सरकारी कर्मचारी !
जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उन लोगों के साथ क्यों किया जा रहा है सौतेला व्यवहार ?
     सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई क्या वे  इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !आजादी की लड़ाई में उनके  पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? नरेगा,मरेगा
 एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है 
उन्हें! जो  चबा जाते हैं वही लोग जो या तो सरकार में हैं या सरकारी हैं आम
 जनता तो बचा खुचा जो कुछ पा जाती है तो पा जाती है बाकी उसकी थाली में दो 
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सरकार जिन्हें नौकरी नहीं दे पाई क्या वे  इस देश के नागरिक भी नहीं हैं !
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आजादी की लड़ाई में उनके  पूर्वजों का कोई योगदान नहीं है क्या?क्या उनके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है ?
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नरेगा,मरेगा
 एवं मनरेगा जैसी और भी जितनी ऐसी योजनाएँ हैं उनके भरोसे छोड़ दिया गया है क्या आम आदमी ?
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      इस देश का तथाकथित लोकतंत्र जो
 केवल गरीबों की सहनशीलता के कारण ही जीवित है बाकी इस देश में लोकतंत्र के
 नाम पर कुछ भी बचा नहीं है गरीब लोग कल यदि अपने अधिकार माँगने लगें तो इस
 तथाकथित शान्ति व्यवस्था के चीथड़े उड़ जाएँगे!
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     पचास
 पचास हजार सैलरी लेकर सरकारी लोग यदि अपनी माँगे मनवाने के लिए अपना अपना 
काम काज छोड़कर धरना प्रदर्शन कर सकते हैं तो आम आदमी ऐसी बाधा क्यों नहीं 
खड़ी कर सकता है जिसे सरकार कुछ नहीं देती है ! 
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 किसान यदि ऐसे उपद्रव करना शुरू कर दे तो लोग क्या रूपया खाएँगे ?इसलिए अब आम जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए !
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सरकारी
 नौकरी में सैलरी तो मिलनी ही है फिर काम कराने के लिए क्यों देनी पड़ती है 
घूस!और क्यों दी जाती है पेंसन ?
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आम जनता बिना पेंशन के जी नहीं लेती है 
क्या ?फिर सरकारी कर्मचारियों को क्यों जरूरी है पेंशन ?
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अब
 जागना होगा आम जनता को और पूछना होगा सरकार से कि हम इस देश के नागरिक 
नहीं हैं क्या? हमारा इस देश की आजादी पर कोई अधिकार नहीं है क्या ?
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पाँच
 दस हजार सैलरी देकर प्राइवेट स्कूलों में अच्छी  पढ़ाई करवाई जा सकती है तो
 सरकारी स्कूलों में साठ  हजार देकर क्यों नहीं करवाई जा सकती है पढ़ाई?
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 पाँच
 दस हजार सैलरी पाने वाले  कोरियर कर्मचारी कितनी जिम्मेदारी से कितनी 
ईमानदारी से कितने प्रेम से बात व्यवहार पूर्वक देते हैं अपनी सेवाएँ !और 
बचाए  हुए हैं उस डाक विभाग की इज्जत जिसके कर्मचारी पचासों हजार सैलरी लेकर
 भी काम तो नहीं ही करते हैं सीधे मुख बात भी नहीं करते हैं आखिर क्यों ?
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प्राइवेट मोबाईल कम्पनियाँ  पाँच दस हजार सैलरी देकर कितनी जिम्मेदारी से 
करा लेती हैं अपने काम सरकारी टेलीफोनों की फाल्ट महीनों महीनों तक चलती 
रहती है आखिर क्यों ?क्या सैलरी उनसे कम मिलती है इन्हें ?
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आखिर आम जनता कहाँ जाए किससे रोवे अपना दुःख?कौन सुनेगा उनकी आप बीती ?किसे चिंता है उनके दुःख दर्द की ?
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 सरकार
 और सरकारी कर्मचारियों के अलावा अन्य   लोगों के विषय में भी तो  सोचिए 
!क्या महँगाई उनके लिए नहीं है सरकारी कर्मचारियों की ऐसी विशेष कौन सी 
आवश्यकताएँ  हैं जो आम आदमी की नहीं होती हैं लेकिन सरकार मेहरबान केवल सरकारी 
कर्मचारियों के प्रति रहती है क्यों?बाक़ी सब कहाँ जाएँ ?
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प्राइवेट अस्पतालों में कितनी होती है साफ सफाई और कैसे दी जाती हैं 
चिकित्सा सुविधाएँ! उन्होंने ढक रखी है सरकारी अकर्मण्यता की पोल पट्टी! 
किन्तु सरकारी  अस्पतालों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
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