Wednesday, November 5, 2014

राजनैतिक पार्टियाँ हों या सरकारें पार्टटाइम में नहीं चलाई जा सकतीं !

               राजनीति में ठेकेदारी बंद होनी चाहिए !
      सरकारों में सम्मिलित लोग सरकार चलावें और पार्टियों में सम्मिलित लोग चलावें पार्टियाँ और लड़ें  चुनाव!जो लोग मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि बनकर समाज सेवा करने की शपथ ले लेते हैं उन्हें अपनी शपथ के पालन में प्राण प्रण से जुटना चाहिए न कि चुनाव लड़ने लड़ाने में ! ऐसे तो उन लोगों को पाँच वर्ष बीत जाते हैं पार्टी के अंदर ही रुतबा ज़माने में अब समाज और सरकार का काम कौन देखे ! पार्टी के अंदर के अन्य लोगों को भी अवसर मिले और उन्हें भी अपनी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो !
   लोक तांत्रिक की दृष्टि से मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जैसे इन पवित्र पदों की गरिमा पवित्र ही रहने देनी चाहिए क्योंकि कोई भी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि केवल किसी पार्टी का न होकर अपितु सम्पूर्ण प्रदेश या देश का होता है इसलिए  उसके   स्वाभिमान पूरे प्रदेश और सम्पूर्ण देश का स्वाभिमान जुड़ा होता है जिसे सुरक्षित रखना हर किसी का नैतिक कर्तव्य है !अन्यथा चुनावी राजनैतिक रैलियों में प्रधानमंत्री जिस प्रदेश में भाषण करने जाएँगे उस प्रदेश की सरकार यदि विरोधी पार्टी की है तो उन्हें मुख्यमंत्री की आलोचना करनी ही पड़ेगी जिसके जवाब में वहाँ के मुख्यमंत्री को भी अपने प्रधानमंत्री की आलोचना करनी पड़ेगी ऐसी आलोचनाओं का स्तर अपने यहाँ कितना गिर चुका है इसका अंदाजा इसी से लगाया जाना चाहिए कि पिछले चुनावों में एक पार्टी के प्रधानमंत्री प्रत्याशी को कुत्ता और गधा जैसे कुशब्द  सार्वजनिक मंचों से बड़े नेताओं के द्वारा बोले  गए  जो मीडिया में सुर्खियाँ बनता रहा टेलीवीजन की बहसों में सम्मिलित किया गया क्या ये सब बातें विदेशों के लोगों ने सुनी पढ़ी नहीं होंगी इसके बाद भी हमारे प्रधानमंत्री का सम्मान यदि वो लोग करते हैं तो ये उनकी महानता  है दूसरी बात हमारे पुराने नेताओं के द्वारा किए गए मर्यादित आचरणों के प्रति उनका सम्मान है जिसे आज भी बरकरार रखा जाना चाहिए ।आजकल बारहो महीने चुनाव होते हैं बारहो महीने होती है राजनीति और बनती रणनीति !आज चुनावी राजनीति के कारण हर कोई झूठ बोल रहा है आश्वासन दे रहा है सफाई दे रहा है इससे समाज का वातावरण ही बिगड़ता जा रहा है । नेताओं की देखा देखी कोई बात कहकर मुकर जाना अब आम बात होती जा रही है। 
      हर कोई किसी को अपने चक्रव्यूह में फाँसने के लिए झूठ बोलता है बाद में मुकर जाता है अपना स्वार्थ साधने के लिए आश्वासन देता है बाद में मजबूरियाँ गिनाने लगता है कोई किसी को कितनी भी गहरी चोट देता है और बाद में सॉरी बोलकर निकल जाता है !ऐसे  राजनैतिक वातावरण ने समाज को कितना संवेदना शून्य बना दिया है !इसका कुछ उपाय तो  खोजा  जाना चाहिए और देश के सभी चुनाव एक साथ कराने की पद्धति पर विचार किया जाना चाहिए जिससे पाँच वर्षों में एक बार होली दीपावली के त्यौहार की तरह चुनावी त्यौहार भी हो जाए इसके बाद फुरसत में मीडिया से लेकर सभी राजनैतिक दल एवं सत्तासीन दल और लोग देश एवं समाज के लिए भी कुछ सोचें और कुछ करें भी । ऐसे देश देश में हमेंशा चुनावी वातावरण ही बना रहता है अपना अपना काम छोड़ कर हर कोई चुनावी चिंतन चर्चा जोड़ तोड़ आदि में बेमतलब में ब्यस्त रहता है ये चुनाव के लिए अच्छा हो सकता है किन्तु इसका दुष्प्रभाव आम जनता के बात व्यवहार में घुसकर परिवारों एवं समाज के मधुर संबंधों को जहरीला बनाता जा रहा है । 
     

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