Monday, March 21, 2016

सेक्स मुक्त साधक साधू संत !


    सेक्स मुक्त साधक साधू संत भी होते हैं यह सुन कर थोड़ा अटपटा सा भले लगे किंतु सच्चाई यही है कि सेक्स मुक्त विरक्त साधू संतों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वो सामाजिक प्रपंच फैलते फिरें !यही करना होता तो वो विवाह करते बच्चे होते तो उनका उत्सव मनाते धंधा व्यापार करते !और आज भी जो साधक साधू संत हैं उनका न उत्सवों से लगाव है न मीडिया से अपितु वे तो किसी से मिलना ही नहीं चाहते !वैराग्य वाले साधू संत न तो धन संग्रह करते हैं और न ही सांसारिक प्रपंचों में फँसते हैं और नही किसी को ये बताते फिरते हैं कि मैं क्या खाता हूँ क्या पीता हूँ कैसे रहता हूँ आदि आदि !
    आजकल धार्मिक पाखंडियों को  इस बात का भी प्रचार प्रसार करना पड़ रहा है कि वो केवल एक ग्लास गाय का दूध लेते हैं वो जमीन में केवल एक चटाई बिछाकर सोते हैं उनके नाम से एक भी पैसा नहीं है उनका किसी महिला से कोई सम्बन्ध नहीं है !किंतु ऐसे पाखंडियों की हर हरकत पर समाज की निगाहें होती हैं  इसीलिए तो ये पाखंडी पापी दे रहे होते हैं सफाई !इन्हें ये समझ में नहीं आता है कि तुमने ऐसी हरकतें की क्यों कि समाज को तुम पर शक हुआ और तुम्हें सफाई देनी पड़ी !
   वैसे भी जिसने धन कमाया मकान बनाया सुख सुविधा के सारे साधन जुटाए वो सेक्स से दूर रहेगा ये विश्वास करने योग्य ही नहीं है जिसे अपने मन पर लगाम ही लगाना होता वो पहली स्टेज पर ही लगा लेता किंतु सारे साधन जुटाकर फिर केवल सेक्स नहीं करेगा !ऐसे लोग लुक छिप कर समाज में इतनी गन्दगी फैला रहे हैं जिसका जब भंडाफोड़ होता है तब अपने पापों के कारण सारे धर्म एवं धार्मिक समाज को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं ऐसे लोग !जिसकी पीड़ा और उससे संबंधित समाज के ताने महीनों वर्षों तक सहने पड़ते हैं चरित्र वान  साधूसंतों को !इसलिए ऐसे पाखंडियों का शुरू से ही बहिष्कार करे धार्मिक समाज !
  गाँवों में कहावत है कि "राणें तो रणापा सहकर भी रह सकती हैं किंतु रणुआ लोग रहने दें तब न !"इस कहावत का मतलब है कि विधवा स्त्रियाँ यदि अपना जीवन नियम संयम पूर्वक बिताना भी चाहें तो भी रणुआ अर्थात विवाह की आशा छोड़ चुके अविवाहित लोग उन्हें जीने कहाँ देते हैंअर्थाततंग किया हीकरतेहैं ।        बिलकुल यही स्थिति धर्म के क्षेत्र में भी है यदि बाबा बैरागी नियम संयम पूर्वक रहना भी चाहें तो भी कुछ कामचोर अकर्मण्य आलसी भाग्यपीड़ित ईश्वर विमुख लोग उनके आश्रमों में दुँदाढ़ी पर साँप रेंगाने पहुँच जाते हैं - यथा : मलमल बाबा की जय हो !मलमल बाबा के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम !बाबा जबसे हम आपके समागम में आए आपने पति दिया, पत्नी दी ,प्रेमी दिया ,प्रेमिका दी , बच्चे भी आप के ही दिए हुए हैं माकन आपने दिया है सरकारी नौकरी आपने दे दी है मेरा कारोबार खूब चलने लगा है हमारे यहाँ आपने इतना धन भर दिया है कि हम तो माला माल हो गए ! ऐसे भाड़े के प्रशंसा कर्मियों ने बाबाओं के न केवल दिमाग ख़राब कर दिए हैं अपितु उन्हें भगवान सिद्ध कर दिया है। 
    यह सब बनावटी विरुदावली  सुनकर बाबा को लगता है कि क्या वास्तव में मेरे अंदर ये गुण हैं और यदि हैं तो क्यों न सब कुछ अपने लिए ही सबकुछ किया जाए और जब अपने लिए करने लगते हैं तो तुरंत पकड़ जाते हैं तो पता लगता है कि  ये बुद्धूबकस वैसे तो ढपोल शंख हैं किंतु लोग पूजने लगे तो पुजवाने लगे और पुजवाने के चक्कर में खा रहे हैं जेलों की हवाएँ !
       कुलमिलाकर संपत्ति बढ़ती है वैभव बढ़ता है यश बढ़ता है सुख सुविधा के साधन बढ़ते हैं सुन्दर सा मकान बनता है उसमें बेडरूम बनता है उसमें बेड पड़ता है जिस विरक्त का मन यहाँ तक पहुँच गया वो इसके आगे की जीवन यात्रा ब्रह्मचारी बन कर करेगा इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए ! वैरागियों के मन बेडरूम से बेडों तक पहुँचते ही नहीं हैं वो इनके बहुत पहले संयम पूर्वक रोक लिए जाते हैं ।
   धार्मिक भ्रष्टाचारियों  अर्थात भीड़ लगाने वाले सुख सुविधा भोगी आधुनिक धार्मिकों के आनंदभवनों (आश्रमों )की तलाशी जहाँ जहाँ भी हुई है वहाँ  और कुछ मिला हो न मिला हो किन्तु सेक्स सामग्री तो लगभग मिलती ही है वैसे भी ऐसे सेक्सकांड जहाँ भी पकड़े जाते हैं वहाँ कोई बाबा निकलता है या जहाँ कोई बाबा पकड़ा जाता है वहाँ सेक्स निकलता है ! आखिर बाबाओं और सेक्स का आपसी सम्बन्ध क्या है !बंधुओ !सांसारिक प्रपंचों में फँसे होने पर भी जो बाबा पकड़े नहीं जाते हैं उसमें उनके पवित्र बने रहने का श्रेय उनके राजनैतिक रसूक को दिया जाए या उनके पैसे के प्रभाव को या उनके अनुयायियों के दबाव को या फिर प्रशासन की ढिलाई को !किंतु दुर्भाग्य इस बात का है कि ऐसे लोग आजकल मीडिया के द्वारा धर्मगुरु  योगगुरु ज्योतिषगुरु आदि और भी बहुत कुछ बताए जाने लगे हैं मीडिया को जैसे पैसे मिलते हैं उतना उसके विषय में बढ़ा चढ़ा कर बोला जाता है ।

      जहाँ धार्मिक लोग शास्त्रीय आचार व्यवहार सदाचरण आदि छोड़कर निरंकुश स्वेच्छाचारी जीवन जीने लगते हैं उन पर विश्वास ही क्यों किया जाता है उनका बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता !और समाज के जो लोग ऐसे अवारा लोगों साथ दे रहे होते हैं उन्हें दोषी क्यों न माना जाए !आखिर ये कैसे मान लिया जाए कि वहाँ हो रहे कुकर्मों के विषय में उन्हें कुछ पता ही नहीं था !बंधुओ !आप घर बनाने खड़े होते हैं तो हजारों अड़चनें आती हैं किंतु आप बाबा हैं इसलिए आश्रम बनाने खड़े होते हैं तो धड़ाधड़ बनता चला जाता है आखिर कैसे ?इसी प्रकार आप व्यापार करने निकलते हैं तो कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं क्या कुछ नहीं सहना पड़ता है उधार व्यवहार पैसे माँगने पड़ते हैं ब्याज चुकाना पड़ता है गारंटी देनी पड़ती है आदि आदि और भी बहुत कुछ !किंतु यदि आप बाबा बनके ब्यापार करना चाहते हैं तो कितना आसान होता है लोग दसपाँच वर्षों में करोड़ों अरबोंपति बन जाते हैं ।
 अपनी भावनाओं को कब तक यों ही कुंठित होने दें बाबा लोग ! 
      दूसरों को सेक्स सुखों के छलकते तालाबों में डूबते उतराते आखिर कब तक यूँ ही बेबश निगाहों से निहारते  रहें !आखिर क्यों न उतरें आप भी इस सेक्स सरोवर में !ऐसी ही भावनाओं से गर्भित विरक्ति विहीन मन निकल पड़ता है परोपकार या समाज सेवा करने । कुछ बाबालोग शादियाँ कराने लगते हैं कुछ तो दूसरों की डिस्टर्ब मैरिज लाइफ को ही सेट करने लगते हैं कुछ तो सेट करते करते खुद सेट हो जाते हैं इसी सेटिंग में कुछ को तो बाल बच्चे तक हो जाते हैं ,कुछ बाबा लोग नपुंसकता दूर करने के आसन सिखाने लगते हैं कुछ बच्चा होने की दवाई बनाते बेचते हैं कुछ बच्चा होने के यंत्र तंत्र ताबीज देते हैं तो कुछ लोग बच्चा होने का आशीर्वाद केवल वाणी से देते हैं तो कुछ कृपालु ऐसे भी हैं जो किसी को बच्चा देने के लिए अपना शारीरिक योगदान भी करते हैं !

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