Wednesday, April 10, 2013

बेचारे सरकारी विद्यालयों की सरकारी शिक्षा !

सरकारीअस्पतालयास्कूलअपनोंकीलापरवाहीकेशिकार!     जैसे कुछ बनावटी धार्मिक लोग महात्माओं की तरह आडम्बर तो सारे करेंगे चन्दन भी लगाएँगे, कपड़े भी भगवा रंग के पहनेंगे, माला मूला भी पूरी गड्डी पहनेंगे, भक्ति के नाम पर प्रवचन, कीर्तन, नाचना, गाना, बजाना  तो सब कुछ करेंगे किन्तु जिस वैराग्य और भक्ति के लिए बाबा बने हैं वह बिलकुल नहीं करते! केवल पैसे जोड़ जोड़कर  ऐय्यासी का सामान एकत्र करने तथा उसे भोगने  में सारा जीवन बेकार बिता देते हैं।
   इसी प्रकार सरकारी  अस्पतालों में जितने की सुविधाएँ नहीं हैं उससे अधिक पैसा उन्हें प्रचारित करने में खर्च कर दिया जाता है।ठीक यही स्थिति भारत के सरकारी प्राथमिक स्कूलों की है पढ़ाई के नाम पर ड्रामे तो सारे किए जाएँगे किंतु  पढ़ाई पर किसी का कोई ध्यान नहीं होता है।अधिक क्या कहा जाए!सच यही है कि आज सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा से सम्बंधित अधिकांश शिक्षक तथा कर्मचारी न केवल लापरवाह एवं गैर जिम्मेदार हैं अपितु कई विद्यालयों में उनकी बेशर्मी का आलम यह है कि जिस स्कूल में पढ़ाने के लिए उनकी नियुक्ति हुई है उसी  स्कूल में अपने बच्चों को एडमीशन दिलाने आए अभिभावकों को वे अपने स्कूल के भय बताकर डरवाते भी हैं कि यहाँ पढ़ाई नहीं होती है आपका बच्चा यहाँ सुरक्षित भी नहीं रहेगा,उसका भविष्य बरबाद हो जाएगा! सरकारी विद्यालयों में शिक्षक शिक्षिकाओं के द्वारा एडमीशन दिलाने आए अभिभावकों को जलील भी किया जाता है कि आप इतना भी नहीं कमा पाते हैं कि अपने बच्चे को किसी ढंग के स्कूल में पढ़ा सकें !बच्चों के लिए लोग क्या क्या नहीं करते किन्तु आप तो कुछ भी करने लायक नहीं दिखते!हम लोग तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में कभी नहीं पढ़ा सकते आदि आदि।यह सब सुनकर अभिभावकों में पति पत्नी के बीच होता है भीषण संघर्ष, जिसमें बच्चे की माता अपने पति को धिक्कारती हुई कहती है कि तुम्हें मर जाना चाहिए चुल्लू भर पानी में डूबकर! तुम्हें धिक्कार है कि तुम अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहते हो!पास पड़ोस वाले लोग भी ऐसे बाप को बड़ी गिरी दृष्टि से देखते हैं उसके बच्चों के काम काज नहीं होते,नाते रिश्तेदार दूरियाँ बना लेते हैं  आखिर कितने गंदे होते हैं सरकारी स्कूल!कितनी गुणवत्ता गिरा दी गई है इन स्कूलों की?दुःख की बात यह है कि यह सारी दुर्गन्ध सरकारी स्कूलों के अन्दर से उठ रही है।इस दुर्गंध को समाप्त करके इसे सुगंध में बदलने के लिए जिन जिम्मेदार लोगों को जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से मोटी मोटी सैलरी दी जाती है उनमें से ही एक बहुत बड़ा वर्ग सरकारी स्कूलों की बदनामी करने वाले मक्कार लोगों का है ये लोग पहले तो अपने बच्चों को एडमीशन दिलाने आए अभिभावकों को सरकारी स्कूल के भय बताकर डरवाते  हैं कि यहाँ पढ़ाई नहीं होती है आपका बच्चा यहाँ सुरक्षित भी नहीं रहेगा,उसका भविष्य बरबाद हो जाएगा!फिर उसे  जलील करते हैं  कि आप इतना भी नहीं कमा पाते हैं कि अपने बच्चे को किसी ढंग के स्कूल में पढ़ा सकें !फिर भी यदि मजबूरी बस कुछ लोग एडमीशन करा ही जाते हैं तो उन्हें ये लोग पढ़ाते नहीं हैं।
    ये बात मैं उन जिम्मेदार अभिभावकों की  जो वास्तव में अपने बच्चे को पढ़ाना ही चाहते हैं वे अभिभावक कभी अपने बच्चे के स्कूल की बुराई इसलिए भी नहीं करते हैं कि उसके साथ उनकी  एवं  उनके परिवार की प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। ऐसे विद्यालयों की संख्या हो सकता है कि लाखों में हो उनके रख रखाव एवं संचालन पर अरबों रुपए खर्च किए जाते होंगे आखिर किसलिए?कितना मोटा बजट होगा उन लोगों की सैलरी का ! जो सरकारी विद्यालयों की प्रतिष्ठा को ध्वस्त करने के लिए सरकारी खर्चे से सरकारी विद्यालयों में रखे जाते हैं। जिन सरकारी कर्मचारियों में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की सैलरी भी बीसों हजार से अधिक होती है वहाँ के अध्यापक और अधिकारियों का कितना बोझ ब्यर्थ में ढोने को देश मजबूर है।ऐसे लोग भी जब भोजन करने के लिए रोटी का कौर तोड़ते हैं तो उसमें  गरीब से गरीब आदमी की कमाई का भी अंश उनके उस कौर में सम्मिलित होता है जिसे सैलरी के रूप में सरकार के माध्यम से उन्हें दिया जाता है।क्यों नहीं धिक्कारती है उन्हें उनकी आत्मा?लगता है कि ऐसे भ्रष्ट लोगों का जमीर ही मर चुका है आखिर किससे क्या आशा की जाए?      
   कई बार इन पर अंकुश लगा सकने में सक्षम अधिकारी इतने गैर जिम्मेदार होते हैं कि शिक्षकों का यह आपराधिक  आचरण उन्हें अपनी आँखों से तो दिखाई नहीं ही पड़ता है यदि कोई शिकायत करने पहुँच जाए तो उसी को समझाने लगते हैं कि आप अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा लीजिए! सरकारी में कहीं भी पढ़ाई नहीं होती है।इसीलिए हम लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं,क्योंकि सरकारी स्कूलों का वातावरण बहुत ख़राब है यही कारण है कि आज सरकारी विद्यालयों को केवल अन्य लोग ही निम्न दृष्टि से नहीं देखते हैं अपितु सरकारी विद्यालयों एवं सरकारी शिक्षा से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों की भी सरकारी विद्यालयों के विषय में  यही निम्न दृष्टि ही है आखिर वो अपने बच्चों को क्यों नहीं पढ़ाते हैं सरकारी स्कूलों में? इसकी एक बार जाँच हो जाए तो सारा दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा!चुस्त दुरुस्त व्यवस्था कही जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के सरकारी विद्यालयों की  स्थिति  इतनी ढीली है!आखिर प्राइवेट विद्यालयों की लोक प्रियता इनसे हमेशा आगे रहती है क्यों?सरकारी विद्यालयों के शिक्षक न केवल उनकी अपेक्षा अधिक शिक्षित होते हैं अपितु ट्रेंड भी  होते हैं । इनके पास संसाधन भी अधिक होते हैं इनके पास पीछे से अनुशासन करने के लिए अधिकारी भी होते हैं किन्तु ये सारा ड्रामा किस काम का ?यदि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई ही न होती हो?एक ओर बेरोजगारी मुँख खोले खड़ी है तो दूसरी ओर जिसे नौकरी मिली है वो काम नहीं करना चाहता है।उनके कुछ भ्रष्ट अधिकारी या तो उनसे घूँस खाकर शान्त रहते हैं या फिर ईमानदार अधिकारी उनके दिए हुए सम्मान से भाव बोझिल होते हैं।सोचो यदि ऐसी कायरता सीमा के सैनिकों में होती तो कितनी दुर्दशा हो जाती देश की ?     
     दिल्ली के एक क्षेत्रीय निगम पार्षद से मैंने शिकायत की तो वो कहने लगे कि यदि उनके विरोध के लिए मैंने कहीं शिकायत की तो वो हमें क्यों छोड़ देंगे?और हरिश्चंद तो मैं भी नहीं हूँ इसलिए उन्हें भी कमाने खाने दो !
   अपने बच्चों के एडमिशन के लिए मैं कई सरकारी स्कूलों में गया  और अपना विजिटिंग कार्ड दिया तो वहाँ के प्रधानाचार्यों ने  यह कह कर हमें समझाया कि यदि आप अपने बच्चे  का भविष्य बनाना चाहते हो तो गैर सरकारी स्कूल में पढ़ा लीजिए यहाँ अच्छी पढ़ाई  नहीं होती है तो मैंने जानना चाहा कि आखिर यहाँ क्यों नहीं होती है अच्छी पढ़ाई? क्या सरकारी विद्यालयों के अध्यापक पढ़े लिखे नहीं होते या वो पढ़ा नहीं पाते हैं या वो सैलरी नहीं लेते हैं या वो पढ़ाने के लिए यहाँ नियुक्त नहीं हुए हैं या उन्हें किसी का भय नहीं है या उन्हें पढ़ाना है ही नहीं वो तो नाते रिश्तेदारी निकाल कर या घूँस देकर अध्यापक पद पर नियुक्त हुए हैं।
    इस पर  वो थोड़ी देर तक मौन एवं सिर झुकाकर बैठे रहे फिर कहने लगे कि सब कुछ ठीक है किंतु  लज्जा का भय जिसे न रहा हो उससे आपको कोई आशा नहीं करनी चाहिए !
        दलितों के लिए काम करने वाले,दहेज़ का विरोध करने वाले,महिलाओं के सम्मान के लिए शोर मचाने वाले एवं शिक्षा के लिए हो हल्ला मचाने वाले लोग तथा देश का हित चिन्तक मीडिया ऐसे प्रश्नों पर न जाने क्यों मौन है ?

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