Monday, January 6, 2014

आम आदमी पार्टी की ईमानदारी का हाहा कार आखिर क्यों मचा हुआ है ?

ऐसी ईमानदारी भाजपा के संस्कारों में हमेंशा रही है किन्तु उन्होंने इसका कभी भी विज्ञापन नहीं किया है और भले लोगों को करना भी नहीं चाहिए!

       दिल्ली में आम आदमी पार्टी की बड़ी विजय के बाद ऐसी  कैसी  या जैसी तैसी सभी प्रकार की बातें बोली जा सकती हैं उसमें रोक वैसे भी नहीं थी किन्तु ऐसे रौब के साथ बोली जा सकती हैं वैसे खाली मूली बोलने की अपेक्षा ऐसे  अधिक अच्छा है।अब लोग कुछ कुछ ईमानदारी की टोपी पर भरोसा भी करने लगे हैं कि शायद यह ईमानदारी की टोपी देश की सबसे बड़ी पंचायत को भी पवित्र कर दे !

        जहाँ तक आम आदमी पार्टी की बड़ी विजय की  बात है तो यह भी देखना होगा कि यह विजय किस पार्टी से बड़ी है और किससे छोटी है जिससे  छोटी है उससे तो अदब से बात करनी चाहिए!केवल इतना ही नहीं जो पार्टी दिल्ली में आम आदमी पार्टी से बड़ी है उसी ने तीन अन्य प्रांतों में जीत का डंका बजाया  है क्या वो भुला दिए जाने लायक है या वो उनकी पार्टी के अधिष्ठातृ लोगों की ईमानदारी पर विश्वास न कहा जाए आखिर क्यों ?इन तीन प्रांतों के अलावा भी उनकी यशस्वी सरकारें चल रही हैं जनता में उनके प्रति कोई आक्रोश तो दिखता ही नहीं है अपितु भाजपा के प्रति उत्साह दिखता है इन सब बातों के लिए जनता उनके अचार विचार व्यवहार एवं सादगी पर भरोसा करती है वैसे भी ये संस्कारों का सृजन करने वाले सुसंगठन से सृजित पार्टी है जिसमें किसी व्यक्ति के संस्कारों के द्वारा संस्कार विरुद्ध आचरण करने पर एक साथ असंख्य अँगुलियाँ  उठ जाती हैं वो कितना बड़ा व्यक्ति ही क्यों न हो ?

       जबकि अन्य छोटे बड़े दलों में कहाँ हैं ऐसी सुविधाएँ ?भारत की हर राजनैतिक पार्टी का एक प्राण प्रतिष्ठित प्रमुख देवता होता है जैसे काँग्रेस में एक परिवार है ऐसे ही हर पार्टी में कोई न कोई है किन्तु भाजपा में नहीं है यहाँ हर किसी के लिए एक जैसा फिल्टर लगाया गया है हर किसी को उससे होकर ही गुजरना होगा भाजपा का नेता बनने के लिए !क्या इस पारदर्शिता को भाजपा की ईमानदारी नहीं माना जाना चाहिए?

        आम आदमी पार्टी की इस तथाकथित दिल्ली विजय को यदि एक और भी दृष्टिकोण से भी देखा जाए जिसमें भाजपा का सी.एम. प्रत्याशी घोषित करते समय पार्टी का एक वर्ग असंतुष्ट था हो सकता है कि उसने चुनावों में उतनी रूचि न ली हो जितनी उसे लेनी चाहिए थी जैसी कि हर किसी को आशंका है और स्वाभाविक भी है इसीलिए मैंने अपुष्ट सूत्रों से सुना है कि करीब बारह सीटों पर उतारे ही कमजोर कंडीडेट गए थे यदि ऐसा कुछ हुआ ही हो जिनमें कुछ ऐसे अपरिचित या कम परिचित प्रत्याशियों उतरा ही गया हो जिनमें से कुछ को मैं निजी तौर पर भी  जानता हूँ किन्तु रही होगी पार्टी या पार्टी कार्यकर्ताओं कि कुछ मजबूरी क्या कहा जाए किन्तु यदि इन कारणों से भाजपा की वो ही दस बारह सीटें कम हुईं अर्थात काँग्रेस से नाराज मत दाताओं ने भाजपा के उन कमजोर प्रत्याशियों में रूचि न लेकर अपना वोट आम आदमी पार्टी को दे दिया!

        अब सोचने लायक विषय यह है कि यदि भाजपा में आपसी बात व्यवहार में बिगाड़ के कारण यह सब कुछ न हुआ होता तो भाजपा को दस बारह सीटें और मिली होतीं  और बन जाती भाजपा की  सरकार !आम आदमी पार्टी की ईमानदारी पर भाजपा की ईमानदारी आज भी भारी है और कुछ सीटें और आ जातीँ तो और भारी पड़  सकती थी  भाजपा की ईमानदारी आम आदमी पार्टी की ईमानदारी पर !

     यदि ऐसा हो जाता तो आम आदमी पार्टी प्रधानमंत्री बनने के सपने भी शायद न देख पाती । मैं नहीं समझता कि दिल्ली में लोकसभा चुनावों में ही भाजपा लापरवाही करेगी और उतारेगी अपने कमजोर प्रत्याशी भी !

       वैसे भी ईमानदारी एवं त्याग  तपस्या जैसी चीजों में भाजपा किसी भी अन्य दल की अपेक्षा ज्यादा अधिक आदरणीय एवं विश्वसनीय है जो जनसंघ के ज़माने से ही उनके संस्कारों में रच बस रहा है कभी कदाचित कुछ लोग यदि भ्रष्टाचार से जुड़े दिखाई भी दें तो इतने बड़े परिवार में सबको दोषी कैसे कहा जा सकता है !


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