Friday, December 13, 2013

अरे!अन्ना के समर्थकों "जागते रहो"कहीं टीम अरविन्द आ न जाए !


अन्ना ने लगाई गोपाल राय को फटकार, रालेगण से बाहर जाने को कहा-     

    अब सामने आया राष्ट्र समर्पित अन्ना का अन्नात्व  जब दुदकारा गोपालराय के राजनैतिक अरविंदत्व को ! 

     अपने मन पर पड़े बोझ को अकारण ढो रहे अन्ना ने इसी बहाने अचानक  फ़ेंक कर अच्छा किया कम से कम अपना   हृदय तो हल्का कर लिया !बधाई हो अन्ना जी को !!!

 उचित भी है कि अन्ना के अहिंसक एवं गैर राजनैतिक आंदोलन की स्वच्छ  छवि को ईमानदार वाद के स्वयंभू मसीहा दागदार करने में लगे हुए हैं।         वास्तव में भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई यदि अन्ना जी  लड़ने में लगे हुए हैं तो किसी दम्भी ईमानदारवादी  को अन्ना के अनशन स्थल पर जाने की जरूरत क्या है यदि उसे वहाँ की भाषा एवं भाषण  पसंद नहीं हैं तो ?अन्ना जीवन के चौथे पन में चल रहे हैं अपनी शादी वेष  भूषा तथा रहन सहन एवं भाषाई शालीनता से वो बड़ों बड़ों को अपने विचारों से प्रभावित कर लेते हैं। सफेद कपड़ों में रहकर भी बिना किसी आडंबर के अन्ना ने अपना  ऋषित्व सिद्ध किया है जब तेरह दिनों के अनवरत अनशन के बाद भी उनकी शारीरिक एवं भाषाई ओजस्विता बरकार रही थी सारे विश्व ने अन्ना के उस शालीन भाषण को सुना था जिसमें उन्होंने सत्ता सलभ नेताओं को देश हित में काम करने के लिए ललकारा था । ये उनका योग एवं तपस्या ही है!जबकि ऋषित्व एवं योगीत्व के बड़े बड़े ठेकेदार अन्ना की नक़ल करते हुए अनशनी आडम्बर तो करने लगते हैं किन्तु उनमें न बोलने की शालीनता और न ही सहन शीलता ऐसे लोगों का अनशन न केवल बीच में ही टूट जाता है अपितु इन्हें प्राण रक्षा के लिए भी डाक्टरों की शरण लेनी पड़ती है। 

     खैर , अन्ना एक साधक आदमी हैं उन्हें चाहिए कि राजनीति से दूरी बनाए ही रहें अन्यथा उनके पुराने साथी लोग अन्ना के साथ सम्मिलित होकर अन्ना की नक़ल करते हुए एक अनशनी आडम्बर का आयोजन तो कर लेंगे किन्तु  ऐसे घाल मेल से अन्ना एवं उनका अन्नात्व कहीं राजनैतिक अरविंदत्व में ओझल न हो जाए मुझे डर है !

      जनरल साहब का भाषण वहाँ बैठे किसी एक अधकचरे नेता को पचा नहीं, परिणाम स्वरूप जो कुछ हुआ यह सब देखकर मुझे आशंका होती है कि कहीं अन्ना के अनुयायिओं को भ्रमित करने की यह कोई कोशिश तो नहीं है!

      इस विषय से सम्बंधित एक बात याद आती है ,जो लोग ग्रामीण जीवन से सम्बंधित रहे हैं वो जानते होंगे कि गाँवों में लोग हरी हरी घास की रस्सी बना लिया करते थे जो समय समय पर उनके  काम आया करती थी एक  अंधे सज्जन घास की रस्सी बनाते जा रहे थे उनके पास बाँधा गया भैंस का बच्चा उस रस्सी को खाता जा रहा था उन सज्जन को दिखाई तो  पड़ता नहीं था इस प्रकार से जितनी रस्सी बनी वो पाड़ा  खाता  गया !

     इसी प्रकार से अन्ना जी में चालाकी चतुराई है नहीं, वो  त्याग तपस्या से जो  जन जागरण कर पाते हैं राजनैतिक भावना से जुड़े लोग उसकी पार्टी बना डालते हैं फिर जब अन्ना अनशन करते हैं तो फिर वही राजनैतिक पाड़ा  लोग टोपी लगा लगा कर वहाँ भी पहुँचने लगते हैं जो अन्ना जी के लिए अच्छा नहीं है।आज की तरह ही अन्ना को चाहिए कि वे इन्हें दुदकारते भगाते रहें अन्यथा अन्ना का त्याग तपस्या और बलिदान ये लोग उसी भैंस के बच्चे की तरह सब चर जाएँगे!

       इसलिए अन्ना के समर्थक सभी लोगों से मेरा निवेदन है कि अरे!अन्ना के समर्थकों "जागते रहो"!!!कहीं टीम अरविन्द आ न जाए !


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