नवरात्रों के विषय में यह भी जानिए
दुर्गा पूजा के विषय में अथर्वेद में वर्णन मिलता है कि माता दुर्गा का
पूजन करना इसलिए और अधिक महत्त्व पूर्ण है क्योंकि पृथ्वी से लेकर समस्त
देवी देवताओं का अधिष्ठान भगवती दुर्गा में है अतएव भगवती दुर्गा का पूजन
कर लेने से सभी देवी देवताओं के पूजन का फल मिलता है।दुर्गा सप्तशती के
दूसरे अध्याय में भी वर्णन है कि सभी देवताओं के तेज से ही भगवती दुर्गा
प्रकट हुई हैं।उनके ही नव स्वरूप माने गए हैं शैलपुत्री,
ब्रह्मचारिणी,चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्धमाता,
कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी,सिद्धिदात्री आदि नामों से भगवती नव दुर्गा
प्रसिद्ध हैं, नवरात्रों में प्रत्येक दिन के क्रम से इन्हीं नव स्वरूपों
की पूजा होती है यद्यपि परम्पराएँ दोनों तरह की प्रचलित हैं कुछ लोग नव
स्वरूपों की पूजा नवरात्र के नव दिनों में क्रमशः शैल पुत्री आदि
देवियों के क्रम से करते हैं तो कुछ लोग प्रतिदिन सभी स्वरूपों की पूजा
करते हैं।
पहले के समय में वर्ष का
प्रारंभ शरद ऋतु से माना जाता था इसलिए भगवती दुर्गा की पूजा वर्ष के
प्रारंभ अर्थात आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से अष्टमी पर्यंत नवरात्रियों में
की जाती थी चूँकि ये नवरात्र शरद ऋतु में होता है इसलिए इसे शारदीय नवरात्र
कहा जाने लगा, इसके बाद जब वर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना
जाने लगा तो भगवती दुर्गा की पूजा इसी प्रतिपदा से अष्टमी पर्यंत
नवरात्रियों में की जाने लगी यह नवरात्र बसंत ऋतु में होने के कारण इसे
बासंती नवरात्र कहा जाने लगा।
यहाँ एक विशेष बात और ध्यान देने लायक है कि शास्त्रों में रात्रि
काल की देवी पूजा का विशेष फल माना गया है "रात्रौ देवीं च पूजयेत् "
क्योंकि देवी रात्रि स्वरूपा हैं शिव को दिन स्वरूप माना गया है इसीलिए इस
नवरात्र ब्रत में रात्रि व्रत का विधान है -
रात्रि रूपा यतो देवी दिवा रूपो महेश्वरः|
रात्रि व्रतमिदं देवी सर्व पाप प्रणाशनम् ||
यही कारण है कि प्रतिपदा से अष्टमी तक दिन तो आठ ही होते हैं फिर प्रत्येक
दिन के क्रम
से नव देवियों की पूजा कर पाना संभव न हो पाता!इसका यह मतलब कतई नहीं
निकाला जाना चाहिए कि देवी की पूजा दिन में नहीं की जा सकती! भक्ति और
श्रद्धा पूर्वक माता की पूजा दिन और रात्रि में कभी भी की जा सकती
है।वस्तुतः शिव और शक्ति में कोई भेद नहीं है इतना अवश्य याद रखे कि नव
देवियों की पूजा अवश्य की जानी चाहिए अन्यथा दिन के क्रम से पूजा करने पर
प्रतिपदा से अष्टमी तक तो आठ दिन ही हो पाते हैं इस प्रकार से आठ देवियों
की पूजा तो हो जाती है नवमी सिद्धिदात्री देवी की पूजा छूट जाती है जो उचित
नहीं है इसलिए नवमी के दिन प्रातः काल माता सिद्धिदात्री की पूजा करने के
बाद हवन कन्या पूजन आदि का शुभारंभ करना चाहिए ।
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