मोदी लहर की काल्पनिक कलह से जूझ रही भाजपा किन्तु मोदी लहर है कहाँ और होती भी तो लहरें पकड़ कर नहीं रखी जा सकती हैं ये तो जहाँ से उठती हैं वहीँ विलीन हो जाती हैं ? न इनको उठते देर न विलीन होते भाजपा क्या सोचती है कि इस लहर को वो पकड़ कर बैठ जाएगी!  वैसे भी भाजपा की पहचान बन चुके बरिष्ठ नेता जब रूठे चल रहे हैं तब पार्टी चला कौन रहा है ?
  
देश में काँग्रेस विरोधी लहर तो है किन्तु भाजपा के पक्ष  में या मोदी लहर जैसी कोई चीज कहीं नहीं दिखाई देती  है यहाँ तक कि उनकी अपनी पार्टी में भी नहीं  है यदि ऐसा होता तो पार्टी में कलह ही क्यों होता !उनके लिए सुरक्षित सीटें क्यों ढूँढी जातीं क्यों वो दो दो सीटों से लड़ते चुनाव !क्यों किए जाते सिद्धांत विरोधी समझौते! क्यों 272 + के लिए मची होती मारामारी ?क्यों उठते उनकी नीतियों पर सवाल ?फिर(NDA) क्यों भाजपा की अपनी सरकार बनाने की कम से कम कल्पना तो होती किन्तु यहाँ ऐसा कुछ तो दिख नहीं रहा है!हाँ,सत्ता विरोधी लहर तो है किन्तु  उस लहर को  अपने पक्ष में कैसे कर पाएगी भाजपा ये भाजपा को सोचना है दिल्ली के चुनावों में भी तो ऐसा ही था किन्तु भाजपा आपस में ही लड़ती रही और लहर ले गई आम आदमी पार्टी ! 
     कहीं ऐसा तो नहीं कि पार्टी चलाने के लिए ही दूसरी पार्टियों के वे नेता इम्पोर्ट किए जा रहे हैं जो भाजपा की नियति नीति सिद्धांतों के न केवल धुर विरोधी रहे हैं अपितु मुखर आलोचना भी करते रहे हैं किन्तु भाजपा के बरिष्ठ नेताओं ने जिनके सामने बिना घुटने टेके भी पार्टी के कलेवर को सत्ता तक पहुँचाने में सफलता हासिल की है । श्री राम मंदिर विरोधियों  के सामने जो सिद्धांत वादी  कभी झुके नहीं हैं पर आज  उनकी उसी अपनी भाजपा में  उन्हीं लोगों की तूती बोल रही है जो कल तक  भाजपा के विरोधी रह चुके हैं  आज उनके साथ तो सिद्धांत हीन समझौते किए जा रहे हैं  किन्तु भाजपा के बरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा और  उपहास हो रहा है । 
     भाजपा के बरिष्ठ नेताओं के तेजोमय  प्रभाव से जो विरोधी नेता हमेंशा न केवल बेचैन रहते रहे हैं  अपितु भयभीत होकर उन नेताओं के बड़े बड़े झुण्ड काँग्रेस के आँचल में छिप जाते रहे हैं  संभवतः उनकी ये चाह रही होगी कि कभी मौका मिला तो इन बरिष्ठ नेताओं से बदला लूँगा !
     वो लोग  भाजपा की विरोधी पार्टियों में रहकर अभी तक भाजपा के बरिष्ठ नेताओं की आलोचना करते रहे हैं अब भाजपा के नेताओं के साथ सम्मिलित होकर करवा  रहे हैं उनके ही  बरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा !जिससे समाज में हो रहा है भाजपा के बरिष्ठ नेताओं का उपहास ! और लिया जा रहा है  पुराना बदला !जिसका आज उन्हें मौका मिला है  जिसकी तलाश में वो लोग पहले से रहे होंगे। मेरे विचार से तो आज वो भाजपा के बरिष्ठ नेताओं से बदला लेने के लिए ही भाजपा के चबूतरे पर इकट्ठे हो रहे हैं ।
   उनमें से कई आगंतुक नेता पिछले चुनावों में पराजित हो चुके हैं कुछ तो दल के दल पराजित हो चुके हैं ऐसे नेताओं से  भाजपा को क्या सहयोग मिल पाएगा ?दूसरी बात इन लोगों ने ऐसा तो है नहीं कि हृदय बदल लिया हो और राम मंदिर निर्माण का संकल्प लेकर आए हों !ये तो खुली बात है कि ये भाजपा का साथ उतने प्रतिशत ही देंगे जितने प्रतिशत भाजपा का काँग्रेसीकरण हो चुका है ये लोग हिन्दू हिंदुत्व एवं श्री राम मंदिर के नाम पर भाजपा का साथ तो देंगे नहीं !वैसे भी चुनावों के बाद यदि भाजपा(NDA) की सरकार नहीं बनी तो ये सत्ता लोलुप नेता स्वतः यहाँ से भी भाग जाएँगे ये वहाँ ही जाएँगे जहाँ सरकार बन रही होगी !इसलिए इनके चक्कर में पड़कर अपने वरिष्ठ नेताओं का गौरव नहीं गिरने देना चाहिए।  
    वैसे भी भाजपा को छोड़कर हर पार्टी में एक स्थिर मुखिया है ऐसा भाजपा में क्यों नहीं हो सकता ?आखिर लोग किसको देखकर दें वोट ? 
     यदि वास्तव में भाजपा के मुखिया श्री अडवाणी जी ही हैं  यदि इस बात से भाजपा के लोग भी सहमत हैं तो तो ऐसी दुर्घटनाएँ घट क्यों रहीं आखिर ये बात अडवाणी जी को तो पता होगी ही फिर रूठने मनाने का प्रश्न कहाँ से आ गया है
 क्यों पड़ा रहा दिन भर पच पच तब निकल कर क्यों नहीं दिया गया ऐसा कोई बयान 
 जिससे श्री आडवाणी जी के रूठने सम्बन्धी चर्चाओं पर लगाई जा पाती लगाम 
!दिन भर भद्द पिटवाने के बाद निकली भाजपा और मुस्कुराते हुए कहने लगी कि 
अडवाणी जी हमारे सर्व मान्य नेता हैं वो जहाँ से चाहें वहाँ से चुनाव लड़ें 
!इन बातों से ऐसा आदर टपक रहा था जैसे कुछ हुआ ही न हो चौबीस घंटे से 
मीडिया की खबरों एवं विपक्ष के हमलों से हैरान कार्यकर्त्ता वर्ग  निस्तब्ध था 
उसे कुछ कहते नहीं बन रहा था चुनावों के समय जहाँ एक एक सेकेण्ड की कीमत 
होती है वहाँ चौबीस घंटे तक भाजपा की प्रचार ऊर्जा ब्लॉक बनी रही बिरोधियों
के  हमले होते रहे कार्यकर्ता अपने नेताओं के मुख ताकते रहे किन्तु कोई कुछ 
कहने को तैयार नहीं था ऐसे समय क्या बीतती है कार्यकर्ताओं पर ? ये वो ही 
जानते हैं  जिन्होंने इस दंश को कभी झेला  होगा !  इस चुनावी समय में पक्ष और 
बिपक्ष में आने वाले बयान के प्रत्येक शब्द ही नहीं प्रत्युत उसे बोलते समय
 उठी भाव भंगिमाओं के भी अर्थ निकाले जाते हैं उस समय भाजपा अपनी भद्द खुद 
पीट रही है !बड़े नेताओं की बगावत होने का सीधा सा मतलब है कि पार्टी में 
अहंकारी प्रवृत्ति का बर्चस्व बढ़ रहा है ! 
    इस विषय को तूल देने में आप मीडिया को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं 
किन्तु क्या कहेंगे उस तर्जना को जो मुंबई से एक सहयोगी दल ने ललकारा है
 क्या विपक्ष की नेत्री की वेदना को भी यूँ ही उड़ा दिया जाना चाहिए और मान 
लिया जाना चाहिए कि वहाँ कुछ हुआ ही नहीं था !आखिर भाजपा के जिस निर्णय में अडवाणी जी जोशी जी सहित विपक्ष की नेत्री सुषमा जी जसवंत जी सम्मिलित न हों वो निर्णय ले कौन रहा है!क्या भाजपा के भी सारे निर्णय काँग्रेस की तरह ही किसी एक परिवार के ही अधीन होकर रह गए हैं  !भाजपा जैसी संस्कारों की दुहाई देने वाली पार्टी में बरिष्ठ नेताओं की बगावत !आश्चर्य !!छोटे नेताओं में होती तो एक बार चल भी  जाती यही दिल्ली के चुनावों हुआ था जिसके दुष्परिणाम बहुमत न मिलने के रूप में सामने आए इन्हीं सब कारणों से  केंद्र में भी कुछ ऐसे ही आसार बनने लगे हैं !कितना सुधार हो पाएगा कह पाना कठिन है ! 
 भाजपा कहते ही श्री अटल जी श्री अडवाणी जी का चित्र मानस पटल पर सहज ही 
उभर आता  है माना जा सकता है कि आज अटल जी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है 
किन्तु ईश्वर कृपा से श्री अडवाणी जी भाजपा की द्वितीय पंक्ति के नेताओं की
 अपेक्षा कम सक्रिय नहीं हैं उन्होंने  भाजपा को आगे बढ़ाने के लिए श्रम भी 
कम नहीं किया है फिर भी यदि उन्हें उनके पदों या प्राप्त प्रतिष्ठा  से 
हिलाया जाएगा तो भाजपा की पहचान किसके बल पर बनेगी ?वैसे भी घरों की तरह ही
 दलों में भी क्रमिक उत्तराधिकार की व्यवस्था है अच्छा होता कि उसका क्रमिक
 अनुपालन होता रहता किन्तु मीडिया तक पहुँचने से अच्छा नहीं रहा !खैर ,जो 
भी हो किन्तु भाजपा के हाईकमान में ऐसे कितने सदस्य हैं जिनका निजी 
व्यक्तित्व जनाकर्षक हो !जबकि राजनैतिक दलों का विकास ही जनाकर्षण से जुड़ा 
होता है ऐसी परिस्थिति में लोका- कर्षक नेताओं का  यदि वजूद बरकार नहीं रखा
 जाएगा तो संगठन चलेगा किसके बल पर ?जिसमें माननीय अडवाणी जी तो निष्कलंक 
,सदाचारी एवं स्पष्ट वक्ता हैं उन्हें अपनी कही हुई बातों की सफाई नहीं 
देनी पड़ती है उन्हें यह नहीं कहना पड़ता है कि हमारी बात को मीडिया ने गलत 
छाप दिया होगा वैसे भी वो अप्रमाणित बात नहीं बोलते शिथिल बात नहीं बोलते 
हैं सम्भवतः ऐसी ही तमाम उनकी अच्छाइयों के कारण उनका सामजिक  राजनैतिक आदि
 गौरव सुरक्षित बना हुआ है कुछ दलों के कुछ छिछोरे नेताओं को छोड़कर बाकी 
लोग आज भी उनका नाम बड़े सम्मान पूर्वक ढंग से लेते वैसे भी यदि हैम अटल जी 
का सम्मान करते हैं तो हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अटल जी भी उनसे स्नेह 
करते हैं इसलिए उनकी लोकप्रिय अच्छाइयाँ स्पष्ट हैं न जाने क्यों उनका गौरव
 सुरक्षित रखने में जाने अनजाने बाहर की अपेक्षा अंदर से इस उम्र में उतना 
गम्भीर सहयोग नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए !
      भाजपा एवं उसके सिद्धांतों को अभी तक गालियाँ देने वाले दूसरी पार्टी के तीतर बटेरों का तो इतना अधिक महत्त्व है कि उन्हें बैठने के लिए चाहें धोती भी बिछा देनी पड़े तो बिछा दी जाए किन्तु पार्टी अपनों को मनाने में क्यों नहीं सफल हो पा रही है। 
        भाजपा के वर्त्तमान केंद्रीय हाईकमान
 में शीर्ष पदों पर रह चुके लोग अपने गृह प्रदेश में इतने विश्वसनीय और 
लोकप्रिय नहीं हो सके कि अपने बल पर वहाँ पार्टी को चुनाव जीता सकें आखिर 
क्यों वहाँ भी मोदी जी का ही सहारा है आखिर उन्होंने उन प्रदेशों में 
वरिष्ठ पदों पर रहकर किया क्या है यदि मोदी जी ने अपना प्रदेश भी सम्भाला 
है और दूसरे प्रदेशों में भी अपनी लोकप्रियता बधाई है तो ऐसे ही कद्दावर 
पदों पर रह चुके अन्य लोगों ने ऐसा क्यों नहीं किया या कर नहीं पाए और यदि 
कर नहीं पाए तो हाई कमान किस बात के ?
  आखिर क्यों और कैसे बन जातीहै  काँग्रेस की सरकार बार बार! और क्यों देखती रह जाती है भाजपा ?
      कल मैंने किसी बड़े नेता के  भाषण में  सुना कि सपा बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियाँ  काँग्रेस जैसी पार्टी की ही देन हैं !
       जहाँ तक काँग्रेस का हाईकमान तो 
विश्व विदित है । इस प्रकार से जनता हर पार्टी की हाईकमान एवं उसकी 
स्वाभाविक स्थिरता और विचारधारा पर भरोसा करके  उसका साथ देती है कि ये 
हारे चाहें जीते किन्तु ये समय कुसमय में हमारा साथ देगा!
    जैसे -
 मुलायम सिंह जी सपा में कभी भी कोई भी निर्णय ले सकते हैं वे स्वतंत्र 
हाईकमान हैं ,इसी प्रकार बसपा में मायावती,नीतीशकुमार जी जद यू में,लालू 
प्रसाद जी जनतादल में,तृणमूल काँग्रेस में ममता बनर्जी जी ,अकाली दल में 
प्रकाश सिंह जी बादल ,इसी प्रकार उद्धव ठाकरे जी,राज ठाकरे जी ,ओम प्रकाश 
चोटाला जी ,शरद पवार जी,करुणा निधि जी , जय ललिता  जी, नवीन पटनायक जी 
,चन्द्र बाबू नायडू जी आदि और भी छोटे बड़े सभी दलों के हाईकमान अपनी अपनी 
पार्टी में सदैव सम्माननीय  एवं प्रभावी बने रहते हैं चुनावों में उनकी हार
 जीत कुछ भी हो तो होती रहे किन्तु इनके सम्मान एवं अधिकारों में कटौती 
नहीं होती है ये स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने में सक्षम बने रहते हैं 
उन्हें ही देखकर उनके स्वभाव को समझने वाली जनता यह समझकर वोट देती है कि 
ये हारें या जीतें किन्तु यदि हम इनका साथ देंगे तो ये हमारे साथ भी खड़े 
होंगे!इसी प्रकार से पार्टी कार्यकर्ता भी अपने   हाईकमान को पहचानने लगते 
हैं कि ये जैसा कहेंगे इस पार्टी  में रहने के लिए  हमें वैसा ही करना होगा
 किन्तु जिन पार्टियों में हाईकमान गुप्त है वहाँ कार्यकर्ता भी चुप रहता 
है और समर्थक तो चुप ही रहते  हैं।  
       भाजपा में ऐसा नहीं 
है यहाँ कब कौन किसका कब तक हाईकमान रहेगा फिर कब कौन किस कारण से कहाँ से 
हटाकर कहाँ फिट कर दिया जाएगा ये सब काम कौन क्यों कहाँ से किसकी प्रेरणा 
से कर रहा है या किसी अज्ञात शक्ति की प्रेरणा से होता रहता है आम जनता इसे
 जानने  की हमेंशा इच्छुक रहती है किन्तु किसी को कुछ बताने कि जरूरत ही 
नहीं समझी  जाती है इतनी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में कब क्या उथल पुथल चल रहा
 होता है जनता में से किसी को कुछ पता नहीं होता है।यहाँ तक कि बड़े बड़े 
कार्यकर्त्ता तक अखवार पढ़ पढ़ कर समाज को समझा रहे होते हैं कि अंदर क्या 
कुछ चल रहा है ,जैसे आम परिवारों में माता पिता की लड़ाई में बच्चों की  
स्थिति होती है न माता की बुराई कर सकते हैं और न ही  पिता की न सच्चाई ही 
किसी को बता सकते हैं केवल मौन रहना ही उचित समझते हैं ये स्थति भाजपा के 
आम कार्य कर्ता की होती है जब हाईकमान हिलता है । 
 
      मैं इस तर्क से सहमत नहीं 
हूँ क्योंकि  जब ये बात में सोचता हूँ तो एक सच्चाई सामने आती है कि 
काँग्रेस हमेशा से गलतियाँ  करती रही है पहले जब भाजपा का हाईकमान हिलता 
नहीं था अर्थात हिमालय की तरह सुस्थिर था तब तक  काँग्रेस का विरोध करने की
 क्षमता भाजपा में थी इसीलिए  भाजपा आगे बढती चली गई !
     किन्तु जब सर्व सम्मानित अटल
 जी  एवं अडवाणी जी को संन्यास लेने की सलाहें अंदर से ही आने लगीं। इस पर 
उस समाज को भयंकर ठेस लगी जिसके मन में भाजपा का नाम आते ही अटल जी  एवं 
अडवाणी जी सहसा कौंध जाया करते थे उसने सोचना शुरू किया कि यदि ये नहीं तो 
कौन?जनता को इसका उचित उपयुक्त एवं सुस्थिर जवाब अभी तक नहीं मिल सका है  
क्योंकि बार बार बनने बिगड़ने बदलने वाला निष्प्रभावी हाईकमान जनता को अभी 
तक  मजबूत सन्देश देने में सफल नहीं हो सका है जो पार्टी में हार्दिक रूप 
से सर्वमान्य हो !
           भारत वर्ष में एक ऐसी भी बड़ी पार्टी है जिसका हाईकमान सरस्वती नदी की तरह 
अदृश्य रहता है आखिर क्यों ? इसकी  कीमत देश की जनता को बार बार चुकानी पड़ती है।इस 
पार्टी की  कई वर्षों तक सरकार चलने के बाद भी भगवान् श्री राम के कार्य को
 भूल जाने  के कारण लगता है कि उस पार्टी को शाप लगा है कि इसका हाइकमान  हमेशा चलता 
फिरता रहेगा ! 
         भाजपा के इस ऊहा पोह के 
दिशाभ्रम से बल मिलता है क्षेत्रीय पार्टियों को !ये  केंद्र सरकार के  
विरुद्ध उठे जनाक्रोश को काँग्रेस का विरोध करके पहले कैस करती हैं और  फिर
 काँग्रेस को ही बेच लेती हैं इस प्रकार से फिर से बन जाती है काँग्रेस की 
सरकार !भाजपा काँग्रेस को कोसती  रह जाती है!
 
     
 
 
 
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