Friday, July 16, 2021

संस्कृत विश्व विद्यालय ही संस्कृत के सबसे बड़े शत्रु हैं !

       भ्रष्टाचार के कारण कोरोना जैसी महामारियाँ पैदा होती हैं  और भयानक स्वरूप धारण कर पाती हैं |सतर्क सरकारें ऐसी महामारियों को आने से पहले ही रोक सकती हैं पुराने राजा लोग ऐसा किया भी करते थे |

    जिस आधुनिक विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिक लोग कोरोना महामारी के विषय में जो जो अनुमान लगाते रहे वे गलत निकलते रहे | महामारी का स्थाई स्वभाव लक्षण आदि नहीं निश्चित किए जा सके !विस्तार क्षेत्र प्रसार माध्यम आदि नहीं खोजा जा सका |इसपर मौसम तापमान वायु प्रदूषण आदि के प्रभाव को नहीं खोजा  जा सका इसकी अंतरगम्यता नहीं पता लगाई जा सकी | महामारी के शुरू होने से पहले उसके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगा सके !इसके पैदा होने का कारण नहीं खोज सके !कोरोना संक्रमितों की संख्या अपने आप कभी बढ़ जाती है और कभी कम हो जाती है किंतु कब कम होगी कब बढ़ेगी और कब समाप्त होगी !इसका न तो कारण बता सके न ही पूर्वानुमान | तीसरी चौथी आदि लहरें आने की जहाँ तक बात  रही है इसका वैज्ञानिक आधार तो कुछ  है नहीं !अगर तीसरी लहर आ जाएगी तो तीसरी लहर वाली भविष्यवाणी सच मान ली जाएगी  और यदि तीसरी लहर नहीं आएगी तो हमने कंट्रोल कर लिया है इसलिए नहीं आई है |किसी रोग या महारोग की औषधि बना पाना तो तब संभव है जब उस रोग महारोग आदि को ठीक ठीक समझा जा सका हो !रोग को अच्छी तरह से समझे बिना उसकी चिकित्सा कैसे संभव है | 

       ,महामारी का सामना करने के लिए अनुसंधानों के नाम पर हम बिल्कुल खाली हाथ खड़े थे महामारी को लेकर क्या हमारी  कोई तैयारी नहीं थी !ऐसी महामारी कभी आ सकती है मैंने इस विषय में पहले से कुछ क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए था जबकि वैज्ञानिक अनुसंधान आखिर क्या खोजने के लिए हमेंशा चलाए जाते हैं |आत्ममंथन किए जाने की आवश्यकता है | 

   महामारी से निपटने की जिम्मेदारी केवल आधुनिकविज्ञान से जुड़े अनुसंधान कर्ताओं की ही तो नहीं है !क्योंकि किसी भी प्राकृतिक घटना का पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी के लिए अनादि काल से ज्योतिषशास्त्र की पहचान बनी हुई है |ज्योतिष शास्त्र में मौसम एवं महामारियों से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की विधियाँ बताई गई हैं |उसी ज्योतिषशास्त्र  के विद्वान् मानकर जिन्हें सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में रीडर प्रोफेसर जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है | ये उनका दायित्व बनता है कि मौसम और महामारी से संबंधित पूर्वानुमान वे भारत सरकार को आगे से आगे उपलब्ध करवाकर सरकार एवं समाज की मदद करते ! किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्यों ?

     इसीप्रकार से वेदवर्णित यज्ञादि विधानों में अनेकों ऐसे यज्ञों का वर्णन मिलता है जिनके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से समाज को मुक्ति दिलाई जा सकती है |वेद विद्वानों के द्वारा समय समय पर ऐसे दावे भी किये जाते रहे हैं | उन्हीं वेदों शास्त्रों आदि के विद्वान् मानकर जिन्हें सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में रीडर प्रोफेसर जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है | महामारी से जब जनता अकेली जूझ रही थी तब ये जिम्मेदारी उनकी भी बनती थी कि ऐसे कठिन समय में यज्ञ यागादिक अनुष्ठानों के द्वारा महामारी पर अंकुश लगाकर इस महा मुसीबत में जनता की मदद करते !उन्होंने ऐसा आखिर क्योंनहीं किया ?

      संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति जैसे पदों पर प्रतिष्ठित किए जाने वाले लोगों में इस जिम्मेदारी को निर्वाह करने का एहसास क्यों नहीं था कि जनता पर आए इतने बड़े संकट के समय उनके विश्व विद्यालयों की भी कोई जिम्मेदारी बनती है | संस्कृतविज्ञान की क्षमता को समझने की उनमें योग्यता नहीं थी या वे इतने लापरवाह एवं अदूरदर्शी हैं या उन्हें ये पता था कि जिन रीडरों प्रोफेसरों की नियुक्तियाँ उनके कार्यकाल में की गई हैं उनमें उन विषयों की योग्यता नहीं हैं जिन पदों पर उन्हें प्रतिष्ठित किया गया हैं इसलिए जनता की ऐसी महामुसीबत में उन्होंने मौन  रहना ही बेहतर समझा है | 

            ऐसे कुलपतियों को नियुक्त करने वाले लोगों की क्या मजबूरी है कि वे अपने अपने कर्तव्यों का पालन करने की क्षमता से विहीन अयोग्य एवं गैर जिम्मेदार लोगों को संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति जैसे बड़े पदों पर प्रतिष्ठित कर देते हैं | उनकी आखिर कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं होनी चाहिए | इतना बड़ा पद उसके अनुसार सैलरी और जिम्मेदारी शून्य !उसका परिणाम जनता को भोगना पड़ता है | ऐसे कुलपतियों के कार्यकाल में विभिन्न पदों पर हुई नियुक्तियों का आधार उनकी योग्यता थी या कुछ और इसकी जाँच क्यों नहीं करवाई जानी  चाहिए !महामारी के समय जनता की मदद करने में जो पूरी तरह असफल हुए हैं इस बात को यूँ ही भुला दिया जाना जनता के पक्ष में कतई ठीक नहीं है | यदि संस्कृत का उत्थान लक्ष्य है तो ऐसे प्रकरणों की न केवल निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए अपितु संस्कृत के उत्थान की राह में रोड़ा बने दोषियों के विरुद्ध पारदर्शिता पूर्वक कार्यवाही भी की जानी चाहिए  |

            आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ चरक संहिता में महामारी प्रारंभ होने से पहले महामारी आने का पूर्वानुमान लगाने की न केवल विधि बताई गई है अपितु महामारी आने से पहले ही महामारी से मुक्ति दिलाने वाले औषधीय द्रव्यों के भी संग्रह का निर्देश दिया गया है | आयुर्वेद के बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों में नियुक्त रीडर प्रोफेसर आदि सरकारी आयुर्वेदज्ञ लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे महामारी जनित रोगों से मुक्ति दिलाते किंतु उनकी तरफ से भी ऐसी कोई भूमिका अदा नहीं की गई |   इसके कारण  तो सभी से पूछे जाने चाहिए   | 

             भारत में जब राजतंत्र था उस समय  ऐसे विषयों के विद्वानों की इस प्रकार की धाँधली नहीं चला करती थी | प्रत्येक विषय के विद्वानों की योग्यता का परीक्षण उस समय डिग्रियों के आधार पर न होकर अपितु खुली समाज में शास्त्रार्थ के द्वारा हुआ करता था | ज्योतिषियों  को मौसम या महामारी जैसी घटनाओं का आगे से आगे सही सही पूर्वानुमान उपलब्ध  करवाना ही होता था |उनके असफल  होने का कारण उनकी अयोग्यता मानी जाती थी | 

               ज्योतिषियों से पूर्वानुमान मिल जाने पर महामारी जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाने की व्यवस्था आगे से आगे की जाती थी  वेदों के विद्वान लोग ऐसे यज्ञ अनुष्ठान आदि आयोजित किया करते थे | जिनसे प्राकृतिक आपदाओं  के प्रारंभ होने से  पूर्व ही उन पर अंकुश लगाने की व्यवस्था की जाती थी | यदि थोड़ा बहुत झटका   महामारियों का  लग  भी जाता था  तो उसके लिए आयुर्वेद के विद्वानों ने आगे से आगे औषधियाँ तैयार करके रखी होती थीं उनसे समय रहते   महामारियों को नियंत्रित कर लिया जाता था   | 

               उस युग में यदि इतनी सतर्कता न बरती जाती   तब तो सृष्टि आगे ही नहीं बढ़  पाती  ! उस समय न तो इतनी अत्याधुनिक मशीने थीं  | जाँच के लिए इतने उत्तम  संसाधन  नहीं थे | वैक्सीन  जैसी व्यवस्था  की   परिकल्पना ही नहीं थी !ऐसी परिस्थिति में सृष्टि का आगे बढ़ पाना कैसे संभव था |

 सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष विभागों में ज्योतिष शास्त्र को पढ़ाने की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों में ऐसे अनुसंधान करने की योग्यता नहीं है क्या ? क्या सोर्स सिफारिश और घूसखोरी के आधार पर अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर कुछ छात्रों का भविष्य बर्बाद करने के उद्देश्य से प्रतिष्ठित कर दिया गया है ? इतनी इतनी भरी भरकम सैलरी उठाने वाले  संस्कृत विश्वविद्यालयों के कुलपतियों  ज्योतिषविभागाध्यक्षों प्रोफेसरों रीडरों की इतनी बड़ी लापरवाही पर सरकारों का मौन संशय पैदा करता है | 

 

इतनी बड़ी चूक होने के 

   




            संस्कृत विश्व विद्यालयों  में कुलपति  रीडर   प्रोफेसर आदि पदों पर भ्रष्टाचारपूर्वक जिनकी नियुक्तियाँ की जाती हैं  उन अयोग्य  लोगों में महामारी  का पूर्वानुमान लगाने एवं यज्ञादि प्रयासों से उस पर अंकुश लगाने की योग्यता ही नहीं होती है | कुलपति  पदों पर विराजमान अयोग्य एवं कर्तव्यभ्रष्ट लोग संस्कृत को इतना दुर्बल सिद्ध कर देते हैं  कि महामारी में भारत के प्राचीन विज्ञान की कोई भूमिका  दिखाई ही नहीं पड़ती है | 

             ज्योतिषविभाग हैं उनके रीडर प्रोफेसर हैं जिन्हें सरकारी कोष से भारी भरकम धनराशि सैलरी के रूप में दी जाती है | ऐसे विश्व विद्यालयोंके कुलपतियों से लेकर शिक्षकों तक की नियुक्तियों में इतना अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त है कि  अयोग्य लोगों को योग्य पदों पर बैठा  दिया जाता है जो कुछ करने लायक नहीं होते हैं |भ्रष्टाचार का यह ज्वलंत प्रमाण है कि भारी भरकम सैलरी लेने वाले संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिष  विभागों के रीडर प्रोफेसरों के द्वारा कोरोना महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा  सका है |विज्ञान के नाम पर बातें  हों किंतु  महामारी के शुरू और समाप्त होने का कारण  खोजै नहीं जा सका है    का पूर्वानुमान लगाना ही इससे बचाव का एक मात्र विकल्प है | पूर्वानुमान लगाना आधुनिक विज्ञान के बश का होता तो वो अबकी बार ही लगा लेते | 

    

      संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति पद पर नियुक्त लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि अपने विश्व विद्यालयों में वे ऐसे विषयों पर अनुसंधान करवावें आवश्यकता पड़ने पर देश और समाज के काम आवें | भारत वर्ष में प्राचीन काल में भी तो प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ आदि घटित होती रही हैं तब तो आधुनिक विज्ञान नहीं था | उस समय तो ऐसी संकटकालीन परिस्थितियों से मुक्ति दिलाने की संपूर्ण जिम्मेदारी प्राचीन विज्ञान पर होती थी और वे ऐसे संकटों से जनता को बचाने का रास्ता भी निकाल लिया करते थे | उसी प्राचीन विज्ञान पर इसी उद्देश्य से अनुसंधान करवाना संस्कृत विश्व विद्यालयों का कर्तव्य होता  है | ऐसे संस्कृत विश्व विद्यालयों में कुलपति पद नियुक्त किए गए लोगों से ये अपेक्षा होती है कि वे इसके लिए  करेंगे किंतु प्राकृतिक आपदाओं  और महामारियों के समय ऐसे पदों पर प्रतिष्ठित लोगों का मौन एवं निष्क्रिय  बने रहना  दुखद है | 

            सभी धर्मों संप्रदायों ने के शीर्ष आचार्य अपने अपने आराध्य  को सर्व सक्षम बताते थकते नहीं हैं और अपने को सिद्ध साधक संत आदि पदों पर प्रतिष्ठित कर लेते हैं | उनमें से कुछ आचार्य लोग ऐसे भी होते हैं जो जनता के बड़े बड़े दुखों रोगों संकटों आदि को दूर करने में अपने को इतना अधिक सक्षम मानते हैं कि बड़े बड़े जनता दरवार लगवाकर उनके दुखों रोगों संकटों आदि से मुक्ति दिलाने का दंभ भर रहे होते हैं | महामारी से जूझती जनता को इस आपदा से मुक्ति दिलाने का उनका भी दायित्व बनता है किंतु उनकी ओर से भी ऐसे कोई प्रभावी प्रयास होते नहीं दिखे जिनके कुछ जनता को लाभ भी हुआ हो जबकि उनके जीवनयापन समेत संपूर्ण सुख सुविधाओं की व्यवस्था का भी संपूर्ण खर्च जो उनके अनुयायी वहाँ करते हैं वे भी इसी समाज के अंग हैं वे भी महामारी से पीड़ित हुए हैं | उन्हें भी इस महामारी ने बहुत दुःख दिए हैं ऐसी महामुसीबत में जनता की मदद करने का कुछ दायित्व  तो उनका भी बनता ही है | भविष्य में संभावित महामारी में जनता की मदद करने के लिए कुछ संकल्प तो उन्हें भी लेने ही चाहिए  |

      सरकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति हमेंशा से रही है इस प्रवृत्ति के कारण योग्य पदों पर अयोग्य लोगों के बैठने का रास्ता आसान बना रहता है |ऐसान्यूनाधिक हर युग में होता रहा है फिर ये तो कलियुग है | महामारी के समय ये बात खुलकर सामने दिखाई पड़ी है |सरकार के जो विभाग जिन कार्यों के उद्देश्य से जिन विषयों का अनुसंधान करने के लिए बनाए गए हैं |यदि उन्हीं विभागों से संबंधित कार्यों की आवश्यकता पड़ने पर अपनी भूमिका का निर्वाह करने में वे असफल  हुए हैं और कोरोना महामारी के समय उन विभागों से आशानुरूप उस प्रकार की मदद नहीं मिल पाई  है तो कहीं न कहीं कोई बड़ी चूक हो रही है जिसका दंड निरपराध जनता को प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के रूप में भुगतना पड़ता है | भविष्य में ऐसी परिस्थिति न पैदा हो इसके लिए सरकारों को अभी से गंभीरता पूर्वक सभी सक्षम विधाओं को सम्मिलित करके कोई ऐसी वैज्ञानिक विधा विकसित करनी अवश्य चाहिए ताकि भविष्य में जब कभी दूसरी महामारी आवे तब सरकार एवं समाज के पास अपने पास बचाव के लिए कुछ तो हो अबकी तरह बिल्कुल खाली हाथ न हो | 

      आधुनिक विज्ञान हो या प्राचीन विज्ञान सरकार अनुसंधानों के नाम पर सभी पर खर्च करती है | निरपराध जनता टैक्स रूप में अपने खून पसीने की कमाई से जो धन सरकारों को देती है जनता का वो धन सरकारें जिन जिन विभागों पर व्यय करती हैं वे विभाग जनता की मदद करने में कितने सफल हो पाते हैं |इस बात का परीक्षण पारदर्शिता पूर्वक करना सरकारों की अपनी जिम्मेदारी है | जनता के प्रति यह जवाबदेही  सरकारों  की बनती है | 

    बिना हथियारों के महामारी से लड़ने या उस पर विजय प्राप्त करने का दावा कितना भी कर लिया जाए किंतु सच्चाई यही है कि पिछले डेढ़ वर्ष में कोरोना महामारी के विषय में हमारे वैज्ञानिकों के द्वारा जितने भी अनुमान लगाए जाते रहे वे सभी गलत निकलते रहे | महामारी के स्वभाव के विषय में जो भी बोला जाता रहा वो सच न होने के कारण ही बाद में महामारी के  स्वरूप बदलने की बात बोली  जाती रही जबकि महामारी के  वास्तविक स्वरूप के विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था | 

    
कोरोना महामारी हो या वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ एक बार प्रारंभ होने के बाद अपनी मर्जी से ही जाती  हैं और ये पहले धक्के में ही जितना नुक्सान करना  होता  है वो कर देती हैं बाद में तो भूकंपों की तरह कुछ समय तक हल्के झटके लगते रहते हैं | महामारी भी अपने समय से ही जाएगी ! इसके समाप्त होने का संभावित समय क्या होगा !इसे खोजे जाने की आवश्यकता है |

       महामारी के विषय  वास्तविक अनुसंधानों से यूं ही बचा जाता रहेगा और संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण कोरोना नियमों का पालन न करने को मान लिया जाएगा और संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण कोविड नियमों का पालन आदि उपायों को माना जाता रहेगा और तीसरी चौथी आदि लहरों की निराधार अफवाहें इसी प्रकार से उड़ाई  जाती रहेंगी | उन अफवाहों के अनुशार महामारी संक्रमितों की संख्या यदि बढ़ने लगी तो  भविष्यवाणी को सच मान लिया जाएगा और तीसरी लहर न आई तो वैक्सीन आदि प्रयासों से उसे कंट्रोल कर लिया माना जाएगा | समय प्रभाव से महामारी जिस दिन अपने  आप से ही समाप्त होगी उस दिन चिकित्सकीय प्रयासों को इसका श्रेय देकर इस प्रकरण को हमेंशा हमेंशा के लिए बंद कर दिया जाएगा !इस लापरवाही की कीमत भविष्य में कोई दूसरी महामारी आने पर जनता को ही चुकानी पड़ती है कोरोना महामारी के समय भी ऐसा ही हो रहा है और हमेंशा से ऐसा ही होता चला आ रहा है |                

           भारत के प्राचीन वेद विज्ञान की दृष्टि से ज्योतिष के द्वारा महामारी समेत समस्तप्राकृतिक आपदाओं का अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है  | इसी प्रकार से वेद में वर्णित यज्ञ विधियों से ऐसी समस्त प्राकृतिक आपदाओं  पर न केवल अंकुश लगाया जा सकता है अपितु पूर्वानुमान समय से पता लग जाएँ तो इन्हें रोका भी जा सकता है | वर्तमान समय में भारत सरकार के द्वारा वेद वैज्ञानिक अनुसंधानों को बहुत प्रोत्साहित किया जा रहा है बहुत धनराशि खर्च की जा रही है  | इसके बाद भी सभी संस्कृत विश्व विद्यालयों के ज्योतिषविभागों  के रीडर प्रोफ़ेसर  आदि लोग महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सके और वेदविभागों  के रीडर प्रोफ़ेसर  आदि लोग महामारी पर अंकुंश लगाने के लिए कोई प्रभावी यज्ञ आदि उपाय नहीं कर सके | यहाँ तक कि संस्कृत विश्व विद्यालयों के कुलपति  पदों पर विराजमान लोगों के द्वारा भी महामारी  का पूर्वानुमान लगाने या इस पर अंकुश लगाने के लिए  कोई  प्रयास नहीं किए गए | ये दुखद है |


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