टी.वी.चैनलों एवं टी.वी.ज्योतिषियों की मिली भगत से हो रहा है शास्त्रों का अपमान ! दी जा रही आधी अधूरी मनगढंत तथा गलत जानकारी !
ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े प्रश्न पूछते हैं । हमसे भी पूछते हैं कि सरकार कब तक चलेगी? आदि।
ज्योतिष शास्त्र में बी.एच.यू. से हमारी शिक्षा पूर्ण हुई है। ज्योतिष हमारी पी.एच.डी. की थीसिस से जुड़ा विषय होने के कारण अक्सर लोग हमसे भी अन्धविश्वास से जुड़े प्रश्न पूछते हैं । हमसे भी पूछते हैं कि सरकार कब तक चलेगी? आदि।
टी.वी.चैनलों पर ज्योतिषादि विषयों पर अक्सर चल रही बकवास सुनकर लोग उनके विषय में हमसे भी प्रश्नोत्तर करना चाहते हैं क्या कहें किसकी क्यों निंदा की जाए?केवल इतना कहा जा सकता है कि आजकल ज्योतिष बिना पढ़े लिखे बकवासी लोग दिनभर टी.वी.आदि पर बैठकर ज्योतिष के बिषय में झूठ बोल रहे होते हैं उनका उद्देश्य भी बकवास करके उनके अज्ञान का विज्ञापन करना होता है।टी.वी.चैनलों का या तो उनसे कोई स्वार्थ होगा या उनका टी.वी.चैनलों से कोई स्वार्थ होगा या फिर दोनों का लक्ष्य ही शास्त्रों का अपमान करना होगा।हो सकता है कि अपने अज्ञानी होने का बदला ले रहे हों शास्त्रों से !
आप सबको पता है कि ज्योतिष एवं वास्तु के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।टी.वी.चैनलीय ज्योतिष एवं वास्तु वालों के मुख से इंग्लिश के शब्द तो आपने सुने होंगे लेकिन संस्कृत भाषा के शब्द आते ही नहीं हैं तो बोलें क्या ?कुछ लोग आधा अधूरा गलत सही कोई श्लोक बोल भी रहे होते हैं तो उसका अर्थ कहीं और का बता रहे होते हैं जिसका उस विषय से कोई लेना देना ही नहीं होता है।कई चालाक लोग तो आधे अधूरे टूटे फूटे संस्कृत शब्दों के बाद में नमः लगाकर उन्हें कहने लगते हैं और गारंटी से कह रहे होते हैं कि यह मंत्र आपको कहीं नहीं मिलेगा। यह सुनकर पत्रकार बन्धु हौसला बढ़ा रहे होते हैं।धोती कुर्ता आदि संस्कृत विद्वानों की हमेंशा से वेषभूषा मानी जाती रही है किन्तु अक्सर टी.वी.चैनलों पर पैंट शर्ट पहन कर कर रहे होते हैं अपनी अपनी विद्वत्ता का गुणगान !यदि उनकी जगह कोई पढ़ा लिखा संस्कृत भाषा एवं शास्त्रों का विद्वान होता तो वो अपनी वेष भूषा पर शर्म नहीं अपितु गर्व करता।खैर क्या कहा जाए ये सब पुरानी बातें हो गईं हैं अब तो मार्केट में और अधिक एडवांस माल आ गया है ऐसे लोग तो किसी का गोलगप्पे,आइसक्रीम खिलाकर उद्धार कर रहे होते हैं किसी से दसबंद माँगकर ! एक और हैं वो उससे भी चार कदम आगे हैं,जो कुछ लुटे पिटे अभिनेता अभिनेत्रियाँ पकड़कर उनके बल पर भीड़ इकट्ठी करते हैं फिर कुछ उनसे झूठ बोलवाते हैं कुछ खुद बोलकर इस छलहीन समाज के सब दुःख दूर करने के मंत्रों के बीज बो रहे हैं सब कुछ करने का दावा ठोकते हैं किन्तु बेचारे मंत्र को मंत्र कहना अभी तक नहीं सीख पाए मंतर या बीज मंतर ही बोलते हैं । मन्त्रों के बोलने में तो एक एक मात्रा का असर होता है ।अब आपही सोचिए जो मंत्र को मंतर कहते हैं उनके मंत्रों के अन्दर कितना डालडा होता होगा किसी को क्या पता खैर किसी का क्या दोष ऐसे अधर्मी धर्मवान लोग कलियुग के साक्षात् स्वरूप ही माने जा सकते हैं ।
प्राचीनकाल
में जिस ज्योतिष विद्या का इतना अधिक महत्व था कि आकाश में स्थित सूर्य
चंद्रमा के ग्रहण उस युग में इसी से तो पता लगा लिए जाते थे तब तो दूरबीन
मोबाइल टेलीफोन राकेट आदि की कोई सुविधा नहीं थी। आकाश स्थित ग्रहों की
गति का ज्ञान करने का भी एक मात्र ज्योतिष ही रास्ता था। एक दूसरे के सुख
दुख का पता लगाने का भी एक मात्र ज्योतिष ही रास्ता था।मंगल ग्रह का रंग
लाल है,सूर्यमंडल में गड्ढा है।इसके अलावा भी जीवन से जुड़ी असंख्य
जानकारियॉं भी तो ज्योतिष से ही मिलती थीं।ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन का अनंत काल से अभिन्न अंग रहा है।
वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष हो और वह चालीस वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।
वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड को रहने योग्य बनाने के लिए उस जमीन का परीक्षण पहले करना होता था। जमीन के अंदर कहॉं धन गड़ा है।कहॉ कौन हड्डी गड़ी है ।वैसे तो हड्डियॉ सारी जमीन में ही होती हैं किंतु यदि जीवित हड्डी कहीं गड़ी है तो वहॉं रहने वालों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।जिस व्यक्ति की आयु ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से अस्सी वर्ष हो और वह चालीस वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर ले अथवा उसकी हत्या कर दी जाए तो बचे हुए चालीस वर्ष उसकी आत्मा को प्रेत योनि में रहना पड़ता है इसी प्रकार उसकी हड्डियॉं उतने वर्षों तक जीवित मानी जाती हैं ऐसी शास्त्र मान्यता है।तो उन्हें वास्तु शास्त्र से पता लगाकर निकालना होता है।वास्तु के नाम पर भाषण वाजी करने वाला कोई भी व्यक्ति इस तरह कि जानकारी इसलिए नहीं देता है कि यह विषय उसे पता नहीं है।इसमें जनता उसे फॅंसा देगी।इसी प्रकार कुंडली नहीं बना पाते हैं तो कंप्यूटर और वेद मंत्र नहीं पढ़ पाए तो नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों के धंधे या उपायों के नाम पर कौवा, कुत्ता ,चीटी, चमगादड़, मेढकों, मछलियों आदि की सेवा बताने लगे।सभी योनियों में श्रेष्ठ मनुष्यों को कौवे कुत्ते पूजना सिखाते हैं साग सब्जी आटा दाल चावलों से ,रंग रोगनों से ,नामों की स्पेलिंग में अक्षर जोड़ घटा कर आदि सारी बातों से कर करा रहे होते हैं ग्रहों को खुश! यह सब ज्योतिष शास्त्र का उपहास नहीं तो क्या है?जो मीडिया और प्राच्य विद्याओं के व्यापारी मिलजुल कर कर रहे होते हैं।
जैसे कई बाल बढ़ाने वाले शैम्पुओं का टी.वी.पर
विज्ञापन किया जाता है बाद में पता लगता है कि उससे तो बाल गिर रहे होते
हैं ।ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष का विज्ञापन भी समझाना चाहिए।वो सौ प्रतिशत
झूठ पर आधारित होता है।चाहे राशिफल हो या कुछ और एक ही दिन में एक ही
व्यक्ति के बिषय में सौ लोग सौ प्रकार का तथाकथित राशिफल नाम का झूठ बोल
रहे होते हैं। अपने झूठ को सच सिद्ध करने
के लिए ही ऐसा बारबार बोला भी करते हैं कि मैंने इस विषय पर रिसर्च किया है।
पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा साइंटिस्ट होता है किंतु ज्योतिष का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।
पैसे लेकर गुरू जगद्गुरू, ज्योतिषाचार्य आदि सब कुछ बना देने वाला मीडिया भी इस पाप में अक्सर सम्मिलित रहता है। प्रायः टी.वी.ज्योतिष परिचर्चा या वाद विवाद के लिए रखे गए किसी कार्यक्रम में वैज्ञानिक वगैरह तो कोई पढ़ा लिखा साइंटिस्ट होता है किंतु ज्योतिष का पक्ष रखने के लिए कोई गोबर गणेश लाल पीले कपड़े पहनाकर चंदन आदि लीप पोत कर पूरी तरह भूत बना कर केवल गाली खाने के लिए बैठा लेते हैं,और फिर पत्रकार, दर्शक , साइंटिस्ट आदि पढ़े लिखे प्रबुद्ध लोग छोड़ दिए जाते हैं उसे नोचने को या उस पर हमला करने के लिए।
इस प्रकार से की तथा कराई जाती है सनातन शास्त्रों की छीछालेदरउस बेचारे
तथाकथित ज्योतिषी की अपनी शास्त्रीय इज्जत तो होती ही नहीं
है,ज्योतिष शास्त्र और शास्त्रीय ज्योतिषियों की बेइज्जती जरूर करा रहा
होता है।केवल उसे भी लोग ज्योतिषी मानें बस इतने से लालच में।
पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा
होता है कि ज्योतिषियों एवं साइंटिस्टों की महाबहस!सुनने वाले भी यही समझ रहे
होते हैंकि ऐसा ही होगा किंतु याद रखिए कि यदि चैनल के इरादे ही नेक होते
तो साइंटिस्ट की तरह ही वहॉं ज्योतिष का पक्ष रखने के लिए भी किसी संस्कृत
विश्वविद्यालय में ज्योतिष विषय का कोई रीडर प्रोफेसर या ज्योतिष में
एम.ए. पी.एच. डी.आदि किसी विद्वान को उस बहस में बैठाया जा सकता था तो वो
रख सकते थे
ज्योतिष का सशक्त पक्ष ।समाज को समझने का वास्तव में मौका मिलता कि ज्योतिष
है क्या? और उसकी सीमाएँ क्या हैं?किंतु इससे ज्योतिष को गाली दिलाने या
उसकी आलोचना करने की
चैनल की अभिलाषा अधूरी रह जाती, साथ ही ज्योतिष के बनावटी कागजी शेरों की
पोल भी खुल जाती कि उनकी बातों में कितना अधिक झूठ होता है?
कितना पाखंड हो रहा है शास्त्रों के नाम पर !
प्रायःशास्त्रीय
ज्योतिष से अपरिचित अनजान लोग राशिफल के नाम पर बोल रहे होते हैं सौ
प्रतिशत झूठ,चैनलों पर पढ़ा रहे होते हैं ज्योतिष,ताकि लोग समझें कि जरूर
पढ़े होगें नहीं पढ़ाते कैसे? स्टूडियो के अन्दर से या अपने परिचितों या
नाते रिश्तेदारों से गुरू जी कहाकर किए
कराए जा रहे होते हैं फोन। कराई जाती है झूठी प्रशंसा ।अपनी प्रशंसा में
घर से लिखकर ले गए काल्पनिक पत्र पढ़ या किसी और से पढ़ा रहे होते हैं ।कई तो
नेताओं मंत्रियों के साथ बनाई गई अपनी तस्वीरें दिखा रहे होते हैं । अन्य
लेखकों की लिखी हुई किताबों का मैटर अपने नाम से छपाकर दिखा रहे होते
हैं मोटी मोटी किताबें।क्या कुछ नहीं होता है आम आदमी को डरा धमका कर
भविष्य के अच्छे अच्छे सपने दिखाकर अपनी ओर खींचने के लिए !
इन्हीं सब बातों को सही सही समझने के लिए हमारे राजेश्वरी
प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत संस्थान
के सदस्य बनकर सभी प्रकार के शास्त्रीय शंका समाधान के लिए सुबिधा प्रदान
की जा रही है ।आप कहीं भी बैठ कर फोन पर भी केवल ज्योतिष ही नहीं अपितु सभी
प्रकार की शास्त्रीय शंकाओं का समाधान पा सकते हैं। इसी प्रकार वास्तु ,
उपायों आदि समस्त प्राचीन विद्याओं से संबंधित
ज्योतिष शास्त्रीय प्रमाणित सच्चाई जानने के लिए हमारे राजेश्वरी
प्राच्यविद्या शोध संस्थान के ज्योतिष जनजागरण अभियान के तहत बहुत सारी
जानकारी संस्थान की बेवसाइट www.grahjyotish.com पर उपलब्ध कराने का
भी प्रयास किया गया है।जिसे आप कभी भी देख सकते
हैं।और इसप्रकार के किसी भी
अंधविश्वास में फॅंसने से बचने के लिए आप ज्योतिष विषय का अपना जर्नल
नालेज बढ़ा सकते हैं। और यदि आप ज्योतिष वास्तु आदि समस्त प्राचीन विद्याओं
से जुड़ी कोई निजी जानकारी भी शास्त्र प्रमाणित रूप से लेना चाहें तो भी
आपको संस्थान की तरफ से यह सुविधा संस्थान संचालन के लिए सामान्य शुल्क
जमा करा कर लिखित या प्रमाणित रूप से दी जाती है। जिसमें किसी भी प्रकार की
गलती होने पर हर परिस्थिति में संस्थान अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता
है।जो चीज ज्योतिष शास्त्र से संभव नहीं है। उसे स्पष्ट रूप से मना कर
दिया जाता है।किसी भ्रम में नहीं रखा जाता है।संस्थान केवल सलाह देता
है।यहॉं किसी प्रकार के बिक्री व्यवसाय,या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीजों का
क्रय बिक्रय या कमीशन कार्य आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती है।हमारे
संस्थान का उद्देश्य केवल प्राचीन विद्याओं की जानकारी आप तक पहुँचाकर
अंधविश्वास में फॅंसने से बचाना है।यदि आप भी किसी भी प्रकार से शास्त्रीय
प्रचार प्रसार में संस्थान का सहयोग करना चाहें तो संस्थान आपका आभारी
रहेगा ।
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