Tuesday, December 3, 2019

भारत में मौसम विज्ञान की शुरुआत

आदरणीय प्रधानमंत्री जी
                                   सादर नमस्कार !
विषय :वेदविज्ञान संबंधी मौसम पूर्वानुमान के विषय में -

 महोदय ,
 
      मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से वेदविज्ञान अत्यंत प्राचीन तो  है ही इसके साथ साथ यह आज भी अत्यंत सही एवं सटीक घटित होते देखा जा रहा है| इसकी एक विशेषता और है कि इस प्रक्रिया से मौसम संबंधी पूर्वानुमान कितने भी पहले लगाया जा सकता है इसलिए यह कृषि जैसे कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी है | अनुसंधान पूर्वक इसके द्वारा मानसून आने और जाने के विषय में सफलता पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |वर्षा आँधी तूफानों चक्रवातों आदि के विषय में तथा वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में सफलता पूर्वक सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से पहले प्रत्येक महीने भर का मौसम संबंधी पूर्वानुमान आपके मेल पर हमारे द्वारा डाल दिया जाता है |
      वैदिक विज्ञान संबंधी मौसम पूर्वानुमान  की सुविधाएँ आधुनिक मौसमविज्ञान में नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं | इसीलिए तो बीते 6 वर्षों में जितनी भी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से किसी के विषय में भविष्यवाणी या तो की नहीं जा सकी है और यदि की भी गई है तो वह भविष्यवाणी गलत सिद्ध हुई है |एक दो घटनाओं में संयोग बश तीर तुक्के लग गए हैं वो सही अवश्य होते दिखी हैं किंतु उनका तर्कसंगत कोई वैज्ञानिक आधार नहीं रहा है ये सूची मैंने इसी प्रपत्र में संलग्न की हुई है |
    आधुनिक मौसम संबंधी मंत्रालय संचालन से लेकर अनुसंधान तक समस्त प्रक्रिया पालन पर सरकार के द्वारा अत्यंत भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है इसके बाद भी इस प्रक्रिया से मौसम संबंधी पूर्वानुमान इतने सच नहीं मिल पाते हैं जो कृषि आदि कार्यों के लिए लिए सहायक हो सकें !किसानों की आत्महत्याएँ चिंता पैदा करने वाली हैं उनमें यदि थोड़ा भी कारण मौसम संबंधी गलत पूर्वानुमान भी है तो ये अत्यंत दुखद है | देशवासी अपने खून पसीने की कमाई से जो धन टैक्स के रूप में देते हैं मौसमपूर्वानुमान संबंधी उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति भी होनी चाहिए |  
    महोदय ! वेदवैज्ञानिक मौसमपूर्वानुमान प्राकृतिक लक्षणों और गणित के आधार पर ग्रहण की तरह ही लगाए जाते हैं इसके आधार पर सैकड़ों वर्ष पहले का मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता है जो सही एवं सटीक निकलता है |इसके बाद भी मौसम विज्ञान विभाग से अभी तक जो कुछ मेरा संवाद या पत्रों का आदान प्रदान हुआ है उसमें उनके द्वारा यही कहा गया है कि चूँकि वेदविज्ञान को विज्ञान नहीं माना जा सकता है इसलिए हम आपकी वेदवैज्ञानिक बातों पर विचार नहीं कर सकते !वे कागज़ भी इसके साथ संलग्न हैं |
     श्रीमान जी !सरकारी पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई करके एवं परीक्षाएँ देकर बनारसहिंदूयूनिवर्सिटी से हमने अपनी शिक्षा पूरी की है |  मैंने BHU से Ph.D. भी की है |पिछले 25 वर्षों से मैं इसी अनुसंधान में लगा हुआ हूँ |इसके हमारे पास अत्यंत मजबूत प्रमाण और अनुभव हैं जो आज भी सही एवं सटीक घटित हो रहे हैं |हमारे द्वारे मौसम संबंधी पूर्वानुमान  वेदविज्ञान के आधार पर ही लगाए जाते हैं | अब यह कहना कि वेदविज्ञान को विज्ञान नहीं माना जा सकता है यह कितना न्यायसंगत है वो भी तब जबकि खुद वो काम न कर पा रहे हों !
     ऐसी परिस्थिति में वेदविज्ञान पद्धति से मौसम के विषय में अपने द्वारा किए गए  अनुसंधानों को मैं आपके सामने प्रस्तुत करने हेतु एवं इस अनुसंधान को और अधिक विस्तार देने के लिए तथा संसाधन उपलब्ध करवाने हेतु मैं आपसे मिलने के लिए समय और सहयोग चाहता हूँ |
              निवेदक -
 डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
                                                                                                  



           मौसम पूर्वानुमान विज्ञान में विज्ञान की खोज 

      बाइबल में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने का वर्णन  मिलता है इसके अनुशार बाइबल के ज़माने में आँखों को जो नज़र आता था, उसी से मौसम का अनुमान लगाया जाता था। (मत्ती 16:2,3)
      बाइबिल के मत से बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ एक जगह घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा का अंदाजा लगा लेने मात्र को भविष्यवाणी मान लिया जाता है|
     आधुनिक मौसमविज्ञान संबंधी  इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए बादल आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ देखने हेतु यंत्रों की आवश्यकता पड़ी तो दो ढाई सौ वर्ष पूर्व ऐसे यंत्रों का निर्माण किया गया |यंत्रों से प्राप्त जानकारी सुरक्षित रखने के लिए बीसवीं शती के उत्तरार्ध में कंप्यूटर का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ |आज  कुछ ज़रूरी यंत्रों से वायु दाब, तापमान, नमी और हवा को माप लिया  जाता है किंतु इस सारी प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए भी ये सही कितने प्रतिशत होता है यह ध्यान देने वाली बात है ।
    आधुनिक मौसम पूर्वानुमान के द्वारा यह जानना काफी आसान है।इस समय मौसम कैसा है  लेकिन, इसकी तुलना में अगले घंटे, दिन या सप्ताह का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान लगा पाना अत्यंत कठिन एवं कुछ मामलों में असंभव भी है ।
    द वर्ल्ड बुक इंसाइक्लोपीडिया कहती है, “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”इसे वास्तविकता समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए | 
    संभवतः इसीलिए इस बाइबल पद्धति से की जाने वाली आधुनिक मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत होते देखी जाती हैं | इसीलिए प्राकृतिक आपदाओं का  पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक असंभव सा बना हुआ है | मौसम वैज्ञानिक न इनके कारण बता पा रहे हैं और न ही पूर्वानुमान !एक आध तीर तुक्कों को छोड़ दिया जाए तो इस प्रक्रिया में मौसम पूर्वानुमान के लिए कुछ भी नहीं है या यूँ कह लिया जाए कि आधुनिक मौसम विज्ञान पद्धति में विज्ञान का एक छोटा से छोटा अंश भी नहीं उपयोग में नहीं आता है |  

                    भारत का प्राचीन मौसम विज्ञान     
     भारत में मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।उसी के आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ सफलता पूर्वक की जाती रही हैं |इसमें प्राकृतिक लक्षणों और गणित के आधार पर भविष्यवाणियाँ की जाती थीं जो सही सटीक घटित होती थीं | वेदों उपनिषदों दार्शनिक विवेचनों में बादलों के गठन और बारिश के विषय में वर्णन मिलता है पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ऋतुचक्र की प्रक्रिया के बारे में  गंभीर चर्चा की गई है !500 ईस्वी के लगभग वाराहमिहिर द्वारा निर्मित वृहद्संहिता इस बात का सुपुष्ट प्रमाण है कि वायु मंडलीय प्रक्रियाओं का गहरा ज्ञान उस समय भी आस्तित्व में था !कहा गया है - आदित्याज्जायते वृष्टिः अर्थात सूर्य से वर्षा का  निर्माण होता है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देश के राजस्व और राहत कार्य के लिए वर्षा के वैज्ञानिक मापन और उसके उपयोग की सूची सम्मिलित है ! सातवीं शताब्दी के आसपास कालिदास ने अपने महाकाव्य 'मेघदूत' के माध्यम से भारत के मध्य भाग में मानसून आने के समय का संकेत किया है एवं बादलों के मार्ग का भी वर्णन किया है !1753 में महान मौसम वैज्ञानिक महाकवि 'घाघ' हुए जिनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों से प्रभावित जन जन की जबान पर घाघ की कहावतें विद्यमान हैं |कुलमिलाकर भारत में मौसम विज्ञान की शुरुआत अत्यंत प्राचीन काल में हो गई थी |
      उस समय विदेशी विद्वान भी बिना यंत्रों के ही मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान सफलता पूर्वक लगाया करते थे | विदेशी विद्वानों में भी 350 ईसा पूर्व में अरस्तु ने मौसम विज्ञान पर लिखा था।बताया जाता है कि 15अक्टूबर 1987 को ब्रिटेन में एक औरत ने एक टी.वी. स्टेशन को बताया कि उसने सुना है कि तूफान आ रहा है। लेकिन मौसम का अनुमान लगानेवाले ने अपने दर्शकों को पूरा भरोसा दिलाया: “चिंता मत कीजिए। कोई तूफान नहीं आनेवाला है।” मगर उसी रात को दक्षिणी इंग्लैंड पर ऐसा भयंकर तूफान आया जिससे भारी जनधन की हानि हुई थी |
      ब्रिटेन के मौसम-विज्ञानी लूइस रिचर्डसन ने सोचा चूँकि वायुमंडल भौतिक नियमों पर आधारित है, तो क्यों न वह मौसम का अनुमान लगाने में गणित का इस्तेमाल करे, लेकिन गणित के फार्मूले इतने पेचीदा थे और हिसाब करने में इतना समय ज़ाया होता था |इसलिए उनकी वो प्रक्रिया प्रचलन में नहीं आ सकी ,किंतु गणित से मौसम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसा वे भी मानते थे उसकी सरल प्रक्रिया नहीं खोज पाए ये और बात है |
       कुल मिलाकर भारतवर्ष में ऋषियों मुनियों ने सदियों पहले ही वो ज्ञान अर्जित कर लिया था जिससे मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणी की जाती रही है | उन दिनों योरोप ने मौसमविज्ञान की ओर  पहला कदम भी नहीं बढ़ाया था जब अमेरिका में विज्ञान का कोई नाम लेवा भी नहीं था तब ही घाघ जैसे मौसम वैज्ञानिक ने संसार के सर्वाधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक वर्षावेत्ता की ख्याति अर्जित कर ली थी वे सटीक एवं अचूक भविष्यवाणी किया करते थे |
         आधुनिक मौसम विज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता !
 
   भारत में इन दिनों पाश्चात्य जगत के विज्ञान का अंधानुशरण हो रहा है मानसून के मन में क्या है इसे जानने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में बनी मशीनों का उपयोग किया जा रहा है |विदेशी मशीनों के उपयोग किए  जाने मात्र से इसे विज्ञान सिद्ध कर दिया जाता है इससे परिणाम कितना निकल पाता  है इसके विषय में भी समीक्षा की जानी चाहिए |
     ये सारी कसरत कवायद जिस मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए की जाती है इतनी भारी भरकम मशीनों का उपयोग किया जाता है मंत्रालय संचालन किया जाता है अधिकारी कर्मचारी वैज्ञानिक आदि नियुक्त किए जाते हैं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धन राशि खर्च की जाती है इसके बाद भी उनके द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के नाम पर कई बार मूसलाधार बारिश होने की भविष्यवाणी की जाती है और बूंदाबांदी होकर निकल जाता है कई बार बूँदा बाँदी की भविष्यवाणी की जाती है और मूसलाधार बारिश हो जाती है | ऐसी परिस्थिति में सरकार का कर्तव्य बन जाता है कि वो अपने मौसम पूर्वानुमान संबंधी अनुसंधान प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे |
      अपने देश में ही मानसून की चाल को सही सही पढ़ने वाला ज्ञान विद्यमान है | जिन दिनों मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें नहीं थीं आधुनिक विज्ञान सक्रिय नहीं था उस समय भी महान पूर्वानुमान वेत्ता 'घाघ' ने प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप के बिना प्रकृति को पढ़ने की व्यवस्था खोज ली थी उन प्राचीन पद्धतियों का प्रयोग किए जाने में आज संकोच क्यों है ?
       निकट समय में घटित हुई ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ -

       ये उस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हैं जिनका या तो पूर्वानुमान नहीं किया जा सका और यदि किया भी गया तो गलत निकल गया | विशेष बात यह है कि ये भूकंप जैसी उस प्रकार की घटनाएँ नहीं हैं जिनके विषय में विश्व वैज्ञानिकों ने पहले से कह रखा है कि हम पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ हैं अपितु ये उस प्रकार की वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगा लेने का दावा किया जाता है फिर भी इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका या लगाए जाने वाले पूर्वानुमान भी गलत निकल गए !यदि इनके विषय में कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो संभवतः ऐसा नहीं होता !आप स्वयं देखिए -
  1. केदारनाथ जी में  16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए  किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को कम किया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! 
  2. 21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी ! 
  3.  बनारस में 28 जून 2015 को एवं 16 जुलाई 2015 को भीषण बारिश हुई जिसके कारण बनारस में संभावित तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की सभाएँ लगातार दो करनी थीं किंतु वर्षा अधिक होने के कारण दोनों सभाएँ रद्द कर देनी पड़ी थीं जिसके विषय में पहले कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
  4. सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में कई दिनों तक लगातार भीषण बारिश हुई थी जिसके कारण मद्रास में भीषण बाढ़ से त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था !
  5.  सन 2016 के अप्रैल मई आदि में भारत में अधिक गर्मी पड़ने की घटना घटित हुई थी  नदी कुएँ तालाब आदि तेजी से सूखते चले जा रहे थे ट्रैन से कुछ स्थानों पर पानी भेजा गया था |इसी समय में  आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक संख्या में घटित हुई थीं इसलिए विहार सरकार की ओर से दिन में हवन  न करने एवं चूल्हा न जलाने की सलाह दी गई थी ,किंतु समाज यदि जानना चाहे कि ऐसा इस वर्ष हुआ क्यों?इसका कारण क्या था तथा ऐसा कब तक होता रहेगा ? इनविषयों में कभी कुछ भी नहीं बताया जा सका था | 
  6.  2 मई 2018 को पूर्वी भारत में भीषण आँधी तूफान आया उसके बाद भी उसी मई में कुछ बड़े आँधी तूफ़ान और भी आए जिनमें बड़ी संख्या में जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी | 
  7.   7 और 8 मई 2018 को बड़े आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई थी  जिस कारण दिल्ली और उसके आसपास के स्कूल कालेज बंद करा दिए गए थे किंतु उस दिन कोई तूफ़ान क्या आँधी भी नहीं आई  ऐसा कई बार हुआ क्यों ? 
  8. केरल की भीषण बाढ़ - 7 से 15 अगस्त 2018 तक  केरल में भीषण बरसात हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था जबकि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग के द्वारा अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी जो गलत साबित हुई |बाद में भी इसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया जा सका था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया था |  
  9.  17 अप्रैल 2019 को मध्यभारत में अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था ! 
  10. सितंबर 2019 के अंतिम सप्ताह में बिहार में भीषण बारिश और बाढ़ की घटना घटित हुई जिसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया है | इस भीषण बारिस का पूर्वानुमान एवं ऐसा होने का विश्वसनीय कारण मौसम विभाग के द्वारा न बता पाने एवं ढुलमुल भविष्यवाणियों से निराश मुख्यमंत्री एवं केंद्र के एक राज्यमंत्री ने ऐसी भीषण बारिश होने का कारण  हथिया नक्षत्र को बताया था !
       ऐसी और भी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान बताया नहीं जा सका है |उनमें भी जनधन की हानि हुई है उनके विषय में यदि पूर्वानुमान पता होते तो उनके द्वारा हुई जन धन संबंधी हानि की मात्रा को कुछ कम किया जा सकता था | 
     मानसून आने जाने की तारीखें एक आध बार छोड़कर कभी सच नहीं हुईं अब कहा जा रहा है मौसम चक्र बदल गया है इसलिए मानसून आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जाएगा | ऐसा ही सभी जगह किया जाता है |
                मौसमपूर्वानुमान के अभाव से होने वाले नुक्सान !

       वर्षा के बिना सरकारें नहीं चलती हैं देश की आयव्यय का लेखा जोखा वजट का पूरा तामझाम  मौसम की मर्जी पर निर्भर करता है | विज्ञान मौसम की चाल को पढ़ने का सही एवं सटीक विज्ञान नहीं खोज पाया है जिसके कारण कृषि योजना बनाने में किसानों को कठिनाई आती है संभवतः इसलिए किसानों का हर वर्ष नुक्सान होता है इसीलिए हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या करते हैं क्योंकि पहले ऐसा नहीं होते देखा जाता था ऐसा अब क्यों होने लगा इसका कारण भी खोजना भी अनुसंधान का विषय है | 
    वर्तमान वैज्ञानिक अभी तक मानसून का तिलस्म नहीं तोड़ पाए हैं और न ही मौसम विज्ञान का मर्म ही समझ पाए हैं | कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव ही नहीं हैं  |महावैज्ञानिक प्राचीन ऋषियों मुनियों ने अकाल और सुकाल सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की थी !देशवासी इस पर विश्वास  करते हैं किंतु सरकार इसे नहीं मानती है मुझे विश्वास है कि प्राचीन विज्ञान के हिसाब से यदि पूर्वानुमान लगाया जाता तो हजारों किसानों  की जान बच सकती थी |
     आपदा प्रबंधन  की दृष्टि से भी ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का अभाव अत्यंत चिंतनीय है उचित होगा कि मौसम संबंधी अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो समय निरर्थक बीतते आया है उसके विषय में कुछ सार्थक पहल की जाए और मौसम संबंधी वास्तविक प्राकृतिक विज्ञान का अनुसंधान किया जाए | 
      विशेष बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी तब से लेकर अभी तक लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं| प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने के विषय में हमारा कितना विकास हुआ है | अभी भी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हम या तो पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं और यदि लगा पाते हैं तो गलत निकल जाते हैं |
      किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है | 

     5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |अब भी लगभग वही स्थिति है अभी हाल के वर्षों में जितने बार भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |
  
ऐसी परिस्थिति में वेद विज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी अनुसंधान सरकार की देख रेख में पुनः प्रारंभ किए जाएँ तो इससे मौसम संबंधी पूर्वानुमान  में क्रांति लाई जा सकती है | 

                         मेरे द्वारा किए गए कुछ पूर्वानुमान -
  मैं वेद विज्ञान के आधार पर मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने पर पिछले 25 वर्षों से अनुसंधान करते आ रहे हैं | प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से पूर्व अगले महीने के पूर्वानुमान पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ के जे रमेश जी के जीमेल पर भेज दिया करते थे इसके बाद प्रधानमंत्री जी के मेल पर भेज दिया करते हैं | 
       भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ के जे रमेश जी उस समय कहा था कि हमारे पूर्वानुमान यदि सही निकलेंगे तो वो मुझे लिखित फीडबैक देंगे !इसलिए अपने पूर्वानुमान परीक्षणार्थ मैं उन्हें भेज रहा था जो सही निकलते जा रहे थे !इसी विषय में मेरी उनसे अक्सर बात भी होती थी | इसी क्रम में अगस्त 2018 के विषय में मैंने जुलाई में ही उनके जीमेल पर पूर्वानुमान डाल दिया था जिसमें 1 से 11 और 7 से 14 अगस्त में बीच दक्षिण भारत में भीषण वर्षात होने का पूर्वानुमान लिखा था जिसमें कुछ दशकों का रिकार्ड टूटने की बात भी लिखी थी | जबकि मौसम विज्ञान विभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी उसमें अगस्त और सितंबर में सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी | जबकि इसी बीच केरल आदि दक्षिण भारत में बहुत अधिक वर्षा हुई थी | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी वो भविष्यवाणी गलत हो गई थी मेरे द्वारा अपनी भविष्यवाणी की  तुलना उससे किए जाने के कारण उनसे  हमारी बातचीत बंद हो गई | ये वो दोनों जीमेल मैं आपको भेज रहा हूँ | इसके विषय में उन्होंने जो फीडबैक दिया है भले उसमें हमारी भविष्यवाणियों को सही न स्वीकार किया गया हो किंतु मैं उन्हें भी आपको भेज रहा हूँ | 
       इसी विषय में मैं एक दिन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री जी से मिला उन्होंने मुझे सेकेटरी साहब के पास यह कहते हुए भेजा कि यदि कुछ हो सकता होगा तो वही करेंगे !मैं राजीवन जी के पास गया तो उन्होंने एडवाइजर गोपाल रमन जी से मिलाया और हमारी बात सुनने को कहा , गोपाल रमन जी ने हमसे वो तकनीक और वह प्रक्रिया लिखकर देने के लिए कहा जिसके आधार पर और जिस प्रकार से मैं पूर्वानुमान लगाता हूँ !मैंने ज्योतिष आदि गणित पक्ष को उद्धृत  किया तो वहाँ ज्योतिष के कुछ पंचांग रखे हुए थे उनकी ओर इशारा करते हुए उनके एक सहयोगी पांडेय जीने कहा कि अमावस्या संक्रांति के आसपास वर्षा होती है इसके अलावा  मौसम का पूर्वानुमान तुम कैसे लगाते हो !इससे लगा कि वहाँ पूर्वानुमान लगाने में ज्योतिष पंचांगों का उपयोग तो किया जाता है किंतु स्वीकार नहीं किया जाता है कि यह भी विज्ञान है | 
     इसके  अतिरिक्त स्काईमेट के  वैज्ञानिक डॉ रजनीश जी को भी मैं पूर्वानुमान भेजता था !उन्होंने मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमानों की सच्चाई स्वीकार करते हुए  आपदा प्रबंधन विभाग को एक पत्र भी लिखा था मैं वो भी संलग्न कर रहा हूँ | 
    मैंने वायु प्रदूषण के विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे भी काफी हद तक सही निकले हैं जिससे यह बात प्रमाणित होती है कि वायु प्रदूषण बढ़ने में समय की भी बड़ी भूमिका है | मैं वो मेल भी आपको भेज रहा हूँ | 
     आँधी तूफानों एवं चक्रवातों के विषय में मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान लगभग सच सिद्ध हो रहे हैं | इसके अतिरिक्त मैं दिसंबर 2019 महीने के विषय में भी पूर्वानुमान आपके पास भेज रहा हूँ | 
        आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप इस विधा पर भी विचार करें एवं इसी विषय में मुझे मिलने के लिए समय दें !


 
 

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