Friday, September 6, 2013

नवरात्रों में व्रत करना क्यों आवश्यक है ?

      नवरात्र व्रत एवं उसके रीति रिवाजों का महत्त्व 

      आदि शक्ति माता दुर्गा की पूजा वैसे तो हमेंशा की जाती है जिसे जब जैसा समय हो वैसे लोग अपनी अपनी परंपराओं के अनुशार करते रहते हैं। नवरात्र पर्व पर इस पूजा का विशेष महत्त्व होता है। मुख्य रूप से चैत्र और आश्विन मास में नवरात्र  मनाए जाते हैं।दो गुप्त नवरात्र भी माने जाते हैं जो आषाढ़ और पौष मास में होते हैं ।चूँकि भारत कृषि प्रधान देश रहा  है इसलिए चैत्र में गेहूँ की फसल और आश्विन में धान की फसल होने के कारण ये दो नवरात्र धूमधाम से मना लिए जाते थे इसीलिए चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही विशेष प्रचलन में रह गए तथा आषाढ़ और पौष मास के नवरात्र गुप्त होते चले गए! अतः इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता है।

     पहले अपने यहाँ चैत्र में होने वाली गेहूँ की फसल की अपेक्षा आश्विन में धान की फसल अधिक अच्छी होती थी इसलिए चैत्र की अपेक्षा आश्विन के नवरात्र विशेष धूम धाम से मनाए जाने की परंपरा सी पड़ती चली गई। यहाँ तक कि देश के कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ चैत्र के नवरात्रों का प्रचलन अत्यंत कम है केवल आश्विन के नवरात्र ही मुख्य रूप से मनाए जाते हैं।

       यद्यपि सभी नवरात्र पर्व अपनी परिस्थिति के अनुशार धूम धाम से मनाए जाने चाहिए इससे भगवती की कृपा का विशेष फल तो होता  ही है साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इनका विशेष महत्त्व है। 

        आयुर्वेद में कहा गया है कि ऋतु संधियों में अर्थात मौसम बदलते समय स्वास्थ्य बिगड़ने की विशेष संभावना रहती है इसलिए इन समयों में वमन विरेचन आदि पंच कर्म करने का विधान है इससे शरीर शुद्ध हो जाता है और रोग होने की संभावना भी नहीं रह जाती है                    "असाध्य भेषजैः व्याधिः पथ्यादेव निवर्तते "

       अर्थात व्रती भाव से फल फूल खाकर नियम संयम पूर्वक रहने से दवा के द्वारा न ठीक हो सकने वाले रोग भी पथ्य भोजन अर्थात व्रत करने मात्र से ठीक हो जाते हैं।  इसी समय यदि दुर्गा जी की आराधना भी की जाए तब तो तन मन धन आदि सभी दृष्टियों से अत्यंत उत्तम हो जाने में क्या संदेह है !

      देवी भागवत में इसी बात को बताते हुए व्यास जी ने जन्मेजय जी  से कहा है कि शरद और बसन्त ये दोनों ऋतुएँ "यमदंष्ट्र" अर्थात यम राज के दाँत की तरह भयंकर मानी गई हैं।इन ऋतुओं में संसार के प्राणियों में बड़े बड़े रोग जन्म लेते हैं,अतः चैत्र और आश्विन के पवित्र महीनों में यत्न पूर्वक दुर्गार्चन किया जाए तो भगवती सभी प्राणियों की रक्षा करती रहती हैं।(व्यवहार में भी डेंगू आदि तरह तरह के होने वाले ज्वरों एवं अतिसार आदि रोगों का प्रकोप भी नवरात्र तक ही विशेष देखा जाता है।)

    इसीलिए देश के विभिन्न भागों  की दुर्गा पूजा परम्पराओं, पद्धतियों एवं उत्सव मनाने के रीति रिवाजों में भले ही कुछ अंतर हो किंतु नियम संयम से व्रती रहकर सात्विक भावना से श्रद्धा पूर्वक भगवती की आराधना करने का विधान सभी जगह एक समान ही देखने को मिलता है।इसलिए हर किसी को तन मन धन की कुशलता के लिए माता दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

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