Thursday, September 16, 2021

मोहन जोशी जी से मैंने भी बहुत कुछ सीखा है !


रामचरित मानस  में लिखा है -

     किएहुँ कुबेषु साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू॥

         बुरा वेष बना लेने पर भी साधु की साधुता का सम्मान होता ही है, जैसेजगत् में जाम्बवान्‌ और हनुमान्‌जी का हुआ। 

      प्रकार से समाज में बहुत लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने साधू संतों जैसा वेष धारण भले न कर रखा हो किंतु उनका सदाचरण विरक्तता समाज सेवा आदि सद्गुण प्रकट हो ही जाते हैं |    जामवंत जी और हनुमान जी जैसे लोग साधू संतों के वेष में भले न रहते हों किंतु आवश्यकता  पड़ने पर उनकी साधुता प्रकट हो ही जाती है | 

    समाज और राष्ट्र की रक्षा के लिए ईश्वर के अत्यंत विश्वासपात्र मोहनजोशी जी जैसे सात्विकता प्रधान त्यागी तपस्वी समाजसाधकों का जन्म होता है जो सुध सँभालते ही अपने दायित्वपथ  पर निकल पड़ते हैं |उन्हें ईश्वर ने जो कार्य सौंपकर इस धराधाम पर भेजा होता है उसी में आजीवन लगे रहते हैं |  ऐसे समाजसाधक अपने परिवारों का मोह त्यागकर सब सुख सुविधाओं की इच्छा छोड़कर समाज सुधारयज्ञ  में अपने भी योगदान की आहुतियाँ देने के लिए बचपन से ही निकल पड़ते हैं | ऐसे  लोगों को भटके हुए सामाजिक वातावरण को पुनः व्यवस्थित करने के लिए आजीवन संघर्षपूर्ण विपरीत परिस्थितियों से जूझना पड़ता है | उन्हें रहन सहन खान  पान एवं स्वास्थ्य आदि से संबंधित  सभी परिस्थितियाँ  केवल सह कर ही  निकालनी पड़ती हैं | मोहनजोशी जी गृहस्थ होने के बाद भी उसमें संलिप्त न होकर अपितु राष्ट्र परिवार के प्रति समर्पित होते  चले गए | | 

               जोशी जी ने हिंदुत्व के विस्तार के लिए विविध आयामों के माध्यम से  बहुत कुछ किया है धर्म प्रसार के क्षेत्र में किया गया अत्यंत कार्य उनकी तपस्या का ही परिणाम है | निरहंकार भावना एवं निरंतर कार्य करने की उनमें अद्भुत क्षमता थी | धर्मप्रसार के दायित्व से उन्होंने ही मुझे दिल्ली की इकाई में जोड़ा था उसके बाद कई बार उनका हमारे घर भी आना जाना होता रहा था !वे न केवल हमसे अपितु हमारे परिवार के सदस्यों से भी बहुत स्नेह करते थे | उनके मन में हमारी शिक्षा के प्रति बहुत सम्मान था इस दृष्टि  से भी उनसे मुझे अतिरिक्त स्नेह मिला करता था | वे वैदिकविज्ञान  संबंधी हमारे अनुसंधानों  में अक्सर हमारा उत्साह बर्धन किया करते थे | उनके अनेकों बिचारों व्यवहारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है | 

      एक बार किसी टीवी चैनल ने मुझे किसी परिचर्चा के लिए आमंत्रित किया वह धर्म परिवर्तन के विषय में ही थी ! मेरे मन में चैनल पर बोलने का उत्साह तो था ही मैंने बड़ी प्रसन्नता से जोशी जी को फोन करके यह बात बताई और उनसे अपेक्षा की कि वे मुझे कुछ सुझाव दें तो मैं उन बिंदुओं को अपनी चर्चा के केंद्र में रखकर अपनी बात रख लूँगा | हमारा निवेदन थोड़ी देर तक तो जोशी जी सुनते रहे इसके बाद कहने लगे कि तुम या तो इस पैनल में सम्मिलित होने से मना कर दो या फिर वैदिक पौराणिक ज्ञान विज्ञान से संबंधित बातें रखकर चले आना | धर्म परिवर्तन तुम्हारा विषय नहीं हैं तुम्हारा अपना कोई अनुभव भी नहीं है सुनी सुनाई बातें लाइव परिचर्चा में बोलना ठीक नहीं है | ऐसे में कोई भी बात यदि अप्रमाणित निकल जाती है तो उसका समाज में पहुँचना अच्छा नहीं होगा |उसके बाद मैं गया तो किंतु धर्म बिषय अन्य चर्चाओं को करके वापस आ गया | यहाँ मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि वे अपने उचित बिचार रखते समय किसी के बुरा लगने की परवाह भी नहीं किया करते थे | 

           मोहन जोशी जी की विरक्तता से मैं बहुत प्रभावित था | काशी में रहकर लगभग पंद्रह वर्ष तक विद्याध्ययन करने का अवसर मुझे मिला इससे साधू संतों के संपर्क में रहता रहा उसमें भी दस वर्ष तक मैं  काशी मुमुक्षुभवन  में रहकर पढाई की जो संन्यासियों की सबसे बड़ी संस्था बताई जाती है |वहाँ बहुत साधू संतों में से कुछ संत वास्तव में विरक्त संन्यासी  थे | जो संग्रही नहीं थे | माननीय जोशी में भी इस विरक्तता का अनुभव मुझे अनेक अवसरों पर मिला है वे संग्रही नहीं थे | 

      एक बार दीपावली के लगभग एक सप्ताह पहले जोशी जी अस्वस्थ होगए संभवतः अर्शरोग  था या जो भी हो रक्तस्राव होने से वे काफी दुर्बल हो गए थे | पूर्वी दिल्ली के एक हॉस्पिटल में एडमिट  हुए मुझे सूचना मिली मैं पहुँचा चिकित्सा प्रारंभ होने का लाभ उन्हें हुआ क्रमशः ब्लीडिंग कम हो रही थी किंतु उनके कपड़ों में खून के धब्बे थे | वे बहुत सफाई पसंद थे इसलिए  असहज महसूस कर रहे थे | धोती उतार कर उन्होंने एक मोटा अँगौछा लिपेट रखा था उसमें भी कुछ धब्बे लग गए थे जिसमें से एक आध उस बिस्तर में भी लग गए थे | इसके अतिरिक्त उस समय  वहाँ  कोई वस्त्र नहीं था तो मैं तुरंत बाजार गया खादी भंडार से दो  चौड़े अचले पहनने के लिए लेकर आया जैसे कि उन्हें कभी कभी पहने देखा था | उनसे पहनने के लिए कहा कि कपडे बदल लो तो उन्होंने पूछा कौन लाया है !जब बताया गया कि मैं लाया हूँ तो हम पर नाराज हुए कि उनके लिए मैंने  पैसे खर्च क्यों किए और पहनने से मना कर दिया | बहुत कहने पर एक तो किसी तरह पहन लिया किंतु दूसरा वापस करके पैसे ले आने को कहा | मैंने कहा यहीं रहने दीजिए तो वे कहने लगे हम लोगों को संग्रह शोभा नहीं देता है |ऐसे वाक्य मैंने विरक्तों के मुख से भी बहुत कम सुने थे | यह सुनकर मैं विनम्रता से चुप खड़ा रहा तब उन्होंने कहा ठीक है रहने दो लेकिन अपव्यय से बचना चाहिए तुम्हारे साथ परिवार की जिम्मेदारी भी है | 

        इसप्रकार की पवित्रसोच कार्यकर्ताओं के प्रति जिस भी संगठन के शीर्षनेतृत्व की होती है उस संगठन का भविष्य उज्ज्वल होता ही है | मोहनजोशी के सान्निध्य से समय समय पर बहुत अनुभव मिलते रहे हैं  जो अक्सर जीवन में काम आते हैं | आज जोशी जी हमारे बीच भले न हों किंतुउनके आदर्श  प्रेरणा  बिचार  हमारे जीवन को हमेंशा प्रेरित किया करते हैं और मैं उन्हें  श्रद्धापूर्वक  नमन करता हूँ | 

            समय परिवर्तन शील होता है समय के साथ साथ सब कुछ बदलता रहता है इसका प्रभाव प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी जगह पड़ता है मानव जीवन भी इससे प्रभावित होता है उसका प्रभाव समाज पर भी पड़ना स्वाभाविक ही है इसलिए समय के साथ साथ समाज में भी क्रमशः बदलाव होते देखे जाते रहे हैं | उनमें से कुछ बदलाव प्राकृतिक रूप से होते हैं जबकि  बदलाव मनुष्यों के अच्छे बुरे बिचारों कार्यों  आचारों व्यवहारों विकारों आदि से प्रभावित   होते हैं | सात्विकता प्रधान आचार  व्यवहार क्रिया कलापों आदि से कई बार बड़ी बड़ी अच्छाइयाँ जन्म ले जाती हैं | इसी प्रक्रिया से कई बार  वातावरण का  जाता है जिससे  समाज गलत   दिशा में भटकने लग जाता  है | यह समाज के लिए बहुत कठिन काल होता है जब समाज अपनी अपनी मर्यादाएँ भूलकर  एक दूसरे व्यक्ति  समुदाय संप्रदाय आदि का उत्पीड़न करने लग जाता है | इससे देश अस्थिरता की ओर बढ़ने लगते हैं | ऐसे कठिन समय में  जी जैसे राष्ट्र भक्तों की समाज को बहुत बड़ी आवश्यकता होती है |

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