अब दुर्गासप्तशती आदि
भी
रामचरितमानस एवं सुंदरकांड
की तरह
हिंदी दोहा चौपाई में पढ़िए
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान
की ओर से
शास्त्रीय ज्ञानविज्ञान को
घर घर जन जन तक पहुँचाने की पवित्र पहल
में
आप भी सहयोगी बनें
|
दुर्गा सप्तशती की पुस्तक संस्कृत भाषा में होने के कारण बड़े यज्ञ यागादि तो वैदिक ब्राह्मणों से कराने ही होते रहे हैं।जो लोग संस्कृत भाषा में दुर्गा सप्तशती नहीं पढ़ पाते हैं उनकी सुविधा के लिएअब
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान से
उसी दुर्गा सप्तशती ग्रंथ का हिंदी दोहा चौपाई में प्रमाणित अनुवाद किया गया है इसे अब आसानीपूर्वक
सुंदरकांड या राम चरित मानस की तरह हिंदी कविता में अकेले या कुछ लोगों
के समूह में बैठ कर बिना संगीत या संगीत के द्वारा भी पढ़ा जा सकता है।
समाज में जो अपराध की भावना बड़ी है उसी कारण से प्राकृतिक
विप्लव कहीं बाढ़, कहीं सूखा,भूकंप आदि के द्वारा भारी नरसंहार के भयावह
दृश्य देखने को मिल रहे हैं।इसीप्रकार से बम विस्फोट, आतंकवाद, महामारी आदि सामूहिक या पारिवारिक विपदाओं से बचने के लिए अभी भी सँभलने का समय है। ऐसे में दुर्गा जी की आराधना
ही एक मात्र सरल उपाय है जो कोई संस्कृत भाषा में न पढ़ सके उसे हमारे
संस्थान से प्रकाशित दुर्गा सप्तशती की इस सबसे अधिक प्रमाणित पुस्तक से
ही पाठ करना चाहिए,यह सबसे सरल और प्रमाणित उपाय है।
कुछ लोगों ने पहले भी इस
पुस्तक को या दुर्गा जी की और भी ऐसी पुस्तकें अपनी अपनी भाषा शैली में
श्रृद्धापूर्वक लिखने के प्रयास किए हैं।उनमें जो कमियाँ छूट गई हैं उन्हें
पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।
पहली बात उनमें भाषा की
गलतियाँ देखी गई हैं दूसरी बात किताब को सरल बनाने के लिए बहुत विषय छोड़
दिया गया है वो छोटी छोटी पतली पतली पुस्तकें पढ़ने में आसान ज़रूर
हैं,किन्तु खंडित होने के कारण उन्हें पढ़ने का लाभ क्या है?वो प्रचलित
पुस्तकें कितनी प्रमाणित हैं इसकी तुलना आप गीता प्रेस की प्रमाणित पुस्तक
को देखकर स्वयं भी कर सकते हैं।
तीसरी बात यह है कि उनमें से
कुछ पुस्तकों में लेखक लोगों ने हर पेज में अपनी फोटो एवं हर लाइन में
अपना नाम डाल रखा है।यह विधा इसलिए ठीक नहीं है कि पाठ करने वाला लेखक की
नहीं अपितु दुर्गा माता की पूजा करना चाहता है इसलिए उस पाठ के बीच - बीच
में लेखक की अपनी फोटो एवं हर लाइन में उसके नाम की जरूरत क्या है और इससे
पाठ भी खंडित होता है जिससे करने वाले को दोष तो लगता ही होगा !
ऐसे लोगों ने रद्दी कागज
में घटिया टाइटल लगाकर केवल पैसे कमाने के लिए कमजोर किताबें बनाई हैं ताकि जल्दी फट जाएँ और उनकी नई किताबें बिक सकें!
इन सबसे ऊपर उठकर मैंने
सोचा कि फिल्मी मैग्जीनें तो अच्छे अच्छे कागजों और कवर में छापी बनाई जाती
हैं जबकि दुर्गा जी के साहित्य लिए ऐसी तुच्छ श्रृद्धा !इसलिए मैंने सबसे
महँगी लागत लगाकर किताब बनाई है आखिर जगत जननी माता दुर्गा के प्रति आस्था
विश्वास का सवाल है । हम माता के सम्मान एवं प्रामाणिकता के साथ किसी भी
प्रकार का समझौता नहीं कर सकते,शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान के साथ समझौता करना
अपने स्वभाव में ही नहीं है !
बहुत से बुक सेलरों ने
हमारी पुस्तकों को बेचने से इसलिए मना कर दिया है कि उन्हें कमीशन कम मिलता
है यदि हम किताबों की क्वालिटी घटा दें तो उनका कमीशन बढ़ जाए!बंधुओं,आज
भी तीस प्रतिशत कमीशन देकर हम लगभग लागत दाम पर उन्हें पुस्तकें उपलब्ध
करवाते हैं फिर भी उन्हें संतोष नहीं हो रहा है,किताबों की क्वालिटी घटाने
का हम पर दबाव बना रहे हैं।
बंधुओं,इसी
प्रकार के कुछ लोगों के विरोधी विचारों से मैं आहत हूँ,महँगे महँगे
विज्ञापन दे पाना अपने बस का नहीं है अतएव आप सभी दुर्गा जी के भक्तों से
निवेदन है कि आप हमारे संस्थान के इस तरह के कार्यक्रमों में सहयोग करने
के लिए आगे आएँ और आप अपनी श्रृद्धा एवं शक्ति के अनुशार हमारा आर्थिक
सहयोग करें ।यदि संभव हो तो इसके लिए आप कुछ और लोगों को भी प्रेरित करें।
दूसरी बात यह है कि लागत मूल्य पर ये पुस्तकें संस्थान से खरीद कर भक्तों को बाँटने के लिए लोगों को आप प्रेरित करें।
इस प्रकार की पाँच
पुस्तकों के सेट हमारे यहाँ बनाए गए हैं जो हमारे एकाउंट में पैसे जमा
करवाकर आप डाक द्वारा हमसे ये पुस्तकें मँगवा सकते हैं।
हमारा अभियान केवल इतना ही नहीं
अपितु जन जन तक शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को पहुँचाना है सनातन धर्म के
समस्त श्रृद्धालुओं से मेरी प्रार्थना है कि इस अत्यंत पवित्र कार्य में आप
भी हमारे सहयोगी बनें।
वैसे भी पुराणों में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जब तक प्रतिदिन भगवती
दुर्गा की पूजा नहीं करता तब तक वह और कितने भी प्रकार के दूसरे पुण्य
कर्म क्यों न कर ले किन्तु उनका कोई फल नहीं मिलता है अपितु भगवती
दुर्गा स्वयं उन सारे पुण्यों को भस्म कर देती हैं। जैसे -
यो न पूजयते नित्यं चण्डिकां भक्त वत्सलाम् ।
भस्मी कृत्यास्य पुण्यानि निर्दहेत् परमेश्वरी ।।
-पुराण
इसलिए
भगवती दुर्गा की आराधना हर किसी को प्रतिदिन करनी चाहिए साथ ही हर घर में
प्रतिदिन होनी चाहिए।हर गाँव, नगर ,समाज,शहर ,देश आदि में सामूहिक रूप से
की जानी चाहिए। मंदिरों के पंडित पुजारियों को चाहिए कि वे इस पूजन विधान
को प्रतिदिन करें । इससे उस क्षेत्र में रहने वालों को कभी किसी प्रकार के
संकट का सामना नहीं करना पड़ता है। इससे सामाजिक दुष्प्रवृत्तियाँ एवं विप्लव आदि रोकने में विशेष सहयोग मिलेगा।
जैसे किसी दुर्घटना के घटने
पर सरकार राहत सामग्री पहुँचाती है साथ ही
सहयोग राशि देती है किन्तु सरकार हो या संसार का कोई और दूसरा व्यक्ति हो
किन्तु कोई दुर्घटना घटने के बाद ही उसके विषय में सबको पता लगता है
किन्तु दुर्गा जी की आराधना तो कोई दुर्घटना घटने ही
नहीं देती है।इसलिए जीवन में सभी प्रकार की सुख शांति समृद्धि पूर्वक जीने
के लिए
क्यों न दुर्गा जी की ही आराधना की जाए !
इसके लिए दुर्गा सप्तशती एवं नवदुर्गा स्तुति हमारे संस्थान से प्रकाशित हैं इनका पाठ अधिक से अधिक करना चाहिए।इसमें खर्च की समस्या भी बहुत कम
होती है क्योंकि किसी बाबा ,पंडित, पुजारी आदि से इसका पाठ नहीं कराना पड़ता है आप स्वयं इसका पाठ कर सकते हैं।
चूँकि संस्कृत की दुर्गा सप्तशती की पुस्तक कठिन है संस्कृत विद्वानों के अलावा और कोई इसका पाठ नहीं कर सकेगा। अशुद्ध पाठ करना नहीं चाहिए। धन की कमी के कारण हर कोई विद्वान् ब्राह्मणों से इसका पाठ करा नहीं सकता।उसके लिए ज्यादा धन की आवश्यकता होती है।
वैसे भी पूजापाठ स्वयं करना ही अधिक श्रेयस्कर रहता है, उससे पुण्यलाभ के साथ साथ संस्कार भी सुधरते हैं । इसलिए समाज की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ही संस्कृत दुर्गा सप्तशती का हिन्दी कविता अर्थात दोहा चौपाई में अनुवाद किया गया है।
दुर्गा जी की पूजा सामूहिक रूप से की जाए तो
बहुत ज्यादा प्रभावी होगी।आप अपने नाते रिश्तेदारों तथा हेती व्यवहारियों
को एवं समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को साथ जोड़कर सामूहिक पाठ का आयोजन
कर सकते हैं, न अधिक संभव हो तो यह आयोजन वर्ष में एक बार तो हर कहीं किया
ही जा सकता है और करना भी चाहिए । यह तो धर्म, पुण्य एवं जनहित का काम
है,इसलिए
तन मन धन से प्रसन्नता पूर्वक करना ही चाहिए।ऐसा करने के लिए अन्य लोगों को
भी प्रेरित करना चाहिए।हमारे संस्थान से लागत दाम पर दुर्गा सप्तशती आदि
लेकर उन लोगों को बाँटनी चाहिए जो इन्हें पढ़ने की रूचि रखते हों । लोगों
को सामूहिक पाठ करने या करवाने के लिए प्रेरित भी करना चाहिए।
हमारे संस्थान
की ओर से इस प्रकार के कार्यक्रम अक्सर अलग अलग जगहों पर चलाए जाते रहते हैं उनमें सम्मिलित
होने के लिए यदि आप धन का सहयोग करना चाहें तो आप हमारे संस्थान के पता
एवं फोन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। इस प्रकार के पवित्र प्रयास वाले
पर भगवती दुर्गा असीम कृपा करती रहती हैं ऐसे भक्त की सभी मनोकामनाएँ पूरी
करती रहती हैं ।
इससे एक अथवा अनेकों स्त्री-पुरुष आदि एक साथ बैठ कर स्वयं ही बड़ी आसानी से संयम पूर्वक हजारों पाठ करके शत चंडी यज्ञ, सहस्र चंडी यज्ञ या इसीप्रकार लक्षचंडी यज्ञ भी आप स्वयं ही आम आदमी के सहयोग से कर सकते हैं।
शत चंडी यज्ञ के लिए आपको दुर्गा सप्तशती के सौ पाठ करने होते हैं,सहस्र
चंडी यज्ञ में आपको दुर्गा सप्तशती के एक हजार पाठ करने होते हैं इसीप्रकार
लक्षचंडी यज्ञ
के लिए आपको दुर्गा सप्तशती के एक लाख पाठ करने होते हैं। दस पाँच या
सैकड़ों स्त्री पुरुष इस पाठ में सम्मिलित किए जा सकते हैं वो जितने भी पाठ
एक दिन में कर लें वो लिख ले। इस प्रकार शत चंडी यज्ञ,सहस्र चंडी यज्ञ आदि
कुछ भी आप स्वयं संपन्न कर सकते हैं।इसके लिए यदि किसी को कोई जानकारी लेनी
हो तो बिना किसी हिचक के आप हमारे यहाँ फोन कर सकते हैं या फिर समय समय पर
लगने वाले हमारे प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेकर इस विषय की जानकारी समझ
सकते हैं ।
नवदुर्गा स्तुतिःइसीप्रकार जिनके पास समय का अभाव है उनके लिए नवरात्र के अलग अलग दिनों में पढ़ने के लिए नव देवियों की नव स्तुतियॉं प्रमाणित रूप से हमारे श्री नवदुर्गा स्तुति नामक ग्रंथ में लिखी गई हैं। यह हमारे संस्थान से प्रकाशित है इसका पाठ अधिक से अधिक करना चाहिए। एक तो यह प्रमाणित है दूसरा रामचरित मानस की तरह ही इसका भी पाठ किया जा सकता है। तीसरी सुविधा यह है कि जिनके पास समय नहीं होता है उन्हें नवरात्र के प्रतिदिन भी दिनों के हिसाब से अर्थात नवरात्र के किस दिन में किस देवी का पाठ कितना करना होता है ?यह जानकारी भी सबिधि दी गई है।
इन्हें प्राप्त करने के लिए अथवा किसी प्रकार की अन्य जानकारी के लिए आप हमारे राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान में बिना किसी हिचक के संपर्क कर सकते हैं 09811226973
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