Friday, December 13, 2019

पूर्वानुमान

     पूर्वानुमान लगा लिए जाने से भविष्य में घटित होने वाली अच्छी घटनाओं का लाभ अधिक से अधिक लिया जा सकता है और बुरी घटनाओं के दुष्प्रभाव से बचने का प्रयास किया जा सकता है कुछ सहने की हिम्मत की जा सकती है | 
     किसी भी घटना से संबंधित यदि पूर्वानुमान पता नहीं होंगे तो अच्छी संभावनाओं वाला समय भी यूँ ही बीतता चला जाएगा जानकारी के अभाव में उसका अच्छा लाभ नहीं उठाया जा सकेगा एवं बुरे समय में बचाव के प्रयास नहीं किए जा सकेंगे और उस प्रतिकूलता को सहने के लिए भी मानसिक रूप से तैयार होना संभव नहीं हो पाएगा | इसलिए पूर्वानुमानों की आवश्यकता प्रत्येक परिस्थिति में रहती है |
घटनाओं के कारण को समझे बिना उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है !
     संसार की प्रत्येक वस्तु में या प्रत्येक जीवधारी में प्रतिपल कुछ न कुछ बदलाव होते देखे जा रहे हैं इन बदलाओं में से जो प्रकृति में होते हैं उन्हें प्राकृतिक मान लिया जाता है और जिन घटनाओं में मनुष्यकृत प्रयास सम्मिलित होते हैं उन घटनाओं को मनुष्यकृत मान लिया जाता है किंतु वे वास्तव में मनुष्यकृत हैं या वे भी प्राकृतिक ही हैं या उनमें कितनी प्राकृतिक और कितनी मनुष्यकृत हैं इसका निर्णय अनुसंधान पूर्वक किया जाना अभी तक अवशेष है | प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है इसलिए मनुष्य प्रयास तो किया करता है किंतु जो घटनाएँ घटित होती हैं वे अपने सहज प्रवाह में घटित होती जा रही हैं या मनुष्यकृत प्रयासों के परिणाम भी उन घटनाओं के घटित होने में कुछ सहायक हुए हैं या नहीं |
       महानगरों में कुछ लोग आपस में लड़ झगड़ जाते हैं या किसी अन्य प्रकार से उनको चोट लग जाती है वे घायल हो जाते हैं तो बड़े बड़े चिकित्सालयों में जाकर स्वस्थ हो जाते हैं | दूसरी ओर जंगलों में रहने वाले बनवासी आदिवासी लोग या जंगलों में खुला घूमने वाले जंगली जानवर आदि भी आपस में लड़ते भिड़ते घायल होते हैं वे बिना किसी चिकित्सा के भी स्वस्थ हो जाते हैं उनके घाव भर जाते हैं|ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकीय लाभ एक को मिले दूसरे को नहीं मिले फिर भी स्वस्थ तो दोनों हुए |महानगरीय लोगों को मिले स्वास्थ्यलाभ को यदि मनुष्यकृत प्रयासों का फल मान लिया जाए तो जंगलों में घायल हुए लोगों के स्वास्थ्य लाभ होने का कारण क्या हो सकता है |
      ऐसी परिस्थिति में घायल दोनों होते हैं और स्वस्थ दोनों होते हैं इसलिए उन दोनों के स्वस्थ होने का कारण भी कोई एक ही होगा जबकि चिकित्सा को यदि कारण मान लिया जाए तो वो एक को मिली दूसरे को नहीं मिली इस लिए उन दोनों के स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया में अंतर होना चाहिए था यदि ऐसा नहीं हुआ | इसका मतलब है कि चकित्सा जनित प्रयास इनके स्वास्थ्यलाभ का कारण नहीं है और यदि चिकित्सा नहीं है तो और दूसरा ऐसा कारण  क्या है जिसका समान योगदान दोनों के स्वस्थ होने में रहा हो वह सहायक कारण यदि मनुष्यकृत है तब तो इन दोनों के स्वस्थ होने को मनुष्य कृत प्रयास का फल माना जा सकता है अन्यथा नहीं | इसलिए स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने वाले मुख्य कारण की खोज होनी चाहिए | 
    इसी प्रकार से ऐसे और भी ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें जिस प्रकार की इच्छा लेकर मनुष्य प्रयासपूर्वक सम्मिलित होता है उसमें कुछ कार्य उस प्रकार के हो जाते हैं जैसे वह प्रयास करता है किंतु प्रयास करने के बाद भी कुछ कार्य वैसे नहीं हो पाते हैं और कुछ तो उनके विपरीत हो जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में कार्य होने का श्रेय यदि प्रयास करने वाले को दे दिया जाए तो कार्य न होना भी तो कार्य का ही एक स्वरूप है उसका कर्ता किसे माना जाएगा ?
    गंगा जी की तेज धार में एक हरा भरा पेड़ बहता जा रहा था उसे देखकर एक भूखा हाथी उस पेड़ को बाहर खींच लाने के लिए गंगा जी में उतर गया और पेड़ को पकड़कर खींचने लगा किंतु वह  खींच नहीं पाया अपितु उस पेड़ के साथ ही धारा के वेग में बहता चला गया |
     ऐसी परिस्थिति में वह हाथी यदि पेड़ को खींच कर ले आने में सफल होता तब तो इस कार्य के होने का श्रेय उस हाथी को मिल जाता किंतु हाथी उस पेड़ को चाहकर भी खींच कर बाहर नहीं ला पाया !इसका मतलब वह सफल नहीं अपितु असफल हुआ जो सफलता का विलोम है किंतु इसी प्रकरण में सफलता और असफलता से अलग  तीसरी घटना यह घटित हुई कि वह  हाथी उस पेड़ के साथ गंगा जी की प्रबलधार में बहते चला गया यह जो कार्य हुआ उसका कारण किसे माना जाए ? ऐसे कारण की खोज होनी चाहिए |क्योंकि कार्य करने के प्रयास में तो केवल हाथी लगा हुआ था जबकि गंगा जी तो अपने सहज प्रवाह में बहती चली जा रही थीं इसमें हाथी स्वतः आया और बहते चला गया | हाथी का उद्देश्य बहना नहीं था और न ही उसने बहाने के लिए कोई प्रयास ही किया अपितु न बहने के लिए सारे प्रयास करता रहा | उस पेड़ ने भी हाथी को बहाने का प्रयास नहीं किया वह बेचारा तो खुद ही परबश था और गंगा की धारा ने  भी उसे बहाने का प्रयास नहीं किया अपितु वह उसका अपना स्वतंत्र प्रवाह था जिसका उद्देश्य हाथी को बहाना नहीं था |  इस सबके बाद हाथी के बहने के लिए जिम्मेदार वह वास्तविक कारण क्या था जो तट पर खड़े हुए हाथी को बहाकर ले जाने के लिए गंगा जी के अंदर खींच लाया और उसे गंगा जी में बहा देने में सफल हुआ |
    ऐसे ही कोई व्यक्ति हवा में फायरिंग कर रहा होता है वह गोली किसी को लग जाती है और वह मर जाता है जबकि बंदूक चलाने वाले का उद्देश्य यह नहीं था और न ही उसने इसके लिए प्रयास ही किया था किंतु वह मर गया उस व्यक्ति के मरने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या था ?
     कुल मिलाककर ऐसी बहुत सारी घटनाएँ इस संसार में घटित होते देखी जा सकती हैं जिनके लिए प्रयास भी नहीं किया गया होता है फिर भी वे घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं कुछ घटनाओं में तो प्रयासों के विरुद्ध घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | ऐसी  परिस्थिति में प्रयासकर्ता अपने को असफल मान लेता है |इसके बाद भी जो कार्य सफल हुआ है | ऐसी परिस्थिति में प्रयास करने वालों में से कुछ लोग अपने को सफल और कुछ लोग अपने को असफल मान लेते हैं जिनके प्रयास के अनुकूल कार्य हुआ उन्हें लगता है कि उनका प्रयास सफल हुआ है किंतु यदि उस कार्य को करने या होने के लिए उन लोगों को कर्ता मान लिया  जाए तब तो प्रयास तो उन दोनों प्रकार की मानसिकता वालों ने ही किया है फिर परिणाम किसी एक के ही पक्ष में क्यों चले गए दूसरे के द्वारा किए गए प्रयास क्या निरर्थक हो गए और यदि हाँ तो ऐसा होने का कारण क्या था ?
       ऐसी परिस्थिति में ऐसा माना जा सकता है कि कोई भी कार्य तो उस अज्ञात कर्ता के द्वारा लिखी गई पट कथा के अनुशार ही हो रहा होता है जिसके करने से कार्य होता है न करने से नहीं होता है इसलिए वास्तविक कर्ता वही है |संसार के प्रत्येक विषय में उसी की इच्छा का सम्मान होता है उसके द्वारा किये जाने वाले प्रयास ही सफल होते देखे जाते हैं | वो दिखाई पड़े या न पड़े किंतु वह जो करता है वही होता है |
     इसीलिए जहाँ मनुष्य रूप में कोई प्रतीकात्मक कर्ता दिखाई नहीं पड़ा रहा होता है ऐसे कार्य भी होते देखे जाते हैं वर्षा होती है बाढ़ आती है आँधी तूफ़ान घटित होता है ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं ये भी तो एक प्रकार का कार्य ही है इसलिए इसका भी कोई न कोई कर्ता अवश्य होगा  और वह चेतन होगा जिसके सभी प्रयत्न मानवता के अधिकाँश भाग के लिए सहयोगी सिद्ध होते हैं | इसीलिये प्राकृतिक घटनाएँ जिसकिसी भी रूप में घटित होती हैं उनका स्वरूप अत्यधिक हिंसक भी हो सकता था किंतु ऐसा कभी नहीं होते देखा जाता है | इसलिए शरीर और संसार के प्रत्येक अंश को सही सही समझने के लिए उस कर्ता और उसकी कार्यप्रणाली को खोजना ही होगा यही तो विज्ञान है |इसे खोजने की दो ही प्रक्रियाएँ हैं एक तो उससे मिलकर उसकी कार्यपद्धति की जानकारी ली जाए और दूसरा उसकी कार्यशैली के अनुशार नियमबद्ध ढंग से उसकी प्रक्रिया को समझा जाए क्योंकि शरीर और संसार से संबंधित प्रत्येक घटना या कार्य को करने की पटकथा वही कर्ता ही तैयार करता है उसी के अनुशार वह घटना घटित होते देखी जाती है |
   इसलिए ऐसी सभी प्रकार की घटनाओं के घटित होने के वास्तविक कारणों को खोजे बिना उस विषय को समझपाना संभव नहीं है | ऐसी परिस्थिति में  किसी विषय के वास्तविक कारण को खोजे बिना केवल कल्पना के आधार पर जिस किसी भी वस्तु या परिस्थिति को कारण मान लेना अनुसंधान की दृष्टि से उचित नहीं होगा |
         मनुष्य केवल  प्रयास कर सकता है परिणाम देना उसका काम नहीं !
   चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा कर सकता है किंतु वह स्वस्थ होगा या नहीं होगा रोगी रहेगा या मर जाएगा इस विषय में उसका कोई बश नहीं चलता है |जीवन के सभी क्षेत्रों में ऐसा ही होते देखा जाता है |  मनुष्य केवल प्रयास किया करता है किंतु उसके प्रयास का संबंध उसकार्य के होने या न होने से नहीं होता है प्रयास केवल प्रयास करने तक ही सीमित रहता है यह प्रकृति का एक प्रकार है इससे बिल्कुल अलग प्रकृति का अपना एक दूसरा स्वतंत्र स्वरूप है जो कार्य के होने  या न होने के रूप में दिखाई पड़ता है |
    जो लोगों के जीवन में घटित होते हैं उन्हें मनुष्यकृत मान लिया जाता है क्योंकि किसी मनुष्य के जीवन में जो कुछ भी घटित होते देखा जा रहा है वह भी अपने आप ही घटित हो रहा है किंतु
    कोई मनुष्य जिस काम को करना चाहता है वो काम करने के लिए प्रयास भी करता है उसकी सीमा यहीं तक होती है | दूसरी ओर वह काम होगा या नहीं होगा यह जिम्मेदारी प्रकृति की दूसरी शक्ति सँभाल रही होती है इसका निर्णय वह शक्ति करेगी | प्रयास करने वाला और परिणाम देने वाला ये किसी नदी के दो तटों पर खड़े किए जाने वाले खंभों (पिलर्स) के समान हैं और परिणाम उस पर बने पुल के समान है |किसी प्रयास का परिणाम हमेंशा प्राणवान अर्थात सजीव होता है सजीव होते ही वह एक आयु की सीमा में बँध जाता है अर्थात परिणाम स्वरूप में प्राप्त हुआ वह आकार प्रकार आदि परिवर्तित होते होते एक न एक दिन विनाश को प्राप्त हो जाता है |
     प्रयास करने वाला उस नदी का एक तट मात्र होता है परिणाम प्राप्त करने की क्षमता उस प्रयास करने वाले के हाथ में नहीं होती है |यही कारण है कि आम के पेड़ों में जितने फूल लगते हैं उन सभी में फल नहीं लगते !बहुत फूल निरर्थक ही झड़ जाते हैं | इसीप्रकार से गर्भ हेतु किए जाने वाले प्रत्येक प्रयास से संतान लाभ होगा ही यह आवश्यक नहीं होता है |चिकित्सक जितने रोगियों की चिकित्सा करते हैं उनमें से सब के सब रोगी स्वस्थ ही नहीं हो जाते हैं | वैज्ञानिक जितने भी अनुसंधान करते हैं वे सब के सब सफल ही नहीं हो जाते हैं | इसी प्रकार से   मनुष्य जीवन से जुड़ी और बहुत सारे प्रयास होते हैं जो प्रयास करने वाले की इच्छा के अनुसार सफल नहीं होते हैं |  
    कुछ घटनाओं का संबंध कुछ दूसरी घटनाओं से होता है यह सच होते हुए भी एक साथ या एक स्थान पर घटित होने वाली दो घटनाओं को घटित होते देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि इनका  आपस में कोई संबंध होगा ही !संभव यह भी है कि वे दोनों एक साथ या एक स्थान पर घटित होने वाली घटनाएँ केवल संयोगवश ही एक दूसरे के साथ घटित हो रही हों !किसी एक स्थान पर किसी प्रयोजन से से खड़े एक स्त्री एक पुरुष को देखकर ये निश्चय नहीं किया जा सकता है कि इनका आपस में भाई बहन पति पत्नी आदि कोई संबंध होगा ही !कई बार बस स्टैंड जैसी सामूहिक जगहों पर अक्सर ऐसा होते देखा जाता है जबकि उन दोनों को एक दूसरे के विषय में कुछ पता भी नहीं होता है दोनों अपनी अपनी बस का इन्तजार कर रहे होते हैं | ऐसे ही प्रकृति या जीवन में कुछ घटनाएँ एक दूसरे के आगे पीछे या साथ साथ घटित होते देखकर वे एक दूसरे से संबंधित लगने लगती हैं किंतु ऐसा होता नहीं है |
    यह जानते हुए भी लोग कुछ घटनाओं का संबंध कुछ घटनाओं से जोड़ दिया करते हैं मनुष्यों का स्वभाव ही संबंधों को जोड़ने वाला है इसलिए वे प्राकृतिक विषयों में भी एक दूसरे के साथ संबंधों को जोड़ना नहीं भूलते हैं | ऐसा ही कुछ दृश्य हैं | प्रातः काल होने पर संयोगवश एक ओर से सूर्य निकल रहा होता है और दूसरी ओर कमल खिल रहा होता है इसीलिए समझा जाने लगा कि सूर्य उगने से कमल खिलते हैं जबकि दोनों अलग अलग प्रकार की प्रकृति के भिन्न भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए घटित होने वाली घटनाएँ हैं |
      इसीप्रकार से बसंत ऋतु का समय आता है पेड़ों में पतझड़ होकर नए पत्ते निकलने लगते हैं कोयलें कूकने लगती हैं ऐसी घटनाओं का आपस में एक दूसरे से कैसे कोई संबंध जोड़ा जा सकता है |
      समय बीतने के क्रम में क्रमिक रूप से चंद्रमा एक एक कला प्रतिदिन घटता या बढ़ता रहता है इसी क्रम में चंद्रमा का बिंब किसी दिन बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ता है और किसी दिन पूर्ण दिखाई पड़ रहा होता है चंद्रमा कब कितना दिखाई पड़ता है ये बात और है किंतु इस कम अधिक दिखाई पड़ने से चंद्रमा के गुण, स्वभाव प्रभाव आदि हमेंशा एक समान ही रहते हैं उसमें आकर्षण विकर्षण क्षमता भी एक समान ही रहती है उसमें यहाँ से कम या अधिक दिखाई पड़ने का कोई असर नहीं होता है |इसके बाद भी आकाश में जब चंद्रमा के पूर्ण या शून्य दिखाई देने की घटना घटती है वह अमावस्या पूर्णिमा आदि का समय होता है उसीसमय समुद्र में जब ज्वार भाँटा की घटना घटती है दोनों का समय एक होने से उन दोनों का संबंध आपस में जोड़ते हुए यह मान लिया जाता है कि ज्वार भाँटा जैसी घटनाएँ घटित होने का कारण चंद्रमा का कम और अधिक दिखाई देना ही है |
     इसी प्रकार से सूर्य और चंद्र ग्रहण अक्सर तभी घटित होते थे जब अमावस्या या पूर्णिमा आदि तिथियाँ होती थीं इससे यह मान लिया गया कि सूर्य और चंद्र ग्रहण अमावस्या और पूर्णिमा आदि तिथियों में ही घटित होते हैं यह धारणा बहुत लंबे समय तक चलती रही इसके बाद एक बार त्रयोदशी तिथि को ग्रहण पड़ा तब इस बात का भ्रम समाप्त हुआ कि सूर्य और चंद्र ग्रहण का संबंध अमावस्या या पूर्णिमा आदि तिथियों से है |
        इसी प्रकार से वर्तमान समय में दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित ईक्वाडोर और पेरु देशों के तटीय समुद्री जल में किसी किसी वर्ष कुछ समय के लिए कुछ गर्म जलधारा बहने लगती है इसका कोई निश्चित वर्ष नहीं है कि किस वर्ष ऐसा होगा और किस वर्ष नहीं होगा |
 एलनिनो - इसे एल नीनो प्रभाव कहा जाता है जो कि विश्वव्यापी मौसम पद्धतियों के विनाशकारी व्यवधानों के लिए जिम्मेदार है।[2] एक बार शुरू होने पर यह प्रक्रिया कई सप्ताह या महीनों चलती है। एल-नीनो अक्सर दस साल में दो बार आती है| वर्षा के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं। परिणामस्वरूप विश्व के ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा वर्षा होने लगती है। कभी-कभी इसके विपरीत भी होता है । यह घटना दक्षिण अमेरिका में तो भारी वर्षा करवाती है लेकिन ऑस्ट्रेलिया और इन्डोनेशिया में सूखे की स्थिति को उत्पन्न कर देती है

एलनिनो गर्म जलधारा है जिसके आगमन पर सागरीय जल का तापमान सामान्य से ३-४° बढ़ जाता है। पेरू के तट के पास जल ठंडा होता है एवं पोषक-तत्वों से समृद्ध होता है जो कि प्राथमिक उत्पादकों, विविध समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों एवं प्रमुख मछलियों को जीवन प्रदान करता है। एल नीनो के दौरान, व्यापारिक पवनें मध्य एवं पश्चिमी प्रशांत महासागर में शांत होती है। इससे गर्म जल को सतह पर जमा होने में मदद मिलती है जिसके कारण ठंडे जल के जमाव के कारण पैदा हुए पोषक तत्वों को नीचे खिसकना पड़ता है और प्लवक जीवों एवं अन्य जलीय जीवों जैसे मछलियों का नाश होता है तथा अनेक समुद्री पक्षियों को भोजन की कमी होती है। और कभी-कभी तीन बार भी। एल-नीनो हवाओं के दिशा बदलने, कमजोर पड़ने तथा समुद्र के सतही जल के ताप में बढोत्तरी की विशेष भूमिका निभाती है। एल-नीनो का एक प्रभाव यह होता है कि  यह पेरु की ठंडी जलधारा को विस्थापित करके गरम जलधारा को विकसित करती है ।[3]



 


लोगों को लगने लगता है कि

उसका



 किसी मनुष्य के अपने जीवन में उस मनुष्य का अपना अधिकार कितना होता है अर्थात जीवन में दो प्रकार की घटनाएँ घटित होती हैं एक वे जिनके लिए वो प्रयास करता है दूसरी वे जिनके लिए वो प्रयास नहीं करता है वैसा हो जाने से उसे उसके प्रयास से घटित होती हैं तो दूसरी वे जिनके लिए वो न तो इच्छा करता है और न ही कोई प्रयास करता है !

जो व्यक्ति व्यापार करता है उसमें उसे लाभ और हानि दोनों होने की संभावना रहती है इसके बाद भी वो प्रयास तो लाभ के लिए ही करता है किंतु अनुमान दोनों प्रकार के लगाकर चलता है |उसे लगता है कि इस काम से लाभ और हानि दोनों हो सकते हैं इसलिए वह दोनों प्रकार का पूर्वानुमान लगाकर चलता है और दोनों प्रकार की परिस्थितियाँ सहने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है | 
     विशेष बात यह है कि कोई मनुष्य जिसप्रकार के लाभ के लिए जैसी सोच बनाकर जो कार्य करता है यदि काम वैसा ही अर्थात उसकी इच्छा के अनुकूल ही हो जाता है तब तो काम करने का श्रेय उस मनुष्य को यह सोचकर मिलना चाहिए कि वह मनुष्य काम करने में सक्षम है इसलिए वह व्यक्ति ही जो करेगा वही होगा अन्यथा नहीं होगा तो कर्ता उस व्यक्ति को माना जा सकता है |
       ऐसे कार्यों का पूर्वानुमान लगाने के लिए उस व्यक्ति से बात व्यवहार करके उसके स्वभाव को समझकर उसके प्रयासों को देखकर उसकी आवश्यकताओं का अनुभव करके उसकी शक्ति संपन्नता आदि सभी प्रकार की क्षमताओं को ध्यान में रख कर ही उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
      प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत कार्य ऐसे घटित होते हैं जो वो करना नहीं चाहता जिनके विषय में उसने प्रयास करना तो दूर सोचा भी नहीं होता है !कई कार्य तो ऐसे हो जाते हैं जिन्हें वह प्रयास पूर्वक अपने जीवन की संपूर्ण क्षमता लगाकर भी नहीं कर सकता है फिर भी वे उसके जीवन में घटित हो रहे होते हैं वो कार्य आखिर कौन कर रहा होता है किसकी इच्छा से हो रहे होते हैं उनमें किसकी ताकत लग रही होती है |
       कोई व्यक्ति दुखी होता है, पराजित होता है रोगी होता है मर जाता है ऐसी घटनाएँ जिस व्यक्ति के जीवन में घटित हो रही होती हैं उसने ऐसी इच्छा नहीं की इसके लिए प्रयास भी नहीं किया और वह ऐसा सहना भी नहीं चाहता था फिर भी उसके जीवन में ऐसी जो घटनाएँ घटित हो रही हैं उसका कर्ता कौन है जिसका इतना अधिक हस्तक्षेप किसी व्यक्ति के जीवन में होता है और वो उस कर्ता के विषय में जानता भी नहीं है और यह सच है कि उसे जब तक उसके जीवन में हस्तक्षेप करने वाले कर्ता के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होगी तब तक कोई व्यक्ति इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा सकता है कि उसके जीवन में अगले क्षण क्या घटित होने वाला है | 
        किसी के जीवन में हस्तक्षेप करने वाले कर्ता की खोज किए बिना चिकित्सक लोग जिस रोगी को स्वस्थ करने के लिए चिकित्सा कर रहे होते हैं उस रोगी की अगले क्षण मृत्यु होते देखी जाती है क्योंकि चिकत्सक लोग उस रोगी का शरीर तो देख रहे थे किंतु उसके जीवन के कर्ता की इच्छा का ज्ञान उन्हें नहीं था इसीलिए अगले क्षण क्या होने वाला है इसकी भनक तक उन्हें नहीं लग पायी | 
       इसी कर्तापुरुष को प्राचीन काल में सर्व सक्षम मानकर अधिष्ठातृ देवता कहा जाता था | उसी अधिष्ठातृ देवता की गतिविधियों को समझने का प्रयास करके पूर्वानुमान लगाया जाता था उसकी पूजा करके अनिष्ट को टालने का प्रयास किया जाता था | 
      समुद्र का वृक्षों का अधिष्ठातृ देवता होता है 


  मौसम के क्षेत्र में जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिक कारणों की भरमार !
        
      पृथ्वी पर जब से सृष्टि विस्तार हुआ तब से अभी तक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा एक जैसी कभी भी किसी कालखंड में घटित हुई ही नहीं हैं हमेंशा भिन्न भिन्न प्रकार से अलग अलग क्षेत्रों में घटित होती रही हैं उनका वितरण एक समान कभी भी अर्थात किसी भी कालखंड में नहीं रहा है |
    कभी कहीं वर्षा तो कभी किसी दूसरे स्थान पर वर्षा कहीं कम वर्षा तो कहीं अधिक वर्षा कहीं सूखा तो कहीं भीषण बाढ़ की घटनाएँ हमेंशा से घटित होते देखी जाती रही हैं |किसी वर्ष किसी स्थान में वर्षा अधिक होती है तो कभी किसी स्थान में सर्दी या गर्मी अधिक होते देखी जाती है तो कभी किसी कालखंड में इनका प्रभाव घटते देखा जाता है | किसी वर्ष कहीं आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ अधिक घटित होती हैं तो किसी वर्ष कम | किसी वर्ष मानसून किसी एक तारीख को आता या जाता है तो दूसरे वर्ष किन्हीं दूसरी तारीखों में मानसून के आने जाने की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |तापमान कभी बढ़ता है तो कभी घटता है |
     इसी प्रकार से कभी किसी कालखंड में ग्लेशियरों पर बर्फ जमने की प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनने लगती हैं जिस कारण से ग्लेशियर जमने लगते हैं तो कभी किसी दूसरे कालखंड में ग्लेशियरों के पिघलने के अनुकूल प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनती हैं तो ग्लेशियर पिघलने लग  जाते हैं | यदि ये पिघलेंगे नहीं तो बर्फ के बड़े बड़े पहाड़ होकर जगह घेरते चले जाएँगे दूसरी ओर नदियाँ सूखती चली जाएँगी |उससे जीवन के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति नहीं हो पाएगी भूखे प्यासे जीव जंतु कैसे रह पाएँगे कृषि संबंधी कार्यों का होना कठिन होता जाएगा |       इसलिए ग्लेशियरों के जमने और पिघलने की क्रिया भी तो सृष्टि का एक उसी प्रकार का क्रम है जैसे कभी सर्दी कभी गर्मी कभी सूखा और कभी वर्षा कभी दिन और कभी रात कभी सुख और कभी दुःख कभी स्वस्थ तो कभी अस्वस्थ कभी संयोग तो कभी वियोग कभी संपन्नता तो कभी विपन्नता  आदि देखी जाती है | ये सब सृष्टि के सभी क्षेत्रों में अनंतकाल से चलता हुआ चला आ रहा एक सुनिश्चित क्रम है | इसीलिए ग्लेशियरों पर  बर्फ का जमना जितना आवश्यक होता है उतना ही आवश्यक होता है इन पर जमी हुई बर्फ का पिघलना |कुलमिलाकर संचय और क्षय ये प्रकृति का स्वभाव है जिसका पालन सृष्टि की प्रायः प्रत्येक अवस्था में होते देखा जाता है |   
      पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लगने घटनाएँ अक्सर हजारों वर्ष पहले से घटित होती रही हैं पशु पक्षी स्थान बदल बदल कर रहते हमेंशा से देखे जा रहे हैं इसमें कुछ नया नहीं है किंतु जिन्होंने ऐसी घटनाओं को पहली बार देखा सुना है वे ऐसा होने के लिए भी जलवायु परिवर्तन को ही काल्पनिक कारण बताते देखे जाते हैं | उनके द्वारा कल्पनाएँ की जा रही हैं कि जानवर अपने अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं और जलवायु परिवर्तन का असर मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों तथा जीव जंतुओं पर भी देखने को मिल सकता है | वे कहते हैं कि जंगलों की कटाई ने इस समस्या को और अधिक बढ़ाया है जबकि आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए लकड़ी पहली भी जंगलों से ही ली जाती थी |
      प्रकृति और जीवन में कोई घटना एक जैसी एक ही स्थान पर प्रत्येक वर्ष में घटित हो ही नहीं सकती कुछ न कुछ अंतर अवश्य बना ही रहेगा ऐसा अंतर होने का कारण क्या है यह जानने के लिए लोग अपने अपने हिसाब से कल्पनाएँ करते रहे हैं |
    प्रकृति की इस अनिश्चितता या विषमता को समझने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता है किंतु विज्ञान के नाम पर ऐसा घटित होने के पीछे का काल्पनिककारण जलवायुपरिवर्तन को मान लिया जाता है समाज के ऐसे वर्ग का कहना है कि जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं ऐसे बदलावों का अनुभव पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम दोनों हो सकता है इस विषय में ऐसी उन्हें आशंका है किंतु ऐसा हुआ कब से कबतक है के बीच में है ।
     जलवायुपरिवर्तन होने के लक्षणों के विषय में कल्पना की गई है कि पिछली कुछ सदियों से हमारी जलवायु में धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है. यानी, दुनिया के विभिन्न देशों में सैकड़ों सालों से जो औसत तापमान बना हुआ था, वह अब बदल रहा है| पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व में ये बहुत अधिक या कम रहा होगा | ऐसी कल्पना की जा रही है |
     कुछ लोगों के द्वारा की गई कल्पनाएँ विज्ञान के नाम पर परोसी जा रही हैं जिनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में अचानक तेज़ी से बदलाव हो रहा है | इसीलिए अब मौसम का ढंग बदलता जा रहा है उन्हें लगने लगा है कि अब गर्मियाँ लंबी होती जा रही हैं  और सर्दियाँ छोटी होती जा रही हैं ऐसा पूरी दुनिया में हो रहा है ऐसी उन्हें आशंका है | ऐसे लोगों अपने इस भ्रम को 'जलवायुपरिवर्तन' नाम दिया है |उनके इस जलवायुपरिवर्तन  का असर किस रूप में कितना होगा इस बारे में निश्चित तौर पर उनसे कुछ कहते नहीं बन रहा है फिर भी उन्हें आशंका है कि इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है, बाढ़, तूफ़ान, सूखा और गर्म हवाएँ चलने की घटनाएँ बढ़ सकती हैं | उन्हें लगता है कि इससे एक ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा |
   

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