Sunday, December 28, 2025

निवेदन

               

                                               प्राचीनविज्ञान और प्राकृतिक घटनाएँ  

       महामारी हो या प्राकृतिक आपदाएँ इनमें जनधन का नुक्सान  कहाँ कब कितना हो जाएगा | ये किसी को पता नहीं होता है | यदि पता हो भी जाए तो इसे केवल सहना होता है | इसके अतिरक्त ऐसी घटनाओं का मनुष्य और कर भी क्या सकता है | इतना अवश्य है कि ऐसी घटनाओं के बिषय में यदि पहले से पता कर लिया जाए  तो अपनी सुरक्षा के लिए यथा संभव प्रयत्न किए जा सकते हैं | 
     इसीलिए पूर्वजों ने ऐसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की परिकल्पना की थी | पौराणिक इतिहास में वर्णन मिलता है कि सनातनधर्मी प्राचीन ऋषि वैज्ञानिक ऐसी घटनाओं के बिषय में लाखों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाने में सफल हो गए थे |उन्हीं अनुसंधानों के बल पर  सुदूर आकाश में घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के बिषय में उन्होंने उसी युग में पूर्वानुमान लगा लिया था | उन्होंने महामारी तथा प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाकर यह प्रमाणित कर दिया था कि उन्होंने मौसम एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान  लगाने  की क्षमता हासिल कर ली है | यही ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता है |वर्तमानसमय में उन प्राचीनअनुसंधानों की उपेक्षा करके जिन अनुसंधानों की परिकल्पना की गई है || उनसे प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों को समझा जाना संभव ही नहीं हो पा रहा है | 

      प्राचीनविज्ञान की उपेक्षा कर देने के कारण ही वर्तमान भूकंप वैज्ञानिकों के  द्वारा भूकंपों के बिषय में,मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा मौसम के बिषय में,पर्यावरण वैज्ञानिकों के द्वारा वायुप्रदूषण के बिषय में  एवं महामारी वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | प्राचीनविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो भविष्य के दस हजार वर्षों तक ऐसा किया जाना संभव नहीं हो पाएगा | ऐसा इसलिए होगा क्योंकि जिन घटनाओं को समझने के लिए जिस बिषयवस्तु को विज्ञान मानकर अनुसंधानों के नाम पर जो जो कुछ किया जा रहा है | उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के न तो स्वभाव समझना संभव है और न ही सही अनुमान पूर्वानुमान लगाया जाना ही संभव है | 

     मैं अपने प्राचीनविज्ञान संबंधी अनुसंधानों के आधार पर विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि जिस दिन ऐसी सभी घटनाओं के वास्तविक विज्ञान को खोज लिया जाएगा | उसके आधार पर ज्ञानवान वैज्ञानिक तैयार कर लिए जाएँगे | उनके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में जो अनुसंधान किए जाएँगे | उनसे प्राकृतिक घटनाओं की प्रकृति का पता तो लगा ही लिया जाएगा | इसके साथ ही साथ प्रकृतिकघटनाओं के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान भी लगा लिया जाएगा | जिस दिन ऐसा हो पाएगा उस दिन जलवायु परिवर्तन ,महामारी के स्वरूप परिवर्तन जैसे भ्रमों का निवारण  स्वतः ही हो जाएगा |                                                

                                       विज्ञान वैज्ञानिकों और अनुसंधानों का योगदान !

        कोरोनामहामारी में  इतने लोगों का मारा जाना कोई साधारण घटना नहीं है | विगत कुछ दशकों में भारत को पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े | उन तीनों में मिलाकर जितने लोगों की दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु हुई थी | उससे कई गुणा अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | ऐसे में वह अत्यंत उन्नत विज्ञान , सुयोग्य  वैज्ञानिक एवं निरंतर चलने वाले अनुसंधान उन लोगों के किस काम आ सके | जिन लोगों के  लिए किए जाते हैं | जो जनता ऐसे अनुसंधानों का व्यय वहन करती है | 

      विज्ञान वैज्ञानिकों एवं अनुसंधानों का लक्ष्य महामारी से समाज की सुरक्षा करना था | अत्यंत उन्नत विज्ञान भी है,सुयोग्य  वैज्ञानिक भी हैं, और निरंतर चलने वाले अनुसंधान भी हैं |सबकुछ उच्चाकोटि का होते हुए भी कोरोना महामारी से समाज की सुरक्षा नहीं की जा सकी | इसके कारणों को खोजा जाना चाहिए | 

     मेरे बिचार से महामारी संबंधी अनुसंधानों का लक्ष्य महामारी के बिषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाना था !महामारी के स्वभाव को समझना था !महामारी पीड़ितों को प्रभावी चिकित्सा उपलब्ध करवाना था | महामारी  संबंधी अनुसंधानों के द्वारा  इन आवश्यक लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सका | महामारी में इतनी बड़ी मात्रा में लोगों के संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने का यह बड़ा कारण था | 

      ऐसी परिस्थिति में जिन अनुसंधानों के करने कराने का उद्देश्य ही महामारी से समाज की सुरक्षा करना रहा हो | उनके होते हुए भी समाज को सुरक्षित न बचाया जा सका हो |इसमें उन अनुसंधानों की कोई घोषित भूमिका न रही हो | ऐसे अनुसंधानों के सहारे भविष्य को कैसे छोड़ा जा सकता है | महामारियों का आना जाना तो भविष्य में भी लगा ही रहेगा | जिसके लिए अनुसंधानों की प्रक्रिया में अभी की अपेक्षा अधिक प्रभावपूर्ण सुधार करने होंगे ,क्योंकि वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी बिषयक इन आवश्यक प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं |  

1. कोरोना महामारी भयंकर थी या अनुसंधानों के द्वारा उसे समझा नहीं जा सका !

2.  महामारी का प्रभाव सभी पर एक समान पड़ता है फिर कुछ लोगों के रोगी होने का कारण क्या है !   

3 . प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण यदि लोग रोगी हुए तो महामारी का क्या दोष !

4.मौसम बिगड़ने के कारण महामारी आई या महामारी आने के कारण मौसम असंतुलित हुआ था !

5. महामारी आने पर भूकंप अधिक आए या अधिकभूकंप के आने के कारण महामारी आई !

6.महामारी आने के कारण वायुप्रदूषण बढ़ा या वायुप्रदूषण बढ़ने के कारण महामारी आई !  

7.महामारी आने पर तापमान में अधिक उतार चढ़ाव आया या तापमान अचानक घटने बढ़ने से महामारी आई ! 

     ऐसे ही महामारी मनुष्यकृत थी या प्राकृतिक,महामारी का विस्तार कितना था ! प्रसार माध्यम क्या था !अंतर्गम्यता कितनी थी !महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता था था या नहीं !वायु प्रदूषण का प्रभाव पड़ता था या नहीं  !तापमान का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! महामारी पैदा होने का कारण क्या था और महामारी समाप्त होने का कारण क्या था ?महामारी पैदा और समाप्त होने में मनुष्यकृत अच्छे बुरे व्यवहारों की क्या भूमिका थी | महामारी संबंधी लहरों के आने और जाने में मनुष्यकृत व्यवहारों की क्या भूमिका थी ?  महामारी से सुरक्षित रखने के लिए जो प्रयत्न किए जाते  रहे उनका कितना प्रभाव पड़ता रहा | को संक्रमितों को संक्रमण मुक्त कराने में चिकित्सा की क्या भूमिका रही ? कोविडवैक्सीन लगाए जाने से महामारी से मुक्ति मिली या महामारी प्राकृतिक रूप से ही समाप्त हुई है ?निकट भविष्य में महामारी की कोई दूसरी लहर आने वाली है या नहीं ?

     कुलमिलाकर महामारी से समाज की सुरक्षा के लिए महामारी को अच्छी प्रकार से समझा जाना आवश्यक था | महामारी से संबंधित आवश्यक प्रश्नों के उत्तर खोजे जाने थे | ऐसा कुछ किया ही नहीं जा सका !लोग संक्रमित होते जा रहे थे | उनमें से बहुतों की मृत्यु होती जा रही थी |इसके बाद भी महामारी को पराजित कर देने या खदेड़ देने या महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने जैसे बड़े बड़े दावे  न जाने किस वैज्ञानिक बल पर किए जा रहे थे | कोरोना महामारी को समझने एवं उसपर विजय प्राप्त कर लेने लायक ऐसी कौन सी क्षमता हासिल कर ली गई थी |  

                                              पूर्वानुमानों की आवश्यकता और व्यवस्था 

       किसी भी रोग या महारोग से मुक्ति पाने या दिलाने के लिए उस रोग के अनुसार ही औषधि देनी होती है | किस रोग के लिए कैसी औषधि चाहिए | इसके लिए उस रोग की प्रकृति पहचाननी होती है | उसी के अनुसार चिकित्सा करनी होती है | चिकित्सा के लिए वैसी ही औषधि का निर्माण करना होता है | इसके लिए उस प्रकार की औषधीय सामग्री चाहिए | औषधि निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में औषधीय द्रव्यों का संग्रह करना होता है |औषधि निर्माण के लिए संसाधनों का जुटाया जाना | इसके बाद औषधि निर्माण किए  जाने या  निर्मित औषधि का परीक्षण किए  जाने आदि में  काफी  समय लग जाता है | इसके बाद उस औषधि को जन जन तक पहुँचाना होता है |इसमें  बहुत समय लग जाता है | 

      इस प्रकार की व्यवस्था जितने बड़े स्तर पर करनी होती है | उतना अधिक समय लगता है | राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की जानी हो तो सामग्री, परिश्रम एवं संसाधनों के साथ साथ इसमें समय भी बहुत अधिक लग जाता है | इतने समय तक महामारी  रुककर  प्रतीक्षा  तो  नहीं करती रहेगी | महामारी  के प्रारंभ होते ही लोग तेजी से संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं ,तब इतना समय कहाँ होता है कि लोगों की सुरक्षा के लिए इतनी सारी प्रक्रिया का पालन किया जा सके |इस प्रक्रिया में जितना समय लगता है|उतने में तो महामारी जनधन का बहुत नुकसान कर चुकी होती है | 

    इसलिए  महामारियों में होने वाली जनधन हानि को यदि कम करने के लिए महामारी प्रारंभ होने से पहले उससे सुरक्षा की तैयारियाँ करके रखनी होंगी |रोग का सही निदान और चिकित्सकीय उपाय करने के लिए जितना समय चाहिए | महामारी आने से उतने पहले महामारी के बिषय में सही पूर्वानुमान लगा लेना आवश्यक होता है | जिससे महामारी से सुरक्षा की तैयारियाँ पहले से करके रखी जा सकें | महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमानु लगाने के लिए कोई मजबूत वैज्ञानिक प्रक्रिया न होने के कारण  इसके शुरू होने का पता ही तभी लग पाता है ,जब लोग पीड़ित होने शुरू हो जाते हैं तब तो जान बचाने की पड़ी होती है | उस समय इतनी प्रक्रिया का पालन करने के लिए समय ही नहीं होता है | 
    इसी प्रक्रिया का पालन करने के लिए कोरोना महामारी के समय में फैले रोग की प्रकृति की पहचान होनी थी | जो नहीं की जा सकी | इसीलिए महारोग के बिषय में जो जो अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाए गए | वे सब के सब गलत निकलते जा रहे था | यदि महामारी की प्रकृति को  ही पहचाना नहीं जा सका तो चिकित्सा कैसे की जा सकती थी |   
     उनसे महामारी जैसी घटनाओं के न तो स्वभाव को समझा जाना संभव है और न ही ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाना ही संभव हो पाया है|पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिससे भविष्य में झाँकना संभव हो | आधुनिक विज्ञान में अनुसंधान की ऐसी कोई प्रक्रिया ही नहीं है | इसलिए पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | समय समय पर विभिन्न घटनाओं के बिषय में जो पूर्वानुमान बताए जा रहे होते हैं | उन्हें लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है ये किसी को पता नहीं है | 

 प्राचीन विज्ञान 

 

 आधुनिक विज्ञान 

 

 

 विनम्र निवेदन   

      विगत कुछ दशकों में पड़ोसी देशों के साथ भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े ! उन तीनों में मिलाकर जितने लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | उससे कई गुना अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |इसलिए कोरोना महामारी कोई सामान्य घटना नहीं है | ये बहुत बड़ी आपदा है | इसे बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे यूँ ही भुला दिया जाना न तो भविष्य के लिए ठीक है और न ही  वर्तमान के लिए हितकर है |  

    प्लाज्माथैरेपी को पहली लहर में संक्रमण से मुक्ति दिलाने में प्रभावी माना गया जबकि दूसरी लहर में उसका वो प्रभाव नहीं दिखाई पड़ा जो मान लिया गया था | ऐसे ही वर्तमान समय में जिन चिकित्सकीय प्रयोगों को  कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम मान लिया गया है | संभव है प्लाज्मा थैरेपी की तरह वो हमारा भ्रम ही हो | महामारी का वेग स्वतः शांत हो रहा हो | इसमें चिकित्सा आदि मनुष्यकृत प्रयत्नों की कोई भूमिका ही न रही हो | ये तो प्लाज्मा थैरेपी की तरह ही इसके बाद महामारी की किसी लहर के आने पर ही पता लग पाएगा | हमें ऐसी तैयारी करके रखनी होगी कि कोरोना महामारी जैसी कोई महामारी या उसकी लहर यदि अभी फिर आकर लोगों को संक्रमित करने लगे तो अपनी वैज्ञानिक क्षमता के द्वारा समाज को सुरक्षित बचाया जा सके |      

     ऐसी तैयारियाँ करते समय हमें यह भी बिचार करके चलना होगा निरंतर होते रहने वाले उन अनुसंधानों के द्वारा न तो महामारी का  पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही उसकी प्रकृति पहचानी जा सकी है | महामारी की लहरों के बिषय में बहुसंख्य वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए सैकड़ों पूर्वानुमानों में से एक भी सही नहीं निकला है |

    अनुसंधानों के द्वारा यह नहीं पता लगाया जा सका कि महामारी प्राकृतिक थी या मनुष्यकृत !महामारी का विस्तार कितना था ! संक्रमण प्रसार का माध्यम क्या था !अंतर्गम्यता कितनी थी | महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं | वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता था या नहीं | तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव पड़ता था या नहीं |संक्रमितों पर चिकित्सा का प्रभाव पड़ता है या नहीं पड़ता है |यदि पड़ता है तो कितना पड़ता है| ऐसी सभी जानकारी चिकित्सा संबंधी तैयारियाँ करने के लिए आवश्यक थी | उसी के आधार पर ही औषधीय द्रव्यों का संग्रह एवं औषधिनिर्माण  आदि किया जाना था | जो नहीं किया जा सका | 


     इतने उच्चकोटि का विज्ञान एवं निरंतर होते रहने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद भी महामारी से नुक्सान इतना बड़ा हुआ है कि जिसकी कभी कल्पना ही नहीं की गई थी | आखिर चूक कहाँ हुई !कैसे हुई !समय पर सही निदान क्यों नहीं किया जा सका | अनुमान पूर्वानुमान आदि जो लगाए जाते रहे वे गलत क्यों निकलते जा रहे थे | इस सबका  कारण खोजा जाना चाहिए | 

    बताया जाता है कि वर्तमानसमय में अत्यंत उन्नत विज्ञान है| उच्चकोटि के वैज्ञानिक हैं | इतने प्रभावी अनुसंधान होते ही रहते हैं | अनुसंधानों के लिए सरकारें आगे से आगे धन एवं संसाधन उपलब्ध करवाती रहती हैं |अनुसंधानों के लिए व्यय की जाने वाली धन राशि में जनता समय से टैक्स रूप में अपनी सहभागिता निभाती रहती है |  

     यदि  विज्ञान उन्नत है वैज्ञानिक भी योग्य हैं अनुसंधान भी लगातार होते रहते हैं |अनुसंधानों के लिए धन एवं संसाधनों की भी कमी नहीं होने दी जाती है | जनता का पर्याप्त आर्थिक सहयोग भी मिलता है ,फिर वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी से पीड़ित जनता की सुरक्षा क्यों नहीं की जा सकी !महामारी जैसी इतनी भीषण आपदा का सामना यदि जनता को स्वयं ही करना है तो जनता के खून पसीने की कमाई से दिए गए टैक्स के धन को ऐसे अनुसंधानों पर खर्च करने की आवश्यकता ही आखिर क्या है |   महामारी में जनधन का  जितना नुक्सान होना था | वो हो ही गया है  |अनुसंधानों के द्वारा उसे सुरक्षित बचाया नहीं जा सका है | 

                                                                                  कोरोनामहामारी पर प्रभावी है प्राचीनविज्ञान

      प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ आदि तो प्राचीनकाल से ही घटित होती रही होंगी | सृष्टि के आरंभिक काल में तो जनसंख्या बहुत कम  रही होगी | प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि को उस युग में यदि जनधन का इतना नुक्सान करने दिया गया होता,तब तो सृष्टि का क्रम इतने आगे तक बढ़ पाना संभव ही न था | उस युग के सक्षम  वैज्ञानिकों ने उसी समय बिना किसी आधुनिक उपकरण के जब सूर्य चंद्र ग्रहणों के बिषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान खोज लिया था तो वे प्राकृतिक आपदाओं महामारियों के बिषय में क्या पूर्वानुमान नहीं लगा पाए होंगे | जिनसे मनुष्य जीवन को सीधे जूझना पड़ता था |प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदिके बिषय में वे न केवल पूर्वानुमान लगा लेते रहे होंगे,प्रत्युत ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से जनजीवन की सुरक्षा करने के उपाय भी खोज लिए होंगे | इसीलिए तो सृष्टि का क्रम इतने आगे तक बढ़ना संभव हो पाया है |

      ऐसे सक्षम प्राचीन ज्ञानविज्ञान की उन उपलब्धियों पर विश्वास करके मैंने भी उसी प्राचीन विज्ञान के आधार पर उसी प्रकार के अनुसंधान करने का निश्चय किया था | जिससे प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि के बिषय में पूर्वानुमान लगाने के साथ साथ ऐसी आपदाओं से जनधन की सुरक्षा करने का न केवल लक्ष्य निश्चित किया ,प्रत्युत कोरोना महामारी की सभी लहरों के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए जो प्रयत्न किए वे सफल हुए |इसके प्रमाण पीएमओ की मेल पर विद्यमान हैं |  

      मेरे प्राचीन वैज्ञानिक अनुसंधानों का दूसरा लक्ष्य महामारी से  समाज को सुरक्षित बचाना था | इसलिए कोरोना महामारी की दूसरी लहर का वेग जब बहुत अधिक बढ़ने लगा तो उसे घोषणापूर्वक मैंने तुरंत नियंत्रित करने का प्रयत्न जैसे ही प्रारंभ किया वैसे ही महामारी की दूसरी लहर तुरंत नियंत्रत होने लगी थी | इसके प्रमाण पीएमओ की मेल पर अभी भी सुरक्षित हैं | 

   विश्व में  मुझे छोड़कर किसी दूसरे व्यक्ति या वैज्ञानिक को इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली है | मुझे भी यह सफलता केवल इसलिए मिली है ,क्योंकि मैंने भारत के प्राचीन विज्ञान के आधार पर अनुसंधान पूर्वक महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाए हैं | इसलिए वे सही निकले हैं | 

     आधुनिकवैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए महामारी संबंधी सभी पूर्वानुमानों के  गलत निकलते जाने का कारण क्या  हो सकता है |आधुनिकविज्ञान में पूर्वानुमान लगाने के लिए क्या कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है| यदि ऐसा न होता तो  विज्ञान उन्नत है वैज्ञानिक योग्य हैं अनुसंधान भी उच्चकोटि के किए जाते हैं |इसके बाद भी महामारी संबंधी पूर्वानुमान क्यों नहीं जा सके और जितने लगाए भी जाते रहे वे गलत निकलते चले गए | इसका कोई तो कारण होगा | उसे खोजकर सार्वजानिक किया जाना चाहिए | उनके द्वारा किसी भी लहर के बिषय में न तो सही पूर्वानुमान लगाया जा सका और न ही घोषणा पूर्वक महामारी के वेग को रोका जा सका है |  

                              प्राचीन विज्ञान के आधार पर मेरे अनुसंधान

    प्राचीनविज्ञान  के आधार पर मैं पिछले 35 वर्षों से अनुसंधान  करता आ रहा हूँ | जिससे मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में तो पूर्वानुमान लगाता ही रहा हूँ | उसी के आधार पर मैं महामारी पैदा और समाप्त होने के सही कारणों की पहचान कर  पाया  हूँ | 

     कोरोनामहामारी के बिषय में विश्ववैज्ञानिकों ने जिन बातों को बहुत बाद में कहा या स्वीकार किया है | कुछ बिंदुओं पर तो वे अभी तक दुविधा में हैं | ऐसी सभी बातें मैंने 19 मार्च 2020 को ही लिखकर  पीएमओ की मेल पर भेज दी थीं | मैंने उसमें लिखा था - 

      "ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"(बाद में कोविड  नियमों में स्वच्छता को सम्मिलित किया गया था "

"इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |"

"किसी भी महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही महामारी की समाप्ति होती है | "

 "बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है | ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं |"   इसलिए महामारी प्राकृतिक है| 

     कुलमिलाकर मैंने ये सब कुछ उस मेल में लिखकर भेजा था | इसके  साथ ही साथ  महामारी की सभी लहरों के बिषय में पूर्वानुमान लगाकर  आगे से आगे पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ | जो सही निकलते रहे हैं | साक्ष्यरूप में वे अभी तक सुरक्षित रखे गए हैं | 

    दूसरी लहर का वेग जब बहुत अधिक बढ़ चुका था | संक्रमितों एवं मृतकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी | इसका पूर्वानुमान 19 अप्रैल 2021 को ही मैंने पीएमओ की मेल पर भेज दिया था | जो सही निकला है | यह प्राचीनविज्ञान एवं परंपराविज्ञान के द्वारा ही संभव हो पाया है |    दूसरी लहर के बिषय में मैंने उस मेल में यह लिखा था -    

   " यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |"        

 " 20 अप्रैल 2021 को  यज्ञ प्रारंभ  होते ही महामारी का वेग रुकने लगा था  23 अप्रैल से संक्रमण बढ़ना रुक गया था | वह यज्ञ 11 दिवसीय था |इसलिए  11 हवें दिन अर्थात 1 मई को यज्ञ की पूर्णाहुति होते ही उसी दिन से दिल्ली में संक्रमितों की संख्या कम होने लगी थी | राष्ट्रीय कोरोना ग्राफ में भी 6 मई से राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमण कम होते देखा जा रहा था | 

     कुल मिलाकर  प्राचीनविज्ञान एवं परंपराविज्ञान वर्तमान समय में भी प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में प्राचीनकाल की तरह ही अभी भी प्रासंगिक हैं | सनातन धर्म की इस वैज्ञानिक सामर्थ्य का उपयोग करके प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज की सुरक्षा अभी भी की जा सकती है | 

     वैदिक विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो महामारी का मैंने जो  निदान निकाला था | वो बिल्कुल सही घटित हुआ है | इसीप्रकार से महामारी के बिषय में जितने भी प्रकार के पूर्वानुमान लगाकर मैंने पीएमओ की मेल पर भेजे थे वे सभी सही निकले हैं | 

      इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में ऐसा विज्ञान था | जिसके द्वारा उस युग से अभीतक प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से जनता की सुरक्षा की जाती रही है | इसीलिए सृष्टिक्रम आगे बढ़ पाया है | प्रकृति के स्वभाव को समझकर प्राकृतिकघटनाओं के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से प्राचीनविज्ञान एवं परंपराविज्ञान वर्तमान समय में भी उतना ही प्रासंगिक है |जितना प्राचीनकाल में था | बीते कुछ  सौ वर्ष पूर्व  हुए महाकवि घाघ जिन्होंने उसी प्राचीन ऋतुविज्ञान  के आधार पर मौसम के स्वभाव को समझा तथा समाज को समझाया था | उन्होंने उसी  प्राचीन विज्ञान से संबंधित अपने अनुसंधानों अनुभवों के आधार पर वर्षा बिषयक पूर्वानुमान लगाने के लिए  जिन सूत्रों का निर्माण किया था  | जिनके आधार पर लगाए गए मौसमसंबंधी पूर्वानुमान अभी भी सही निकलते देखे जाते हैं |इसीलिए तो किसानों एवं ग्रामीणों में उनकी लोकप्रियता अभी भी  बनी हुई है | 

      प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों के बिषय में भारतीय प्राचीनविज्ञान एवं परंपराविज्ञान से संबंधित  अनुसंधान न किए जाने के कारण समाज को इससे होने वाला लाभ नहीं मिल पा रहा है | कोरोना महामारी के बिषय में यदि  प्राचीनविज्ञान के आधार पर अनुसंधान किए गए होते तो समाज को महामारी से इतना पीड़ित नहीं होना पड़ता | 

         इसप्रकार से महामारी को समझना जब संभव हो पायगा तभी वर्तमान महामारी से लोगों को सुरक्षित बचाने में कुछ मदद मिल सकती है | भावी महामारियों से लोगों की सुरक्षा के लिए उपाय भी तभी  किए जा  सकते हैं |       

                                                                इस लघुशोध संग्रह के बिषय में - 
   
     कोरोनामहामारी प्रारंभ कब और कैसे पैदा हुई थी | इसे यदि प्राचीनवैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर देखा जाए तो समय हमेंशा बदलता रहता है| समय में  अच्छे तो कभी बुरे परिवर्तन होते देखे जाते हैं |अच्छे परिवर्तन होने पर प्रकृति और जीवन में  अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित होने लगती हैं|समय में जब बुरे परिवर्तन होने लगते  हैं तब प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारी जैसी घटनाएँ घटित  होने लगती हैं | 
      सन 2014 के बाद से महामारी पैदा  होने के योग्य प्राकृतिक वातावरण बनना प्रारंभ हो गया  था |सन 2018 के अक्टूबर नवंबर महीनों से ही कोरोना महामारी संबंधी बिकार पृथ्वी के वातावरण को  प्रदूषित करना प्रारंभ कर चुके थे |पेड़ पौधे फल फूल शाक सब्जियों समेत समस्त खाद्य पदार्थों में महामारी संबंधी बिकार आने प्रारंभ हो गए थे| जिन्हें खाने पीने से लोगों के शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता दिनोंदिन क्षीण होने लगी थी | ऐसे वायुमंडल में साँस लेने के कारण लोग दिनोंदिन दुर्बल  होते जा  रहे  थे | महामारी संबंधी बिकारों से  धीरे धीरे लोग संक्रमित होते जा रहे थे | कोरोनामहामारी आने से पूर्व महामारी का एक सामान्य सा झोंका आया था | जिसके लक्षण प्रत्यक्ष भले कम दिखाई पड़ रहे थे ,किंतु सॉंस फूलने जैसे रोग पैदा होने लगे थे | इसका पूर्वानुमान 20 अक्टूबर 2018 को ही मैंने पीएमओ की मेल पर भेज दिया था | उस मेल का चित्र प्रारंभ में ही लगाया गया है |
     इसके बाद महामारी की कुल 11 लहरें आई थीं | इनमें से 5 पूर्ण लहरें एवं 6 अर्द्धलहरें आई थीं | इन सभी लहरों के बिषय में पूर्वानुमान लगाकर मैं आगे से आगे पीएमओ की मेल पर भेजता  रहा हूँ | मेरे पूर्वानुमान सही घटित होते रहे हैं |मेरे द्वारा भेजे गए 5 पूर्ण लहरों से संबंधित पूर्वानुमानों का मिलान कोरोना ग्राफ से करने पर यह सच्चाई प्रमाणित होती है | 
     इसीप्रकार से अर्द्धलहरों के पूर्वानुमान भी पीएमओ की मेल पर भेजे थे | वे  भी सही निकले थे किंतु इन अर्द्धलहरों के कोरोनाग्राफ न मिलने के कारण उनका मिलान उस समय के समाचार पत्रों में प्रकाशित कोरोना संबंधी समाचारों से किया गया है  | जिसमें मेरे पूर्वानुमान सही घटित होते रहे हैं | उस समय के अखवारों की हेडिंग और उनके लिंक मेरे पास अभी भी सुरक्षित हैं | उन समाचारों से यह   पता लगता है कि इस समय कोरोना संबंधी संक्रमण बढ़ा  था | उसी के  नीचे  उससे संबंधित मेरी मेल का चित्र लगाया गया है | जिससे  यह पता लगता है कि इस समय बढ़े हुए कोरोना संक्रमण का पूर्वानुमान मैंने पहले ही पीएमओ की मेल  पर भेज दिया था |जो सही निकला है |   
     इसके बाद महामारी का पूर्ण परिचय दिया गया है | जिसमें  महामारी के प्रत्येक पक्ष को समझने समझाने का प्रयत्न किया गया है | 
    इसके बाद "वैक्सीन लगेगी तो महामारी बढ़ेगी " नामक शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया गया है | 
   इसके बाद "यज्ञ के द्वारा शांत की गई थी कोरोना की दूसरी लहर !" नाम से एक लेख प्रकाशित करके इस ग्रंथ  को पूर्ण किया गया है | 
 
                                                                     बुक 
 

                                     कोरोनामहामारी मौसम और  महामारीविज्ञान  !

     कोरोनामहामारी को समझने में महामारीविज्ञान से क्या मदद मिल सकी है | महामारी का विस्तार कितना है !प्रसार माध्यम क्या है ! अंतर्गम्यता कितनी है ! महामारीसंक्रमितों  पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! तापमान  का प्रभाव पड़ता है या नहीं | वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं | चिकित्सा का प्रभाव पड़ता है या नहीं !आदि प्रश्नों के उत्तर खोजने में महामारीविज्ञान कितना सहायक हुआ है | 
     इसीप्रकार से लोगों के संक्रमित होने के लिए कोरोनामहामारी की भयंकरता जिम्मेदार थी या प्रतिरोधक क्षमता की कमी !महामारी संक्रमण बढ़ने का कारण प्राकृतिक था या फिर लोगों के द्वारा कोविडनियमों का पालन न किया जाना था !ऐसे ही संक्रमण कम होने का कारण प्राकृतिक होता था या फिर कोविडनियमों का पालन अथवा चिकित्सा के प्रभाव से लोग संक्रमण मुक्त होते थे | महामारी या उसकी लहरों के बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने में कितना सफल रहा महामारी विज्ञान !महामारी संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने में महामारी विज्ञान से कितनी और किस प्रकार की मदद मिल सकी है |महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए  ऐसे सभी प्रश्नों के निश्चित उत्तर खोजे जाने आवश्यक हैं |
      मौसम और महामारी से जनधन की सुरक्षा करनी है तो इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना ही एकमात्र  उपाय है | ऐसा  कोई विज्ञान ही नहीं है | जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना  संभव  हो | विज्ञान के बिना अनुसंधान और अनुसंधानों के बिना पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकते हैं | 
      महामारीविशेषज्ञों के द्वारा समय समय पर कहा जाता रहा है कि महामारी आने या महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने का कारण मौसम संबंधी गतिविधियाँ हैं | इसलिए  महामारी को समझने के लिए मौसम को समझना होगा |मौसम को समझने का मतलब प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझना होता है | उसी प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव के आधार पर महामारी के स्वभाव को समझना एवं  उसके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होता है | 
   मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने में यदि गलती रह गई तो उसके आधार पर लगाए  गए महामारी बिषयक  पूर्वानुमान भी गलत निकल जाते हैं | मौसमसंबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकलने के लिए जलवायुपरिवर्तन को और महामारी संबंधी पूर्वानुमानों के  गलत निकलने को महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है ,जबकि इनके गलत निकलने का कारण इससे संबंधित उस वास्तविक विज्ञान का अभाव रहा होता है | जिसके द्वारा ऐसे पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | 
    कुल मिलाकर अभी तक ऐसा कोई विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है |  जिसके आधार पर मौसम तथा महामारी को समझा जाना संभव हो | अभी तक  मौसम के प्रभाव से प्रभावित होने वाली महामारी को समझना एवं उसके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं है | 
     इसीलिए महामारी  के विभिन्न विशेषज्ञों के  द्वारा महामारी की लहरों के आने और जाने  बिषय  में लगाए गए सैकड़ों पूर्वानुमान लगातार गलत निकलते चले गए !सही एक भी नहीं निकला !  इसके प्रमाण सरकारों के पास तो होंगे ही इसके साथ ही साथ मीडिया के विभिन्न माध्यमों में  विद्यमान हैं | जो मेरे पास भी संग्रहीत हैं | उन्हें ही आधार बनाकर मैं इतनी बड़ी बात कह रहा हूँ | मेरा उद्देश्य विज्ञान के गौरव को घटाना नहीं है प्रत्युत कुछ ऐसा प्रयत्न करना है | जिससे विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों के बिषय में  कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई जा सके | जिसके आधार पर  भविष्य के लिए सही दिशा में कुछ प्रभावी कदम उठाए  जा सकें | जो ऐसी घटनाओं में होने वाली जनधन हानि को कम करने में सहायक हो सकें |        
      इस बिषय में मेरा एक सुझाव यह भी है कि विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों को समझने एवं उनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए जब तक कोई दूसरा विज्ञान नहीं है ,तब तक वैदिकविज्ञान एवं व्यवहार विज्ञान के आधार पर जितने भी सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हों उनका जनहित में उपयोग किया जाना चाहिए |
    प्राचीनकाल में जब आधुनिक विज्ञान नहीं था तब भी तो उसी विज्ञान के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से जनधन की रक्षा की जाती रही है |वर्तमान समय में भी ऐसा किया जा सकता है | व्यक्तिगत रूप से मैं उसी प्राचीनविज्ञान के आधार पर महामारी की प्रत्येक लहर के बिषय में आगे से आगे न केवल पूर्वानुमान लगाता रहा हूँ ,प्रत्युत उन्हें पीएमओ की मेल पर भेजता भी रहा हूँ |उनका कोरोनाग्राफ एवं मीडिया के विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित समाचारों से  मिलान भी करता रहा हूँ | जो सही घटित होते रहे हैं | वे यहाँ प्रमाण पूर्वक प्रस्तुत किए जा रहे हैं |                                                
   प्राचीनविज्ञान और मेरे अनुसंधान 

      अनुसंधानों का उद्देश्य यदि प्राचीन विज्ञान से वर्तमानविज्ञान को बड़ा सिद्ध करना नहीं है तो विज्ञान के उन विकल्पों पर बिचार किया जाना चाहिए | जिनसे प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से पीड़ित लोगों को अधिक से अधिक मदद मिल सके |प्राकृतिक आपदाओं महामारियों के समय जो अनुसंधान लोगों के जनधन की सुरक्षा  करने में जितने अधिक  सहायक हो सकें | अनुसंधानों के उद्देश्य से ऐसे वैज्ञानिकों  को अधिक मदद दी जानी चाहिए  | जो संकट के समय समाज को सुरक्षित बचाने के लिए  केवल प्रयत्न करते हों ,प्रत्युत उसमें सफल भी होते हों |कौन अनुसंधान कितने सफल हुए इसका आकलन एकांत बैठकर नहीं किया  जाना  चाहिए प्रत्युत ऐसे  अनुसंधानों से प्राप्त परिणामों को जनसुरक्षा की कसौटी पर कसा जाना चाहिए | किन अनुसंधानों से समाज को कितनी  मदद मिलती है | यह देखा जाना चाहिए आधुनिकविज्ञान या प्राचीनविज्ञान से  संबंधित भेद भाव नहीं होना चाहिए | 

    महामारी तथा उसकी लहरों के आने जाने के बिषय में किसी ने भी यदि पहले से सही पूर्वानुमान लगाए हों ,तो उसकी सच्चाई का परीक्षण  कर लिया जाए | जो पूर्वानुमान सही निकल जाते हैं |उनका वैज्ञानिक आधार पूछे बिना सभी पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर ऐसे पूर्वानुमानों का जनहित में उपयोग किया जाना चाहिए ,क्योंकि अनुसंधानों का उद्देश्य जनहित खोजना ही है |     

     आधुनिकविज्ञान अभी कुछ सौ वर्ष पहले आया है | इससे पहले तो प्राचीन विज्ञान ही था |प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ समय संबंधी घटनाएँ हैं | जो हमेंशा से घटित होती रही हैं | भारत के प्राचीनविज्ञान के द्वारा  हमेंशा से प्राकृतिकआपदाओं तथा महामारियों से समाज की सुरक्षा की जाती रही है| इससे ये सिद्ध होता है कि प्राचीनविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा  प्राकृतिकआपदाओं तथा महामारियों से  समाज की सुरक्षा अभी भी की जा सकती है | 

     आधुनिकविज्ञान की तरह ही प्राचीन का भी पठन पाठन भारत सरकार अपने संस्कृतविश्वविद्यालयों में करवाती है |उसी तरह प्राचीन विज्ञान से संबंधित बिषयों में भी एम.ए. पीएचडी जैसी डिग्रियाँ करवाई जाती हैं | ऐसे अनुसंधानों का भी प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारी जैसे संकटों से समाज की  सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाना चाहिए | वैसे भी जिन प्राकृतिक संकटों का समाधान अभी तक आधुनिकविज्ञान के आधार पर निकाला नहीं जा सका है | उन प्राकृतिक संकटों का समाधान निकालने के लिए प्राचीन विज्ञान का भी उपयोग किया जाना चाहिए | संभव है ,उससे कुछ ऐसा  समाधान मिल जाए जो प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारी जैसे संकटों से समाज की  सुरक्षा करने में सहायक हो | 

      मैंने इसी उद्देश्य से ऐसे संस्कृत विश्व विद्यालयों से प्राचीनविज्ञान से संबंधित बिषयों में उच्चकोटि की शिक्षा ली है | उसके आधार पर  उसी प्राचीनविज्ञान के  आधार पर मैं बीते 35 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा  हूँ | उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारी जैसी आपदाओं के बिषय में जो निष्कर्ष निकाले हैं | वे सही निकलते रहे  हैं | महामारी के बिषय  में मेरे लगाए हुए पूर्वानुमान सही निकलते रहे हैं | अनुसंधानों की किसी अन्य विधा से ऐसा किया जाना संभव नहीं हो पाया है | मेरे अतिरिक्त विश्व में किसी अन्य के द्वारा कोरोना महामारी के बिषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |इसलिए इन अनुसंधानों को जनहित में विशेष प्रोत्साहन मिलना चाहिए | 

    कोरोनामहामारी संबंधी मेरी अनुसंधान प्रक्रिया के अनुसार महामारी की कुल 11 लहरें आई थीं | इन ग्यारहों लहरों  में से प्रत्येक लहर के पूर्वानुमान मैं आगे से आगे पीएमओ की मेल पर भेजता आ रहा  हूँ | पूर्वानुमानों में प्रत्येक लहर के आने और जाने की स्पष्ट तारीखें लिखी गई हैं | जिनका मिलान कोरोना ग्राफ तथा उस समय के समाचार पत्रों से करने पर मेरे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सही घटित हुए  हैं |

       ऐसी परिस्थिति में  मेरा विनम्र निवेदन है कि अनुसंधानों का उद्देश्य यदि जनहित करना ही है तो जिस किसी भी विज्ञान के द्वारा जनहित से जुड़े अनुसंधानकार्यों में सफलता मिले | उन्हें अपनाया जाना चाहिए |भारत के जिस  प्राचीनविज्ञान  के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा की जाती रही है |  उसके द्वारा अभी भी ऐसा किया जा सकता है  | प्राचीन विज्ञान यदि जनधन की सुरक्षा करने में सहायक  हो सकता है तो उसके आधार पर अनुसंधान करने में संकोच नहीं किया जाना चाहिए |        

                                       विनम्र निवेदन 

       पूर्वानुमान लगाने का मतलब मानसिक दृष्टि से भविष्य में झाँकना है |कल या कुछ समय बाद कहाँ क्या घटित होगा | यह  पहले पता लगा लेना ही तो पूर्वानुमान है |भविष्य में झाँकने के लिए विश्व में जब कोई विज्ञान ही  नहीं है तो मौसम पूर्वानुमान या  महामारी संबंधी पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकते हैं | प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में विज्ञान के बिना अनुसंधान किस आधार पर किए जा सकते हैं | भविष्यविज्ञान के बिना पूर्वानुमान लगाना यदि संभव होता तो कोरोना महामारी के बिषय में सही पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाए जा सके | यदि लगाए गए तो वे कहाँ हैं और कहाँ हैं उनकी सच्चाई के प्रमाण |        

     भूकंपों के बिषय में पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान नहीं है |इसके बाद भी भूकंप वैज्ञानिक होते हैं |उनमें वैज्ञानिकता क्या है |उससे  क्या लाभ मिलता है |समय  समय पर  वैज्ञानिकों को यह कहते सुना जाता है कि निकट भविष्य में हिमालय में बहुत बड़ा भूकंप आएगा | कब आएगा !ये नहीं बताया जाता है| ऐसी भविष्यवाणियों का आधार क्या होता है ?इसका  विज्ञान कहाँ है ?ऐसी अफवाहें फैलाई क्यों  जाती हैं | इनकी आवश्यकता ही क्या है | ऐसा बोला जाना आवश्यक क्यों है ?

     ऐसे ही  जिस मौसमविज्ञान के आधार पर  लगाए गए मौसमसंबंधी पूर्वानुमान सही निकलेंगे | ये विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता है| दीर्घावधि पूर्वानुमान प्रायः गलत निकलते देखे  जाते हैं|ऐसी स्थिति में जिनके द्वारा लगाए गए  दो चार दिन पहले  के पूर्वानुमान यदि सही नहीं निकल पाते हैं | उन्हीं मौसम वैज्ञानिकों को यह कहते सुना जाता है कि जलवायुपरिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद सूखा पड़ेगा ! बार बार आँधी तूफ़ान आएँगे ! तरह तरह के रोग महारोग फैलेंगे !तापमान बहुत अधिक बढ़ जाएगा आदि आदि ! यदि भविष्य में झाँकने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तो  ऐसा सब कुछ कहे  जाने का  वैज्ञानिक आधार क्या होता है |

     ऐसा विज्ञान कहाँ है जिसके आधार पर हिमालय में किसी  भूकंप के आने की  संभावना पता लगा ली जाती है | जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप सौ दो सौ वर्ष बाद  कैसी कैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होंगी | यह कैसे पता लगा लिया जाता है | महामारी की लहरों के बिषय में विभिन्न वैज्ञानिकों के  द्वारा अनुमान पूर्वानुमान बदल बदल कर बार बार बताए जा रहे होते हैं | इन सबका विज्ञान कहाँ है | 

      महामारी के समय ऐसा भी कहा जाता रहा है कि महामारी के आने एवं उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने का कारण मौसमसंबंधी घटनाएँ हैं | ऐसी स्थिति में महामारी को  समझने के लिए मौसम में होने वाले परिवर्तनों के कारण को समझना आवश्यक हो जाता है | ऐसे में महामारी संबंधी सही पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी घटनाओं के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक हो जाता है | मौसमसंबंधी सही पूर्वानुमान लगाना यदि संभव नहीं होगा तो महामारी संबंधी सही पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकेंगे | मौसमसंबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकलने के लिए यदि जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा तो महामारी के बिषय में सही  पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकेंगे |  

    इसीप्रकार से महामारी आने जाने एवं उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के लिए यदि तापमान बढ़ने घटने या वायुप्रदूषण बढ़ने घटने को जिम्मेदार माना जाएगा तो भी मौसम जैसी समस्या का ही सामना करना होगा | महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले तापमान या वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के बिषय में पूर्वानुमान लगाना होगा | यदि वह सही निकलेगा तभी उसके आधार पर महामारी के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा | यदि तापमान बढ़ने घटने के बिषय में अभी तक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है तो महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव हो पाएगा | ऐसे ही वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के बिषय में पूर्वानुमान लगाना तो दूर अभी तक इसके बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार बहुत कारण ही नहीं खोजे जा सके हैं,तो इसके बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकेंगे |ऐसा किए बिना महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव न हो  पाएगा |     

     आधुनिक विज्ञान संबंधी अनुसंधानों के द्वारा यदि प्राकृतिक घटनाओं महामारियों आदि के बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है तो भारत के प्राचीन विज्ञान का सहयोग लेकर ऐसी घटनाओं से लोगों की सुरक्षा कर ली जानी चाहिए |                                        

                                        महामारी के बिषय में  गंभीर प्रयास की आवश्यकता 

        विगत कुछ दशकों में भारत को पड़ोसी शत्रुदेशों से तीन युद्ध लड़ने पड़े | उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई होगी | उससे कई गुना अधिक लोग केवल महामारी में मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं |ये सब कुछ तब हुआ है |  जब  विज्ञान और अनुसंधान अत्यंत उन्नत हैं |उच्च कोटि के वैज्ञानिक हैं | अनुसंधान भी निरंतर होते ही रहते हैं | इतना सब कुछ होते रहने के बाद भी लोगों को इतना बड़ा संकट सहना पड़ा है | इतना सब होने  पर भी  महामारी प्रारंभ होने के बाद उससे सुरक्षा के लिए उपाय खोजे जाते रहे |उनसे लोगों  को कोई विशेष मदद नहीं पहुँचाई जा सकी है | 

     समय प्रभाव से महामारीजनित संक्रमण जब स्वयं समाप्त होने लगता है तब सभी रोगी स्वतः संक्रमण मुक्त होने लगते  हैं |ऐसे समय  जिन्होंने चिकित्सकीय उपाय किए हैं वे स्वस्थ  हुए हैं तो कुछ ने उपायों के नाम पर भिन्न भिन्न प्रकार के खानपान रहन सहन आदि अपनाए हैं | वे  भी  स्वस्थ हुए हैं | ऐसे भी बहुत लोग  हैं | जिन्होंने उपायों  के नाम पर  कुछ भी नहीं किया है |वे  भी स्वस्थ हुए हैं | 

     विशेष  बात  यह है कि भिन्न भिन्न प्रकार के उपायों को करने या न करने के परिणाम एक  जैसे नहीं निकल सकते हैं| यदि ऐसा होता है तो इसका मतलब उन  सभी के स्वस्थ होने  का कारण वे उपाय न होकर प्रत्युत वह समयसुधार है |जिसका प्रभाव सभी पर एक समान रूप से पड़ रहा होता है | वे सभी समान रूप से स्वस्थ  हो  रहे होते हैं |ऐसे समय रोग स्वतः समाप्त हो ही  रहा होता है |समय प्रभाव को न  समझने वाले लोग स्वस्थ होने का श्रेय अपने अपने उपायों को देने लगते हैं |चिकित्सा का लाभ ले रहे रोगियों के  स्वस्थ होने का  श्रेय  चिकित्सक अपनी चिकित्सा को देने  लगते हैं | ऐसे भ्रम की अवस्था में ही प्लाज्मा थैरेपी जैसे प्रयोगों को महामारी से मुक्ति दिलाने में समर्थ मान लिया जाता है | 

      इसके बाद समय प्रभाव से जब संक्रमण स्वतः बढ़ने लगता है | उस समय सभी लोगों का अपने अपने उपायों से संबंधित अपना भ्रम टूटने लगता है | रेमडिसिविर प्लाज्मा थैरेपी आदि के कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने संबंधी प्रभाव पर विश्वास घटने लगता है | 

     जिन लोगों ने महामारी की इतनी बड़ी वेदना सही है |उन्हीं लोगों के द्वारा सरकारों को जो भारी भरकम धनराशि टैक्स रूप में दी जाती है |जिसे सरकारें विकास कार्यों में लगाने के साथ साथ ऐसे अनुसंधानों पर भी खर्च किया करती हैं | उन अनुसंधानों  के द्वारा यदि उसी  जनता की सुरक्षा नहीं की जा सकी तो ये गंभीर चिंता की बात है | भविष्य में ऐसा न हो इसके लिए प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके रखी जानी चाहिए |


अनुसंधानों का लक्ष्य है जनधन की सुरक्षा 

     किसी भी देश के शासक के पास जो धन  होता है | वो उस  देश की प्रजा का  होता है | जनता जो भी टैक्स रूप में शासक  को देती है | शासक उसे जनता की कठिनाइयों को कम करने तथा जनता के लिए विकास कार्यों को करवाने एवं प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं से संबंधित अनुसंधानों को करने करवाने पर व्यय करता  है | जिससे ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में अनुसंधान पूर्वक  सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लगाए जाते हैं | इसमें अनुसंधानकर्ताओं को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को कम करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है | उसे उन्हें पूरा करना  होता है | 

     प्राचीन काल में अनुसंधानकर्ताओं के द्वारा खोजे गए प्राकृतिक घटनाओं के कारणों अनुमानों पूर्वानुमानों से राजाओं शासकों सरकारों का संतुष्ट होना तो आवश्यक होता ही था | इसके साथ साथ  उन अनुसंधानों से देश वासियों को संतुष्ट किया जाना आवश्यक माना जाता था |जनता की आवश्यकताओं अपेक्षाओं पर अनुसंधानकर्ताओं को खरा उतरना पड़ता था | वस्तुतः जिन अनुसंधानों  पर किए जाने वाले व्यय का  वहन जनता  करती है | उन अनुसंधानों को जनता की आवश्यकताओं पर खरा उतरना होता था |  

     प्राचीनकाल में जो वैज्ञानिक जिस घटना से संबंधित होता था | उसे उसप्रकार की घटनाओं  के घटित होने के कारण अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लगाकर पहले से घोषित  करने होते थे | जनता की दृष्टि में यदि  वे सही  निकल जाते थे तो उन्हें उस बिषय का वैज्ञानिक मान लिया जाता था |इसप्रकार से प्रत्येक वैज्ञानिक को अपनी जनता के सामने अपनी वैज्ञानिकता सिद्ध करनी होती थी | इसमें  यदि वे सफल  हो जाते थे तब उन्हें वैज्ञानिकपद प्रतिष्ठा प्रदान की जाती थी | 

   उदाहरण के रूप में  भूकंपवैज्ञानिकों का चयन करते समय भूकंप को समझने एवं उसके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान  लगाने की परीक्षा में सफल होने पर उन्हें भूकंप वैज्ञानिक जैसे पदों पर प्रतिष्ठित किया  जाता था | वर्तमान भूकंप वैज्ञानिकों ने  भूकंपों के बिषय में अभीतक ऐसी  क्या खोज की है|  जिसके द्वारा भूकंप आने पर होने वाले जन धन के नुक्सान को कम किया जा सके |इसी के आधार पर उस व्यक्ति   को भूकंपवैज्ञानिक के रूप में पद प्रतिष्ठा पारिश्रमिक आदि प्रदान किया जाता था | 

    इसीप्रकार से वर्षाविशेषज्ञों अर्थात मौसमविशेषज्ञों को चयनित करने के लिए उन्हें प्राकृतिकघटनाओं  के  बिषय में अनुमान पूर्वानुमान  आदि लगाने की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी | सौ दो  वर्ष पहले की भविष्यवाणी करने से पहले उन्हें एक वर्ष पहले की मौसम संबंधी घटनाओं के  बिषय में  पूर्वानुमान बताने होते थे |  वे  यदि सही निकल  जाते थे, तो उन्हें 10  वर्ष पहले के मौसमसंबंधी पूर्वानुमान घोषित करने  होते थे | यदि  वे भी सही निकल जाते थे तब उनपर विश्वास किया जाता था कि ये प्रकृति के स्वभाव को  समझने में सक्षम हैं | इनके द्वारा सौ दो सौ वर्ष पहले की मौसमसंबंधी घटनाओं के बिषय में बताए जा रहे  पूर्वानुमान सच हो सकते हैं |इसी विश्वास पर  ऐसे लोगों को वर्षा(मौसम)  वैज्ञानिक  या ऋतुवैज्ञानिक  होने जैसी पद प्रतिष्ठा प्रदान की जाती  थी |       

        सनातनधर्म के प्राचीनग्रंथों में प्रकृति और जीवन के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की अनेकों विधियाँ बताई गई हैं | ऐसा करने के लिए ही अनुसंधानों की परिकल्पना की गई  है | आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ चरकसंहिता में  इसी का उपदेश किया गया है | यदि ऐसा हो पाता है तब तो महामारी के समय अनुसंधानों से समाज को सुरक्षित बचाया जा सकता है या संक्रमितों को रोगमुक्त किया जा सकता है ,अन्यथा उस महामारी में उन अनुसंधानों की उपयोगिता ही क्या  बचती है  |     

   शिवसंहिता, नरपतिजयचर्या, शिवस्वरोदय,ज्ञानस्वरोदय पवनस्वरोदय आदि योग के ग्रंथों में ऐसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की विधियाँ  बताई गई हैं |निरंतर योगाभ्यास करने वाले साधकों के द्वारा महामारी  बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए था |