Thursday, August 12, 2021

नाम

                                                                                                                                                                                            हिंदी  के वर्णों में विज्ञान 

           प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर नगर गाँव मोहल्ला संस्था संस्थान संगठन राजनैतिक दल साहित्यिकग्रंथ फिल्में,काव्य ,नाटक आदि प्रत्येक छोटे से छोटे या बड़े से बड़े अंश में न केवल सारी अच्छाइयाँ होती हैं और न ही सारी बुराइयाँ होती हैं वस्तुतः संसार की समस्त वस्तुएँ उन्हीं अच्छाइयों बुराइयों का  ही सम्मिश्रण हैं |  व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर नगर आदि जो जितने अधिक लोगों को अच्छे लगते हैं उन्हें उतना अच्छा मान लिया जाता है और जो जितने कम लोगों को अच्छे लगते हैं उन्हें उतना कम अच्छा माना जाता है  |उनके अच्छा और बुरा लगने का कारण उन सबका अपना अपना नाम का पहला अक्षर होता है | नाम के पहले अक्षर के अनुशार लोगों का स्वभाव होता है | उस व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर आदि के लोगों  के नाम के पहले अक्षर के साथ जितना अच्छा संबंध होता है उन दोनों के आपसी संबंध भी उतने ही मधुर होते देखे जाते हैं | वही नगर गाँव मोहल्ला संस्था संस्थान संगठन राजनैतिक दल साहित्यिकग्रंथ फिल्में,काव्य ,नाटक आदि  पहली पसंद होता है वहीँ उसका मन लगता है | 

             संसार के प्रत्येक छोटे बड़े अंश का कोई न कोई नाम होता है उस नाम का जो पहला अक्षर होता है उस अक्षर का वर्ण विज्ञान की दृष्टि से जो स्वभाव होता है उसी प्रकार का स्वभाव उस नाम वाले व्यक्ति वस्तु स्थान आदि का होता है उसी के अनुशार सोच पसंद नापसंद  आदि बनती है | नाम के पहले अक्षर के अनुशार ही मित्र शत्रु बनते हैंउसी के अनुशार देश शहर नगर गाँव मोहल्ले  आदि स्थान  अच्छे या बुरे लगने लगते हैं | जिन दो या दो से अधिक अक्षरों का स्वभाव एक दूसरे वर्ण से मिल रहा होता है उन दोनों अक्षरों वाले लोगों के मन में एक दूसरे के प्रति दोष देखने की दृष्टि नहीं रह जाती है अपितु आपस में एक दूसरे केअंदर दिखाई पड़ने वाले दुर्गुणों में भी गुण खोज लिए जाते हैं और एक दूसरे से मित्रता बढ़ती चली जाती है और जिन वर्णों का स्वभाव एक दूसरे से विपरीत होता है वे एक दूसरे की अच्छाइयों में भी बुराइयाँ खोजते खोजते एक दूसरे के शत्रु होते चले जाते हैं |

       कई बार ऐसा भी देखा जाता है जो लोग एक दूसरे से कभी मिले ही नहीं पहली बार मिल रहे होते हैं वहाँ भी नाम प्रभाव के अनुशार ही वे एक दूसरे से प्रभावित अप्रभावित आदि होते देखे जाते हैं |कई बार ट्रेन आदि पर बैठे कुछ अपरिचित लोगों की आपस में एक दूसरे से बात चीत होने लगती है उनमें से जिनके नाम अक्षरों का आपस में मेल खा रहा होता है उन दोनों में  बहुत अच्छा तालमेल बैठ जाता है ऐसा लगने लगता है जैसे बहुत पुराने परिचित हों जबकि उन्हीं के बगल में बैठे कुछ अन्य लोगों के साथ कोई बात नहीं होती है | कई बार अत्यंत प्रसिद्धि प्राप्त बड़े नेता अभिनेता खिलाड़ी प्रशासकों आदि जिनसे मिलना जुलना बात चीत करना प्रायः असंभव सा ही होता है उनके प्रति भी मन में मित्रता द्वेष आदि भावनाएँ पनपने लग जाती हैं | यही कारण है कि जिन लोगों का जिन राजनैतिक दलों नेताओं आदि से कभी कोई लेना देना ही नहीं होता है वे अपने नाम प्रभाव से उनसे भी स्नेह या द्वेष करने लगते हैं उनकी भी निंदा प्रशंसा आदि करते देखे सुने जाते हैं |       
          इसी प्रकार स्थान का होता है | कई बार  है कि दिल्ली में रहने वाला कोई व्यक्ति जिस काम को कलकत्ते में जाकर करता है और वहाँ उसका काम बहुत अच्छा चल जाता है उसीप्रकार के काम को कोई कलकत्ते में रहने वाला व्यक्ति दिल्ली में कर रहा होता है और बहुत अच्छा चल जाता है किंतु दिल्ली वाले का दिल्ली में नहीं चलता और कलकत्ते वाले का वही काम कलकत्ते में नहीं चल पाता है | इसका  मतलब दोनों प्रकार के काम दोनों शहरों में चल रहे हैं किंतु  उनके नाम के प्रथमवर्णों का अपने अपने महानगरों के साथ तालमेल न बैठ पाने  के कारण ही दोनों का अपने अपने  महानगरों  में मन नहीं लगता है | 
        कुलमिलाकर नाम के पहले अक्षरों  के प्रभाव के कारण ही  कुछ लोगों को जो देश  शहर नगर गाँव मोहल्ले   या लोग ,वस्तुएँ आदि रुचिकर  या अरुचिकर लगने लगते हैं जबकि उन्हीं के प्रति  कुछ दूसरे लोग उनसे विपरीत सोच रखते हैं जिन्हें ये पसंद कर रहे होते हैं उन्हीं से कोई दूसरे घृणा कर रहे होते हैं |ऐसे ही जिनसे  ये घृणा कर रहे होते हैं उन्हीं से मिलने के लिए कुछ दूसरे लोग बेचैन हो रहे होते हैं | 
          इसी प्रकार से   फिल्मों कहानियों नाटकों में कल्पित पात्रों के नाम का जो चयन किया जाता है  वो  उन पात्रों के नामों के प्रथम वर्णों के आधार पर उनकी भूमिका के अनुशार होना चाहिए अन्यथा उनमें उस प्रकार की सजीवता नहीं आ पाती है और उन्हें वो लोकप्रियता नहीं मिल पाती है जिसके वे  अधिकारी होते हैं |इसीलिए कई महत्वपूर्ण फिल्में  नाटक कहानियाँ आदि वर्ण विज्ञान की भेंट चढ़ गई हैं | कुछ फिल्में  नाटक कहानियाँ काव्य आदि ऐसे भी हुए हैं जिनमें जाने अनजाने में  संयोगवश ही वर्णविन्यास का संयोजन ठीक ठीक हो गया है इसीलिए उनकी प्रसिद्धि  दिनों दिन बढ़ती चली गई |  
रामचरितमानस में नाम विज्ञान -
     राम चरित मानस को ही लें इसमें गोस्वामी जी को वर्ण विज्ञान के अनुशार शब्दों का चयन करते देखा जाता है | इसी लिए तो कई बार कुछ पात्रों के नाम का चयन  वर्णविज्ञान  की दृष्टि से उतना सही होते नहीं दिखा तो गोस्वामी जी ने उस पात्र के नाम की जगह उस नाम के पर्याय वाची शब्द का प्रयोग  करके उसमें सजीवता भरने का प्रयास किया है जबकि  उस   नाम की जगह उतने ही अक्षरों का कोई  दूसरा  पर्याय वाची  शब्द भी मिल रहा होता है गोस्वामी जी चाहते तो  उस शब्द को ही रखकर कविता के प्रवाह को बचा सकते थे  किंतु वर्ण विज्ञान  को व्यवस्थित रखने के लिए ही गोस्वामी जी ने उस प्रकार का शब्द चुना  होता  है | 
 बाल्मीक रामायण  के युद्ध कांड का नाम मानस में लंका  काण्ड लिखा  गया क्यों ?
          इसी प्रकार से राम चरित मानस के सात कांडों का नाम रखते समय गोस्वामी जी बाल्मीकि रामायण  में वर्णित कांडों के नाम ही अपनी रामायण में भी लिखे  हैं बाल्मीकि रामायण के युद्धकांड की जगह पर गोस्वामी जी ने लंकाकांड शब्द का प्रयोग किया है  | यहाँ वर्ण विज्ञान व्यवस्थित रखने के लिए   हीइस प्रकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं | 
             श्री राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था फिर उनका नाम जन्म नक्षत्र के आधार पर क्यों नहीं रखा गया ?
           इस प्रकार से मानस में वर्णविज्ञान संबंधी   अनेकों उदाहरण मिलते हैं | भगवानी श्री राम के ही नाम को लें तो उनका जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था इसलिए ज्योतिष के नियमों के अनुशार उनका नाम ह अक्षर से ही रखा जाना था | के को हा ही ये चार अक्षर पुनर्वसु नक्षत्र में आते हैं  किंतु वशिष्ठ जी  ने ह अक्षर को दुर्बल  समझ कर  ही   उनका नाम ह अक्षर से न रखकर अपितु र अक्षर से राम नाम रखा था !गोस्वामी तुलसी दास जी ने भी यह छिपाया नहीं है -उन्होंने लिखा -धरेउ नाम गुरु हृदय बिचारी | अर्थात गुरू जी ने ज्योतिष बिचार कर नाम नहीं रखा है अपितु अपने मन से  वर्ण विज्ञान के आधार पर नाम रखा है | 
     श्री राम जी का नाम यदि उनके जन्मनक्षत्र पुनर्वसु के अनुशार ह अक्षर पर रख दिया जाता तब संभवतः श्री राम  के स्वामित्व संबंधी गुणों में न्यूनता आ जाती | शासन चलाने या अनुशासन बनाए रखने में  इस प्रकार की प्रसिद्धि नहीं मिल पाती | इसलिए र अक्षर का चयन किया गया | ह  अक्षर से नाम होने पर   शासन प्रशासन के क्षेत्र  में  उस प्रकार की  सफलता  नहीं  मिल पाती है |
       ह अक्षर से प्रारंभ नाम का ही  प्रभाव था कि हनुमान जी जैसे ज्ञानी वीर भक्त आजीवन सेवाकार्य  में लगे रहे | पहले सुग्रीव के साथ थे और बाद में  प्रभु श्रीराम  के साथ समर्पित  रहे |                   
      इतिहास में सम्राट हर्ष  जैसे राजा भी हुए हैं  उस समय बंश परंपरा के अनुशार राजा बनाए जाते थे उनका नाम कुछ भी हो राजा तो उन्हें बनना ही होता था | हिरण्याकशिपु  हिरण्याक्ष भी तो हुए थे महान पराक्रमी थे किंतु स्वामित्व के गुण न होने के कारण ये सत्ता का संचालन कुशलता पूर्वक नहीं कर सके |
     वर्तमान राजनीति में ही देखा जाए तो ह अक्षर वाले लोग कितने प्रदेशों के अध्यक्ष मुख्यमंत्री या देशों में प्रधानमंत्री  राष्ट्रीय अध्यक्ष आदि बन पाते हैं और बन भी जाते हैं तो थोड़े बहुत समय में ही हटा दिए जाते हैं क्योंकि शासन के क्षेत्र में अनुशासन बनाए रखने में ये अपनी छवि नहीं बना पाते हैं | 
            भारत सरकार  में अभी तक  स्वास्थ्य मंत्री   दायित्व का सफल निर्वाह  करते  रहे  डॉ. हर्ष बर्द्धन  जी योग्य शालीन सहज भाव से अपने दायित्व का निर्वाह करते रहे हैं |इसके आधार पर केंद्र सरकार के दो दो बड़े मंत्रालयों को सँभालने के बाद इस प्रकार का कद तो बन ही जाना चाहिए था कि अधिक नहीं तो दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लिए चुनौती बनकर उभर पाते  और दिल्ली के विधानसभा चुनावो में अपनी पार्टी  की ओर  से  दिल्ली के मुख्यमंत्री के मजबूत दावेदारों  के रूप में उभारकर सामने लाए जा सके होते | मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने के लिए पार्टी के बाहर से किरण जी को लाया गया | 
        इसी प्रकार से हरीश रावत जी भी मृदु सहज सरल सुयोग्य शालीन हैं फिर भी मुख्यमंत्री पद पर रहकर अधिक समय तक काम कर पाना संभव न हो सका |
             इसके अतिरिक्त भी विश्व के कितने देशों प्रदेशों में राजनैतिक दलों या सरकारों का नेतृत्व  अपने बल पर सँभाल पा रहे हैं  या अभी तक सँभाल पाए हैं ये चिंतन का विषय है | 
ह अक्षर का प्रभाव हिंदुस्तान पर भी है !
         ह अक्षर पराश्रय  का स्वभाव प्रदान करता है  इसलिए हमारेदेश को जब से हिंदुस्तान  कहा  जाने लगा तब से परतंत्रता  हमारे स्वभाव में बशती चली गई | इसीलिए हमें मुगलों अंग्रेजों जैसे कई शासन सहने पड़े | किसी कारण तो हमें कमजोर समझा   गया  तभी तो  दूसरे देश हम पर  शासन करने में सफल हुए  | 
      ह अक्षर से जिन  लोगों का नाम प्रारंभ होता है उन्हें इस अक्षर के प्रभाव से अपने बल पर किसी संस्था संगठन पार्टी  सरकार आदि के प्रमुख पदों पर बहुत कम देखे जाते हैं  यदि ऐसे लोग किसी राजबंश की परंपरा से या अपनी किसी अन्य योग्यता के प्रभाव से  या धन के बल पर  किसी संगठन या सरकार के शीर्ष नेतृत्व को प्रभावित करके किसी प्रमुख पद तक पहुँच पाने में सफल हो भी जाते हैं तो प्रायः उस पद  की गरिमा के अनुरूप अपनी कोई विशेष छाप छोड़पाने में बहुत कठिनाई से ही सफल हो पाते हैं | अपनी जिम्मेदारी पर अपने दायित्व का निर्वाह करना उनके लिए काफी कठिन होता है | ये किसी से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाया करते हैं और बहुत जल्दी किसी से रुष्ट हो जाया करते हैं ये प्रायः बाल स्वभाव के धनी होते हैं | कश्मीर के राजा हरीसिंह  जी  के समय  पैदा हुई कश्मीर समस्या  आज तक चली आ रही है | 
        ह  अक्षर की दुर्बलता  के अन्य उदाहरण भी  व्यवहार में  देखने  को  मिला  करते  हैं | आसंदीवत  नामक  जो नगर कभी अपने गौरव के लिए प्रसिद्ध था | उसी नगर में हाथियों की अधिकता  हो जाने के कारण उसे हस्तिनापुर कहा जाने लगा | बताया जाता है कि उसके बाद ही क्रुद्ध  होकर बलराम जी ने   हल  से हस्तिनापुर  को खींच लिया था !इसके अतिरिक्त भी यह देश तनाव पूर्ण वातावरण का शिकार बना  रहा | गंगा जी अपनी बाढ़ में छै बार उसका कुछ कुछ भाग बहा ले गईं ऐसा बताया जाता है  |    
    पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों में वर्ण विज्ञान -        
                  घरों में पति पत्नी के संबंध बहुत मधुर हुआ करते थे दोनों के मन में दोनों के प्रति स्नेह और सम्मान हुआ करता था  किंतु जब से पति को हसबैंड कहा जाने लगा  तो  ह अक्षर के कारण पत्नी की आधीनता में रहना उसका स्वभाव ऐसा बनता चला गया इसीलिए हसबैंड  हमेंशा अपने माता पिता भाई बहन नाते रिश्तेदारों आदि के अपनेपन को भूलता जाता है  | वह वाइफ और वाइफ पक्ष के प्रति पराधीन होता चला जाता  है |
           पति और पत्नी के नाम के पहले अक्षर एक दूसरे के विरोधी न हों जो वैवाहिक जीवन में  तनाव पैदा होने लगे | इसीलिए पति पत्नी दोनों ही एक दूसरे को उनके नाम से कभी नहीं   पुकारा करते थे अपितु संकेतों में ही एक दूसरे को संबोधित कर लिया करते थे !ऐसी परिस्थिति में न एक दूसरे का नाम लेते थे और न ही इससे प्रभावित होते थे इसलिए पति पत्नी के बीच उस समय तनाव के अवसर बहुत कम उपस्थित हुआ करते थे |जब से पति पत्नी  एक दूसरे को उनके नामों से  पुकारने लगे तब से आपसी  संबंधों  में तनाव की समस्याएँ अधिक बढ़ी हैं | 
            अपनों का नाम न बुलाना पड़े इसीलिए बहुत सोच बिचार कर संबंधों के नाम रखे गए थे जिनसे एक दूसरे के बीच टकराव की संभावना ही नहीं रहती थी | अपने से उम्र जो छोटा  होता था उसे लाला  बेटा बच्चा जैसे प्रिय संबोधन आत्मीय जनों के द्वारा दिए जाते थे  जो बड़े होते थे वे भैया चाचा दादा मामा मौसा दीदी  जीजा आदि संबंध नामों से ही पुकार लिया जाया करता था | न उनका नाम लिया जाता था और न ही वर्ण विज्ञान संबंधी दोष ही प्रकट हो पाते थे |
             साझे के व्यापारों सामाजिक संस्थाओं संस्थानों उद्योगों राजनैतिक दलों  आदि में वर्ण विज्ञान आदि   का बिचार न करने के कारण  आपसी तनाव बढ़ जाता है और बिना किसी विशेष कारण के संस्थाएँ टूटते  समाप्त होते देखी जाती हैं  | राजनैतिक दलों में फूट पड़ जाती है | वर्ण विज्ञान संबंधी   कारणों   से  भी राजनैतिक दलों के आपसी गठबंधन  और देशों प्रदेशों   की सरकारें   बनते बिगड़ते  देखी जाती हैं | 
             चुनावों  में किस नाम वाले प्रत्याशी के सामने किस नाम वाला प्रत्याशी उतारने से विजय की संभावना अधिक बन सकती है ये वर्ण विज्ञान का विषय है | किसी परिवार में राजनैतिकदल में गत बंधन में या कुछ देशों के बीच आपसी संबंधों में यदि तनाव बढ़ता दिखाई दे तो उसमें किस नाम वाले व्यक्ति को मध्यस्थता सौंपी  जाए जो उस तनाव को घटाकर परिस्थितियों को सँभालने में मदद पहुँचा  सकता है |इसका पता वर्ण विज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है  |
                विदेशों के राजनायिकों से किसी विशेष बात पर कोई महत्त्वपूर्ण  समझौता किए जाने की संभावना हो और संशय हो कि पता नहीं उस देश के प्रतिनिधि हमारी बात मानेंगे या नहीं  और बात मनवाना अपने देश के लिए बहुत आवश्यक हो ऐसी परिस्थिति में वर्ण विज्ञान का उपयोग करते हुए विदेशी राजनायिकोंके नामों के  प्रथम वर्णों के अनुशार अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधिमंडल  में ऐसे लोगों को सम्मिलित करके वार्ता की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जा सकती है जिनके नाम के पहले अक्षर  उन  विदेशी प्रतिनिधिमंडल  में सम्मिलित  लोगों को प्रभावित करके अपनी बात मनवाने में सक्षम हों |

         अपने देश के विषय में -
         अपने प्राचीन गौरव पर बहुत सारी  बातें  देखने सुनने को मिला करती हैं | बताया जाता है कि भारत कभी विश्व गुरु था !कई लोग कहते हैं कि भारत कभी सोने की चिड़िया था किंतु इस प्रश्नका उत्तर मिलना कठिन हो जाता है कि भारत विश्व गुरु कब था और सोने की चिड़िया कब था तथा परतंत्र  कब हुआ  |     
भारतवर्ष  का  पहला अक्षर 'भ ' है !
       वर्ण विज्ञान की दृष्टि से बिचार किया जाए तो भ अक्षर ज्ञान प्रिय  होता है ,अ अक्षर प्रशासन प्रिय  होता  है और ह अक्षर पराश्रय के स्वभाव का निर्माण  करता  है |  अपने  देश को जब जब भारत कहा गया तब तब भारत ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ता रहा  इसलिए  इसे विश्वगुरु  जैसा  सम्मान  मिला ! वर्तमान  सरकार के समय में भारत नाम का व्यवहार  फिर से बढ़ा है इसलिए  फिर से भारत उसी गौरव के पथ पर अग्रसर  होते देखा जा रहा है |    
आर्यावर्त का  पहला अक्षर 'अ' है !
       अ    अक्षर  प्रशासक  स्वभाव का होता है इसीलिए अपने देश का नाम जब आर्यावर्त   था तब यह देश विश्व प्रशासक के रूप में प्रसिद्ध हुआ  | वर्तमान समय में  अ  अक्षर  से अमेरिका है  उसके पराक्रम के प्रति वैश्विक  समाज  का विश्वास बढ़ना  स्वाभाविक  ही है | घरों में माँ को जब तक अम्मा  कहने  की परंपरा  रही  तब  तक उन्हीं का शासन  चलते  देखा  जाता  था | चाचा और चाची के साथ भतीजे का संबंध  स्नेह पूर्ण चला करता था किंतु  अंकल   और  आंटी   शब्द  अ  अक्षर से प्रारंभ होते हैं ये अक्षर प्रशासक  स्वभाव के होने से भतीजे को इनसे चाचा वाला स्नेह नहीं मिलने लगा और आपसी संबंध प्रतिस्पर्द्धात्मक होते  चले गए |  इसी प्रकार स्कूलों में  अध्यापकों का  जो अनुशासन  और सन्मान देखा जाता था वो टीचरों  को कहाँ मिल पा   रहा है |ऐसे  ही नाम के पहले अक्षरों के कारण कई अन्य संबंध भी नाम के पहले अक्षरों के कारण बिगड़ते देखे गए हैं |
        इस प्रकार  से   सम्राटअशोक से ले कर अनेकों उदाहरण व्यवहार में  देखने  को  मिला  करते  हैं |   विश्व हिंदूपरिषद  में अशोक सिंघल जी ,भाजपा में अटल जी ,अमितशाह  ,उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ  दिल्ली में आदेश गुप्ता हैं | काँग्रेस में राजस्थान में अशोक गहलोत  पंजाब में अमरिंदर सिंह  हैं ,दिल्ली काँग्रेस में अजय माकन ,अरविंदर सिंह ,अशोक वालिया जैसे प्रमुख नेतागण  हैं | यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू  हैं | सपा में अखिलेश यादव हैं | आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल  हैं |फिल्मों में अमिताभ बच्चन एवं शासन में अजित डोभाल जैसे लोग भी प्रमुख हैं |           
            राजनीति  में भावी पीढ़ी का दखल अभी से दिखने लगा है | बसपा  में 'आकाश '(मायावती के भतीजे  ) हैं तृणमूल काँग्रेस में  अभिषेक बनर्जी  '(ममता के भतीजे  )हैं  | शिवसेना में आदित्य ठाकरे (उद्धव ठाकरे)के पुत्र हैं |  मनसे में अमित ठाकरे(राज ठाकरे) के पुत्र हैं |  प्रसपा में आदित्य यादव    (शिवपाल यादव के बेटे )  हैं | समाज के विभिन्न वर्गों में  अ अक्षर  के ऐसे और भी अनेकों उदाहरण हैं |  
       अ अक्षर प्रशासक स्वभाव  का  होता है किंतु किसी एक परिवार संस्थान संगठन  सरकार में   बराबरी के कई लोग जब  अ अक्षर वाले हो  जाते हैं तब वहाँ विवाद पैदा होने लगता है |आम आदमी पार्टी में तेरह लोग अ अक्षर वाले आमने सामने आ गए थे जब  तक तक कलह रहा आशुतोष और आशीष खेतान सहित उन तेरहों लोगों के  पार्टी से बाहर जाते ही   सब कुछ शांत   हो गया |     दिल्ली में अ अक्षर वाले अरविंद केजरीवाल सरकार की उपराज्यपाल अ अक्षर वाले अनिल बैजल जी से  तकरार चला ही करती है | 
        कई बार सरकारों की छवि बनाने बिगाड़ने में सक्षम ऊँचे पदों पर बैठे अफसरों का अपने मंत्रियों मुख्य मंत्रियों या प्रधानमंत्रियों आदि के साथ नामजनित तालमेल नहीं बन पाता है  या  फिर एक दूसरे का विरोधी होता  है ऐसे अफसर अपनी ही सरकारों की छवि बिगाड़ा करते हैं |  इसीलिए दिल्ली में अ अक्षर वाले अरविंद केजरीवाल सरकार में जब तक  पुलिसकमिश्नर  पद पर अलोक कुमार वर्मा एवं अमूल्य पटनायक  रहे  तब तक  आपसी आरोपों  प्रत्यारोपों का दौर चलता ही रहा और सरकार की छबि बिगड़ती रही  | यह परिस्थिति कुछ दिन उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी झेली है  जानकारी के अभाव में अन्य सरकारों में भी ऐसा होता रहता है उसका सरकारी काम काज की गुणवत्ता पर उसी प्रकार का प्रभाव पड़ता है | 
                कई परिवारों में इस बात के कारण ही कलह रहता है जिसका उन्हें पता नहीं होता है | मुलायमसिंह का नाम म अक्षर से प्रारंभ होता है इसलिए उन्हें परिवार में किसी से चुनौती नहीं मिली | पार्टी में जब अखिलेश का नेतृत्व आया तो परिवार की उस पीढ़ी में अपर्णा यादव सहित कई लोगों का नाम अ अक्षर से प्रारंभ होता है स्वयं शिवपाल के दोनों बच्चों का नाम अ अक्षर से आदित्य यादव और अनुभा यादव है | रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव  हैं | ऐसे ही  परिवार में कुछ अन्य नाम भी
 अक्षर से  हैं  इसलिए वे लोग अपने से आगे किसी दूसरे को कैसे सह सकते हैं | 
         पार्टी में भी यही यही स्थिति बानी रही | म अक्षर वाले मुलायम सिंह का नेतृत्व  सबको स्वीकार्य था क्योंकि म अक्षर वाला कोई दूसरा चुनौती देने वाला था नहीं फिर भी अमर सिंह आजम खान  दोनों के नाम अ अक्षर से हैं  इसलिए  दोनों आपस में टकराते रहे | जब अक्षर वाले  अखिलेश  को नेतृत्व मिला तब  तीनअ अक्षर वाले  हो गए  तो तीनों टकरा गए  परिणाम स्वरूप अमर सिंह बाहर किए गए  और आजम  अल्प संख्यक चेहरा रहे  इसलिए  उनके रूठने पर उन्हें मना लिया जाता रहा  | उधर   बालठाकरे  परिवार  में सब कुछ ठीक चलता रहा किंतु उद्धव के पुत्र आदित्य ठाकरे एवं  राज ठाकरे के पुत्र   अमित ठाकरे  दोनों ही एक दूसरे को अपने से  आगे  नहीं  देख सकते थे | इसलिए  साथ साथ वाली बात बिगड़ गई| 
           लालूप्रसाद यादव जी के परिवार में जब तक वे सक्रिय  रहे तब तक सब  कुछ ठीक था किंतु अब उनके दोनों बेटे ते अक्षर से हैं  ऐसी परिस्थिति में  दोनों बेटों का एक साथ एक पार्टी या एक सरकार में रहकर संगठन का संचालन कर पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है  | 
              राहुल गाँधी   का अपने बल पर प्रधानमंत्री    बन पाना कठिन है किसी दूसरे के नाम पर चुनाव लड़ा जाए बाद में इन्हें बना दिया जाए    या कोई और ऐसे समीकरण बनें    जिससे कुछ लोग   गत बंधन आदि बना कर इन्हें प्रधान मंत्री बना दें ये और बात है | 
         र अक्षर वाले किसी भी व्यक्ति में बहुतों को बहुत कुछ बना देने की अद्भुत क्षमता होती है श्री राम जी ने सुग्रीव और विभीषण को राजा अपने बल पर बनाया किंतु खुद भरत जी के दिए हुए राज्य से राजा बने | ये अपनी सलाहों से बहुतों को अपना बना लेने में सक्षम होते हैं बिरले ही लोग इनकी बातों का बुरा मानते हैं | वे बहुत सम्मान भी देते हैं  इसीलिए सरकारें बनाने बिगाड़ने में या भाजपा के राम लाल जी की तरह संगठन को संगठित रखने में बड़ी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं | सपा के रामगोपाल जी की तरह सलाहकार अच्छे हो सकते हैं किंतु  जैसे ही किसी संगठन सरकार आदि का प्रमुख पद इनके हाथ में पहुँचता है वैसे ही इनके  आत्मीय लोग इनसे किनारा करने लग जाते हैं धीरे धीरे धीरे ये अलग थलग पड़ते  चले जाते हैं और पद त्याग कर देते हैं | किसी दूसरे की प्रतिष्ठा के बलपर प्राप्त सत्ता का संचालन किया करते हैं | र अक्षर वाले श्री राम जी भरत जी के राज्य से राजा बने थे !रावण कुबेर के राज्य से बना था | वर्तमान राजनीति में राजीवगाँधी जी को इंद्रा जी के निधन से उत्पन्न हुई शोक संवेदना का लाभ मिला था | लालू जी की प्रतिष्ठा पर रावड़ी जी मुख्यमंत्री पद पर रह पाई थीं | कुल मिलाकर र अक्षर वाले बहुत कम लोग हैं जो अपने बल पर सत्ता के शिखर पर पहुँच सके हों  जो पहुँचे भी  उनमें से निन्यानवे प्रतिशत लोग अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए | ऐसी परिस्थिति में राहुलगाँधी जी को सत्ता तक पहुँचाने के लिए किसी वर्णवैज्ञानिकता की मदद की अपेक्षा है | 
          बिहार चुनाव से पहले मैंने एक पत्र कुछ जिम्मेदार लोगों को लिखा था कि बिहार में नीतीश कुमार को यदि पाँच सीटें मिलें तो भी उन्हीं को मुख्यमंत्री बना देना भाजपा के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा अन्यथा वे स्वयं कुछ विशेष करने लायक भले न हों किंतु उनके नेतृत्व में जो कुनबा इकठ्ठा होगा वह केंद्र सरकार के लिए समस्या अवश्य पैदा कर सकता है | 
        भाजपा को पूर्ण बहुमत भले मिल जाए तो भी भारतवर्ष में अपने बलबूते पर सत्ता संचालन करना आसान नहीं होगा इसीलिए अटल अडवाणी जी जैसे महारथियों को भी किसी वर्ण वैज्ञानिक की सलाह पर 'राजग' का गठन करना पड़ा था उसके बाद ही केंद्र की सत्ता में भाजपा अपना कार्यकाल पूरा कर सकी वर्तमान समय में राजग बिखर रहा है यह भाजपा के लिए चिंता का विषय है क्योंकि राजग  को छोड़कर यदि भाजपा केवल अपने बलबूते पर सरकार गठन करती है तो सत्ता संचालन  भाजपा के लिए आसान नहीं होगा  | 
          इसीप्रकार से व्यापार परिवार  वैवाहिक जीवन घरेलू सदस्यों के आपसी तनाव संस्था संस्थानों राजनैतिक दलों  सरकारों गठबंधनों विदेशों के साथ किसी विशेष वार्ता को करने के लिए बनाए जाने वाले प्रतिनिधि मंडल के संचालन के लिए  वर्णवैज्ञानिक चिंतन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है इसके बिना अकारण ही समाज विखर रहा है परिवार टूट रहे हैं वैवाहिक जीवन समस्या ग्रस्त होते जा  पहले   ऊटपटांग नाम रख  लेते हैं | बाद में वे उन्हीं से बुढ़ापे में किनारा कर लेते हैं | प्रमोद जी सहित बहुत  परिवारों में तनाव का कारण वर्ण वैज्ञानिक समस्याएँ ही रही हैं | तलाक जैसी समस्याओं में भी एक बड़ा कारण वर्ण विज्ञान का व्यवस्थित न होना ही है |
             सभी वर्णों के विषय में ऐसा सोचा जाना चाहिए उनके एक दूसरे वर्ण के साथ संबंध के आधार पर ही लोगों की एक दूसरे के साथ मित्रता शत्रुता आदि के विषय में परिकल्पना कर ली जाती है |


 

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