फाँसी की जगह सुसंस्कारों की आवश्यकता
इसलिए
किसी घटना के घटने पर उस क्षेत्र,जाति
समुदाय सम्प्रदाय स्त्री पुरुष आदि समूचे वर्ग को कोसने की शैली ठीक नहीं
है।इससे अपराधी को बच निकलने का रास्ता मिल जाता है उस वर्ग के लोग उसका
साथ देने लगते हैं।इससे मीडिया को शोर मचाने में सुविधा भले होती हो किंतु
कुछ लाभ न होकर
उसके नुकसान अवश्य उठाने पड़ते हैं।उस वर्ग के भले लोग जो उस तरह के अपराध
को रोकने में अपनी अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुशार सहयोग भी करना चाहते हैं
उन्हें भी शर्मिंदगी के कारण दूरी बनाए रखनी पड़ती है।
आजकल कामेडी शो से लेकर अन्य फिल्म,
सीरियल आदि जगहों के हास्य ब्यंग एवं तथाकथित कवि सम्मेलनों में केवल
लड़की,और लड़की पट गई या लड़की नहीं पटी,या सुहागरात,या बेलेंटाइन डे
यही तो चर्चाएँ तो होती हैं टॉफी गोली की तरह लड़कियॉं एवं उनकी शिथिल चर्चाएँ
परोसी जा रही होती हैं।हर प्रकार के विज्ञापनों का यही हाल है।हर
ज्योतिषी ने एक सुंदर सी लड़की झूठी तारीफ करने के लिए अपने साथ बैठाई होती
है कि शायद इस लड़की के बहाने ही कुछ लोग हमें देख लें। शरीरों पर ही हास्य ब्यंग हो रहे हैं सुंदर युवा
शरीर पहले अर्द्धनग्न वेष भूषात्मक अवस्था में खड़े किए जाते हैं फिर उनकी
भाषात्मक छीछालेदर की जाती है।जिसे सुनकर तथाकथित राजा महराजा रूपी दर्शक
यह सोचकर खुश हो रहे होते हैं कि हमारी बेटी के बिषय में तो कहा नहीं जा
रहा है,इसलिए हॅंसो और हॅंसो, खूब हॅंसो, हॅंसने में क्या जाता है अपना? जिस दिन अपने और पराए की यह कलुषित भावना छूट जाएगी उस दिन महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से समाज को मुक्ति मिलेगी।
कई
बार इंटरनेट,ब्लू फिल्मों, या जनरल फिल्मों के बासना बढ़ाने वाले दृश्य
संवाद आदि देखने सुनने याद करने पर मन भड़क उठता है। ऐसे समय पति पत्नी या
प्रेमी प्रेमिकाओं के हाथ चंचल हो उठते हैं और संयम का बॉंध टूट जाता
है।दोनों में से कौन किसके कहॉं कैसे हाथ लगा रहा होता है कुछ देर के लिए
यह विवेक दोनों को नहीं रह जाता है।कई बार फिल्म आदि देखकर निकले प्रेमी
प्रेमिकाओं को रिक्सा या आटो पर भी शिथिल व्यवहार करते देखा जा सकता
है।जिसका देखने वालों पर गलत असर पढ़ना स्वाभाविक है।उस क्रिया की
प्रतिक्रिया कितनी बड़ी होगी कह पाना बड़ा कठिन है।उस प्रतिक्रिया के वेग को
रोक पाना किसी के लिए बड़ा कठिन होता है फिर भी अपराध रोकने के लिए कठोर
कानून तो बनें ही साथ साथ हमें भी अपने आचार व्यवहार में संयम से काम लेना
चाहिए।
भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
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