मोदी जी के जन सेवा बल से भयभीत,भागे फिर रहे    
                               नेता लोग !
    यदि अपने देश का नाम 
हिंदुस्तान है तो क्या किसी देशवासी हिंदुस्तानी  को राष्ट्रवादी होने का 
गर्व नहीं होना चाहिए? यह अलग बात है कि वह हिन्दू भी है इस पर गर्व कोई 
क्यों न करे ?हर किसी को अपने स्वत्व पर गर्व करना ही चाहिए।
    
 सारा भेदभाव राजनेताओं की देन है आखिर अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली 
रियायतें हिन्दुओं को क्यों नहीं दी जातीं? क्योंकि वो हिन्दू हैं !जब कोई 
हिन्दू होने का दंड झेल सकता है तो हिन्दू होने पर गर्व क्यों नहीं कर 
सकता?
    
 जहाँ तक मोदी जी के द्वारा पिल्ले के  उदाहरण की बात है तो जब वहाँ दंगा 
हुआ था तो हर वर्ग के लोग मारे गए होंगे तो पिल्ले से केवल किसी एक समुदाय 
विशेष की ओर इशारा करके घुमाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? यह कहा जा 
सकता है कि यह उदाहरण ठीक नहीं था इसके शब्द और अच्छे होने चाहिए थे  आखिर 
आगे आने वाले  चुनावों को देखकर राजनैतिक दलों के द्वारा  कहीं कोई 
सांप्रदायिक उन्माद गढ़ने की तैयारी तो नहीं की जा रही है।जन सामान्य 
प्रसंगों में कही गई भावनात्मक बातों में सांप्रदायिक जहर घोलने के प्रयास 
बंद होने चाहिए !
        नरेन्द्र मोदी जी टोपी न पहनें तो समस्या,ईद की मुबारक कहें तो समस्या, हिन्दुओं के पक्ष में बोलें तो उन्माद भरने का आरोप, मुश्लिमों के पक्ष में बोलें तो धर्मनिरपेक्षता का पाखंड करने का आरोप आखिर मोदी जी  क्या बोलें ?  सारे राजनैतिक दल  घबड़ाकर कहीं   ये तो नहीं चाहते हैं कि मोदी जी उन उन दलों का प्रचार करें या जो वो लोग निश्चित करें बस उतना ही  मोदी जी बोलें! संभवतः  इसी घबड़ाहट के कारण ही उन पर कुछ लोग  ऊल जलूल आरोप लगा रहे हैं । 
         जहाँ तक गुजरात के दंगों
 की बात है दंगे कहीं भी हों दुर्भाग्यपूर्ण ही कहे जाएँगे दंगों में दोनों
 पक्ष ही प्रभावित होते हैं  इसमें यह भी आवश्यक नहीं है कि दोनों पक्ष 
समान रूप से पीड़ित हों!किसी भी दंगे में ऐसा होता ही  है।मेरे विचार से 
किसी भी प्रशासक के विषय में ऐसा माना जाना चाहिए कि जहाँ तक उसका बश चलेगा
  वो अपने शासन काल को कलंकित नहीं होने देगा!मेरा अनुमान है कि मोदी जी ने
 भी ऐसा प्रयास अवश्य किया होगा जिसमें वह सफल कितने हुए हैं यह और बात 
है,फिर भी मोदी जी से दंगा नियंत्रित करने में  कहीं कोई कमी  हो सकता है 
कि  रह गई हो तो इसका कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें सत्ता में आए कम दिन
 ही हुए थे संभव है कि इस प्रकार के दंगों से निपटने के अनुभव का अभाव  रहा
 हो सकता है!
      उन्होंने  उस समय की अपनी प्राशासनिक  क्षमता के आधार पर दंगे रोकने का 
पूर्ण प्रयास किया भी हो  फिर भी उस तरह का नियंत्रण न कर सके हों जैसा 
करना चाहिए था! ।संभव है कि अटल जी ने इसीलिए  राजधर्म निर्वाह करने को कहा हो जिस पर मोदी जी ने उनसे उसी मंच पर तुरंत
 निवेदन किया था कि वही तो मैं भी कर रहा हूँ इसका मतलब उनके मनमें कोई खोट
 नहीं थी किन्तु मानों अटल जी की सीख को स्वीकारते हुए ही इसके बाद 
उन्होंने अपने कर्तव्य का और कड़ाई से पालन किया जिसका परिणाम  उनके पक्षपात
 विहीन स्वच्छ  प्रशासन के रूप में और अधिक निखरकर सामने आया।यही कारण है 
कि गुजरात में  एक बार दंगा हुआ फिर नहीं होने पाया। इसीप्रकार एक बार 
आतंकी हमला हुआ फिर नहीं होने पाया!इतना ही नहीं अपितु 
दिनों दिन गुजरात विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है जिसकी चर्चाएँ वैश्विक फलक 
पर स्पष्ट रूप से देखी सुनी जा सकती हैं । ऐसे सर्व जन हितकारी लोकप्रिय मोदी प्रशासन की तो प्रशंसा होनी चाहिए !    
        इन सबके बाबजूद उन दंगों 
के विषय में जाँच भी चल रही है केंद्र में विरोधी पार्टी की सरकार है उसे 
चाहिए कि जाँच में किसी भी  प्रकार की ढील न  होने दे दूसरी बात उस गुजरात 
प्रदेश की जनता ही मोदी जी को चुनावों में पराजित कर दे ये भी नहीं हो पा 
रहा है। ऐसा भी नहीं है कि  मोदी जी अपनी पार्टी की लोकप्रियता को भुना रहे
 हों!अपितु सच्चाई यह है कि अपनी सेवा भावना एवं सेवा कार्यों से 
 गुजरात वासियों का स्नेह एवं विश्वास प्राप्त करने में उन्होंने सफलता 
हासिल की है यह उनके  गुजरात वासियों के प्रति स्वकीय सद्व्यहार का ही 
परिणाम है। 
जनता ने  भरोसा किया  मोदी जी पर !लोक तंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है 
आखिर जनमत की उपेक्षा कैसे और क्यों की जाए? ऐसा भी तो नियम नहीं है कि 
गुजरात से बाहर के लोगों के वोट डलवाकर मोदी जी को हरवा दिया जाए।
    
 जो दल जबर्दस्ती मोदी जी  को दोषी सिद्ध करना ही चाहते हैं उन पर   गुजरात
 वासियों ने यदि विश्वास किया होता तो उन दलों की विजय होती किन्तु जो दल 
गुजरात वासियों का भरोसा ही नहीं जीत पाए, जब जब चुनाव हुए तो पराजित 
हुए!जो दल या नेता मोदी जी का विरोध करते रहे हैं वो आज भी शीशे में अपनी 
शकल देखें तो पता चलेगा कि पूरे देश में मोदी जी की लोकप्रियता  उन दल या 
नेताओं   से अधिक आज भी है।जो दल गुजरात की जनता के द्वारा कई बार दुद्कार 
कर भगाए  जा चुके हों और मोदी जी पर अपना भरोसा व्यक्त किया गया हो वो 
गुजरात के मामले में किस मुख से मोदी जी की निंदा करते हैं क्या गुजरात की 
जनता को मूर्ख या बुद्धू समझते हैं आखिर उस प्रदेश की जनता के किए गए फैसले
 पर बार बार प्रश्न चिन्ह क्यों उठाते रहते हैं ,और किस बल पर गुजरात की 
जनता के हितैषी वो लोग अपने को मानते हैं? 
   
 मोदी जी हमेशा समस्त गुजरात वासियों या समस्त भारतीयों के हित की बात करते
 हैं। यही उनकी लोक प्रियता का मूल मंत्र है क्योंकि संकीर्ण लोगों को समाज
 पसंद नहीं करता है इसीलिए संकीर्ण लोगों को पराजय का मुख देखना पड़ता है। 
     अस्तु मुद्दों की बात की जाए
 मोदी जी की नहीं!यहाँ व्यक्ति वाद की नहीं अपितु विकासवाद की राजनीति का 
शुभारंभ किया जाना चाहिए इसी में हम सबकी भलाई है ।   
 
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