महामारी का प्रदूषित प्रभाव मनुष्य समेत समस्त प्राणियों पर पड़ने से लगता है | इससे शरीर एक तो अपने कारण रोगी होने लगते हैं | दूसरे प्रदूषित वायु में साँस लेने के कारण शरीर दो गुणे प्रदूषण का सामना करते हैं | खाने पीने के लिए अन्न दालें फल फूल शाक सब्जी आदि भी इसी वातावरण में होने के कारण उनमें भी उतने विकार तो आते ही हैं | इसके अतिरिक्त प्रदूषित जल और वायु से पोषित होने के कारण उनका यह दुष्प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है |ऐसी दो गुणा प्रदूषित खाद्य सामग्री को खाने पीने से लोगों का रोगी होना स्वाभाविक ही होता है | लोग दो गुणे अधिक बिषैलेपन का शिकार तो पहले से ही होते हैं | प्राकृतिक रूप से प्रदूषित अन्न दालें फल फूल शाक सब्जी आदि खाते रहने से उनके वे रोग और अधिक बढ़ जाते हैं |
शाक सब्जियों की तरह ही बनस्पतियाँ आदि भी बिषैले प्राकृतिक वातावरण में ही पल बढ़ रही होती हैं | इससे उनके गुणों में विकार आ जाते हैं |जिन रोगों महारोगों से मुक्ति दिलाने जैसे गुणों के कारण जिन बनस्पतियों , औषधीयद्रव्यों या निर्मित औषधियों को पहचाना जाता है | बिषैले वातावरण के प्रभाव से उन्हीं बनस्पतियों , औषधीयद्रव्यों तथा निर्मित औषधियों के उन गुणों में अत्यंत कमी आ जाती है | कभी कभी तो वे अपने स्वाभाविक गुणों से अलग कुछ बिपरीत गुणों से युक्त होकर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लग जाती हैं | जो रोग अत्यंत हिंसक हो, उसका वेग बहुत अधिक हो,उसके रोग लक्षण किसी को पता न हों | उन पर जिन औषधियों का प्रयोग किया जा रहा हो | वे या तो ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम न हों या फिर हानिकर होती जा रही हों | ऐसे महारोग ही महामारी के रूप में जाने जाते हैं |
कुल मिलाकर जहाँ एक ओर प्राकृतिक
आपदाएँ निर्मित होने लगती हैं,वहीं दूसरी ओर खान पान की वस्तुएँ बिषैली होने लगती हैं | ऐसे
वातावरण में रहकर एवं ऐसे भोजन जल आदि के उपयोग से शरीर रोगी एवं मन बेचैन
रहने लगता है | ये असंतुलन जितना अधिक बढ़ता जाता है,उतने बड़े बड़े रोग तनाव
एवं प्राकृतिक आपदाएँ आदि घटित होते देखी जाती हैं | वृक्षों बनस्पतियों फसलों जीवजंतुओं में जब अधिक परिवर्तन होने लग जाते हैं | समस्त प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं रोगों महारोगों की शुरुआत यहीं से होती है |
वस्तुतः संसार एवं शरीरों की संरचना जिन पंचतत्वों से हुई है !उनके संतुलित मात्रा में रहने पर ही सभी लोग स्वस्थ एवं सुखी रह पाते हैं | वात पित्त और कफ ये भी उन्हीं पंचतत्वों के अंग हैं | इनके संतुलित मात्रा में रहने पर ही प्रकृति प्राकृतिक आपदाओं से रहित एवं शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न बने रह पाते हैं | इनका आपसी अनुपात बिगड़ते ही इनका प्रभाव प्रकृति एवं जीवन के लिए अहितकर हो जाता है | इसे प्रकृति स्वयं ही नहीं सह पाती है |
इसीलिए संतुलन बिगड़ते ही प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने लग जाती हैं |धरती भूकंपों के रूप में, हवा प्रदूषित होकर तूफानों के रूप में, जल अतिवर्षा बाढ़ सूखा आदि के रूप में,अग्नि तापमान अत्यधिक घटने बढ़ने के रूप में प्रतिकार करने लगते हैं | आकाश रोगकर गैसों से आपूरित हो जाता है |