Saturday, September 12, 2020

ड्रग्स और सेक्स रैकेट में डूबा है वालीवुड !समाज में आग इन्होंने ही लगाई है !

फिल्मी छिछोरों ने बर्बाद किया है समाज!भला चाहते हो तो बंद करो फ़िल्म देखना !
   फिल्मी लोगों में दिखने वाली हरकतें कोई नशेड़ी ही कर  सकता है !होशोहवाश में तो कोई नहीं ही करेगा !फिल्मों में  जितने बदतमीज द्वयर्थी फूहड़ संवाद होते हैं चोरी डकैती हत्या आत्महत्या बलात्कार नशा खोरी के दृश्य दिखाए जाते हैं !वे केवल फिल्मों तक ही सीमित नहीं हैं अपितु उन जंगलियों का यही वास्तविक जीवन है !बंदरों की तरह नंगे उघारे रहने को ये फैशन बताते हैं !समाज में दिख रहे सभी प्रकार के अपराध नशा खोरी बलात्कार गुंडागर्दी इन्हीं आवारा लोगों की देन  है ! फिल्मी  लड़के लड़कियाँ जितनी आवारा गर्दी करते हैं कुत्ते बिल्लियों की तरह नंगे अधनंगे कपड़ों में दिखाई पड़ते हैं!लिवइन में रह लेते हैं अपने पति पत्नी को तलाक देकर दूसरों से बच्चे पैदा कर या करा लेते हैं !जिससे कोई संबंध ही न हो ऐसे परुष के साथ मां बेटी बहन रखैल की तरह रह लेती है !कुंआरी लड़कियाँ किसी दूसरे के बच्चे की मां बन जाती हैं | उम्र का लिहाज किए बिना बुड्ढे बुड्ढे खूसट नई नई लड़कियों से लिपटे चिपटे चूमते चाटते देखे जाते हैं!ऐसा कोई नशेड़ी ही कर सकता है कोई होश में तो ऐसा करेगा नहीं !
     टीवी पर एक फिल्मी लड़की से पूछा जा रहा था कि कौन ब्यूटी पार्लर कितना अच्छा है ये कैसे पता लगता है उसने कहा सिंपल सी बात है जिस पार्लर से मेकअप करा के निकलने पर जितने अधिक लोग रास्ते में छेड़ें बदतमीजी करें वह उतना अच्छा ब्यूटी पार्लर !यदि इतना भी लालच न हो तो कोई बेकार में ब्यूटी पार्लर जाकर अपने पैसे क्यों बर्बाद करेगा !
    एक संवाद मैं सुन रहा था कि जवान होने के बाद लड़के लड़कियाँ अपनी शादी का फैसला खुद कर सकते हैं !मतलब मातापिता एतराज नहीं कर सकते !यदि ऐसा है तो बालिग़ होने के बाद कोई लड़का या लड़की कितना भी बड़ा अपराध करे उसे अपराध भी नहीं माना जाना चाहिए !क्योंकि वह तो बालिग़ हो चुका होता है | 
       कुल मिलाकर कानून बनाने वालों को याद रखना चाहिए कि बच्चों में संस्कार सृजन के लिए उन्हें तीन प्रकार के अनुशासनों का आदर करना होता है पहला उनके अपने परिवार का अनुशासन दूसरा समाज का अनुशासन और तीसरा देश का  अनुशासन अर्थात सरकार का कानून !आधुनिकता फैशन और अधिकारों के नाम पर यदि परिवार और समाज का अनुशासन तोड़वाया जाएगा तो देश के कानून केविरुद्ध आचरण करने में भी उन्हें कोई  डर नहीं होगा !    यही कारण है कि नशाखोरी अपराध और बलात्कार जैसी घटनाएँ रोकना कानून के बश की बात नहीं है इसे परिवार और समाज ही रोक सकता है अधिकतम फाँसी की सजा दे सकता है उसके लिए स्वेच्छाचारी लोग स्वतः तैयार रहते हैं |कानून न दे तो वे स्वयं लटक जाते हैं क्योंकि अनुशासन तोड़ने वालों के पास  इसके अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प बचता ही नहीं है !
    अभी भी समय है सरकारें जागें और समाज की भलाई के लिए परिवारों एवं समाज के अधिकारों को बहाल करें !तभी भय भूख भ्रष्टाचार बलात्कार एवं अपराध मुक्त समाज का निर्माण किया जा सकता है | सनातन धर्मी संस्कारों सदाचरणों पर प्रहार करता रहा है वालीवुड उसे दण्डित किया ही जाना चाहिए | 
      ये छिछोरे विदेशों से दुर्गुण खुद सीख सीखकर अपने देश में फैलाते हैं इन्होंने अपने घर गृहस्थी तो बर्बाद किए ही हैं |नंगपन तलाक हत्या आत्महत्या बलात्कार नशाखोरी आदि सभी प्रकार के अपराध समाज को सिखाने के लिए ये फिल्में बनाते हैं | समाज में फैले तलाक आत्महत्या बलात्कार नशाखोरी जैसे दुर्गुण इन्हीं फिल्मी छिछोरों की ही देन है |फिल्में देखकर कितने लोग सुधरे हैं कितनों ने संस्कार सीखे हैं कितनों ने माता पिता की सेवा करना शुरू कर दिया है कितने लोगों ने जुआँ और नशा जैसी लत छोड़ी है |कितने घर उजड़ने से बचाए हैं | 
     इन्हीं फिल्मी छिछोरों ने समाज में फैले तलाक आत्महत्या बलात्कार नशाखोरी जैसे दुर्गुण समाज को सिखाए हैं हिंदी और संस्कृत में तो तलाक और आत्महत्या जैसे शब्द ही नहीं होते हैं | कुलमिलाकर अधिकाँश अपराध फिल्में देखकर ही अपराधियों ने सीखे हैं | ये माता पिता से बगावत करने वाले छिनरे लड़के लड़कियों को प्रेमी प्रेमिका बताते हैं | चरित्रवान सदाचारी मातापिता की आज्ञा मानने वाले वाले एवं केवल अपने पति या पत्नी से ही प्रेम करने वाले युवक युवतियों को रूढ़िवादी कह कर ये छिछोरे उनकी मजाक उड़ाते हैं |ऐसे ही दुर्गुणों के कारण इन छिनरों ने अपने घर गृहस्थी और जीवन बर्बाद किए  और समाज को भी बर्बाद किया है | फिल्मियों में ऐसे कितने प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन्होंने केवल अपनी पत्नी या पति को ही अपना शरीर सौंपा हो |इनमें तलाक लेने वाले कितने लोग हैं |अपने माता पिता और परिवार से बगावत न करने वाले कितने लोग हैं |  कुल मिलाकर इनके आचरणों को सभ्य आचरण नहीं कहा जा सकता !मनोरंजन का मतलब संस्कारों में आग लगाना नहीं होता है कपडे पहनने उठने बैठने बोलने चालने की अकल तो हर किसी को होनी चाहिए आखिर फिल्मवाले भी तो इसी समाज के अंग हैं समाज को बर्बाद करने का अधिकार इन्हें किसने दिया है !ये फैसला ही नहीं कर पा रहे हैं कि इन्हें कपडे पहनना है या नंगे रहना है !-


   

 

No comments:

Post a Comment