Thursday, March 13, 2014

राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

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समझें अपने पूर्वजों का प्राचीन विज्ञान 


      प्राचीन काल में तलाक नहीं होते थे ?कन्या पूजन होता था ,नारियों की तुलना देवियों से की गई थी अब वैसा नहीं है ,तब  माता पिता का देवतुल्य सम्मान था जिनका स्वर्गवास होने पर भोजन के नाम पर पिंडदान तक दिया जाता था अब जीवन काल में ही वृद्धों को भोजन के लिए वृद्धाश्रम भेजने की तैयारी होती है ! तब अनाथों के नाथ बाबा विश्वनाथ द्वारिका नाथ आदि समस्त देवी देवता माने जाते थे थे अब उनके लिए अनाथाश्रम बनाए जा रहे हैं !तब शिक्षा दीक्षा और चिकित्सा की सहज सुविधा से समाज संस्कारवान था ।अब ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ?
     आधार हीन, प्रमाण हीन,तर्क विहीन दलितों के शोषण का आरोप सवर्णों पर लगाकर सरकारी सेवाओं एवं सम्पत्तियों को लूटने लुटाने की प्रतिस्पर्द्धा में लगे भ्रष्टाचारी राजनैतिक दलों के कटघरे में खड़ी भारतीय राजनीति के इस घिनौने  स्वरूप को आखिर कब तक चला पाएँगे भ्रष्टाचारी लोग !आखिर कभी तो  सच्चाई भी सामने आएगी ही कितना लूटा है सवर्णों ने यह भी पता चल पाएगा इस विषय पर कोई पार दर्शी जाँच तो हो।

जातीय आरक्षण के दुष्प्रभाव से शिक्षा विहीन शिक्षक,चिकित्सक एवं जप तप संयम शास्त्रीय स्वाध्याय विहीन साधू एवं भ्रष्टाचार युक्त सरकारें एवं कर्तव्य हीन सरकारी कर्मचारियों का एक बहुत बड़ा वर्ग जिसके दुष्परिणाम स्वरूप सरकारी प्राथमिक स्कूल,सरकारी अस्पताल ,सरकारी टेलीफोन,सरकारी डाक विभाग आदि के पचासों हजार सैलरी लेने वाले सरकारी कर्मचारी वो सेवाएँ नहीं दे पा रहे हैं जो पाँच दस हजार रूपए सैलरी पाने वाले प्राइवेट,शिक्षक,चिकित्सक,कोरियरवाले तथा प्राइवेट फोन और मोबाईल विभाग से जुड़े कर्मचारी अपनी कर्तव्यनिष्ठा से इन विभागों से जुड़े सरकारी कर्मचारियों की इज्जत बचाए हुए हैं सरकारी नाकामी की पोल ढके हुए हैं अन्यथा प्राइवेट विकल्प विहीन पुलिस विभाग की तरह मची होती यहाँ भी …!
   स्वदेशी के नाम पर व्यापारी होने लगे हैं संस्कार संयम सदाचार के अभाव में  अपराध की भावना बढ़ती जा रही है पुण्य पाप का भय समाप्त हो रहा है सारे सम्बन्ध टूटते जा रहे हैं मोबाईल  है किन्तु मन की बात किससे कहें ,गाड़ियाँ  हैं किन्तु जाएँ किसके घर !सब कोई है सब कुछ है फिर भी न जाने क्यों जीवन सूना सूना है अपनापन ,आत्म विश्वास के अभाव से बेचैन समाज के उत्साह विहीन जीवन में के लिए चाहिए आपका भी योगदान जुड़ें "राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान" से !

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