Friday, August 12, 2016

' दलित ' शब्द का अर्थ है टुकड़े -टुकड़े ,खंड-खंड ,कुचला हुआ ,छिन्न भिन्न आदि ! वास्तव में दलित ऐसे होते हैं क्या ?

जातियाँ कभी गलत नहीं होतीं जिसकी जैसी जाति होती है उसका वैसा स्वभाव !जातियाँ काल्पनिक नहीं होतीं ! 
  1. ब्राह्मणों के अलावा दूसरी जातियों के लोग भी साधु संन्यासी बनते देखे जाते हैं किंतु निभा नहीं पाते हैं उनका संन्यास लेकर भी भजन में मन नहीं लगता है वो वहाँ जाकर भी दूध घी और भूरे रंग का गेंहूँ का आता बेचना नहीं छोड़ते !बहुत सारे महात्माओं को करोड़ों अरबों की संपत्तियाँ कमाते देखा होगा किन्तु उन धनी बाबाओं में बहुत कम लोग ब्राह्मण होंगे ! जो महात्मा वैश्य वर्ग के हैं वो संन्यास लेने के बाद भी व्यापार करना नहीं छोड़ते हैं !बल्कि और अच्छे ढंग से करते हैं क्योंकि संन्यास लेने के बाद फंडिंग की समस्या नहीं रह जाती है जब कम पड़े या घाटा होने लगे तो समाज से मांग लो न कर्जा चुकाना न ब्याज देना !कुल मिलाकर जातियों के संस्कार कभी पीछा नहीं छोड़ते !
  2.    आरक्षण माँग माँग कर दलितों ने खुद को इतना कमजोर सिद्ध कर दिया है कि अब कुछ कहने लायक बचे ही नहीं हैं !वैसे भी सवर्णों की तरह हाथ पैर दिल दिमाग वाले हट्टे कट्टे दलित लोग भी सवर्णों की तरह ही भोजन पानी सब कुछ करते हैं फिर सवर्ण लोग खुद तरक्की करके यदि अपना विकास कर सकते हैं तो दलित क्यों नहीं ?इन्हें कोई दिक्कत नहीं है और न ही इनका कभी किसी ने शोषण ही किया है इसलिए ये इनमें मानसिक कमजोरी है जिसे दूर करने के लिए आरक्षण नहीं अपितु किसी मनोचिकित्सकको दिखाया जाना चाहिए !
  3.   दलित लोग अपने तरक्की न कर पाने का कारण सवर्णों और ब्राह्मणों को बताते हैं !ये तो उसी तरह की बात है कि किसी के अपने घर बेटा न पैदा हो रहा हो तो उसके लिए दोष पड़ोसी को दिया जा रहा हो ! 
  4. दलित लोग महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु की निंदा करते और मनुस्मृति को जलाते देखे जाते हैं किंतु इसमें मनु का दोष क्या है उन्होंने हम सबके पूर्वजों की योग्यता की परीक्षा ली जो फस्ट डिवीजन आए वो ब्राह्मण जो सेकेण्ड आए वो क्षत्रिय जो थर्ड आए वो वैश्य और जो बेचारे पास ही नहीं हुए ऐसे फेलियर लोगों को पुरस्कृत करने की परंपरा तो  पहले थी न आज है फिर उन्हें महर्षि मनु कैसे पुरस्कृत कर देते ! 
  5. जिन्हें शिक्षा में आरक्षण चिकित्सा में आरक्षण मान  सम्मान में आरक्षण !भोजन सामग्री मिलने में आरक्षण जगह जमीनें मिलने में आरक्षण इन्हें सरकार से आरक्षण में सब कुछ मिलता है सरकारें  सारी योजनाएँ ही दलितों के विकास के लिए बनाती हैं इतनी सब सुख  सुविधाएँ पाकर भी जो अपना विकास न कर पाते हों इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अतीत में भी यही हुआ होगा अर्थात दलितों के पूर्वज खुद ही नहीं कर पाए होंगे विकास और सवर्णों को दोषी ठहराते रहे किंतु ऐसे आरोपों को कितना और कैसे विश्वसनीय मान लिया जाए ? 
  6. ब्राह्मण वर्ग यदि इतना ही दोषी होता तो अंबेडकर टाइटिल डॉ BR अंबेडकर साहब के शिक्षक  की थी  दूसरी पत्नी भी ब्राह्मण थीं ये ब्राह्मण टाइटिल और दूसरी पत्नी भी ब्राह्मण होना वो आजीवन सहर्ष स्वीकार करते रहे !फिर ब्राह्मण गलत कैसे हो सकते हैं ! 
  7. कांशीराम जी के तीन मित्र बताए जाते हैं  एक गुर्जर दूसरा सैनी तीसरा ब्राह्मण क्यों ? 
  8. सतीश मिश्रा जी की योग्यता के प्रति नत  मस्तक हैं अपने को दलितों की मसीहा और देवी मानने वाली बसपा प्रमुख  क्यों ! 
  9. जातियों के आधार पर जब तक आरक्षण लिया  जाता रहेगा तब तक जातियाँ समाप्त करने की कल्पना कैसे की जा सकती है ! 
  10. जिन लोगों का सब कुछ आरक्षण और सरकारों से प्राप्त भिक्षा के आधीन हो ऐसे युवकों से सवर्णों के उन लड़के लड़कियों को विवाह करने के लिए कैसे बाध्य  किया जा सकता है जिन्होंने अपने जीवन को स्वयं अपने त्याग और परिश्रम से बुना हो !यदि ऐसा कर  भी दिया जाए तो क्या उनके साथ यह अन्याय नहीं होगा ? 
  11. जिनका आत्म विश्वास इतना कमजोर  है कि जो अपने बल पर अपनी रसोई और घर गृहस्थी का खर्च तक नहीं चला सकते इसके लिए उन्हें सरकारों  से मदद लेनी पड़ती हो वे चुनाव जीतकर भी अपने क्षेत्र का विकास कैसे कर  पाते  होंगे ! 
  12. दलितों को सरकारों के द्वारा मिलने वाली सारी  सुविधाएँ भी तो सवर्णों के द्वारा कमाई हुई ही होती हैं जिन्हें टैक्स रूप में सवर्णों से लेकर सरकार आरक्षण प्रेमियों को देती है सवर्णों की कमाई पर जीवन यापन करने वाले लोगों के द्वारा सवर्णों की निंदा किया जाना कहाँ तक न्यायोचित माना जा सकता है !
      नेताओं को जब चुनाव लड़ना होता है तब वो केवल दलितों को मूर्ख बनाते हैं वे जानते हैं कि सवर्ण लोग तो नेताओं पर भरोसा करना कब का छोड़ चुके हैं !   दलितों को कुछ देने की बात करके नेता लोग जीत लिया करते हैं चुनाव ! सुरक्षा दलितों की आरक्षण दलितों को आटा,दाल चावल दलितों को वजीफा दलितों को सरकार से प्राप्त सारी सुविधाएँ दलितों को मिलती हैं फिर भी परेशान  हैं दलित !आखिर क्यों ?या तो देने वालों की नियत ठीक नहीं है या फिर लेने वालों की !वैसे भी माँगने वालों को सम्मान कहाँ मिलता है ।

     दलित लोग यदि अपने बल और बुद्धि के आधार पर अपना घर नहीं चला सकते तो वे विधायक सांसद मंत्री आदि बनकर उस दायित्व का निर्वाह कैसे कर पाते होंगे इसलिए दलितों का चुनाव लड़ना कितना उचित है क्या वो अपने दायित्वों का निर्वाह करने की क्षमता रखते हैं !     दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ये जानने के लिए मैंने शब्दकोश देखा जिसमें टुकड़ा,भाग,खंड,आदि अर्थ दलित शब्द के  किए गए हैं।मूल शब्द दल से दलित शब्द बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल, इन दलों में रहने वाले लोग दलित कहे जा सकते हैं।इसी दल शब्द से ही दाल  बना है।चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता हैइस प्रकार दलित शब्द के टुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ  किंतु दलित शब्द का अर्थ दरिद्र या गरीब नहीं हो सकता है। 

     राजनैतिक साजिश के तहत यदि इस शब्द का अर्थ अशिक्षित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि  करके ही कोई राजनैतिक लाभ लेना चाहे तो यह शब्द ही बदलना पड़ेगा,क्योंकि इस शब्द का अर्थ शोषित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करने पर यह ध्यान देना होगा कि इसमें जिन जिन प्रकारों का वर्णन है वो सब कोई अपने आप से भले बना हो किंतु किसी के दलित बनने में किसी और का दोष  कैसे हो सकता है?यदि किसी और ने किसी का शोषण करके उसे दलित बनाया होता तो दलित की जगह दालित होता।जब बनाने वाला कोई और होता है तो आदि अच की वृद्धि होकर जैसे चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है क्योंकि चना आदि यदि चाहें भी कि वे अपने आप से दाल बन जाएँ  तो नहीं बन सकते।जैसेः- तिल से बनने के कारण उसे तैल कहा जाता है।बाकी सारे तैलों का तो नाम रख लिया गया है तैल तो केवल तिल से ही पैदा हो सकता है।ऐसे ही वसुदेव के पुत्र होने के कारण ही तो वासुदेव कहे गए। इसी प्रकार दलित की जगह दालित होता। चूँकि शब्द दलित है इसलिए किसी और का इसमें क्या दोष ?वैसे भी किसी ने क्या सोच कर दलित कहा है यह तो वही जाने किंतु इस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि  में कम से कम हम तो किसी को दलित नहीं कह सकते ऐसा कहना तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान है।हमारा तो भाव है कि

          सीय राम मय सब जग जानी । 

          करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।

     मैं तो ईश्वर का स्वरूप समझकर सबको प्रणाम करता हूँ  और अपने हिस्से का प्रायश्चित्त भी करने को न केवल तैयार हूँ बल्कि दोष का पता लगे बिना ही मैंने इस जीवन को धार पर लगाकर प्रायश्चित्त किया भी है।यदि हमारे पूर्वजों के कारण समाज का कोई वर्ग अपने को बेरोजगार,गरीब या धनहीन समझता है तो मैं अपने हिस्से का जो भी मुनासिब प्रायश्चित्त हो आगे भी करना चाहता हूँ ।मेरी सविनय यह ईच्छा भी है कि मुझे इस आरोप के लिए जो भी उचित दंड हो मिलना चाहिए इसके बाद हम अपने परिजनों को इस आरोप से अलग करना चाहते हैं ।साथ ही हमारा यह भी निवेदन है कि हम अपने विषय में जो जानकारियाँ  दे रहे हैं उनकी सच्चाई के लिए किसी भी एजेंसी से जाँच कराने को तैयार हैं । 

  मैंने चार विषय से एम.ए.किया,बी.एच.यू. से पी.एच.डी. भी की।किसी डिग्री कालेज में नौकरी मिल सकती थी किंतु सन् 1989-90 में चले आरक्षण आंदोलन में पूर्वजों पर लगे शोषण के आरोपों को मैं सह नहीं सका।मैं अक्सर तनाव में रहने लगा और एक ही बिचार मन में चलता रहा कि हमारे पूर्वजों ने आखिर किसी शोषण क्यों किया?

    हमें आज तक इन बातों के जवाब नहीं मिले।मैंने एक व्रत लिया था कि इस निपटारे से पूर्व मैं किसी भी  सरकारी सेवा के लिए कभी कोई आवेदन नहीं करूँगा।मुझे गर्व है कि ईश्वर कृपा से मैं आज तक व्रती हूँ । न ही मुझे जवाब मिले न ही मैंने नौकरी मॉगी।न केवल सरकारी प्राइवेट किसी कंपनी आदि में भी कभी कोई नौकरी के लिए साइन नहीं किए ।संघर्ष बहुत हैं बहुतों ने  शिक्षा सहित मुझे अक्सर अपमानित किया है ।फिरभी सहनशीलता सबसे बड़ी मित्र है।जो  देवताओं की कृपा एवं पूर्वजों के पुण्यों का प्रसाद है ।

     ये  बातें  मैं बड़ी जिम्मेदारी से कह रहा हूँ , आखिर सवर्ण कही जाने वाली जातियों में ही मेरा भी जन्म हुआ है, जिसमें मेरा कोई वश नहीं था।जन्म मृत्यु तो ईश्वर के आधीन हैं।इसमें कोई क्या कर सकता है?अपने जन्म,जीवन,जन्मभूमि पर हर किसी को गर्व करना ही चाहिए मैं करता भी हूँ ।

     ईश्वर ने जो कुछ भी किया है।उसे ईश्वर का उपहार समझकर स्वीकार किया है और उपहार में शिकायत कैसी ?मैं इतने जीवन में जगह जगह धक्के खाकर सारी दुर्दशाएँ  भोगकर यह बात विश्वास से कह सकता हूँ कि जाति का इस जीवन में आर्थिक और व्यवसायिक आदि किसी प्रकार का कोई लाभ नहीं होता।जो कमाता है उसके पेट में जाता है उसकी जाति वालों को अकारण क्यों परेशान करना? जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदाय की बातें तो कमजोर लोगों में ही कहते सुनते देखी जाती हैं ।बड़े आदमियों की जाति तो उनका अपना आर्थिक बड़ापन होता है, जिसके आगे वे अपने धनहीन घर खानदान के लोगों को पहचानने से मना कर देते हैं। ऐसे में जाति की चर्चा तो मूर्खता ही कही जाएगी जिसका कोई मतलब ही नहीं बचा है।

  जहाँ तक जातिगत आरक्षण की बात है यह भी भारतवर्ष को प्रतिभाविहीन बनाने का प्रयास है।सवर्णवर्ग के लोग यह सोच लेंगे कि क्यों पढ़ना आरक्षण के कारण नौकरी तो मिलनी नहीं है इसी प्रकार असवर्ण लोग भी सोच सकते हैं कि क्यों पढ़ना नौकरी तो मिलनी ही है।अंततः नुकसान तो देश का ही हो रहा है। वैसे भी समृद्ध देश की संकल्पना में सभी भेद भावों से ऊपर उठकर गरीब और पठनशील लोगों को स्वतंत्र शैक्षणिक सहयोग मिलना चाहिए।इससे हर वर्ग के विद्यार्थी अपना जीवन सुधारने का प्रयास तो कम से कम कर ही सकते हैं परिणाम तो ईश्वर के ही हाथ है।समान व्यवस्था प्राप्त करके भी दुर्भाग्य से यदि कोई असफल हुआ ही तो वह इसके लिए किसी और को नहीं कोसेगा।यह उसकी अपनी लापरवाही मानी जाएगी।

      अन्यथा आज असवर्ण कहे जाने वाले लोग सवर्णों को कोस रहे हैं कल सवर्ण कहे जाने वाले लोग अपनी दुर्दशा  के लिए असवर्णों को कोसेंगे।जहॉं तक राजनेताओं की बात है ये कल को सवर्णों को आरक्षण का एलान कर देंगे। इस प्रकार सवर्णों के मसीहा बनकर असवर्णों को गालियॉं देंगे।अपने को गरीबों का बेटा बेटी कह कर तीन तीन करोड़ का घाँघरा पहनकर घूँमेंगे।कितने शर्म की बात है?आज अरबों पति लोग अपने को दलित कहते हैं!क्या उनसे पूछा जा सकता है कि वे आखिर गरीबों का मजाक क्यों उड़ा रहे हैं?कौन सी ऐसी अदालत है जो इस प्रकार से अपमानित लोगों की दशा  पर भी दया पूर्वक बिचार करेगी?

      मैं पॉंच वर्ष का था जब मेरे पिता जी का देहांत हो गया था । मेरे भाई साहब सात वर्ष के थे मेरी माता जी घरेलू परिश्रमशील स्वाभिमानी महिला थीं।किसी संबंधी का कोई सहारा नहीं मिला उस अत्यंत संघर्ष पूर्ण समय में भी माँ के पवित्र आँचल में लिपट कर आनंद पूर्ण बचपन बिताया हम दोनों भाइयों ने।धन के अत्यंत अभाव में जो दुर्दशा होनी थी वह तो सहनशीलता से ही सहना संभव था न किसी से कोई शिकायत न शिकवा हर परिस्थिति में मैं अपने कर्मों और अपने भाग्य का ही दोष  देता हूँ  और किसी पर क्या बश ?कोई चाहे तो दो कदम साथ चल ले न चाहे तो अकेले का अकेला किसी से क्या आशा ?

      हमारे उस छोटे से परिवार ने भयंकर मुशीबत उठा कर मुझे पढ़ने बनारस भेजा।इसमें हमारे लिए अत्यंत आवश्यक संसाधन जुटाने में भाई जी की भी शिक्षा रुक गई थी माता जी के लिए भी बहुत  संघर्ष तो था  ही। 

     भूख पर लगाम लगाकर मैंने चार विषय से एम.ए.किया,बी.एच.यू. से पी.एच.डी. भी की।किसी डिग्री कालेज में नौकरी मिल सकती थी हमारे बहुत हमसे छोटे छात्र मित्र सरकारी नौकरियों में अच्छे अच्छे पदों पर हैं जो अक्सर हमारी परिश्रमशीलता एवं वैदुष्य की प्रशंसा करके हमें सुख पहुँचाते हैं जिनके लिए मैं हमेशा उनका आभारी हूँ ।कई बार अमीरों से अपमानित और आहत होने पर ऐसी प्रशंसाएँ बड़ा संबल बनती हैं बड़ा सहारा देती हैं।लगता है चलो किसी को पता तो है कि मैं भी सम्मान एवं आर्थिक विकास का अधिकारी  था ।

    किंतु सन् 1989-90 में चले आरक्षण आंदोलन में पूर्वजों पर लगे शोषण के आरोपों को मैं सह नहीं सका।मैं अक्सर तनाव में रहने लगा और एक ही बिचार मन में चलता रहा कि हमारे पूर्वजों ने आखिर किसी का शोषण क्यों किया? पचासों विद्वानों शिक्षाविदों से मिला उनसे हमारे बस इतने ही प्रश्न  होते थे।

1.  हमारे पूर्वजों ने किसी का शोषण  क्यों किया?

2.वह शोषण का धन गया कहॉं आखिर हमें इतनासंघर्ष  क्यों करना पड़ा? 

3. संख्या बल में सवर्णों से अधिक होने पर भी असवर्णों  के पूर्वजों ने शोषण सहा क्यों?

4.  सजा अपराधी को दी जाती है उसके परिजनों को नहीं पूर्वजों का यदि कोई अपराध हो ही तो उसका दंड हमें  क्यों?

5. यदि अपराध की आशंका है ही तो अपराध के प्रकार की जॉंच होनी चाहिए और हम लोगों की तलाशी  की जानी चाहिए और जातीय ज्यादती के द्वारा प्राप्त ऐसा कोई धन यदि प्रमाणित हो जाए तो जब्त किया जाना चाहिए। इस प्रकार से सवर्ण वर्ग का  शुद्धिकरण करके ये फाँस हमेंशा के लिए समाप्त कर देनी चाहिए।आखिर कितनी पीढ़ियॉं और शहीद की जाएँगी इस तथाकथित शोषण पर?कब तक ढोया जाएगा इस शोषण कथा को?आखिर शोषण का आरोप सहते सहते और कितने लोगों की बलि ली जाएगी ?  

    हमें आज तक इन बातों के जवाब नहीं मिले।मैंने एक व्रत लिया था कि इस निपटारे से पूर्व मैं किसी सरकारी सेवा के लिए कोई आवेदन नहीं करूँगा मैं आज तक व्रती हूँ।न मुझे जवाब मिले न ही मैंने नौकरी माँगी।

     स्वजनों अर्थात तथा कथित सवर्णों ने हमारा और हमारी शिक्षा का शोषण करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।किसी को किताबें लिखानी थीं किसी को मैग्जीन,किसी ने देश सेवा की दुहाई दी किसी ने हमारे और हमारे परिवार के भविष्य सुधारने का लालच दिया।कुछ लोगों ने बड़े लालच देकर बड़े बड़े काम लिए दस बारह घंटे दैनिक परिश्रम के बाद वर्षोँ तक सौ दो सौ रुपए मजदूरों की भाँति देते रहे एक आध ने तो यह लालच देकर काम लिया कि हम तुम्हें एक स्कूल खोल कर दे देंगे उसको परिश्रम पूर्वक चला लेना जिससे तुम्हारा जीवन यापन हो जाएगा किंतु काम निकलने के बाद में उन्होंने भी मुख फेर लिया यह कैसे और किसको किसको कहें कि वे बेईमान हो गए आखिर शिक्षा से जुड़ा हूँ , मर्यादा तो ढोनी ही है।पेट और परिवार का पालन करना है। 

      आज क्या मुझे मान लेना चाहिए कि ब्राहमण या सवर्ण था इसलिए ऐसे लोग  हम पर इस प्रकार की कृपा करते रहे।सरकारी नौकरी न माँगने का व्रत है तो जीवन ढोने के लिए किसी पर विश्वास तो करना ही पड़ेगा।अनुभव लेते लेते जीवन गुजरा जा रहा है। 

     किसी और की अपेक्षा अपने जीवन को मैंने इसलिए उद्धृत किया है कि गरीब सवर्णों को भी अमीरों के शोषण का उतना ही शिकार होना पड़ता है जितना किसी और को वह अमीर किसी भी जाति,समुदाय, संप्रदाय आदि का क्यों न हो।अमीर केवल अमीर होता है इसके अलावा कुछ नहीं ।यह हमारे अपने अनुभव का सच है मेरा किसी से ऐसा आग्रह भी नहीं है कि वो मुझसे या मेरी बातों से सहमत ही हो। 

 

         राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

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