से कम छै महीने अथवा पूरे वर्ष के मौसम की जानकारी किसान को फसल तैयार होने से पहले हो जानी चाहिए इससे वो फसल तैयार होने पर अपने एवं अपने पशुओं के लिए खाद्य सामग्री का संग्रह वर्ष भर के लिए कर लेता है !किन्तु जब वो फसल तैयार करके कुछ महीनों की खाद्य सामग्री का संग्रह करके बाक़ी फसल बेच लेता है क्योंकि उसे पता होता है कि कुछ महीने में अगली फसल आनी है। इसके कुछ  महीने बाद  मौसम विभाग यदि सूखे की भविष्यवाणी कर भी देता है तो किसान के किस काम की और सरकार के किस काम की क्योंकि सरकार यदि किसी अन्य देश से लेकर आपूर्ति करना भी चाहे तो समय तो उसके लिए भी चाहिए !

       ऐसी परिस्थिति में मौसम विभाग क्या करता होगा कैसे करता होगा उसकी तो वाही जानें किन्तु ज्योतिषीय मौसम विभाग के विषय में विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि कोई भी भविष्यवाणी पचास से साथ प्रतिशत तो सच होगी ही किन्तु इसका एक लाभ और है कि इस ज्योतिषीय मौसम भविष्यवाणी को कुछ महीनों ही नहीं अपितु वर्षों पहले भी किया जा सकता है!मेरे कहने का अभिप्राय है कि यदि पचास प्रतिशत का इशारा भी किसानों तथा सरकार एवं सरकारी संस्थाओं को पहले से मिल जाए तो वो यथासंभव आवश्यक व्यवस्था कर लेंगी किन्तु ज्योतिषीय मौसम भविष्यवाणी के लिए सरकार को संसाधन उपलब्ध कराने से लेकर आर्थिक सहयोग तक में पूर्ण रूचि लेनी होगी और परिणामों में जितनी छूट सामान्य वैज्ञानिकों को मिलती है उतनी ही ज्योतिष वैज्ञानिकों  को भी देनी होगी मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि इसे देश एवं समाज का महत्वपूर्ण लाभ होगा ।

         इसी प्रकार से किसी की बीमारी आदि के विषय में मान लीजिए उसे ग्रह जनित दुष्प्रभाव से बीस से सत्ताईस वर्ष बीमार रहना है तो इसका पता जन्म के समय भी लगाया जा सकता है जिससे सतर्क रहते हुए उसके उपाय करते हुए पाठ्य परहेज पूर्वक उस समय को निकला जा सकता है अन्यथा जाँच चिकित्सा में डाक्टर बदलते अस्पताल बदलते शहर शहर में या विदेशों में भी इलाज के नाम पर भटककर समय पार करना पड़ता है कई लोग तो इलाज कराते कराते सब जगह से थक हारकर किसी तीर्थ में यह सोचकर बस जाते हैं कि सब जगह इलाज कराकर थक गए अब जो होगा सो होगा और वहीँ किसी वैद्य आदि के यहाँ से कोई सामान्य दवा काढ़ा आदि लेते हैं देवी देवताओं बाबा बैरागियों आदि के दर्शन करते  रहते हैं । इसी बीच वो अचानक ठीक होने लगता है और ठीक हो जाता है तब तक उसका वो बीस से सत्ताईस वर्ष अर्थात सातवर्ष का समय पार हो जाता है अब वो अपने ठीक होने का श्रेय उन उन लोगों को देने लगता है जो जो उपाय उसने बाद में किए थे जब कि वो समय के प्रभाव से बीमार हुआ था समय के प्रभाव से ठीक हो गया !यही कारण  है कि प्रतिकूल समय में दवाएँ भी उतना असर नहीं करती हैं जितना करना चाहिए। इसलिए किसी व्यक्ति पर चिकित्सा को प्रभावी बनाने के लिए ज्योतिष का भी इस रूप में सहयोग लिया जा सकता है।  

       इन समस्त बातों में कहीं कोई लीपा पोती नहीं है चिकित्सा के क्षेत्र की तरह ही सारी सरकारी एवं कानूनी पारदर्शिता है जिसे सबको मिलजुलकर पालन करना चाहिए ज्योतिष शास्त्र को गाली देना ठीक नहीं नहीं है और न ही ज्योतिषियों को !जैसे कोई किसी अन्य सब्जेक्ट का अध्ययन करता है वैसे ही कोई ज्योतिषी ज्योतिष विषय का जैसे चिकित्सा आदि किसी अन्य क्षेत्र में डिग्रियाँ सरकारी विश्व विद्यालयों द्वारा छात्रों को दी जाती हैं वैसे ही ज्योतिष पढ़ने वाले छात्रों को पढ़ाई पूरी करने पर सरकारी विश्व विद्यालय डिग्रियाँ देते हैं ।भारतीय संविधान के दायरे में रहकर जैसे कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय को पढ़ने में स्वतन्त्र होता है इसी स्वतंत्रता से ज्योतिषी लोग ज्योतिष पढ़ते हैं तो उनका अपराध क्या है ?

Saturday, July 12, 2014

भूख हड़ताल से मुझे कोई लाभ नहीं हुआ : केजरीवाल

    किन्तु लाभ कैसे होता आप दुबले पतले आदमी ठहरे आपको तो खूब खाना चाहिए किसी ने आपको  सलाह ही उलटी दे दी कि आप भूख हड़ताल करो आज के बाद आप ऐसा कभी मत करना ये आपके स्वास्थ्य के लिए हानि कारक है आपको जिसने ऐसी सलाह दी है ये तो किसी उच्चस्तरीय जाँच का विषय हो सकता है कहीं इसमें काँग्रेस और भाजपा वालों की कोई साजिश तो नहीं है आखिर आपको भूखा क्यों रखा गया या आप स्वयं भूखे रहे या आपको भूख ही नहीं लगी जांच इसकी भी होनी चाहिए उससे यह भी पता लग जाएगा कि आपको भूखा रखने में किसी अम्बानी अडानी की कोई साजिश तो नहीं थी राम ! राम !!

    आप अब ऐसा कभी मत करना !राजनीति में तो लोग जाते ही खाने सोने को हैं आप ने देखा नहीं कि संसद में बड़े बड़े लोग कैसे सोते हैं ! राजनीति में तो भूख हड़ताल में भी भोजन का विशेष प्रबंध रखा जाता है ये कोई व्रत थोड़ा है जो एकांत में भी देवता देखते होंगे ! राजनीति तो नजर का खेल है जितना अधिक से अधिक जनता की नजर बचा सकते हो उतना बचाओ बाकी सब कुछ खाओ ,जनता कुछ करते देख न ले बस इतनी सी बात है इसी में सारी  राजनीति छिपी होती है जिन्हें ये फार्मूला जितनी जल्दी समझ में आ गया वे उतनी जल्दी मालामाल हो जाते हैं राजनीति में सबसे बड़ी शत्रु तो जनता ही होती है इससे सतर्क रहो और सब कुछ करो !राजनीति में किया सबकुछ जाता है किन्तु लोगों की आँख बचाकर ! 

      राजनीति में सम्मिलित प्रायः लोग जनता की निगाहों में त्यागी तपस्वी आदि आदि सब कुछ होते हैं किन्तु जब से राजनीति में सम्मिलित हुए थे तब से आज तक की जांच यदि ईमानदारी से हो जाए तो पता ये भी चल जाएगा कि प्रशासन पर से सरकारों का नियंत्रण क्यों घटता जा रहा है या तो पैसा कमवा लो या फिर कानून व्यवस्था ठीक कर लो!

   नेताओं की आय का हिसाब लगा लो तो बिना कुछ किए हुए ,जहाजों पर घूमते हुए सारे सुख भोग भोगते हुए भी करोड़ों अरबों तक पहुंचते देर ही नहीं लगती है ! ये फंड इस प्रकार से बढ़ा कैसे जिस दिन इसका राज खुल जाएगा उसी दिन देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा किन्तु ये राज खोलेगा कौन ?ये लाख टके का सवाल है चुनावों के समय सब सबको बेईमान बताते हैं किन्तु चुनावों में जो जीत जाता है वो इतना शरीफ हो जाता है स्पष्ट कह देता है कि हमारी सरकार बदले की भावना से कोई कार्यवाही नहीं करेगी !इस वाक्य से उनको क्लीन चिट मिल जाती है जिन्हें चुनाव प्रचार में चिल्ला चिल्लाकर चोर और भ्रष्टाचारी आदि कहा जाता रहा है समझदारी की बात यही है कि सत्ता भोगने के लिए ही मिलती है इसलिए क्यों किसी से पंगा लेना !मजे की बात ये भी है कि बात बात में मान हानि के मुक़दमे की बात करने वाले नेता इसबात के लिए कभी कोर्ट नहीं जाते कि हमारे ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए क्यों गए थे अब जांच कराई जाए !नीति तो यही कहती है कि अभी तक जिस पर करोड़ों के घोटाले के आरोप लगे थे अब आपकी सरकार बन गई तो अब या तो आप उन घोटालों की जांच कराइए और उसका सच जनता के सामने लाइए और या फिर जनता के सामने कह दीजिए कि हीं हीं हीं हमने तो चुनाव जीतने के लिए झूठे आरोप लगाए थे अन्यथा आप पर विश्वास कैसे किया जाए किन्तु ये तो रही नैतिकता की बात अब बात राजनीति की वहां यही सब कुछ चलता है इसलिए केजरीवाल जी !इन  लोगों से आप भी कुछ सीखिए -

 पढ़िए और देखिए संसद की कार्यवाही का हाल सुना है कि सेकंडों के हिसाब से खर्च आता है -

 लोक सभा की नींद का आनंद ही कुछ और है !
खबरदार कोई डिस्टर्ब न करे इस समय बड़े लोग शयन कर रहे हैं !सुना जाता है कि मोदी जी दिन रात काम ले रहे हैं किन्तु ये तो यहीं पोल खोल रहे हैं बाकी का भगवान मालिक !
रात रात  भर जगते रहते इतनी मेहनत इतना काम।
कहाँ भाग्य में बदी सभी के यह संसद सदनी आराम ॥  
मोदी जी का राज सुखद है बहुमत भी है अपने पास।
शीतल मंद सुगंध पवन है अच्छे अवसर का एहसास ॥
मंत्री पद पर हुई प्रतिष्ठा और न है कोई अभिलाष ।
इतने में संतोष हमें है होगा अपने आप विकास ॥
संसद शयन सुरक्षित सुन्दर सुखद स्वप्न के सारे रंग ।
चिंता रहित मस्त यह जीवन संसद में अतुलित आनंद ॥                                                                                                 
-डॉ.एस.एन.वाजपेयी see more....http://snvajpayee.blogspot.in/2014/07/blog-post_11.html