Monday, September 2, 2013

आशाराम जी को शैतान कहना कितना उचित है ?

  आशाराम धार्मिक संत हों न हों बयोवृद्ध भारतीय नागरिक तो हैं ही !

     आम समाज के मन में आशाराम धार्मिक संत हों न हों किंतु कुछ लोग उन्हें प्राण प्रण से अपना आस्था पुरुष मानते हैं बताया  जाता है कि उनकी संख्या करोड़ों में है!दुनियाँ यदि आशाराम को दोषी मान भी ले फिर भी उनके समर्पित अनुयायी उन्हें निर्दोष समझ कर उनका साथ देने के लिए संगठित रूप से रोडों पर निकल पड़े  तो इन करोड़ों श्रद्धालुओं को कैसे नियंत्रित किया जाएगा ?

   मैंने सुना है कि कुछ जगहों पर आशाराम के समर्थकों पर लाठियाँ चलाई गई हैं आखिर उन्हें विश्वास में लेने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है आखिर बलात्कार का आरोप आशाराम पर है उनके समर्थकों पर नहीं,उन्हें किस अपराध की सजा दी जा रही है?उन्हें तो लगता है कि सरकार उनके गुरु के साथ साजिश करके उन्हें फँसा रही है मीडिया निजी स्वार्थों के कारण सरकार का साथ दे रहा है अन्यथा उत्तरप्रदेश के दो राजनैतिक दल वर्तमान सरकार का समर्थन कर रहे हैं उनके ऊपर आय से अधिक संपत्ति की जाँच चल रही है।केंद्र सरकार को जब  कोई बिल पास करवाना होता है या  वो दोनों दल  जब केंद्र सरकार को आँख दिखाते हैं तो केंद्र सरकार के आँखें तरेरते ही वे केंद्र सरकार की हाँ में हाँ मिलाने लगते हैं और उन्हें इसका फायदा मिलते देखा जाता है।जब इस बात को सारा देश समझता है मीडिया के लोग भी अक्सर ये सब कहते भी सुने जाते हैं आखिर क्यों?

      वही राजनैतिक दल आशाराम जी के विषय में कानून की दुहाई देते हैं!क्या इससे यह सन्देश नहीं जाता है कि यदि आशाराम जी की भी कोई राजनैतिक पार्टी होती उसके भी सांसद संसद में होते तब भी क्या आशाराम जी का तमाशा बना कर इसीप्रकार से एक नाबालिक लड़की के आरोप लगाने मात्र से इतनी जल्दी बंद कर दिया जाता आखिर किसी सक्षम राजनैतिक परिवार के दामाद पर भी तो भौमिक भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे क्या उनकी जाँच से देश संतुष्ट है?ऐसे प्रकरणों में मन मसोस कर रह जाता है समाज!

       दूसरी ओर आशाराम जी हैं जिन पर आरोप लगते ही मीडिया के एक वर्ग ने उन्हें शैतान कहना शुरू कर दिया गया, क्यों भाई यदि उनका अतीत करोड़ों लोगों के लिए अनुकरणीय रहा है तो वे भी अपने आस्था पुरुष के साथ क्यों न खड़े हों क्या संसद भवन में उनकी बात कहने वाले सांसद नहीं हैं इसलिए उन करोड़ों लोगों का कोई हक़ नहीं है कि वे भी जिसे चाहें उसके प्रति शांति पूर्ण ढंग से अपना समर्थन व्यक्त कर सकें!आखिर उन पर सरकारी लाठीचार्ज क्यों?उन्हें क़ानूनी परिस्थियाँ समझाकर विश्वास में लेने का प्रयास क्यों नहीं किया गया ?इसीलिए कि वो लोग नेता नहीं हैं !यदि समर्थकों को विश्वास में लेकर समझाया जाता कि तुम्हारे गुरु के गौरव के साथ तब तक कोई खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा जब तक कानून उन्हें दोषी नहीं मानता है यदि उनका दोष सिद्ध हुआ तो कानून बिना किसी पक्षपात के उन्हें न्यायोचित दंड देगा तब तक उनके धार्मिक नित्यकर्म  उपासना आदि के लिए उनके अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराया जाएगा साथ ही तब तक मीडिया भी संयमित एवं शालीन शब्दों का ही ब्यवहार करेगा !तो उन्हें समझाने में मदद मिलती !

    आज  की परिस्थिति यह है की कानूनन सजा होगी नहीं होगी यह तो न्याय प्रक्रिया के आधीन है किंतु मीडिया ने जैसे जैसे अपमान जनक शब्दों का प्रयोग आशाराम जी के लिए किया है यदि एक प्रतिशत इस प्रकरण में वो निर्दोष सिद्ध भी हो जाएँ तो भी समाज से आँखें मिलाने लायक तो मीडिया ने नहीं ही छोड़ा है!क्या किसी बड़े से बड़े अपराधी पर भी इतने अपमान जनक शब्दों का प्रहार करते इतनी सहजता से सुना गया है जो आशाराम जी के साथ हुआ है ?

      आशाराम जी वृद्ध हैं यदि इस उम्र में उन्हें कोई ठेस लगती है तो वो अपने को सँभाल नहीं पाएँगे वो ठेस लेकर ही उन्हें मरना पड़ेगा!इसलिए हमें अभी भी अपने बात ब्यवहार में शालीनता रखनी और  दिखानी भी चाहिए !इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि उनके समर्थकों को भड़कने से आसानी पूर्वक समझा बुझा कर रोका जा सकेगा अन्यथा लाठी गोली के बल पर स्वदेशीय स्वजनों पर नियंत्रण कर पाना कठिन ही नहीं असंभव भी है आखिर देश के लोक तंत्र पर उनका भी उतना ही अधिकार है जितना किसी और का है वह स्वाभिमान उनसे छीनने का प्रयास क्यों ?

     आशाराम जी के अनुयायियों ने शास्त्रीय सूक्तियों के प्रसंगों में अपने गुरुओं से सुन रखा है कि ईश्वर और गुरु की निंदा नहीं सुननी चाहिए जो इनकी निंदा करे यदि ताकत हो तो उसकी जीभ काट ले यदि ऐसा न कर सके तो अपने कानों में अँगुली लगाकर वहाँ से दूर हट जाए!ऐसे ऐसे पाठ पढ़ चुके श्रद्धालुओं को धीरज कैसे बँधाया जाए !इसलिए हम सबकी तरफ से समय रहते शालीनता बरतना बहुत जरूरी है कानून अपना काम करता रहे किसी को क्या आपत्ति?

    निजी तौर पर मैं न तो आशाराम जी का अनुयायी हूँ और न ही कभी उनके प्रवचनों में सत्संग जैसी कभी कोई चीज ही मुझे लगी,इतने आश्रम बनाना, धन संग्रह करना, अपने भाषणों में लप्फाजी का सहारा लेना, धन एवं मीडिया के बल से बात बात में अपने को आत्मज्ञानी ब्रह्मज्ञानी जैसे शब्दों से महिमा मंडित करना मुझ समेत किसी भी सनातन धर्मी को हमेशा चोट पहुँचाता रहा है!उनके लड़के का भाषण किसी चैनल पर एक दिन सुन रहा था उसने कहा कि बापू जी की ओरा की जाँच की गई है जो कुछ किलोमीटर तक फैली रहती है उस सीमा में प्रवेश करते ही लोग उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं ऐसी उपहासास्पद बातें आज उनके साथ साथ उनके अनुयायियों समेत सभी लोगों को परेशान कर रही हैं आखिर अब कहाँ गई वो ओरा?हिंदू धर्म एवं धर्मगुरू के रूप में प्रचारित आशाराम जी ने अपनी धन और आश्रमों की भूख को,अपने रहन सहन को एवं अपनी भाषा तथा छिल्लड़ता को यदि नियंत्रित रखा होता तो विश्व स्तर पर आज क्यों हो रही होती सनातन हिन्दू धर्म एवं उससे जुड़े लोगों की छीछालेदर ? 

     शास्त्रीय धार्मिक जगत ऐसे सभी स्वयम्भू बाबाओं को न तो कभी मुख लगाता और न ही इनकी उन्नति या अवनति में ही शामिल होता है।चाहें कोई कामदेव बाबा भोग पीठ बनाएँ या कोई मलमल बाबा गोलगप्पे खिलाकर किसी के पास अपनी शक्तियाँ भेजने का ड्रामा करें!एक बुड्ढा बाबा तो लुटे पिटे अभिनेताओं को बुला कर उनको  माध्यम बनाकर पहले भाड़े की भीड़ इकट्ठी करता है फिर उन्हें बीज मंतर बाँटता है किंतु बेचारा मन्त्र को मंतर ही कहता है मंत्र नहीं कह पाता है चूँकि ऐसे सभी बाबाओं में धार्मिक एवं शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान सहित उन तमाम संस्कारों का अभाव होता है जो शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की पावन परंपराओं  से सुलभ होते हैं।ऐसे सभी बाबाओं से न तो शास्त्रीय साधू संत जुड़ते हैं और न अलग ही होते हैं न प्रेम करते हैं और न ही द्वेष वो पवित्र आत्मा लोग सोचते हैं कि हमें इन प्रपंचों से क्या लेना देना हमें तो भजन करना है हम तो भजन ही करेंगे, इसीलिए पिछली बार जब एक भोगी बाबा पर कार्यवाही हुई थी शास्त्रीय साधू संत समुदाय की न तब कोई प्रतिक्रिया आई थी और न ही अब आई है! वैसे भी मूर्ति पूजा का खंडन करने वालों से लेकर भोग भगवान रजनीश आदि  इसी प्रचार तंत्र की उपज थे इनसे आगे पीछे और जितने भी प्रचार प्रधान बाबा हुए हैं सब की दुर्दशा उनके अपनों ने ही की है। ऐसे लोगों के शिष्य रूपी सदस्य ही इन्हें उठाते हैं वही गिरा देते हैं आशाराम जी भी आज उसी के शिकार हैं!

    ऐसे सभी महत्त्वाकांक्षी धर्म गुरुओं,योग गुरुओं को अपनी सुविधानुशार मीडिया पैदा करता है प्रचारित करता है और नष्ट कर देता है जो आज आशाराम जी के साथ हो रहा है!

    मेरा प्रश्न मीडिया से भी है कि आशाराम जी को धर्मगुरु या संत की उपाधि एवं दूसरे बड़बोले बाबा को योगगुरु जैसी उपाधि किस शास्त्रीय संत सभा में दी गई थी ? ऐसे बाबाओं को धर्मगुरु योगगुरु जैसे नामों से क्यों प्रचारित करते हैं आप !ऐसे तो जिस किसी को होता है सनातन धर्मियों का गुरू बनाकर खड़ा कर देता है मीडिया ! फिर करता है उसकी छीछालेदर, बारे मीडिया!

   ये उसी तरह की बात है कि किसी व्यक्ति के शिर पर मीडिया पहले तो मुकुट पहनाता है इसके बाद उस मुकुट पर गोबर लगाता है जब वह पूछता है भाई यह क्या कर रहे हो तो जवाब देता है मुकुट तो मेरा है कुछ भी करूँ! इसी तरह आशाराम जी को पहले तो धर्मगुरु बनाया फिर कर रहा है छीछालेदर!ऐसे ही बहुत सारे अनपढ़ों को ज्योतिषाचार्य,वास्तु शास्त्री,तांत्रिक ,वैद्य आदि बहुत कुछ बना रहा है मीडिया!गलती उनकी है जो बिना किसी डिग्री या शिक्षा के टी.वी.चैनलों पर बैठ बैठ कर बकवास कर रहे हैं आज तो मजा आ रही है कल मीडिया इनकी भी दुर्दशा करेगा तब धर्म और धर्म शास्त्रों एवं हिन्दू धर्म के साथ हो रहे अत्याचार गिनाएँगे!सच है कि ये फोकट की प्रचार भूख व्यक्ति को कहाँ से कहाँ पहुँचा देती है !

 

              डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 9811226973


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